2. तीन भुवन में सार, वीतराग ववज्ञानता |
शिवस्वरूप शिवकार, नम्हें त्रियाग सम्हारिकरक
मेंगलाचरण
3. ग्रेंथ प्रारेंभ करन क पूवव जानन याग्य 6 बातें:
• छहढालाग्रेंथ का नाम
• पण्डित दाौलतरामजीग्रेंथ क रचययता
• वीतराग ववज्ञानतामेंगलाचरण में वकस नमस्कार वकया गया हौ:
• ९६ छेंद, ६ अधिकारग्रेंथ का प्रमाण
• भव्य जीवाें क त्रनममत्तत्रनममत्त
• माक्ष प्रात्रि हतुहतु
4. मेंगलाचरण करन क कारण
1.ग्रेंथ की त्रनवववघ्न समात्रि क मलय
2.शिष्टाचार क पालन क मलए
3.नाण्स्तकता का परिकरहार क मलए
4.उपकार का स्मरण करन क मलय
5. छहढाला का अथव
ढाल = तलवार अादद क वार स रक्षा क मलय
•ममथ्यात्वादद ििु स अात्मा की रक्षा क मलय
6 अधिकार
6 छेंद (लय)
6. १ ढाल
१. दुख क्या हौ?
२ ढाल
२. दुख का कारण क्या हौ?
३,४,५,६
ढाल
३. दुख स छू टन क उपाय क्या हौें?
छहढाला में 3 मुख्य बाताें का वणवन हौ
7. ढाल न. छन्द सेंख्या छन्द प्रकार ववषय वस्तु
1 17 चाौपाई ममथ्यात्व क कारण ४ गत्रतअाें में भ्रमण स दुुःख
2 15 पद्धरी
ममथ्या- दिवन,ज्ञान, चारिकरि का वणवन
3 17 जागीरासा माक्षमागव का स्वरूप,सम्यग्दिवन का वणवन
4 15 राला सम्यक-ज्ञान, चारिकरि, व्रती श्रावक का वणवन
5 15 छन््पाल
१२ भावनाअाें का स्वरूप
6 17 हरिकरगीत्रतका
मुत्रन स भगवान बनन का उपाय, २८ मूलगुण,
स्वरुपाचरण चारिकरि का वणवन
Total 96
8. पहली ढाल की ववषय वस्तु
छन्द ववषय वस्तु
1 – 3 मेंगलाचरण, शिक्षा सुनन का उपदि, सेंसार परिकरभ्रमण का कारण
4 – 9 त्रतयंच गत्रत क दुख अाौर प्रात्रि क कारण
10 – 13 नरक गत्रत क दुख अाौर प्रात्रि क कारण
14 – 15 मनुष्य गत्रत क दुख अाौर प्रात्रिक कारण
16 - 17 दव गत्रत क दुख अाौर प्रात्रिक कारण
10. तीन भुवन में सार, वीतराग ववज्ञानता |
शिवस्वरूप शिवकार, नमहें त्रियाग सम्हारिकरक
• वीतराग = राग द्वष स रहहत (18 दाषाें स रहहत)
• ववज्ञानता = ववशिष्ट ज्ञान (कवलज्ञान)
• शिवस्वरूप = अानेंद स्वरूप
• शिवकार = माक्ष प्राि करान वाला
• नमहें = करता हें
• त्रियाग = तीनाें याग
• सम्हारिकरक = सेंभाल कर
11. तीन भुवन में सार, वीतराग ववज्ञानता |
शिवस्वरूप शिवकार, नमहें त्रियाग सम्हारिकरक
• राग-द्वषरहहत ‘‘कवलज्ञान’’
• ऊर्धवव, मर्धय अाौर अिा इन तीन लाकाें में
• उत्तम, अानन्दस्वरूप तथा माक्षदायक हौ,
• इसमलय मौें (दाौलतराम) अपन त्रियाग
अथावत मन-वचन-काय द्वारा साविानी पूववक
• उस वीतराग स्वरूप कवलज्ञान का
नमस्कार करता हूँ 1
16. ज त्रिभुवन में जीव अनन्त, सुख चाहौें दुखतौें भयवन्त ।
तातौें दुखहारी सुखकार, कहौें सीख गुरु करुणा िार 2
• ज = जा
• त्रिभुवन में= तीनाें लाकाें में
• जीव= प्राणी
• चाहौें= इच्छा करत हौें
• दुखतौें= दुुःख स
• भयवन्त= िरत हौें
• तातौें= इसमलय
• दुुःखहारी= दुुःख का नाि
करनवाली
• सुखकार= सुख का
दनवाली
• कहौें= कहत हौें
• सीख= शिक्षा
• गुरु= अाचायव
• करुणा= दया
• िार= करक
17. •तीन लाक में जा अनन्त जीव
(प्राणी) हौें,
•व दुुःख स िरत हौें अाौर
•सुख का चाहत हौें; इसमलय
•अाचायव दुुःख का नाि करनवाली
तथा सुख का दनवाली शिक्षा दत
हौें 2
ज त्रिभुवन में जीव अनन्त, सुख चाहौें दुखतौें भयवन्त ।
तातौें दुखहारी सुखकार, कहौें सीख गुरु करुणा िार 2
20. ताहह सुना भवव मन मथर अान, जा चाहा अपना कल्यान ।
माह महामद वपया अनादद, भूल अापका भरमत वादद 3
• ताहह = गुरु की वह शिक्षा
• भवव = ह भव्यजीवा!
• मथर = स्स्थर
• अान = करक
• जा = यदद
• चाहा =चाहत हा
• अपना= अपना
• कल्यान = हहत
• माह महामद = माहरूपी
महामददरा
• वपया = पीकर
• अनादद = अनाददकाल स
• भूल = भूलकर
• अापका = अपन अात्मा का
• भरमत = भटक रहा हौ ।
• वादद = व्यथव
21. ताहह सुना भवव मन मथर अान, जा चाहा अपना कल्यान ।
माह महामद वपया अनादद, भूल अापका भरमत वादद 3
❖ ह भद्र (भव्य) प्राणणया! यदद अपना हहत चाहत हा
ता अपन मन का स्स्थर करक यह शिक्षा सुना ।
❖यह जीव अनाददकाल स माहमददरा स फूँ सकर,
❖अपनी अात्मा क स्वरूप का भूलकर
❖चाराें गत्रतयाें में जन्म-मरण िारण करक भटक
रहा हौ 3
22. भव्य
त्रनकट भव्य
िीघ्र ही
माक्ष प्राि
करगा
दूर भव्य
कु छ समय
बाद माक्ष
प्राि करगा
दूरान्दूर भव्य
याग्यता हान
पर भी जा
माक्ष नहीें प्राि
करगा
जा सम्यग्दिवन प्राि करन की
याग्यता रखता हौ