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तत्त्वार्थ सूत्र
द्वितीय अध्याय
Presentation Developed By: श्रीमतत सारिका छाबड़ा
☸उपयाोगाो लक्षणम्॥8॥
☸जीव का लक्षण उपयाोग है ।
☸स द्विववधाोऽष्ट-चतुर्ोथदः॥9॥
☸वह 2 अाैि 8 प्रकाि का है ।
लक्षण वकसो कहतो हैैं?
अनोक
ममली हुई
वस्तुअाोैं
मोैं सो
वकसी
एक वस्तु
काो पृर्क
किनो
वालो
होतु काो
लक्षण
कहतो हैैं
|
लक्ष्य अाैि अलक्ष्य
• जजसका लक्षण वकया जाय
उसो लक्ष्य कहतो हैैं | उदा.-
चावल
लक्ष्य
• लक्ष्य सो मर्न्न सर्ी पदार्थ
अलक्ष्य कहलातो हैैं | उदा.
– दाल, मक्का अादद
अलक्ष्य
लक्ष्य
लक्ष्य
अलक्ष्य
उदाहिण
लक्ष्य –जीव
लक्षण –
चोतना
लक्ष्य – पुद्गल
लक्षण –
स्पर्थ,िसादद
लक्ष्य – र्क्कि
लक्षण -
ममठास
लक्षण
अात्मर्ूत
वस्तु को स्वरूप मोैं ममला
हुअा हाो
जैसो – अग्नि की उष्णता
अनात्मर्ूत
वस्तु सो ममला हुअा न हाो,
उससो पृर्क हाो
जैसो – ड़ैंड़ो वालो पुरुष का दैंड़
लक्षणार्ास
जाो यर्ार्थ लक्षण नहीैं हाोनो पि र्ी लक्षण को समान
प्रततर्ाससत हाोता है, उसो लक्षणार्ास कहतो हैैं |
सदाोष लक्षण काो लक्षणार्ास् कहतो हैैं |
लक्षणार्ास
अव्याति अततव्याति असैंर्व
अव्याप्‍त लक्षणार्ास
जाो लक्षण लक्ष्य को एकदोर् मोैं िहता है, सम्पूणथ लक्ष्यर्ूत
पदार्थ मोैं नहीैं िहता है उसो अव्याति लक्षणार्ास् कहतो हैैं |
जैसो – गाय का लक्षण सफो द या पर्ु का लक्षण सीैंग
अततव्याप्‍त लक्षणार्ास
जाो लक्षण – लक्ष्य अाैि अलक्ष्य दाोनाोैं मोैं पाया जाय
उसो अततव्याति लक्षणार्ास कहतो हैैं |
जैसो गाय का लक्षण सीैंग
असैंर्व लक्षणार्ास
लक्ष्य मोैं लक्षण की असैंर्वता काो असैंर्व दाोष कहो हैैं |
मनुष्य का लक्षण सीैंग, जीव का लक्षण रुप
दाोष बताइयो
☸जजसमो को वलज्ञान हाो उसो जीव कहतो हैैं ।
☸जजसमो मतत-श्रुत ज्ञान हाो उसो जीव कहतो हैैं ।
☸जाो अमुततथक हाो उसो जीव कहतो हैैं ।
☸पुद्गल का लक्षण ज्ञान है ।
☸जीव का लक्षण उपयाोग है ।
उपयाोग
ज्ञान - दर्थन का व्यापाि/ कायथ
चोतन्य को सार् सैंबैंध िखनो वालो जीव का
परिणाम
चोतन
जीव द्रव्य
लक्ष्य
चैतन्य
गुण
ज्ञान दर्थन
उपयाोग
पयाथय
लक्षण
उपयाोग
जीव का जाो र्ाव वस्तु काो ग्रहण किनो को मलए प्रवृत्त
हाोता है उसो उपयाोग कहतो हैैं
यह अात्मा का अात्मर्ूत लक्षण हैैं
प्र.- उपयाोग अस्स्र्ि हाोनो सो जीव का लक्षण नहीैं
बन सकता ?
उ.- उपयाोग सामान्य
काो ग्रहण किनो पि वह
जीव का लक्षण बन
सकता है
जाना पेन
जाना हाथ
जाना सूर्य
जाना गार्
उपयोग
उपयाोग
ज्ञानाोपयाोग
साकाि
अैंतमुथहूतथ काल तक मतत, श्रुत, अवधध अाैि मन:पयाथय
ज्ञान अपनो-अपनो ववषय काो ववर्ोष रूप सो ग्रहण कितो
हैैं
दर्थनाोपयाोग
तनिाकाि
इप्न्द्रय, मन अाैि अवधध िािा अववर्ोषरूप
सो पदार्थ का जाो सामान्य ग्रहण
साकाि अाैि तनिाकाि
☸यहााँ अाकाि सो मतलब लम्बाई चाैड़ाई नहीैं है
☸बप्कक जैसा पदार्थ हाोता है वैसा ज्ञान मोैं ज्ञात हाोना
अाकाि है ।
☸तनिाकाि मोैं एक पदार्थ दूसिो पदार्थ सो मर्न्न है एोसा
नहीैं जाना जाता, जबवक साकाि मोैं ववर्ोषता सद्वहत
पदार्थ की मर्न्नता ज्ञात हाोती है ।
❖
❖
❖
❖
❖
❖
ववर्ोष
छद्मस्र् को दर्ाथनाोपयाोग को पश्चात ज्ञानाोपयाोग हाोता है
वकन्तु को वली र्गवान को दर्थन अाैि ज्ञानाोपयाोग दाोनाोैं सार्
मोैं हाोतो हैैं |
☸सैंसारिणाो मुक्ताश्च॥10॥
☸जीव सैंसािी अाैि मुक्त 2 प्रकाि का है ।
☸समनस्काऽमनस्काः॥11॥
☸सैंसािी जीव मन सद्वहत अाैि मन िद्वहत हाोतो हैैं
सैंसािी
सैंसिण किो अर्ाथत् जाो परिभ्रमण किो
५ परिवतथन रूप जाो पिावतथन किो
हि जीव का सैंसाि उसको अन्दि को माोह िाग िोष र्ाव ही हैैं
सैंसाि
4 गतत मोैं परिभ्रमण
पैंच पिावतथन
जन्म मिण रूप सैंसाि
माोह िाग िोष परिणाम
सूत्र मोैं सैंसािी का ग्रहण पहलो काोैं वकया है?
सैंसािी जीवाोैं को बहुत र्ोद प्रर्ोद हैैं
सैंसाि पूवथक माोक्ष हाोता है
सैंसािी अवस्र्ा प्रत्यक्ष ददखाई दोती है जबवक मुक्त अवस्र्ा पिाोक्ष है, अप्राि है |
सैंसािीण: अाैि मुक्ता: दाोनाोैं मोैं बहुवचन अलग
अलग काोैं मलया?
सैंसािी बहुत है अाैि मुक्त जीव र्ी बहुत है
इसो बतानो को मलए दाोनाोैं ही बहुवचन मलए ।
❖
❖
❖
❖
☸सैंसारिणस्त्रसस्र्ाविाः॥12॥
सैंसािी जीव त्रस अाैि स्र्ावि को र्ोद सो 2 प्रकाि को हैैं
☸पृमर्व्य‍तोजाो वायु-वनस्पतयः स्र्ाविाः॥13॥
पृथ्वी , जल, अग्नि, वायु अाैि वनस्पतत यो स्र्ावि जीव हैैं
☸िीप्न्द्रयादयस्त्रसाः॥14॥
2 इप्न्द्रय सो लोकि 5 इप्न्द्रय तक को जीव त्रस हैैं
सैंसािी जीव
स्र्ावि
१ इप्न्द्रय
पृथ्वी जल अग्नि वायु वनस्पतत
साधािण प्रत्योक
त्रस
२ इप्न्द्रय ३ इप्न्द्रय ४ इप्न्द्रय ५ इप्न्द्रय
सैंज्ञी असैंज्ञी
स्र्ावि
☸पृथ्वी
☸जल
☸अग्नि
☸वायु
☸वनस्पतत
वनस्पतत
साधािण
जजस र्िीि को स्वामी
अनैंत जीव हाोतो हैैं
सूक्ष्म
बादि
प्रत्योक
जजस र्िीि का स्वामी एक
जीव हाोता है
बादि
5 स्र्ाविाोैं मोैं सो प्रत्योक को 4-4 र्ोद
• पृथ्वी सामान्यपृथ्वी
• ववग्रह गतत का जीव जाो पृथ्वी मोैं जन्म लोनो जा िहा हैपृथ्वीजीव
• पृथ्वी र्िीि सद्वहत जीवपृथ्वी काग्नयक
• पृथ्वी र्िीि, जजसमो सो जीव तनकल गया हैपृथ्वी काय
☸पञ्चोप्न्द्रयाणण॥15॥
इप्न्द्रयााँ 5 हाोती हैैं
☸द्विववधातन॥16॥
वो 2 प्रकाि की हैैं
☸तनवृथत्त्युपकिणो द्रव्योप्न्द्रयम्॥17॥
तनवृत्तत्त अाैि उपकिण द्रव्योप्न्द्रय हैैं
☸लब्धध्युपयाोगाै र्ावोप्न्द्रयम्॥18।।
लस्ब्धध अाैि उपयाोग र्ाव इप्न्द्रय हैैं
इप्न्द्रय
द्रव्योप्न्द्रय
र्िीि नामकमथ को उदय सो
बननोवालो र्िीि को मचह्न-ववर्ोष
र्ावोप्न्द्रय
मततज्ञानाविण कमथ को क्षयाोपर्म सो
उत्पन्न हाोनो वाली ववर्ुणि अर्वा
उस ववर्ुणि सो उत्पन्न हाोनो वाला
उपयाोगात्मक ज्ञान
द्रव्योप्न्द्रय
तनवृथत्तत्त
जजन प्रदोर्ाोैं को िािा
ववषयाोैं काो जानतो हैैं
उपकिण
जाो तनवृथत्तत्त को
सहकािी, तनकटवतीथ हैैं
तनवृथत्तत्त- जजनको िािा िचना की जाती है
तनवृथत्तत्त
अभ्यैंति
अात्मप्रदोर्ाोैं का अाकाि
बाह्य
पुद्गल का अाकाि
उपकिण-जजसको िािा तनवृथती का उपकाि वकया जाता है
उपकिण
अभ्यैंति
नोत्र मोैं काला, सफो द मैंड़ल
बह्य
नोत्र की पलकोैं , र्ाैैंहोैं
र्ावोप्न्द्रय
लस्ब्धध
मततज्ञानाविणादद कमथ
को क्षयाोपर्म सो उत्पन्न
ववर्ुणि, उघाड़
उपयाोग
ववर्ुणि (लस्ब्धध) सो
उत्पन्न अात्मा का
प्रवतथनरूप ज्ञान
ज्ञान की प्रगट प्राि र्मक्त लस्ब्धध
इस र्मक्त का प्रयाोग उपयाोग
इस उपयाोग मोैं सहकािी साधन द्रव्य इप्न्द्रय
द्रव्य इप्न्द्रय को मलयो सहकािी उपकिण
☸स्पर्थन-िसन-घ्राण-चक्षुः-श्राोत्राणण॥19॥
स्पर्थन, िसना, घ्राण, चक्षु अाैि कणथ यो 5 इप्न्द्रयााँ हैैं
☸ स्पर्थ-िस-गन्ध-वणथ-र्ब्धदास्तदर्ाथ:।20॥
स्पर्थ, िस,गैंध, वणथ अाैि र्ब्धद यो उनको ववषय हैैं
इप्न्द्रय
स्पर्थन िसना घ्राण
चक्षु कणथ
इप्न्द्रय
इप्न्द्रयाोैं को अाकाि
अर्थ -
मसूि को
समान चक्षु
का,
जव की
नाली को
समान श्राोत्र
का,
ततल को
फू ल को
समान घ्राण
का तर्ा
खुिपा को
समान जजह्वा
का अाकाि
है अाैि
स्पर्थनोप्न्द्रय
को अनोक
अाकाि हैैं
।।१७१।।
• ववषयइप्न्द्रय
• ८ प्रकाि का स्पर्थस्पर्थन
• ५ प्रकाि का िसिसना
• २ प्रकाि की गैंधघ्राण
• ५ प्रकाि का रूपचक्षु
• र्ब्धद तर्ा ७ प्रकाि का स्विकणथ
स्पर्थ, िस, गैंध अाैि
वणथ ताो पुद्गल को
गुण हैैं
अावाज व र्ब्धद पुद्गल
की पयाथय है
मन की गणना इप्न्द्रयाोैं मोैं काोैं नहीैं की गई है?
मन अन्य इप्न्द्रयाोैं को समान तनयत स्र्ानीय नहीैं है
तर्ा उस मन का तनममत्त पाकि चक्षु अादद इप्न्द्रयाैं ववषयाोैं
मोैं व्यापाि किती हैैं
द्रव्य अाैि र्ावोैंदद्रयाोैं मोैं सो काैन सी इप्न्द्रय प्रमाण
है?
जाो र्ावोैंदद्रय है वही प्रमाण है
काोैंवक स्व-पि काो जाननो रूप विया मोैं यही साधकतम है,
द्रव्योैंदद्रय को उपचाि सो प्रमणता स्वीकाि की जाती है |
यदद र्ावोैंदद्रय ही प्रमाण है ताो द्रव्योैंदद्रय को इप्न्द्रय
सैंज्ञा कै सो दी है?
द्रव्योैंदद्रय र्ावोैंदद्रय
कािण
कािण
कायथ
कायथ
☸इप्न्द्रयाोैं की सहायता किना ही मन का
प्रयाोजन है या अाैि र्ी कु छ प्रयाोजन है? यह
अगलो सूत्र मोैं बतातो हैैं-
☸श्रुतमतनप्न्द्रयस्य॥21॥
☸श्रुत मन का ववषय है
श्रुत
श्रुतज्ञान का ववषयर्ूत पदार्थ
श्रुत श्राोत्रोैंदद्रय का ववषय है वह मन का ववषय
कै सो हाो सकता है?
☸श्रुत काो श्राोत्रोैंदद्रय का ववषय माननो पि मततज्ञान का
प्रसैंग अाएगा,
☸जबवक मततज्ञान हाोनो को बाद हाोनो वाला मचन्तन वह
श्रुत है अाैि उसो यहााँ मलया गया है
श्रुत ज्ञान सो जानो हुए पदार्ाोों काो मन जानता है
ताो का मततज्ञान सो जानो हुयो पदार्ाोों काो मन
जानता है की नहीैं?
☸मन को जाननो याोग्य श्रुत ही है एोसा नहीैं है
श्रुत ज्ञान मन को तनममत्त सो ही हाोता है या अन्य
इप्न्द्रयाोैं को तनममत्त सो र्ी हाोता है?
☸श्रुत ज्ञान को वल अतनप्न्द्रय (मन) को तनममत्त सो ही
हाोता है
☸वनस्पत्यन्तानामोकम्॥22॥
पृथ्वीकाय सो लोकि वनस्पततकाय तक को जीवाोैं की एक
स्पर्थन इप्न्द्रय हाोती है
☸कृ मम-वपपीमलका-भ्रमि-मनुष्यादीनामोकै कवृिातन॥23॥
कृ मम, चीैंटी, र्ाँविा अाैि मनुष्य अादद को एक एक इप्न्द्रय
अधधक हाोती है
र्ोद
१ इप्न्द्रय
• स्पर्थन
२ इप्न्द्रय
• स्पर्थन,
• िसना
३ इप्न्द्रय
• स्पर्थन,
• िसना,
• घ्राण
४ इप्न्द्रय
• स्पर्थन,
• िसना,
• घ्राण,
• चक्षु
५ इप्न्द्रय
• स्पर्थन,
• िसना,
• घ्राण,
• चक्षु,
• कणथ
सैंणज्ञनः समनस्काः॥24॥
☸मन सद्वहत जीवाोैं काो सैंज्ञी कहतो हैैं ।
मन
•द्वहत अद्वहत का ववचाि,शर्क्षा अाैि उपदोर्
ग्रहण किनो की र्मक्त सद्वहत ज्ञान ववर्ोष
र्ाव मन
•हृदय स्र्ान मोैं ८ पैंखुदड़अाोैं वालो कमल
को अाकाि समान पुद्गल वपण्ड़
द्रव्य मन
सैंज्ञी का कि सकता?
द्वहत का
ग्रहण अाैि
अद्वहत का
त्याग
इच्छापूवथक
हार् पैि
अादद चलानो
की विया
वचन अर्वा
चाबुक अादद
को िािा
उपदोर् ग्रहण
कि सको
श्ाोक अादद
का पाठ -
उत्ति दो सको
उसका जाो
नाम िक्खा
गया हाो
बुलानो पि
अा सको ,
उन्मुख हाो
सैंज्ञी
नािकी मनुष्य दोव
सैंज्ञी
पचोैंदद्रय
ततयोंच
असैंज्ञी
1,2,3,4
अाैि 5
इप्न्द्रय
असैंज्ञी
को वली र्गवान सैंज्ञी है की असैंज्ञी?
☸उनको द्रव्य मन पाया जाता है वकन्तु उसका व्यापाि
अाैि उस सम्बैंधधत कमथ का अर्ाव हाो गया है
इसीमलए वो सैंज्ञी एवैं असैंज्ञी दाोनाोैं ही नहीैं है ।
जजस समय जीव पूवथ र्िीि काो छाोड़कि अाया र्िीि
धािण किनो जाता है
तब उसको मन ताो िहता नहीैं है
वफि वह कै सो गमन किता है?
इसको समाधान को मलए अगला सूत्र कहतो हैैं-
ववग्रह-गताै कमथ-याोगः॥25॥
☸ववग्रह गतत मोैं कामाथण काय याोग हाोता है ।
ववग्रह गतत
• र्िीि को मलए जाो गतत हाोती है उसो ववग्रह गतत कहतो
हैैं ।
ववग्रह = दोह,
• जजस अवस्र्ा मोैं नाोकमथ पुदगलाोैं का ग्रहण नहीैं हाोता
वह ववग्रह है अाैि एोसी गतत ववग्रह गतत हाोती है ।
वव+ग्रह = ववरूि
ग्रहण,
•माोड़ो वाली गतत काो ववग्रह गतत कहतो हैैं ।ववग्रह = माोड़ा,
कमथयाोग
कामाथण वगथणाअाोैं को ग्रहण को तनममत्त सो अात्म प्रदोर्ाोैं मोैं
परिस्पन्दन हाोता है जजसो कमथ याोग कहतो हैैं |
यह याोग ससफथ ववग्रह गतत मोैं ही पाया जाता है
☸ववग्रह गतत मोैं जीव इस कमथ याोग को
िािा ही जीव नवीन कमाोों काो ग्रहण
किता है अाैि
☸मृत्यु स्र्ान सो अपनो जन्म लोनो को
स्र्ान तक जाता है ।
☸अनुश्रोणणः गततः॥26॥
ववग्रह गतत मोैं जीव अाैि पुद्गलाोैं की गतत अाकार् की
पैंमक्त को अनुसाि हाोती है ।
☸अववग्रहा जीवस्य॥27॥
मुक्त जीव की गतत माोड़ो िद्वहत हाोती है ।
यहााँ ताो जीव का अधधकाि है ताो पुद्गल का
ग्रहण काोैं वकया?
☸अागो ‘अववग्रहा जीवस्य’ सूत्र मोैं जीव का उकलोख
वकया है इससो पता चलता है की यहााँ ससफथ जीव
की ही गतत नहीैं बातो है ।
ववर्ोष
☸सर्ी जीव अाैि पुद्गल की गतत श्रोणी को अनुसाि
नहीैं हाोती है, मुक्त जीव अाैि र्ुि पुद्गल पिमाणु
की गतत अनुश्रोणी हाोती है ।
☸र्ोष को मलए काोई तनयम नहीैं है ।
प्र. सूत्र 27 मोैं मुक्त जीव की गतत बताई है यह
कै सो ज्ञात हुअा?
☸अगलो सूत्र मोैं ‘सैंसािीण:’ र्ब्धद का प्रयाोग
वकया जजससो ज्ञात हुअा की इस सूत्र मोैं मुक्त
जीव की गतत बताई है ।
ववग्रहवती च सैंसारिणः प्राक्चतुभ्यथ:॥28॥
☸सैंसािी जीवाोैं की चाैर्ो समय सो पहलो ववग्रहगतत(
माोड़ो वाली) हाोती है अाैि वबना माोड़ो वाली गतत र्ी
हाोती है
❖ ❖
❖
❖
ववर्ोष – वकतनी र्ी दूिी हाो यदद जीव, पुद्गल वबना माोड़ो की गतत कि िहा है ताो
उसमो एक ही समय लगोगा
अनाहािक
अाहािक
अाहािक
अनाहािक
अनाहािक
2
एकसमयाऽववग्रहा॥29॥
☸वबना माोड़ो वाली गतत मोैं एक समय लगता है, इसी
काो ऋजुगतत र्ी कहतो हैैं वह ववग्रहगतत नहीैं हाोती है
।
एकैं िाै त्रीन्वाऽनाहािकः॥30॥
☸ववग्रहगतत मोैं जीव एक समय, दाो समय अर्वा
3 समय तक अनाहािक िहता है
सम्मूछथनगर्ाोथपपादा जन्म॥31॥
☸जन्म 3 प्रकाि का है- सम्मूछथन, गर्थ, उपपाद ।
जन्म
सम्मूछथन गर्थ उपपाद
•माता वपता को िज-वीयथ सो उत्पत्तत्त हाोनागर्थ
• सैंपुट र्य्या या उष्टर ादद मुखाकाि याोतन मोैं
अैंतमुथहूतथ काल मोैं ही जीव का उत्पन्न हाोना
उपपाद
•सब अाोि सो पिमाणु ग्रहण कि र्िीि की
िचना हाोना
सम्मूछथन
☸जिायुजाण्ड़जपाोतानाैं गर्थः॥33॥
☸जिायुज, अैंड़ज अाैि पाोत इन 3 प्रकाि को
प्राणणयाोैं को गर्थ जन्म हाोता है
☸ दोव-नािकाणामुपपादः॥34॥
☸दोव अाैि नािवकयाोैं का उपपाद जन्म हाोता है
☸र्ोषाणाैं सम्मूछथनम्॥35॥
☸र्ोष जीवाोैं का सम्मूछथन जन्म हाोता है
गर्थ जन्म को 3 प्रकाि
पाोत
• याोतन सो तनकलतो ही
चलना अादद की
सामथ्यथ सो सैंयुक्त है
वह जीव पाोत
कहलाता है।
• ससैंह, नोवला अादद
जिायुज
• प्राणी को र्िीि को ऊपि
जाल समान अाविण -
माैंस, लहू जजसमोैं
ववस्तािरूप पाया जाता है
एोसा जाो जिायु, उसमोैं
उत्पन्न जीव जिायुज
कहलाता है।
• गाय, हार्ी अादद
अैंड़ज
• र्ुि, लहूमय तर्ा नख को
समान कदठन अाविण
सद्वहत, गाोल अाकाि का
धािक वह अण्ड़, उसमोैं
उपजनो वाला जीव अैंड़ज
कहलाता है।
• चील, कबूति अादद
जन्म र्ोद स्वामी
सम्मूछथन
एकोैं दद्रय
ववकलोप्न्द्रय
पैंचोप्न्द्रय ततयोंच
लस्ब्धध अपयाथ‍त
मनुष्य
गर्थ
पाोत
जिायुज
अैंड़ज
उपपाद
दोव
नािकी
समचत्त-र्ीत-सैंवृताः सोतिा ममश्राश्चैक-र्स्तद्याोनयः॥32॥
☸समचत्त, र्ीत, सैंवृत्त इनको उकटो अमचत्त, उष्ण,
वववृत अाैि इन तीनाोैं को ममश्र अर्ाथत्
समचत्तामचत्त, र्ीताोष्ण अाैि सैंवृतवववृत यो याोनी
को 9 र्ोद हैैं
याोतन
जीव का उपजनो का स्र्ान वह याोतन है।
ममश्ररूप हाोकि अाैदारिकादद नाोकमथवगथणारूप पुद्गलाोैं सो
सद्वहत बैंधता है जीव जजसमोैं, वह याोतन है।
याोतन
अाकृ तत
उत्पत्तत्त स्र्ान की अाकृ तत
को अाधाि पि र्ोद
गुण
उत्पत्तत्त स्र्ान को स्पर्ाथदद
गुण को अाधाि पि र्ोद
अाकाियाोतन
र्ैंखावतथ याोतन
गर्थ तनयम सो वववजजथत है, गर्थ िहता
ही नहीैं है
कू माोथन्नत याोतन
तीर्ोंकि वा सकलचिवतीथ वा
अधथचिवतीथ, नािायण, प्रततनािायण
वा बलर्द्र उपजता है
वैंर्पत्र याोतन
अवर्ोष जन उपजतो हैैं, तीर्ोंकिादद
नहीैं उपजतो
गुण याोतन
समचत्त अमचत्त
समचत्ता
मचत्त
र्ीत उष्ण
र्ीताो
ष्ण
सैंवृत वववृत
सैंवृत
वववृत
समचत्त
अात्मा को चैतन्य रूप परिणाम ववर्ोष काो मचत्त कहतो हैैं |
जाो मचत्त को सार् िहता है वह समचत्त कहलाता है |
जन्म अाैि याोतन मोैं का र्ोद है?
☸याोतन अाधाि अाैि जन्म अाधोय है ।
• चोतन को सार् जाो िहो, वो समचत्त हैैं अर्ाथत् जीव सद्वहत याोतन
• जैसो अालू, गाजि अादद
समचत्त
• चोतन सो िद्वहत याोतन
• जैसो गोहूाँ को बीज
अमचत्त
• चोतन अाैि पुद्गल सद्वहत उत्पत्तत्त स्र्ान
• जैसो माता का गर्थ
समचत्तामचत्त
• जजन पुद्गलाोैं मोैं र्ीत स्पर्थ प्रकट हैर्ीत
• जजन पुद्गलाोैं मोैं उष्ण स्पर्थ प्रकट हैउष्ण
• र्ीत अाैि उष्ण एोसो उर्यरूप पुद्गल स्कैं धर्ीताोष्ण
• जाो पुद्गल स्कैं ध दोखनो मोैं नहीैं अातो, जजनका अाकाि
गु‍त है
सैंवृत
• जाो पुद्गल स्कैं ध प्रकट अाकाि काो मलए है, दोखनो मोैं
अाता है
वववृत
• कु छ प्रकट अाैि कु छ अप्रकट पुद्गल स्कैं धसैंवृतवववृत
जन्म प्रकाि मोैं समचत्त अादद याोतनयााँ
सचित्त अचित्त सचित्ताचित्त
उपपाद  ✓ 
गर्भ   ✓
सम्मूर्भन ✓ ✓ ✓
जन्म प्रकाि मोैं र्ीत अादद याोतनयााँ
शीत उष्ण शीतोष्ण
उपपाद ✓ ✓ 
गर्भ ✓ ✓ ✓
सम्मूर्भन ✓ ✓ ✓
जन्म प्रकाि मोैं सैंवृत अादद याोतनयााँ
संवृत चववृत संवृत-चववृत
उपपाद ✓  
गर्भ   ✓
सम्मूर्भन ✓ ✓ 
-एके चरिय ✓  
-चवकलेचरिय  ✓ 
-पंिेचरिय  ✓ 
वकस याोतन मोैं काैन जीव जन्म लोता है ?
जीव याोतन
दोव व नािकी अमचत्त र्ीत व उष्ण सैंवृत्त
गर्थज—मनुष्य व ततयोंच समचत्तामचत्त
तीनाोैं प्रकाि
सैंवृतवववृत
सम्मूच्छथन मनुष्य व
पैंचोप्न्द्रय ततयोंच
तीन प्रकाि
(समचत्त, अमचत्त व
ममश्र)
वववृत
ववकलोप्न्द्रय
एको प्न्द्रय (पृथ्वी, वायु,
प्रत्योक वनस्पतत)
सैंवृत
अप्ग्न उष्ण
जल र्ीत
साधािण वनस्पतत समचत्त तीनाोैं प्रकाि
➢ Reference : श्री गाोम्मटसाि जीवकाण्ड़जी, श्री जैनोन्द्रससिान्त काोष, तत्त्वार्थसूत्रजी
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Sutra 8-35

  • 1. तत्त्वार्थ सूत्र द्वितीय अध्याय Presentation Developed By: श्रीमतत सारिका छाबड़ा
  • 2. ☸उपयाोगाो लक्षणम्॥8॥ ☸जीव का लक्षण उपयाोग है । ☸स द्विववधाोऽष्ट-चतुर्ोथदः॥9॥ ☸वह 2 अाैि 8 प्रकाि का है ।
  • 3. लक्षण वकसो कहतो हैैं? अनोक ममली हुई वस्तुअाोैं मोैं सो वकसी एक वस्तु काो पृर्क किनो वालो होतु काो लक्षण कहतो हैैं |
  • 4. लक्ष्य अाैि अलक्ष्य • जजसका लक्षण वकया जाय उसो लक्ष्य कहतो हैैं | उदा.- चावल लक्ष्य • लक्ष्य सो मर्न्न सर्ी पदार्थ अलक्ष्य कहलातो हैैं | उदा. – दाल, मक्का अादद अलक्ष्य लक्ष्य लक्ष्य अलक्ष्य
  • 5. उदाहिण लक्ष्य –जीव लक्षण – चोतना लक्ष्य – पुद्गल लक्षण – स्पर्थ,िसादद लक्ष्य – र्क्कि लक्षण - ममठास
  • 6. लक्षण अात्मर्ूत वस्तु को स्वरूप मोैं ममला हुअा हाो जैसो – अग्नि की उष्णता अनात्मर्ूत वस्तु सो ममला हुअा न हाो, उससो पृर्क हाो जैसो – ड़ैंड़ो वालो पुरुष का दैंड़
  • 7. लक्षणार्ास जाो यर्ार्थ लक्षण नहीैं हाोनो पि र्ी लक्षण को समान प्रततर्ाससत हाोता है, उसो लक्षणार्ास कहतो हैैं | सदाोष लक्षण काो लक्षणार्ास् कहतो हैैं |
  • 9. अव्याप्‍त लक्षणार्ास जाो लक्षण लक्ष्य को एकदोर् मोैं िहता है, सम्पूणथ लक्ष्यर्ूत पदार्थ मोैं नहीैं िहता है उसो अव्याति लक्षणार्ास् कहतो हैैं | जैसो – गाय का लक्षण सफो द या पर्ु का लक्षण सीैंग
  • 10. अततव्याप्‍त लक्षणार्ास जाो लक्षण – लक्ष्य अाैि अलक्ष्य दाोनाोैं मोैं पाया जाय उसो अततव्याति लक्षणार्ास कहतो हैैं | जैसो गाय का लक्षण सीैंग
  • 11. असैंर्व लक्षणार्ास लक्ष्य मोैं लक्षण की असैंर्वता काो असैंर्व दाोष कहो हैैं | मनुष्य का लक्षण सीैंग, जीव का लक्षण रुप
  • 12. दाोष बताइयो ☸जजसमो को वलज्ञान हाो उसो जीव कहतो हैैं । ☸जजसमो मतत-श्रुत ज्ञान हाो उसो जीव कहतो हैैं । ☸जाो अमुततथक हाो उसो जीव कहतो हैैं । ☸पुद्गल का लक्षण ज्ञान है । ☸जीव का लक्षण उपयाोग है ।
  • 13. उपयाोग ज्ञान - दर्थन का व्यापाि/ कायथ चोतन्य को सार् सैंबैंध िखनो वालो जीव का परिणाम
  • 15. उपयाोग जीव का जाो र्ाव वस्तु काो ग्रहण किनो को मलए प्रवृत्त हाोता है उसो उपयाोग कहतो हैैं यह अात्मा का अात्मर्ूत लक्षण हैैं
  • 16. प्र.- उपयाोग अस्स्र्ि हाोनो सो जीव का लक्षण नहीैं बन सकता ? उ.- उपयाोग सामान्य काो ग्रहण किनो पि वह जीव का लक्षण बन सकता है जाना पेन जाना हाथ जाना सूर्य जाना गार् उपयोग
  • 17. उपयाोग ज्ञानाोपयाोग साकाि अैंतमुथहूतथ काल तक मतत, श्रुत, अवधध अाैि मन:पयाथय ज्ञान अपनो-अपनो ववषय काो ववर्ोष रूप सो ग्रहण कितो हैैं दर्थनाोपयाोग तनिाकाि इप्न्द्रय, मन अाैि अवधध िािा अववर्ोषरूप सो पदार्थ का जाो सामान्य ग्रहण
  • 18. साकाि अाैि तनिाकाि ☸यहााँ अाकाि सो मतलब लम्बाई चाैड़ाई नहीैं है ☸बप्कक जैसा पदार्थ हाोता है वैसा ज्ञान मोैं ज्ञात हाोना अाकाि है । ☸तनिाकाि मोैं एक पदार्थ दूसिो पदार्थ सो मर्न्न है एोसा नहीैं जाना जाता, जबवक साकाि मोैं ववर्ोषता सद्वहत पदार्थ की मर्न्नता ज्ञात हाोती है ।
  • 20. ववर्ोष छद्मस्र् को दर्ाथनाोपयाोग को पश्चात ज्ञानाोपयाोग हाोता है वकन्तु को वली र्गवान को दर्थन अाैि ज्ञानाोपयाोग दाोनाोैं सार् मोैं हाोतो हैैं |
  • 21. ☸सैंसारिणाो मुक्ताश्च॥10॥ ☸जीव सैंसािी अाैि मुक्त 2 प्रकाि का है । ☸समनस्काऽमनस्काः॥11॥ ☸सैंसािी जीव मन सद्वहत अाैि मन िद्वहत हाोतो हैैं
  • 22.
  • 23. सैंसािी सैंसिण किो अर्ाथत् जाो परिभ्रमण किो ५ परिवतथन रूप जाो पिावतथन किो हि जीव का सैंसाि उसको अन्दि को माोह िाग िोष र्ाव ही हैैं
  • 24. सैंसाि 4 गतत मोैं परिभ्रमण पैंच पिावतथन जन्म मिण रूप सैंसाि माोह िाग िोष परिणाम
  • 25. सूत्र मोैं सैंसािी का ग्रहण पहलो काोैं वकया है? सैंसािी जीवाोैं को बहुत र्ोद प्रर्ोद हैैं सैंसाि पूवथक माोक्ष हाोता है सैंसािी अवस्र्ा प्रत्यक्ष ददखाई दोती है जबवक मुक्त अवस्र्ा पिाोक्ष है, अप्राि है |
  • 26. सैंसािीण: अाैि मुक्ता: दाोनाोैं मोैं बहुवचन अलग अलग काोैं मलया? सैंसािी बहुत है अाैि मुक्त जीव र्ी बहुत है इसो बतानो को मलए दाोनाोैं ही बहुवचन मलए ।
  • 28. ☸सैंसारिणस्त्रसस्र्ाविाः॥12॥ सैंसािी जीव त्रस अाैि स्र्ावि को र्ोद सो 2 प्रकाि को हैैं ☸पृमर्व्य‍तोजाो वायु-वनस्पतयः स्र्ाविाः॥13॥ पृथ्वी , जल, अग्नि, वायु अाैि वनस्पतत यो स्र्ावि जीव हैैं ☸िीप्न्द्रयादयस्त्रसाः॥14॥ 2 इप्न्द्रय सो लोकि 5 इप्न्द्रय तक को जीव त्रस हैैं
  • 29. सैंसािी जीव स्र्ावि १ इप्न्द्रय पृथ्वी जल अग्नि वायु वनस्पतत साधािण प्रत्योक त्रस २ इप्न्द्रय ३ इप्न्द्रय ४ इप्न्द्रय ५ इप्न्द्रय सैंज्ञी असैंज्ञी
  • 31. वनस्पतत साधािण जजस र्िीि को स्वामी अनैंत जीव हाोतो हैैं सूक्ष्म बादि प्रत्योक जजस र्िीि का स्वामी एक जीव हाोता है बादि
  • 32. 5 स्र्ाविाोैं मोैं सो प्रत्योक को 4-4 र्ोद • पृथ्वी सामान्यपृथ्वी • ववग्रह गतत का जीव जाो पृथ्वी मोैं जन्म लोनो जा िहा हैपृथ्वीजीव • पृथ्वी र्िीि सद्वहत जीवपृथ्वी काग्नयक • पृथ्वी र्िीि, जजसमो सो जीव तनकल गया हैपृथ्वी काय
  • 33. ☸पञ्चोप्न्द्रयाणण॥15॥ इप्न्द्रयााँ 5 हाोती हैैं ☸द्विववधातन॥16॥ वो 2 प्रकाि की हैैं ☸तनवृथत्त्युपकिणो द्रव्योप्न्द्रयम्॥17॥ तनवृत्तत्त अाैि उपकिण द्रव्योप्न्द्रय हैैं ☸लब्धध्युपयाोगाै र्ावोप्न्द्रयम्॥18।। लस्ब्धध अाैि उपयाोग र्ाव इप्न्द्रय हैैं
  • 34. इप्न्द्रय द्रव्योप्न्द्रय र्िीि नामकमथ को उदय सो बननोवालो र्िीि को मचह्न-ववर्ोष र्ावोप्न्द्रय मततज्ञानाविण कमथ को क्षयाोपर्म सो उत्पन्न हाोनो वाली ववर्ुणि अर्वा उस ववर्ुणि सो उत्पन्न हाोनो वाला उपयाोगात्मक ज्ञान
  • 35. द्रव्योप्न्द्रय तनवृथत्तत्त जजन प्रदोर्ाोैं को िािा ववषयाोैं काो जानतो हैैं उपकिण जाो तनवृथत्तत्त को सहकािी, तनकटवतीथ हैैं
  • 36. तनवृथत्तत्त- जजनको िािा िचना की जाती है तनवृथत्तत्त अभ्यैंति अात्मप्रदोर्ाोैं का अाकाि बाह्य पुद्गल का अाकाि
  • 37. उपकिण-जजसको िािा तनवृथती का उपकाि वकया जाता है उपकिण अभ्यैंति नोत्र मोैं काला, सफो द मैंड़ल बह्य नोत्र की पलकोैं , र्ाैैंहोैं
  • 38. र्ावोप्न्द्रय लस्ब्धध मततज्ञानाविणादद कमथ को क्षयाोपर्म सो उत्पन्न ववर्ुणि, उघाड़ उपयाोग ववर्ुणि (लस्ब्धध) सो उत्पन्न अात्मा का प्रवतथनरूप ज्ञान
  • 39.
  • 40. ज्ञान की प्रगट प्राि र्मक्त लस्ब्धध इस र्मक्त का प्रयाोग उपयाोग इस उपयाोग मोैं सहकािी साधन द्रव्य इप्न्द्रय द्रव्य इप्न्द्रय को मलयो सहकािी उपकिण
  • 41. ☸स्पर्थन-िसन-घ्राण-चक्षुः-श्राोत्राणण॥19॥ स्पर्थन, िसना, घ्राण, चक्षु अाैि कणथ यो 5 इप्न्द्रयााँ हैैं ☸ स्पर्थ-िस-गन्ध-वणथ-र्ब्धदास्तदर्ाथ:।20॥ स्पर्थ, िस,गैंध, वणथ अाैि र्ब्धद यो उनको ववषय हैैं
  • 43. इप्न्द्रयाोैं को अाकाि अर्थ - मसूि को समान चक्षु का, जव की नाली को समान श्राोत्र का, ततल को फू ल को समान घ्राण का तर्ा खुिपा को समान जजह्वा का अाकाि है अाैि स्पर्थनोप्न्द्रय को अनोक अाकाि हैैं ।।१७१।।
  • 44. • ववषयइप्न्द्रय • ८ प्रकाि का स्पर्थस्पर्थन • ५ प्रकाि का िसिसना • २ प्रकाि की गैंधघ्राण • ५ प्रकाि का रूपचक्षु • र्ब्धद तर्ा ७ प्रकाि का स्विकणथ
  • 45. स्पर्थ, िस, गैंध अाैि वणथ ताो पुद्गल को गुण हैैं अावाज व र्ब्धद पुद्गल की पयाथय है
  • 46. मन की गणना इप्न्द्रयाोैं मोैं काोैं नहीैं की गई है? मन अन्य इप्न्द्रयाोैं को समान तनयत स्र्ानीय नहीैं है तर्ा उस मन का तनममत्त पाकि चक्षु अादद इप्न्द्रयाैं ववषयाोैं मोैं व्यापाि किती हैैं
  • 47. द्रव्य अाैि र्ावोैंदद्रयाोैं मोैं सो काैन सी इप्न्द्रय प्रमाण है? जाो र्ावोैंदद्रय है वही प्रमाण है काोैंवक स्व-पि काो जाननो रूप विया मोैं यही साधकतम है, द्रव्योैंदद्रय को उपचाि सो प्रमणता स्वीकाि की जाती है |
  • 48. यदद र्ावोैंदद्रय ही प्रमाण है ताो द्रव्योैंदद्रय को इप्न्द्रय सैंज्ञा कै सो दी है? द्रव्योैंदद्रय र्ावोैंदद्रय कािण कािण कायथ कायथ
  • 49. ☸इप्न्द्रयाोैं की सहायता किना ही मन का प्रयाोजन है या अाैि र्ी कु छ प्रयाोजन है? यह अगलो सूत्र मोैं बतातो हैैं-
  • 52. श्रुत श्राोत्रोैंदद्रय का ववषय है वह मन का ववषय कै सो हाो सकता है? ☸श्रुत काो श्राोत्रोैंदद्रय का ववषय माननो पि मततज्ञान का प्रसैंग अाएगा, ☸जबवक मततज्ञान हाोनो को बाद हाोनो वाला मचन्तन वह श्रुत है अाैि उसो यहााँ मलया गया है
  • 53. श्रुत ज्ञान सो जानो हुए पदार्ाोों काो मन जानता है ताो का मततज्ञान सो जानो हुयो पदार्ाोों काो मन जानता है की नहीैं? ☸मन को जाननो याोग्य श्रुत ही है एोसा नहीैं है
  • 54. श्रुत ज्ञान मन को तनममत्त सो ही हाोता है या अन्य इप्न्द्रयाोैं को तनममत्त सो र्ी हाोता है? ☸श्रुत ज्ञान को वल अतनप्न्द्रय (मन) को तनममत्त सो ही हाोता है
  • 55. ☸वनस्पत्यन्तानामोकम्॥22॥ पृथ्वीकाय सो लोकि वनस्पततकाय तक को जीवाोैं की एक स्पर्थन इप्न्द्रय हाोती है ☸कृ मम-वपपीमलका-भ्रमि-मनुष्यादीनामोकै कवृिातन॥23॥ कृ मम, चीैंटी, र्ाँविा अाैि मनुष्य अादद को एक एक इप्न्द्रय अधधक हाोती है
  • 56. र्ोद १ इप्न्द्रय • स्पर्थन २ इप्न्द्रय • स्पर्थन, • िसना ३ इप्न्द्रय • स्पर्थन, • िसना, • घ्राण ४ इप्न्द्रय • स्पर्थन, • िसना, • घ्राण, • चक्षु ५ इप्न्द्रय • स्पर्थन, • िसना, • घ्राण, • चक्षु, • कणथ
  • 57. सैंणज्ञनः समनस्काः॥24॥ ☸मन सद्वहत जीवाोैं काो सैंज्ञी कहतो हैैं ।
  • 58. मन •द्वहत अद्वहत का ववचाि,शर्क्षा अाैि उपदोर् ग्रहण किनो की र्मक्त सद्वहत ज्ञान ववर्ोष र्ाव मन •हृदय स्र्ान मोैं ८ पैंखुदड़अाोैं वालो कमल को अाकाि समान पुद्गल वपण्ड़ द्रव्य मन
  • 59. सैंज्ञी का कि सकता? द्वहत का ग्रहण अाैि अद्वहत का त्याग इच्छापूवथक हार् पैि अादद चलानो की विया वचन अर्वा चाबुक अादद को िािा उपदोर् ग्रहण कि सको श्ाोक अादद का पाठ - उत्ति दो सको उसका जाो नाम िक्खा गया हाो बुलानो पि अा सको , उन्मुख हाो
  • 61. को वली र्गवान सैंज्ञी है की असैंज्ञी? ☸उनको द्रव्य मन पाया जाता है वकन्तु उसका व्यापाि अाैि उस सम्बैंधधत कमथ का अर्ाव हाो गया है इसीमलए वो सैंज्ञी एवैं असैंज्ञी दाोनाोैं ही नहीैं है ।
  • 62. जजस समय जीव पूवथ र्िीि काो छाोड़कि अाया र्िीि धािण किनो जाता है तब उसको मन ताो िहता नहीैं है वफि वह कै सो गमन किता है? इसको समाधान को मलए अगला सूत्र कहतो हैैं-
  • 63. ववग्रह-गताै कमथ-याोगः॥25॥ ☸ववग्रह गतत मोैं कामाथण काय याोग हाोता है ।
  • 64. ववग्रह गतत • र्िीि को मलए जाो गतत हाोती है उसो ववग्रह गतत कहतो हैैं । ववग्रह = दोह, • जजस अवस्र्ा मोैं नाोकमथ पुदगलाोैं का ग्रहण नहीैं हाोता वह ववग्रह है अाैि एोसी गतत ववग्रह गतत हाोती है । वव+ग्रह = ववरूि ग्रहण, •माोड़ो वाली गतत काो ववग्रह गतत कहतो हैैं ।ववग्रह = माोड़ा,
  • 65. कमथयाोग कामाथण वगथणाअाोैं को ग्रहण को तनममत्त सो अात्म प्रदोर्ाोैं मोैं परिस्पन्दन हाोता है जजसो कमथ याोग कहतो हैैं | यह याोग ससफथ ववग्रह गतत मोैं ही पाया जाता है
  • 66. ☸ववग्रह गतत मोैं जीव इस कमथ याोग को िािा ही जीव नवीन कमाोों काो ग्रहण किता है अाैि ☸मृत्यु स्र्ान सो अपनो जन्म लोनो को स्र्ान तक जाता है ।
  • 67. ☸अनुश्रोणणः गततः॥26॥ ववग्रह गतत मोैं जीव अाैि पुद्गलाोैं की गतत अाकार् की पैंमक्त को अनुसाि हाोती है । ☸अववग्रहा जीवस्य॥27॥ मुक्त जीव की गतत माोड़ो िद्वहत हाोती है ।
  • 68.
  • 69.
  • 70. यहााँ ताो जीव का अधधकाि है ताो पुद्गल का ग्रहण काोैं वकया? ☸अागो ‘अववग्रहा जीवस्य’ सूत्र मोैं जीव का उकलोख वकया है इससो पता चलता है की यहााँ ससफथ जीव की ही गतत नहीैं बातो है ।
  • 71. ववर्ोष ☸सर्ी जीव अाैि पुद्गल की गतत श्रोणी को अनुसाि नहीैं हाोती है, मुक्त जीव अाैि र्ुि पुद्गल पिमाणु की गतत अनुश्रोणी हाोती है । ☸र्ोष को मलए काोई तनयम नहीैं है ।
  • 72. प्र. सूत्र 27 मोैं मुक्त जीव की गतत बताई है यह कै सो ज्ञात हुअा? ☸अगलो सूत्र मोैं ‘सैंसािीण:’ र्ब्धद का प्रयाोग वकया जजससो ज्ञात हुअा की इस सूत्र मोैं मुक्त जीव की गतत बताई है ।
  • 73. ववग्रहवती च सैंसारिणः प्राक्चतुभ्यथ:॥28॥ ☸सैंसािी जीवाोैं की चाैर्ो समय सो पहलो ववग्रहगतत( माोड़ो वाली) हाोती है अाैि वबना माोड़ो वाली गतत र्ी हाोती है
  • 74.
  • 75.
  • 77. ववर्ोष – वकतनी र्ी दूिी हाो यदद जीव, पुद्गल वबना माोड़ो की गतत कि िहा है ताो उसमो एक ही समय लगोगा
  • 80.
  • 81. एकसमयाऽववग्रहा॥29॥ ☸वबना माोड़ो वाली गतत मोैं एक समय लगता है, इसी काो ऋजुगतत र्ी कहतो हैैं वह ववग्रहगतत नहीैं हाोती है ।
  • 82. एकैं िाै त्रीन्वाऽनाहािकः॥30॥ ☸ववग्रहगतत मोैं जीव एक समय, दाो समय अर्वा 3 समय तक अनाहािक िहता है
  • 83. सम्मूछथनगर्ाोथपपादा जन्म॥31॥ ☸जन्म 3 प्रकाि का है- सम्मूछथन, गर्थ, उपपाद ।
  • 84.
  • 86. •माता वपता को िज-वीयथ सो उत्पत्तत्त हाोनागर्थ • सैंपुट र्य्या या उष्टर ादद मुखाकाि याोतन मोैं अैंतमुथहूतथ काल मोैं ही जीव का उत्पन्न हाोना उपपाद •सब अाोि सो पिमाणु ग्रहण कि र्िीि की िचना हाोना सम्मूछथन
  • 87. ☸जिायुजाण्ड़जपाोतानाैं गर्थः॥33॥ ☸जिायुज, अैंड़ज अाैि पाोत इन 3 प्रकाि को प्राणणयाोैं को गर्थ जन्म हाोता है ☸ दोव-नािकाणामुपपादः॥34॥ ☸दोव अाैि नािवकयाोैं का उपपाद जन्म हाोता है ☸र्ोषाणाैं सम्मूछथनम्॥35॥ ☸र्ोष जीवाोैं का सम्मूछथन जन्म हाोता है
  • 88. गर्थ जन्म को 3 प्रकाि पाोत • याोतन सो तनकलतो ही चलना अादद की सामथ्यथ सो सैंयुक्त है वह जीव पाोत कहलाता है। • ससैंह, नोवला अादद जिायुज • प्राणी को र्िीि को ऊपि जाल समान अाविण - माैंस, लहू जजसमोैं ववस्तािरूप पाया जाता है एोसा जाो जिायु, उसमोैं उत्पन्न जीव जिायुज कहलाता है। • गाय, हार्ी अादद अैंड़ज • र्ुि, लहूमय तर्ा नख को समान कदठन अाविण सद्वहत, गाोल अाकाि का धािक वह अण्ड़, उसमोैं उपजनो वाला जीव अैंड़ज कहलाता है। • चील, कबूति अादद
  • 89. जन्म र्ोद स्वामी सम्मूछथन एकोैं दद्रय ववकलोप्न्द्रय पैंचोप्न्द्रय ततयोंच लस्ब्धध अपयाथ‍त मनुष्य गर्थ पाोत जिायुज अैंड़ज उपपाद दोव नािकी
  • 90.
  • 91. समचत्त-र्ीत-सैंवृताः सोतिा ममश्राश्चैक-र्स्तद्याोनयः॥32॥ ☸समचत्त, र्ीत, सैंवृत्त इनको उकटो अमचत्त, उष्ण, वववृत अाैि इन तीनाोैं को ममश्र अर्ाथत् समचत्तामचत्त, र्ीताोष्ण अाैि सैंवृतवववृत यो याोनी को 9 र्ोद हैैं
  • 92. याोतन जीव का उपजनो का स्र्ान वह याोतन है। ममश्ररूप हाोकि अाैदारिकादद नाोकमथवगथणारूप पुद्गलाोैं सो सद्वहत बैंधता है जीव जजसमोैं, वह याोतन है।
  • 93. याोतन अाकृ तत उत्पत्तत्त स्र्ान की अाकृ तत को अाधाि पि र्ोद गुण उत्पत्तत्त स्र्ान को स्पर्ाथदद गुण को अाधाि पि र्ोद
  • 94. अाकाियाोतन र्ैंखावतथ याोतन गर्थ तनयम सो वववजजथत है, गर्थ िहता ही नहीैं है कू माोथन्नत याोतन तीर्ोंकि वा सकलचिवतीथ वा अधथचिवतीथ, नािायण, प्रततनािायण वा बलर्द्र उपजता है वैंर्पत्र याोतन अवर्ोष जन उपजतो हैैं, तीर्ोंकिादद नहीैं उपजतो
  • 95. गुण याोतन समचत्त अमचत्त समचत्ता मचत्त र्ीत उष्ण र्ीताो ष्ण सैंवृत वववृत सैंवृत वववृत
  • 96. समचत्त अात्मा को चैतन्य रूप परिणाम ववर्ोष काो मचत्त कहतो हैैं | जाो मचत्त को सार् िहता है वह समचत्त कहलाता है |
  • 97. जन्म अाैि याोतन मोैं का र्ोद है? ☸याोतन अाधाि अाैि जन्म अाधोय है ।
  • 98. • चोतन को सार् जाो िहो, वो समचत्त हैैं अर्ाथत् जीव सद्वहत याोतन • जैसो अालू, गाजि अादद समचत्त • चोतन सो िद्वहत याोतन • जैसो गोहूाँ को बीज अमचत्त • चोतन अाैि पुद्गल सद्वहत उत्पत्तत्त स्र्ान • जैसो माता का गर्थ समचत्तामचत्त • जजन पुद्गलाोैं मोैं र्ीत स्पर्थ प्रकट हैर्ीत • जजन पुद्गलाोैं मोैं उष्ण स्पर्थ प्रकट हैउष्ण • र्ीत अाैि उष्ण एोसो उर्यरूप पुद्गल स्कैं धर्ीताोष्ण
  • 99. • जाो पुद्गल स्कैं ध दोखनो मोैं नहीैं अातो, जजनका अाकाि गु‍त है सैंवृत • जाो पुद्गल स्कैं ध प्रकट अाकाि काो मलए है, दोखनो मोैं अाता है वववृत • कु छ प्रकट अाैि कु छ अप्रकट पुद्गल स्कैं धसैंवृतवववृत
  • 100.
  • 101. जन्म प्रकाि मोैं समचत्त अादद याोतनयााँ सचित्त अचित्त सचित्ताचित्त उपपाद  ✓  गर्भ   ✓ सम्मूर्भन ✓ ✓ ✓
  • 102. जन्म प्रकाि मोैं र्ीत अादद याोतनयााँ शीत उष्ण शीतोष्ण उपपाद ✓ ✓  गर्भ ✓ ✓ ✓ सम्मूर्भन ✓ ✓ ✓
  • 103. जन्म प्रकाि मोैं सैंवृत अादद याोतनयााँ संवृत चववृत संवृत-चववृत उपपाद ✓   गर्भ   ✓ सम्मूर्भन ✓ ✓  -एके चरिय ✓   -चवकलेचरिय  ✓  -पंिेचरिय  ✓ 
  • 104. वकस याोतन मोैं काैन जीव जन्म लोता है ? जीव याोतन दोव व नािकी अमचत्त र्ीत व उष्ण सैंवृत्त गर्थज—मनुष्य व ततयोंच समचत्तामचत्त तीनाोैं प्रकाि सैंवृतवववृत सम्मूच्छथन मनुष्य व पैंचोप्न्द्रय ततयोंच तीन प्रकाि (समचत्त, अमचत्त व ममश्र) वववृत ववकलोप्न्द्रय एको प्न्द्रय (पृथ्वी, वायु, प्रत्योक वनस्पतत) सैंवृत अप्ग्न उष्ण जल र्ीत साधािण वनस्पतत समचत्त तीनाोैं प्रकाि
  • 105. ➢ Reference : श्री गाोम्मटसाि जीवकाण्ड़जी, श्री जैनोन्द्रससिान्त काोष, तत्त्वार्थसूत्रजी ➢ Presentation created by : Smt. Sarika Vikas Chhabra ➢ For updates / comments / feedback / suggestions, please contact ➢sarikam.j@gmail.com ➢:9406682880