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आाचार्य नेमिचंद्र सिद्ांत-चक्रवरततय िवरचमचत
Presentation Developed By: श्रतितत िारचका छाबड़ा
जाणइ ततकालिवरिए, दव्वरगुणे पज्जए र् बहुभेदे।
पच्चक्खं च पचाेक्खं, आणेण णाणं तत णं बेंतत॥299॥
❖आथय - जजिके द्वाचा जतवर तिकाल िवरषर्क भूत,
भिवरष्र्त्, वरतयिान काल िंबंधत ििस्त द्रव्र् आाच
उनके गुण तथा उनकी आनेक प्रकाच की पर्ायर्ाें
काे जाने उिकाे ज्ञान कहते हं।
❖इिके दाे भेद हं - प्रत्र्क्ष, पचाेक्ष ॥299॥
उिे ज्ञान कहते हं
जाने
ििस्त द्रव्र्
उनके गुण उनके आनेक प्रकाच की पर्ायर्ाें काे
जजिके द्वाचा जतवर
भूत भिवरष्र् वरतयिान काल िम्बन्द्धत
नाेट : ज्ञान की पूणय िवरकसित पर्ायर् का भत र्हत स्वररूप ह ।
ज्ञान िकिे कहते हं?
कततय िाधन जाे जानता ह
कचण िाधन जजिके द्वाचा जाना जाता ह
भावर िाधन जानना िाि
ज्ञान के भेद
पचाेक्ष
इन्द्न्द्द्रर् आाच िन की िहार्ता द्वाचा
पदाथाेों काे आस्पष्ट जाने
ितत, श्रुत
प्रत्र्क्ष
िबना िकित िहार्ता के
के वरल आात्मा द्वाचा
पदाथाेों काे स्पष्ट जाने
िवरकल (िर्ायददत)
आवरधध, िन:पर्यर्
िकल (िम्पूणय)
के वरलज्ञान
नाेट - पचाेक्ष ज्ञान हत ह, वर िम्र्ग्‍जज्ञान ह ।
पंचेवर हाेंतत णाणा, िददिुदआाेहतिणं च के वरलर्ं ।
खर्उवरिमिर्ा चउचाे, के वरलणाणं हवरे खइर्ं ॥300॥
❖आथय: ज्ञान के पााँच भेद हं - ितत, श्रुत, आवरधध,
िन:पर्यर् तथा के वरल ।
❖इनिें आादद के चाच ज्ञान क्षार्ाेपशमिक हं आाच
के वरलज्ञान क्षायर्क ह ॥300॥
ज्ञान के भेद
क्षार्ाेपशमिक
िततज्ञान श्रुतज्ञान आवरधधज्ञान िन:पर्यर्ज्ञान
क्षायर्क
के वरलज्ञान
•जाे ज्ञान किय के क्षर् िे उत्पन्न हाे, उिे
क्षायर्क ज्ञान कहते हं ।
•र्ह आावरचण चहहत ज्ञान ह।
क्षायर्क ज्ञान
• िवरयघातत स्पधयकाें के उदर्ाभावरत क्षर्, उन्द्हतं के
िदवरस्थारूप उपशि तथा देशघातत स्पधयकाें के उदर्
िे हाेने वराला ज्ञान क्षार्ाेपशमिक ज्ञान कहलाता ह।
• र्ह आावरचण िहहत ज्ञान ह।
क्षार्ाेपशमिक
ज्ञान
आण्णाणततर्ं हाेदद हु, िण्णाणततर्ं खु मिच्छआणउदर्े।
णवररच िवरभंगं णाणं, पंमचंददर्िन्द्ण्णपुण्णेवर॥301॥
❖आथय - आादद के ततन (ितत, श्रुत, आवरधध) ज्ञान
िितचतन भत हाेते हं आाच मिथ्र्ा भत हाेते हं।
❖ज्ञान के मिथ्र्ा हाेने का आंतचंग काचण मिथ्र्ात्वर
तथा आनंतानुबंधत कषार् का उदर् ह।
❖मिथ्र्ा-आवरधध काे िवरभंग भत कहते हं। इििें र्ह
िवरशेषता ह िक र्ह िवरभंगज्ञान िंज्ञत पर्ायप्त पंचेन्द्न्द्द्रर्
के हत हाेता ह ॥301॥
आज्ञान
कु ितत कु श्रुत िवरभंग
ितत, श्रुत, आवरधधज्ञान के प्रकाच
मिथ्र्ा
मिथ्र्ात्वर आाच आनंतानुबंधत का
उदर्
कु ितत-कु श्रुत— एके न्द्न्द्द्रर् िे िंज्ञत
पर्ायप्त-आपर्ायप्त
कु आवरधध (िवरभंग)— िंज्ञत पर्ायप्त
1 - 2
िम्र्क् (िितचतन)
िम्र्क् श्रद्ा
िंज्ञत — पर्ायप्त आथवरा
तनवरतयत्त्र्पर्ायप्त
4 - 12
काचण /
तनमित्त
स्वराित
गुणस्थान
मिस्िुदर्े िन्द्म्मस्िं, आण्णाणततर्ेण णाणततर्िेवर।
िंजििवरिेििहहए, िणपज्जवरणाणिुदिट्ठं॥302॥
❖आथय - मिश्र प्रकत तत के उदर् िे आादद के ततन
ज्ञानाें िें िितचतनता तथा मिथ्र्ापना दाेनाें हत
पार्े जाते हं, इिमलर्े इि तचह के इन ततनाें
हत ज्ञानाें काे मिश्रज्ञान कहते हं।
❖जजनके िवरशेष िंर्ि हाेता ह उन्द्हतं के िन:पर्यर्
ज्ञान हाेता ह ॥302॥
मिश्र ज्ञान
काचण (तनमित्त)
िम्र्न्द्ग्‍जिथ्र्ात्वर
प्रकत तत का उदर्
स्वराित
मिश्र
गुणस्थानवरततय
िन:पर्यर्ज्ञान के स्वराित
6ठे से 12वें
गुणस्थानवर्ती
महामुननराज
र्तप नवशेष द्वारा
वृनिरूप नवशुिर्ता के
धारी
िवरिजंतकू ड़पंजच-बंधाददिु िवरणुवरएिकचणेण।
जा खलु पवरट्टइ िई, िइआण्णाणं तत णं बेंतत॥303॥
❖आथय - दूिचे के उपदेश के िबना हत िवरष, र्न्त्र,
कू ट, िपंजच तथा बंध आाददक के िवरषर् िें जाे
बुणद् प्रवरतत्त हाेतत ह उिकाे ित्र्ज्ञान कहते हं
॥303॥
❖नाेट: ितत + आज्ञान = ित्र्ज्ञान
जाे बुणद्
िवरष, र्न्त्र, कू ट, िपंजच तथा बंध आाददक के िवरषर् िें
िबना उपदेश स्वरर्ं हत उपदेश द्वाचा
प्रवरतत्त हाेतत ह, उिे
कु िततज्ञान कु श्रुतज्ञान
कहते हं ।
• जजिके खाने िे जतवर िच जाएिवरष
• भततच पच चखते हत जजिके िकवराड़ बंद हाे जाए
• जजिके द्वाचा बकची आादद काे बााँधकच सिंहादद काे पकड़ा जाता ह
र्ंि
• लकड़़ी आादद के बने
• जजििे चूहे आादद पकड़े जाते हं
कू ट
• चस्ित िें गााँठ लगाकच जाे जाल बनार्ा जाता ह
• जजििे हहचण, तततच आादद पकड़े जाते हं
िपंजच
• गड्ढे आाददक बनाना
• हाथत आादद काे पकड़ने के मलए
बंध
आाभतर्िािुचक्खं, भाचहचािार्णाददउवरएिा।
तुच्छा आिाहणतर्ा, िुर्आण्णाणं तत णं बेंतत॥304॥
❖आथय - चाचशास्त्र, तथा हहंिाशास्त्र, भाचत,
चािार्ण आादद के पचिाथयशून्द्र्; आतएवर
आनादचणतर् उपदेशाें काे मिथ्र्ा-श्रुतज्ञान कहते हं
॥304॥
कु श्रुत / मिथ्र्ाश्रुतज्ञान
• चाचाददक का शास्रआाभतत
• चाेचाें िे चक्षा किे हाे एेिा चाजादद का शास्रआिुचक्ष
• पंच-भतायच आादद के िवरपचीत कथन पाए जाए (िहाभाचत)भाचत
• चाि की वरानच िेना, चावरण चाक्षि था आादद इच्छानुिाच चचा शास्रचािार्ण
• हहंिा, र्ज्ञादद के पाेषक एकांत शास्रआादद
तुच्छा (पचिाथय िे चहहत) आिाधनतर्ा (प्रिाण कचने र्ाेग्‍जर् नहतं)
र्हााँ कु ितत-कु श्रुतज्ञान का वरणयन उपदेश आपेक्षा िकर्ा
ह ।
िािान्द्र्पने स्वर-पच भेदिवरज्ञान चहहत इन्द्न्द्द्रर्-िन का
िवरय ज्ञान मिथ्र्ाज्ञान ह ।
िवरवरचीर्िाेहहणाणं, खआाेवरिमिर्ं च कम्मबतजं च।
वरेभंगाे त्तत्त पउच्चइ, िित्तणाणतण ििर्न्द्म्ह॥305॥
❖आथय - िवरयज्ञाें के उपददष्ट आागि िें िवरपचीत
आवरधधज्ञान काे िवरभंग कहते हं।
❖र्ह आवरधधज्ञानावरचण आाच वरतर्ाोंतचार् किय के
क्षर्ाेपशि िे उत्पन्न हाेने िे क्षार्ाेपशमिक ह
तथा मिथ्र्ात्वर आादद किय के बंध का बतज ह
॥305॥
परचभाषा
• द्रव्र्, क्षेि, काल, भावर की िर्ायदा मलर्े
• रूपत पदाथय हं िवरषर् जजिका
• एेिा आाप्तादद के िवरषर् िें िवरपचीत ग्रहण
शब्दाथय
•िवर = िवरशशष्ट जाे आवरधधज्ञान
•भंग = िवरपचीत भावर
तनमित्त
•आवरधधज्ञानावरचण एवरं वरतर्ायन्द्तचार् का क्षर्ाेपशि
कु आवरधधज्ञान (िवरभंगज्ञान)
िकिका
तनमित्त
• मिथ्र्ात्वरादद कियबंध का एवरं
• कदामचत् नचकादद गतत िें पूवरयभवर िम्बन्द्धत दुचाचाच के दु:खफल
काे जानकच िम्र्ग्‍जदशयनाददरूप धिय का
भेद
1. भवरप्रत्र्र्
2. गुणप्रत्र्र्
स्वराित
1.देवर, नाचकी
2.िनुष्र्, ततर्ोंच (द्रव्र् िंर्िाददक गुणाें द्वाचा)
कु आवरधधज्ञान (िवरभंगज्ञान)
आहहिुहणणर्मिर्बाेहण-िामभणणबाेहहर्िणणंदद-इंददर्जं।
आवरगहईहावरार्ा-धाचणगा हाेंतत पत्तेर्ं॥306॥
❖आथय - इन्द्न्द्द्रर् आाच आतनन्द्न्द्द्रर् (िन) की
िहार्ता िे आमभिुख आाच तनर्मित पदाथय का
जाे ज्ञान हाेता ह, उिकाे आामभतनबाेधधक ज्ञान
कहते हं।
❖इििें प्रत्र्ेक के आवरग्रह, ईहा, आवरार्, धाचणा
र्े चाच-चाच भेद हं ॥306॥
आामभतनबाेधधक ज्ञान
(इन्द्न्द्द्रर् आाच िन की िहार्ता के द्वाचा हाेने वराला ज्ञान)
• आमभ + तन + बाेध = आमभिुख + तनर्मित + ज्ञानआामभतनबाेधधक
• स्थूल, वरतयिान र्ाेग्‍जर् क्षेि िें आवरस्स्थत पदाथयआमभिुख
• जजि-जजि इन्द्न्द्द्रर् का जाे-जाे तनश्चित िवरषर्
• जिे चक्षु का रूप
तनर्मित
िततज्ञान उत्पन्द्न हाेने के हेतु
5 इन्द्न्द्द्रर् आाच िन
आत: िततज्ञान के 6 प्रकाच हं ।
प्रत्र्ेक के र्े चाच भेद हं ।
िततज्ञान
आवरग्रह
6
ईहा
6
आवरार्
6
धाचणा
6
आत: िततज्ञान के 6 (5 इन्द्न्द्द्रर् आाच िन) × 4 = 24 भेद हुए ।
वरेंजणआत्थआवरग्‍जगह-भेदा हु हवरंतत पत्तपत्तत्थे।
कििाे ते वरावररचदा, पढिं ण हह चक्खुिणिाणं॥307॥
❖आथय - आवरग्रह के दाे भेद हं - व्र्ञ्जनावरग्रह एवरं आथायवरग्रह।
❖जाे प्राप्त आथय के िवरषर् िें हाेता ह, उिकाे व्र्ञ्जनावरग्रह
कहते हं आाच जाे आप्राप्त आथय के िवरषर् िें हाेता ह,
उिकाे आथायवरग्रह कहते हं ।
❖र्े पहले व्र्ंजनावरग्रह; पतछे आथायवरग्रह इि क्रि िे हाेते हं
। तथा
❖व्र्ंजनावरग्रह चक्षु आाच िन िे नहतं हाेता ॥307॥
आवरग्रह के भेद
व्र्ंजनावरग्रह
आव्र्क्त -
आप्रकट
जिे - नूतन मिट्ट़ी के
घड़े पच 1-2 बूंद
व्र्क्त नहतं
प्राप्त
स्पशय, चि, गंध,
शब्द का स्पशशयत
हाेना
आथायवरग्रह
व्र्क्त - प्रकट
आधधक बूंद पड़ने पच
व्र्क्त
आप्राप्त
स्पशशयत न हाेना
स्पशयन, चिना, घ्राण, कणय इन्द्न्द्द्रर् द्वाचा व्र्ंजनावरग्रह हाेकच
आथायवरग्रह हाेता ह ।
चक्षु इन्द्न्द्द्रर् आाच िन द्वाचा आथायवरग्रह हाेता ह ।
आतः िततज्ञान के भेद = 6 (इन्द्न्द्द्रर्-िन) 4 (आवरग्रहादद )
+ 4 (व्र्ंजनावराग्रह— स्पशयन, चिना, घ्राण, कणय)
= 24 + 4 = 28
व्र्ंजनावराग्रह 4
आथायवरग्रह 6
ईहा 6
आवरार् 6
धाचणा 6
िततज्ञान के 28 भेद
िवरशेष
•आथायत् िािान्द्र्तर्ा पदाथाेों िे िमन्नकषय (स्पशय) कचके
ज्ञान हाेता ह ।
4 इन्द्न्द्द्रर्ााँ प्राप्र्काची हं ।
•आथायत् िबना पदाथय के िमन्नकषय के हत ज्ञान हाेता ह ।
चक्षु आाच िन आप्राप्र्काची हं ।
प्रश्न - शब्द, गंध आादद भत ताे दूच चहते हं । िफच भत
इनका ज्ञान हाे जाता ह । तब इन्द्हें भत आप्राप्र्काची हत
कहाे ।
उत्तच- एेिा नहतं ह । शब्द, गंध आादद उत्पन्द्न
हाेने पच िितपवरततय स्कं ध उि शब्द, गंधरूप हाेते
हं । उनका िमन्नकषय हाेता ह, तब ज्ञान हाेता
ददखाई देता ह । आत: र्े प्राप्र्काची भत हं ।
िवरिर्ाणं िवरिईणं, िंजाेगाणंतचं हवरे णणर्िा।
आवरगहणाणं गहहदे, िवरिेिकं खा हवरे ईहा॥308॥
❖आथय - पदाथय आाच इन्द्न्द्द्रर्ाें का र्ाेग्‍जर् क्षेि िें आवरस्थानरूप
िम्बन्द्ध हाेने पच िािान्द्र् आवरलाेकन र्ा तनिवरयकल्प ग्रहणरूप
दशयन हाेता ह आाच
❖इिके आनंतच िवरशेष आाकाच आाददक काे ग्रहण कचने वराला
आवरग्रह ज्ञान हाेता ह।
❖इिके आनंतच जजि पदाथय काे आवरग्रह ने ग्रहण िकर्ा ह,
उितके िकित िवरशेष आथय काे जानने की आाकांक्षारूप जाे
ज्ञान, उिकाे ईहा कहते हं ॥308॥
िकित पदाथय के िंबंध िें िवरयप्रथि दशयनाेपर्ाेग हाेता ह ।
कब ?
पदाथय आाच इन्द्न्द्द्रर्ाें का र्ाेग्‍जर् क्षेि िें आवरस्थान
रूप िंबंध हाेने पच ।
िफच
आवरग्रह ज्ञान हाेता ह ।
दशयन
वरस्तु के ित्तािाि िािान्द्र्रूप
तनिवरयकल्प ग्रहण काे दशयन कहते
हं |
आवरग्रह ज्ञान
दशयनाेपर्ाेग हाेने के पिात्
ज्ञेर् पदाथय के वरणय, आाकाच, स्पशय
आादद िवरशेष ग्रहण कचने वराले ज्ञान
काे आवरग्रह कहते हं ।
ईहा ज्ञान
आवरग्रह िे गतहतत पदाथय के
िकित िवरशेष आथय काे
जानने की आाकांक्षा हाेने पच
पदाथय के तनणयर् की आाेच ढलता ज्ञान
ईहा ज्ञान कहलाता ह ।
ईहा ज्ञान िंशर् र्ा िवरपर्यर् र्ा आनध्र्वरिार् नहतं ह ।
‘ध्वरज की पंमक्त ह र्ा बगुले की पंमक्त ह’ - एेिा िंशर्ज्ञान ईहा नहतं ह ।
‘ध्वरज की पंमक्त काे बगुले की पंमक्त जान लेना’ - एेिा िवरपर्यर् ज्ञान ईहा नहतं ह।
‘कु छ हाेगा’ - एेिा आनध्र्वरिार् भत ईहा ज्ञान नहतं ह ।
िवरशेष जानने की आाकांक्षा हाेने पच वरस्तु के िम्र्क् आंश की आाेच ढलता ज्ञान ईहा
ज्ञान ह ।
ईहणकचणेण जदा, िुणणण्णआाे हाेदद िाे आवराआाे दु।
कालांतचे िवर णणन्द्ण्णद-वरत्थुििचणस्ि काचणं तुरचर्ं॥309॥
❖आथय - ईहा ज्ञान के आनंतच वरस्तु के िवरशेष मचहाें काे
देखकच जाे उिका िवरशेष तनणयर् हाेता ह, उिकाे आवरार्
कहते हं।
❖जिे भाषा, वरेष, िवरन्द्र्ाि आादद काे देखकच ‘र्ह
दासक्षणात्र् हत ह’ इि तचह के तनिर् काे आवरार् कहते हं।
❖जजिके द्वाचा तनणतयत वरस्तु का कालान्द्तच िें भत िवरस्मचण
न हाे उिकाे धाचणा ज्ञान कहते हं ॥309॥
आवरार् ज्ञान
ईहा ज्ञान के आनंतच
वरस्तु के िवरशेष मचहाें काे देखकच
वरस्तु का िम्र्क् प्रकाच तनणयर् कचना
आवरार् ज्ञान ह ।
धाचणा ज्ञान
तनणतयत वरस्तु का कालांतच िें भत स्मचण आाने
का काचणभूत ज्ञान धाचणा ज्ञान ह ।
जिे - एेिा र्ाद चहना िक वरह बगुलाें की पंमक्त
देखत थत ।
नाेट - र्ाद आाना आलग िवरषर् ह ।
र्ाद आाना ‘स्मततत’ ज्ञान ह । र्ाद चहना धाचणा ज्ञान ह ।
आवरग्रहादद चाचाें ज्ञान
स्वररूप
िवरयप्रथि
जानना
इच्छा - आमभलाषा तनणयर् भूलना नहतं
कालांतच
िें
िंशर् - िवरस्मचण
हाे जाता ह
िंशर् ताे नहतं,
पच िवरस्मचण
हाेता ह
न िंशर्, न
िवरस्मचण हाेता
ह
उदाहचण
काेई िफे द
पदाथय देखा
“र्े बगुला ह िक
पताका” जानने
की इच्छा हुई
पंख हहलने िे
जाना बगुला ह
भिवरष्र् िें भूले
नहतं
बहु बहुिवरहं च न्द्खप्पा-णणन्द्स्िदणुत्तं धुवरं च इदचं च।
तत्थेक्के क्के जादे, छत्ततिं ततिर्भेदं तु॥310॥
❖आथय - उक्त िततज्ञान के िवरषर्भूत पदाथय के बाचह भेद हं—
❖बहु, आल्प, बहुिवरध, एकिवरध र्ा आल्पिवरध, सक्षप्र, आसक्षप्र,
आतन:ितत, तन:ितत, आनुक्त, उक्त, ध्रुवर, आध्रुवर।
❖इनिें िे प्रत्र्ेक िवरषर् िें िततज्ञान के उक्त आट्ठाईि भेदाें
की प्रवरतत्तत्त हाेतत ह, इिमलर्े बाचह काे आट्ठाईि िे गुणा
कचने पच िततज्ञान के ततन िा छत्तति भेद हाेते हं
॥310॥
िततज्ञान के िवरषर्भूत पदाथय के भेद
बहु बहुिवरध एक एकिवरध
सक्षप्र आसक्षप्र आतन:ितत तन:ितत
आनुक्त उक्त ध्रुवर आध्रुवर
इन्द्हतं 12 भेदाें काे कु ल 28 भेदाें िे गुणा कचने पच
12×28 = 336 िततज्ञान के भेद हाेते हं ।
बहुवरत्तत्तजाददगहणे, बहुबहुिवरहमिर्चमिर्चगहणन्द्म्ह।
िगणािादाे सिद्ा, न्द्खप्पादी िेदचा र् तहा॥311॥
❖आथय - बहुत व्र्मक्तर्ाें काे बहु कहते हं।
❖बहुत-ित जाततर्ाें काे बहुिवरध कहते हं।
❖एक, दाे व्र्मक्तर्ाें काे आल्प (एक) कहते हं।
❖एक, दाे जाततर्ाें काे एकिवरध (आल्पिवरध) कहते हं ।
❖सक्षप्राददक तथा उनके प्रततपसक्षर्ाें का आथय उनके
नाि िे हत सिद् ह ॥311॥
बहु
बहुत पदाथय (िंख्र्ा
वराचक)
गाची, िांवरली, काली
आादद आनेक गार्
एक
एक-दाे पदाथय
एक गाेची गार्
िततज्ञान के िवरषर्भूत 12 प्रकाच के पदाथय
बहुिवरध
बहुत प्रकाच के पदाथय
(प्रकाच वराचक)
गार्, भंि, घाेड़ा
आादद आनेक जातत
एकिवरध
एक-दाे प्रकाच के पदाथय
गाेची, िांवरली, काली आादद
गार् (एक जातत - गार्)
सक्षप्र
शतघ्र
शतघ्र पड़तत जलधाचा
र्ा जलप्रवराह
आसक्षप्र
िंद
धतचे चलता कछुआा
आतन:ितत
गूढ
जल िें ड़ूबा हाथत
तन:ितत
प्रकट
जल िे तनकला
हाथत
आनुक्त
िबना कहा र्ा आमभप्रार्
िें वरतयिान
हाथ र्ा शशच के इशाचे िे
िबना कहे 'हााँ' र्ा 'ना'
ििझना
उक्त
कहा हुआा
िकित ने कहा ''र्े घड़ा ह''
ध्रुवर
आचल / बहुत काल
स्थार्त
पवरयतादद
आध्रुवर
चंचल / िवरनाशतक
क्षणस्थार्त िबजली
आादद
श्राेि इंदद्रर् िंबंधत बहु आादद ज्ञान
• एक साथ र्तर्त, नवर्तर्त, घन आनि शब्दों कद सुननाबहु
• इनमें से नकसी एक-िद शब्दों कद ही सुननाएक
• र्तर्त, नवर्तर्त, घन आनि के अनेकदों प्रकारदों कद सुननाबहुनवध
• नकसी एक-िद प्रकारदों कद ही जाननाएकनवध
• शीघ्रर्ता से कहे शब्, वाक्य आनि कद सुननाक्षिप्र
• मोंिर्ता से कहे शब्, वाक्य आनि कद सुनना अथवा धीरे धीरे
सुनना
अक्षिप्र
• पूरे वाक्य का उच्चारण ना हदने पर भी जान लेना नक क्या कहा हैअनन:सृर्त
• पूणण रूप से उच्चाररर्त हदने पर सुननानन:सृर्त
• एक भी शब् का उच्चारण हुए नबना अक्षभप्राय मात्र से अथण कद ्रहहण कर लेनाअनुक्त
• कहे गए शब् कद जान लेनाउक्त
• जैसा प्रथम समय में शब् का ्रहहण हुआ वैसा ही नद्वर्तीय आनि समयदों में शब् का
्रहहण करना | ना न्यून, ना अक्षधक |ध्रुव
• कभी बहुर्त शब्दों कद जानना, कभी अल्प कद, कभी एकनवध कद, कभी बहुनवध कद
इत्यानि रूप ज्ञान कद अध्रुव कहर्ते हैं |अध्रुव
नदट : पर-उपिेशपूवणक शब्दों का ्रहहण उक्त है | जैसे ‘यह गाय है’ - यह सुनकर गाय का ज्ञान | स्वर्त: गाय कद
िेखकर ज्ञान हदना नन:सृर्त ज्ञान है |
चक्षु इंदद्रर् िंबंधत बहु आादद ज्ञान
शुक्ल, कृ ष्ण, लाल, नीला आनि बहुर्त वणों का ज्ञान हदनाबहु
नकसी एक-िद रोंगदों का जाननाएक
अनेक प्रकार के रोंगदों का जाननाबहुनवध
एक िद-प्रकार के रोंगदों का जाननाएकनवध
शीघ्रर्ता से गनर्तमान वणों का जाननाक्षिप्र
मोंिरूप पररणर्त वणों का जाननाअक्षिप्र
वस्त्र के एक छदर के रोंगदों कद िेखकर पूरे वस्त्र के रोंगदों का ज्ञान हद जाना अथवा एक
वस्त्र के एकिेश रोंग कद िेखकर अन्यत्र स्थिर्त वस्त्र के रोंग का ज्ञान हदना
अनन:सृर्त
पूरे वस्त्र कद िेखकर वणों का जाननानन:सृर्त
िूसरे के कहे नबना अक्षभप्राय मात्र से यह जान लेना नक इन रोंगदों के नमश्रण से यह रोंग
बनाएोंगेअनुक्त
कहे जाने पर रूप कद ्रहहण करनाउक्त
जैसा प्रथम समय में रूप ्रहहण नकया है वैसा ही नद्वर्तीय आनि समय में भी जानना |
ना न्यून, ना अक्षधक |ध्रुव
कभी बहु रूप कद जानना, कभी बहुनवध कद, कभी एक कद, कभी एकनवध कद
इत्यानि अध्रुव रूप से रूप कद ्रहहण करर्ता हुआ ज्ञानअध्रुव
वरत्थुस्ि पदेिादाे, वरत्थुग्‍जगहणं तु वरत्थुदेिं वरा।
िर्लं वरा आवरलंिबर्, आणणन्द्स्िदं आण्णवरत्थुगई॥312॥
❖आथय - वरस्तु के एकदेश काे देखकच ििस्त
वरस्तु का ज्ञान हाेना, आथवरा
❖वरस्तु के एकदेश र्ा पूणय वरस्तु का ग्रहण कचके
उिके तनमित्त िे िकित दूिची वरस्तु के हाेने
वराले ज्ञान काे भत आतन:ितत कहते हं ॥312॥
आतन:ितत ज्ञान
वरस्तु के
एकदेश काे देखकच
ििस्त वरस्तु का ज्ञान
आन्द्र् आप्रकट वरस्तु
का ज्ञान
िवराोंग काे
देखकच
आन्द्र् आप्रकट वरस्तु
का ज्ञान
पुक्खचगहणे काले, हस्त्थस्ि र् वरदणगवरर्गहणे वरा।
वरत्थुंतचचंदस्ि र्, धेणुस्ि र् बाेहणं च हवरे॥313॥
❖आथय - जल िें ड़ूबे हुए हस्तत की िूंड़ काे देखकच
उित ििर् िें जलिग्न हस्तत का ज्ञान हाेना, आथवरा
❖िुख काे देखकच उि हत ििर् उििे मभन्न िकन्द्तु
उिके िदृश चन्द्द्रिा का ज्ञान हाेना, आथवरा
❖गवरर् काे देखकच उिके िदृश गा का ज्ञान हाेना —
❖इनकाे आतन:ितत ज्ञान कहते हं ॥313॥
आतन:ितत - उदाहचण
क्र. उदाहचण कान-िा ज्ञान ?
1
जल िें ड़ूबे हाथत की िूंड़
देखकच हाथत का ज्ञान हाेना
आनुिान
2 िुख देखकच चन्द्द्रिा का ज्ञान स्मततत / प्रत्र्मभज्ञान
3 गवरर् काे देखकच गा का ज्ञान स्मततत / प्रत्र्मभज्ञान
4
आन्द्र्था आनुपपत्तत्त का ज्ञान –
आयग्न नहतं ताे धुआााँ भत नहतं
तकय
पचाेक्ष प्रिाण
िततज्ञान
स्मततत
स्मचण
प्रत्र्मभज्ञान
जाेड़रूप ज्ञान
तकय
व्र्ातप्त का ज्ञान
आनुिान
िाधन िे िाध्र्
श्रुतज्ञान
आागि
इन िबका िवरषर् आतन:ितत पदाथय ह
एक्कचउक्कं चउ वरतिट्ठावरतिं च ततप्पदड़ं िकच्चा।
इयगछव्वाचिगुणणदे, िददणाणे हाेंतत ठाणाणण॥314॥
❖आथय - िततज्ञान िािान्द्र् की आपेक्षा एक भेद,
❖आवरग्रह, ईहा, आवरार्, धाचणा की आपेक्षा चाच भेद,
❖पााँच इन्द्न्द्द्रर् आाच छठे िन िे आवरग्रहादद चाच के गुणा कचने
की आपेक्षा चाबति भेद,
❖आथायवरग्रह आाच व्र्ञ्जनावरग्रह दाेनाें की आपेक्षा िे आट्ठाईि भेद
िततज्ञान के हाेते हं।
❖इनकाे क्रि िे ततन पंमक्तर्ाें िें स्थापना कचके इनका एक,
छह आाच बाचह के िाथ र्थाक्रि िे गुणा कचने पच िततज्ञान
के िािान्द्र्, आधय आाच पूणय स्थान हाेते हं ॥314॥
िततज्ञान के भेद
िततज्ञान के स्थान
िािान्द्र्
(पदाथय)
आथय (बहु आादद
6)
पूणय (बहु आादद
12)
िािान्द्र् आपेक्षा 1 6 12
आवरग्रहादद आपेक्षा 4 24 48
इन्द्न्द्द्रर् आाच िन आपेक्षा (4
× 6)
24 144 288
आथायवरग्रह आाच व्र्ंजनावरग्रह
के भेद-िहहत
28 168 336

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  • 1. आाचार्य नेमिचंद्र सिद्ांत-चक्रवरततय िवरचमचत Presentation Developed By: श्रतितत िारचका छाबड़ा
  • 2. जाणइ ततकालिवरिए, दव्वरगुणे पज्जए र् बहुभेदे। पच्चक्खं च पचाेक्खं, आणेण णाणं तत णं बेंतत॥299॥ ❖आथय - जजिके द्वाचा जतवर तिकाल िवरषर्क भूत, भिवरष्र्त्, वरतयिान काल िंबंधत ििस्त द्रव्र् आाच उनके गुण तथा उनकी आनेक प्रकाच की पर्ायर्ाें काे जाने उिकाे ज्ञान कहते हं। ❖इिके दाे भेद हं - प्रत्र्क्ष, पचाेक्ष ॥299॥
  • 3. उिे ज्ञान कहते हं जाने ििस्त द्रव्र् उनके गुण उनके आनेक प्रकाच की पर्ायर्ाें काे जजिके द्वाचा जतवर भूत भिवरष्र् वरतयिान काल िम्बन्द्धत नाेट : ज्ञान की पूणय िवरकसित पर्ायर् का भत र्हत स्वररूप ह ।
  • 4. ज्ञान िकिे कहते हं? कततय िाधन जाे जानता ह कचण िाधन जजिके द्वाचा जाना जाता ह भावर िाधन जानना िाि
  • 5. ज्ञान के भेद पचाेक्ष इन्द्न्द्द्रर् आाच िन की िहार्ता द्वाचा पदाथाेों काे आस्पष्ट जाने ितत, श्रुत प्रत्र्क्ष िबना िकित िहार्ता के के वरल आात्मा द्वाचा पदाथाेों काे स्पष्ट जाने िवरकल (िर्ायददत) आवरधध, िन:पर्यर् िकल (िम्पूणय) के वरलज्ञान नाेट - पचाेक्ष ज्ञान हत ह, वर िम्र्ग्‍जज्ञान ह ।
  • 6. पंचेवर हाेंतत णाणा, िददिुदआाेहतिणं च के वरलर्ं । खर्उवरिमिर्ा चउचाे, के वरलणाणं हवरे खइर्ं ॥300॥ ❖आथय: ज्ञान के पााँच भेद हं - ितत, श्रुत, आवरधध, िन:पर्यर् तथा के वरल । ❖इनिें आादद के चाच ज्ञान क्षार्ाेपशमिक हं आाच के वरलज्ञान क्षायर्क ह ॥300॥
  • 7. ज्ञान के भेद क्षार्ाेपशमिक िततज्ञान श्रुतज्ञान आवरधधज्ञान िन:पर्यर्ज्ञान क्षायर्क के वरलज्ञान
  • 8. •जाे ज्ञान किय के क्षर् िे उत्पन्न हाे, उिे क्षायर्क ज्ञान कहते हं । •र्ह आावरचण चहहत ज्ञान ह। क्षायर्क ज्ञान • िवरयघातत स्पधयकाें के उदर्ाभावरत क्षर्, उन्द्हतं के िदवरस्थारूप उपशि तथा देशघातत स्पधयकाें के उदर् िे हाेने वराला ज्ञान क्षार्ाेपशमिक ज्ञान कहलाता ह। • र्ह आावरचण िहहत ज्ञान ह। क्षार्ाेपशमिक ज्ञान
  • 9. आण्णाणततर्ं हाेदद हु, िण्णाणततर्ं खु मिच्छआणउदर्े। णवररच िवरभंगं णाणं, पंमचंददर्िन्द्ण्णपुण्णेवर॥301॥ ❖आथय - आादद के ततन (ितत, श्रुत, आवरधध) ज्ञान िितचतन भत हाेते हं आाच मिथ्र्ा भत हाेते हं। ❖ज्ञान के मिथ्र्ा हाेने का आंतचंग काचण मिथ्र्ात्वर तथा आनंतानुबंधत कषार् का उदर् ह। ❖मिथ्र्ा-आवरधध काे िवरभंग भत कहते हं। इििें र्ह िवरशेषता ह िक र्ह िवरभंगज्ञान िंज्ञत पर्ायप्त पंचेन्द्न्द्द्रर् के हत हाेता ह ॥301॥
  • 10. आज्ञान कु ितत कु श्रुत िवरभंग
  • 11. ितत, श्रुत, आवरधधज्ञान के प्रकाच मिथ्र्ा मिथ्र्ात्वर आाच आनंतानुबंधत का उदर् कु ितत-कु श्रुत— एके न्द्न्द्द्रर् िे िंज्ञत पर्ायप्त-आपर्ायप्त कु आवरधध (िवरभंग)— िंज्ञत पर्ायप्त 1 - 2 िम्र्क् (िितचतन) िम्र्क् श्रद्ा िंज्ञत — पर्ायप्त आथवरा तनवरतयत्त्र्पर्ायप्त 4 - 12 काचण / तनमित्त स्वराित गुणस्थान
  • 12. मिस्िुदर्े िन्द्म्मस्िं, आण्णाणततर्ेण णाणततर्िेवर। िंजििवरिेििहहए, िणपज्जवरणाणिुदिट्ठं॥302॥ ❖आथय - मिश्र प्रकत तत के उदर् िे आादद के ततन ज्ञानाें िें िितचतनता तथा मिथ्र्ापना दाेनाें हत पार्े जाते हं, इिमलर्े इि तचह के इन ततनाें हत ज्ञानाें काे मिश्रज्ञान कहते हं। ❖जजनके िवरशेष िंर्ि हाेता ह उन्द्हतं के िन:पर्यर् ज्ञान हाेता ह ॥302॥
  • 13. मिश्र ज्ञान काचण (तनमित्त) िम्र्न्द्ग्‍जिथ्र्ात्वर प्रकत तत का उदर् स्वराित मिश्र गुणस्थानवरततय
  • 14. िन:पर्यर्ज्ञान के स्वराित 6ठे से 12वें गुणस्थानवर्ती महामुननराज र्तप नवशेष द्वारा वृनिरूप नवशुिर्ता के धारी
  • 15. िवरिजंतकू ड़पंजच-बंधाददिु िवरणुवरएिकचणेण। जा खलु पवरट्टइ िई, िइआण्णाणं तत णं बेंतत॥303॥ ❖आथय - दूिचे के उपदेश के िबना हत िवरष, र्न्त्र, कू ट, िपंजच तथा बंध आाददक के िवरषर् िें जाे बुणद् प्रवरतत्त हाेतत ह उिकाे ित्र्ज्ञान कहते हं ॥303॥ ❖नाेट: ितत + आज्ञान = ित्र्ज्ञान
  • 16. जाे बुणद् िवरष, र्न्त्र, कू ट, िपंजच तथा बंध आाददक के िवरषर् िें िबना उपदेश स्वरर्ं हत उपदेश द्वाचा प्रवरतत्त हाेतत ह, उिे कु िततज्ञान कु श्रुतज्ञान कहते हं ।
  • 17. • जजिके खाने िे जतवर िच जाएिवरष • भततच पच चखते हत जजिके िकवराड़ बंद हाे जाए • जजिके द्वाचा बकची आादद काे बााँधकच सिंहादद काे पकड़ा जाता ह र्ंि • लकड़़ी आादद के बने • जजििे चूहे आादद पकड़े जाते हं कू ट
  • 18. • चस्ित िें गााँठ लगाकच जाे जाल बनार्ा जाता ह • जजििे हहचण, तततच आादद पकड़े जाते हं िपंजच • गड्ढे आाददक बनाना • हाथत आादद काे पकड़ने के मलए बंध
  • 19. आाभतर्िािुचक्खं, भाचहचािार्णाददउवरएिा। तुच्छा आिाहणतर्ा, िुर्आण्णाणं तत णं बेंतत॥304॥ ❖आथय - चाचशास्त्र, तथा हहंिाशास्त्र, भाचत, चािार्ण आादद के पचिाथयशून्द्र्; आतएवर आनादचणतर् उपदेशाें काे मिथ्र्ा-श्रुतज्ञान कहते हं ॥304॥
  • 20. कु श्रुत / मिथ्र्ाश्रुतज्ञान • चाचाददक का शास्रआाभतत • चाेचाें िे चक्षा किे हाे एेिा चाजादद का शास्रआिुचक्ष • पंच-भतायच आादद के िवरपचीत कथन पाए जाए (िहाभाचत)भाचत • चाि की वरानच िेना, चावरण चाक्षि था आादद इच्छानुिाच चचा शास्रचािार्ण • हहंिा, र्ज्ञादद के पाेषक एकांत शास्रआादद तुच्छा (पचिाथय िे चहहत) आिाधनतर्ा (प्रिाण कचने र्ाेग्‍जर् नहतं)
  • 21. र्हााँ कु ितत-कु श्रुतज्ञान का वरणयन उपदेश आपेक्षा िकर्ा ह । िािान्द्र्पने स्वर-पच भेदिवरज्ञान चहहत इन्द्न्द्द्रर्-िन का िवरय ज्ञान मिथ्र्ाज्ञान ह ।
  • 22. िवरवरचीर्िाेहहणाणं, खआाेवरिमिर्ं च कम्मबतजं च। वरेभंगाे त्तत्त पउच्चइ, िित्तणाणतण ििर्न्द्म्ह॥305॥ ❖आथय - िवरयज्ञाें के उपददष्ट आागि िें िवरपचीत आवरधधज्ञान काे िवरभंग कहते हं। ❖र्ह आवरधधज्ञानावरचण आाच वरतर्ाोंतचार् किय के क्षर्ाेपशि िे उत्पन्न हाेने िे क्षार्ाेपशमिक ह तथा मिथ्र्ात्वर आादद किय के बंध का बतज ह ॥305॥
  • 23. परचभाषा • द्रव्र्, क्षेि, काल, भावर की िर्ायदा मलर्े • रूपत पदाथय हं िवरषर् जजिका • एेिा आाप्तादद के िवरषर् िें िवरपचीत ग्रहण शब्दाथय •िवर = िवरशशष्ट जाे आवरधधज्ञान •भंग = िवरपचीत भावर तनमित्त •आवरधधज्ञानावरचण एवरं वरतर्ायन्द्तचार् का क्षर्ाेपशि कु आवरधधज्ञान (िवरभंगज्ञान)
  • 24. िकिका तनमित्त • मिथ्र्ात्वरादद कियबंध का एवरं • कदामचत् नचकादद गतत िें पूवरयभवर िम्बन्द्धत दुचाचाच के दु:खफल काे जानकच िम्र्ग्‍जदशयनाददरूप धिय का भेद 1. भवरप्रत्र्र् 2. गुणप्रत्र्र् स्वराित 1.देवर, नाचकी 2.िनुष्र्, ततर्ोंच (द्रव्र् िंर्िाददक गुणाें द्वाचा) कु आवरधधज्ञान (िवरभंगज्ञान)
  • 25. आहहिुहणणर्मिर्बाेहण-िामभणणबाेहहर्िणणंदद-इंददर्जं। आवरगहईहावरार्ा-धाचणगा हाेंतत पत्तेर्ं॥306॥ ❖आथय - इन्द्न्द्द्रर् आाच आतनन्द्न्द्द्रर् (िन) की िहार्ता िे आमभिुख आाच तनर्मित पदाथय का जाे ज्ञान हाेता ह, उिकाे आामभतनबाेधधक ज्ञान कहते हं। ❖इििें प्रत्र्ेक के आवरग्रह, ईहा, आवरार्, धाचणा र्े चाच-चाच भेद हं ॥306॥
  • 26. आामभतनबाेधधक ज्ञान (इन्द्न्द्द्रर् आाच िन की िहार्ता के द्वाचा हाेने वराला ज्ञान) • आमभ + तन + बाेध = आमभिुख + तनर्मित + ज्ञानआामभतनबाेधधक • स्थूल, वरतयिान र्ाेग्‍जर् क्षेि िें आवरस्स्थत पदाथयआमभिुख • जजि-जजि इन्द्न्द्द्रर् का जाे-जाे तनश्चित िवरषर् • जिे चक्षु का रूप तनर्मित
  • 27. िततज्ञान उत्पन्द्न हाेने के हेतु 5 इन्द्न्द्द्रर् आाच िन आत: िततज्ञान के 6 प्रकाच हं ।
  • 28. प्रत्र्ेक के र्े चाच भेद हं । िततज्ञान आवरग्रह 6 ईहा 6 आवरार् 6 धाचणा 6 आत: िततज्ञान के 6 (5 इन्द्न्द्द्रर् आाच िन) × 4 = 24 भेद हुए ।
  • 29. वरेंजणआत्थआवरग्‍जगह-भेदा हु हवरंतत पत्तपत्तत्थे। कििाे ते वरावररचदा, पढिं ण हह चक्खुिणिाणं॥307॥ ❖आथय - आवरग्रह के दाे भेद हं - व्र्ञ्जनावरग्रह एवरं आथायवरग्रह। ❖जाे प्राप्त आथय के िवरषर् िें हाेता ह, उिकाे व्र्ञ्जनावरग्रह कहते हं आाच जाे आप्राप्त आथय के िवरषर् िें हाेता ह, उिकाे आथायवरग्रह कहते हं । ❖र्े पहले व्र्ंजनावरग्रह; पतछे आथायवरग्रह इि क्रि िे हाेते हं । तथा ❖व्र्ंजनावरग्रह चक्षु आाच िन िे नहतं हाेता ॥307॥
  • 30. आवरग्रह के भेद व्र्ंजनावरग्रह आव्र्क्त - आप्रकट जिे - नूतन मिट्ट़ी के घड़े पच 1-2 बूंद व्र्क्त नहतं प्राप्त स्पशय, चि, गंध, शब्द का स्पशशयत हाेना आथायवरग्रह व्र्क्त - प्रकट आधधक बूंद पड़ने पच व्र्क्त आप्राप्त स्पशशयत न हाेना
  • 31. स्पशयन, चिना, घ्राण, कणय इन्द्न्द्द्रर् द्वाचा व्र्ंजनावरग्रह हाेकच आथायवरग्रह हाेता ह । चक्षु इन्द्न्द्द्रर् आाच िन द्वाचा आथायवरग्रह हाेता ह । आतः िततज्ञान के भेद = 6 (इन्द्न्द्द्रर्-िन) 4 (आवरग्रहादद ) + 4 (व्र्ंजनावराग्रह— स्पशयन, चिना, घ्राण, कणय) = 24 + 4 = 28
  • 32. व्र्ंजनावराग्रह 4 आथायवरग्रह 6 ईहा 6 आवरार् 6 धाचणा 6 िततज्ञान के 28 भेद
  • 33. िवरशेष •आथायत् िािान्द्र्तर्ा पदाथाेों िे िमन्नकषय (स्पशय) कचके ज्ञान हाेता ह । 4 इन्द्न्द्द्रर्ााँ प्राप्र्काची हं । •आथायत् िबना पदाथय के िमन्नकषय के हत ज्ञान हाेता ह । चक्षु आाच िन आप्राप्र्काची हं ।
  • 34. प्रश्न - शब्द, गंध आादद भत ताे दूच चहते हं । िफच भत इनका ज्ञान हाे जाता ह । तब इन्द्हें भत आप्राप्र्काची हत कहाे । उत्तच- एेिा नहतं ह । शब्द, गंध आादद उत्पन्द्न हाेने पच िितपवरततय स्कं ध उि शब्द, गंधरूप हाेते हं । उनका िमन्नकषय हाेता ह, तब ज्ञान हाेता ददखाई देता ह । आत: र्े प्राप्र्काची भत हं ।
  • 35. िवरिर्ाणं िवरिईणं, िंजाेगाणंतचं हवरे णणर्िा। आवरगहणाणं गहहदे, िवरिेिकं खा हवरे ईहा॥308॥ ❖आथय - पदाथय आाच इन्द्न्द्द्रर्ाें का र्ाेग्‍जर् क्षेि िें आवरस्थानरूप िम्बन्द्ध हाेने पच िािान्द्र् आवरलाेकन र्ा तनिवरयकल्प ग्रहणरूप दशयन हाेता ह आाच ❖इिके आनंतच िवरशेष आाकाच आाददक काे ग्रहण कचने वराला आवरग्रह ज्ञान हाेता ह। ❖इिके आनंतच जजि पदाथय काे आवरग्रह ने ग्रहण िकर्ा ह, उितके िकित िवरशेष आथय काे जानने की आाकांक्षारूप जाे ज्ञान, उिकाे ईहा कहते हं ॥308॥
  • 36. िकित पदाथय के िंबंध िें िवरयप्रथि दशयनाेपर्ाेग हाेता ह । कब ? पदाथय आाच इन्द्न्द्द्रर्ाें का र्ाेग्‍जर् क्षेि िें आवरस्थान रूप िंबंध हाेने पच । िफच आवरग्रह ज्ञान हाेता ह ।
  • 37. दशयन वरस्तु के ित्तािाि िािान्द्र्रूप तनिवरयकल्प ग्रहण काे दशयन कहते हं |
  • 38. आवरग्रह ज्ञान दशयनाेपर्ाेग हाेने के पिात् ज्ञेर् पदाथय के वरणय, आाकाच, स्पशय आादद िवरशेष ग्रहण कचने वराले ज्ञान काे आवरग्रह कहते हं ।
  • 39. ईहा ज्ञान आवरग्रह िे गतहतत पदाथय के िकित िवरशेष आथय काे जानने की आाकांक्षा हाेने पच पदाथय के तनणयर् की आाेच ढलता ज्ञान ईहा ज्ञान कहलाता ह ।
  • 40. ईहा ज्ञान िंशर् र्ा िवरपर्यर् र्ा आनध्र्वरिार् नहतं ह । ‘ध्वरज की पंमक्त ह र्ा बगुले की पंमक्त ह’ - एेिा िंशर्ज्ञान ईहा नहतं ह । ‘ध्वरज की पंमक्त काे बगुले की पंमक्त जान लेना’ - एेिा िवरपर्यर् ज्ञान ईहा नहतं ह। ‘कु छ हाेगा’ - एेिा आनध्र्वरिार् भत ईहा ज्ञान नहतं ह । िवरशेष जानने की आाकांक्षा हाेने पच वरस्तु के िम्र्क् आंश की आाेच ढलता ज्ञान ईहा ज्ञान ह ।
  • 41. ईहणकचणेण जदा, िुणणण्णआाे हाेदद िाे आवराआाे दु। कालांतचे िवर णणन्द्ण्णद-वरत्थुििचणस्ि काचणं तुरचर्ं॥309॥ ❖आथय - ईहा ज्ञान के आनंतच वरस्तु के िवरशेष मचहाें काे देखकच जाे उिका िवरशेष तनणयर् हाेता ह, उिकाे आवरार् कहते हं। ❖जिे भाषा, वरेष, िवरन्द्र्ाि आादद काे देखकच ‘र्ह दासक्षणात्र् हत ह’ इि तचह के तनिर् काे आवरार् कहते हं। ❖जजिके द्वाचा तनणतयत वरस्तु का कालान्द्तच िें भत िवरस्मचण न हाे उिकाे धाचणा ज्ञान कहते हं ॥309॥
  • 42. आवरार् ज्ञान ईहा ज्ञान के आनंतच वरस्तु के िवरशेष मचहाें काे देखकच वरस्तु का िम्र्क् प्रकाच तनणयर् कचना आवरार् ज्ञान ह ।
  • 43. धाचणा ज्ञान तनणतयत वरस्तु का कालांतच िें भत स्मचण आाने का काचणभूत ज्ञान धाचणा ज्ञान ह । जिे - एेिा र्ाद चहना िक वरह बगुलाें की पंमक्त देखत थत । नाेट - र्ाद आाना आलग िवरषर् ह । र्ाद आाना ‘स्मततत’ ज्ञान ह । र्ाद चहना धाचणा ज्ञान ह ।
  • 44. आवरग्रहादद चाचाें ज्ञान स्वररूप िवरयप्रथि जानना इच्छा - आमभलाषा तनणयर् भूलना नहतं कालांतच िें िंशर् - िवरस्मचण हाे जाता ह िंशर् ताे नहतं, पच िवरस्मचण हाेता ह न िंशर्, न िवरस्मचण हाेता ह उदाहचण काेई िफे द पदाथय देखा “र्े बगुला ह िक पताका” जानने की इच्छा हुई पंख हहलने िे जाना बगुला ह भिवरष्र् िें भूले नहतं
  • 45. बहु बहुिवरहं च न्द्खप्पा-णणन्द्स्िदणुत्तं धुवरं च इदचं च। तत्थेक्के क्के जादे, छत्ततिं ततिर्भेदं तु॥310॥ ❖आथय - उक्त िततज्ञान के िवरषर्भूत पदाथय के बाचह भेद हं— ❖बहु, आल्प, बहुिवरध, एकिवरध र्ा आल्पिवरध, सक्षप्र, आसक्षप्र, आतन:ितत, तन:ितत, आनुक्त, उक्त, ध्रुवर, आध्रुवर। ❖इनिें िे प्रत्र्ेक िवरषर् िें िततज्ञान के उक्त आट्ठाईि भेदाें की प्रवरतत्तत्त हाेतत ह, इिमलर्े बाचह काे आट्ठाईि िे गुणा कचने पच िततज्ञान के ततन िा छत्तति भेद हाेते हं ॥310॥
  • 46. िततज्ञान के िवरषर्भूत पदाथय के भेद बहु बहुिवरध एक एकिवरध सक्षप्र आसक्षप्र आतन:ितत तन:ितत आनुक्त उक्त ध्रुवर आध्रुवर इन्द्हतं 12 भेदाें काे कु ल 28 भेदाें िे गुणा कचने पच 12×28 = 336 िततज्ञान के भेद हाेते हं ।
  • 47. बहुवरत्तत्तजाददगहणे, बहुबहुिवरहमिर्चमिर्चगहणन्द्म्ह। िगणािादाे सिद्ा, न्द्खप्पादी िेदचा र् तहा॥311॥ ❖आथय - बहुत व्र्मक्तर्ाें काे बहु कहते हं। ❖बहुत-ित जाततर्ाें काे बहुिवरध कहते हं। ❖एक, दाे व्र्मक्तर्ाें काे आल्प (एक) कहते हं। ❖एक, दाे जाततर्ाें काे एकिवरध (आल्पिवरध) कहते हं । ❖सक्षप्राददक तथा उनके प्रततपसक्षर्ाें का आथय उनके नाि िे हत सिद् ह ॥311॥
  • 48. बहु बहुत पदाथय (िंख्र्ा वराचक) गाची, िांवरली, काली आादद आनेक गार् एक एक-दाे पदाथय एक गाेची गार् िततज्ञान के िवरषर्भूत 12 प्रकाच के पदाथय
  • 49. बहुिवरध बहुत प्रकाच के पदाथय (प्रकाच वराचक) गार्, भंि, घाेड़ा आादद आनेक जातत एकिवरध एक-दाे प्रकाच के पदाथय गाेची, िांवरली, काली आादद गार् (एक जातत - गार्)
  • 50. सक्षप्र शतघ्र शतघ्र पड़तत जलधाचा र्ा जलप्रवराह आसक्षप्र िंद धतचे चलता कछुआा
  • 51. आतन:ितत गूढ जल िें ड़ूबा हाथत तन:ितत प्रकट जल िे तनकला हाथत
  • 52. आनुक्त िबना कहा र्ा आमभप्रार् िें वरतयिान हाथ र्ा शशच के इशाचे िे िबना कहे 'हााँ' र्ा 'ना' ििझना उक्त कहा हुआा िकित ने कहा ''र्े घड़ा ह''
  • 53. ध्रुवर आचल / बहुत काल स्थार्त पवरयतादद आध्रुवर चंचल / िवरनाशतक क्षणस्थार्त िबजली आादद
  • 54. श्राेि इंदद्रर् िंबंधत बहु आादद ज्ञान • एक साथ र्तर्त, नवर्तर्त, घन आनि शब्दों कद सुननाबहु • इनमें से नकसी एक-िद शब्दों कद ही सुननाएक • र्तर्त, नवर्तर्त, घन आनि के अनेकदों प्रकारदों कद सुननाबहुनवध • नकसी एक-िद प्रकारदों कद ही जाननाएकनवध • शीघ्रर्ता से कहे शब्, वाक्य आनि कद सुननाक्षिप्र • मोंिर्ता से कहे शब्, वाक्य आनि कद सुनना अथवा धीरे धीरे सुनना अक्षिप्र
  • 55. • पूरे वाक्य का उच्चारण ना हदने पर भी जान लेना नक क्या कहा हैअनन:सृर्त • पूणण रूप से उच्चाररर्त हदने पर सुननानन:सृर्त • एक भी शब् का उच्चारण हुए नबना अक्षभप्राय मात्र से अथण कद ्रहहण कर लेनाअनुक्त • कहे गए शब् कद जान लेनाउक्त • जैसा प्रथम समय में शब् का ्रहहण हुआ वैसा ही नद्वर्तीय आनि समयदों में शब् का ्रहहण करना | ना न्यून, ना अक्षधक |ध्रुव • कभी बहुर्त शब्दों कद जानना, कभी अल्प कद, कभी एकनवध कद, कभी बहुनवध कद इत्यानि रूप ज्ञान कद अध्रुव कहर्ते हैं |अध्रुव नदट : पर-उपिेशपूवणक शब्दों का ्रहहण उक्त है | जैसे ‘यह गाय है’ - यह सुनकर गाय का ज्ञान | स्वर्त: गाय कद िेखकर ज्ञान हदना नन:सृर्त ज्ञान है |
  • 56. चक्षु इंदद्रर् िंबंधत बहु आादद ज्ञान शुक्ल, कृ ष्ण, लाल, नीला आनि बहुर्त वणों का ज्ञान हदनाबहु नकसी एक-िद रोंगदों का जाननाएक अनेक प्रकार के रोंगदों का जाननाबहुनवध एक िद-प्रकार के रोंगदों का जाननाएकनवध शीघ्रर्ता से गनर्तमान वणों का जाननाक्षिप्र मोंिरूप पररणर्त वणों का जाननाअक्षिप्र
  • 57. वस्त्र के एक छदर के रोंगदों कद िेखकर पूरे वस्त्र के रोंगदों का ज्ञान हद जाना अथवा एक वस्त्र के एकिेश रोंग कद िेखकर अन्यत्र स्थिर्त वस्त्र के रोंग का ज्ञान हदना अनन:सृर्त पूरे वस्त्र कद िेखकर वणों का जाननानन:सृर्त िूसरे के कहे नबना अक्षभप्राय मात्र से यह जान लेना नक इन रोंगदों के नमश्रण से यह रोंग बनाएोंगेअनुक्त कहे जाने पर रूप कद ्रहहण करनाउक्त जैसा प्रथम समय में रूप ्रहहण नकया है वैसा ही नद्वर्तीय आनि समय में भी जानना | ना न्यून, ना अक्षधक |ध्रुव कभी बहु रूप कद जानना, कभी बहुनवध कद, कभी एक कद, कभी एकनवध कद इत्यानि अध्रुव रूप से रूप कद ्रहहण करर्ता हुआ ज्ञानअध्रुव
  • 58. वरत्थुस्ि पदेिादाे, वरत्थुग्‍जगहणं तु वरत्थुदेिं वरा। िर्लं वरा आवरलंिबर्, आणणन्द्स्िदं आण्णवरत्थुगई॥312॥ ❖आथय - वरस्तु के एकदेश काे देखकच ििस्त वरस्तु का ज्ञान हाेना, आथवरा ❖वरस्तु के एकदेश र्ा पूणय वरस्तु का ग्रहण कचके उिके तनमित्त िे िकित दूिची वरस्तु के हाेने वराले ज्ञान काे भत आतन:ितत कहते हं ॥312॥
  • 59. आतन:ितत ज्ञान वरस्तु के एकदेश काे देखकच ििस्त वरस्तु का ज्ञान आन्द्र् आप्रकट वरस्तु का ज्ञान िवराोंग काे देखकच आन्द्र् आप्रकट वरस्तु का ज्ञान
  • 60. पुक्खचगहणे काले, हस्त्थस्ि र् वरदणगवरर्गहणे वरा। वरत्थुंतचचंदस्ि र्, धेणुस्ि र् बाेहणं च हवरे॥313॥ ❖आथय - जल िें ड़ूबे हुए हस्तत की िूंड़ काे देखकच उित ििर् िें जलिग्न हस्तत का ज्ञान हाेना, आथवरा ❖िुख काे देखकच उि हत ििर् उििे मभन्न िकन्द्तु उिके िदृश चन्द्द्रिा का ज्ञान हाेना, आथवरा ❖गवरर् काे देखकच उिके िदृश गा का ज्ञान हाेना — ❖इनकाे आतन:ितत ज्ञान कहते हं ॥313॥
  • 61. आतन:ितत - उदाहचण क्र. उदाहचण कान-िा ज्ञान ? 1 जल िें ड़ूबे हाथत की िूंड़ देखकच हाथत का ज्ञान हाेना आनुिान 2 िुख देखकच चन्द्द्रिा का ज्ञान स्मततत / प्रत्र्मभज्ञान 3 गवरर् काे देखकच गा का ज्ञान स्मततत / प्रत्र्मभज्ञान 4 आन्द्र्था आनुपपत्तत्त का ज्ञान – आयग्न नहतं ताे धुआााँ भत नहतं तकय
  • 62. पचाेक्ष प्रिाण िततज्ञान स्मततत स्मचण प्रत्र्मभज्ञान जाेड़रूप ज्ञान तकय व्र्ातप्त का ज्ञान आनुिान िाधन िे िाध्र् श्रुतज्ञान आागि इन िबका िवरषर् आतन:ितत पदाथय ह
  • 63. एक्कचउक्कं चउ वरतिट्ठावरतिं च ततप्पदड़ं िकच्चा। इयगछव्वाचिगुणणदे, िददणाणे हाेंतत ठाणाणण॥314॥ ❖आथय - िततज्ञान िािान्द्र् की आपेक्षा एक भेद, ❖आवरग्रह, ईहा, आवरार्, धाचणा की आपेक्षा चाच भेद, ❖पााँच इन्द्न्द्द्रर् आाच छठे िन िे आवरग्रहादद चाच के गुणा कचने की आपेक्षा चाबति भेद, ❖आथायवरग्रह आाच व्र्ञ्जनावरग्रह दाेनाें की आपेक्षा िे आट्ठाईि भेद िततज्ञान के हाेते हं। ❖इनकाे क्रि िे ततन पंमक्तर्ाें िें स्थापना कचके इनका एक, छह आाच बाचह के िाथ र्थाक्रि िे गुणा कचने पच िततज्ञान के िािान्द्र्, आधय आाच पूणय स्थान हाेते हं ॥314॥
  • 64. िततज्ञान के भेद िततज्ञान के स्थान िािान्द्र् (पदाथय) आथय (बहु आादद 6) पूणय (बहु आादद 12) िािान्द्र् आपेक्षा 1 6 12 आवरग्रहादद आपेक्षा 4 24 48 इन्द्न्द्द्रर् आाच िन आपेक्षा (4 × 6) 24 144 288 आथायवरग्रह आाच व्र्ंजनावरग्रह के भेद-िहहत 28 168 336