ali garh movement part2.pptx THIS movement by sir syed ahmad khan who started...
Hin concept of human developmet
1. मानव ववकास की अवधारणा
डॉ राजेश वमाा
अवसस्टेंट प्रोफे सर (मनोववज्ञान)
राजकीय महाववद्यालय आदमपुर, वहसार, हररयाणा
2. मानव ववकास भारतीय सावहत्य के पररप्रेक्ष्य से भगवत गीता:
2.28 - "सभी शरीर शुरुआत में अव्यक्त थे, वे मध्य में प्रकट होते हैं, हे
भरत ! और अंत में वे वफर से अव्यक्त हो जाएंगे, तो तुम इस बारे में क्यों
शोक करते हो "।
इसका अर्थ है कक जीवन शून्य से जन्म लेता है, मध्य में खुद प्रकट
होता है और अंत में शून्य में ही कवलीन हो जाता है। 'स्वयं प्रकट होना' वह
जगह है जहां नौ द्वार (भ.गी.: 5.13) वाले घर में कवकास प्रफु कललत
होता है। अकभव्यकि काल में 'मन' पर कनयंत्रण और उसके शुकिकरण को
कवकास की प्रकिया के दौरान सबसे महत्वपूणथ माना गया है।
3. भगवत गीता: 13.6 - गकतकवकियों का क्षेत्र (शरीर) पांच महान तत्वों,
अहंकार, बुकि, अप्रकट आकदकालीन तत्त्व (प्रकृ कत), इंकियों की पांच
वस्तुओं, ग्यारह इंकियों (दशैकं ) (पांच ज्ञान इंकियां, पांच काम करने
वाली इंकियां और मन ) से बना है।
(i) पंच-महाभूत (पांच सकल तत्व – पृथ्वी, पानी,
अकग्न, वायु, और अंतररक्ष),
(ii) पांच ज्ञान इंकियां (कान, आंखें, जीभ, त्वचा, और
नाक),
(iii) पांच काम करने वाली इंकियां (आवाज, हार्, पैर,
जननांग, और गुदा), और
(iv) मन।
4. भगवत गीता: 13.7 - इच्छा द्वेष, सुख, दुुःख, संघात जीवन के लक्षण तर्ा
िैयथ इन सब को संक्षेप में कमथ का क्षेत्र तर्ा उसकी अंतुः कियाएं, (कवकार)
कहा जाता है।
शरीर एक गकतकवकियों का क्षेत्र है। यह मृत्यु तक छह पररवतथनों से
गुजरता है
(i) अकस्र् (अकस्तत्व में आना)
(ii) जायते (जन्म)
(iii) विथते (कवकास),
(iv) कवपाररनमते (प्रजनन),
(v) अपकक्षयते (उम्र के सार् झुकाव),
(vi) कवनाशयकत (मौत)।
यह (शरीर) अपने कलए खुशी की खोज में आत्मा का समर्थन करता है।
5. मनोवैज्ञावनक वजन्होंने मानव ववकास का
अध्ययन वकया
(i) Jean Piaget (संज्ञानात्मक कवकास),
(ii) Urie Bronfenbrenner (कवकास का प्रासंकगक
दृश्य)
(iii) Lev Vygotsky (सामाकजक कवकास कसिांत),
(iv) दुगाथनंद कसन्हा (पाररकस्र्कतक मॉडल),
(v) Harry Frederick Harlow (सामाकजक और
संज्ञानात्मक कवकास पर अनुलग्नक का प्रभाव)
(vi) Erik Erikson (मनोवैज्ञाकनक कवकास), और
(vii) Lawrence Kohlberg (नैकतक कवकास)।
6. ववकास का अथा
गभथ से लेकर जन्म और वृिावस्र्ा तक मनुष्य के जीवन
में िकमक, गुणात्मक और मात्रात्मक पररवतथन या जीवन के
दौरान नए चरणों को प्राप्त करना ही कवकास का अर्थ होता है।
कवकास एक संरचनात्मक और कायाथत्मक प्रवाह होता है जो
जीवन के चि को प्रवाहमान बनाय रखता है। पूरी पृथ्वी पर
कवकास का स्वरूप एक समान होता है लेककन इसकी
अकभव्यकि प्रत्येक इंसान में अकद्वतीय होती है।
7. ववकास के प्रमुख चरण
(i) प्रसवपूवथ चरण (40 सप्ताह / 9 महीने)
(ii) कशशु (2 साल तक)
(iii) बचपन (3 से 11 वषथ)
(iv) ककशोरावस्र्ा (12 से 17 वषथ)
(v) वयस्कता (18 से 60 वषथ)
(vi) वृिावस्र्ा (> 60 वषथ)
8. पररभाषा - "कवकास प्रगकतशील, व्यवकस्र्त, और अनुमाकनत पररवतथनों
का एक स्वरूप होता है जो गभथिारण से शुरू होकर जीवनपयथन्त चलता
है"। इसमें मनुष्य के शारीररक, मनोवैज्ञाकनक और सामाकजक क्षेत्रों में वृकि
और कगरावट दोनों शाकमल होती हैं।
(Image courtesy: https://www.bloemfonteincourant.co.za/ouderdom-nie-vir-sissies/)
9. ववकास के कु छ उदाहरण
(i) शारीररक - मांसपेकशयों और हड्कडयों के सामथ्यथ में पररवतथन
आकद।
(ii) मनोवैज्ञाकनक - संज्ञानात्मक प्रणाली में पररवतथन जैसे सोचने की
प्रकिया में, समस्या समािान की क्षमता में, अविान और अविारणात्मक
प्रकिया में इत्याकद।
(iii) सामाकजक - पारस्पररक संबंिों, सामाकजक अनुकू लन, सामाकजक
व्यवहार आकद में पररवतथन।
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10. कवकास कोई अलग घटना नहीं होती बकलक यह जैकवक, सामाकजक-
भावनात्मक, और संज्ञानात्मक प्रकियाओं की अंतुःकिया का पररणाम होती है।
(i) जैववक - माता-कपता से कवरासत में प्राप्त जीन, व्यकि की ऊं चाई, वजन,
मकस्तष्क, कदल, फे फडों, और शारीररक कवशेषताओं के कवकास को प्रभाकवत करते
हैं जो जैकवक प्रकियाओं के तहत आते हैं।
(ii) संज्ञानात्मक - मानकसक संकाय में पररवतथन जैसे स्मृकत, अकभज्ञान, समझना
आकद।
(iii) सामावजक-भावनात्मक - सामाकजक अंतुःकिया, भावनात्मक प्रकतकिया
और व्यकित्व में पररवतथन आकद। उदाहरण के कलए प्रकतस्पिाथ आकद में हारने पर
ककशोर द्वारा दुख अकभव्यकि करना।
11. ववकास का जीवन काल पररप्रेक्ष्य
(i) कवकास जीवन जीवनपयथन्त चलने वाली प्रकिया होती है
(वृकि और ह्रास)।
(ii) कवकास बहुआयामी होता है।
(iii) कवकास का स्वरूप अत्यकिक लचीला होता है यानी इसमें
सुिार की संभावना होती है (कौशल और क्षमताओं में सुिार ककया
जा सकता है)
(iv) कवकास ऐकतहाकसक कस्र्कतयों से प्रभाकवत होता है। उदाहरण के
कलए भारत में स्वतंत्रता संग्राम के समकालीन वाले 20 साल के
व्यकियों के अनुभव आज के 20 साल के व्यकियों के अनुभवों से
बहुत अलग होंगे।
12. लगातर ......
(v) कवकास का समाजशास्त्र, मनोकवज्ञान, मानव कवज्ञान, तंकत्रका कवज्ञान
आकद द्वारा अध्ययन ककया जाता है।
(vi) व्यकि की प्रकतकिया संदभथ आिाररत होती है यानी व्यकि अपनी
कवरासत, तत्काल पयाथवरण, सामाकजक कस्र्कत और सांस्कृ कतक कारकों के
आिार पर प्रकतकिया देता है।
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13. प्रमुख पररभाषाएं
(i) ववकास - एक प्रकिया कजसके द्वारा व्यकि जीवनपयथन्त बढ़ता और
बदलता है।
(ii) संवृवि - यह शरीर के अंगों के आकार में वृकि या उनके पूरी तरह
संगकित होने को दशाथता है। इसे मापा या मात्राबि भी ककया जा सकता है।
(iii) पररपक्वता - यह उन पररवतथनों को संदकभथत करता है जो िकमक
अनुिम का पालन करते हैं और बडे पैमाने पर अनुवांकशक खाके द्वारा कनिाथररत
ककए जाते हैं जो कवकास में समानताएं उत्पन्न करते हैं।
(iv) क्रमववकास - यह प्रजाकतयों के कवकशष्ट पररवतथनों को संदकभथत करता
है। उदाहरण के कलए 1.4 करोड वषथ पहले महान वानरों से मनुष्यों का उद्भव।