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समय की सीख
समय की सीख समय परले लेनी चाहिए, ऐसा वयोवृद्ध और ज्ञानी मिापुरुषों
का मार्गदर्गन िै। अक्षरतः सत्य िै। कोरोना का समय आया, सारे हवश्व में
िािाकार मची िै। मृत्यु का आँकड़ा दो लाख पार कर र्या िै, हकसी को कुछ
सूझ निीं रिा िै, अफवािों का बाजार र्रम िै। अभी तक सुनते थे, ‘‘हजतनी
मुँि उतनी बातें” अब सुन रिे िैं ‘‘िर मुुंि से िजारों बातें”। सुंकट के काल में
भीअक्लहिकानेनिींलर्रिीिै।ओछीराजनीहतछूटनिींरिी िै,दोषारोपण
पराकाष्ठा परिै,हनकम्मेंकमगिों परआरोपलर्ारिेिैं,कमगिअपनी हचन्ताओुं
से परेर्ान िैं, उन्िें ढाढस बढ़ाने वाला कोई निीं िै, वे अलर्-थलर् पड़ र्ये िैं, हदन और रातें योजना
और हनणगय के हलये कम पड़ र्ये िैं।
किते िैंसमय बिुतबलवानिोतािै,अपने-अपने समय के बड़े-बड़े सूरमाओुंका आजनामोहनर्ान निीं
िै। एक र्ीत मेंसुना हक अपने समय में हजनकी इच्छा अथवा आज्ञा के हबना उनके साम्राज्यका एक पत्ता
भी निीं हिलता था, वे राजे-मिाराजे चक्रवती जो अपने पररवार के िर सदस्य की मृत्यु पर भव्य स्मारक
बनवा हदया करते थे, उनका स्वयुं का अुंहतम सुंस्कार किाँ िुआ, ये हकसी को ज्ञात निीं िै। समय से कोई
हवजयी निीं िो पाया। ऐसा लर्ता िै हक समय, इहतिास और प्रकृहत ये तीनों एक िी पररवार के अत्यन्त
घहनष्ठ सम्बन्धी िैं। जो कुछ भी घहटत िो रिा िै, वि इन तीनों के द्वारा या इन तीनों के सुंज्ञान में िो रिा िै।
वैसे दोष तो ब्रह्मा जी को हदया जाता िै हक सब कुछ उन्िीं का हलखा िुआ िै। भर्वान हवष्णु के हवरोधी
भी कम निीं िैं, सब कुछ उनकी िी माया से घहटत िो रिा िै, ऐसा देाषउनपर मढ़ हदया जाता िै। रुहचकर
बात यि िै हक न ब्रह्मा हदखते िैं, न हवष्णु हदखते िैं, न िी अपनी बातों का कोई प्रभाव उन पर हदखता िै
और न िी उनकी ओर से कोई उत्तर आता िै। रिी बात प्रकृहत की तो वि प्रहतहक्रया हदखाये हबना निीं
छोड़ती। वि तो भर्वान ने र्ीता में कि हदया ‘‘मयाध्यक्षेण प्रकृहतः सूयते स चराचरम्”। भर्वान हवष्णु
कुछनिीं करते। वेतोक्षीर सार्रमें नार्राज कीर्ैयापरयोर्हनद्रा काआनन्द लेते िैंऔर सम्पूणग चराचर
जर्त में उनकी प्रकृहत उनके कायग-उनके द्वारा रहचत माया को आकार देती रिती िै।
समय को हनदोष माना जा सकता िै, जैसी-जैसी प्रभु की लीला, वैसे-वैसे वि कायग सम्पादन करता रिता
िै। िाँ उसे हर्क्षक की भूहमका में रख देना र्ायद र्लत निीं िोर्ा। सीख देने में समय की िी बड़ी भूहमका
Brahmachari Girish Ji
िै। औरइहतिास?उसकीकोई हवर्ेषभूहमका योजनाकी रचना करने,कायागन्वयनकरने,हर्क्षा देने,इनमें
से हकसी की क्षेत्र में तो निीं प्रतीत िोती। वो तो बस जब कायग की इहत िो जाती िै तो उसको ररकार्ग में
रख लेता िै। अतः इहतिास दोष देने लायक निीं िै।
जैसा हक समय की भूहमका के हवषय में हवचार हकया, इससे सीख तो हनहित रूप में हमलती िै। ये सबके
जीवन सुंचालन ररमोट से करता िै, हदखता निीं िै और अहमट प्रभाव छोड़ता िै, हकसी को छोड़ता निीं
िै, हकसी को क्षमा भी निीं करता, र्ायद धमगराज- यमराज और हचत्रर्ुप्त इसके हनकट के सम्बन्धी िैं। ये
अवश्य देखा र्या हक जो अपने जीवन में प्रकृहत का पोषण करता िै प्रकृहत उसका पोषण करती िै। इसी
तरियि भी हनहित िी िैहक जो समय के प्रहत सम्मान रखते िुये, उसके हनयमों का पालन करते िुये, उसे
साथ हलये िुये चला, समय उसके हलये अनुकूल रिा, र्ुभफलदायक रिा, अच्छी सीख देता रिा,
सावधान करता रिा और अुंत में सद्गहत भी देता रिा। सदा से यि र्ाश्वत् सत्य रिा िै, आज भी िै और
कल भी रिेर्ा क्यों हक समय सवागहधक बलवान िै। आज की पररहस्थहत में समय िमें क्या सीख देरिा िै,
आइये इस पर थोड़ा हवचार कर लें।
िमारे हवचार से तो समय जीवन की सबसे बड़ी सीख का स्मरण करा रिा िै हक जीवन का कोई हिकाना
निीं िै। कब हकस कारण से जाना पड़ जाये, पता निीं। एक छोटा सा, अदृष्य कारण 200,000 व्यहियों
का जीवन सुंहक्षप्त काल में ले ले और आर्े हकतनों को और समेट लेर्ा, यि हकसी को पता निीं िै। हवश्व
के र्ीषगस्थ वैज्ञाहनक इसकी प्रकृहत, सुंरचना, व्यविार, प्रभाव और काट को लेकर अनुसुंधान में रात-हदन
एक हकये िैं, चार माि िो चुका िै लेहकन अुंहतम पररणाम पर पिुँचना अभी भी सुंभव निीं िै। जीवन के
प्रहत, दीघागयु के प्रहत आर्ायें तो सबकी अनन्त िोती िैं हकन्तु उसके प्रहत मोि िो जाना यि उहचत निीं
िै। आर्ा और कल्पना उहचत िै हकन्तु आर्ा और कल्पना िी सत्य िै, ऐसा मानना आम जन के हलये
उहचत निीं िै, ज्ञानी और हसद्ध पुरुषों की बात अलर् िै।
अतः पहली बात यि हक अपने जीवन के कतगव्यों को ऐसा हनभाया जाये हक करने को कुछ र्ेष कभी
भी न रि जाये। जब बुलावा आये, चल पड़े।
दूसरी आवश्यक बात यि िैहक सदा सत्कमग िी करें। बुरे कमों का फल मालूम तो सबको िोता िै, मन में
एक चोर हछपा रिता िै ये ररकार्ग लेकर हक िमने ये बुरे कमग हकये िैं और पता निीं इन्िें सुधारने का समय
कभी हमलेर्ा या निीं। अहन्तम समय स्वयुं के कमों का लेखा-जोखा सामने आ जाता िै हकन्तु तब तक
बिुत हवलम्ब िो चुका रिता िै, तबसुधारने का अवसर निीं हमलता, तब उससमय तकका लेखा जोखा
लेकर जाना पड़ता िै।
तीसरी बात समय से अपने जीवन का अुंके क्षण कराना सीख लें। जीवन में कौन िमारा सबसे हनकट िै,
कौनदूरिै,कौनर्त्रुिैऔर कौनहितर्त्रुिैंयि िमेंसमय िी हसखातािै। हपछलेएक माि सेलॉकर्ाउन
िै, िम बस अपने-अपने घर में रिने को बाध्य िैं। िर हकसी की अपनी-अपनी आवश्यकतायें िैं। हकसी
को भोजन सामग्री चाहिये, हकसी को हनत्य उपयोर् की वस्तुयें, हकसी को बच्चों की वस्तुयें चाहिये, तो
कोई घर के बािर बने भोजन को तरसरिा िै, कोई बेरोजर्ार िो र्या, हकसी का व्यवसायचौपट िो र्या,
कोई अपने घर पररवार से सैकड़ों या िजारों हकलोमीटर दूर फँ सकर रि र्या, हकसी का हववाि टल र्या
तो कोई अपने सर्े सम्बन्धी के अहन्तम सुंस्कार में सहम्महलत निीं िो पाया। कई व्यहि, कई सुंस्थायें,
सरकारें सिायता के हलये आर्े आये िैं। सचमुच में हकसको हकतनी सिायता प्राप्त िो पा रिी िै, इसको
नापने के हलये कोई स्के ल निीं िै। एक सिायता सबसे बड़ी िम दे सकते िैं और वि िै मन की र्ाँहत,
सान्त्वना, ढाढस। ये सभी वस्तुओुंकी तुलना में अहधक मूल्यवान िै। हकन्तु इसकी कमी सवगत्र िै। बस
यिीं ज्ञात िो जाता िै हक हकससे क्या हमल रिा िै। घर से कायग करने का अवसर सबको प्राप्त िुआ िै।
सरकार ने आदेर् कर हदया हक सबको पूरा-पूरा वेतन हदया जाये। कौन घर से हकतना कायग कर रिा िै,
इसका कोई हिसाब निीं िै। कइयों का तो हपछले एक माि से कोई अता-पता िी निीं िै। “र्धे के हसर से
सींर्” की तरि अदृश्य िैं। उनके साहथयों, उनके अहधकाररयों, उनकी सुंस्थान की क्या हस्थहत िै, ये पता
करने का प्रयत्न तक उन्िोंने निीं हकया। िाँ वेतन में 50 या 100 रु. कम आने पर हवत्त हवभार् को सम्पकग
अवश्य कर हलया। कमगि और अकमगिों की सूची को िीक करने का यिी अवसर िै। कौन हकतना
हजम्मेदार िै, कौन हकतना ध्यान पूवगक हकतने समपगण भाव से सुंस्थान के प्रहत उत्तरदायी िै इसकी परीक्षा
तो िो र्ई। समय ने सीख दी, भहवष्य के हलये सूची में सुधार िो र्या। कमगिों और अकमगिों के प्राप्ताँक
बदल र्ये।
इसके अहतररि भी समय ने बिुत कुछ हसखा हदया। आज िमारे हवद्यालय की एक हबहटया ने किा हक
‘‘सर कल तक स्कूल में मोबाइल फोन लाने की मनािी थी, आज देहखये सारा स्कूल मोबाइल में आ
र्या”।बाततोसिीिै। कलतकिमबच्चोंकोमोबाइल सेदूररखना चािते थे,आजविीमाध्यमबच्चों
की हर्क्षा का प्रमुख माध्यम बन र्या। हकसी भी वस्तु का सदुपयोर् सत्कायग के हलये हकया जाये तो वि
कायग की वस्तु साहबत िोती िै। हपछले वषग से यूजीसी न जाने क्यों भारतवषग में दूरस्थ हर्क्षा के कायगक्रमों
को रोकने में लर्ी थी। नये-नये हवहचत्र हनयम बनाकर हवश्वहवद्यालयों को परेर्ान हकया जा रिा था। हजन
हवश्वहवद्यालयों ने हपछले अनेक वषों में दूरस्थ हर्क्षा के कायगक्रम करोड़ों रूपये खचग कर तैयार हकये, वे
सब पानी में बिाने की तैयारी यू.जी.सी. ने कर दी थी। अब देहखये विी यू.जी.सी. ऑनलाइन एजूके र्न
का र्ाना र्ा रिी िै।
समयनेिमेंअष्टप्रकृहतयोंकीयादहदलादीिै,भूहमसेउिकरअिुंकार तककाक्रमदेहखये।प्रकृहतपृथ्वी
से प्रारम्भ िोती िै,उिती िैऔर अन्तमें मन, बुहद्ध अिुंकार परजाकर पूणग िोती िै। जबयिी अिुंकार की
प्रकृहत, स्वाहभमान की प्रकृहत से, अहभमान की प्रकृहत में पररवहतगत िोती िै, इसमें से स्व छूट जाता िै तो
मानव का पतन िोकर वि प्रथम प्रकृहत-पृथ्वी पर हर्र पड़ता िै। इसे समझना चाहिये। अष्टप्रकृहतयों का
सुंतुलन बनाये रखना चाहिये, ये तभी िोर्ा जब इनका आधार नवीं प्रकृहत-परा प्रकृहत में िोर्ा। अन्यथा
हबना मूल के अथवा हछन्न हभन्न िुई मूल के वृक्ष की तरि जीवन वृक्ष भी कभी भी धारार्ायी िो जायेर्ी
‘‘हछन्ने मूले नैव र्ाखा न पत्रम्” वेद ने तो पिले िी बता हदया िै।
इसके अहतररि समय ने सम्बन्धों में बदलाव भी हदखाया। अभी तक िम पुहलस को िाथों में र्ुंर्ा और
बन्दूकवालीछहवसेदेखतेथे। अबपुहलसकोभोजनपकाते,भोजनबाँटते,छोटे बच्चोंकोर्ोदमेंउिाये
औरवृद्धपुरुष यामहिला कािाथपकड़े सड़कपारकराते,जनहितमेंसड़कपरर्ीतर्ाते औरनृत्यकरते
और स्वयुं मार खाते िुए भी देख रिे िैं।
धमागथग औरपरमाथग अहधकतर व्यहियों के हलयेर्ब्दकोषके र्ब्दथे,अब इसकाप्रायोहर्क अथगसमझ
में आया िै। सामान्य आहथगक हस्थहत वाले पररवार भी हनत्य कुछ पररवारों को भोजन करा रिे िैं। िमारे
कुछ पररहचत हचहकत्सकों ने किा हक सामान्य हदनों में अपने कायग के घुंटे पूणग करने पर थकावट का
अनुभव िोता था और अपने घर चले आते थे। अब वे 18 से 22 घुंटे तक कायग करते िैं। हजम्मेदारी के
अिसास ने उनमें अनूिी ऊजाग उमुंर् भर दी िै। अब अहतररि घुंटे कायग करने में उन्िें कोई और थकावट
निीं िोती, वे सेवा भाव की सुंतुहष्ट से सदा तरोताजा बने रिते िैं।
हर्क्षक-हर्हक्षकाओुंने बताया हक पिले अवकार् के हदन कायग करने का कोई हवचार मन में निीं आता
था।अब सप्तािके सातोंहदनबराबर िोर्येिैं। अपने हवद्याहथगयोंको हकतना अहधक ज्ञानहकतनी र्ीघ्रता
से दे दें, बस यिी धुन सवार रिती िै। यि सब क्या िै? ये सब समय की सीख िै।
इसके अहतररि हवचार कै सा िो, व्यविार कै सा िो, वाणी कै सी िो, सीहमत साधनों के रिते िुए भी सुखी
और प्रसन्न जीवन कै सा िो, बहिगमुखी चेतना अथवा मन को अन्तमुगखी कै से बना लें, र्ाँत-प्रर्ाँत चेतना
सार्र में हस्थत अनन्त ज्ञान र्हि से अनन्त और असीहमत हक्रया र्हि कै से जर्ा लें, यि सब समय की
िी तो हर्क्षा िै। आइये,कोरोना के बिाने िी समयने छोटे से समयमें बिुत कुछहसखा देने काआर्ीवागद
हदया िै, उसके हलये िम समय को धन्यवाद किें, समय का आभार प्रकट करें, उसे साधुवाद दें।
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Prarthana me daya ka mahatva - Brahmachari Girish
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Samay Ki Seekh By Brahmachari Girish Ji

  • 1. समय की सीख समय की सीख समय परले लेनी चाहिए, ऐसा वयोवृद्ध और ज्ञानी मिापुरुषों का मार्गदर्गन िै। अक्षरतः सत्य िै। कोरोना का समय आया, सारे हवश्व में िािाकार मची िै। मृत्यु का आँकड़ा दो लाख पार कर र्या िै, हकसी को कुछ सूझ निीं रिा िै, अफवािों का बाजार र्रम िै। अभी तक सुनते थे, ‘‘हजतनी मुँि उतनी बातें” अब सुन रिे िैं ‘‘िर मुुंि से िजारों बातें”। सुंकट के काल में भीअक्लहिकानेनिींलर्रिीिै।ओछीराजनीहतछूटनिींरिी िै,दोषारोपण पराकाष्ठा परिै,हनकम्मेंकमगिों परआरोपलर्ारिेिैं,कमगिअपनी हचन्ताओुं से परेर्ान िैं, उन्िें ढाढस बढ़ाने वाला कोई निीं िै, वे अलर्-थलर् पड़ र्ये िैं, हदन और रातें योजना और हनणगय के हलये कम पड़ र्ये िैं। किते िैंसमय बिुतबलवानिोतािै,अपने-अपने समय के बड़े-बड़े सूरमाओुंका आजनामोहनर्ान निीं िै। एक र्ीत मेंसुना हक अपने समय में हजनकी इच्छा अथवा आज्ञा के हबना उनके साम्राज्यका एक पत्ता भी निीं हिलता था, वे राजे-मिाराजे चक्रवती जो अपने पररवार के िर सदस्य की मृत्यु पर भव्य स्मारक बनवा हदया करते थे, उनका स्वयुं का अुंहतम सुंस्कार किाँ िुआ, ये हकसी को ज्ञात निीं िै। समय से कोई हवजयी निीं िो पाया। ऐसा लर्ता िै हक समय, इहतिास और प्रकृहत ये तीनों एक िी पररवार के अत्यन्त घहनष्ठ सम्बन्धी िैं। जो कुछ भी घहटत िो रिा िै, वि इन तीनों के द्वारा या इन तीनों के सुंज्ञान में िो रिा िै। वैसे दोष तो ब्रह्मा जी को हदया जाता िै हक सब कुछ उन्िीं का हलखा िुआ िै। भर्वान हवष्णु के हवरोधी भी कम निीं िैं, सब कुछ उनकी िी माया से घहटत िो रिा िै, ऐसा देाषउनपर मढ़ हदया जाता िै। रुहचकर बात यि िै हक न ब्रह्मा हदखते िैं, न हवष्णु हदखते िैं, न िी अपनी बातों का कोई प्रभाव उन पर हदखता िै और न िी उनकी ओर से कोई उत्तर आता िै। रिी बात प्रकृहत की तो वि प्रहतहक्रया हदखाये हबना निीं छोड़ती। वि तो भर्वान ने र्ीता में कि हदया ‘‘मयाध्यक्षेण प्रकृहतः सूयते स चराचरम्”। भर्वान हवष्णु कुछनिीं करते। वेतोक्षीर सार्रमें नार्राज कीर्ैयापरयोर्हनद्रा काआनन्द लेते िैंऔर सम्पूणग चराचर जर्त में उनकी प्रकृहत उनके कायग-उनके द्वारा रहचत माया को आकार देती रिती िै। समय को हनदोष माना जा सकता िै, जैसी-जैसी प्रभु की लीला, वैसे-वैसे वि कायग सम्पादन करता रिता िै। िाँ उसे हर्क्षक की भूहमका में रख देना र्ायद र्लत निीं िोर्ा। सीख देने में समय की िी बड़ी भूहमका Brahmachari Girish Ji
  • 2. िै। औरइहतिास?उसकीकोई हवर्ेषभूहमका योजनाकी रचना करने,कायागन्वयनकरने,हर्क्षा देने,इनमें से हकसी की क्षेत्र में तो निीं प्रतीत िोती। वो तो बस जब कायग की इहत िो जाती िै तो उसको ररकार्ग में रख लेता िै। अतः इहतिास दोष देने लायक निीं िै। जैसा हक समय की भूहमका के हवषय में हवचार हकया, इससे सीख तो हनहित रूप में हमलती िै। ये सबके जीवन सुंचालन ररमोट से करता िै, हदखता निीं िै और अहमट प्रभाव छोड़ता िै, हकसी को छोड़ता निीं िै, हकसी को क्षमा भी निीं करता, र्ायद धमगराज- यमराज और हचत्रर्ुप्त इसके हनकट के सम्बन्धी िैं। ये अवश्य देखा र्या हक जो अपने जीवन में प्रकृहत का पोषण करता िै प्रकृहत उसका पोषण करती िै। इसी तरियि भी हनहित िी िैहक जो समय के प्रहत सम्मान रखते िुये, उसके हनयमों का पालन करते िुये, उसे साथ हलये िुये चला, समय उसके हलये अनुकूल रिा, र्ुभफलदायक रिा, अच्छी सीख देता रिा, सावधान करता रिा और अुंत में सद्गहत भी देता रिा। सदा से यि र्ाश्वत् सत्य रिा िै, आज भी िै और कल भी रिेर्ा क्यों हक समय सवागहधक बलवान िै। आज की पररहस्थहत में समय िमें क्या सीख देरिा िै, आइये इस पर थोड़ा हवचार कर लें। िमारे हवचार से तो समय जीवन की सबसे बड़ी सीख का स्मरण करा रिा िै हक जीवन का कोई हिकाना निीं िै। कब हकस कारण से जाना पड़ जाये, पता निीं। एक छोटा सा, अदृष्य कारण 200,000 व्यहियों का जीवन सुंहक्षप्त काल में ले ले और आर्े हकतनों को और समेट लेर्ा, यि हकसी को पता निीं िै। हवश्व के र्ीषगस्थ वैज्ञाहनक इसकी प्रकृहत, सुंरचना, व्यविार, प्रभाव और काट को लेकर अनुसुंधान में रात-हदन एक हकये िैं, चार माि िो चुका िै लेहकन अुंहतम पररणाम पर पिुँचना अभी भी सुंभव निीं िै। जीवन के प्रहत, दीघागयु के प्रहत आर्ायें तो सबकी अनन्त िोती िैं हकन्तु उसके प्रहत मोि िो जाना यि उहचत निीं िै। आर्ा और कल्पना उहचत िै हकन्तु आर्ा और कल्पना िी सत्य िै, ऐसा मानना आम जन के हलये उहचत निीं िै, ज्ञानी और हसद्ध पुरुषों की बात अलर् िै। अतः पहली बात यि हक अपने जीवन के कतगव्यों को ऐसा हनभाया जाये हक करने को कुछ र्ेष कभी भी न रि जाये। जब बुलावा आये, चल पड़े। दूसरी आवश्यक बात यि िैहक सदा सत्कमग िी करें। बुरे कमों का फल मालूम तो सबको िोता िै, मन में एक चोर हछपा रिता िै ये ररकार्ग लेकर हक िमने ये बुरे कमग हकये िैं और पता निीं इन्िें सुधारने का समय कभी हमलेर्ा या निीं। अहन्तम समय स्वयुं के कमों का लेखा-जोखा सामने आ जाता िै हकन्तु तब तक
  • 3. बिुत हवलम्ब िो चुका रिता िै, तबसुधारने का अवसर निीं हमलता, तब उससमय तकका लेखा जोखा लेकर जाना पड़ता िै। तीसरी बात समय से अपने जीवन का अुंके क्षण कराना सीख लें। जीवन में कौन िमारा सबसे हनकट िै, कौनदूरिै,कौनर्त्रुिैऔर कौनहितर्त्रुिैंयि िमेंसमय िी हसखातािै। हपछलेएक माि सेलॉकर्ाउन िै, िम बस अपने-अपने घर में रिने को बाध्य िैं। िर हकसी की अपनी-अपनी आवश्यकतायें िैं। हकसी को भोजन सामग्री चाहिये, हकसी को हनत्य उपयोर् की वस्तुयें, हकसी को बच्चों की वस्तुयें चाहिये, तो कोई घर के बािर बने भोजन को तरसरिा िै, कोई बेरोजर्ार िो र्या, हकसी का व्यवसायचौपट िो र्या, कोई अपने घर पररवार से सैकड़ों या िजारों हकलोमीटर दूर फँ सकर रि र्या, हकसी का हववाि टल र्या तो कोई अपने सर्े सम्बन्धी के अहन्तम सुंस्कार में सहम्महलत निीं िो पाया। कई व्यहि, कई सुंस्थायें, सरकारें सिायता के हलये आर्े आये िैं। सचमुच में हकसको हकतनी सिायता प्राप्त िो पा रिी िै, इसको नापने के हलये कोई स्के ल निीं िै। एक सिायता सबसे बड़ी िम दे सकते िैं और वि िै मन की र्ाँहत, सान्त्वना, ढाढस। ये सभी वस्तुओुंकी तुलना में अहधक मूल्यवान िै। हकन्तु इसकी कमी सवगत्र िै। बस यिीं ज्ञात िो जाता िै हक हकससे क्या हमल रिा िै। घर से कायग करने का अवसर सबको प्राप्त िुआ िै। सरकार ने आदेर् कर हदया हक सबको पूरा-पूरा वेतन हदया जाये। कौन घर से हकतना कायग कर रिा िै, इसका कोई हिसाब निीं िै। कइयों का तो हपछले एक माि से कोई अता-पता िी निीं िै। “र्धे के हसर से सींर्” की तरि अदृश्य िैं। उनके साहथयों, उनके अहधकाररयों, उनकी सुंस्थान की क्या हस्थहत िै, ये पता करने का प्रयत्न तक उन्िोंने निीं हकया। िाँ वेतन में 50 या 100 रु. कम आने पर हवत्त हवभार् को सम्पकग अवश्य कर हलया। कमगि और अकमगिों की सूची को िीक करने का यिी अवसर िै। कौन हकतना हजम्मेदार िै, कौन हकतना ध्यान पूवगक हकतने समपगण भाव से सुंस्थान के प्रहत उत्तरदायी िै इसकी परीक्षा तो िो र्ई। समय ने सीख दी, भहवष्य के हलये सूची में सुधार िो र्या। कमगिों और अकमगिों के प्राप्ताँक बदल र्ये। इसके अहतररि भी समय ने बिुत कुछ हसखा हदया। आज िमारे हवद्यालय की एक हबहटया ने किा हक ‘‘सर कल तक स्कूल में मोबाइल फोन लाने की मनािी थी, आज देहखये सारा स्कूल मोबाइल में आ र्या”।बाततोसिीिै। कलतकिमबच्चोंकोमोबाइल सेदूररखना चािते थे,आजविीमाध्यमबच्चों की हर्क्षा का प्रमुख माध्यम बन र्या। हकसी भी वस्तु का सदुपयोर् सत्कायग के हलये हकया जाये तो वि कायग की वस्तु साहबत िोती िै। हपछले वषग से यूजीसी न जाने क्यों भारतवषग में दूरस्थ हर्क्षा के कायगक्रमों को रोकने में लर्ी थी। नये-नये हवहचत्र हनयम बनाकर हवश्वहवद्यालयों को परेर्ान हकया जा रिा था। हजन हवश्वहवद्यालयों ने हपछले अनेक वषों में दूरस्थ हर्क्षा के कायगक्रम करोड़ों रूपये खचग कर तैयार हकये, वे
  • 4. सब पानी में बिाने की तैयारी यू.जी.सी. ने कर दी थी। अब देहखये विी यू.जी.सी. ऑनलाइन एजूके र्न का र्ाना र्ा रिी िै। समयनेिमेंअष्टप्रकृहतयोंकीयादहदलादीिै,भूहमसेउिकरअिुंकार तककाक्रमदेहखये।प्रकृहतपृथ्वी से प्रारम्भ िोती िै,उिती िैऔर अन्तमें मन, बुहद्ध अिुंकार परजाकर पूणग िोती िै। जबयिी अिुंकार की प्रकृहत, स्वाहभमान की प्रकृहत से, अहभमान की प्रकृहत में पररवहतगत िोती िै, इसमें से स्व छूट जाता िै तो मानव का पतन िोकर वि प्रथम प्रकृहत-पृथ्वी पर हर्र पड़ता िै। इसे समझना चाहिये। अष्टप्रकृहतयों का सुंतुलन बनाये रखना चाहिये, ये तभी िोर्ा जब इनका आधार नवीं प्रकृहत-परा प्रकृहत में िोर्ा। अन्यथा हबना मूल के अथवा हछन्न हभन्न िुई मूल के वृक्ष की तरि जीवन वृक्ष भी कभी भी धारार्ायी िो जायेर्ी ‘‘हछन्ने मूले नैव र्ाखा न पत्रम्” वेद ने तो पिले िी बता हदया िै। इसके अहतररि समय ने सम्बन्धों में बदलाव भी हदखाया। अभी तक िम पुहलस को िाथों में र्ुंर्ा और बन्दूकवालीछहवसेदेखतेथे। अबपुहलसकोभोजनपकाते,भोजनबाँटते,छोटे बच्चोंकोर्ोदमेंउिाये औरवृद्धपुरुष यामहिला कािाथपकड़े सड़कपारकराते,जनहितमेंसड़कपरर्ीतर्ाते औरनृत्यकरते और स्वयुं मार खाते िुए भी देख रिे िैं। धमागथग औरपरमाथग अहधकतर व्यहियों के हलयेर्ब्दकोषके र्ब्दथे,अब इसकाप्रायोहर्क अथगसमझ में आया िै। सामान्य आहथगक हस्थहत वाले पररवार भी हनत्य कुछ पररवारों को भोजन करा रिे िैं। िमारे कुछ पररहचत हचहकत्सकों ने किा हक सामान्य हदनों में अपने कायग के घुंटे पूणग करने पर थकावट का अनुभव िोता था और अपने घर चले आते थे। अब वे 18 से 22 घुंटे तक कायग करते िैं। हजम्मेदारी के अिसास ने उनमें अनूिी ऊजाग उमुंर् भर दी िै। अब अहतररि घुंटे कायग करने में उन्िें कोई और थकावट निीं िोती, वे सेवा भाव की सुंतुहष्ट से सदा तरोताजा बने रिते िैं। हर्क्षक-हर्हक्षकाओुंने बताया हक पिले अवकार् के हदन कायग करने का कोई हवचार मन में निीं आता था।अब सप्तािके सातोंहदनबराबर िोर्येिैं। अपने हवद्याहथगयोंको हकतना अहधक ज्ञानहकतनी र्ीघ्रता से दे दें, बस यिी धुन सवार रिती िै। यि सब क्या िै? ये सब समय की सीख िै। इसके अहतररि हवचार कै सा िो, व्यविार कै सा िो, वाणी कै सी िो, सीहमत साधनों के रिते िुए भी सुखी और प्रसन्न जीवन कै सा िो, बहिगमुखी चेतना अथवा मन को अन्तमुगखी कै से बना लें, र्ाँत-प्रर्ाँत चेतना सार्र में हस्थत अनन्त ज्ञान र्हि से अनन्त और असीहमत हक्रया र्हि कै से जर्ा लें, यि सब समय की
  • 5. िी तो हर्क्षा िै। आइये,कोरोना के बिाने िी समयने छोटे से समयमें बिुत कुछहसखा देने काआर्ीवागद हदया िै, उसके हलये िम समय को धन्यवाद किें, समय का आभार प्रकट करें, उसे साधुवाद दें। जय र्ुरु देव, जय मिहषग ब्रह्मचारी हर्रीर् अध्यक्ष-मिहषग र्ैक्षहणक सुंस्थान समूि