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वेद, उपनिषद, आगम, पुराण
VED, UPNISHAD, AGAM, PURAN
GMM – QCI Training
Ghatkopar Center
• श्रुति - यह ग्रंथ अपौरुषेय माने जािे हैं। इसमें वेद की चार
संतहिाओं, ब्राह्मणों, आरण्यकों, उपतनषदों, वेदांग, सूत्र आतद
ग्रन्थों की गणना की जािी है। आगम ग्रन्थ भी श्रुति-श्रेणी में माने
जािे हैं।
• स्मृनि - यह ग्रंथ ऋतष प्रणीि माने जािे हैं। तजन महतषियों ने श्रुति
के मन्त्रों को प्राप्त तकया है, उन्हींने अपनी स्मृति की सहायिा से
तजन धमिशास्त्रों के ग्रन्थों की रचना की है, वे `स्मृति ग्रन्थ´ कहे
गये हैं। इनमें समाज की धमिमयािदा - वणिधमि, आश्रम-धमि,
राज-धमि, साधारण धमि, दैतनक कृत्य, स्त्री-पुरूष का कििव्य
आतद का तनरूपण तकया है। इस श्रेणी में 18 स्मृतियााँ, 18 पुराण
िथा रामायण व महाभारि ये दो इतिहास भी माने जािे हैं।
• 'वेद' शब्द संस्कृि भाषा के तवद् वेद शब्द बना है, इस िरह वेद
का शातब्दक अथि 'ज्ञान के ग्रंथ' है, इसी धािु से 'तवतदि' (जाना
हुआ), 'तवद्या'(ज्ञान), 'तवद्वान' (ज्ञानी) जैसे शब्द आए हैं।
• ऋग्वेद - सबसे प्राचीन वेद - ज्ञान हेिु लगभग १० हजार मंत्र।
इसमें देविाओंके गुणों का वणिन और प्रकाश के तलए मन्त्र हैं -
सभी कतविा-छन्द रूप में।
• सामवेद - उपासना में गाने के तलये संगीिमय मन्त्र हैं - १९७५
मंत्र।
• यजुवेद - इसमें कायि (तिया), यज्ञ (समपिण) की प्रतिया के तलये
गद्यात्मक मन्त्र हैं- ३७५० मंत्र।
• अथविवेद-इसमें गुण, धमि,आरोग्य,यज्ञ के तलये कतविामयी मन्त्र
हैं - ७२६० मंत्र। इसमे जादु-टोना की, मारण, मोहन, स्िम्भन
आतद से सम्बद्ध मन्त्र भी है जो इससे पूवि के वेदत्रयी मे नही हैं।
• वेदके समग्र भागको मन्त्रसंतहिा, ब्राह्मण, आरण्यक, उपतनषद
के रुपमें भी जाना जािा है। इनमे प्रयुक्त भाषा वैतदक संस्कृि
कहलािी है जो लौतकक संस्कृि से कुछ अलग है।
अन्य नाम
सुनने से फैलने और पीढी-दर-पीढी याद रखने के कारण वा सृतिकिाि
ब्रहमाजीने भी अपौरुषेय वाणीके रुपमे प्राप्त करने के कारण श्रुति,
स्विः प्रमाण के कारण आम्नाय, पुरुष(जीव) तभन्न ईश्वरकृि होने से
अपौरुषेय इत्यातद नाम वेदों के हैं।
वेद के चार खंड
1. संतहिा मन्त्रभाग- यज्ञानुष्ठान मे प्रयुक्त वा तवतनयुक्त भाग)
2. ब्राह्मण-ग्रन्थ - यज्ञानुष्ठान मे प्रयोगपरक मन्त्र का
व्याख्यायुक्त गद्यभाग में कमिकाण्ड की तववेचना)
3. आरण्यक - यज्ञानुष्ठानके आध्यात्मपरक तववेचनायुक्त भाग
अथिके पीछे के उद्देश्य की तववेचना)
4. उपतनषद - ब्रह्म माया वापरमेश्वर, अतवद्या जीवात्मा और
जगि् के स्वभाव और सम्बन्ध का बहुि ही दाशितनक और
ज्ञानपूविक वणिनवाला भाग | जैसा की कृष्णयजुवेदमे
मन्त्रखण्डमे ही ब्राह्मण है। शुक्लयजुवेदे मन्त्रभागमे ही
ईसावास्योपतनषद है।
वेद के चार खंड
उपवेद
आयुवेद, धनुवेद, गान्धविवेद िथा स्थापत्यवेद- ये िमशः चारों
वेदों के उपवेद कात्यायन ने बिलाये हैं।
1. स्थापत्यवेद - स्थापत्यकला के तवषय, तजसे वास्िु शास्त्र या
वास्िुकला भी कहा जािा है, इसके अन्िगिि आिा है।
2. धनुवेद - युद्ध कला का तववरण। इसके ग्रंथ तवलुप्त प्राय हैं।
3. गन्धवेद - गायन कला।
4. आयुवेद - वैतदक ज्ञान पर आधाररि स्वास् य तवज्ञान।
वेदांग
निक्षा - इसमें वेद मन्त्रों के उच्चारण करने की तवतध बिाई गई है।
कल्प - वेदों के तकस मन्त्र का प्रयोग तकस कमि में करना चातहये, इसका
कथन तकया गया है। इसकी चार शाखायें हैं- श्रौिसूत्र, गृह्यसूत्र
धमिसूत्र और शुल्बसूत्र।
व्याकरण - इससे प्रकृति और प्रत्यय आतद के योग से शब्दों की तसतद्ध और
उदात्त, अनुदात्त िथा स्वररि स्वरों की तस्थति का बोध होिा है।
निरूक्त - वेदों में तजन शब्दों का प्रयोग तजन-तजन अथों में तकया गया है,
उनके उन-उन अथों का तनश्चयात्मक रूप से उल्लेख तनरूक्त में
तकया गया है।
ज्योनिष - इससे वैतदक यज्ञों और अनुष्ठानों का समय ज्ञाि होिा है। यहााँ
ज्योतिष से मिलब `वेदांग ज्योतिष´ से है।
छन्द - वेदों में प्रयुक्त गायत्री, उतष्णक आतद छन्दों की रचना का ज्ञान
छन्दशास्त्र से होिा है।
उपनिषद की निक्षा
उप + तन + षद (up - nearby, ni - devotedly, shad - seating)
• गोपनीय, रहस्य, रहस्योद्घाटन,
• वेदांि (4th part), समातप्त, लक्ष्य, महत्ता, वैतदक तश्षणण की पूतिि
• १०८ से २०० की संख्या में,
• अल्पशब्दक, अथि पूणि , सारगतभिि, संत्षणप्त सूत्रे
• e.g. िि् त्वम् अतस
• पूविजो की अनमोल देन, भारिीय दशिन का मूलस्त्रोि
• संवाद के रूप में, काव्यमय, पद्यात्मक,
• रूपकों और दृिांि के द्वारा सत्य और ि यों को समजाया गया है,
प्रिीकात्मक
• आत्यंतिक संकुतचि
• गुरु (तजवंि) की जरूरि उसे समजने के तलए
मुख्य उपनिषदे
ईश-के न-कठ-प्रश्न-माण्डूक्य-िैतत्तरर:।
ऐिरेयश्व छान्दोग्यं बृहदारण्यकं िथा।।
• अथािि ईश, के न, कठ, प्रश्न, माण्डुक्य, िैतिरीय,
ऐतिररय , छान्दोग्य, बृहदारण्यक, इस प्रकार दस मुख्य
उपतनषद है
• सभी पूवि-बौतद्धक
• अलग अलग ऋतष मुतनओ ने रचना की है, अलग
अलग काल में, अलग अलग प्रदेश में
• उस सब उपतनषद के अथि समजने और उनकी
असंगति दूर करने के तलए, ब्रह्मसूत्र की रचना की गई
• ब्रह्मसूत्र के ऊपर, अद्वैि वेदांि, तवतशिअद्वैि वेदांि
और द्वैि वेदांि ये सभीने तटका तलखी है
उपनिषद के नवचार
1. आत्मन् और ब्राह्मण की संकल्पना
• परम सत्य
• आत्मा – व्यतक्त चैिन्य
• ब्राह्मण – तदव्य चैिन्य, परम आत्मा, साविभौतमक चेिना
• अंििोगत्वा – दोनों एक ही है
2. अद्वैिवाद की कल्पना
• वास्ितवकिा एक ही है
• तदखे तकिना भी, वह तसफि कल्पना है
3. माया और अतवद्या की अवधारणाएाँ
• परमात्मा की रहस्यपूणि शतक्त है तजसके फलस्वरूप नाम और रूप का
अतस्ित्व पैदा हुआ
• माया की वजह से ही ब्राह्मण एक होने के बावजूद अनेक तदखाई देिा है
• मनुष्य के तलए वही अतवद्या है
• माया और अतवद्या एक ही तसक्के की दो बाजु है
4. भूि – मूल ित्व या आधारभूि ित्व
• स्थूल भूि – पांच ित्त्व – पंच महाभूि
• पृ वी, आप, आकाश, अतग्न, वायु
• पंच इतन्िय – पांच िन्मात्रा – गंध, रस, शब्द, स्पशि
और रूप से सम्बंतधि है
5. पंच कोष का तसद्धांि
• इसका उल्लेख िैतत्तरीय उपतनषद में तमलिा है
• पांच परि या स्िर या कोष जो पुरुष को आवृि तकये है
• बाहरीिम – स्थूल , अंिरिम – सुक्ष्म
• अन्न, प्राण, मनो, तवज्ञान, आनंद
• व्यतक्तमत्व तवकास जब भीिर की ओर यात्रा करिे है
6. परा और अपरा तवद्या
• मुण्डक उपतनषद के अनुसार तवद्या दो प्रकार की होिी है
• परा – उच्च, अपरा – तनम्न
• परा यातन की ब्राह्मण का ज्ञान (श्रेष्ठ ज्ञान)
• अपरा यातन की अनुभवजन्य चीजों का ज्ञान
• परा – पूणि, अपरा – खतण्डि, अपूणि ज्ञान
• अपरा तवद्या के अंिगिि वेद और वेदांग का ज्ञान भी
समातवि है
• उपतनषद का आग्रह परा तवद्या के उपाजिन पर ही है
7. स्व की चार अवस्था
• जाग्रति (वृतत्तयां चलिी रहिी है )
• स्वप्न (वृतत्तयां चलिी रहिी है )
• सुषुतप्त
• िुररय
8. आत्मबोध
• दुःख और पीड़ा का कारण - > अतवद्या, गलि तवद्या
a) श्रवण (तजवंि अविार द्वारा)
b) मनन
c) तनतदध्यासन (उच्च स्िरीय ध्यान)
9. संसार
• जीवन और मृत्यु के फेरे – कारण कमि के तनयम
10. उपतनषतदक ईश्वर
• अंियािमीअमृि, पूणि, अतवनाशी, सूत्र, तजव/ तनतजिव,
श्रेष्ठ, सविमान्य, ईसाई संकल्पना,
आगम
वैतदक - (वैतदक धमि में उपास्य देविा की तभन्निा के
कारण इसके िीन प्रकार है) अनेक आगम
वेदमूलक हैं,
• शैव
• वैष्णव
• शाक्त
अवैतदक
• बौद्ध (पााँच मुख्य आगम)
• जैन (46 आगम)
• श्रुति
• परम्परा से आये तहन्दू धमि के महत्वपूणि ग्रन्थ हैं।
• सामान्यिया आगम िंत्र के तलए और तनगम वेदों के तलए प्रयुक्त होिा है।
• भारिीय संस्कृति का आधार तजस प्रकार तनगम (=वेद) है, उसी प्रकार
आगम (=िंत्र) भी है।
• दोनों स्विंत्र होिे हुए भी एक दूसरे के पोषक हैं।
• तजस िरह वेद ईश्वर की वाणी माने जािे हैं, उसी िरह िंत्र भी भगवान
तवष्णु, तशव, देवी की वाणी हैं और उन्हीं देविाओंके नाम से वे जाने भी
जािे हैं।
• तनगम (वेद) कमि, ज्ञान िथा उपासना का स्वरूप बिलािा है िथा आगम
इनके उपायभूि साधनों का वणिन करिा है।
• मागिदशिन का प्राथतमक स्त्रोि
• िंत्र-साधनाओंका लक्ष्य बड़ा तवस्िृि है। वशीकरण, मारण, मोहन,
उच्चाटन, दृतिबंध, परकाया प्रवेश, सपितवद्या, प्रेितवद्या, अदृश्य वस्िुओं
को देखना, भतवष्य ज्ञान, संिान, सुयोग, आकषिण, मोहन मंत्र, घाि-
प्रतिघाि
शैव आगम – तशव ही परम सत्य (पाशुपि, शैवतसद्धांि, तत्रक
आतद)
वैष्णव आगम – तवष्णु ही परम सत्य (पंचरात्र िथा वैखानस
(ब्रह्मा से सम्बंतधि) आगम)
शाक्त आगम (िंत्र) – शतक्त तह परम सत्य | शतक्त है तशव की
सहचारी है और उसे जगि जननी भी कहा जािा है
आगमों के अंिगिि चार प्रकार के तवचारों या उपयोगों को
सतम्मतलि तकया गया हैं।
१. ज्ञाि, आगम दाशितनक और आध्यातत्मक ज्ञान के अपार
भंडार हैं।
२. योग, अपने स्थूल शारीररक संरचना और मानतसक
अनुशासन को स्वस्थ रखने हेिु।
३. निया, तभन्न-तभन्न स्वरूप िथा गुणों वाले देवी-
देविाओं से सम्बंतधि पूजा तवधान, मंतदर बनाने की
तवतध।
४. चयाा, धातमिक संस्कार, व्रि िथा उत्सवों में तकये जाने
वाले कृत्यों का वणिन।
पुराण
तहंदुओंके धमिसंबंधी आख्यानग्रंथ हैं तजनमें सृति, लय, प्राचीन
ऋतषयों, मुतनयों और राजाओंके वृत्ताि आतद हैं।
वेद में तनतहि ज्ञान के अत्यन्ि गूढ होने के कारण आम आदतमयों के
द्वारा उन्हें समझना बहुि कतठन था, इसतलये रोचक कथाओंके माध्यम
से वेद के ज्ञान की जानकारी देने की प्रथा चली। इन्हीं कथाओंके
संकलन को पुराण कहा जािा हैं।
पुराण शब्द ‘पुरा’ एवं ‘अण’ शब्दों की संतध से बना है, तजसका
शातब्दक अथि -‘पुराना’ अथवा ‘प्राचीन’ होिा है । ‘पुरा’ शब्द का अथि
है - अनागि एवं अिीि ।
‘अण’ शब्द का अथि होिा है -कहना या बिलाना अथािि् जो पुरािन
अथवा अिीि के ि यों, तसद्धांिों, तश्षणाओं, नीतियों, तनयमों और
घटनाओंका तववरण प्रस्िुि करे।
• पुराण तकसके बनाए हैं ? तशवपुराण के अंिगिि रेवा माहात्म्य में तलखा
है तक अठारहों पुराणों के वक्ता मत्यविीसुि व्यास हैं।
• मत्स्यपुराण में स्पि तलखा है तक पहले पुराण एक ही था, उसी से १८
पुराण हुए (५३.४)
• ब्रह्मांड पुराण में तलखा है तक वेदव्यास ने एक पुराणसंतहिा का संकलन
तकया था।
• बहुि से पुराण िो असल पुराणों के न तमलने पर तफर से नए रचे गए हैं,
कुछ में बहुि सी बािें जोड़ दी गई हैं।
• पुराणों का उद्देश्य पुराने वृत्तों का संग्रह करना, कुछ प्राचीन और कुछ
कतल्पि कथाओंद्वारा उपदेश देना, देवमतहमा िथा िीथिमतहमा के
वणिन द्वारा जनसाधारण में धमिबुतद्ध तस्थर रखना था।
• पुराणों को मनुष्य के भूि, भतवष्य, वििमान का दपिण भी कहा जा
सकिा है ।
• वेदों की जतटल भाषा में कही गई बािों को पुराणों में सरल भाषा में
समझाया गया हैं। पुराण-सातहत्य में अविारवाद को प्रतितष्ठि तकया
गया है।
हरर ॐ

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  • 1. वेद, उपनिषद, आगम, पुराण VED, UPNISHAD, AGAM, PURAN GMM – QCI Training Ghatkopar Center
  • 2. • श्रुति - यह ग्रंथ अपौरुषेय माने जािे हैं। इसमें वेद की चार संतहिाओं, ब्राह्मणों, आरण्यकों, उपतनषदों, वेदांग, सूत्र आतद ग्रन्थों की गणना की जािी है। आगम ग्रन्थ भी श्रुति-श्रेणी में माने जािे हैं। • स्मृनि - यह ग्रंथ ऋतष प्रणीि माने जािे हैं। तजन महतषियों ने श्रुति के मन्त्रों को प्राप्त तकया है, उन्हींने अपनी स्मृति की सहायिा से तजन धमिशास्त्रों के ग्रन्थों की रचना की है, वे `स्मृति ग्रन्थ´ कहे गये हैं। इनमें समाज की धमिमयािदा - वणिधमि, आश्रम-धमि, राज-धमि, साधारण धमि, दैतनक कृत्य, स्त्री-पुरूष का कििव्य आतद का तनरूपण तकया है। इस श्रेणी में 18 स्मृतियााँ, 18 पुराण िथा रामायण व महाभारि ये दो इतिहास भी माने जािे हैं।
  • 3. • 'वेद' शब्द संस्कृि भाषा के तवद् वेद शब्द बना है, इस िरह वेद का शातब्दक अथि 'ज्ञान के ग्रंथ' है, इसी धािु से 'तवतदि' (जाना हुआ), 'तवद्या'(ज्ञान), 'तवद्वान' (ज्ञानी) जैसे शब्द आए हैं। • ऋग्वेद - सबसे प्राचीन वेद - ज्ञान हेिु लगभग १० हजार मंत्र। इसमें देविाओंके गुणों का वणिन और प्रकाश के तलए मन्त्र हैं - सभी कतविा-छन्द रूप में। • सामवेद - उपासना में गाने के तलये संगीिमय मन्त्र हैं - १९७५ मंत्र। • यजुवेद - इसमें कायि (तिया), यज्ञ (समपिण) की प्रतिया के तलये गद्यात्मक मन्त्र हैं- ३७५० मंत्र। • अथविवेद-इसमें गुण, धमि,आरोग्य,यज्ञ के तलये कतविामयी मन्त्र हैं - ७२६० मंत्र। इसमे जादु-टोना की, मारण, मोहन, स्िम्भन आतद से सम्बद्ध मन्त्र भी है जो इससे पूवि के वेदत्रयी मे नही हैं।
  • 4. • वेदके समग्र भागको मन्त्रसंतहिा, ब्राह्मण, आरण्यक, उपतनषद के रुपमें भी जाना जािा है। इनमे प्रयुक्त भाषा वैतदक संस्कृि कहलािी है जो लौतकक संस्कृि से कुछ अलग है। अन्य नाम सुनने से फैलने और पीढी-दर-पीढी याद रखने के कारण वा सृतिकिाि ब्रहमाजीने भी अपौरुषेय वाणीके रुपमे प्राप्त करने के कारण श्रुति, स्विः प्रमाण के कारण आम्नाय, पुरुष(जीव) तभन्न ईश्वरकृि होने से अपौरुषेय इत्यातद नाम वेदों के हैं। वेद के चार खंड
  • 5. 1. संतहिा मन्त्रभाग- यज्ञानुष्ठान मे प्रयुक्त वा तवतनयुक्त भाग) 2. ब्राह्मण-ग्रन्थ - यज्ञानुष्ठान मे प्रयोगपरक मन्त्र का व्याख्यायुक्त गद्यभाग में कमिकाण्ड की तववेचना) 3. आरण्यक - यज्ञानुष्ठानके आध्यात्मपरक तववेचनायुक्त भाग अथिके पीछे के उद्देश्य की तववेचना) 4. उपतनषद - ब्रह्म माया वापरमेश्वर, अतवद्या जीवात्मा और जगि् के स्वभाव और सम्बन्ध का बहुि ही दाशितनक और ज्ञानपूविक वणिनवाला भाग | जैसा की कृष्णयजुवेदमे मन्त्रखण्डमे ही ब्राह्मण है। शुक्लयजुवेदे मन्त्रभागमे ही ईसावास्योपतनषद है। वेद के चार खंड
  • 6. उपवेद आयुवेद, धनुवेद, गान्धविवेद िथा स्थापत्यवेद- ये िमशः चारों वेदों के उपवेद कात्यायन ने बिलाये हैं। 1. स्थापत्यवेद - स्थापत्यकला के तवषय, तजसे वास्िु शास्त्र या वास्िुकला भी कहा जािा है, इसके अन्िगिि आिा है। 2. धनुवेद - युद्ध कला का तववरण। इसके ग्रंथ तवलुप्त प्राय हैं। 3. गन्धवेद - गायन कला। 4. आयुवेद - वैतदक ज्ञान पर आधाररि स्वास् य तवज्ञान।
  • 7. वेदांग निक्षा - इसमें वेद मन्त्रों के उच्चारण करने की तवतध बिाई गई है। कल्प - वेदों के तकस मन्त्र का प्रयोग तकस कमि में करना चातहये, इसका कथन तकया गया है। इसकी चार शाखायें हैं- श्रौिसूत्र, गृह्यसूत्र धमिसूत्र और शुल्बसूत्र। व्याकरण - इससे प्रकृति और प्रत्यय आतद के योग से शब्दों की तसतद्ध और उदात्त, अनुदात्त िथा स्वररि स्वरों की तस्थति का बोध होिा है। निरूक्त - वेदों में तजन शब्दों का प्रयोग तजन-तजन अथों में तकया गया है, उनके उन-उन अथों का तनश्चयात्मक रूप से उल्लेख तनरूक्त में तकया गया है। ज्योनिष - इससे वैतदक यज्ञों और अनुष्ठानों का समय ज्ञाि होिा है। यहााँ ज्योतिष से मिलब `वेदांग ज्योतिष´ से है। छन्द - वेदों में प्रयुक्त गायत्री, उतष्णक आतद छन्दों की रचना का ज्ञान छन्दशास्त्र से होिा है।
  • 8. उपनिषद की निक्षा उप + तन + षद (up - nearby, ni - devotedly, shad - seating) • गोपनीय, रहस्य, रहस्योद्घाटन, • वेदांि (4th part), समातप्त, लक्ष्य, महत्ता, वैतदक तश्षणण की पूतिि • १०८ से २०० की संख्या में, • अल्पशब्दक, अथि पूणि , सारगतभिि, संत्षणप्त सूत्रे • e.g. िि् त्वम् अतस • पूविजो की अनमोल देन, भारिीय दशिन का मूलस्त्रोि • संवाद के रूप में, काव्यमय, पद्यात्मक, • रूपकों और दृिांि के द्वारा सत्य और ि यों को समजाया गया है, प्रिीकात्मक • आत्यंतिक संकुतचि • गुरु (तजवंि) की जरूरि उसे समजने के तलए
  • 9. मुख्य उपनिषदे ईश-के न-कठ-प्रश्न-माण्डूक्य-िैतत्तरर:। ऐिरेयश्व छान्दोग्यं बृहदारण्यकं िथा।। • अथािि ईश, के न, कठ, प्रश्न, माण्डुक्य, िैतिरीय, ऐतिररय , छान्दोग्य, बृहदारण्यक, इस प्रकार दस मुख्य उपतनषद है • सभी पूवि-बौतद्धक • अलग अलग ऋतष मुतनओ ने रचना की है, अलग अलग काल में, अलग अलग प्रदेश में • उस सब उपतनषद के अथि समजने और उनकी असंगति दूर करने के तलए, ब्रह्मसूत्र की रचना की गई • ब्रह्मसूत्र के ऊपर, अद्वैि वेदांि, तवतशिअद्वैि वेदांि और द्वैि वेदांि ये सभीने तटका तलखी है
  • 10. उपनिषद के नवचार 1. आत्मन् और ब्राह्मण की संकल्पना • परम सत्य • आत्मा – व्यतक्त चैिन्य • ब्राह्मण – तदव्य चैिन्य, परम आत्मा, साविभौतमक चेिना • अंििोगत्वा – दोनों एक ही है 2. अद्वैिवाद की कल्पना • वास्ितवकिा एक ही है • तदखे तकिना भी, वह तसफि कल्पना है 3. माया और अतवद्या की अवधारणाएाँ • परमात्मा की रहस्यपूणि शतक्त है तजसके फलस्वरूप नाम और रूप का अतस्ित्व पैदा हुआ • माया की वजह से ही ब्राह्मण एक होने के बावजूद अनेक तदखाई देिा है • मनुष्य के तलए वही अतवद्या है • माया और अतवद्या एक ही तसक्के की दो बाजु है
  • 11. 4. भूि – मूल ित्व या आधारभूि ित्व • स्थूल भूि – पांच ित्त्व – पंच महाभूि • पृ वी, आप, आकाश, अतग्न, वायु • पंच इतन्िय – पांच िन्मात्रा – गंध, रस, शब्द, स्पशि और रूप से सम्बंतधि है 5. पंच कोष का तसद्धांि • इसका उल्लेख िैतत्तरीय उपतनषद में तमलिा है • पांच परि या स्िर या कोष जो पुरुष को आवृि तकये है • बाहरीिम – स्थूल , अंिरिम – सुक्ष्म • अन्न, प्राण, मनो, तवज्ञान, आनंद • व्यतक्तमत्व तवकास जब भीिर की ओर यात्रा करिे है
  • 12. 6. परा और अपरा तवद्या • मुण्डक उपतनषद के अनुसार तवद्या दो प्रकार की होिी है • परा – उच्च, अपरा – तनम्न • परा यातन की ब्राह्मण का ज्ञान (श्रेष्ठ ज्ञान) • अपरा यातन की अनुभवजन्य चीजों का ज्ञान • परा – पूणि, अपरा – खतण्डि, अपूणि ज्ञान • अपरा तवद्या के अंिगिि वेद और वेदांग का ज्ञान भी समातवि है • उपतनषद का आग्रह परा तवद्या के उपाजिन पर ही है 7. स्व की चार अवस्था • जाग्रति (वृतत्तयां चलिी रहिी है ) • स्वप्न (वृतत्तयां चलिी रहिी है ) • सुषुतप्त • िुररय
  • 13. 8. आत्मबोध • दुःख और पीड़ा का कारण - > अतवद्या, गलि तवद्या a) श्रवण (तजवंि अविार द्वारा) b) मनन c) तनतदध्यासन (उच्च स्िरीय ध्यान) 9. संसार • जीवन और मृत्यु के फेरे – कारण कमि के तनयम 10. उपतनषतदक ईश्वर • अंियािमीअमृि, पूणि, अतवनाशी, सूत्र, तजव/ तनतजिव, श्रेष्ठ, सविमान्य, ईसाई संकल्पना,
  • 14. आगम वैतदक - (वैतदक धमि में उपास्य देविा की तभन्निा के कारण इसके िीन प्रकार है) अनेक आगम वेदमूलक हैं, • शैव • वैष्णव • शाक्त अवैतदक • बौद्ध (पााँच मुख्य आगम) • जैन (46 आगम)
  • 15. • श्रुति • परम्परा से आये तहन्दू धमि के महत्वपूणि ग्रन्थ हैं। • सामान्यिया आगम िंत्र के तलए और तनगम वेदों के तलए प्रयुक्त होिा है। • भारिीय संस्कृति का आधार तजस प्रकार तनगम (=वेद) है, उसी प्रकार आगम (=िंत्र) भी है। • दोनों स्विंत्र होिे हुए भी एक दूसरे के पोषक हैं। • तजस िरह वेद ईश्वर की वाणी माने जािे हैं, उसी िरह िंत्र भी भगवान तवष्णु, तशव, देवी की वाणी हैं और उन्हीं देविाओंके नाम से वे जाने भी जािे हैं। • तनगम (वेद) कमि, ज्ञान िथा उपासना का स्वरूप बिलािा है िथा आगम इनके उपायभूि साधनों का वणिन करिा है। • मागिदशिन का प्राथतमक स्त्रोि • िंत्र-साधनाओंका लक्ष्य बड़ा तवस्िृि है। वशीकरण, मारण, मोहन, उच्चाटन, दृतिबंध, परकाया प्रवेश, सपितवद्या, प्रेितवद्या, अदृश्य वस्िुओं को देखना, भतवष्य ज्ञान, संिान, सुयोग, आकषिण, मोहन मंत्र, घाि- प्रतिघाि
  • 16. शैव आगम – तशव ही परम सत्य (पाशुपि, शैवतसद्धांि, तत्रक आतद) वैष्णव आगम – तवष्णु ही परम सत्य (पंचरात्र िथा वैखानस (ब्रह्मा से सम्बंतधि) आगम) शाक्त आगम (िंत्र) – शतक्त तह परम सत्य | शतक्त है तशव की सहचारी है और उसे जगि जननी भी कहा जािा है
  • 17. आगमों के अंिगिि चार प्रकार के तवचारों या उपयोगों को सतम्मतलि तकया गया हैं। १. ज्ञाि, आगम दाशितनक और आध्यातत्मक ज्ञान के अपार भंडार हैं। २. योग, अपने स्थूल शारीररक संरचना और मानतसक अनुशासन को स्वस्थ रखने हेिु। ३. निया, तभन्न-तभन्न स्वरूप िथा गुणों वाले देवी- देविाओं से सम्बंतधि पूजा तवधान, मंतदर बनाने की तवतध। ४. चयाा, धातमिक संस्कार, व्रि िथा उत्सवों में तकये जाने वाले कृत्यों का वणिन।
  • 18. पुराण तहंदुओंके धमिसंबंधी आख्यानग्रंथ हैं तजनमें सृति, लय, प्राचीन ऋतषयों, मुतनयों और राजाओंके वृत्ताि आतद हैं। वेद में तनतहि ज्ञान के अत्यन्ि गूढ होने के कारण आम आदतमयों के द्वारा उन्हें समझना बहुि कतठन था, इसतलये रोचक कथाओंके माध्यम से वेद के ज्ञान की जानकारी देने की प्रथा चली। इन्हीं कथाओंके संकलन को पुराण कहा जािा हैं। पुराण शब्द ‘पुरा’ एवं ‘अण’ शब्दों की संतध से बना है, तजसका शातब्दक अथि -‘पुराना’ अथवा ‘प्राचीन’ होिा है । ‘पुरा’ शब्द का अथि है - अनागि एवं अिीि । ‘अण’ शब्द का अथि होिा है -कहना या बिलाना अथािि् जो पुरािन अथवा अिीि के ि यों, तसद्धांिों, तश्षणाओं, नीतियों, तनयमों और घटनाओंका तववरण प्रस्िुि करे।
  • 19. • पुराण तकसके बनाए हैं ? तशवपुराण के अंिगिि रेवा माहात्म्य में तलखा है तक अठारहों पुराणों के वक्ता मत्यविीसुि व्यास हैं। • मत्स्यपुराण में स्पि तलखा है तक पहले पुराण एक ही था, उसी से १८ पुराण हुए (५३.४) • ब्रह्मांड पुराण में तलखा है तक वेदव्यास ने एक पुराणसंतहिा का संकलन तकया था। • बहुि से पुराण िो असल पुराणों के न तमलने पर तफर से नए रचे गए हैं, कुछ में बहुि सी बािें जोड़ दी गई हैं। • पुराणों का उद्देश्य पुराने वृत्तों का संग्रह करना, कुछ प्राचीन और कुछ कतल्पि कथाओंद्वारा उपदेश देना, देवमतहमा िथा िीथिमतहमा के वणिन द्वारा जनसाधारण में धमिबुतद्ध तस्थर रखना था।
  • 20. • पुराणों को मनुष्य के भूि, भतवष्य, वििमान का दपिण भी कहा जा सकिा है । • वेदों की जतटल भाषा में कही गई बािों को पुराणों में सरल भाषा में समझाया गया हैं। पुराण-सातहत्य में अविारवाद को प्रतितष्ठि तकया गया है।