2. णाोइंदियआावरणखआाोवसमं तज्जबाोहणं सण्णा।
सा जस्स साो िु सण्णी, इिराो सोससंदिआवबाोहाो॥660॥
☸आर्ग - नाोइन्द्रियावरण कमग को क्षयाोपशम काो या
तज्जरय ज्ञान काो संज्ञा कहतो हं।
☸यह संज्ञा जजसको हाो उसकाो संज्ञी कहतो हं आार
☸जजनको यह संज्ञा न हाो, ककरतु को वल यर्ासंभव
इन्द्रियजरय ज्ञान हाो उनकाो आसंज्ञी कहतो हं॥660॥
3. संज्ञी - आसंज्ञी
• नाो इन्द्रियावरण को क्षयाोपशम सो उत्परन बाोसंज्ञा
• जजसको ऐोसी संज्ञा हाो, वह संज्ञी हसंज्ञी
• जजसको ऐोसी संज्ञा नहीं ह, पररतु शोष इन्द्रियाों
का यर्ायाोग्य ज्ञान ह ꠰आसंज्ञी
4. ससक्खाककररयुविोसा-लावग्र्ाही मणाोवलंबोण।
जाो जीवाो साो सण्णी, तन्द्ववरीआाो आसण्णी िु॥661॥
☸आर्ग - हहत का ग्रहण आार आहहत का त्यार् जजसको द्वारा ककया जा सको
उसकाो शशक्षा कहतो हं।
☸इच्छापूवगक हार् पर को चलानो काो किया कहतो हं।
☸वचन आर्वा चाबुक आादि को द्वारा बतायो हुऐ कतगय काो उपिोश कहतो हं
आार श्ाोक आादि को पाठ काो आालाप कहतो हं।
☸जाो जीव इन शशक्षादिक काो मन को आवलम्बन सो ग्रहण - ारण करता ह
उसकाो संज्ञी कहतो हं आार
☸जजन जीवाों मों यह लक्षण घहित न हाो उनकाो आसंज्ञी समझना चाहहयो
॥661॥
5. संज्ञी को बाह्य चचह्न, उिाहरण
शशक्षा
हहत-आहहत को ग्रहण-
त्यार्रूप ज्ञान
मनुष्यादि
किया
इच्छा सो हार्-पर
आादि चलानो रूप
किया
बलादि
उपिोश
बोंत, चाबुक आादि सो
उपिोशशत
हार्ी आादि
आालाप
शलाोक आादि का पाठ
करनो रूप
ताोता आादि
6. संज्ञी - आसंज्ञी
इन शशक्षा, किया आादि काो ग्रहण
करनो वाला मन ह ꠰
ऐोसो मन को आवलंबन वालो जीव
संज्ञी हं ꠰
इससो कवपरीत आसंज्ञी जीव हाोतो हं ꠰
7. मीमंसदि जाो पुवं, कज्जमकज्जं च तच्चचमिरं च।
ससक्खदि णामोणोदि य, समणाो आमणाो य कववरीिाो॥662॥
☸आर्ग - जाो पहलो कायग-आकायग का कवचार करो,
☸तत्त्व-आतत्त्व काो सीखो,
☸नाम सो बुलानो पर आायो,
☸वह जीव मनसहहत समनस्क, संज्ञी जानना।
☸इस लक्षण सो उल्िो लक्षण का जाो ारक हाो, वह
जीव मनरहहत आमनस्क आसंज्ञी जानना ॥662॥
8. संज्ञी-आसंज्ञी
जाो कायग-आकायग का कवचार करो,
तत्त्व-आतत्त्व काो सीखो,
नाम सो बुलानो पर आाऐ
वह संज्ञी जीव ह ꠰
इनसो कवपरीत आसंज्ञी जीव ह ꠰
9. न संज्ञी, न आसंज्ञी
जजनको नाो इन्द्रियावरण का क्षयाोपशम नहीं ह, इसचलऐ संज्ञी नहीं हं,
जजनको शोष इन्द्रियाों का भी क्षयाोपशम नहीं ह, इसचलयो आसंज्ञी भी नहीं हं
वो ‘न संज्ञी, न आसंज्ञी’ ऐोसो आनुभय जीव हं ꠰
आरहंत आार ससद्ध आनुभय जीव हं ꠰
वो आनंत हं ꠰
10. िोवोहहं सादिरोर्ाो, रासी सण्णीण हाोदि पररमाणं।
तोणूणाो संसारी, सवोससमसन्द्ण्णजीवाणं॥663॥
☸आर्ग - िोवाों को प्रमाण सो कु छ आध क संज्ञी जीवाों
का प्रमाण ह। संपूणग संसारी जीवराशश मों सो संज्ञी
जीवाों का प्रमाण घिानो पर जाो शोष रहो उतना ही
समस्त आसंज्ञी जीवाों का प्रमाण ह ॥663॥
11. संज्ञी जीव ― संख्या
िोव •ज्याोततकषयाों सो कु छ आध क
संज्ञी ततयंच •ज्याोततकषयाों सो संख्यातर्ुणा हीन
नारकी •ततयंचाों सो आसंख्यातर्ुणा हीन
मनुष्य •आसंख्यात
कु ल संज्ञी जीव •िोवाों सो कु छ आध क आर्ागत्
जर्त्प्रतर
65= प्रतरांर्ुल
+
12. आसंज्ञी जीव ― संख्या
संसारी राशश ― संज्ञी जीव (प्रर्म
र्ुणस्र्ान सो बारहवों र्ुणस्र्ानवतीग)
आनंत ― आसंख्यात = आनंत