7. सर्वार्धि ज्ञवन कव वर्षय तो परमवणु बतवयव है और उसके
अनंतवर्े भवग को मन: पयाय ज्ञवन जवनतव है, तो परमवणु
के अनंत भवग कै से हो सकते हैं?
एक परमवणु में स्पर्ा, रस, रूप, गंि गुण के
अनंत अवर्भवगी प्रततच्छेद पवए जवते हैं अत:
उसकी अपेक्षव से परमवणु कव भी अनंतवर्व भवग
हो सकतव है |
34. नय
जाे भूत औाैर भकवष्य पयाायाेें मेें वतामान िा
सेंिल्प िरता है
या वतामान जाे पयााय पूणा नहीें हुई है उसे
पूणा मानता है
उस ज्ञान तथा वचन िाे नैगम नय िहते
हैें |
42. नय
यदि शब्िों में िेि है तो अथथ िेि अवश्य होना चादहये
इस नय में पयाथयवाची शब्ि नह िं पाए जाते हैं
अथवा जो नाना अथों को ‘सम’ अथाथत ् छोड़कर प्रधानता
से एक अथथ में रुद्ध होता है उसे समलिरूढ़ नय कहते हैं
44. नय
जो वस्तु जजस पयाथय को प्राप्त हुई है
उसी रूप ननश्चय करने वा े नय को
एविंिूत नय कहते है
45. उदाहरण
• पूजा करते समय ही पुजारीपुजारी
• पढ़ाते समय ही अध्यापकअध्यापक
• च ते समय ही गायगो
46. विशेष
उिरोिर सूक्ष्म होने के कारण इनका क्रम इस प्रकार
कहा है |
शब्द नय पयाायवाची शब्दोिं को तो ग्रहण करता है
दकन्तु समलभरूढ़ नय पयाायवाची शब्दोिं को ग्रहण नहीिं
करता है |
समलभरूढ़ नय से लजस अर्ा के ल ए लजस शब्द को
स्वीकार दकया है एविंभूत नय में तो वह शब्द भी
दक्रया के पररणमन के समय ही ागू होगा |