2. जाणइ ततकालिवरिए, दव्वरगुणे पज्जए र् बहुभेदे।
पच्चक्खं च पचाेक्खं, आणेण णाणं तत णं बेंतत॥299॥
❖आथय - जजिके द्वाचा जतवर तिकाल िवरषर्क भूत,
भिवरष्र्त्, वरतयिान काल िंबंधत ििस्त द्रव्र् आाच
उनके गुण तथा उनकी आनेक प्रकाच की पर्ायर्ाें
काे जाने उिकाे ज्ञान कहते हं।
❖इिके दाे भेद हं - प्रत्र्क्ष, पचाेक्ष ॥299॥
3. उिे ज्ञान कहते हं
जाने
ििस्त द्रव्र्
उनके गुण उनके आनेक प्रकाच की पर्ायर्ाें काे
जजिके द्वाचा जतवर
भूत भिवरष्र् वरतयिान काल िम्बन्द्धत
नाेट : ज्ञान की पूणय िवरकसित पर्ायर् का भत र्हत स्वररूप ह ।
4. ज्ञान िकिे कहते हं?
कततय िाधन जाे जानता ह
कचण िाधन जजिके द्वाचा जाना जाता ह
भावर िाधन जानना िाि
5. ज्ञान के भेद
पचाेक्ष
इन्द्न्द्द्रर् आाच िन की िहार्ता द्वाचा
पदाथाेों काे आस्पष्ट जाने
ितत, श्रुत
प्रत्र्क्ष
िबना िकित िहार्ता के
के वरल आात्मा द्वाचा
पदाथाेों काे स्पष्ट जाने
िवरकल (िर्ायददत)
आवरधध, िन:पर्यर्
िकल (िम्पूणय)
के वरलज्ञान
नाेट - पचाेक्ष ज्ञान हत ह, वर िम्र्ग्जज्ञान ह ।
6. पंचेवर हाेंतत णाणा, िददिुदआाेहतिणं च के वरलर्ं ।
खर्उवरिमिर्ा चउचाे, के वरलणाणं हवरे खइर्ं ॥300॥
❖आथय: ज्ञान के पााँच भेद हं - ितत, श्रुत, आवरधध,
िन:पर्यर् तथा के वरल ।
❖इनिें आादद के चाच ज्ञान क्षार्ाेपशमिक हं आाच
के वरलज्ञान क्षायर्क ह ॥300॥
8. •जाे ज्ञान किय के क्षर् िे उत्पन्न हाे, उिे
क्षायर्क ज्ञान कहते हं ।
•र्ह आावरचण चहहत ज्ञान ह।
क्षायर्क ज्ञान
• िवरयघातत स्पधयकाें के उदर्ाभावरत क्षर्, उन्द्हतं के
िदवरस्थारूप उपशि तथा देशघातत स्पधयकाें के उदर्
िे हाेने वराला ज्ञान क्षार्ाेपशमिक ज्ञान कहलाता ह।
• र्ह आावरचण िहहत ज्ञान ह।
क्षार्ाेपशमिक
ज्ञान
9. आण्णाणततर्ं हाेदद हु, िण्णाणततर्ं खु मिच्छआणउदर्े।
णवररच िवरभंगं णाणं, पंमचंददर्िन्द्ण्णपुण्णेवर॥301॥
❖आथय - आादद के ततन (ितत, श्रुत, आवरधध) ज्ञान
िितचतन भत हाेते हं आाच मिथ्र्ा भत हाेते हं।
❖ज्ञान के मिथ्र्ा हाेने का आंतचंग काचण मिथ्र्ात्वर
तथा आनंतानुबंधत कषार् का उदर् ह।
❖मिथ्र्ा-आवरधध काे िवरभंग भत कहते हं। इििें र्ह
िवरशेषता ह िक र्ह िवरभंगज्ञान िंज्ञत पर्ायप्त पंचेन्द्न्द्द्रर्
के हत हाेता ह ॥301॥
52. आनुक्त
िबना कहा र्ा आमभप्रार्
िें वरतयिान
हाथ र्ा शशच के इशाचे िे
िबना कहे 'हााँ' र्ा 'ना'
ििझना
उक्त
कहा हुआा
िकित ने कहा ''र्े घड़ा ह''
53. ध्रुवर
आचल / बहुत काल
स्थार्त
पवरयतादद
आध्रुवर
चंचल / िवरनाशतक
क्षणस्थार्त िबजली
आादद
54. श्राेि इंदद्रर् िंबंधत बहु आादद ज्ञान
• एक साथ र्तर्त, नवर्तर्त, घन आनि शब्दों कद सुननाबहु
• इनमें से नकसी एक-िद शब्दों कद ही सुननाएक
• र्तर्त, नवर्तर्त, घन आनि के अनेकदों प्रकारदों कद सुननाबहुनवध
• नकसी एक-िद प्रकारदों कद ही जाननाएकनवध
• शीघ्रर्ता से कहे शब्, वाक्य आनि कद सुननाक्षिप्र
• मोंिर्ता से कहे शब्, वाक्य आनि कद सुनना अथवा धीरे धीरे
सुनना
अक्षिप्र
55. • पूरे वाक्य का उच्चारण ना हदने पर भी जान लेना नक क्या कहा हैअनन:सृर्त
• पूणण रूप से उच्चाररर्त हदने पर सुननानन:सृर्त
• एक भी शब् का उच्चारण हुए नबना अक्षभप्राय मात्र से अथण कद ्रहहण कर लेनाअनुक्त
• कहे गए शब् कद जान लेनाउक्त
• जैसा प्रथम समय में शब् का ्रहहण हुआ वैसा ही नद्वर्तीय आनि समयदों में शब् का
्रहहण करना | ना न्यून, ना अक्षधक |ध्रुव
• कभी बहुर्त शब्दों कद जानना, कभी अल्प कद, कभी एकनवध कद, कभी बहुनवध कद
इत्यानि रूप ज्ञान कद अध्रुव कहर्ते हैं |अध्रुव
नदट : पर-उपिेशपूवणक शब्दों का ्रहहण उक्त है | जैसे ‘यह गाय है’ - यह सुनकर गाय का ज्ञान | स्वर्त: गाय कद
िेखकर ज्ञान हदना नन:सृर्त ज्ञान है |
56. चक्षु इंदद्रर् िंबंधत बहु आादद ज्ञान
शुक्ल, कृ ष्ण, लाल, नीला आनि बहुर्त वणों का ज्ञान हदनाबहु
नकसी एक-िद रोंगदों का जाननाएक
अनेक प्रकार के रोंगदों का जाननाबहुनवध
एक िद-प्रकार के रोंगदों का जाननाएकनवध
शीघ्रर्ता से गनर्तमान वणों का जाननाक्षिप्र
मोंिरूप पररणर्त वणों का जाननाअक्षिप्र
57. वस्त्र के एक छदर के रोंगदों कद िेखकर पूरे वस्त्र के रोंगदों का ज्ञान हद जाना अथवा एक
वस्त्र के एकिेश रोंग कद िेखकर अन्यत्र स्थिर्त वस्त्र के रोंग का ज्ञान हदना
अनन:सृर्त
पूरे वस्त्र कद िेखकर वणों का जाननानन:सृर्त
िूसरे के कहे नबना अक्षभप्राय मात्र से यह जान लेना नक इन रोंगदों के नमश्रण से यह रोंग
बनाएोंगेअनुक्त
कहे जाने पर रूप कद ्रहहण करनाउक्त
जैसा प्रथम समय में रूप ्रहहण नकया है वैसा ही नद्वर्तीय आनि समय में भी जानना |
ना न्यून, ना अक्षधक |ध्रुव
कभी बहु रूप कद जानना, कभी बहुनवध कद, कभी एक कद, कभी एकनवध कद
इत्यानि अध्रुव रूप से रूप कद ्रहहण करर्ता हुआ ज्ञानअध्रुव
58. वरत्थुस्ि पदेिादाे, वरत्थुग्जगहणं तु वरत्थुदेिं वरा।
िर्लं वरा आवरलंिबर्, आणणन्द्स्िदं आण्णवरत्थुगई॥312॥
❖आथय - वरस्तु के एकदेश काे देखकच ििस्त
वरस्तु का ज्ञान हाेना, आथवरा
❖वरस्तु के एकदेश र्ा पूणय वरस्तु का ग्रहण कचके
उिके तनमित्त िे िकित दूिची वरस्तु के हाेने
वराले ज्ञान काे भत आतन:ितत कहते हं ॥312॥
59. आतन:ितत ज्ञान
वरस्तु के
एकदेश काे देखकच
ििस्त वरस्तु का ज्ञान
आन्द्र् आप्रकट वरस्तु
का ज्ञान
िवराोंग काे
देखकच
आन्द्र् आप्रकट वरस्तु
का ज्ञान
60. पुक्खचगहणे काले, हस्त्थस्ि र् वरदणगवरर्गहणे वरा।
वरत्थुंतचचंदस्ि र्, धेणुस्ि र् बाेहणं च हवरे॥313॥
❖आथय - जल िें ड़ूबे हुए हस्तत की िूंड़ काे देखकच
उित ििर् िें जलिग्न हस्तत का ज्ञान हाेना, आथवरा
❖िुख काे देखकच उि हत ििर् उििे मभन्न िकन्द्तु
उिके िदृश चन्द्द्रिा का ज्ञान हाेना, आथवरा
❖गवरर् काे देखकच उिके िदृश गा का ज्ञान हाेना —
❖इनकाे आतन:ितत ज्ञान कहते हं ॥313॥
61. आतन:ितत - उदाहचण
क्र. उदाहचण कान-िा ज्ञान ?
1
जल िें ड़ूबे हाथत की िूंड़
देखकच हाथत का ज्ञान हाेना
आनुिान
2 िुख देखकच चन्द्द्रिा का ज्ञान स्मततत / प्रत्र्मभज्ञान
3 गवरर् काे देखकच गा का ज्ञान स्मततत / प्रत्र्मभज्ञान
4
आन्द्र्था आनुपपत्तत्त का ज्ञान –
आयग्न नहतं ताे धुआााँ भत नहतं
तकय