3. ग्रंथ प्रारंभ करने के पूर्व जानने याेग्य ६ बातें:
• तत्त्र्ाथवसूत्रग्रंथ का नाम
• आाचायव उमास्र्ामीग्रंथ के रचययता
• आरहंत देर् काेमंगलाचरण में ककसे नमस्कार ककया गया है:
• १० आध्याय, ३५७ सूत्रग्रंथ का प्रमाण
• भव्य जीर्ाें के ननममत्तननममत्त
• माेक्ष प्रानि हेतुहेतु
4. मंगलाचरण करने के कारण
1. ग्रंथ की ननकर्वघ्न समानि के मलये
2. शिष्टाचार के पालन के मलए
3. नास्स्तकता का पररहार के मलए
4. पुण्य की प्रानि के मलये
5. उपकार का स्मरण करने के मलये
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5. सूत्र आथावत क्या?
☸सूत्र = धागा , संके त, साधक
☸व्याकरण के आनुसार जाे कम से कम िबदाें में पूणव आथव
बता दे उसे सूत्र कहते हैं ।
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13. िबद
दिवन
ञान
चाररत्र
सम्यक िबद पहले रखने का कारण
पदाथाेों के यथाथव ञानमूलक श्रद्धान का
संग्रह करने के मलए
संिय, कर्पयवय आाैर आनध्यर्साय ञानाें का
ननराकरण करने के मलए
आञानपूर्वक आाचरण का ननराकरण करने
के मलए
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14. इन तीनाें के क्रम का कारण
☸दिवन आाैर ञान साथ में उत्पन्न हाेने पर भी दिवन पूज्य
हाेने से पहले रखा है |
☸चाररत्र के पहले ञान रखा है क्याेंकक चाररत्र ञानपूर्वक
हाेता है |
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15. तीनाें की एकता
☸सूत्र में मागव: िबद एकर्चन काे बताने के मलए ककया है |
☸जजससे प्रत्येक में माेक्षमागव है इस बात का ननराकरण हाे
जाता है | इससे 7 प्रकार के ममथ्यामागव का ननषेध हाे
जाता है |
☸ये तीनाें से ममलकर माेक्षमागव हाेता है |
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19. तत + त्र् = र्ह + भार्
र्स्तु का सच्चा स्र्रूप
जाे र्स्तु जैसी है उसका जाे भार्
तत्त्र् ककसे कहते हैं?
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20. आथव ककसे कहते हैं?
•जाे ननश्चय ककया जाता है
तत्त्र्ाथव आथावत
•तत्त्र् के द्वारा जाे ननश्चय ककया जाता है र्ह तत्त्र्ाथव है
तत्त्र्ाथव का श्रद्धान सम्यग्दिवन है
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21. दिवन िबद का आथव देखना हाेता है, श्रद्धान रूप
आथव कै से कर मलया ?
धातु के आनेक आथव हाेते हैं | यहााँ माेक्षमागव का
प्रकरण हाेने से दिवन िबद का आथव श्रद्धान मलया है
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22. मात्र आथव का श्रद्धान भी माेक्षमागव हाे सकता है क्या ?
मात्र तत्त्र् का श्रद्धान भी माेक्षमागव हाे सकता है क्या ?
सर्व दाेषाें काे दूर करने के हेतु तत्त्र्ाथव कहा है |
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23. इसे समझना क्याें आार्श्यक है?
क्याेंकक ७ तत्त्र्ाें के
सही श्रद्धान से ही
सम्यग्दिवन
हाेता है
तत्त्वार्थश्रद्धानं सम्यग्दर्शनथन॥
24. इन ७ तत्त्र्ाें के सत्य
श्रद्धान से हम ग्यारंटी से
सुखी हाेंगे
आाैर उनके सत्य श्रद्धान
कबना हम ग्यारंटी से
दुखी ही रहेंगें
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25. १.
सच्चे देर्, िास्त्र गुरु का श्रद्धान
२.
सात तत्त्र्ाें का यथाथव श्रद्धान
३.
आापा-पर का श्रद्धान
४.
स्र्ानुभर्
स
म्य
ग्द
िव
न
के
ल
क्ष
ण
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26. प्रथमानुयाेग,चरणानु
याेग के आनुसार
सच्चे देर्, िास्त्र
गुरु का श्रद्धान.
२५ दाेषाें से
रहहत, ८ आंग
सहहत
करणानुयाेग के
आनुसार
दिवन माेहनीय र्
आनंतानुबंधी के क्षय,
उपिम या
क्षयाेपिम से आात्मा
की जाे ननमवल
पररणनत है
द्रव्यानुयाेग के
आनुसार
सात
तत्त्र्ाें का
यथाथव
श्रद्धान
सम्यग्दिवन का स्र्रुप ४ आनुयाेगाें में
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32. जाे सम्यग्दिवन र्तवमान में
कबना उपदेि के हाेता है
उसे ननसगवज सम्यग्दिवन
कहते हैं
उपदेि पूर्वक हाेता है
उसे आधधगमज सम्यग्दिवन
कहते हैं
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43. द्रव्य तत्त्र्
का आाना
का आात्मा से संबंध हाेना
का आाना रुकना
का एकदेि स्खरना
का सम्पूणव नाि
- आास्रर्
- बन्ध
- संर्र
- ननजवरा
- माेक्ष
कमाेों
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44. का बने रहना
उत्पत्तत्त
र्ृद्धी
पूणवता
िुभ-आिुभ भार्ाें
िुद्ध भार्ाें की
की उत्पत्तत्त
भार् तत्त्र्
- आास्रर्
- बन्ध
- संर्र
- ननजवरा
- माेक्ष
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45. इनमें पुण्य–पाप का ग्रहण क्याें नहीं ककया ?
☸क्याेंकक आास्रर् – बंध में उनका आंतभावर् हाे जाता है |
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46. आास्रर्
भार्ास्रर्
जजन माेह राग द्वेष भार्ाें के
ननममत्त से ञानार्रणादद कमव
आाते हैं, उन माेह राग द्वेष
भार्ाें काे भार्ास्रर् कहते है
द्रव्यास्रर्
भार्ास्त्रर् के ननममत्त से
ञानार्रणादद कमाेों का
स्र्यं आाना द्रव्यास्रर् है
47. भार् बंध
आात्मा के जजन पररणामाें के
ननममत्त से कमव आात्मा से
संबंधरूप हाे जाते हैं, उन
माेह-राग-द्वेष, पुण्य-पाप आादद
कर्भार् भार्ाें काे भार् बंध
कहते हैं
द्रव्य बंध
उसके ननममत्त से पुदगल
का स्र्यं कमवरूप बंधना
द्रव्य बंध है
बंध
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48. आात्मा के जजन पररणामाें के ननममत्त
से नर्ीन कमव आाना रुकते हैं, उन
पररणामाें काे भार्संर्र कहते हैं
तदनुसार नर्ीन कमाेों का
आाना स्र्यं स्र्तः रुक
जाना द्रव्यसंर्र है ।
संवर
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49. निर्जरा
आात्मा के जजन पररणामाें के
ननममत्त से बंधे हुए कमव
एकदेि स्खरते हैं, उन
पररणामाें काे भार्ननजवरा
कहते हैं
आात्मा से कमाेों का
एकदेि छूट जाना द्रव्य-
ननजवरा है ।
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52. ७ तत्त्र्ाें के क्रम का कारण
☸सब फल जीर् काे है, आत: सर्वप्रथम जीर् कहा|
☸जीर् का उपकारी आजीर् है, आत: आजीर् कहा|
☸आास्रर्, जीर् आाैर आजीर् दाेनाें काे कर्षय करता है, आत: आास्रर्
कहा|
☸बंध आास्रर्-पूर्वक हाेता है आत: बंध कहा|
☸संर्ृत जीर् के आास्रर्-बंध नहीं हाेता है, आत: संर्र कहा |
☸संर्र के हाेने पर ननजवरा हाेती है, आत: ननजवरा कही|
☸पूणव ननजवरा हाेने पर माेक्ष हाेता है, आत: आंत में माेक्ष कहा |
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53. द्रव्य हैं, गुण हैं कक पयावयें हैं?
☸जीर्, आजीर् तत्त्र् - द्रव्य हैं
☸भार् आास्त्रर्, बंध, संर्र, ननजवरा, माेक्ष ये जीर् द्रव्य की
पयावयें हैं
☸द्रव्य आास्त्रर्, बंध, संर्र, ननजवरा, माेक्ष ये आजीर् द्रव्य की
पयावयें हैं
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55. ननक्षेप
☸लाेक आथर्ा आागम में िबद व्यर्हार करने की
पद्धनत
☸प्रयाेजन
☸आप्रकृ त का ननराकरण करने के मलये
☸प्रकृ त का प्ररूपण करने के मलये
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56. ननक्षेप (लाेक आथर्ा आागम में
िबद व्यर्हार करने की पद्धनत
क
क
क
क
क
क
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58. स्थापना
तदाकार
उसी रुप, आाकृ नत र्ाले
पदाथव में "यह र्ही है"
एसी स्थापना करना
आतदाकार
मभन्न रुप, आाकृ नत र्ाले
पदाथव में "यह र्ही है"
एसी स्थापना करना
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59. जीर् के 4 ननक्षेप
• जीर्न गुण की आपेक्षा न रखकर ककसी का नाम
मात्र जीर् रखना
नाम जीर्
• आक्ष आादद में ‘यह जीर् है’ एेसा स्थाकपत करनास्थापना जीर्
• जीर्न सामान्य की आपेक्षा यह नहीं बनता परन्तु
मनुष्य आादद जीर् की आपेक्षा यह बन जाता है
द्रव्य जीर्
• जीर्न पयावय से सहहत आात्मा भार् जीर् हैभार् जीर्
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60. इसी प्रकार आजीर् आादद 7 तत्त्र् पर
लगाना
सम्यग्दिवन-ञान-चाररत्र पर लगाना
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61. सम्यग्दिवन के 4 ननक्षेप
• सम्यग्दिवन गुण की आपेक्षा न रखकर ककसी का नाम
सम्यग्दिवन रखना
नाम सम्यग्दिवन
• आक्ष आादद में ‘यह सम्यग्दिवन है’ एेसा स्थाकपत करनास्थापना सम्यग्दिवन
• जजसे र्तवमान में सम्यग्दिवन नहीं है, परन्तु भकर्ष्य में
हाेगा उस जीर् काे द्रव्य सम्यग्दिवन कहते हैं
द्रव्य सम्यग्दिवन
• तत्त्र्ाथव श्रद्धान पयावय से पररणत श्रद्धा गुण (या आात्मा)
भार् सम्यग्दिवन है
भार् सम्यग्दिवन
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63. प्रमाण
सच्चा ञान
पदाथव के सर्वदेि काे
ग्रहण करता है
नय
श्रुतञान का आंि
र्स्तु के एकदेि ग्रहण
करता है
पदाथाेों काे जानने के उपाय
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64. प्रमाण
जाे जानता है कतृव साधन
जजसके द्वारा जाना जाता है करण साधन
जानन मात्र भार् साधन
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65. ☸आथावत ञान ही प्रमाण है
☸इस्न्द्रयााँ, इस्न्द्रयाें का व्यापार, समन्नकषव, प्रकाि-पुस्तक
आादद प्रमाण नहीं हैं |
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66. सम्यक जानना आथावत संिय कर्पयवय
आनध्यर्साय रहहत जानना
• कर्रुद्ध आनेक काेहट काे स्पिव करने र्ाले ञान
काे संिय कहते हैं
संिय
• र्स्तु के कर्रुद्ध ञान काे कर्पयवय कहते हैंकर्पयवय
• कु छ है इस प्रकार के ञान सहहत जानने की
जजञासा का भार् आनध्यर्साय है
आनध्यर्साय
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68. प्रमाण का कर्षय
☸र्स्तु सामान्य - कर्िेषात्मक है|
☸आथावत द्रव्य-पयावय स्र्रूपी पदाथव है|
☸जजसमें सामान्य – कर्िेष दाेनाें ही आंिाें का युगपत
ञान हाेता हाे
☸र्ह प्रमाण ञान है |
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69. नय
र्स्तु काे प्रमाण से जानकर
ककसी एक आर्स्था द्वारा
पदाथव का ननश्चय करना
नय है |
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70. नय का कर्षय
☸र्स्तु सामान्य - कर्िेषात्मक है|
☸आथावत द्रव्य-पयावय स्र्रूपी पदाथव है|
☸जजसमें र्स्तु के
☸सामान्य का आथर्ा कर्िेष आंि का
☸ञान हाेता हाे
☸र्ह नय ञान है |
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71. ☸सापेक्ष नय ही सम्यक हाेते हैं |
☸ननरपेक्ष नय दुनवय हाेते हैं |
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72. नय ककसमें लगते हैं?
ञान में
र्ाणी में
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73. नय ककसमें नहीं लगते हैं?
र्स्तु में
कक्रया में
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74. ☸जैन दिवन में ही नय का व्याख्यान है |
☸आन्य दिवनाें में मात्र प्रमाण की चचाव है |
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75. प्र.- नय काे पहले रखना चाहहए था क्याेंकक उसमें कम आक्षर हैं?
उ.- प्रमाण श्रेष्ठ है, आत: पहले रखा है |
प्र.- प्रमाण श्रेष्ठ क्याें है?
उ.- क्याेंकक प्रमाण से ही नय की उत्पत्तत्त हाेती है |
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76. प्रमाण-नय के द्वारा क्या जानना है?
सम्यग्दिवन -
ञान - चाररत्र एर्ं
जीर्ादद 7 तत्त्र्
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77. प्रमाण द्वारा रत्नत्रय
ननज िुद्धात्मरूमच / तत्त्र्ाथव श्रद्धान से पररणत आात्मा सम्यग्दिवन है |
समीचीन ञान से पररणत आात्मा सम्यग्ञान है |
ननश्चल ननजात्म पररणनत से पररणत आात्मा सम्यग्चाररत्र है |
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78. नय द्वारा सम्यग्दिवन
कमव की आपेक्षा दिवन माेह के क्षय, उपिम या
क्षयाेपिम से हाेने र्ाला भार् सम्यग्दिवन है |
व्यर्हार नय से देर् – िास्त्र – गुरु का श्रद्धान
सम्यग्दिवन है |
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79. जीर् प्रमाण द्वारा
☸जीर् पदाथव ञान दिवन स्र्भार्ी है एर्ं मनत ञान आादद
उसकी आर्स्था है |
☸जीर् ननत्य आाैर आननत्य है
☸जीर् आनंत धमावत्मक पदाथव है
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80. नय द्वारा जीर्
☸स्र्भार् की आपेक्षा ननत्य है |
☸जीर् पयावय की आपेक्षा आननत्य है |
☸एेसे ही आजीर्, आास्रर् आादद तत्त्र् काे भी जानना
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83. सम्यक दिवन क्या है?
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जीर्ादद पदाथाेों का
श्रद्धान सम्यग्दिवन है
84. सम्यग्दिवन ककसके हाेता है ?
☸सामान्य आपेक्षा -जीर् काे हाेता है
☸कर्िेष आपेक्षा- नारकी नतयोंच आादद गनतयाें में हाेता है |
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85. सम्यग्दिवन का साधन (कारण) क्या है ?
साधन
बाह्य
धमव
श्रर्ण
जानत
स्मरण
जजनकबंब
दिवन
र्ेदना
देर्
ररद्धद्ध
दिवन
आभ्यंतर
दिवन
माेहनीय
का क्षय
उपिम
क्षयाेप
िम
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86. सम्यग्दिवन का आधधकरण/ आाधार क्या है ?
आधधकरण
बाह्य
लाेक का क्षेत्र जहां सम्यग्दिवन पाया
जाता है
लाेक नाली
आंतरंग
जजस पदाथव में सम्यग्दिवन पाया जाता
है
जीर् स्र्यं
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87. सम्यग्दिवन की स्स्थनत ककतनी है याने ककतने काल
तक रहता है ?
स्स्थनत
जघन्य आंतमुवहतव
आाैपिममक सम्यक्त्व की
आपेक्षा
उत्कृ ष्ट
संसारी काे
66 सागर
क्षायाेपिममक सम्यक्त्व
आपेक्षा
मुक्त काे
सादद आनंत
क्षाययक सम्यक्त्व
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88. सम्यक दिवन के ककतने भेद हैं ?
सामान्य से - 1
ननसगवज आाैर आधधगमज आपेक्षा - 2
आाैपिममक, क्षाययक, क्षायाेपिममक की आपेक्षा - 3
िबदाें की आपेक्षा - संख्यात
श्रद्धान करने र्ालाें की आपेक्षा - आसंख्यात
श्रद्धेय पदाथाेों की आपेक्षा - आनंत प्रकार हैं
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89. Presentation Developed by: Smt Sarika Chabra
इसी प्रकार सम्यग्दिवन ञान
चाररत्र एर्ं जीर् आादद तत्र्
पर भी लगाना चाहहए
90. उदाहरण - सम्यग्दिवन
• जीर्ादद पदाथाेों का श्रद्धान सम्यग्दिवन हैननदेवि
• सामान्य से जीर् , कर्िेष से गनत आादद मेंस्र्ामी
• बाह्य- दिवन माेहनीय कमव का क्षय, उपिम या क्षयाेपिम आादद
• आभ्यंतर- जानतस्मरण आादद
साधन
• बाह्य- १४ राजु लम्बी त्रस नाड़ी
• आभ्यंतर- सम्यग्दिवन का जाे स्र्ामी है
आधधकरण
• जघन्य आन्तमुवहतव एर्ं उत्कृ ष्ट स्स्थनत सादद आनन्त हैस्स्थनत
• सम्यग्दिवन १, २, ३, संख्यात, आसंख्यात एर्ं आनन्त प्रकार का
हाेता है
कर्धान
92. कर्स्तार रुमच शिष्याें के मलये
पदाथाेों
काे
जानने के
उपाय
सत
संख्या
क्षेत्र
स्पिवन
काल
आन्तर
भार्
आल्पबहुत्र्
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93. सत क्या है?
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सत आथावत जीर् का आस्स्तत्र्,
जीर् का existance
जैसे - जीर् है, पुद्गल है |
95. कर्धान आाैर संख्या में क्या आंतर है?
☸कर्धान के द्वारा प्रकाराें काे यगनती की जाती है
आाैर संख्या के द्वारा पदाथाेों की यगनती की
जाती है |
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96. क्षेत्र
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पदाथव के र्तवमान काल का
ननर्ासस्थान क्षेत्र कहलाता है
जैसे – ममथ्यादृधष्ट जीर् का क्षेत्र – 3 लाेक,
नारकी – लाेक का आसंख्यातार्ा भाग
97. स्पिवन
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तीन काल में र्स्तु ने ककतने क्षेत्र काे स्पिव
ककया है र्ह स्थान स्पिवन कहलाता है
जैसे – ममथ्यादृधष्ट – तीन लाेक, नारकी – लाेक का
आसंख्यातार्ा भाग
98. क्षेत्र आाैर स्पिवन में क्या आंतर है?
क्षेत्र
☸इसमे पदाथव के र्तवमान
क्षेत्र के स्पिवन का
आमभप्राय है
☸जैसे – र्तवमान जल के
द्वारा र्तवमान घट के क्षेत्र
का स्पिवन हाेता है |
स्पिवन
☸इसमे नत्रकालगाेचर आथावत
आतीत – आनागत क्षेत्र के
स्पिवन का आमभप्राय है
☸जैसे – जल का नत्रकाल
गाेचर क्षेत्र – तीन लाेक
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99. काल
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ककसी क्षेत्र में स्स्थत र्स्तु के समय की
मयावदा का ननश्चय करना काल है
जैसे – सामान्य से - ममथ्यादृधष्ट जीर् का काल – सब काल (नाना जीर्
आपेक्षा)
कर्िेष से - नरक में ममथ्यादृधष्ट का काल (एक जीर् आपेक्षा)
जघन्य – आंतमुवहतव, उत्कृ ष्ट 1,3,7, 10, 17, 22, 33 सागर
100. आंतर
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जब कर्र्क्षक्षत गुण गुणान्तररूप से संक्रममत हाे
जाता है आाैर पुन: उसकी प्रानि हाे जाती है ताे
मध्य के काल काे कर्रह काल कहते हैं
जैसे – सामान्य से - ममथ्यादृधष्ट जीर् का आंतर – नहीं (नाना जीर् आपेक्षा),
कर्िेष से - नरक में ममथ्यादृधष्ट का आंतर (एक जीर् आपेक्षा)
जघन्य – आंतमुवहतव, उत्कृ ष्ट कु छ कम – (1,3,7, 10, 17, 22, 33)
सागर
101. भार्
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आाैपिममकादद पररणामाें काे भार् कहते हैं
जैसे ममथ्यादिवन यह आाैदययक भार् है, सम्यग्दिवन यह
आाैपिममक, क्षाययक आाैर क्षायाेपिममक भार् है
102. आल्पबहुत्र्
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एक दूसरे की आपेक्षा न्यूनाधधक का ञान करने
काे आल्पबहुत्र् कहते हैं
जैसे – नतयोंच सबसे ज्यादा, क्षसद्ध, देर्, नारकी आाैर
मनुष्य सबसे कम