2. क्रम सूची
जीन पियाजे का िररचय
जीन पियाजे की मनोवैज्ञापनक पवचारधारा
जीन पियाजे का संज्ञानात्मक पवकास पसध्ांत
संज्ञानात्मक पवकास क
े प्रत्यय
संज्ञानात्मक पवकास क
े चरण
संज्ञानात्मक पवकास की अवस्थाएं
संज्ञानात्मक पवकास िर आधाररत प्रश्न
3. जीन पियाजे का िररचय
डॉक्टर जीन पियाजे(1896-1990) स्विट्जरलैंड क
े पनवासी थे। एक मनोवैज्ञापनक तथा
आनुवांनपशक एपिस्टेमोिोपजस्ट थे।
जीन पियाजे ने मानव पवकास क
े समस्त िहिुओं को क्रमबद्ध तरीक
े से उजागर पकया,पजसे
पियाजे पसद्धांत अथवा जीन पियाजे का संज्ञानात्मक पवकास पसद्धांत क
े नाम से जानते हैं।
जीन पियाजे क
े अनुसार संज्ञानात्मक का अथा है बौद्धद्धक पवकास।जीन पियाजे क
े अनुसार
बािक का पवकास क्रमबद्ध तरीक
े से होता है।
जीन पियाजे को पिकासात्मक मनोपिज्ञान का जनक कहा जाता है। जीन पियाजे ने
सवाप्रथम “द लैंग्वेज ऑफ थॉट ऑफ द चाइल्ड” िुस्तक 1923 में पिखी।
4. जीन पियाजे की मनोवैज्ञापनक पवचारधारा
जीन पियाजे क
े अनुसार मानव पवकास क
े िरंिरागत पसद्धांतों क
े अनुसार पवकास क
े तीन महत्विूणा
िहिू हैं---
1. जैपवकीय िररिक्वता
2. भौपतक ियाावरण क
े साथ अनुभव
3. सामापजक ियाावरण क
े साथ अनुभव
जीन पियाजे ने एक और िक्ष का समावेश पकया पजसे संतुपिकरण कहा जाता है।
संतुपिकरण उिरोक्त तीनों िक्षों क
े मध्य समन्वय स्थापित करता है। संतुपिकरण क
े अभाव में
मानव का पवकास संभव नहीं है। पियाजे ने संतुिीकरण को स्वचापित आरोही प्रपक्रया कहां है जो
व्यद्धक्त क
े पवकास को धीरे-धीरे आगे बढाती है। पियाजे क
े अनुसार यह संतुपिकरण ही स्कीमा है।
स्कीमा---- बािक क
े मद्धस्तष्क में जो चीजें िहिे से जमा होती हैं तथा बािक िहिे से मद्धस्तष्क
में उिद्धस्थत चीजों का उियोग करक
े पकसी पवषय वस्तु क
े प्रपत एक धारणा बनाता है तो इसे
स्कीमा कहते हैं। स्कीमा की संरचना की ग्रपहता एक प्रमुख प्रपक्रया है प्रपक्रया में 2 तत्व होते हैं,
पजनका पववरण आगे है-
5. 1. आत्मीकरण---
आत्मीकरण पकसी व्यद्धक्त की वह योग्यता या क्षमता को कहा जाता है पजस क
े सहयोग से वह नवीन
िररद्धस्थपत क
े साथ अिना समन्वय स्थापित करता है।
2. समंजन—
समंजन का अथा है िूवा अनुभव की िृष्ठभूपम में नवीन अनुभवों का आत्मीकरण, अथाात वातावरण से ज्ञान
प्राप्त करने में बािक क
े िूवा अनुभव भी सहायक होते हैं जो समंजन कहिाते हैं।
बािक जैसे-जैसे अिने वातावरण से समंजन और आत्मीकरण करता जाता है उसका
संज्ञानात्मक पवकास आगे बढता जाता है।
6. जीन पियाजे का संज्ञानात्मक पसद्धांत
जीन पियाजे ने अिनी अवधारणा संज्ञानात्मक पवकास िर ्ी है।
इन्होने कहा पक जैसे जैसे बच्ों की उम्र बढती है, वैसे वैसे उनकी
बुद्धद्ध का पवकास भी होता रहता है। िहिे बच्ा सरि चीजों को
सीखता है तत्पश्चात जैसे जैसे बच्े की उम्र और अनुभव बढते जाते
हैं वह कपिन चीजों को सीखने िगता है।
7. संज्ञानात्मक पिकास क
े प्रत्यय
संज्ञान
संज्ञान पकसी भी प्राणी का वह व्यािक एवं स्थाई ज्ञान है, पजसे वह वातावरण,उद्दीिक जगत
एवं बाह्य जगत क
े माध्यम से सीखता है।
अनुक
ु लन
वातावरण क
े अनुसार अिने आि को ढािना अनुक
ू िन कहिाता है।
समायोजन
िूवा ज्ञान या योजना में िररवतान करक
े वातावरण क
े साथ तािमेि बनाना समायोजन
कहिाता है।
पिक
े न्द्रीकरण
एक ही समस्या को अिग-अिग रूि से समझ िाने की योग्यता अथवा समस्या समाधान को
अिग अिग तरीक
े से सोचना पवक
ें द्रीकरण कहिाता है।
8. संज्ञानात्मक पिकास क
े चरण
अनुक
ू लन
अनुक
ू िन का अथा है समाज का वातावरण ्ेखते हुए उसमें खु् को ढािने क
े पिए अिने व्यवहार में िररवतान
िाना। पजससे उस समाज में रहने क
े पिए म्् पमि सक
े । अथाात पकसी समूह को अिनाने क
े पिए उनक
े
पवचारों को अिनाने क
े पिए अिने पवचारों का त्याग करना। पजससे वह उस समूह क
े साथ जुड़ सक
े पजसक
े
साथ वह जुड़ना चाहता है।
आत्मसात करण
इसमें बच्ा अिने िुराने या िूवा ज्ञान की सहायता से नए ज्ञान का अजान करता है।
साम्यधारणा
इसमें बच्ा आत्मसात और समायोजन क
े मध्य संतुिन को स्थापित करता है
स्कीमा
इसमें बच्ा अनुभव क
े आधार िर जो भी ज्ञान अपजात करता है वह सभी संगपित होता रहता है पजसे हम
प्रीपवयस नॉिेज भी कहते हैं।
9. संज्ञानात्मक संरचना
यह 4 अवस्थाओं का समूह है। संवे्ी अवस्था, िूवा संपक्रयात्मक अवस्था,मूता संपक्रयात्मक
अवस्था, तथा औिचाररक संपक्रयात्मक अवस्था।
मानपसक संपिया
इसमें बच्ा खु् पकसी समस्या का समाधान करने क
े पिए स्वयं पचंतन करता है उस समस्या
क
े समाधान क
े बारे में सोचता है एवं उससे संबंपधत जानकारी एकपित करता है पजससे उस
समस्या का समाधान हो सक
े । इसक
े पिए वह अनेकों प्रयत्न करता है।
पिक
ें द्रण
इसमें बच्ा वास्तपवकता का पचंतन करता है जैसे बच्े को कोई द्धखिौना प्या जाता है तो वह
सोचता है पक यह पकस से बना होगा, या पिर इसका उियोग क
ै से होता होगा।
10. संज्ञानात्मक पिकास की अिसथांए
जीन पियाजे क
े अनुसार मनुष्य क
े पवकास की अवस्थाओं को चार स्तरों में वगीक
ृ त पकया गया है----
1. संवे्ी गामक अवस्था(0-2 वषा)
2. िूवा संपक्रयात्मक अवस्था(2-7 वषा)
3. मूता संपक्रयात्क अवस्था(7-11 वषा)
4. औिचाररक संपक्रयात्मक अवस्था(11-15 वषा)