1. मानव ववकास के वसद्ाांत
डॉ राजेश वमाा
अवसस्टेंट प्रोफे सर (मनोववज्ञान)
राजकीय महाववद्यालय आदमपुर, वहसार, हररयाणा
2. पररचय
विकास, प्रत्येक इंसान में अविव्यवि के आधार पर एक अवितीय
मनो-जैविक घटना होती है वजसमे इस की प्रविया एक समान होती है। यह
प्रविया व्यिवथित, अनुिवमक और तावकि क होती है जो एक अंतवनिवहत
थिरूप पर आधाररत होती है। इन अंतवनिवहत थिरूपों को ‘मानि विकास
के वसद्ांत’ कहा जाता है। ये वसद्ांत हमें विकास की प्रविया की एक
वनवित विग्री तक िविष्यिाणी करने में मदद करते हैं।
3. ववकास तीन सावाभौवमक जैववक और 9 सामान्य वसद्ाांतों
का पालन करता है।
जैववक वसद्ाांत:
1. विर: पदाविमुख
2. समीप-दूराविमुख एिं
3. ऑिोजैनेवटक
4. सामान्य वसद्ाांत:
1. वनरंतरता का वसद्ांत,
2. विकास की दर में समानता की कमी का वसद्ांत,
3. व्यविगत विन्नताओं का वसद्ांत,
4. थिरूप की एकरूपता का वसद्ांत,
5. सामान्य से विविष्ट प्रवतवियाओं की और बढ़ने का वसद्ांत,
6. एकीकरण का वसद्ांत,
7. पारथपररक संबंधों का वसद्ांत,
8. अंतःविया का वसद्ांत, और
9. पूिािनुमान का वसद्ांत।
6. 1. वशर: पदावभमुख (वसफै लोकौडल) – इसका अिि है 'वसर से पैर तक'।
सेफविक का अिि है ‘वसर क्षेत्र’ जबवक कौिि का अिि है ‘पूंछ क्षेत्र’। वसर (मुख्य
तंवत्रका तंत्र का क्षेत्र ) के पास के क्षेत्र का विकास िरीर के दूसरे क्षेत्रों के विकास से
पहिे होना विर: पदाविमुख विकास कहिाता है। वििु का वसर उसके िरीर के
अनुपात में बडा होता है वजसके कारण िह पैरों से पहिे हािों का इथतेमाि करना
सीखता है। विर: पदाविमुख विकास यह इंवगत करता है वक प्रसिपूिि अिवध
(गििधारण से ५ महीने तक) के दौरान वसर बावक िरीर से पहिे विकवसत होता है।
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7. 2. समीप-दूरावभमुख (प्रॉक्सीमोवडस्टल) – प्रॉक्सीमो का अिि है
'समीप या पास' और विथटि का 'दूर'। जन्मपूिि 5 महीने से िेकर जन्म-
तक भ्रूण के िरीर का विकास 'अंदर' से ‘बाहर’ की और होने की प्रविया
को ‘समीप-दूराविमुख’ विकास कहते हैं। यह उस विकास को संदविित
करता है जो िरीर के कें द्र से वनकिकर बाहरी सीमाओं की तरफ अग्रसर
होता है।
8. 3. ऑर्थोजैनेवटक – इसे प्रगवतिीि िमविकास के रूप में िी जाना जाता
है। कायि करने के सिी पहिुओं का विकास (ज्ञान, प्रत्यक्षण, धारणा इत्यावद)
जैसे वििेषज्ञता प्राप्त करने की कमी से वििेषज्ञता प्राप्त करने, पदानुिवमक
एकीकरण तिा थपष्ट उच्चारण में िृवद् को ऑिो जेनेवटक विकास कहा जाता
है (हेनज़ िनिर, 1975) । जवटि कौिि से पहिे सरि कौिि का विकास
ऑिोजेनेवटक विकास का एक प्रकार होता है।
10. सामान्य वसद्ांत:
1. वनरांतरता का वसद्ाांत – इसका अिि है वक विकास जीिन चि के माध्यम से
वनरंतर होता रहता है। यह मानि के दोनों अनुक्षेत्रों (मनोिैज्ञावनक और िारीररक) में
िवमक और वनरंतर पररितिन की प्रविया होती है।
2. ववकास की दर में समानता की कमी का वसद्ाांत – हािांवक विकास
वनरंतर चिने िािी प्रविया होती है िेवकन संज्ञानात्मक, िारीररक और जीिन वक
अिथिाओं में इसकी दर में समानता नहीं होती। उदाहरण के विए दो बच्चों की
िम्बाई अिग-अिग दर से बढ़ सकती है, संिेगों के मामिे में िी यही हाि होता है।
3. व्यविगत वभन्नताओां का वसद्ाांत – प्रत्येक इंसान की अनुिांविक संरचना
अवितीय और अनन्य होती है, इसविए विकास सिी आयामों में तदनुसार विविष्ट
होता है।
11. 4. स्वरूप की एकरूपता का वसद्ाांत – विकास का थिरूप समरूप और
सािििौवमक होता है। संज्ञानात्मक क्षमताओं का विकास, िाषा विकास,
चिना सीखना आवद विविष्ट दर और अविव्यवि के साि एक वनवित और
समान थिरूप में विकवसत होता है।
5. सामान्य से वववशष्ट प्रवतवियाओां की और बढ़ने का वसद्ाांत – इस
वसद्ांत के अनुसार िुरुआत में बच्चा सामान्य प्रवतविया देता है और वफर धीरे-
धीरे विविष्ट प्रवतवियाओं को करना सीखता है। उदाहरण के विए, बाय-बाय
करते िि िुरुआत में बच्चा पूरे हाि को वहिाता है और वफर के िि हिेिी
को िहराना सीख जाता है, िाषा के सन्दिि में िी ऐसा ही होता है जहां िह
सिी व्यवियों को मााँ और वपताजी आवद से संबोवधत करता है।
12. 6. एकीकरण का वसद्ाांत – विकास संपूणिता से विविष्टता और विविष्टता से
सम्पूणिता (कु प्पुथिामी, 1963) में होता है वजसका अिि है वक यह िरीर के सिी वहथसों
और अंगों का एक एकीकृ त प्रयास होता है।
7. पारस्पररक सांबांधों का वसद्ाांत – एक प्रवसद् कहाित है की "स्वस्र्थ मन
स्वस्र्थ शरीर में रहता है", जो यह इंवगत करती है वक एक अंग का विकास प्रत्यक्ष या
अप्रत्यक्ष रूप से िरीर के अन्य अंगों के विकास से संबंवधत होता है। उदाहरण के विए
कम विकवसत मवथतष्क के कारण िािनात्मक और बौवद्क प्रवतवियाओं में िी कमी
पाई जाती है।
8. अांतःविया का वसद्ाांत – आंतररक और बाहरी प्रिािों की सविय अंतःविया
के पररणामथिरूप विकास सकारात्मक रूप से प्रिावित होता है। उदाहरण के विए
"प्रकृ वत बनाम पोषण" संप्रत्यय विकास में जीन और मनो-सामावजक िातािरण की
महत्िपूणि िूवमका को दिािता है।
13. 9. पूवाानुमान का वसद्ाांत – जैसे वक हमने चचाि की है वक विकास थिरूप और
वनरंतरता के समानता के वसद्ांत का पािन करता है जो यह दिािता है वक इसके
अनुिम की िविष्यिाणी की जा सकती है। उदाहरण के विए
'बाबीन्सकी' निजात वििुओं में पाये
जाने िािी एक अनैवच्छक विया होती
है जो 8 से 12 महीने की उम्र में
थितः ही समाप्त हो
जाती है।
14. References:
(i) NCERT, XI Psychology Text Book.
(ii) Mangal, S. K. (2017). Advanced Educational Psychology,
2nd ed. Delhi: PHI Learning.
(iii) http://www.psychologydiscussion.net/educational-
psychology/principles-of-human-growth-and-development/1813
(iv) https://study.com/academy/lesson/principles-of-growth-
and-development.html.
(v) http://www.shareyouressays.com/knowledge/12-main-
principles-of-growth-and-development-of-children/116600.
(vi) https://dictionary.apa.org/orthogenetic-principle