6. लक्षण
अात्मर्ूत
वस्तु को स्वरूप मोैं ममला
हुअा हाो
जैसो – अग्नि की उष्णता
अनात्मर्ूत
वस्तु सो ममला हुअा न हाो,
उससो पृर्क हाो
जैसो – ड़ैंड़ो वालो पुरुष का दैंड़
7. लक्षणार्ास
जाो यर्ार्थ लक्षण नहीैं हाोनो पि र्ी लक्षण को समान
प्रततर्ाससत हाोता है, उसो लक्षणार्ास कहतो हैैं |
सदाोष लक्षण काो लक्षणार्ास् कहतो हैैं |
9. अव्याप्त लक्षणार्ास
जाो लक्षण लक्ष्य को एकदोर् मोैं िहता है, सम्पूणथ लक्ष्यर्ूत
पदार्थ मोैं नहीैं िहता है उसो अव्याति लक्षणार्ास् कहतो हैैं |
जैसो – गाय का लक्षण सफो द या पर्ु का लक्षण सीैंग
10. अततव्याप्त लक्षणार्ास
जाो लक्षण – लक्ष्य अाैि अलक्ष्य दाोनाोैं मोैं पाया जाय
उसो अततव्याति लक्षणार्ास कहतो हैैं |
जैसो गाय का लक्षण सीैंग
12. दाोष बताइयो
☸जजसमो को वलज्ञान हाो उसो जीव कहतो हैैं ।
☸जजसमो मतत-श्रुत ज्ञान हाो उसो जीव कहतो हैैं ।
☸जाो अमुततथक हाो उसो जीव कहतो हैैं ।
☸पुद्गल का लक्षण ज्ञान है ।
☸जीव का लक्षण उपयाोग है ।
13. उपयाोग
ज्ञान - दर्थन का व्यापाि/ कायथ
चोतन्य को सार् सैंबैंध िखनो वालो जीव का
परिणाम
15. उपयाोग
जीव का जाो र्ाव वस्तु काो ग्रहण किनो को मलए प्रवृत्त
हाोता है उसो उपयाोग कहतो हैैं
यह अात्मा का अात्मर्ूत लक्षण हैैं
16. प्र.- उपयाोग अस्स्र्ि हाोनो सो जीव का लक्षण नहीैं
बन सकता ?
उ.- उपयाोग सामान्य
काो ग्रहण किनो पि वह
जीव का लक्षण बन
सकता है
जाना पेन
जाना हाथ
जाना सूर्य
जाना गार्
उपयोग
17. उपयाोग
ज्ञानाोपयाोग
साकाि
अैंतमुथहूतथ काल तक मतत, श्रुत, अवधध अाैि मन:पयाथय
ज्ञान अपनो-अपनो ववषय काो ववर्ोष रूप सो ग्रहण कितो
हैैं
दर्थनाोपयाोग
तनिाकाि
इप्न्द्रय, मन अाैि अवधध िािा अववर्ोषरूप
सो पदार्थ का जाो सामान्य ग्रहण
18. साकाि अाैि तनिाकाि
☸यहााँ अाकाि सो मतलब लम्बाई चाैड़ाई नहीैं है
☸बप्कक जैसा पदार्थ हाोता है वैसा ज्ञान मोैं ज्ञात हाोना
अाकाि है ।
☸तनिाकाि मोैं एक पदार्थ दूसिो पदार्थ सो मर्न्न है एोसा
नहीैं जाना जाता, जबवक साकाि मोैं ववर्ोषता सद्वहत
पदार्थ की मर्न्नता ज्ञात हाोती है ।
23. सैंसािी
सैंसिण किो अर्ाथत् जाो परिभ्रमण किो
५ परिवतथन रूप जाो पिावतथन किो
हि जीव का सैंसाि उसको अन्दि को माोह िाग िोष र्ाव ही हैैं
24. सैंसाि
4 गतत मोैं परिभ्रमण
पैंच पिावतथन
जन्म मिण रूप सैंसाि
माोह िाग िोष परिणाम
25. सूत्र मोैं सैंसािी का ग्रहण पहलो काोैं वकया है?
सैंसािी जीवाोैं को बहुत र्ोद प्रर्ोद हैैं
सैंसाि पूवथक माोक्ष हाोता है
सैंसािी अवस्र्ा प्रत्यक्ष ददखाई दोती है जबवक मुक्त अवस्र्ा पिाोक्ष है, अप्राि है |
26. सैंसािीण: अाैि मुक्ता: दाोनाोैं मोैं बहुवचन अलग
अलग काोैं मलया?
सैंसािी बहुत है अाैि मुक्त जीव र्ी बहुत है
इसो बतानो को मलए दाोनाोैं ही बहुवचन मलए ।
28. ☸सैंसारिणस्त्रसस्र्ाविाः॥12॥
सैंसािी जीव त्रस अाैि स्र्ावि को र्ोद सो 2 प्रकाि को हैैं
☸पृमर्व्यतोजाो वायु-वनस्पतयः स्र्ाविाः॥13॥
पृथ्वी , जल, अग्नि, वायु अाैि वनस्पतत यो स्र्ावि जीव हैैं
☸िीप्न्द्रयादयस्त्रसाः॥14॥
2 इप्न्द्रय सो लोकि 5 इप्न्द्रय तक को जीव त्रस हैैं
31. वनस्पतत
साधािण
जजस र्िीि को स्वामी
अनैंत जीव हाोतो हैैं
सूक्ष्म
बादि
प्रत्योक
जजस र्िीि का स्वामी एक
जीव हाोता है
बादि
32. 5 स्र्ाविाोैं मोैं सो प्रत्योक को 4-4 र्ोद
• पृथ्वी सामान्यपृथ्वी
• ववग्रह गतत का जीव जाो पृथ्वी मोैं जन्म लोनो जा िहा हैपृथ्वीजीव
• पृथ्वी र्िीि सद्वहत जीवपृथ्वी काग्नयक
• पृथ्वी र्िीि, जजसमो सो जीव तनकल गया हैपृथ्वी काय
34. इप्न्द्रय
द्रव्योप्न्द्रय
र्िीि नामकमथ को उदय सो
बननोवालो र्िीि को मचह्न-ववर्ोष
र्ावोप्न्द्रय
मततज्ञानाविण कमथ को क्षयाोपर्म सो
उत्पन्न हाोनो वाली ववर्ुणि अर्वा
उस ववर्ुणि सो उत्पन्न हाोनो वाला
उपयाोगात्मक ज्ञान
43. इप्न्द्रयाोैं को अाकाि
अर्थ -
मसूि को
समान चक्षु
का,
जव की
नाली को
समान श्राोत्र
का,
ततल को
फू ल को
समान घ्राण
का तर्ा
खुिपा को
समान जजह्वा
का अाकाि
है अाैि
स्पर्थनोप्न्द्रय
को अनोक
अाकाि हैैं
।।१७१।।
44. • ववषयइप्न्द्रय
• ८ प्रकाि का स्पर्थस्पर्थन
• ५ प्रकाि का िसिसना
• २ प्रकाि की गैंधघ्राण
• ५ प्रकाि का रूपचक्षु
• र्ब्धद तर्ा ७ प्रकाि का स्विकणथ
45. स्पर्थ, िस, गैंध अाैि
वणथ ताो पुद्गल को
गुण हैैं
अावाज व र्ब्धद पुद्गल
की पयाथय है
46. मन की गणना इप्न्द्रयाोैं मोैं काोैं नहीैं की गई है?
मन अन्य इप्न्द्रयाोैं को समान तनयत स्र्ानीय नहीैं है
तर्ा उस मन का तनममत्त पाकि चक्षु अादद इप्न्द्रयाैं ववषयाोैं
मोैं व्यापाि किती हैैं
47. द्रव्य अाैि र्ावोैंदद्रयाोैं मोैं सो काैन सी इप्न्द्रय प्रमाण
है?
जाो र्ावोैंदद्रय है वही प्रमाण है
काोैंवक स्व-पि काो जाननो रूप विया मोैं यही साधकतम है,
द्रव्योैंदद्रय को उपचाि सो प्रमणता स्वीकाि की जाती है |
48. यदद र्ावोैंदद्रय ही प्रमाण है ताो द्रव्योैंदद्रय को इप्न्द्रय
सैंज्ञा कै सो दी है?
द्रव्योैंदद्रय र्ावोैंदद्रय
कािण
कािण
कायथ
कायथ
49. ☸इप्न्द्रयाोैं की सहायता किना ही मन का
प्रयाोजन है या अाैि र्ी कु छ प्रयाोजन है? यह
अगलो सूत्र मोैं बतातो हैैं-
52. श्रुत श्राोत्रोैंदद्रय का ववषय है वह मन का ववषय
कै सो हाो सकता है?
☸श्रुत काो श्राोत्रोैंदद्रय का ववषय माननो पि मततज्ञान का
प्रसैंग अाएगा,
☸जबवक मततज्ञान हाोनो को बाद हाोनो वाला मचन्तन वह
श्रुत है अाैि उसो यहााँ मलया गया है
53. श्रुत ज्ञान सो जानो हुए पदार्ाोों काो मन जानता है
ताो का मततज्ञान सो जानो हुयो पदार्ाोों काो मन
जानता है की नहीैं?
☸मन को जाननो याोग्य श्रुत ही है एोसा नहीैं है
54. श्रुत ज्ञान मन को तनममत्त सो ही हाोता है या अन्य
इप्न्द्रयाोैं को तनममत्त सो र्ी हाोता है?
☸श्रुत ज्ञान को वल अतनप्न्द्रय (मन) को तनममत्त सो ही
हाोता है
55. ☸वनस्पत्यन्तानामोकम्॥22॥
पृथ्वीकाय सो लोकि वनस्पततकाय तक को जीवाोैं की एक
स्पर्थन इप्न्द्रय हाोती है
☸कृ मम-वपपीमलका-भ्रमि-मनुष्यादीनामोकै कवृिातन॥23॥
कृ मम, चीैंटी, र्ाँविा अाैि मनुष्य अादद को एक एक इप्न्द्रय
अधधक हाोती है
56. र्ोद
१ इप्न्द्रय
• स्पर्थन
२ इप्न्द्रय
• स्पर्थन,
• िसना
३ इप्न्द्रय
• स्पर्थन,
• िसना,
• घ्राण
४ इप्न्द्रय
• स्पर्थन,
• िसना,
• घ्राण,
• चक्षु
५ इप्न्द्रय
• स्पर्थन,
• िसना,
• घ्राण,
• चक्षु,
• कणथ
58. मन
•द्वहत अद्वहत का ववचाि,शर्क्षा अाैि उपदोर्
ग्रहण किनो की र्मक्त सद्वहत ज्ञान ववर्ोष
र्ाव मन
•हृदय स्र्ान मोैं ८ पैंखुदड़अाोैं वालो कमल
को अाकाि समान पुद्गल वपण्ड़
द्रव्य मन
59. सैंज्ञी का कि सकता?
द्वहत का
ग्रहण अाैि
अद्वहत का
त्याग
इच्छापूवथक
हार् पैि
अादद चलानो
की विया
वचन अर्वा
चाबुक अादद
को िािा
उपदोर् ग्रहण
कि सको
श्ाोक अादद
का पाठ -
उत्ति दो सको
उसका जाो
नाम िक्खा
गया हाो
बुलानो पि
अा सको ,
उन्मुख हाो
61. को वली र्गवान सैंज्ञी है की असैंज्ञी?
☸उनको द्रव्य मन पाया जाता है वकन्तु उसका व्यापाि
अाैि उस सम्बैंधधत कमथ का अर्ाव हाो गया है
इसीमलए वो सैंज्ञी एवैं असैंज्ञी दाोनाोैं ही नहीैं है ।
62. जजस समय जीव पूवथ र्िीि काो छाोड़कि अाया र्िीि
धािण किनो जाता है
तब उसको मन ताो िहता नहीैं है
वफि वह कै सो गमन किता है?
इसको समाधान को मलए अगला सूत्र कहतो हैैं-
64. ववग्रह गतत
• र्िीि को मलए जाो गतत हाोती है उसो ववग्रह गतत कहतो
हैैं ।
ववग्रह = दोह,
• जजस अवस्र्ा मोैं नाोकमथ पुदगलाोैं का ग्रहण नहीैं हाोता
वह ववग्रह है अाैि एोसी गतत ववग्रह गतत हाोती है ।
वव+ग्रह = ववरूि
ग्रहण,
•माोड़ो वाली गतत काो ववग्रह गतत कहतो हैैं ।ववग्रह = माोड़ा,
65. कमथयाोग
कामाथण वगथणाअाोैं को ग्रहण को तनममत्त सो अात्म प्रदोर्ाोैं मोैं
परिस्पन्दन हाोता है जजसो कमथ याोग कहतो हैैं |
यह याोग ससफथ ववग्रह गतत मोैं ही पाया जाता है
66. ☸ववग्रह गतत मोैं जीव इस कमथ याोग को
िािा ही जीव नवीन कमाोों काो ग्रहण
किता है अाैि
☸मृत्यु स्र्ान सो अपनो जन्म लोनो को
स्र्ान तक जाता है ।
67. ☸अनुश्रोणणः गततः॥26॥
ववग्रह गतत मोैं जीव अाैि पुद्गलाोैं की गतत अाकार् की
पैंमक्त को अनुसाि हाोती है ।
☸अववग्रहा जीवस्य॥27॥
मुक्त जीव की गतत माोड़ो िद्वहत हाोती है ।
68.
69.
70. यहााँ ताो जीव का अधधकाि है ताो पुद्गल का
ग्रहण काोैं वकया?
☸अागो ‘अववग्रहा जीवस्य’ सूत्र मोैं जीव का उकलोख
वकया है इससो पता चलता है की यहााँ ससफथ जीव
की ही गतत नहीैं बातो है ।
71. ववर्ोष
☸सर्ी जीव अाैि पुद्गल की गतत श्रोणी को अनुसाि
नहीैं हाोती है, मुक्त जीव अाैि र्ुि पुद्गल पिमाणु
की गतत अनुश्रोणी हाोती है ।
☸र्ोष को मलए काोई तनयम नहीैं है ।
72. प्र. सूत्र 27 मोैं मुक्त जीव की गतत बताई है यह
कै सो ज्ञात हुअा?
☸अगलो सूत्र मोैं ‘सैंसािीण:’ र्ब्धद का प्रयाोग
वकया जजससो ज्ञात हुअा की इस सूत्र मोैं मुक्त
जीव की गतत बताई है ।
73. ववग्रहवती च सैंसारिणः प्राक्चतुभ्यथ:॥28॥
☸सैंसािी जीवाोैं की चाैर्ो समय सो पहलो ववग्रहगतत(
माोड़ो वाली) हाोती है अाैि वबना माोड़ो वाली गतत र्ी
हाोती है
86. •माता वपता को िज-वीयथ सो उत्पत्तत्त हाोनागर्थ
• सैंपुट र्य्या या उष्टर ादद मुखाकाि याोतन मोैं
अैंतमुथहूतथ काल मोैं ही जीव का उत्पन्न हाोना
उपपाद
•सब अाोि सो पिमाणु ग्रहण कि र्िीि की
िचना हाोना
सम्मूछथन
87. ☸जिायुजाण्ड़जपाोतानाैं गर्थः॥33॥
☸जिायुज, अैंड़ज अाैि पाोत इन 3 प्रकाि को
प्राणणयाोैं को गर्थ जन्म हाोता है
☸ दोव-नािकाणामुपपादः॥34॥
☸दोव अाैि नािवकयाोैं का उपपाद जन्म हाोता है
☸र्ोषाणाैं सम्मूछथनम्॥35॥
☸र्ोष जीवाोैं का सम्मूछथन जन्म हाोता है
88. गर्थ जन्म को 3 प्रकाि
पाोत
• याोतन सो तनकलतो ही
चलना अादद की
सामथ्यथ सो सैंयुक्त है
वह जीव पाोत
कहलाता है।
• ससैंह, नोवला अादद
जिायुज
• प्राणी को र्िीि को ऊपि
जाल समान अाविण -
माैंस, लहू जजसमोैं
ववस्तािरूप पाया जाता है
एोसा जाो जिायु, उसमोैं
उत्पन्न जीव जिायुज
कहलाता है।
• गाय, हार्ी अादद
अैंड़ज
• र्ुि, लहूमय तर्ा नख को
समान कदठन अाविण
सद्वहत, गाोल अाकाि का
धािक वह अण्ड़, उसमोैं
उपजनो वाला जीव अैंड़ज
कहलाता है।
• चील, कबूति अादद
89. जन्म र्ोद स्वामी
सम्मूछथन
एकोैं दद्रय
ववकलोप्न्द्रय
पैंचोप्न्द्रय ततयोंच
लस्ब्धध अपयाथत
मनुष्य
गर्थ
पाोत
जिायुज
अैंड़ज
उपपाद
दोव
नािकी
94. अाकाियाोतन
र्ैंखावतथ याोतन
गर्थ तनयम सो वववजजथत है, गर्थ िहता
ही नहीैं है
कू माोथन्नत याोतन
तीर्ोंकि वा सकलचिवतीथ वा
अधथचिवतीथ, नािायण, प्रततनािायण
वा बलर्द्र उपजता है
वैंर्पत्र याोतन
अवर्ोष जन उपजतो हैैं, तीर्ोंकिादद
नहीैं उपजतो
104. वकस याोतन मोैं काैन जीव जन्म लोता है ?
जीव याोतन
दोव व नािकी अमचत्त र्ीत व उष्ण सैंवृत्त
गर्थज—मनुष्य व ततयोंच समचत्तामचत्त
तीनाोैं प्रकाि
सैंवृतवववृत
सम्मूच्छथन मनुष्य व
पैंचोप्न्द्रय ततयोंच
तीन प्रकाि
(समचत्त, अमचत्त व
ममश्र)
वववृत
ववकलोप्न्द्रय
एको प्न्द्रय (पृथ्वी, वायु,
प्रत्योक वनस्पतत)
सैंवृत
अप्ग्न उष्ण
जल र्ीत
साधािण वनस्पतत समचत्त तीनाोैं प्रकाि
105. ➢ Reference : श्री गाोम्मटसाि जीवकाण्ड़जी, श्री जैनोन्द्रससिान्त काोष, तत्त्वार्थसूत्रजी
➢ Presentation created by : Smt. Sarika Vikas Chhabra
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