3. जा राग-द्वष मलकरर मलीन, वत्रनता गदाददजुत चचह्न चीन॥१०॥
त हें कु दव त्रतनकी जु सव, िठ करत न त्रतन भवभ्रमण छव
❀ ज= जा
❀ मलकरर मलीन= मल स मचलन
❀ वत्रनता= स्त्री
❀ गदादद जुत= गदा आादद सहहत
❀ चचह्न चीन= चचहाें स पहहचान
जात
❀ त= व
❀ कु दव= झूठ दव
❀ त्रतनकी= उन कु दवाें की
❀ जु= जा
❀ िठ= मूर्ख
❀ सव करत= सवा करत
❀ त्रतन= उनका
❀ भवभ्रमण= सेंसार में
भ्रमण करना न
❀ छव= नहीें चमटता
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4. ‘कु दव’
• रागी-द्वषी
• जा राग आार द्वषरूपी मल स मचलन रागी-द्वषी हें आार
• चचह्न सहहत
• स्त्री, गदा, आाभूषण आादद चचहाें स जजनका पहहचाना जा सकता ह,
आज्ञानी क्या करत हें?
• ऐस कु दवाें की सवा पूजा, भचि आार ववनय करत हें,
ता आज्ञानी का क्या हाता ह?
• आनन्तकाल तक उनका भवभ्रमण नहीें चमटता
जा राग-द्वष मलकरर मलीन, वत्रनता गदाददजुत चचह्न चीन॥१०॥
त हें कु दव त्रतनकी जु सव, िठ करत न त्रतन भवभ्रमण छव
9. Created by : श्रीमती सारिका विकास छाबड़ा
कु दव का पूजना,
मानना, भचि सवा
आादद आहहतकर ह।
10. भगवान की पूजा आादद क्याें की जाती ह?
1. माक्ष ससद्धि
क चलऐ
2. इस
लाक क
हहत क
चलऐ
3. पर लाक
क हहत क
चलऐ
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11. Created by : श्रीमती सारिका विकास छाबड़ा
कु दव की पूजा आादद माक्ष ससद्धि
क कायख का नहीें करती ह, उल्टा
उसस दूर करती ह।
12. इस लाक सेंबेंधी हहत
•लावकक सुर्ाें की प्रात्रि
•आात्त्मक सुर् की प्रात्रि
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13. कु दव की पूजादद स इस लाक सेंबेंधी सुर् की प्रात्रि भी
नहीें हाती।
लावकक सुर् की
प्रात्रि पुण्य स हाती
ह।
पुण्य िुभ पररणामाें स
हाता ह।
िुभ पररणाम ववषय
आार कषायाें की
मेंदता रूप हात हें।
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14. कु दव की पूजा-भचि ववषय-कषायाें की तीव्रता रूप ह।
उदाहरण-नवरात्रि, राजा, गणि उत्सव, हाली, दिहरा,
दीपावली आादद
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क्या ववषय की वृद्धि रूप या कषायाें की वृद्धि रूप
पूजा-आचखना स पुण्य प्रात्रि हा सकती ह ??
15. विचारिये वि एि भक्त गणेशजी
िी स्तुवत विस रूप में ििेगा ?
सोवचये िाम या िृष्ण िी स्तुवतयााँ
विस भाांवत िी होती है।
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16. िुदेिों से इस लोि सांबांधी आवममि सुख
(शाांवत) िी प्रावि भी नहीं होती।
क्योंवि शाांवत िषायों िी मांदता से
होती है। पूिव में िहे अनुसाि िुदेिों
िी पूजन से िषायावदि बढ़ते हैं।
अत: शाांवत िी उपलवधध नहीं होती।
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17. Created by : श्रीमती सारिका विकास छाबड़ा
िुछ लोग दया, सांतोष आवद िे द्वािा शाांत
परिणामी देखे जाते हैं?
िहााँ भी िे शाांत िुछ िुदेि िे
िािण नहीं है। स्ियां िे परिणामों में
विषय एिां िषायों िी मांदता से हैं।
18. कु दव की पूजा दु:र्ाें क भय स करत हें ?
• दुर्ाें क कारणाें का ववचार करत हें:
➢दुर् की प्रात्रि पाप उदय स हाती ह।
➢पाप का उदय पाप कमान स हाता ह।
➢पाप ववषय-कषाय की तीव्रता रूप भावाें स हाता ह।
➢कु दव की पूजा ववषय-कषाय का तीव्रता वाल भावाें स ह।
• आत: कु दव पूजा स ता उल्टा दुर् बढ़न वाल हें। यदद दुर्ाें स भय
हा, ता पुण्य आजखन रूप आरहेंतादद की भचि करा।
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19. ववचाररय वकसी न पाप कायख वकया ह, ता
क्या काई व्यचि उस पाप क फल स बचा
दगा ?
यदद ऐसा हा, ता पुण्य-पाप की व्यवस्था ही बकार
हागी।
आत: हमार स्वयें क पाप उदय क वबना काई हमारा वबगाड़ नहीें कर
सकता - ऐसा त्रनश्चय करक व्यथख क भय स कु दव का नहीें मानना चाहहऐ
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20. 1) पाप िा उदय होने पि भी पाप ही बुिा ििने िाला है, िुदेि नहीं।
2) उस बुिा िो दूि ििने िा उपाय पुण्य प्रावि है, जो वि िुदेि सेिा
से नहीं होती। बवकि उससे पाप-िृवि होने से दु:ख बढ़ता है।
3) पुण्य प्रावि िा उपाय िीतिागता िी आिाधना है।
पाप का उदय हागा, तब ता कु दव बुरा करगा।
उसकी पूजा करन स वह दुर् दूर हा जाऐगा ?
21. लवकन कत्ल्पत कु दवाें
का चमत्कार ता दर्ा
जाता ह ?
वह चमत्कार कु छ कत्ल्पत
दवाें का नहीें, उनक मानन
वाल व्येंतराददक का ह। जस
जजनप्रत्रतमा का काई चमत्कार
ददर्ता ह, ता काई जजनन्द्र
भगवान न वह चमत्कार नहीें
वकया ह। उनक मानन वाल
दवादद न वकया ह।
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22. आपन पाप का उदय हान स सुर् नहीें द
सकत, पुण्य का उदय हान स दुर् नहीें द
सकत
उनक पूजन स पुण्य बन्ध नहीें हाता, उनका
पूजन राग-माहादद की वृद्धि वाला हान स पाप
ही हाता ह।
आत: उनका मानना-पूजना कायखकारी
नहीें ह, उल्टा बुरा करन वाला ह।
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व
व्यन्तराददक
चमत्कार,
िचि आादद
सहहत हात
हें, ता उनक
मानन-पूजन
में क्या दाष
ह ?
23. Created by : श्रीमती सारिका विकास छाबड़ा
व्येंतरादद आपन का पूजवात हें ?
उन्हीें स पूजवात हें, जा उनका
मानत हें, जा नहीें मानत, उनस
कु छ नहीें कहत-करत।
24. Created by : श्रीमती सारिका विकास छाबड़ा
सूयख पूजन
चेंद्रमा पूजन
* काई धनप्रात्रि क
चलऐ चेंद्रमा पूजा करता
ह, परन्तु उसस ता धन
प्रात्रि हाती नहीें।
* चेंद्रमा भी भगवान
नहीें, उसका आेंि भी
नहीें।
सूयख काई भगवान नहीें ह,
जजस पूजा जाय आथवा आर्घयख
चढ़ाया जाय।
25. ग्रहों िा पूजन
ग्रह िोई जीि िो दु:खी नहीं ििता।
ग्रह पूजन से ग्रह वस्िवत नहीं बदल जाती।
ग्रह आगामी ज्ञान िा िािण मात्र होता है, दुख िो
उमपन्न नहीं ििता।
ग्रह तो स्ियां अजीि विमान हैं, उनिी पूजा से पुण्य
प्रावि भी नहीं है।
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26. Created by : श्रीमती सारिका विकास छाबड़ा
ता वफर ग्रह िाेंत्रत क चलऐ क्या करें ?
पुण्य उत्पन्न करन वाली जजनन्द्र भगवान की
भचि, पूजन, सेंयम-धारण आादद कायां स
िाेंत्रत हाती ह। व कायख करें।
27. Created by : श्रीमती सारिका विकास छाबड़ा
जन नवग्रह
जजनालय–
जाना या
नहीें?
28. क्षिफल, पद्मावती आादद जन दवी-दवता का ता
पूजन कर सकत हें ?
(1) सांयम से पूज्यपना होता है, देिों में सांयम पाया नहीं जाता। इन देिों िे
सांयम नहीं होने से पूज्यपना नहीं बनता।
(2) सम्यक्मि िे िािण पूज्य मानो, तो जो वनयम से सम्यग्ृवि हैं ऐसे
सिाविववसवि िे देि, लौिाांवति देि उन्हें ही क्यों न पूजें !!!
दूसिा इनिे सम्यग्दशवन िे होने िा भी िोई वनयम नहीं है। बवकि इनिा
क्षेत्रपाल आवद बनना ही इनिे वमथ्यादशवन सवहत जन्म िो बताता है
क्योंवि सम्यग्ृवि भिनवत्रि में पैदा नहीं होते, देिी भी नहीं बनते)।
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29. इनके भक्तत अधिक पायी जाती है, इसलिए
इनको पूजते हैं ?
• कोई भक्तत अधिक किता है, इतने मात्र से
पूजनीय नह ीं हो जाता।
• यदि भक्तत से महान मानो, तो सौिमम इींद्र
की भक्तत अधिक है, उसकी पूजा किो!!
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30. Created by : श्रीमती सारिका विकास छाबड़ा
जस राजा क प्रत्रतहारी हें, वस भगवान क य हें। आतः जस राजा स चमलन क
चलऐ द्वारपाल का भेंट दत हें, वस ही भगवान स चमलन हतु इनका पूजत हें?
राजा स चमलन क चलऐ प्रत्रतहारी का चढ़ावा दना-यह ऐक भ्रष्ट परम्परा ह। यहााँ धमख क्षि में भी
इस प्रकार का भ्रष्टाचार कराग, ता पुण्य व धमख उपलब्धध ता नहीें हा सकती।
यदद ऐसी व्यवस्था मान भी लें, तब भी ता प्रत्रतहारी का ही चढ़ावा चढ़ाआाग। य ता प्रत्रतहारी भी
नहीें ह। समविरण में भी कु बर की व्यवस्था ह। आत: ऐसा मानकर भी कस पूजें।
इनका प्रत्रतहारी मान भी ला, ता क्या य भगवान स चमलात हें ? क्या य मेंददर ल जात हें?
नहीें पूजन पर राक दत हें या भगा दत हें? क्या करत हें !!! जजसकी भचि हाती ह, वह
भगवान क दिखन प्राि करता ह। कु छ इनक आधीन नहीें ह।
31. कु देव पूजन से कु छ लाभ नहीं है, पर कु छ नुकसान भी तो नहीं है ?
नुकसान है, तभी आगम में इतना ननषेध नकया है। इनके पूजने से
1. नमथ्यात्वानद भाव दृढ़ होने से मोक्षमागग दुलगभ हो जाता है।
2. पापबंध होने से आगामी दुख नमलते हैं।
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32. कु दव मानन में चमथ्यात्व क्याें ?
इष्ट-आत्रनष्ट बुद्धि की पाषक हान स
राग-द्वष का भला मानन का support करन स
सच्च दव का यथाथख न मानन स
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33. कु देव मानने में पापबंध क्यों ?
1. (1) कुं दकुं द आचायग: प्रवचनसार: गाथा 258
जनद ते नवसय कसाया, पाव नि परुनवदा व सत्थेसु।
नकह ते तप्पनिबद्धा, पुररसा नित्धारगा होंनत।।
अथग: जब शास्तरों में नवषय व कषायों को पाप बताया है, तब उनमें लीन पुरुष व उनकी सेवानद जीवों को
कै से तार सके गी अथागत् नहीं तारती।
1. जो परमाथग नहीं जानते ऐसे देवों-पुरुषों की सेवा-भनि कु देवपने व कु मनुष्यपने को प्राप्त कराती है। (गाथा
256-257)
2. इनकी सेवा मोह-द्वेष एवं अप्रशस्तत राग रूप होने से पाप बंध होता है।
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34. क्या य तीव्र माह नहीें ह?
• लोक में अपने से हीन व्यनि को नमस्तकार आनद करने में inferiority (हीन भाव) महसूस करते
हैं। यहााँ ये सब कु देव (नतयंच, मनुष्य, देव, अजीव आनद) अपने से हीन हैं, उन्हें पूजने-वंदने में
अपने को हीन नहीं मानते । ये बडा नमथ्यात्व है।
• लोक में नजससे प्रयोजन नसद्ध हो, उसी की सेवा करते हैं। और यहााँ कु देवों से कु छ भी प्रयोजन
नसद्ध नहीं होने पर भी नबना नवचारे उनकी सेवा करते हैं - यह बडी मोह दशा है।
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35. Created by : श्रीमती सारिका विकास छाबड़ा
आतः कु दव का
मानना, पूजन, भचि,
भय आादद छाड़कर
सुदव की भचि
करना चाहहऐ
37. वीतरागी सच्च दव का
वकसी फल की
आाकाेंक्षा स पूजना भी
गृहीत चमथ्यात्व ह
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38. • भिामर का पाठ करना
• िीतलनाथ भगवान की पूजा करना
• रवववार का पार्श्खनाथ भगवान की पूजा करना
• ित्रनवार का मुत्रनसुव्रतनाथ भगवान की पूजा
करना
• त्रतजाराजी क्षि पर दिखन करन जाना, इत्यादद
• चमथ्यात्व नहीें ह, लवकन .....
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39. • ग्रहाें की िात्न्त क चलय भिामरजी का पाठ करना
• भगवान स ग्रहिात्न्त की आाकाेंक्षा स उनकी नवग्रह पूजा करना
• िीतलनाथ भगवान का चचक का राग ठीक करन वाला मानना
• रवववार का ही पार्श्खनाथ भगवान की पूजा करन स हमारी
मनाकामना पूरी हा जायगी
य गृहीत चमथ्यात्व ही ह!
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40. True / False
• जा हमारी मनाकामना पूरी कर द, वह दव ह ।
• जा हमारी पूजा स प्रसन्न हा जाय, वह दव ह ।
• जा exam में pass करा द, वह दव ह ।
• जजसस हमें हमिा डर लगा रह, वह दव ह ।
• जजसस हमें सेंसार स छूटन का रास्ता चमल, वह
दव ह ।
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41. ➢ Reference : श्री माक्षमागख प्रकािक जी
➢ Presentation created by : Smt. Sarika Vikas Chhabra
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