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Presentation Developed By: श्रीमति सारिका छाबड़ा
अवहीयदि त्ति अ ही, सीम ण ण त्ति वण्णणयं  समय
भवगुणपच्चयववहहयं , जम हहण ण त्ति णं  बं ति॥370॥
अर्थ - द्रव्य, क्षत्र, क ल, भ व की अपक्ष स
जजसक ववषय की सीम ह उसक अवधिज्ञ न कहि
हं  इस ही ललय परम गम मं  इसक सीम ज्ञ न कह
ह िर्
इसक जजनन्द्द्रिव न ि भि कह हं  - भवप्रत्यय एवं 
गुणप्रत्यय ॥370॥
अवधिज्ञ न
द्रव्य, क्षत्र, क ल, भ व क द्व र
जजसकी अवधि / मय थि / सीम की ज िी ह,
वह अवधिज्ञ न ह
भवपच्चइग सुरणणरय णं  तित्र् वव सव्वअं गुत्र्
गुणपच्चइग णरतिररय णं  सं ख दिलिणहभव ॥371॥
अर्थ - भवप्रत्यय अवधिज्ञ न िव, न रकी क िर्
िीर्ंकर ं  क भी ह ि ह अ र यह ज्ञ न सं पूणथ अं ग स
उत्पन्न ह ि ह
गुणप्रत्यय अवधिज्ञ न पय थप्ि मनुष्य िर् सं ज्ञी
पं िण्न्द्द्रय तियंि ं  क ह ि ह अ र यह ज्ञ न शं ख दि
लिह ं  स ह ि ह ॥371॥
अवधिज्ञ न
भवप्रत्यय
नरक दि भव ही जजसक
क रण ह
गुणप्रत्यय
सम्यग्िशथन ववशुणि अ दि
गुण जजसक क रण ह
वकन्द्हं  ह ि ह
कह ाँ स उत्पन्द्न ह ि ह
प्रक र
भव-प्रत्यय
सवथ िव ं , न रवकय ं  एवं 
िीर्ंकर ं  क
सव ंग स
िश वधि
गुण-प्रत्यय
वकन्द्हीं  पय थप्त मनुष्य ं  एवं 
पय थप्ि सं ज्ञी तियंि ं  क
न लभ क ऊपर शं ख, कमल,
वज्र दि शुभ लिह ं  स एवं 
सव ंग स
िीन ं  (िश वधि, परम वधि
व सव थवधि)
गुणपच्चइग छि , अणुग वट्ठििपवड्ढम णणिर
िस ही परम ही, सव् हह त्ति य तिि अ ही॥372॥
अर्थ - गुणप्रत्यय अवधिज्ञ न क छह भि हं  -
अनुग मी, अननुग मी, अवस्थर्ि, अनवस्थर्ि,
विथम न, हीयम न िर्
स म न्द्य स अवधिज्ञ न क िश वधि, परम वधि,
सव थवधि इस िरह स िीन भि भी ह ि हं  ॥372॥
गुणप्रत्यय
अवधिज्ञ न क
6 भि
अनुग मी
अन्द्य क्षत्र / भव मं  स र्
ज ए
अननुग मी
अन्द्य क्षत्र / भव मं  स र्
न ज ए
विथम न बढि हुअ
हीयम न घटि हुअ
अवस्थर्ि न घट, न बढ
अनवस्थर्ि घटि -बढि रह
अनुग मी अवधिज्ञ न
क्षत्र नुग मी
अन्द्य क्षत्र मं  गमन करन
पर भी नष्ट न ह
भव नुग मी
भव क बिलन पर भी
नष्ट न ह
उभय नुग मी
क्षत्र अ र भव क बिलन
पर भी नष्ट न ह
एस ही अननुग मी पर लग न
क्षत्र बिलन पर
नष्ट
भव बिलन पर
नष्ट
ि न ं  बिलन
पर नष्ट
क्षत्र नुग मी   
भव नुग मी  (सम न भव मं )  
उभय नुग मी   
क्षत्र ननुग मी   
भव ननुग मी   
उभय ननुग मी   
भवपच्चइग अ ही, िस ही ह दि परमसव् ही
गुणपच्चइग णणयम , िस ही वव य गुण ह दि॥373॥
अर्थ - भवप्रत्यय अवधि तनयम स िश वधि ही ह ि
ह अ र परम वधि िर् सव थवधि तनयम स गुणप्रत्यय
ही हुअ करि हं 
िश वधिज्ञ न भवप्रत्यय अ र गुणप्रत्यय ि न ं  िरह
क ह ि ह ॥373॥
अवधिज्ञ न
िश वधि
भवप्रत्यय,
गुणप्रत्यय
परम वधि
गुणप्रत्यय
सव थवधि
गुणप्रत्यय
िस हहथस य अवरं , णरतिररय ह दि सं जिण्म्ह वरं 
परम ही सव् ही, िरमसरीथस ववरिथस॥374॥
अर्थ - जघन्द्य िश वधिज्ञ न सं यि य असं यि
मनुष्य अ र तियंि ं  क ह ि ह
उत्कृ ष्ट िश वधिज्ञ न सं यि जीव ं  क ही ह ि ह
वकन्द्िु परम वधि अ र सव थवधि िरमशरीरी मह व्रिी
क ही ह ि ह ॥374॥
थव मी
िश वधि
•जघन्द्य - मनुष्य,
तियंि
•उत्कृ ष्ट -
सकलसं यमी
परम वधि
•िरम शरीरी
मह व्रिी
सव थवधि
•िरम शरीरी
मह व्रिी
पदिव िी िस ही, अप्पदिव िी हवं ति सस अ
लमच्छिं  अववरमणं , ण य पदिवज्जं ति िरमिुग॥375॥
अर्थ - िश वधिज्ञ न प्रतिप िी ह ि ह अ र
परम वधि िर् सव थवधि अप्रतिप िी ह ि हं 
परम वधि अ र सव थवधिव ल जीव तनयम स
लमथ्य त्व अ र अव्रि अवथर् क प्र प्ि नहीं 
ह ि॥375॥
प्रतिप ि = सम्यक्‍त्व अ र ि ररत्र स च्युि ह न
िश वधि
•प्रतिप िी
परम वधि / सव थवधि
•अप्रतिप िी
िव्ं  खिं  क लं , भ वं  पदि रूवव ज णि अ ही
अवर िुक्कथस त्ति य, ववयप्परहहि िु सव् ही॥376॥
अर्थ - जघन्द्य भि स लकर उत्कृ ष्ट भिपयथन्द्ि
अवधिज्ञ न क ज असं ख्य ि ल क प्रम ण भि हं  व सब
ही द्रव्य, क्षत्र, क ल, भ व की अपक्ष स प्रत्यक्षिय रूपी
(पुि्गल) द्रव्य क ही ग्रहण करि हं  िर् उसक सं बं ि
स सं स री जीव द्रव्य क भी ज नि हं  वकन्द्िु
सव थवधिज्ञ न मं  जघन्द्य- उत्कृ ष्ट अ दि भि नहीं  हं  - वह
तनववथकल्प - एक प्रक र क ह ॥376॥
अवधिज्ञ न क ववषय
द्रव्य, क्षत्र, क ल, भ व की मय थि सहहि
1) रूपी द्रव्य (पुि्गल)
2) पुि्गल सं बं ि सहहि सं स री जीव
अवधिज्ञ न क प्रभि
•असं ख्य ि ल क प्रम ण भििश वधि
•असं ख्य ि ल क प्रम ण भिपरम वधि
•1 भिसव थवधि
ण कम्मुर लसं िं , मण्झिमज गत्तज्जयं  सववथसियं 
ल यववभिं  ज णदि, अवर ही िव्वि णणयम ॥377॥
अर्थ - मध्यम य ग क द्व र सं लिि ववस्रस पिय
सहहि न कमथ अ ि ररक वगथण क सं िय मं  ल क क
भ ग िन स जजिन द्रव्य लब्ि अ व उिन क तनयम
स जघन्द्य अवधिज्ञ न द्रव्य की अपक्ष स ज नि ह
इसस छ ट (सूक्ष्म) थकं  ि क वह नहीं  ज नि
इसस थर्ूल थकं  ि क ज नन मं  कु छ ब ि नहीं 
ह॥377॥
अवधिज्ञ न क जघन्द्य द्रव्य प्रम ण
अर् थि् इस प्रक र क इिन परम णुअ ं  क थकन्द्ि क जघन्द्य
अवधिज्ञ न ज नि ह
इसस थर्ूल क ि ज न सकि ह, पर इसस सूक्ष्म क नहीं 
ज नि
विस्रसोपचय सहित औदारिक शिीि का संचय
लोक
= जघन्द्य द्रव्य
𝟑
𝟐
× गुणह तन × समयप्रबि = अ ि ररक शरीर क सं िय
इसक ववस्रस पिय इसस अनं ि गुण ह
ि न ं  क ज िकर ल क क भ ग िन पर जजिन प्रम ण अ ि ह
उिन अनन्द्ि परम णुअ ं  क थकन्द्ि क जघन्द्य अवधिज्ञ न ज नि ह
एस थकन्द्ि िक्षु अ दि इण्न्द्द्रय ं  द्व र नहीं  ज न ज सकि
सुहमणणग िअपझजियथस ज िथस िदियसमयण्म्ह
अवर ग हणम णं , जहणणयं  अ हहखिं  िु॥378॥
अर्थ - सूक्ष्म तनग दिय लब्ध्यपय थप्िक की
उत्पन्न ह न स िीसर समय मं  ज जघन्द्य
अवग हन ह िी ह उसक जजिन प्रम ण ह
उिन ही अवधिज्ञ न क जघन्द्य क्षत्र क प्रम ण
ह ॥378॥
अवधिज्ञ न क जघन्द्य क्षत्र प्रम ण
सूक्ष्म तनग दिय लस्ब्ि-अपय थप्िक क
जन्द्म लन क िृिीय समय मं 
जघन्द्य अवग हन ह िी ह
इस जघन्द्य अवग हन प्रम ण क्षत्र क
जघन्द्य अवधिज्ञ न ज नि ह
अर् थि् इिन क्षत्र क भीिर स्थर्ि द्रव्य क ज नि ह
अवर हहखििीहं , ववत्र् रुथसहयं  ण ज ण म
अणणं  पुण समकरण, अवर ग हणपम णं  िु॥379॥
अर्थ - जघन्द्य अवधिज्ञ न क क्षत्र की ऊाँ ि ई,
लम्ब ई, ि ि ई क लभन्न-लभन्न प्रम ण हम नहीं 
ज नि िर् वप इिन ज नि हं  वक समीकरण करन
स ज क्षत्रफल ह ि ह, वह जघन्द्य अवग हन क
सम न घन ं गुल क असं ख्य िवं  भ गम त्र ह ि ह
॥379॥
जघन्द्य अवग हन = लं ब ई × ि ि ई × ऊाँ ि ई
=
उत्‍सेधांगुल
असं.
×
उत्‍सेधांगुल
असं.
×
उत्‍सेधांगुल
असं.
=
घनांगुल
असं.
अवर ग हणम णं , उथसहं गुलअसं खभ गथस
सूइथस य घणपिरं , ह दि हु िक्‍खिसमकरण॥380॥
अर्थ - क्षत्रखं ि ववि न स समीकरण करन पर प्र प्ि
उत्सि ं गुल (व्यवह र सूच्यं गुल) क असं ख्य िवं  भ ग
प्रम ण-भुज क टी अ र वि मं  परथपर गुण करन स
घन ं गुल क असं ख्य िवं  भ ग प्रम ण जजिन जघन्द्य
अवग हन क प्रम ण ह ि ह उिन ही जघन्द्य
अवधिज्ञ न क क्षत्र ह ि ह ॥380॥
अवरं  िु अ हहखिं , उथसहं  अं गुलं  हव जम्ह
सुहम ग हणम णं , उवरर पम णं  िु अं गुलयं ॥381॥
अर्थ - ज जघन्द्य अवधि क क्षत्र पहल बि य
ह वह भी व्यवह र ं गुल की अपक्ष उत्सि ं गुल ही
ह, क ं वक वह सूक्ष्म तनग दिय लब्ध्यपय थप्िक
की जघन्द्य अवग हन प्रम ण ह परन्द्िु अ ग
अं गुल स प्रम ण ं गुल क ग्रहण करन ॥381॥
अवर हहखिमझि, अवर ही अवरिव्वमवगमदि
िद्दव्वथसवग ह , उथसह सं खघणपिर ॥382॥
अर्थ - जघन्द्य अवधि अपन जघन्द्य क्षत्र मं 
जजिन भी असं ख्य ि प्रम ण जघन्द्य द्रव्य हं 
जजसक वक प्रम ण ऊपर बि य ज िुक ह
उन सबक ज नि ह उस द्रव्य क अवग ह
उत्सि (व्यवह र) घन ं गुल क असं ख्य िवं 
भ गम त्र ह ि ह ॥382॥
जघन्द्य अवधि क्षत्र
इसमं  जघन्द्य द्रव्य थकं  ि असं ख्य ि ह सकि हं 
क्‍य ं वक जघन्द्य द्रव्य की अवग हन
जघन्‍य क्षेत्र
असं.
ह
जघन्द्य क्षत्र मं  स्थर्ि जघन्द्य द्रव्य स थर्ूल थकं  ि
क ि ज न ही सकि ह
जघन्द्य क्षत्र मं  वकिन जघन्द्य द्रव्य सम सकि हं ?
=
जघन्‍य क्षेत्र
एक जघन्‍य द्रव्‍य की अिगािना
=
घनांगुल/असं.
घनांगुल/असं.
= असं ख्य ि
उि हरण
500 𝑠𝑞3
5 𝑠𝑞3
= 100
जघन्द्य क्षत्र क ववषय मं  ववशष
घन क्षत्र
घन ं गुल क
असं ख्य िव ं 
भ ग
क्षत्र क
अ क र
अतनयि
लम्ब ई, ि ि ई,
ऊाँ ि ई
उपिश उपलब्ि
नहीं 
सदृश्य म नन पर
प्रत्यक
उत्‍सेधांगुल
असं.
अं गुल यह ाँ क न-
स ह
उत्सि ं गुल
(व्यवह र ं गुल)
अ ग क्षत्र प्रकरण
मं  प्रम ण ं गुल
ज नन
अ वललअसं खभ गं , िीिभववथसं  ि क लि अवरं 
अ ही ज णदि भ व, क लअसं खझजभ गं  िु॥383॥
अर्थ - जघन्द्य अवधिज्ञ न क ल स अ वली क असं ख्य िवं  भ गम त्र
अिीि, अन गि क ल क ज नि ह पुनश्च भ व स अ वली क
असं ख्य िवं  भ गम त्र क ल प्रम ण क असं ख्य िवं  भ ग प्रम ण भ व,
उनक ज नि ह
जघन्द्य अवधिज्ञ न पूव थक्त क्षत्र मं , पूव थक्त एक द्रव्य क, अ वली क
असं ख्य िवं  भ ग प्रम ण अिीि (भूि) क ल मं  िर् उिन ही अन गि
(भववष्य) क ल मं  ज अ क ररूप व्यं जनपय थय हुय र् िर् ह ं ग उनक
ज नि ह
पूव थक्त क्षत्र मं  पूव थक्त द्रव्य क विथम न पररणमनरूप अ वली क
असं ख्य िवं  भ ग क असं ख्य िवं  भ ग प्रम ण अर्थपय थय ज नि ह
॥383॥
जघन्द्य अवधिज्ञ न क क ल, भ व प्रम ण
•
आिली
असंख्‍यात
जघन्द्य क ल
•
जघन्‍य काल
असंख्‍यात
=
आिली
असं.×असं.
जघन्द्य भ व
इिन भूि अ र भववष्य क क ल क अवधिज्ञ न प्रत्यक्ष िखि ह
अ
𝛛𝛛
प्रम ण भ व ं  क अर् थि् अर्थपय थय ं  (ववशषि अ ं ) क जघन्द्य अवधिज्ञ न ज नि
ह
जघन्द्य अवधिज्ञ न की द्रव्य दि मय थि
•
विस्रसोपचय सहित औदारिक शिीि का संचय
लोक
द्रव्य
•जघन्द्य अवग हन प्रम ण
घनांगुल
असंख्‍यात
क्षत्र
•
आिली
𝝏
क ल
•
आिली
𝝏𝝏
भ व
अवरद्दव् िुवररम-िव्वववयप्प य ह दि िुवह र
ससि णं तिमभ ग , अभव्वससि िणं िगुण ॥384॥
अर्थ - जघन्द्य िश वधि ज्ञ न क ववषयभूि द्रव्य
स ऊपर हद्विीय अ दि अवधिज्ञ न क भि ं  क
ववषयभूि द्रव्य ं  क ल न क ललय ससि र शश क
अनं िव ाँ भ ग अ र अभव्य र शश स अनं ि गुण
ध्रुवभ गह र ह ि ह ॥384॥
िश वधिज्ञ न क द्रव्य अपक्ष भि
2nd
प्रथम भेद
ध्रुििाि
3rd
हद्विीय भि
ध्रुवह र
4th
तृतीय भेद
ध्रुििाि
इस ही प्रक र स प्रत्यक भि तनक लन हिु पूवथ द्रव्य मं  ध्रुवह र क भ ग लग न
ध्रुवह र =
ससि
अनं ि
य अभव्य × अनं ि
िुवह रकम्मवग्गण-गुणग रं  कम्मवग्गणं  गुणणि
समयपबिपम णं , ज णणज्ज अ हहववसयण्म्ह॥385॥
अर्थ - ध्रुवह ररूप क मथणवगथण क गुण क र क
अ र क मथणवगथण क परथपर गुण करन स
अवधिज्ञ न क ववषय मं  समयप्रबि क प्रम ण
तनकलि ह जघन्द्य िश वधि क ववषयभूि ज द्रव्य
कह र् , उसी क न म यह ाँ समयप्रबि ज नन
॥385॥
क मथण वगथण क गुणक र = (ध्रुििाि)(देशािधध के विकल्‍प ‒𝟐)
क मथण वगथण क गुणक र य न जजस क मथण वगथण स गुण करन पर जघन्द्य
अवधिज्ञ न क ववषयभूि द्रव्य अ ि ह |
क मथण वगथण गुणक र × क मथण वगथण = अवधिज्ञ न क ववषयभूि जघन्द्य
द्रव्य
* इसी जघन्द्य द्रव्य क यह ाँ समयप्रबि कह ह
िश वधि क द्रव्य की अपक्ष भि - उि हरण
1,31072 65,536 32,768 16,384 8,192 4096 10242048
िश वधि
क उत्कृ ष्ट
भि
परम वधि
िश वधि
क जघन्द्य
भि
क मथण
वगथण
अ ि ररक+
ववस्रस पिय
ध्रुवह र = 2
िश वधि क ववकल्प = 7
परम वधि क द्रव्य की अपक्ष भि - उि हरण
1024 512 256 128 64 81632 4
परम वधि
क उत्कृ ष्ट
भि
सव थवधि
परम वधि
क जघन्द्य
भि
क मथण
वगथण /(ध्रुवह र)2
ध्रुवह र = 2
परम वधि क ववकल्प = 10
2 1
परम णु
• क मथण वगथण क गुणक र = (ध्रुििाि)(देशािधध के विकल्‍प ‒𝟐)
• =2(7 – 2)
• =25
• = 32
• अवधिज्ञ न क ववषयभूि जघन्द्य द्रव्य = क मथण वगथण गुणक र × क मथण
वगथण
• = 32 * 4096
• =1,31,072 जघन्द्य द्रव्य
म न - िश वधि क ववकल्प = 7, ध्रुवह र = 2, ज. िश वधि द्रव्य =
131,072, क . व. = 4096
मणिव्ववग्गण णं , ववयप्प णं तिमसमं  खु िुवह र
अवरुक्कथसववसस , रूवहहय िहव्यप्प हु॥386॥
अर्थ - मन द्रव्य वगथण क उत्कृ ष्ट प्रम ण मं  स जघन्द्य
प्रम ण क घट न पर ज शष रह उसमं  एक लमल न स
मन द्रव्य वगथण अ ं  क ववकल्प ं  क प्रम ण ह ि ह
इन ववकल्प ं  क जजिन प्रम ण ह उसक अनं ि भ ग ं 
मं  स एक भ ग क बर बर अवधिज्ञ न क ववषयभूि द्रव्य
क ध्रुवह र क प्रम ण ह ि ह ॥386॥
ध्रुवह र क प्रम ण
मनोिगगणा के प्रकाि
अनंत
मनोिगगणा के प्रकाि = उत्कृ ष्ट मन वगथण ‒ जघन्द्य मन वगथण +
1
अिः ध्रुििाि =
उत्‍कृ ष्‍ट मनोिगगणा ‒ जघन्‍य मनोिगगणा + 1
अनंत
अवरं  ह दि अणं िं , अणं िभ गण अहहयमुक्कथसं 
इदि मणभि णं तिम-भ ग िव्वण्म्म िुवह र ॥387॥
अर्थ - मन वगथण क जघन्द्य भि अनं ि प्रम ण ह अनं ि
परम णुअ ं  क थकं  िरूप जघन्द्य मन वगथण ह
उस प्रम ण क अनं ि क भ ग िन पर ज प्रम ण अ ि ह,
उिन उस जघन्द्य भि क प्रम ण मं  ज िन पर ज प्रम ण ह ,
वही मन वगथण क उत्कृ ष्ट भि क प्रम ण ज नन इिन
परम णुअ ं  क थकं  िरूप उत्कृ ष्ट मन वगथण ह
स जघन्द्य स लकर उत्कृ ष्ट िक पूव थक्त प्रक र स मन वगथण
क जजिन भि हुय, उनक अनं िवं  भ गम त्र यह ाँ ध्रुवह र क
प्रम ण ह ॥387॥
•अनं ि परम णुअ ं  क थकन्द्िजघन्द्य मन वगथण
•जघन्द्य मन वगथण +
जघन्‍य मनोिगगणा
अनंत
उत्कृ ष्ट मन वगथण
•अनन्द्ि (य न
जघन्‍य मनोिगगणा
अनंत
+ 1)
अि: मन वगथण क
प्रक र
इन ववकल्प ं  क अनन्द्िव ं  भ ग ध्रुवह र क प्रम ण ह
म न – मन वगथण जघन्द्य =8193, उत्कृ ष्ट = 8704, अनं ि = 256
• मन वगथण क प्रक र = उत्कृ ष्ट – जघन्द्य + 1
• = 8704 – 8193 + 1
• = 511 + 1
• = 512
• ध्रुवह र =
उत्‍कृ ष्‍ट मनोिगगणा ‒ जघन्‍य मनोिगगणा + 1
अनंत
• =
512
256
= 2 = ध्रुवह र
िुवह रथस पम णं , ससि णं तिमपम णमिं  वप
समयपबिणणलमिं , कम्मणवग्गणगुण ि िु॥388॥
ह दि अणं तिमभ ग , िग्गुणग र वव िसअ हहथस
ि ऊणिव्वभि-पम ण िुवह रसं वग्ग ॥389॥
अर्थ - यद्यवप ध्रुवह र क प्रम ण ससिर शश क अनं िवं  भ ग हं ,
िर् वप अवधिज्ञ न ववषयक समयप्रबि क प्रम ण तनक लन क
तनलमिभूि क मथणवगथण क गुणक र स अनं िवं  भ ग समिन
ि हहय
द्रव्य की अपक्ष स िश वधिज्ञ न क जजिन भि हं , उनमं  ि
कम करन स ज प्रम ण शष रह उिनी ब र ध्रुवह र क
परथपर गुण करन स क मथण वगथण क गुणक र क प्रम ण
तनकलि ह ॥388-389॥
ध्रुवह र
ससि र शश
अनं ि
य अभव्य ं  स अनं ि गुण
कामगण िगगणा का गुणकाि
अनंत
मनोिगगणा के प्रकाि
अनंत
अन्द्य प्रक र स जघन्द्य द्रव्य (समयप्रबि) क
प्रम ण
क मथण वगथण क गुणक र × क मथण वगथण
(ध्रुििाि)देशािधध के विकल्‍प ‒𝟐
× (ध्रुििाि)पिमािधध के विकल्‍प +𝟐
(ध्रुििाि)(देशािधध ि पिमािधध के समस्‍त विकल्‍प)
अन्‍य‍प्रकाि‍से‍जघन्‍य‍द्रव्‍य‍(समयप्रबद्ध)
का‍प्रमाण‍
• क मथण वगथण क गुणक र × क मथण वगथण
• (ध्रुििाि)देशािधध के विकल्‍प ‒𝟐
×
(ध्रुििाि)पिमािधध के विकल्‍प +𝟐
• (ध्रुििाि)(देशािधध ि पिमािधध के समस्‍त विकल्‍प)
• जघन्‍य‍द्रव्‍य‍(समयप्रबद्ध)
• 32 * 4096
• =2(7 – 2) * 2(10+2)
• 25 * 212
• 217
• 1,31,072 जघन्‍य‍द्रव्‍य‍(समयप्रबद्ध)
अं गुलअसं खगुणणि , खिववयप्प य िव्वभि हु
खिववयप्प अवरुक्कथसववससं  हव एत्र्॥390॥
अर्थ - िश वधिज्ञ न क क्षत्र की अपक्ष जजिन भि हं  उनक
सूच्यं गुल क असं ख्य िवं  भ ग स गुण करन पर द्रव्य की
अपक्ष स िश वधि क भि ं  क प्रम ण तनकलि ह
क्षत्र की अपक्ष उत्कृ ष्ट प्रम ण स सवथ जघन्द्य प्रम ण क
घट न स ज प्रम ण शष रह उिन ही क्षत्र की अपक्ष स
िश वधि क ववकल्प ह ि हं  इसक सूच्यं गुल क असं ख्य िवं 
भ ग स गुण करक उसमं  एक लमल न पर द्रव्य की अपक्ष स
िश वधि क भि ह ि हं  ॥390॥
द्रव्य अपक्ष भि
•(क्षत्र अपक्ष भि×
सूच्‍यंगुल
असंख्‍यात
) + 1
क्षत्र अपक्ष भि
•उत्कृ ष्ट क्षत्र ‒ जघन्द्य
क्षत्र
म न वक
सू.
असं.
= 3
भि सं ख्य क्षत्र
1
2
3
10 प्रिश
10 प्रिश
10 प्रिश
4
5
6
11 प्रिश
11 प्रिश
11 प्रिश
7
8
9
12 प्रिश
12 प्रिश
12 प्रिश
10 13 प्रिश
उत्कृ ष्ट क्षत्र ‒ जघन्द्य क्षत्र
13 ‒ 10 = 3
(क्षत्र अपक्ष भि ×
सूच्‍यंगुल
असंख्‍यात
) + 1
(3 × 3) + 1
= 9 + 1 = 10
द्रव्य, क्षत्र अपक्ष भि - उि हरण
अं गुलअसं खभ गं , अवरं  उक्कथसयं  हव ल ग
इदि वग्गणगुणग र , असं खिुवह रसं वग्ग ॥391॥
अर्थ - िश वधि क पूव थक्त सूक्ष्म तनग दिय
लब्ध्यपय थप्िक की जघन्द्य अवग हन प्रम ण, अर् थि्
घन ं गुल क असं ख्य िवं  भ गथवरूप ज प्रम ण बि य ह
वही जघन्द्य िश वधि क ववषयभूि क्षत्र क प्रम ण ह
सं पूणथ ल कप्रम ण उत्कृ ष्ट क्षत्र ह
इस प्रक र िश वधि क सवथ द्रव्य ववकल्प ं  क प्रम ण मं 
स ि कम करन पर ज प्रम ण शष रह उिन ही
ध्रुवह र ं  क रखकर परथपर गुण करन स क मथण वगथण
क गुणक र तनष्पन्न ह ि ह ॥391॥
िश वधिज्ञ न – क्षत्र प्रम ण
•
अंगुल
असं.
जघन्द्य क्षत्र
•ल क
उत्कृ ष्ट
क्षत्र
िश वधि क कु ल भि
लोक ‒
अंगुल
असं.
×
सू.
असं.
+ 1
(ल क ×
सू.
𝜕
‒
अंगुल
𝜕
×
सू.
𝜕
) + 1
ल क ×
सू.
𝜕
‒ अर् थि् ≡ 𝜕
क मथण वगथण क गुणक र
(ध्रुििाि)देशािधध के विकल्‍प ‒𝟐
(ध्रुििाि)≡𝛛‒𝟐
= ध्रुििाि≡𝝏
वग्गणर ससपम णं , ससि णं तिमपम णमिं  वप
िुगसहहयपरमभिपम णवह र ण सं वग्ग ॥392॥
अर्थ - क मथणवगथण क प्रम ण यद्यवप ससि
र शश क अनं िवं  भ ग ह, िर् वप परम वधि क
भि ं  मं  ि लमल न स ज प्रम ण ह उिनी जगह
ध्रुवह र रखकर परथपर गुण करन स
लब्िर शशप्रम ण क मथणवगथण क प्रम ण ह ि ह
॥392॥
क मथण वगथण क प्रम ण
ससि र शश
अनं ि
अर्व
(ध्रुििाि)(पिमािधध के विकल्‍प +𝟐)
परम वहहथस भि , सगअ ग हणववयप्पहििऊ
इदि िुवह रं  वग्गण-गुणग रं  वग्गणं  ज ण॥393॥
अर्थ - िजथक ययक जीव ं  की अवग हन क जजिन
ववकल्प हं  उसक अ र िजथक ययक जीवर शश क
परथपर गुण करन स ज र शश लब्ि अ व, उिन
ही परम वधि ज्ञ न क द्रव्य की अपक्ष स भि ं  क
प्रम ण ह ि ह इसप्रक र ध्रुवह र, वगथण क
गुणक र अ र वगथण क थवरूप समिन ि हहय
॥393॥
परम वधि क भि
अयिक ययक क अवग हन क भि × अयिक ययक जीव
𝜕 × ≡ 𝜕
= ≡ 𝜕
िस हहअवरिव्ं , िुवह रणवहहि हव ववदियं 
िदिय दिववयप्पसु वव, असं खव र त्ति एस कम ॥394॥
अर्थ - िश वधिज्ञ न क ववषयभूि जघन्द्य द्रव्य
पहल कह र् , उसक ध्रुवह र क भ ग िन पर ज
प्रम ण ह , वह िूसर िश वधि क भि क ववषयभूि
द्रव्य ह एस ही ध्रुवह र क भ ग िि-िि िीसर,
ि र् अ दि भि ं  क ववषयभूि द्रव्य ह ि ह एस
असं ख्य ि ब र अनुक्रम करन ॥394॥
िस हहमझिभि सववथसस वियिजकम्मं गं 
िज भ समण णं , वग्गणयं  कवलं  जत्र्॥395॥
पथसदि अ ही ित्र् असं खज्ज अ हवं ति िीउवही
व स णण असं खज्ज ह ं ति असं खझजगुणणिकम ॥396॥
अर्थ - िश वधिज्ञ न क मध्यम भि ं  मं  स जह ाँ िश वधिज्ञ न
ववस्रस पिय सहहि िजस शरीररूप थकन्द्ि क ज नि ह,
उसस अ ग जह ाँ-जह ाँ ववस्रस पिय सहहि क मथणथकं  ि,
ववस्रस पिय रहहि िजस वगथण , ववस्रस पिय रहहि
भ ष वगथण , ववस्रस पिय रहहि मन वगथण क ज नि ह, वह ाँ-
वह ाँ इन प ाँि ं  थर् न ं  मं  क्षत्र असं ख्य ि द्वीप-समुद्र अ र क ल
असं ख्य ि वषथ ह ि ह िर् वप उिर िर असं ख्य ि गुणणिक्रम
ह ि ह अर् थि पहल स िूसर, िूसर स िीसर, िीसर स ि र्
अ र ि र् स प ाँिवं  भि सम्बन्द्िी क्षत्र, क ल क पररम ण
असं ख्य ि गुण ह ॥395-396॥
एस ध्रुवह र क भ ग िि-िि क्रम-क्रम स य थर् न
अ ि हं  —
द्रव्य क्षत्र क ल
ववस्रस पिय सहहि
िजस शरीर
असं ख्य ि
द्वीप समुद्र
(उिर िर थर् न ं  मं 
असं ख्य ि गुण )
असं ख्य ि
वषथ
(उिर िर थर् न ं  मं 
असं ख्य ि गुण )
ववस्रस पिय सहहि
क मथण शरीर
1 िजस वगथण
1 भ ष वगथण
1 मन वगथण
िि कम्मइयण्थसयग-समयपबिं  ववववथसस वियं 
िुवह रथस ववभज्जं , सव् ही ज व ि व हव॥397॥
अर्थ - इसक अनन्द्िर मन वगथण मं  ध्रुवह र क
भ ग िन ि हहय इसिरह भ ग िि-िि
ववस्रस पियरहहि क मथण क एक समयप्रबि प्रम ण
ववषय अ ि ह उक्त क्रम नुस र इसमं  भी सव थवधि
क ववषय पयथन्द्ि ध्रुवह र क भ ग िि ज न ि हहय
॥397॥
इसी क्रम स ववस्रस पिय रहहि क मथण
क एक समयप्रबि क प्रम ण अ ि ह
एस ही सव थवधिज्ञ न पयथन्द्ि ध्रुवह र क
भ ग लग ि ज न ि हहए
एिण्म्ह ववभज्जं ि, िुिररमिस वहहण्म्म वग्गणयं 
िररम कम्मइयण्थसयग-वग्गणलमयगव रभजजिं  िु॥398॥
अर्थ - इस क मथण समयप्रबि मं  ध्रुवह र स
भ ग िन पर िश वधि क हद्विरम
भिक मथणवगथण रूप द्रव्य ववषय ह ि ह अ र
अण्न्द्िम भि मं  ध्रुवह र स एक ब र भ जजि
क मथणवगथण द्रव्य ह ि ह ॥398॥
त्रत्रचिम देशािधध
ध्रुििाि
= क मथण वगथण
(हद्विरम भि)
द्विचिम देशािधध
ध्रुििाि
= िरम भि
कामगण िगगणा
ध्रुििाि
= िरम भि
अं गुलअसं खभ ग, िव्वववयप्प गि िु खिण्म्ह
एग ग सपिस , वड्ढदि सं पुणणल ग त्ति॥399॥
अर्थ - सूच्यं गुल क असं ख्य िवं  भ गप्रम ण जब
द्रव्य क ववकल्प ह ज य िब क्षत्र की अपक्ष
अ क श क एक प्रिश बढि ह इस ही क्रम स
एक-एक अ क श क प्रिश की वृणि वह ाँ िक करनी
ि हहय वक जह ाँ िक िश वधि क उत्कृ ष्ट क्षत्र
सवथल क ह ज य ॥399॥
द्रव्य के भेद क्षेत्र मर्यादय
प्रथम, द्वितीर्, तृतीर् आद्वद भेद जघन्र् क्षेत्र
सू/ 𝛛 भेद जघन्र् क्षेत्र + 1 प्रदेश
सू/ 𝛛 भेद जघन्र् क्षेत्र + 2 प्रदेश
ऐसे लोक पर्ान्त प्रदेशोों को बढयनय ।
सू
𝜕
प्रम ण द्रव्य क भि ह न पर
क्षत्र मं  1 प्रिश की वृणि ह िी ह
अ वललअसं खभ ग , जहणणक ल कमण समयण
वड्ढदि िस हहवरं , पल्लं  समऊणयं  ज व॥400॥
अर्थ - जघन्द्य िश वधि क ववषयभूि क ल क
प्रम ण अ वली क असं ख्य िव ाँ भ ग ह
इसक ऊपर उत्कृ ष्ट िश वधि क ववषयभूि एक
समय कम एक पल्यप्रम ण क ल पयथन्द्ि, ध्रुव िर्
अध्रुव वृणिरूप क्रम स एक-एक समय की वृणि ह िी
ह ॥400
क्षत्र मं  ध्रुववृणि अर्व अध्रुववृणि ह न पर
क ल मं  1 समय बढि ह
क्षत्र क भि क ल मय थि
जघन्द्य क्षत्र जघन्द्य क ल
+ 1 प्रिश ''
+ 2 प्रिश ''
+ घ/𝝏 प्रिश जघन्द्य क ल+1 समय
..... + घ/𝝏 प्रिश जघन्द्य क ल+2 समय
इस प्रक र ध्रुव अर्व अध्रुव वृणि क क्रम स 1-1 समय की
वृणि ह ि हुए (पल्य‒1 समय) िक वृणि ह िी ह
िश वधि की क ल मय थि
जघन्द्य
आिली
𝝏
उत्कृ ष्ट
पल्य ‒ 1 समय
अं गुल असं खभ गं , िुवरूवण य असं खब रं  िु
असं खसं खं  भ गं , असं खव रं  िु अिुवग ॥401॥
अर्थ: घन ं गुल क अ वली स भ ग िन पर घन ं गुल क
असं ख्य िव भ ग ह ि ह उिन ही ध्रुवरूप स वृणि क
प्रम ण ह ि ह यह वृणि प्रर्म क णिक क अण्न्द्िम भि
पयथन्द्ि असं ख्य ि ब र ह िी ह
पुन: उसी प्रर्म क णिक म अध्रुववृणि की वववक्ष ह न पर
उस वृणि क प्रम ण घन ं गुल क असं ख्य िव भ ग अ र
सं ख्य िव भ ग ह ि ह अध्रुववृणि भी प्रर्म क णिक क
अण्न्द्िम भि पयथन्द्ि असं ख्य ि ब र ह िी ह ॥401॥
प्रर्म क णिक (पवथ) की ववशषि
जघन्द्य क ल स उत्कृ ष्ट क ल पयथन्द्ि
वृणि वकिन प्रिश ं  की वृणि ह न
पर 1 समय की वृणि ह िी ह
समय की वृणि वकिनी
ब र ह िी ह
ध्रुव वृणि घनांगुल
आिली
=
घनांगुल
असं.
असं ख्य ि ब र
अध्रुव वृणि घनांगुल
असं.
अर्व
घनांगुल
संख्‍यात
असं ख्य ि ब र
कु ल वृणि असं ख्य ि समय
िुवअिुवरूवण य, अवर खिण्म्ह वहड्ढि खि
अवर क लण्म्ह पुण , एक्कक्कं  वड्ढि समयं ॥402॥
अर्थ - जघन्द्य िश वधि क ववषयभूि क्षत्र क
ऊपर ध्रुवरूप स अर्व अध्रुवरूप स क्षत्र की
वृणि ह न पर जघन्द्य क ल क ऊपर एक-एक
समय की वृणि ह िी ह॥402॥
• क्षत्र मं  तनयि प्रिश ं  की वृणि ह न पर क ल मं 
वृणि ह न यह ध्रुववृणि ह
ध्रुववृणि
• क्षत्र मं  अतनयि प्रिश ं  की वृणि ह न पर क ल
मं  वृणि ह न यह अध्रुववृणि ह
अध्रुववृणि
Note - यह ि न ं  वृणिय ाँ क ल वृणि क ललए ही हं 
द्रव्य अ र भ व की वृणि प्रत्यक भि मं  ह िी ह
क्षत्र मं  वृणि प्रत्यक
सू
𝛛
प्रम ण भि ज न पर ह िी ह
ध्रुववृणि अ र अध्रुववृणि - ि न ं  प्रक र की वृणि ह ि हुए क ल मं  1-1 समय बढि ह
सं ख िीि समय , पढम पव्वण्म्म उभयि वड्ढी
खिं  क लं  अण्थसय, पढम िी कं  िय व च्छं ॥403॥
अर्थ - प्रर्म क णिक मं  ध्रुवरूप स अ र
अध्रुवरूप स असं ख्य ि समय की वृणि ह िी ह
इसक अ ग प्रर्म दि क णिक ं  क क्षत्र अ र
क ल क अ श्रय स वणथन करि हं  ॥403॥
अं गुलम वललय ए, भ गमसं खझजि वव सं खज्ज
अं गुलम वललयं ि , अ वललयं  ि ं गुलपुििं ॥404॥
अर्थ - प्रर्म क णिक मं  जघन्द्य क्षत्र घन ं गुल क
असं ख्य िवं  भ गप्रम ण अ र उत्कृ ष्ट क्षत्र घन ं गुल क
सं ख्य िवं  भ ग प्रम ण ह अ र जघन्द्य क ल क प्रम ण
अ वली क असं ख्य िव ाँ भ ग िर् उत्कृ ष्ट क ल क
प्रम ण अ वली क सं ख्य िव ाँ भ ग ह िूसर क णिक मं 
क्षत्र घन ं गुलप्रम ण अ र क ल कु छ कम एक अ वली
प्रम ण ह िीसर क णिक मं  क्षत्र घन ं गुल पृर्क्‍त्व अ र
क ल अ वली पृर्क्‍त्व प्रम ण ह ॥404॥
क णिक द्रव्य क्षत्र क ल भ व
प्रर्म-उत्कृ ष्ट ¦ घनांगुल
संख्‍यात
आिली
संख्‍यात
¦
िूसर -उत्कृ ष्ट ¦ घन ं गुल
कु छ कम
अ वली
¦
िीसर ¦
पृर्क्‍त्व
घन ं गुल
पृर्क्‍त्व
अ वली
¦
अवधिज्ञ न क 19 क ं िक
अ वललयपुििं  पुण, हत्र्ं  िह ग उयं  मुहुिं  िु
ज यणलभणणमुहुिं , दिवसं ि पणणुवीसं  िु॥405॥
अर्थ - ििुर्थ क णिक मं  क ल अ वली पृर्क्‍त्व अ र
क्षत्र हथिप्रम ण ह
प ाँिवं  क णिक मं  क्षत्र एक क श अ र क ल अन्द्िमुथहूिथ
ह
छठ क णिक मं  क्षत्र एक य जन अ र क ल लभन्नमुहूिथ
ह
स िवं  क णिक मं  क ल कु छ कम एक दिन अ र क्षत्र
पच्चीस य जन ह ॥405॥
क णिक द्रव्य क्षत्र क ल भ व
ि र् ¦ एक ह र् पृर्क्‍त्व अ वली ¦
प ाँिव ाँ ¦ एक क स अन्द्िमुथहूिथ ¦
छठ ¦ एक य जन लभन्द्न मुहूिथ ¦
स िव ाँ ¦ 25 य जन कु छ कम 1 दिन ¦
अवधिज्ञ न क 19 क ं िक
भरहण्म्म अिम सं , स हहयम सं  ि जम्बुिीवण्म्म
व सं  ि मणुवल ए, व सपुििं  ि रुिगण्म्म॥406॥
अर्थ - अ ठवं  क णिक मं  क्षत्र भरिक्षत्र प्रम ण अ र
क ल अिथम स (पक्ष) प्रम ण ह
न वं  क णिक मं  क्षत्र जम्बूद्वीप प्रम ण अ र क ल एक
म स स कु छ अधिक ह
िशवं  क णिक मं  क्षत्र मनुष्यल क प्रम ण अ र क ल
एक वषथ प्रम ण ह
ग्य रहवं  क णिक मं  क्षत्र रुिक द्वीप अ र क ल
वषथपृर्क्‍त्व प्रम ण ह ॥406॥
क णिक द्रव्य क्षत्र क ल भ व
अ ठव ाँ ¦ भरि क्षत्र 1/2 महीन ¦
न व ाँ ¦ जम्बूद्वीप
कु छ अधिक
1 महीन
¦
िसव ाँ ¦
मनुष्य ल क
(45 ल ख य जन प्रम ण)
1 वषथ ¦
ग्य रहव ाँ ¦ रुिक (13व ाँ) द्वीप पृर्क्‍त्व वषथ ¦
अवधिज्ञ न क 19 क ं िक
सं खझजपम व स, िीवसमुद्द हवं ति सं खज्ज
व सण्म्म असं खज्ज, िीवसमुद्द असं खज्ज ॥407॥
अर्थ - ब रहवं  क णिक मं  सं ख्य ि वषथप्रम ण क ल
अ र सं ख्य ि द्वीप-समुद्रप्रम ण क्षत्र ह
इसक अ ग िरहवं  स लकर उन्नीसवं  क णिक
पयथन्द्ि असं ख्य ि वषथप्रम ण क ल अ र असं ख्य ि
द्वीप-समुद्र प्रम ण क्षत्र ह ॥407॥
क णिक द्रव्य क्षत्र क ल भ व
ब रहव ाँ ¦ सं ख्य ि द्वीप-समुद्र सं ख्य ि वषथ ¦
िरहव ाँ
ववस्रस पिय सहहि
िजस शरीर
असं ख्य ि द्वीप-समुद्र
1
उिर ि
र असं .
गुण -
असं .
गुण
अधिक
असं ख्य ि वषथ
1
¦
ि िहव ाँ
ववस्रस पिय सहहि
क मथण शरीर
असं ख्य ि द्वीप-समुद्र
2
असं ख्य ि वषथ
2
¦
पन्द्द्रहव ाँ
ववस्रस पिय रहहि
िजस वगथण
असं ख्य ि द्वीप-समुद्र
3
असं ख्य ि वषथ
3
¦
अवधिज्ञ न क 19 क ं िक
क णिक द्रव्य क्षत्र क ल भ व
स लहव ाँ
ववस्रस पिय रहहि
भ ष वगथण
असं ख्य ि द्वीप-
समुद्र 4
उिर िर
असं .
गुण -
असं .
गुण
अधिक
असं ख्य ि वषथ
4
¦
सत्रहव ाँ
ववस्रस पिय रहहि
मन वगथण
असं ख्य ि द्वीप-
समुद्र 5
असं ख्य ि वषथ
5
¦
अठ रहव ाँ
क मथण क एक
समयप्रबि
असं ख्य ि द्वीप-
समुद्र 6
असं ख्य ि वषथ
6
¦
उन्नीसव ाँ क मथण वगथण
ध्रुििाि
ल क
पल्य – 1
समय
¦
अवधिज्ञ न क 19 क ं िक
क लववससणवहहि-खिववसस िुव हव वड्ढी
अिुववड्ढी वव पुण , अववरुिं  इठिकं  िण्म्म॥408॥
अर्थ - वकसी वववसक्षि क णिक क क्षत्र ववशष
मं  क ल ववशष क भ ग िन स ज शष रह
उिन ध्रुव वृणि क प्रम ण ह इस ही िरह
अववर िरूप स इष्ट क णिक मं  अध्रुव वृणि क
भी प्रम ण समिन ि हहय॥408॥
प्रत्यक क ं िक मं  ध्रुववृणि क प्रम ण
कांडक का उत्‍कृ ष्‍ट क्षेत्र ‒ जघन्‍य क्षेत्र
कांडक का उत्‍कृ ष्‍ट काल ‒ जघन्‍य काल
= ध्रुववृणि
प्रत्यक क ं िक मं  अध्रुव वृणि क भी प्रम ण
यर् य ग्य समिन ि हहय।
प्रर्म क ं िक मं  ध्रुव-अध्रुव वृणि

घ
सं .
−
घ
𝜕
अ
सं .
−
अ
𝜕
=
घ
सं .
अ
सं .
= घ
सं .
×
सं .
अ .
= घ
अ .
(ध्रुववृणि क प्रम ण)
• अर् थि्
घ
आ.
प्रम ण प्रिश ं  की वृणि ह न पर 1 समय बढि ह,
वह ध्रुववृणि ह
ध्रुववृणि
•
घ
𝝏
य
घ
सं.
प्रम ण प्रिश ं  की वृणि ह न पर 1 समय बढि ह, वह
अध्रुववृणि ह
अध्रुववृणि
अं गुलअसं खभ गं , सं खं  व अं गुलं  ि िथसव
सं खमसं खं  एवं , सढीपिरथस अिुवग॥409॥
अर्थ - घन ं गुल क असं ख्य िवं  भ गप्रम ण, व घन ं गुल क
सं ख्य िवं  भ गप्रम ण व घन ं गुलम त्र,व सं ख्य ि घन ं गुलम त्र,
व असं ख्य ि घन ं गुलम त्र इसी प्रक र श्रणी क असं ख्य िवं 
भ गप्रम ण, व श्रणी क सं ख्य िवं  भ गप्रम ण, व श्रणीप्रम ण,
व सं ख्य ि श्रणीप्रम ण, व असं ख्य ि श्रणीप्रम ण, व प्रिर क
असं ख्य िवं  भ ग प्रम ण, व प्रिर क सं ख्य िवं  भ ग प्रम ण, व
प्रिरप्रम ण, व सं ख्य ि प्रिरप्रम ण, व असं ख्य ि प्रिरप्रम ण
प्रिश ं  की वृणि ह न पर एक-एक समय की वृणि ह िी ह यही
अध्रुव वृणि क क्रम ह ॥409
अध्रुव वृणि क प्रम ण
(अर् थि् इिन प्रिश ं  की वृणि ह न पर क ल मं  1 समय बढि ह)
वववसक्षि क णिक मं  यर् य ग्य तनम्न मं  स सं भ ववि वृणि
घनांगुल
असं ख्य ि
घनांगुल
सं ख्य ि
घन ं गुल सं . घन ं गुल
असं .
घन ं गुल
जगतश्रेणी
असं ख्य ि
श्रेणी
सं ख्य ि
जगिश्रणी
सं ख्य ि
श्रणी
असं ख्य ि
श्रणी
जगतप्रति
असं ख्य ि
जगतप्रति
सं ख्य ि
जगिप्रिर
सं ख्य ि
जगतप्रति
असं ख्य ि
जगतप्रति
कम्मइयवग्गणं  िुवह रणणयगव रभ जजि िव्ं 
उक्कथसं  खिं  पुण, ल ग सं पुणणअ ह दि॥410॥
अर्थ - क मथणवगथण मं  एकब र ध्रुवह र क भ ग
िन स ज लब्ि अ व उिन िश वधि क उत्कृ ष्ट
द्रव्य क प्रम ण ह िर् सं पूणथ ल क उत्कृ ष्ट क्षत्र
क प्रम ण ह ॥410॥
पल्लसमऊण क ल, भ वण असं खल गमि हु
िव्वथस य पज्ज य , वरिस हहथस ववसय हु॥411॥
अर्थ - क ल की अपक्ष एक समय कम एक
पल्य अ र भ व की अपक्ष असं ख्य ि
ल कप्रम ण द्रव्य की पय थय उत्कृ ष्ट िश वधि क
ववषय ह ॥411॥
उत्कृ ष्ट िश वधिज्ञ न
द्रव्य
क मथण वगथण
ध्रुवह र
क्षत्र
ल क क श
क ल
पल्य ‒
1 समय
भ व
असं ख्य ि
ल कप्रम ण
क ल िउणण उड्ढी, क ल भजजिव्व खिउड्ढी य
उड्ढीए िव्वपझजय, भजजिव् खि-क ल हु॥412॥
अर्थ - क ल की वृणि ह न पर ि र ं  प्रक र की
वृणि ह िी ह क्षत्र की वृणि ह न पर क ल की वृणि
ह िी ह अ र नहीं  भी ह िी ह इस ही िरह द्रव्य
अ र भ व की अपक्ष वृणि ह न पर क्षत्र अ र क ल
की वृणि ह िी भी ह अ र नहीं  भी ह िी ह परन्द्िु
क्षत्र अ र क ल की वृणि ह न पर द्रव्य अ र भ व की
वृणि अवश्य ह िी ह ॥412॥
द्रव्य की वृणि ह न पर
क्षत्रवृणि
भजनीय
क लवृणि
भजनीय
भ ववृणि
तनयम स
क्षत्र की वृणि ह न पर
द्रव्यवृणि
तनयम स
क लवृणि
भजनीय
भ ववृणि
तनयम स
क ल की वृणि ह न पर
द्रव्यवृणि
तनयम स
क्षत्रवृणि
तनयम स
भ ववृणि
तनयम स
भ व की वृणि ह न पर
द्रव्यवृणि
तनयम स
क्षत्रवृणि
भजनीय
क लवृणि
भजनीय
वकसकी
वृणि
ह न पर

वकसकी
वृणि
ह िी
ह
द्रव्य क्षत्र क ल भ व
द्रव्य ---- भजनीय भजनीय तनयम स
क्षत्र तनयम स -- भजनीय तनयम स
क ल तनयम स तनयम स -- तनयम स
भ व तनयम स भजनीय भजनीय --
भजनीय अर् थि् ह भी अर्व न भी ह
सू/अस. = २, द्रव्य ववकल्प = २५, क्षत्र ववकल्प = १३, क ल ववकल्प = ५, घ/अस. = ३
13 7 3 13
12 12
11 6 11
10 10
9 5 9
8 8
7 4 2 7
6 6
5 3 5
4 4
3 2 3
2 2
1 1 1 1
द्रव्य क्षेत्र काल भाव
25 13 5 25
24 24
23 12 23
22 22
21 11 21
20 20
19 10 4 19
18 18
17 9 17
16 16
15 8 15
14 14
द्रव्य क्षेत्र काल भाव
िस वहहवरिव्ं , िुवह रणवहहि हव णणयम
परम वहहथस अवरं , िव्वपम णं  िु जजणदिठिं ॥413॥
अर्थ - िश वधि क ज उत्कृ ष्ट द्रव्यप्रम ण ह उसमं 
एकब र ध्रुवह र क भ ग िन स ज लब्ि अ व
उिन ही तनयम स परम वधि क जघन्द्य द्रव्य क
प्रम ण तनकलि ह, एस जजनन्द्द्र िव न कह ह
॥413॥
परम वधि क जघन्द्य द्रव्य
देशािधध का उत्‍कृ ष्‍ट द्रव्‍य
ध्रुििाि
=
कामगण िगगणा
ध्रुििाि ×ध्रुििाि
परम वहहथस भि , सगउग्ग हणववयप्पहििऊ
िरम ह रपम णं , जठिथस य ह दि िव्ं  िु॥414॥
अर्थ - अपनी (िजथक ययक जीवर शश की)
अवग हन क भि ं  क जजिन प्रम ण ह उसक
िजथक ययक जीवर शश क स र् गुण करन पर ज
र शश उत्पन्न ह उिन ही परम वधिज्ञ न क भि ह ि
हं  इनमं  स सव थत्कृ ष्ट अं तिम भि मं  द्रव्य
ध्रुवह रप्रम ण ह ि ह ॥414
परम वधि क कु ल भि
अयिक ययक की अवग हन क प्रक र ×
अयिक ययक जीवर शश
=
घन ं गुल
असं ख्य ि
× असं ख्य ि ल क
अर् थि् असं ख्य ि ल क
परम वधि क द्रव्य भि
प्रर्म
कामगण िगगणा
(ध्रुििाि)2
हद्विीय
कामगण िगगणा
(ध्रुििाि)3
िृिीय
कामगण िगगणा
(ध्रुििाि)4
..............
.
िरम भि
ध्रुवह र
सव् वहहथस एक्क , परम णू ह दि णणहव्यप्प स
गं ग मह णइथस, पव ह व्व िुव हव ह र ॥415॥
अर्थ - परम वधि क उत्कृ ष्ट द्रव्यप्रम ण मं  ध्रुवह र
क एकब र भ ग िन स लब्ि एक परम णुम त्र द्रव्य
अ ि ह, वही सव थवधिज्ञ न क ववषय ह ि ह यह
ज्ञ न िर् इसक ववषयभूि परम णु तनववथकल्पक ह
यह ाँ पर ज भ गह र ह वह गं ग मह निी क प्रव ह
की िरह ध्रुव ह ॥415॥
सव थवधि क द्रव्य
पिमािधध का उत्‍कृ ष्‍ट द्रव्‍य
ध्रुििाि
=
ध्रुििाि
ध्रुििाि
= 1 परम णु
यह एक परम णु
सव थवधि क
ववषयभूि द्रव्य ह
परम हहिव्वभि , जत्तियमि हु ित्तिय ह ं ति
िथसव खिक ल-ववयप्प ववसय असं खगुणणिकम ॥416॥
अर्थ - परम वधि क जजिन द्रव्य की अपक्ष स
भि हं  उिन ही भि क्षत्र अ र क ल की अपक्ष
स हं  परन्द्िु उनक ववषय असं ख्य िगुणणिक्रम
ह ॥416॥
परम वधि ज्ञ न क जजिन द्रव्य की अपक्ष भि हं ,
उिन ही क्षत्र, क ल, भ व अपक्ष भि हं 
अर् थि् प्रत्यक भि मं  द्रव्य, क्षत्र, क ल, भ व
ि र ं  की युगपि् वृणि ह िी ह
प्रत्यक भि स अ ग क भि क ववषय असं ख्य ि गुण ह
अ वललअसं खभ ग , इण्च्छिगच्छिणम णमि अ
िस वहहथस खि, क ल वव य ह ं ति सं वग्ग॥417॥
अर्थ - वकसी भी परम वधि क वववसक्षि क्षत्र क
ववकल्प मं  अर्व वववसक्षि क ल क ववकल्प मं 
सं कण्ल्पि िन क जजिन प्रम ण ह उिनी जगह
अ वली क असं ख्य िवं  भ ग ं  क रखकर परथपर
गुण करन स ज र शश उत्पन्न ह वही िश वधि क
उत्कृ ष्ट क्षत्र अ र उत्कृ ष्ट क ल मं  गुण क र क प्रम ण
ह ि ह ॥417॥
गुणक र क प्रम ण
यदि N = वववसक्षि भि ह, ि
गुणक र = (
आ
𝝏
) 𝑵 का संकलन धन
N क सं कलन िन =
𝐍×(𝐍+𝟏)
𝟐
सं कलन िन ब र
आ
𝝏
क परथपर गुण करन पर ज असं ख्य ि प्र प्ि ह ,
वह परम वधि क उस भि क क्षत्र अ र क ल क गुणक र ह
इस गुणक र क िश वधि क
उत्कृ ष्ट क्षत्र स गुण करन
पर परम वधि क वववसक्षि
भि क क्षत्र अ ि ह
Nth परम वधि क क्षत्र =
ल क × प्र प्त गुणक र
इस गुणक र क िश वधि क
उत्कृ ष्ट क ल स गुण करन
पर परम वधि क वववसक्षि
भि क क ल अ ि ह
Nth परम वधि क क ल =
(पल्य - 1) × प्र प्त गुणक र
परम वधि क गुणक र क प्रम ण
पहल = सं कलन िन = 1; ि गुणक र = अ /अस.
िूसर = सं . ि. = 3; ि गुणक र =
अ /अस.×अ /अस. × अ /अस.
िीसर = सं . ि. = 6; ि गुणक र = (अ /अस.)6
ि र् = सं . ि. = 10; ि गुणक र = (अ /अस.)10
सं कलन िन
(अर् थि् 1 स लकर उस सं ख्य िक क ज ि)
जस 2 क सं कलन
िन
=
2×(2+1)
2
=
2×3
2
= 3
3 क सं कलन िन
=
3×(3+1)
2
=
3×4
2
= 6
गच्छसम िक्क ललयिीि रूऊणगच्छिणमि
उभय वव य गच्छथस य, िणमि ह ं ति गुणग र ॥418॥
अर्थ - गच्छ क सम न िन अ र गच्छ स
ित्क ल अिीि ज वववसक्षि भि स पहल भि,
स वववसक्षि गच्छ स एक कम गच्छ क ज
सं कललि िन, इन ि न ं  क लमल न स गच्छ क
सं कललि िन प्रम ण गुणक र ह ि ह ॥418॥
गच्छ क सं कलन िन
गच्छ अर् थि् जजिनव ं  थर् न वववसक्षि ह
सूत्र = गच्छ + (गच्छ‒1) क सं कलन िन
य Recursive function क िरीक स
तनक ल ह
जस 5 क सं कलन िन
= 5+(5‒1 क सं कलन)
= 5+4 क सं कलन
= 5+10
= 15
परम वहहवरखिणवहहिउक्कथसअ हहखिं  िु
सव् वहहगुणग र , क ल वव असं खल ग िु॥419॥
अर्थ - उत्कृ ष्ट अवधिज्ञ न क क्षत्र मं  परम वधि
क उत्कृ ष्ट क्षत्र क भ ग िन स ज लब्ि अ व
उिन सव थवधिसं बं िी क्षत्र क ललय गुणक र ह
िर्
सव थवधिसं बं िी क ल क प्रम ण ल न क ललय
असं ख्य ि ल क क गुणक र ह ॥419॥
क्षत्र हिु
गुणक र
•
सिागिधध का क्षेत्र
पिमािधध का उत्‍कृ ष्‍ट क्षेत्र
•
(≡𝝏) 𝟓
(≡𝝏) 𝟑
• (≡ 𝝏) 𝟐
क ल हिु
गुणक र
• ≡ 𝜕
सव थवधिज्ञ न क गुणक र
≡ 𝝏
अर् थि्
असं ख्य ि
ल क
सव थवधिज्ञ न
द्रव्य क्षत्र क ल भ व
पिमािधध का उत्‍कृ ष्‍ट द्रव्‍य
ध्रुििाि
परम वधि क उत्कृ ष्ट
क्षत्र ×
(असं . ल क) 𝟐
परम वधि क
उत्कृ ष्ट क ल ×
असं . ल क
परम वधि क उत्कृ ष्ट
भ व ×
आ
असं.
=
ध्रुििाि
ध्रुििाि
ल क × (≡ 𝝏) 𝟑×
(≡ 𝝏) 𝟐
= (पल्य − 1 समय)
× (≡ 𝝏) 𝟑× ≡ 𝝏
= 1 परम णु
= ल क × (≡ 𝝏) 𝟓 = (पल्य − 1
समय) × (≡ 𝝏) 𝟒 = (≡ 𝝏) 𝟐 ×
आ
असं.
इण्च्छिर ससच्छिं , दिणणच्छिहहं  भ जजि ित्र्
लिलमिदिणणर सीणब्भ स इण्च्छि र सी॥420॥
अर्थ - वववसक्षि र शश क अिथच्छि ं  मं  ियर शश
क अिथच्छि ं  क भ ग िन स ज लब्ि अ व
उिनी जगह ियर शश क रखकर परथपर गुण
करन स वववसक्षि र शश क प्रम ण तनकलि ह
॥420॥
(16) 𝑥
= 256
य न 16 क वकिनी ब र रखकर गुण करं , जजसस
256 अ य
सूत्र =
इण्च्छि र शश क छि
िय र शश क छि
= ववरलन र शश
(यह सूत्र log स ससि भी ह ि ह )

256 क छि
16 क छि
=
8
4
= 2
अर् थि् (16)2
= 16×16 = 256
❖इसी प्रक र (
अ
𝝏
) 𝒙
= ल क तनक लन ह
❖
ल क क छि
अ
𝝏
क छि
=
वव छ छ 𝟗
𝝏
❖य न
अ
𝝏
(पल्य क छि) 𝟑
करन पर ल क स भी बिी र शी
अ िी ह
❖इस सूत्र क द्व र वकसी भी र शश की ववरलन र शश तनक ली
ज सकिी ह
दिणणच्छिणवहहिल गच्छिण पििण भजजि
लिलमिल गगुणणं , परम वहहिररमगुणग र ॥421॥
अर्थ - ियर शश क अिथच्छि ं  क ल क क अिथच्छि ं 
मं  भ ग िन स ज लब्ि अ व उसक वववसक्षि
सं कण्ल्पि िन मं  भ ग िन स ज लब्ि अ व उिनी
जगह ल कप्रम ण क रखकर परथपर गुण करन स
ज र शश उत्पन्न ह वह वववसक्षि पि मं  क्षत्र य क ल
क गुणक र ह ि ह एस ही परम वधि क अं तिम
भि मं  भी गुणक र ज नन ॥421॥
(
64
4
)2
= 256 ि
(
64
4
)6
= (256) 𝑥
?
सूत्र =
ववरलन र शश
इण्च्छिर शशकछि
ियर शशकछि
अर्व ववरलन र शश ×
िय र शश क छि
इण्च्छि र शश क छि
यह सूत्र भी log स ससि ह ि ह
परम वधिज्ञ न क वकसी वववसक्षि भि पर ल क क वकिन ब र
परथपर गुण ह ग - यह तनक लन हिु इस सूत्र क प्रय ग वकय
ज ि ह
यर् -
आ
𝛛
के छेद = मध्यम परीि सं ख्य ि
ल क क छि = वव छ छ 9
ल क क छि पल्य स भी कम हं  अि: जह ाँ
सं कलन िन (पल्य क छि)(𝟑 × असं ख्य ि) हुअ
वह ाँ स ल करूप गुणक र असं ख्य ि-असं ख्य ि रूप
बढि ज एग
अ वललअसं खभ ग , जहणणिव्वथस ह ं ति पज्ज य
क लथस जहणण ि , असं खगुणहीणमि हु॥422॥
अर्थ - जघन्द्य िश वधि क ववषयभूि द्रव्य की
पय थय अ वली क असं ख्य िवं  भ ग प्रम ण ह
िर् वप जघन्द्य िश वधि क ववषयभूि क ल क
जजिन प्रम ण ह उसस असं ख्य िगुण हीन
जघन्द्य िश वधि क ववषयभूि भ व क प्रम ण
ह॥422॥
जघन्द्य अवधिज्ञ न = जघन्द्य िश वधि ज्ञ न
यह जघन्द्य
अवधिज्ञ न
➢जघन्द्य द्रव्य क
➢
आ
𝝏
प्रम ण अिीि अ र अन गि क ल
क
➢
आ
𝝏𝝏
प्रम ण जघन्द्य भ व ं  क
➢प्रत्यक्ष ज नि ह
सव् हह त्ति य कमस , अ वललअसं खभ गगुणणिकम
िव् णं  भ व णं , पिसं ख सररसग ह ं ति॥423॥
अर्थ - जघन्द्य िश वधि स सव थवधि पयथन्द्ि द्रव्य
की पय थयरूप भ व क भि पूवथ-पूवथ भि की
अपक्ष अ वली क असं ख्य िवं  भ ग स
गुणणिक्रम हं  अिएव द्रव्य िर् भ व क पि ं 
की सं ख्य सदृश ह ॥423॥
सवथत्र भ व प्रम ण क गुणक र =
अ
𝜕
= हद्विीय अवधिज्ञ न क भ वजघन्द्य िश वधि ×
आ
𝝏
= िृिीय अवधिज्ञ न क भ वहद्विीय िश वधि ×
आ
𝝏
= सव थवधि क भ व प्रम णउत्कृ ष्ट परम वधि ×
आ
𝝏
ववशष
िूं वक जघन्द्य अवधिज्ञ न स उत्कृ ष्ट अवधिज्ञ न
िक प्रत्यक भि मं  द्रव्य अ र भ व की वृणि
ह िी ह,
अि: जजिन द्रव्य की अपक्ष अवधिज्ञ न क
भि हं  उिन ही भ व की अपक्ष अवधिज्ञ न क
भि हं
सिमण्खदिण्म्म क सं , क सथसिं  पवड्ढि ि व
ज व य पढम णणरय, ज यणमक्कं  हव पुणणं ॥424॥
अर्थ - स िवीं  भूलम मं  अवधिज्ञ न क ववषयभूि
क्षत्र क प्रम ण एक क स ह इसक ऊपर अ ि-
अ ि क स की वृणि ह ि-ह ि प्रर्म नरक मं 
अवधिज्ञ न क ववषयभूि क्षत्र क प्रम ण पूणथ एक
य जन ह ज ि ह ॥424॥
नरक गति मं  अवधिज्ञ न
नरक उत्कृ ष्ट क्षत्र उत्कृ ष्ट क ल
प्रर्म नरक 1 य जन लभन्द्न मुहूिथ
हद्विीय नरक 3.5 क स
यर् य ग्य अन्द्िमुथहूिथ
िृिीय नरक 3 क स
ििुर्थ नरक 2.5 क स
पं िम नरक 2 क स
षष्ठम नरक 1.5 क स
सप्िम नरक 1 क स अन्द्िमुथहूिथ
तिररय अवरं  अ घ , िज यं ि य ह दि उक्कथसं 
मणुए अ घं  िव, जह कमं  सुणह व च्छ लम॥425॥
अर्थ - तियथञ ं  क अवधिज्ञ न जघन्द्य िश वधि स लकर
उत्कृ ष्टि की अपक्ष उस भिपयथन्द्ि ह ि ह वक ज
िश वधि क भि िजस शरीर क ववषय करि ह
मनुष्यगति मं  अवधिज्ञ न जघन्द्य िश वधि स लकर
उत्कृ ष्टिय सव थवधि पयथन्द्ि ह ि ह
िवगति मं  अवधिज्ञ न क यर् क्रम स कहूाँग स सुन
॥425॥
तियंि व मनुष्य गति मं  अवधिज्ञ न
जघन्द्य उत्कृ ष्ट
तियंि
जघन्द्य
िश वधि
िजस शरीर (िश वधि क
िरहवं  क णिक पयंि)
मनुष्य
जघन्द्य
िश वधि
सव थवधि
पणुवीसज यण इं , दिवसं िं  ि य कु म रभ म्म णं 
सं खझजगुणं  खिं , बहुगं  क लं  िु ज इससग॥426॥
अर्थ - भवनव सी अ र व्यं िर ं  क अवधि क
क्षत्र क जघन्द्य प्रम ण पच्चीस य जन अ र
जघन्द्य क ल कु छ कम एक दिन ह अ र
झय तिषी िव ं  क अवधि क क्षत्र इसस
सं ख्य िगुण ह अ र क ल इसस बहुि अधिक ह
॥426॥
भवनतत्रक मं  जघन्द्य अवधिज्ञ न
भवनव सी-व्यं िर झय तिषी
क्षत्र 25 य जन 25 य जन × सं ख्य ि
क ल कु छ कम 1 दिन 1 दिन स बहुि अधिक
असुर णमसं खज्ज , क िीअ ससज इसं ि णं 
सं ख िीिसहथस , उक्कथस हीण ववसअ िु॥427॥
अर्थ - असुरकु म र ं  क अवधि क उत्कृ ष्ट ववषयक्षत्र
असं ख्य ि क हट य जन ह
असुर ं  क छ िकर ब की क झय तिषी िव ं  िक क
सभी भवनतत्रक अर् थि् न प्रक र क भवनव सी िर्
सं पूणथ व्यन्द्िर अ र झय तिषी इनक अवधि क उत्कृ ष्ट
ववषयक्षत्र असं ख्य ि हज र य जन ह ॥427॥
असुर णमसं खज्ज , वथस पुण ससज इसं ि णं 
िथसं खझजदिभ गं , क लण य ह दि णणयमण॥428॥
अर्थ - असुरकु म र ं  क अवधि क उत्कृ ष्ट क ल क
प्रम ण असं ख्य ि वषथ ह अ र
शष न प्रक र क भवनव सी िर् व्यन्द्िर अ र
झय तिषी इनक अवधि क उत्कृ ष्ट क ल क प्रम ण
असुर ं  क अवधि क उत्कृ ष्ट क ल क प्रम ण स
तनयम स सं ख्य िवं  भ गम त्र ह ॥428॥
भवनव सी क असुरकु म र ं  मं  उत्कृ ष्ट अवधिज्ञ न
क्षत्र
असं ख्य ि
कर ि य जन
क ल
असं ख्य ि
वषथ
शष भवनव सी, व्यं िर, झय तिषी मं  उत्कृ ष्ट
अवधिज्ञ न
क्षत्र
असं ख्य ि
हज र य जन
क ल
असुरकु म र ं  क उत्कृ ष्ट क ल
सं ख्य ि
= असं ख्य ि वषथ
जघन्द्य उत्कृ ष्ट
िव
भवनव सी,
व्यं िर
झय तिषी
भवनव सी -
असुरकु म र
शष 9
भवनव सी,
व्यं िर, झय तिषी
क्षत्र 25 य जन
25 य जन ×
सं ख्य ि
असं . कर ि
य जन
असं . हज र
य जन
क ल
कु छ कम
1 दिन
1 दिन स
बहुि अधिक
असं . वषथ
असं . वषथ /
सं ख्य ि
भवनतत्रक की अवधिज्ञ न मय थि यं
भवणतिय णमि ि , र् वं  तिररयण ह दि बहुगं  िु
उड्ढण भवणव सी, सुरयगररससहर त्ति पथसं ति॥429॥
अर्थ – भवनव सी, व्यन्द्िर, झय तिषी इनक अवधि
क क्षत्र नीि-नीि कम ह ि ह अ र तियथग् रूप स
अधिक ह ि ह िर्
भवनव सी िव अपन अवस्थर्ि थर् न स सुरयगरर
क (मरु क) शशखरपयथन्द्ि अवधि क द्व र िखि हं 
॥429॥
भवनतत्रक क अवधिज्ञ न क्षत्र
नीि-नीि र् ि ह
तियथक् रूप बहुि ह
भवनव सी मरुपवथि क
शशखर िक िखि हं
सक्कीस ण पढमं , वबदियं  िु सणक्कु म र म हहं ि
िदियं  िु बम्ह-ल ं िव, सुक्क-सहथस रय िुररयं ॥430॥
अर्थ - स िमथ अ र एश न थवगथ क िव अवधि क
द्व र प्रर्म भूलमपयथन्द्ि िखि हं  स नत्कु म र अ र
म हन्द्द्र थवगथ क िव िूसरी पृथ्वी िक िखि हं  ब्रह्म,
ब्रह्म िर, ल ं िव अ र क वपष्ठ थवगथव ल िव िीसरी
भूलम िक िखि हं  शुक्र, मह शुक्र, शि र अ र
सहस्र र थवगथ क िव ि र्ी भूलम िक िखि हं 
॥430॥
वम तनक िव मं  अवधिज्ञ न
थवगथ क्षत्र क ल
स िमथ-एश न कु छ अधिक 1.5
र जू
(नीि 1 नरक) असं . कर ि वषथ
स नत्कु म र-
म हन्द्द्र
4 र जू (3+1) (नीि 2 नरक)
यर् य ग्य
पल्य
असं .ब्रह्म-ब्रह्म िर 5.5 र जू (3.5+2)
(नीि 3 नरक)
ल न्द्िव-क वपष्ठ 6 र जू (4+2)
यर् य ग्य कु छ कम
पल्य
शुक्र-मह शुक्र 7.5 र जू (4.5+3)
(नीि 4 नरक)
शि र-सहस्र र 8 र जू (5+3)
अ णि-प णिव सी, अ रण िह अच्चुि य पथसं ति
पं िमण्खदिपरं िं , छट्ठिं  गवझजग िव ॥431॥
अर्थ - अ नि, प्र णि, अ रण अ र अच्युि थवगथ
क िव प ाँिवीं  भूलम िक अवधि क द्व र िखि
हं  अ र ग्रवयकव सी िव छठिी भूलम िक िखि
हं  ॥431॥
न म क्षत्र क ल
अ नि-प्र णि
9.5 र जू
(5.5+4) (नीि 5
नरक) यर् य ग्य
कु छ कम
पल्य
अ रण-अच्युि
10 र जू
(6+4)
9 ग्रवयक
कु छ अधिक 11
र जू (6+5)
(नीि 6
नरक)
वम तनक िव मं  अवधिज्ञ न
सव्ं  ि ल यण ललं , पथसं ति अणुिरसु ज िव
सक्‍खि य सकम्म, रूवगिमणं िभ गं  ि॥432॥
अर्थ - नव अनुदिश िर् पं ि अनुिरव सी िव सं पूणथ
ल कन ली क अवधि द्व र िखि हं  अपन क्षत्र मं 
अर् थि् अपन-अपन ववषयभूि क्षत्र क प्रिशसमूह मं  स
एक प्रिश घट न ि हहय अ र अपन-अपन
अवधिज्ञ न वरण कमथद्रव्य मं  एक ब र ध्रुवह र क भ ग
िन ि हहय एस िब िक करन ि हहय, जबिक
प्रिशसमूह की सम प्ती ह इसस िव ं  मं  अवधिज्ञ न क
ववषयभूि द्रव्य मं  भि सूलिि वकय ह ॥432॥
न म क्षत्र क ल
9 अनुदिश कु छ अधिक 13 र जू कु छ कम
पल्य5 अनुिर कु छ कम 14 र जू
वम तनक िव मं  अवधिज्ञ न
स र िव ं  मं  यह अवधिज्ञ न की मय थि इिन क्षत्ररूप ही ह
यह ाँ-वह ाँ ववह र करन पर क्षत्र मय थि बढिी नहीं  ह
कप्पसुर णं  सगसग अ हीखिं  ववववथसस वियं 
अ हीिव्वपम णं , सं ठ ववय िुवहरण हर॥433॥
सगसगखिपिससल यपम णं  समप्पि ज व
ित्र्िणिररमखं िं , ित्र्िण हहथस िव्ं  िु॥434॥
अर्थ -कल्पव सी िव ं  क अपन-अपन अवधिज्ञ न क
क्षत्र क अ र अपन-अपन ववस्रस पिय रहहि
अवधिज्ञ न वरण द्रव्य क थर् वपि करक क्षत्र मं  स एक
प्रिश कम करन अ र द्रव्य मं  एक ब र ध्रुवह र क भ ग
िन एस िब िक करन ि हहय, जब िक अपन-अपन
अवधिज्ञ न क क्षत्र सं बं िी प्रिश ं  क पररम ण सम प्ि
ह एस करन स ज अवधिज्ञ न वरण कमथ द्रव्य क
अण्न्द्िम खणि शष रहि ह, उिन ही उस अवधिज्ञ न क
ववषयभूि द्रव्य क पररम ण ह ि ह ॥433-434॥
िव ं  मं  अवधिज्ञ न की द्रव्य मय थि
•अपन-अपन अवधिज्ञ न क क्षत्रप्रम ण प्रिशशल क र शी
• अपन -अपन ववस्रस पिय रहहि अवधिज्ञ न वरण द्रव्यिय र शी
•ध्रुवह रभ गह र र शी
िय र शी मं  ध्रुवह र क िब िक भ ग लग न , जब िक
शल क र शश सम प्ि न ह ज ए ज अं ि मं  द्रव्य
प्र प्ि ह ि ह, वह उस थर् न मं  द्रव्य की मय थि ह
इस प्रक र क्रम स ध्रुवह र क िब िक भ ग लग न , जब िक शल क र शश
सम प्ि न ह ज ए
अर् थि्
𝟑
𝟐
िाजू
𝟑
प्रम ण प्रिश ं  ब र ध्रुवह र क भ ग लग न पर स िमथ-एश न क द्रव्य
क प्रम ण प्र प्त ह ि ह
𝟑
𝟐
िाजू
𝟑
विस्रसोपचय िहित अिधधज्ञानाििण द्रव्‍य
ध्रुििाि
= A
𝟑
𝟐
िाजू
𝟑
− 1
𝐀
ध्रुििाि
= B
𝟑
𝟐
िाजू
𝟑
− 2
𝐁
ध्रुििाि
= C
स िमथ-एश न क द्रव्य क प्रम ण
स िमथ-एश न क द्रव्य क प्रम ण
सूत्र रूप मं 

अपन अवधिज्ञ न वरण क द्रव्य
(ध्रुवह र)
3
2
र जू
3 = स िमथ-एश न क ववषयभूि द्रव्य
इसी प्रक र स प्रत्यक कल्प मं  अपन-अपन अवधिज्ञ न वरण द्रव्य क
अपन क्षत्र प्रम ण ब र ध्रुवह र रखकर भ ग िन पर प्रत्यक कल्प क
अवधिज्ञ न क ववषयभूि द्रव्य प्र प्ि ह ि ह

अपन −अपन ववस्रस पिय रहहि अवधिज्ञ न वरण क द्रव्य
(ध्रुवह र)अपन−अपनअवधिज्ञ नकववषयभूिअ क शप्रिश
स हम्मीस ण णमसं खज्ज अ हु वथसक िीअ
उवररमकप्पिउक्क पल्ल सं खझजभ ग िु॥435॥
िि ल ं िवकप्पप्पहुिी सव्वत्र्ससणिपरं िं 
वकं  िूणपल्लमिं , क लपम णं  जह ज ग्गं ॥436॥
अर्थ - स िमथ अ र एश न थवगथ क िव ं  क अवधि
क क ल असं ख्य ि क हट वषथ ह इसक ऊपर
स नत्कु म र-म हन्द्द्र, ब्रह्म-ब्रह्म िर कल्पव ल िव ं  क
अवधि क क ल यर् य ग्य पल्य क असं ख्य िव ाँ
भ ग ह इसक ऊपर ल न्द्िव थवगथ स लकर
सव थर्थससणि पयथन्द्िव ल िव ं  क अवधि क क ल
यर् य ग्य कु छ कम पल्यप्रम ण ह ॥435-436॥
कल्पव सी िव ं  क अवधिज्ञ न की क ल मय थि
स िमथ-एश न
असं ख्य ि
कर ि वषथ
स नत्कु म र स ब्रह्म िर
यर् य ग्य
पल्‍य
असंख्‍यात
ल न्द्िव स सव थर्थससणि
पयंि
यर् य ग्य
कु छ कम
पल्य
ज इससयं ि ण ही, खि उि ण ह ं ति घणपिर
कप्पसुर णं  ि पुण , ववसररत्र्ं  अ यिं  ह दि ॥ 437 ॥
अर्थ: भवनव सी, व्यन्द्िर, झय तिषी इनक अवधि क
क्षत्र क प्रम ण ज पहल बि य गय ह वह ववसदृश ह,
बर बर ि क र घनरूप नहीं  ह
कल्पव सी िव ं  क अवधि क क्षत्र अ यिििुरस्र अर् थि्
लम्ब ई मं  ऊध्वथ-अि: अधिक अ र ि ि ई मं  अर् थि्
तियथक् र् ि ह
शष मनुष्य, तियंि, न रकी इनक अवधि क ववषयभूि
क्षत्र बर बर ि क र घनरूप ह ॥ 437॥
अ यिििुरस्र क्षत्र अर् थि् लम्ब ई मं  ऊध्वथ-अि:
अधिक अ र ि ि ई मं  अर् थि् तियथक् र् ि
घनरूप क्षत्र अर् थि् लम्ब ई, ि ि ई, ऊं  ि ई
सम न
ि र ं  गतिय ं  मं  अवधिज्ञ न की दिश
भवनतत्रक
वम तनक
शष 3 गति
ि क र घनरूप नहीं  ह
ववसदृश अ यि ििुरस्र
ि क र घनरूप
ऊपर-नीि अल्प,
तियथक् अधिक
लं ब अधिक,
ि ि अल्प
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मं  सम न

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Gyanmargna - Avdhigyan

  • 1. Presentation Developed By: श्रीमति सारिका छाबड़ा
  • 2. अवहीयदि त्ति अ ही, सीम ण ण त्ति वण्णणयं समय भवगुणपच्चयववहहयं , जम हहण ण त्ति णं बं ति॥370॥ अर्थ - द्रव्य, क्षत्र, क ल, भ व की अपक्ष स जजसक ववषय की सीम ह उसक अवधिज्ञ न कहि हं इस ही ललय परम गम मं इसक सीम ज्ञ न कह ह िर् इसक जजनन्द्द्रिव न ि भि कह हं - भवप्रत्यय एवं गुणप्रत्यय ॥370॥
  • 3. अवधिज्ञ न द्रव्य, क्षत्र, क ल, भ व क द्व र जजसकी अवधि / मय थि / सीम की ज िी ह, वह अवधिज्ञ न ह
  • 4. भवपच्चइग सुरणणरय णं तित्र् वव सव्वअं गुत्र् गुणपच्चइग णरतिररय णं सं ख दिलिणहभव ॥371॥ अर्थ - भवप्रत्यय अवधिज्ञ न िव, न रकी क िर् िीर्ंकर ं क भी ह ि ह अ र यह ज्ञ न सं पूणथ अं ग स उत्पन्न ह ि ह गुणप्रत्यय अवधिज्ञ न पय थप्ि मनुष्य िर् सं ज्ञी पं िण्न्द्द्रय तियंि ं क ह ि ह अ र यह ज्ञ न शं ख दि लिह ं स ह ि ह ॥371॥
  • 5. अवधिज्ञ न भवप्रत्यय नरक दि भव ही जजसक क रण ह गुणप्रत्यय सम्यग्िशथन ववशुणि अ दि गुण जजसक क रण ह
  • 6. वकन्द्हं ह ि ह कह ाँ स उत्पन्द्न ह ि ह प्रक र भव-प्रत्यय सवथ िव ं , न रवकय ं एवं िीर्ंकर ं क सव ंग स िश वधि गुण-प्रत्यय वकन्द्हीं पय थप्त मनुष्य ं एवं पय थप्ि सं ज्ञी तियंि ं क न लभ क ऊपर शं ख, कमल, वज्र दि शुभ लिह ं स एवं सव ंग स िीन ं (िश वधि, परम वधि व सव थवधि)
  • 7. गुणपच्चइग छि , अणुग वट्ठििपवड्ढम णणिर िस ही परम ही, सव् हह त्ति य तिि अ ही॥372॥ अर्थ - गुणप्रत्यय अवधिज्ञ न क छह भि हं - अनुग मी, अननुग मी, अवस्थर्ि, अनवस्थर्ि, विथम न, हीयम न िर् स म न्द्य स अवधिज्ञ न क िश वधि, परम वधि, सव थवधि इस िरह स िीन भि भी ह ि हं ॥372॥
  • 8. गुणप्रत्यय अवधिज्ञ न क 6 भि अनुग मी अन्द्य क्षत्र / भव मं स र् ज ए अननुग मी अन्द्य क्षत्र / भव मं स र् न ज ए विथम न बढि हुअ हीयम न घटि हुअ अवस्थर्ि न घट, न बढ अनवस्थर्ि घटि -बढि रह
  • 9. अनुग मी अवधिज्ञ न क्षत्र नुग मी अन्द्य क्षत्र मं गमन करन पर भी नष्ट न ह भव नुग मी भव क बिलन पर भी नष्ट न ह उभय नुग मी क्षत्र अ र भव क बिलन पर भी नष्ट न ह एस ही अननुग मी पर लग न
  • 10. क्षत्र बिलन पर नष्ट भव बिलन पर नष्ट ि न ं बिलन पर नष्ट क्षत्र नुग मी    भव नुग मी  (सम न भव मं )   उभय नुग मी    क्षत्र ननुग मी    भव ननुग मी    उभय ननुग मी   
  • 11. भवपच्चइग अ ही, िस ही ह दि परमसव् ही गुणपच्चइग णणयम , िस ही वव य गुण ह दि॥373॥ अर्थ - भवप्रत्यय अवधि तनयम स िश वधि ही ह ि ह अ र परम वधि िर् सव थवधि तनयम स गुणप्रत्यय ही हुअ करि हं िश वधिज्ञ न भवप्रत्यय अ र गुणप्रत्यय ि न ं िरह क ह ि ह ॥373॥
  • 12. अवधिज्ञ न िश वधि भवप्रत्यय, गुणप्रत्यय परम वधि गुणप्रत्यय सव थवधि गुणप्रत्यय
  • 13. िस हहथस य अवरं , णरतिररय ह दि सं जिण्म्ह वरं परम ही सव् ही, िरमसरीथस ववरिथस॥374॥ अर्थ - जघन्द्य िश वधिज्ञ न सं यि य असं यि मनुष्य अ र तियंि ं क ह ि ह उत्कृ ष्ट िश वधिज्ञ न सं यि जीव ं क ही ह ि ह वकन्द्िु परम वधि अ र सव थवधि िरमशरीरी मह व्रिी क ही ह ि ह ॥374॥
  • 14. थव मी िश वधि •जघन्द्य - मनुष्य, तियंि •उत्कृ ष्ट - सकलसं यमी परम वधि •िरम शरीरी मह व्रिी सव थवधि •िरम शरीरी मह व्रिी
  • 15. पदिव िी िस ही, अप्पदिव िी हवं ति सस अ लमच्छिं अववरमणं , ण य पदिवज्जं ति िरमिुग॥375॥ अर्थ - िश वधिज्ञ न प्रतिप िी ह ि ह अ र परम वधि िर् सव थवधि अप्रतिप िी ह ि हं परम वधि अ र सव थवधिव ल जीव तनयम स लमथ्य त्व अ र अव्रि अवथर् क प्र प्ि नहीं ह ि॥375॥
  • 16. प्रतिप ि = सम्यक्‍त्व अ र ि ररत्र स च्युि ह न िश वधि •प्रतिप िी परम वधि / सव थवधि •अप्रतिप िी
  • 17. िव्ं खिं क लं , भ वं पदि रूवव ज णि अ ही अवर िुक्कथस त्ति य, ववयप्परहहि िु सव् ही॥376॥ अर्थ - जघन्द्य भि स लकर उत्कृ ष्ट भिपयथन्द्ि अवधिज्ञ न क ज असं ख्य ि ल क प्रम ण भि हं व सब ही द्रव्य, क्षत्र, क ल, भ व की अपक्ष स प्रत्यक्षिय रूपी (पुि्गल) द्रव्य क ही ग्रहण करि हं िर् उसक सं बं ि स सं स री जीव द्रव्य क भी ज नि हं वकन्द्िु सव थवधिज्ञ न मं जघन्द्य- उत्कृ ष्ट अ दि भि नहीं हं - वह तनववथकल्प - एक प्रक र क ह ॥376॥
  • 18. अवधिज्ञ न क ववषय द्रव्य, क्षत्र, क ल, भ व की मय थि सहहि 1) रूपी द्रव्य (पुि्गल) 2) पुि्गल सं बं ि सहहि सं स री जीव
  • 19. अवधिज्ञ न क प्रभि •असं ख्य ि ल क प्रम ण भििश वधि •असं ख्य ि ल क प्रम ण भिपरम वधि •1 भिसव थवधि
  • 20. ण कम्मुर लसं िं , मण्झिमज गत्तज्जयं सववथसियं ल यववभिं ज णदि, अवर ही िव्वि णणयम ॥377॥ अर्थ - मध्यम य ग क द्व र सं लिि ववस्रस पिय सहहि न कमथ अ ि ररक वगथण क सं िय मं ल क क भ ग िन स जजिन द्रव्य लब्ि अ व उिन क तनयम स जघन्द्य अवधिज्ञ न द्रव्य की अपक्ष स ज नि ह इसस छ ट (सूक्ष्म) थकं ि क वह नहीं ज नि इसस थर्ूल थकं ि क ज नन मं कु छ ब ि नहीं ह॥377॥
  • 21. अवधिज्ञ न क जघन्द्य द्रव्य प्रम ण अर् थि् इस प्रक र क इिन परम णुअ ं क थकन्द्ि क जघन्द्य अवधिज्ञ न ज नि ह इसस थर्ूल क ि ज न सकि ह, पर इसस सूक्ष्म क नहीं ज नि विस्रसोपचय सहित औदारिक शिीि का संचय लोक = जघन्द्य द्रव्य
  • 22. 𝟑 𝟐 × गुणह तन × समयप्रबि = अ ि ररक शरीर क सं िय इसक ववस्रस पिय इसस अनं ि गुण ह ि न ं क ज िकर ल क क भ ग िन पर जजिन प्रम ण अ ि ह उिन अनन्द्ि परम णुअ ं क थकन्द्ि क जघन्द्य अवधिज्ञ न ज नि ह एस थकन्द्ि िक्षु अ दि इण्न्द्द्रय ं द्व र नहीं ज न ज सकि
  • 23. सुहमणणग िअपझजियथस ज िथस िदियसमयण्म्ह अवर ग हणम णं , जहणणयं अ हहखिं िु॥378॥ अर्थ - सूक्ष्म तनग दिय लब्ध्यपय थप्िक की उत्पन्न ह न स िीसर समय मं ज जघन्द्य अवग हन ह िी ह उसक जजिन प्रम ण ह उिन ही अवधिज्ञ न क जघन्द्य क्षत्र क प्रम ण ह ॥378॥
  • 24. अवधिज्ञ न क जघन्द्य क्षत्र प्रम ण सूक्ष्म तनग दिय लस्ब्ि-अपय थप्िक क जन्द्म लन क िृिीय समय मं जघन्द्य अवग हन ह िी ह इस जघन्द्य अवग हन प्रम ण क्षत्र क जघन्द्य अवधिज्ञ न ज नि ह अर् थि् इिन क्षत्र क भीिर स्थर्ि द्रव्य क ज नि ह
  • 25. अवर हहखििीहं , ववत्र् रुथसहयं ण ज ण म अणणं पुण समकरण, अवर ग हणपम णं िु॥379॥ अर्थ - जघन्द्य अवधिज्ञ न क क्षत्र की ऊाँ ि ई, लम्ब ई, ि ि ई क लभन्न-लभन्न प्रम ण हम नहीं ज नि िर् वप इिन ज नि हं वक समीकरण करन स ज क्षत्रफल ह ि ह, वह जघन्द्य अवग हन क सम न घन ं गुल क असं ख्य िवं भ गम त्र ह ि ह ॥379॥
  • 26. जघन्द्य अवग हन = लं ब ई × ि ि ई × ऊाँ ि ई = उत्‍सेधांगुल असं. × उत्‍सेधांगुल असं. × उत्‍सेधांगुल असं. = घनांगुल असं.
  • 27. अवर ग हणम णं , उथसहं गुलअसं खभ गथस सूइथस य घणपिरं , ह दि हु िक्‍खिसमकरण॥380॥ अर्थ - क्षत्रखं ि ववि न स समीकरण करन पर प्र प्ि उत्सि ं गुल (व्यवह र सूच्यं गुल) क असं ख्य िवं भ ग प्रम ण-भुज क टी अ र वि मं परथपर गुण करन स घन ं गुल क असं ख्य िवं भ ग प्रम ण जजिन जघन्द्य अवग हन क प्रम ण ह ि ह उिन ही जघन्द्य अवधिज्ञ न क क्षत्र ह ि ह ॥380॥
  • 28. अवरं िु अ हहखिं , उथसहं अं गुलं हव जम्ह सुहम ग हणम णं , उवरर पम णं िु अं गुलयं ॥381॥ अर्थ - ज जघन्द्य अवधि क क्षत्र पहल बि य ह वह भी व्यवह र ं गुल की अपक्ष उत्सि ं गुल ही ह, क ं वक वह सूक्ष्म तनग दिय लब्ध्यपय थप्िक की जघन्द्य अवग हन प्रम ण ह परन्द्िु अ ग अं गुल स प्रम ण ं गुल क ग्रहण करन ॥381॥
  • 29. अवर हहखिमझि, अवर ही अवरिव्वमवगमदि िद्दव्वथसवग ह , उथसह सं खघणपिर ॥382॥ अर्थ - जघन्द्य अवधि अपन जघन्द्य क्षत्र मं जजिन भी असं ख्य ि प्रम ण जघन्द्य द्रव्य हं जजसक वक प्रम ण ऊपर बि य ज िुक ह उन सबक ज नि ह उस द्रव्य क अवग ह उत्सि (व्यवह र) घन ं गुल क असं ख्य िवं भ गम त्र ह ि ह ॥382॥
  • 30. जघन्द्य अवधि क्षत्र इसमं जघन्द्य द्रव्य थकं ि असं ख्य ि ह सकि हं क्‍य ं वक जघन्द्य द्रव्य की अवग हन जघन्‍य क्षेत्र असं. ह जघन्द्य क्षत्र मं स्थर्ि जघन्द्य द्रव्य स थर्ूल थकं ि क ि ज न ही सकि ह
  • 31. जघन्द्य क्षत्र मं वकिन जघन्द्य द्रव्य सम सकि हं ? = जघन्‍य क्षेत्र एक जघन्‍य द्रव्‍य की अिगािना = घनांगुल/असं. घनांगुल/असं. = असं ख्य ि उि हरण 500 𝑠𝑞3 5 𝑠𝑞3 = 100
  • 32. जघन्द्य क्षत्र क ववषय मं ववशष घन क्षत्र घन ं गुल क असं ख्य िव ं भ ग क्षत्र क अ क र अतनयि लम्ब ई, ि ि ई, ऊाँ ि ई उपिश उपलब्ि नहीं सदृश्य म नन पर प्रत्यक उत्‍सेधांगुल असं. अं गुल यह ाँ क न- स ह उत्सि ं गुल (व्यवह र ं गुल) अ ग क्षत्र प्रकरण मं प्रम ण ं गुल ज नन
  • 33. अ वललअसं खभ गं , िीिभववथसं ि क लि अवरं अ ही ज णदि भ व, क लअसं खझजभ गं िु॥383॥ अर्थ - जघन्द्य अवधिज्ञ न क ल स अ वली क असं ख्य िवं भ गम त्र अिीि, अन गि क ल क ज नि ह पुनश्च भ व स अ वली क असं ख्य िवं भ गम त्र क ल प्रम ण क असं ख्य िवं भ ग प्रम ण भ व, उनक ज नि ह जघन्द्य अवधिज्ञ न पूव थक्त क्षत्र मं , पूव थक्त एक द्रव्य क, अ वली क असं ख्य िवं भ ग प्रम ण अिीि (भूि) क ल मं िर् उिन ही अन गि (भववष्य) क ल मं ज अ क ररूप व्यं जनपय थय हुय र् िर् ह ं ग उनक ज नि ह पूव थक्त क्षत्र मं पूव थक्त द्रव्य क विथम न पररणमनरूप अ वली क असं ख्य िवं भ ग क असं ख्य िवं भ ग प्रम ण अर्थपय थय ज नि ह ॥383॥
  • 34. जघन्द्य अवधिज्ञ न क क ल, भ व प्रम ण • आिली असंख्‍यात जघन्द्य क ल • जघन्‍य काल असंख्‍यात = आिली असं.×असं. जघन्द्य भ व इिन भूि अ र भववष्य क क ल क अवधिज्ञ न प्रत्यक्ष िखि ह अ 𝛛𝛛 प्रम ण भ व ं क अर् थि् अर्थपय थय ं (ववशषि अ ं ) क जघन्द्य अवधिज्ञ न ज नि ह
  • 35. जघन्द्य अवधिज्ञ न की द्रव्य दि मय थि • विस्रसोपचय सहित औदारिक शिीि का संचय लोक द्रव्य •जघन्द्य अवग हन प्रम ण घनांगुल असंख्‍यात क्षत्र • आिली 𝝏 क ल • आिली 𝝏𝝏 भ व
  • 36. अवरद्दव् िुवररम-िव्वववयप्प य ह दि िुवह र ससि णं तिमभ ग , अभव्वससि िणं िगुण ॥384॥ अर्थ - जघन्द्य िश वधि ज्ञ न क ववषयभूि द्रव्य स ऊपर हद्विीय अ दि अवधिज्ञ न क भि ं क ववषयभूि द्रव्य ं क ल न क ललय ससि र शश क अनं िव ाँ भ ग अ र अभव्य र शश स अनं ि गुण ध्रुवभ गह र ह ि ह ॥384॥
  • 37. िश वधिज्ञ न क द्रव्य अपक्ष भि 2nd प्रथम भेद ध्रुििाि 3rd हद्विीय भि ध्रुवह र 4th तृतीय भेद ध्रुििाि इस ही प्रक र स प्रत्यक भि तनक लन हिु पूवथ द्रव्य मं ध्रुवह र क भ ग लग न ध्रुवह र = ससि अनं ि य अभव्य × अनं ि
  • 38. िुवह रकम्मवग्गण-गुणग रं कम्मवग्गणं गुणणि समयपबिपम णं , ज णणज्ज अ हहववसयण्म्ह॥385॥ अर्थ - ध्रुवह ररूप क मथणवगथण क गुण क र क अ र क मथणवगथण क परथपर गुण करन स अवधिज्ञ न क ववषय मं समयप्रबि क प्रम ण तनकलि ह जघन्द्य िश वधि क ववषयभूि ज द्रव्य कह र् , उसी क न म यह ाँ समयप्रबि ज नन ॥385॥
  • 39. क मथण वगथण क गुणक र = (ध्रुििाि)(देशािधध के विकल्‍प ‒𝟐) क मथण वगथण क गुणक र य न जजस क मथण वगथण स गुण करन पर जघन्द्य अवधिज्ञ न क ववषयभूि द्रव्य अ ि ह | क मथण वगथण गुणक र × क मथण वगथण = अवधिज्ञ न क ववषयभूि जघन्द्य द्रव्य * इसी जघन्द्य द्रव्य क यह ाँ समयप्रबि कह ह
  • 40. िश वधि क द्रव्य की अपक्ष भि - उि हरण 1,31072 65,536 32,768 16,384 8,192 4096 10242048 िश वधि क उत्कृ ष्ट भि परम वधि िश वधि क जघन्द्य भि क मथण वगथण अ ि ररक+ ववस्रस पिय ध्रुवह र = 2 िश वधि क ववकल्प = 7
  • 41. परम वधि क द्रव्य की अपक्ष भि - उि हरण 1024 512 256 128 64 81632 4 परम वधि क उत्कृ ष्ट भि सव थवधि परम वधि क जघन्द्य भि क मथण वगथण /(ध्रुवह र)2 ध्रुवह र = 2 परम वधि क ववकल्प = 10 2 1 परम णु
  • 42. • क मथण वगथण क गुणक र = (ध्रुििाि)(देशािधध के विकल्‍प ‒𝟐) • =2(7 – 2) • =25 • = 32 • अवधिज्ञ न क ववषयभूि जघन्द्य द्रव्य = क मथण वगथण गुणक र × क मथण वगथण • = 32 * 4096 • =1,31,072 जघन्द्य द्रव्य म न - िश वधि क ववकल्प = 7, ध्रुवह र = 2, ज. िश वधि द्रव्य = 131,072, क . व. = 4096
  • 43. मणिव्ववग्गण णं , ववयप्प णं तिमसमं खु िुवह र अवरुक्कथसववसस , रूवहहय िहव्यप्प हु॥386॥ अर्थ - मन द्रव्य वगथण क उत्कृ ष्ट प्रम ण मं स जघन्द्य प्रम ण क घट न पर ज शष रह उसमं एक लमल न स मन द्रव्य वगथण अ ं क ववकल्प ं क प्रम ण ह ि ह इन ववकल्प ं क जजिन प्रम ण ह उसक अनं ि भ ग ं मं स एक भ ग क बर बर अवधिज्ञ न क ववषयभूि द्रव्य क ध्रुवह र क प्रम ण ह ि ह ॥386॥
  • 44. ध्रुवह र क प्रम ण मनोिगगणा के प्रकाि अनंत मनोिगगणा के प्रकाि = उत्कृ ष्ट मन वगथण ‒ जघन्द्य मन वगथण + 1 अिः ध्रुििाि = उत्‍कृ ष्‍ट मनोिगगणा ‒ जघन्‍य मनोिगगणा + 1 अनंत
  • 45. अवरं ह दि अणं िं , अणं िभ गण अहहयमुक्कथसं इदि मणभि णं तिम-भ ग िव्वण्म्म िुवह र ॥387॥ अर्थ - मन वगथण क जघन्द्य भि अनं ि प्रम ण ह अनं ि परम णुअ ं क थकं िरूप जघन्द्य मन वगथण ह उस प्रम ण क अनं ि क भ ग िन पर ज प्रम ण अ ि ह, उिन उस जघन्द्य भि क प्रम ण मं ज िन पर ज प्रम ण ह , वही मन वगथण क उत्कृ ष्ट भि क प्रम ण ज नन इिन परम णुअ ं क थकं िरूप उत्कृ ष्ट मन वगथण ह स जघन्द्य स लकर उत्कृ ष्ट िक पूव थक्त प्रक र स मन वगथण क जजिन भि हुय, उनक अनं िवं भ गम त्र यह ाँ ध्रुवह र क प्रम ण ह ॥387॥
  • 46. •अनं ि परम णुअ ं क थकन्द्िजघन्द्य मन वगथण •जघन्द्य मन वगथण + जघन्‍य मनोिगगणा अनंत उत्कृ ष्ट मन वगथण •अनन्द्ि (य न जघन्‍य मनोिगगणा अनंत + 1) अि: मन वगथण क प्रक र इन ववकल्प ं क अनन्द्िव ं भ ग ध्रुवह र क प्रम ण ह
  • 47. म न – मन वगथण जघन्द्य =8193, उत्कृ ष्ट = 8704, अनं ि = 256 • मन वगथण क प्रक र = उत्कृ ष्ट – जघन्द्य + 1 • = 8704 – 8193 + 1 • = 511 + 1 • = 512 • ध्रुवह र = उत्‍कृ ष्‍ट मनोिगगणा ‒ जघन्‍य मनोिगगणा + 1 अनंत • = 512 256 = 2 = ध्रुवह र
  • 48. िुवह रथस पम णं , ससि णं तिमपम णमिं वप समयपबिणणलमिं , कम्मणवग्गणगुण ि िु॥388॥ ह दि अणं तिमभ ग , िग्गुणग र वव िसअ हहथस ि ऊणिव्वभि-पम ण िुवह रसं वग्ग ॥389॥ अर्थ - यद्यवप ध्रुवह र क प्रम ण ससिर शश क अनं िवं भ ग हं , िर् वप अवधिज्ञ न ववषयक समयप्रबि क प्रम ण तनक लन क तनलमिभूि क मथणवगथण क गुणक र स अनं िवं भ ग समिन ि हहय द्रव्य की अपक्ष स िश वधिज्ञ न क जजिन भि हं , उनमं ि कम करन स ज प्रम ण शष रह उिनी ब र ध्रुवह र क परथपर गुण करन स क मथण वगथण क गुणक र क प्रम ण तनकलि ह ॥388-389॥
  • 49. ध्रुवह र ससि र शश अनं ि य अभव्य ं स अनं ि गुण कामगण िगगणा का गुणकाि अनंत मनोिगगणा के प्रकाि अनंत
  • 50. अन्द्य प्रक र स जघन्द्य द्रव्य (समयप्रबि) क प्रम ण क मथण वगथण क गुणक र × क मथण वगथण (ध्रुििाि)देशािधध के विकल्‍प ‒𝟐 × (ध्रुििाि)पिमािधध के विकल्‍प +𝟐 (ध्रुििाि)(देशािधध ि पिमािधध के समस्‍त विकल्‍प)
  • 51. अन्‍य‍प्रकाि‍से‍जघन्‍य‍द्रव्‍य‍(समयप्रबद्ध) का‍प्रमाण‍ • क मथण वगथण क गुणक र × क मथण वगथण • (ध्रुििाि)देशािधध के विकल्‍प ‒𝟐 × (ध्रुििाि)पिमािधध के विकल्‍प +𝟐 • (ध्रुििाि)(देशािधध ि पिमािधध के समस्‍त विकल्‍प) • जघन्‍य‍द्रव्‍य‍(समयप्रबद्ध) • 32 * 4096 • =2(7 – 2) * 2(10+2) • 25 * 212 • 217 • 1,31,072 जघन्‍य‍द्रव्‍य‍(समयप्रबद्ध)
  • 52. अं गुलअसं खगुणणि , खिववयप्प य िव्वभि हु खिववयप्प अवरुक्कथसववससं हव एत्र्॥390॥ अर्थ - िश वधिज्ञ न क क्षत्र की अपक्ष जजिन भि हं उनक सूच्यं गुल क असं ख्य िवं भ ग स गुण करन पर द्रव्य की अपक्ष स िश वधि क भि ं क प्रम ण तनकलि ह क्षत्र की अपक्ष उत्कृ ष्ट प्रम ण स सवथ जघन्द्य प्रम ण क घट न स ज प्रम ण शष रह उिन ही क्षत्र की अपक्ष स िश वधि क ववकल्प ह ि हं इसक सूच्यं गुल क असं ख्य िवं भ ग स गुण करक उसमं एक लमल न पर द्रव्य की अपक्ष स िश वधि क भि ह ि हं ॥390॥
  • 53. द्रव्य अपक्ष भि •(क्षत्र अपक्ष भि× सूच्‍यंगुल असंख्‍यात ) + 1 क्षत्र अपक्ष भि •उत्कृ ष्ट क्षत्र ‒ जघन्द्य क्षत्र
  • 54. म न वक सू. असं. = 3 भि सं ख्य क्षत्र 1 2 3 10 प्रिश 10 प्रिश 10 प्रिश 4 5 6 11 प्रिश 11 प्रिश 11 प्रिश 7 8 9 12 प्रिश 12 प्रिश 12 प्रिश 10 13 प्रिश उत्कृ ष्ट क्षत्र ‒ जघन्द्य क्षत्र 13 ‒ 10 = 3 (क्षत्र अपक्ष भि × सूच्‍यंगुल असंख्‍यात ) + 1 (3 × 3) + 1 = 9 + 1 = 10 द्रव्य, क्षत्र अपक्ष भि - उि हरण
  • 55. अं गुलअसं खभ गं , अवरं उक्कथसयं हव ल ग इदि वग्गणगुणग र , असं खिुवह रसं वग्ग ॥391॥ अर्थ - िश वधि क पूव थक्त सूक्ष्म तनग दिय लब्ध्यपय थप्िक की जघन्द्य अवग हन प्रम ण, अर् थि् घन ं गुल क असं ख्य िवं भ गथवरूप ज प्रम ण बि य ह वही जघन्द्य िश वधि क ववषयभूि क्षत्र क प्रम ण ह सं पूणथ ल कप्रम ण उत्कृ ष्ट क्षत्र ह इस प्रक र िश वधि क सवथ द्रव्य ववकल्प ं क प्रम ण मं स ि कम करन पर ज प्रम ण शष रह उिन ही ध्रुवह र ं क रखकर परथपर गुण करन स क मथण वगथण क गुणक र तनष्पन्न ह ि ह ॥391॥
  • 56. िश वधिज्ञ न – क्षत्र प्रम ण • अंगुल असं. जघन्द्य क्षत्र •ल क उत्कृ ष्ट क्षत्र
  • 57. िश वधि क कु ल भि लोक ‒ अंगुल असं. × सू. असं. + 1 (ल क × सू. 𝜕 ‒ अंगुल 𝜕 × सू. 𝜕 ) + 1 ल क × सू. 𝜕 ‒ अर् थि् ≡ 𝜕
  • 58. क मथण वगथण क गुणक र (ध्रुििाि)देशािधध के विकल्‍प ‒𝟐 (ध्रुििाि)≡𝛛‒𝟐 = ध्रुििाि≡𝝏
  • 59. वग्गणर ससपम णं , ससि णं तिमपम णमिं वप िुगसहहयपरमभिपम णवह र ण सं वग्ग ॥392॥ अर्थ - क मथणवगथण क प्रम ण यद्यवप ससि र शश क अनं िवं भ ग ह, िर् वप परम वधि क भि ं मं ि लमल न स ज प्रम ण ह उिनी जगह ध्रुवह र रखकर परथपर गुण करन स लब्िर शशप्रम ण क मथणवगथण क प्रम ण ह ि ह ॥392॥
  • 60. क मथण वगथण क प्रम ण ससि र शश अनं ि अर्व (ध्रुििाि)(पिमािधध के विकल्‍प +𝟐)
  • 61. परम वहहथस भि , सगअ ग हणववयप्पहििऊ इदि िुवह रं वग्गण-गुणग रं वग्गणं ज ण॥393॥ अर्थ - िजथक ययक जीव ं की अवग हन क जजिन ववकल्प हं उसक अ र िजथक ययक जीवर शश क परथपर गुण करन स ज र शश लब्ि अ व, उिन ही परम वधि ज्ञ न क द्रव्य की अपक्ष स भि ं क प्रम ण ह ि ह इसप्रक र ध्रुवह र, वगथण क गुणक र अ र वगथण क थवरूप समिन ि हहय ॥393॥
  • 62. परम वधि क भि अयिक ययक क अवग हन क भि × अयिक ययक जीव 𝜕 × ≡ 𝜕 = ≡ 𝜕
  • 63. िस हहअवरिव्ं , िुवह रणवहहि हव ववदियं िदिय दिववयप्पसु वव, असं खव र त्ति एस कम ॥394॥ अर्थ - िश वधिज्ञ न क ववषयभूि जघन्द्य द्रव्य पहल कह र् , उसक ध्रुवह र क भ ग िन पर ज प्रम ण ह , वह िूसर िश वधि क भि क ववषयभूि द्रव्य ह एस ही ध्रुवह र क भ ग िि-िि िीसर, ि र् अ दि भि ं क ववषयभूि द्रव्य ह ि ह एस असं ख्य ि ब र अनुक्रम करन ॥394॥
  • 64. िस हहमझिभि सववथसस वियिजकम्मं गं िज भ समण णं , वग्गणयं कवलं जत्र्॥395॥ पथसदि अ ही ित्र् असं खज्ज अ हवं ति िीउवही व स णण असं खज्ज ह ं ति असं खझजगुणणिकम ॥396॥ अर्थ - िश वधिज्ञ न क मध्यम भि ं मं स जह ाँ िश वधिज्ञ न ववस्रस पिय सहहि िजस शरीररूप थकन्द्ि क ज नि ह, उसस अ ग जह ाँ-जह ाँ ववस्रस पिय सहहि क मथणथकं ि, ववस्रस पिय रहहि िजस वगथण , ववस्रस पिय रहहि भ ष वगथण , ववस्रस पिय रहहि मन वगथण क ज नि ह, वह ाँ- वह ाँ इन प ाँि ं थर् न ं मं क्षत्र असं ख्य ि द्वीप-समुद्र अ र क ल असं ख्य ि वषथ ह ि ह िर् वप उिर िर असं ख्य ि गुणणिक्रम ह ि ह अर् थि पहल स िूसर, िूसर स िीसर, िीसर स ि र् अ र ि र् स प ाँिवं भि सम्बन्द्िी क्षत्र, क ल क पररम ण असं ख्य ि गुण ह ॥395-396॥
  • 65. एस ध्रुवह र क भ ग िि-िि क्रम-क्रम स य थर् न अ ि हं — द्रव्य क्षत्र क ल ववस्रस पिय सहहि िजस शरीर असं ख्य ि द्वीप समुद्र (उिर िर थर् न ं मं असं ख्य ि गुण ) असं ख्य ि वषथ (उिर िर थर् न ं मं असं ख्य ि गुण ) ववस्रस पिय सहहि क मथण शरीर 1 िजस वगथण 1 भ ष वगथण 1 मन वगथण
  • 66. िि कम्मइयण्थसयग-समयपबिं ववववथसस वियं िुवह रथस ववभज्जं , सव् ही ज व ि व हव॥397॥ अर्थ - इसक अनन्द्िर मन वगथण मं ध्रुवह र क भ ग िन ि हहय इसिरह भ ग िि-िि ववस्रस पियरहहि क मथण क एक समयप्रबि प्रम ण ववषय अ ि ह उक्त क्रम नुस र इसमं भी सव थवधि क ववषय पयथन्द्ि ध्रुवह र क भ ग िि ज न ि हहय ॥397॥
  • 67. इसी क्रम स ववस्रस पिय रहहि क मथण क एक समयप्रबि क प्रम ण अ ि ह एस ही सव थवधिज्ञ न पयथन्द्ि ध्रुवह र क भ ग लग ि ज न ि हहए
  • 68. एिण्म्ह ववभज्जं ि, िुिररमिस वहहण्म्म वग्गणयं िररम कम्मइयण्थसयग-वग्गणलमयगव रभजजिं िु॥398॥ अर्थ - इस क मथण समयप्रबि मं ध्रुवह र स भ ग िन पर िश वधि क हद्विरम भिक मथणवगथण रूप द्रव्य ववषय ह ि ह अ र अण्न्द्िम भि मं ध्रुवह र स एक ब र भ जजि क मथणवगथण द्रव्य ह ि ह ॥398॥
  • 69. त्रत्रचिम देशािधध ध्रुििाि = क मथण वगथण (हद्विरम भि) द्विचिम देशािधध ध्रुििाि = िरम भि कामगण िगगणा ध्रुििाि = िरम भि
  • 70. अं गुलअसं खभ ग, िव्वववयप्प गि िु खिण्म्ह एग ग सपिस , वड्ढदि सं पुणणल ग त्ति॥399॥ अर्थ - सूच्यं गुल क असं ख्य िवं भ गप्रम ण जब द्रव्य क ववकल्प ह ज य िब क्षत्र की अपक्ष अ क श क एक प्रिश बढि ह इस ही क्रम स एक-एक अ क श क प्रिश की वृणि वह ाँ िक करनी ि हहय वक जह ाँ िक िश वधि क उत्कृ ष्ट क्षत्र सवथल क ह ज य ॥399॥
  • 71. द्रव्य के भेद क्षेत्र मर्यादय प्रथम, द्वितीर्, तृतीर् आद्वद भेद जघन्र् क्षेत्र सू/ 𝛛 भेद जघन्र् क्षेत्र + 1 प्रदेश सू/ 𝛛 भेद जघन्र् क्षेत्र + 2 प्रदेश ऐसे लोक पर्ान्त प्रदेशोों को बढयनय । सू 𝜕 प्रम ण द्रव्य क भि ह न पर क्षत्र मं 1 प्रिश की वृणि ह िी ह
  • 72. अ वललअसं खभ ग , जहणणक ल कमण समयण वड्ढदि िस हहवरं , पल्लं समऊणयं ज व॥400॥ अर्थ - जघन्द्य िश वधि क ववषयभूि क ल क प्रम ण अ वली क असं ख्य िव ाँ भ ग ह इसक ऊपर उत्कृ ष्ट िश वधि क ववषयभूि एक समय कम एक पल्यप्रम ण क ल पयथन्द्ि, ध्रुव िर् अध्रुव वृणिरूप क्रम स एक-एक समय की वृणि ह िी ह ॥400
  • 73. क्षत्र मं ध्रुववृणि अर्व अध्रुववृणि ह न पर क ल मं 1 समय बढि ह क्षत्र क भि क ल मय थि जघन्द्य क्षत्र जघन्द्य क ल + 1 प्रिश '' + 2 प्रिश '' + घ/𝝏 प्रिश जघन्द्य क ल+1 समय ..... + घ/𝝏 प्रिश जघन्द्य क ल+2 समय इस प्रक र ध्रुव अर्व अध्रुव वृणि क क्रम स 1-1 समय की वृणि ह ि हुए (पल्य‒1 समय) िक वृणि ह िी ह
  • 74. िश वधि की क ल मय थि जघन्द्य आिली 𝝏 उत्कृ ष्ट पल्य ‒ 1 समय
  • 75. अं गुल असं खभ गं , िुवरूवण य असं खब रं िु असं खसं खं भ गं , असं खव रं िु अिुवग ॥401॥ अर्थ: घन ं गुल क अ वली स भ ग िन पर घन ं गुल क असं ख्य िव भ ग ह ि ह उिन ही ध्रुवरूप स वृणि क प्रम ण ह ि ह यह वृणि प्रर्म क णिक क अण्न्द्िम भि पयथन्द्ि असं ख्य ि ब र ह िी ह पुन: उसी प्रर्म क णिक म अध्रुववृणि की वववक्ष ह न पर उस वृणि क प्रम ण घन ं गुल क असं ख्य िव भ ग अ र सं ख्य िव भ ग ह ि ह अध्रुववृणि भी प्रर्म क णिक क अण्न्द्िम भि पयथन्द्ि असं ख्य ि ब र ह िी ह ॥401॥
  • 76. प्रर्म क णिक (पवथ) की ववशषि जघन्द्य क ल स उत्कृ ष्ट क ल पयथन्द्ि वृणि वकिन प्रिश ं की वृणि ह न पर 1 समय की वृणि ह िी ह समय की वृणि वकिनी ब र ह िी ह ध्रुव वृणि घनांगुल आिली = घनांगुल असं. असं ख्य ि ब र अध्रुव वृणि घनांगुल असं. अर्व घनांगुल संख्‍यात असं ख्य ि ब र कु ल वृणि असं ख्य ि समय
  • 77. िुवअिुवरूवण य, अवर खिण्म्ह वहड्ढि खि अवर क लण्म्ह पुण , एक्कक्कं वड्ढि समयं ॥402॥ अर्थ - जघन्द्य िश वधि क ववषयभूि क्षत्र क ऊपर ध्रुवरूप स अर्व अध्रुवरूप स क्षत्र की वृणि ह न पर जघन्द्य क ल क ऊपर एक-एक समय की वृणि ह िी ह॥402॥
  • 78. • क्षत्र मं तनयि प्रिश ं की वृणि ह न पर क ल मं वृणि ह न यह ध्रुववृणि ह ध्रुववृणि • क्षत्र मं अतनयि प्रिश ं की वृणि ह न पर क ल मं वृणि ह न यह अध्रुववृणि ह अध्रुववृणि Note - यह ि न ं वृणिय ाँ क ल वृणि क ललए ही हं द्रव्य अ र भ व की वृणि प्रत्यक भि मं ह िी ह क्षत्र मं वृणि प्रत्यक सू 𝛛 प्रम ण भि ज न पर ह िी ह ध्रुववृणि अ र अध्रुववृणि - ि न ं प्रक र की वृणि ह ि हुए क ल मं 1-1 समय बढि ह
  • 79. सं ख िीि समय , पढम पव्वण्म्म उभयि वड्ढी खिं क लं अण्थसय, पढम िी कं िय व च्छं ॥403॥ अर्थ - प्रर्म क णिक मं ध्रुवरूप स अ र अध्रुवरूप स असं ख्य ि समय की वृणि ह िी ह इसक अ ग प्रर्म दि क णिक ं क क्षत्र अ र क ल क अ श्रय स वणथन करि हं ॥403॥
  • 80. अं गुलम वललय ए, भ गमसं खझजि वव सं खज्ज अं गुलम वललयं ि , अ वललयं ि ं गुलपुििं ॥404॥ अर्थ - प्रर्म क णिक मं जघन्द्य क्षत्र घन ं गुल क असं ख्य िवं भ गप्रम ण अ र उत्कृ ष्ट क्षत्र घन ं गुल क सं ख्य िवं भ ग प्रम ण ह अ र जघन्द्य क ल क प्रम ण अ वली क असं ख्य िव ाँ भ ग िर् उत्कृ ष्ट क ल क प्रम ण अ वली क सं ख्य िव ाँ भ ग ह िूसर क णिक मं क्षत्र घन ं गुलप्रम ण अ र क ल कु छ कम एक अ वली प्रम ण ह िीसर क णिक मं क्षत्र घन ं गुल पृर्क्‍त्व अ र क ल अ वली पृर्क्‍त्व प्रम ण ह ॥404॥
  • 81. क णिक द्रव्य क्षत्र क ल भ व प्रर्म-उत्कृ ष्ट ¦ घनांगुल संख्‍यात आिली संख्‍यात ¦ िूसर -उत्कृ ष्ट ¦ घन ं गुल कु छ कम अ वली ¦ िीसर ¦ पृर्क्‍त्व घन ं गुल पृर्क्‍त्व अ वली ¦ अवधिज्ञ न क 19 क ं िक
  • 82. अ वललयपुििं पुण, हत्र्ं िह ग उयं मुहुिं िु ज यणलभणणमुहुिं , दिवसं ि पणणुवीसं िु॥405॥ अर्थ - ििुर्थ क णिक मं क ल अ वली पृर्क्‍त्व अ र क्षत्र हथिप्रम ण ह प ाँिवं क णिक मं क्षत्र एक क श अ र क ल अन्द्िमुथहूिथ ह छठ क णिक मं क्षत्र एक य जन अ र क ल लभन्नमुहूिथ ह स िवं क णिक मं क ल कु छ कम एक दिन अ र क्षत्र पच्चीस य जन ह ॥405॥
  • 83. क णिक द्रव्य क्षत्र क ल भ व ि र् ¦ एक ह र् पृर्क्‍त्व अ वली ¦ प ाँिव ाँ ¦ एक क स अन्द्िमुथहूिथ ¦ छठ ¦ एक य जन लभन्द्न मुहूिथ ¦ स िव ाँ ¦ 25 य जन कु छ कम 1 दिन ¦ अवधिज्ञ न क 19 क ं िक
  • 84. भरहण्म्म अिम सं , स हहयम सं ि जम्बुिीवण्म्म व सं ि मणुवल ए, व सपुििं ि रुिगण्म्म॥406॥ अर्थ - अ ठवं क णिक मं क्षत्र भरिक्षत्र प्रम ण अ र क ल अिथम स (पक्ष) प्रम ण ह न वं क णिक मं क्षत्र जम्बूद्वीप प्रम ण अ र क ल एक म स स कु छ अधिक ह िशवं क णिक मं क्षत्र मनुष्यल क प्रम ण अ र क ल एक वषथ प्रम ण ह ग्य रहवं क णिक मं क्षत्र रुिक द्वीप अ र क ल वषथपृर्क्‍त्व प्रम ण ह ॥406॥
  • 85. क णिक द्रव्य क्षत्र क ल भ व अ ठव ाँ ¦ भरि क्षत्र 1/2 महीन ¦ न व ाँ ¦ जम्बूद्वीप कु छ अधिक 1 महीन ¦ िसव ाँ ¦ मनुष्य ल क (45 ल ख य जन प्रम ण) 1 वषथ ¦ ग्य रहव ाँ ¦ रुिक (13व ाँ) द्वीप पृर्क्‍त्व वषथ ¦ अवधिज्ञ न क 19 क ं िक
  • 86. सं खझजपम व स, िीवसमुद्द हवं ति सं खज्ज व सण्म्म असं खज्ज, िीवसमुद्द असं खज्ज ॥407॥ अर्थ - ब रहवं क णिक मं सं ख्य ि वषथप्रम ण क ल अ र सं ख्य ि द्वीप-समुद्रप्रम ण क्षत्र ह इसक अ ग िरहवं स लकर उन्नीसवं क णिक पयथन्द्ि असं ख्य ि वषथप्रम ण क ल अ र असं ख्य ि द्वीप-समुद्र प्रम ण क्षत्र ह ॥407॥
  • 87. क णिक द्रव्य क्षत्र क ल भ व ब रहव ाँ ¦ सं ख्य ि द्वीप-समुद्र सं ख्य ि वषथ ¦ िरहव ाँ ववस्रस पिय सहहि िजस शरीर असं ख्य ि द्वीप-समुद्र 1 उिर ि र असं . गुण - असं . गुण अधिक असं ख्य ि वषथ 1 ¦ ि िहव ाँ ववस्रस पिय सहहि क मथण शरीर असं ख्य ि द्वीप-समुद्र 2 असं ख्य ि वषथ 2 ¦ पन्द्द्रहव ाँ ववस्रस पिय रहहि िजस वगथण असं ख्य ि द्वीप-समुद्र 3 असं ख्य ि वषथ 3 ¦ अवधिज्ञ न क 19 क ं िक
  • 88. क णिक द्रव्य क्षत्र क ल भ व स लहव ाँ ववस्रस पिय रहहि भ ष वगथण असं ख्य ि द्वीप- समुद्र 4 उिर िर असं . गुण - असं . गुण अधिक असं ख्य ि वषथ 4 ¦ सत्रहव ाँ ववस्रस पिय रहहि मन वगथण असं ख्य ि द्वीप- समुद्र 5 असं ख्य ि वषथ 5 ¦ अठ रहव ाँ क मथण क एक समयप्रबि असं ख्य ि द्वीप- समुद्र 6 असं ख्य ि वषथ 6 ¦ उन्नीसव ाँ क मथण वगथण ध्रुििाि ल क पल्य – 1 समय ¦ अवधिज्ञ न क 19 क ं िक
  • 89. क लववससणवहहि-खिववसस िुव हव वड्ढी अिुववड्ढी वव पुण , अववरुिं इठिकं िण्म्म॥408॥ अर्थ - वकसी वववसक्षि क णिक क क्षत्र ववशष मं क ल ववशष क भ ग िन स ज शष रह उिन ध्रुव वृणि क प्रम ण ह इस ही िरह अववर िरूप स इष्ट क णिक मं अध्रुव वृणि क भी प्रम ण समिन ि हहय॥408॥
  • 90. प्रत्यक क ं िक मं ध्रुववृणि क प्रम ण कांडक का उत्‍कृ ष्‍ट क्षेत्र ‒ जघन्‍य क्षेत्र कांडक का उत्‍कृ ष्‍ट काल ‒ जघन्‍य काल = ध्रुववृणि प्रत्यक क ं िक मं अध्रुव वृणि क भी प्रम ण यर् य ग्य समिन ि हहय।
  • 91. प्रर्म क ं िक मं ध्रुव-अध्रुव वृणि  घ सं . − घ 𝜕 अ सं . − अ 𝜕 = घ सं . अ सं . = घ सं . × सं . अ . = घ अ . (ध्रुववृणि क प्रम ण) • अर् थि् घ आ. प्रम ण प्रिश ं की वृणि ह न पर 1 समय बढि ह, वह ध्रुववृणि ह ध्रुववृणि • घ 𝝏 य घ सं. प्रम ण प्रिश ं की वृणि ह न पर 1 समय बढि ह, वह अध्रुववृणि ह अध्रुववृणि
  • 92. अं गुलअसं खभ गं , सं खं व अं गुलं ि िथसव सं खमसं खं एवं , सढीपिरथस अिुवग॥409॥ अर्थ - घन ं गुल क असं ख्य िवं भ गप्रम ण, व घन ं गुल क सं ख्य िवं भ गप्रम ण व घन ं गुलम त्र,व सं ख्य ि घन ं गुलम त्र, व असं ख्य ि घन ं गुलम त्र इसी प्रक र श्रणी क असं ख्य िवं भ गप्रम ण, व श्रणी क सं ख्य िवं भ गप्रम ण, व श्रणीप्रम ण, व सं ख्य ि श्रणीप्रम ण, व असं ख्य ि श्रणीप्रम ण, व प्रिर क असं ख्य िवं भ ग प्रम ण, व प्रिर क सं ख्य िवं भ ग प्रम ण, व प्रिरप्रम ण, व सं ख्य ि प्रिरप्रम ण, व असं ख्य ि प्रिरप्रम ण प्रिश ं की वृणि ह न पर एक-एक समय की वृणि ह िी ह यही अध्रुव वृणि क क्रम ह ॥409
  • 93. अध्रुव वृणि क प्रम ण (अर् थि् इिन प्रिश ं की वृणि ह न पर क ल मं 1 समय बढि ह) वववसक्षि क णिक मं यर् य ग्य तनम्न मं स सं भ ववि वृणि घनांगुल असं ख्य ि घनांगुल सं ख्य ि घन ं गुल सं . घन ं गुल असं . घन ं गुल जगतश्रेणी असं ख्य ि श्रेणी सं ख्य ि जगिश्रणी सं ख्य ि श्रणी असं ख्य ि श्रणी जगतप्रति असं ख्य ि जगतप्रति सं ख्य ि जगिप्रिर सं ख्य ि जगतप्रति असं ख्य ि जगतप्रति
  • 94. कम्मइयवग्गणं िुवह रणणयगव रभ जजि िव्ं उक्कथसं खिं पुण, ल ग सं पुणणअ ह दि॥410॥ अर्थ - क मथणवगथण मं एकब र ध्रुवह र क भ ग िन स ज लब्ि अ व उिन िश वधि क उत्कृ ष्ट द्रव्य क प्रम ण ह िर् सं पूणथ ल क उत्कृ ष्ट क्षत्र क प्रम ण ह ॥410॥
  • 95. पल्लसमऊण क ल, भ वण असं खल गमि हु िव्वथस य पज्ज य , वरिस हहथस ववसय हु॥411॥ अर्थ - क ल की अपक्ष एक समय कम एक पल्य अ र भ व की अपक्ष असं ख्य ि ल कप्रम ण द्रव्य की पय थय उत्कृ ष्ट िश वधि क ववषय ह ॥411॥
  • 96. उत्कृ ष्ट िश वधिज्ञ न द्रव्य क मथण वगथण ध्रुवह र क्षत्र ल क क श क ल पल्य ‒ 1 समय भ व असं ख्य ि ल कप्रम ण
  • 97. क ल िउणण उड्ढी, क ल भजजिव्व खिउड्ढी य उड्ढीए िव्वपझजय, भजजिव् खि-क ल हु॥412॥ अर्थ - क ल की वृणि ह न पर ि र ं प्रक र की वृणि ह िी ह क्षत्र की वृणि ह न पर क ल की वृणि ह िी ह अ र नहीं भी ह िी ह इस ही िरह द्रव्य अ र भ व की अपक्ष वृणि ह न पर क्षत्र अ र क ल की वृणि ह िी भी ह अ र नहीं भी ह िी ह परन्द्िु क्षत्र अ र क ल की वृणि ह न पर द्रव्य अ र भ व की वृणि अवश्य ह िी ह ॥412॥
  • 98. द्रव्य की वृणि ह न पर क्षत्रवृणि भजनीय क लवृणि भजनीय भ ववृणि तनयम स
  • 99. क्षत्र की वृणि ह न पर द्रव्यवृणि तनयम स क लवृणि भजनीय भ ववृणि तनयम स
  • 100. क ल की वृणि ह न पर द्रव्यवृणि तनयम स क्षत्रवृणि तनयम स भ ववृणि तनयम स
  • 101. भ व की वृणि ह न पर द्रव्यवृणि तनयम स क्षत्रवृणि भजनीय क लवृणि भजनीय
  • 102. वकसकी वृणि ह न पर  वकसकी वृणि ह िी ह द्रव्य क्षत्र क ल भ व द्रव्य ---- भजनीय भजनीय तनयम स क्षत्र तनयम स -- भजनीय तनयम स क ल तनयम स तनयम स -- तनयम स भ व तनयम स भजनीय भजनीय -- भजनीय अर् थि् ह भी अर्व न भी ह
  • 103. सू/अस. = २, द्रव्य ववकल्प = २५, क्षत्र ववकल्प = १३, क ल ववकल्प = ५, घ/अस. = ३ 13 7 3 13 12 12 11 6 11 10 10 9 5 9 8 8 7 4 2 7 6 6 5 3 5 4 4 3 2 3 2 2 1 1 1 1 द्रव्य क्षेत्र काल भाव 25 13 5 25 24 24 23 12 23 22 22 21 11 21 20 20 19 10 4 19 18 18 17 9 17 16 16 15 8 15 14 14 द्रव्य क्षेत्र काल भाव
  • 104. िस वहहवरिव्ं , िुवह रणवहहि हव णणयम परम वहहथस अवरं , िव्वपम णं िु जजणदिठिं ॥413॥ अर्थ - िश वधि क ज उत्कृ ष्ट द्रव्यप्रम ण ह उसमं एकब र ध्रुवह र क भ ग िन स ज लब्ि अ व उिन ही तनयम स परम वधि क जघन्द्य द्रव्य क प्रम ण तनकलि ह, एस जजनन्द्द्र िव न कह ह ॥413॥
  • 105. परम वधि क जघन्द्य द्रव्य देशािधध का उत्‍कृ ष्‍ट द्रव्‍य ध्रुििाि = कामगण िगगणा ध्रुििाि ×ध्रुििाि
  • 106. परम वहहथस भि , सगउग्ग हणववयप्पहििऊ िरम ह रपम णं , जठिथस य ह दि िव्ं िु॥414॥ अर्थ - अपनी (िजथक ययक जीवर शश की) अवग हन क भि ं क जजिन प्रम ण ह उसक िजथक ययक जीवर शश क स र् गुण करन पर ज र शश उत्पन्न ह उिन ही परम वधिज्ञ न क भि ह ि हं इनमं स सव थत्कृ ष्ट अं तिम भि मं द्रव्य ध्रुवह रप्रम ण ह ि ह ॥414
  • 107. परम वधि क कु ल भि अयिक ययक की अवग हन क प्रक र × अयिक ययक जीवर शश = घन ं गुल असं ख्य ि × असं ख्य ि ल क अर् थि् असं ख्य ि ल क
  • 108. परम वधि क द्रव्य भि प्रर्म कामगण िगगणा (ध्रुििाि)2 हद्विीय कामगण िगगणा (ध्रुििाि)3 िृिीय कामगण िगगणा (ध्रुििाि)4 .............. . िरम भि ध्रुवह र
  • 109. सव् वहहथस एक्क , परम णू ह दि णणहव्यप्प स गं ग मह णइथस, पव ह व्व िुव हव ह र ॥415॥ अर्थ - परम वधि क उत्कृ ष्ट द्रव्यप्रम ण मं ध्रुवह र क एकब र भ ग िन स लब्ि एक परम णुम त्र द्रव्य अ ि ह, वही सव थवधिज्ञ न क ववषय ह ि ह यह ज्ञ न िर् इसक ववषयभूि परम णु तनववथकल्पक ह यह ाँ पर ज भ गह र ह वह गं ग मह निी क प्रव ह की िरह ध्रुव ह ॥415॥
  • 110. सव थवधि क द्रव्य पिमािधध का उत्‍कृ ष्‍ट द्रव्‍य ध्रुििाि = ध्रुििाि ध्रुििाि = 1 परम णु यह एक परम णु सव थवधि क ववषयभूि द्रव्य ह
  • 111. परम हहिव्वभि , जत्तियमि हु ित्तिय ह ं ति िथसव खिक ल-ववयप्प ववसय असं खगुणणिकम ॥416॥ अर्थ - परम वधि क जजिन द्रव्य की अपक्ष स भि हं उिन ही भि क्षत्र अ र क ल की अपक्ष स हं परन्द्िु उनक ववषय असं ख्य िगुणणिक्रम ह ॥416॥
  • 112. परम वधि ज्ञ न क जजिन द्रव्य की अपक्ष भि हं , उिन ही क्षत्र, क ल, भ व अपक्ष भि हं अर् थि् प्रत्यक भि मं द्रव्य, क्षत्र, क ल, भ व ि र ं की युगपि् वृणि ह िी ह प्रत्यक भि स अ ग क भि क ववषय असं ख्य ि गुण ह
  • 113. अ वललअसं खभ ग , इण्च्छिगच्छिणम णमि अ िस वहहथस खि, क ल वव य ह ं ति सं वग्ग॥417॥ अर्थ - वकसी भी परम वधि क वववसक्षि क्षत्र क ववकल्प मं अर्व वववसक्षि क ल क ववकल्प मं सं कण्ल्पि िन क जजिन प्रम ण ह उिनी जगह अ वली क असं ख्य िवं भ ग ं क रखकर परथपर गुण करन स ज र शश उत्पन्न ह वही िश वधि क उत्कृ ष्ट क्षत्र अ र उत्कृ ष्ट क ल मं गुण क र क प्रम ण ह ि ह ॥417॥
  • 114. गुणक र क प्रम ण यदि N = वववसक्षि भि ह, ि गुणक र = ( आ 𝝏 ) 𝑵 का संकलन धन N क सं कलन िन = 𝐍×(𝐍+𝟏) 𝟐 सं कलन िन ब र आ 𝝏 क परथपर गुण करन पर ज असं ख्य ि प्र प्ि ह , वह परम वधि क उस भि क क्षत्र अ र क ल क गुणक र ह
  • 115. इस गुणक र क िश वधि क उत्कृ ष्ट क्षत्र स गुण करन पर परम वधि क वववसक्षि भि क क्षत्र अ ि ह Nth परम वधि क क्षत्र = ल क × प्र प्त गुणक र इस गुणक र क िश वधि क उत्कृ ष्ट क ल स गुण करन पर परम वधि क वववसक्षि भि क क ल अ ि ह Nth परम वधि क क ल = (पल्य - 1) × प्र प्त गुणक र
  • 116. परम वधि क गुणक र क प्रम ण पहल = सं कलन िन = 1; ि गुणक र = अ /अस. िूसर = सं . ि. = 3; ि गुणक र = अ /अस.×अ /अस. × अ /अस. िीसर = सं . ि. = 6; ि गुणक र = (अ /अस.)6 ि र् = सं . ि. = 10; ि गुणक र = (अ /अस.)10
  • 117. सं कलन िन (अर् थि् 1 स लकर उस सं ख्य िक क ज ि) जस 2 क सं कलन िन = 2×(2+1) 2 = 2×3 2 = 3 3 क सं कलन िन = 3×(3+1) 2 = 3×4 2 = 6
  • 118. गच्छसम िक्क ललयिीि रूऊणगच्छिणमि उभय वव य गच्छथस य, िणमि ह ं ति गुणग र ॥418॥ अर्थ - गच्छ क सम न िन अ र गच्छ स ित्क ल अिीि ज वववसक्षि भि स पहल भि, स वववसक्षि गच्छ स एक कम गच्छ क ज सं कललि िन, इन ि न ं क लमल न स गच्छ क सं कललि िन प्रम ण गुणक र ह ि ह ॥418॥
  • 119. गच्छ क सं कलन िन गच्छ अर् थि् जजिनव ं थर् न वववसक्षि ह सूत्र = गच्छ + (गच्छ‒1) क सं कलन िन य Recursive function क िरीक स तनक ल ह जस 5 क सं कलन िन = 5+(5‒1 क सं कलन) = 5+4 क सं कलन = 5+10 = 15
  • 120. परम वहहवरखिणवहहिउक्कथसअ हहखिं िु सव् वहहगुणग र , क ल वव असं खल ग िु॥419॥ अर्थ - उत्कृ ष्ट अवधिज्ञ न क क्षत्र मं परम वधि क उत्कृ ष्ट क्षत्र क भ ग िन स ज लब्ि अ व उिन सव थवधिसं बं िी क्षत्र क ललय गुणक र ह िर् सव थवधिसं बं िी क ल क प्रम ण ल न क ललय असं ख्य ि ल क क गुणक र ह ॥419॥
  • 121. क्षत्र हिु गुणक र • सिागिधध का क्षेत्र पिमािधध का उत्‍कृ ष्‍ट क्षेत्र • (≡𝝏) 𝟓 (≡𝝏) 𝟑 • (≡ 𝝏) 𝟐 क ल हिु गुणक र • ≡ 𝜕 सव थवधिज्ञ न क गुणक र ≡ 𝝏 अर् थि् असं ख्य ि ल क
  • 122. सव थवधिज्ञ न द्रव्य क्षत्र क ल भ व पिमािधध का उत्‍कृ ष्‍ट द्रव्‍य ध्रुििाि परम वधि क उत्कृ ष्ट क्षत्र × (असं . ल क) 𝟐 परम वधि क उत्कृ ष्ट क ल × असं . ल क परम वधि क उत्कृ ष्ट भ व × आ असं. = ध्रुििाि ध्रुििाि ल क × (≡ 𝝏) 𝟑× (≡ 𝝏) 𝟐 = (पल्य − 1 समय) × (≡ 𝝏) 𝟑× ≡ 𝝏 = 1 परम णु = ल क × (≡ 𝝏) 𝟓 = (पल्य − 1 समय) × (≡ 𝝏) 𝟒 = (≡ 𝝏) 𝟐 × आ असं.
  • 123. इण्च्छिर ससच्छिं , दिणणच्छिहहं भ जजि ित्र् लिलमिदिणणर सीणब्भ स इण्च्छि र सी॥420॥ अर्थ - वववसक्षि र शश क अिथच्छि ं मं ियर शश क अिथच्छि ं क भ ग िन स ज लब्ि अ व उिनी जगह ियर शश क रखकर परथपर गुण करन स वववसक्षि र शश क प्रम ण तनकलि ह ॥420॥
  • 124. (16) 𝑥 = 256 य न 16 क वकिनी ब र रखकर गुण करं , जजसस 256 अ य सूत्र = इण्च्छि र शश क छि िय र शश क छि = ववरलन र शश (यह सूत्र log स ससि भी ह ि ह )  256 क छि 16 क छि = 8 4 = 2 अर् थि् (16)2 = 16×16 = 256
  • 125. ❖इसी प्रक र ( अ 𝝏 ) 𝒙 = ल क तनक लन ह ❖ ल क क छि अ 𝝏 क छि = वव छ छ 𝟗 𝝏 ❖य न अ 𝝏 (पल्य क छि) 𝟑 करन पर ल क स भी बिी र शी अ िी ह ❖इस सूत्र क द्व र वकसी भी र शश की ववरलन र शश तनक ली ज सकिी ह
  • 126. दिणणच्छिणवहहिल गच्छिण पििण भजजि लिलमिल गगुणणं , परम वहहिररमगुणग र ॥421॥ अर्थ - ियर शश क अिथच्छि ं क ल क क अिथच्छि ं मं भ ग िन स ज लब्ि अ व उसक वववसक्षि सं कण्ल्पि िन मं भ ग िन स ज लब्ि अ व उिनी जगह ल कप्रम ण क रखकर परथपर गुण करन स ज र शश उत्पन्न ह वह वववसक्षि पि मं क्षत्र य क ल क गुणक र ह ि ह एस ही परम वधि क अं तिम भि मं भी गुणक र ज नन ॥421॥
  • 127. ( 64 4 )2 = 256 ि ( 64 4 )6 = (256) 𝑥 ? सूत्र = ववरलन र शश इण्च्छिर शशकछि ियर शशकछि अर्व ववरलन र शश × िय र शश क छि इण्च्छि र शश क छि यह सूत्र भी log स ससि ह ि ह परम वधिज्ञ न क वकसी वववसक्षि भि पर ल क क वकिन ब र परथपर गुण ह ग - यह तनक लन हिु इस सूत्र क प्रय ग वकय ज ि ह
  • 128. यर् - आ 𝛛 के छेद = मध्यम परीि सं ख्य ि ल क क छि = वव छ छ 9 ल क क छि पल्य स भी कम हं अि: जह ाँ सं कलन िन (पल्य क छि)(𝟑 × असं ख्य ि) हुअ वह ाँ स ल करूप गुणक र असं ख्य ि-असं ख्य ि रूप बढि ज एग
  • 129. अ वललअसं खभ ग , जहणणिव्वथस ह ं ति पज्ज य क लथस जहणण ि , असं खगुणहीणमि हु॥422॥ अर्थ - जघन्द्य िश वधि क ववषयभूि द्रव्य की पय थय अ वली क असं ख्य िवं भ ग प्रम ण ह िर् वप जघन्द्य िश वधि क ववषयभूि क ल क जजिन प्रम ण ह उसस असं ख्य िगुण हीन जघन्द्य िश वधि क ववषयभूि भ व क प्रम ण ह॥422॥
  • 130. जघन्द्य अवधिज्ञ न = जघन्द्य िश वधि ज्ञ न यह जघन्द्य अवधिज्ञ न ➢जघन्द्य द्रव्य क ➢ आ 𝝏 प्रम ण अिीि अ र अन गि क ल क ➢ आ 𝝏𝝏 प्रम ण जघन्द्य भ व ं क ➢प्रत्यक्ष ज नि ह
  • 131. सव् हह त्ति य कमस , अ वललअसं खभ गगुणणिकम िव् णं भ व णं , पिसं ख सररसग ह ं ति॥423॥ अर्थ - जघन्द्य िश वधि स सव थवधि पयथन्द्ि द्रव्य की पय थयरूप भ व क भि पूवथ-पूवथ भि की अपक्ष अ वली क असं ख्य िवं भ ग स गुणणिक्रम हं अिएव द्रव्य िर् भ व क पि ं की सं ख्य सदृश ह ॥423॥
  • 132. सवथत्र भ व प्रम ण क गुणक र = अ 𝜕 = हद्विीय अवधिज्ञ न क भ वजघन्द्य िश वधि × आ 𝝏 = िृिीय अवधिज्ञ न क भ वहद्विीय िश वधि × आ 𝝏 = सव थवधि क भ व प्रम णउत्कृ ष्ट परम वधि × आ 𝝏
  • 133. ववशष िूं वक जघन्द्य अवधिज्ञ न स उत्कृ ष्ट अवधिज्ञ न िक प्रत्यक भि मं द्रव्य अ र भ व की वृणि ह िी ह, अि: जजिन द्रव्य की अपक्ष अवधिज्ञ न क भि हं उिन ही भ व की अपक्ष अवधिज्ञ न क भि हं
  • 134. सिमण्खदिण्म्म क सं , क सथसिं पवड्ढि ि व ज व य पढम णणरय, ज यणमक्कं हव पुणणं ॥424॥ अर्थ - स िवीं भूलम मं अवधिज्ञ न क ववषयभूि क्षत्र क प्रम ण एक क स ह इसक ऊपर अ ि- अ ि क स की वृणि ह ि-ह ि प्रर्म नरक मं अवधिज्ञ न क ववषयभूि क्षत्र क प्रम ण पूणथ एक य जन ह ज ि ह ॥424॥
  • 135. नरक गति मं अवधिज्ञ न नरक उत्कृ ष्ट क्षत्र उत्कृ ष्ट क ल प्रर्म नरक 1 य जन लभन्द्न मुहूिथ हद्विीय नरक 3.5 क स यर् य ग्य अन्द्िमुथहूिथ िृिीय नरक 3 क स ििुर्थ नरक 2.5 क स पं िम नरक 2 क स षष्ठम नरक 1.5 क स सप्िम नरक 1 क स अन्द्िमुथहूिथ
  • 136. तिररय अवरं अ घ , िज यं ि य ह दि उक्कथसं मणुए अ घं िव, जह कमं सुणह व च्छ लम॥425॥ अर्थ - तियथञ ं क अवधिज्ञ न जघन्द्य िश वधि स लकर उत्कृ ष्टि की अपक्ष उस भिपयथन्द्ि ह ि ह वक ज िश वधि क भि िजस शरीर क ववषय करि ह मनुष्यगति मं अवधिज्ञ न जघन्द्य िश वधि स लकर उत्कृ ष्टिय सव थवधि पयथन्द्ि ह ि ह िवगति मं अवधिज्ञ न क यर् क्रम स कहूाँग स सुन ॥425॥
  • 137. तियंि व मनुष्य गति मं अवधिज्ञ न जघन्द्य उत्कृ ष्ट तियंि जघन्द्य िश वधि िजस शरीर (िश वधि क िरहवं क णिक पयंि) मनुष्य जघन्द्य िश वधि सव थवधि
  • 138. पणुवीसज यण इं , दिवसं िं ि य कु म रभ म्म णं सं खझजगुणं खिं , बहुगं क लं िु ज इससग॥426॥ अर्थ - भवनव सी अ र व्यं िर ं क अवधि क क्षत्र क जघन्द्य प्रम ण पच्चीस य जन अ र जघन्द्य क ल कु छ कम एक दिन ह अ र झय तिषी िव ं क अवधि क क्षत्र इसस सं ख्य िगुण ह अ र क ल इसस बहुि अधिक ह ॥426॥
  • 139. भवनतत्रक मं जघन्द्य अवधिज्ञ न भवनव सी-व्यं िर झय तिषी क्षत्र 25 य जन 25 य जन × सं ख्य ि क ल कु छ कम 1 दिन 1 दिन स बहुि अधिक
  • 140. असुर णमसं खज्ज , क िीअ ससज इसं ि णं सं ख िीिसहथस , उक्कथस हीण ववसअ िु॥427॥ अर्थ - असुरकु म र ं क अवधि क उत्कृ ष्ट ववषयक्षत्र असं ख्य ि क हट य जन ह असुर ं क छ िकर ब की क झय तिषी िव ं िक क सभी भवनतत्रक अर् थि् न प्रक र क भवनव सी िर् सं पूणथ व्यन्द्िर अ र झय तिषी इनक अवधि क उत्कृ ष्ट ववषयक्षत्र असं ख्य ि हज र य जन ह ॥427॥
  • 141. असुर णमसं खज्ज , वथस पुण ससज इसं ि णं िथसं खझजदिभ गं , क लण य ह दि णणयमण॥428॥ अर्थ - असुरकु म र ं क अवधि क उत्कृ ष्ट क ल क प्रम ण असं ख्य ि वषथ ह अ र शष न प्रक र क भवनव सी िर् व्यन्द्िर अ र झय तिषी इनक अवधि क उत्कृ ष्ट क ल क प्रम ण असुर ं क अवधि क उत्कृ ष्ट क ल क प्रम ण स तनयम स सं ख्य िवं भ गम त्र ह ॥428॥
  • 142. भवनव सी क असुरकु म र ं मं उत्कृ ष्ट अवधिज्ञ न क्षत्र असं ख्य ि कर ि य जन क ल असं ख्य ि वषथ
  • 143. शष भवनव सी, व्यं िर, झय तिषी मं उत्कृ ष्ट अवधिज्ञ न क्षत्र असं ख्य ि हज र य जन क ल असुरकु म र ं क उत्कृ ष्ट क ल सं ख्य ि = असं ख्य ि वषथ
  • 144. जघन्द्य उत्कृ ष्ट िव भवनव सी, व्यं िर झय तिषी भवनव सी - असुरकु म र शष 9 भवनव सी, व्यं िर, झय तिषी क्षत्र 25 य जन 25 य जन × सं ख्य ि असं . कर ि य जन असं . हज र य जन क ल कु छ कम 1 दिन 1 दिन स बहुि अधिक असं . वषथ असं . वषथ / सं ख्य ि भवनतत्रक की अवधिज्ञ न मय थि यं
  • 145. भवणतिय णमि ि , र् वं तिररयण ह दि बहुगं िु उड्ढण भवणव सी, सुरयगररससहर त्ति पथसं ति॥429॥ अर्थ – भवनव सी, व्यन्द्िर, झय तिषी इनक अवधि क क्षत्र नीि-नीि कम ह ि ह अ र तियथग् रूप स अधिक ह ि ह िर् भवनव सी िव अपन अवस्थर्ि थर् न स सुरयगरर क (मरु क) शशखरपयथन्द्ि अवधि क द्व र िखि हं ॥429॥
  • 146. भवनतत्रक क अवधिज्ञ न क्षत्र नीि-नीि र् ि ह तियथक् रूप बहुि ह भवनव सी मरुपवथि क शशखर िक िखि हं
  • 147. सक्कीस ण पढमं , वबदियं िु सणक्कु म र म हहं ि िदियं िु बम्ह-ल ं िव, सुक्क-सहथस रय िुररयं ॥430॥ अर्थ - स िमथ अ र एश न थवगथ क िव अवधि क द्व र प्रर्म भूलमपयथन्द्ि िखि हं स नत्कु म र अ र म हन्द्द्र थवगथ क िव िूसरी पृथ्वी िक िखि हं ब्रह्म, ब्रह्म िर, ल ं िव अ र क वपष्ठ थवगथव ल िव िीसरी भूलम िक िखि हं शुक्र, मह शुक्र, शि र अ र सहस्र र थवगथ क िव ि र्ी भूलम िक िखि हं ॥430॥
  • 148.
  • 149. वम तनक िव मं अवधिज्ञ न थवगथ क्षत्र क ल स िमथ-एश न कु छ अधिक 1.5 र जू (नीि 1 नरक) असं . कर ि वषथ स नत्कु म र- म हन्द्द्र 4 र जू (3+1) (नीि 2 नरक) यर् य ग्य पल्य असं .ब्रह्म-ब्रह्म िर 5.5 र जू (3.5+2) (नीि 3 नरक) ल न्द्िव-क वपष्ठ 6 र जू (4+2) यर् य ग्य कु छ कम पल्य शुक्र-मह शुक्र 7.5 र जू (4.5+3) (नीि 4 नरक) शि र-सहस्र र 8 र जू (5+3)
  • 150. अ णि-प णिव सी, अ रण िह अच्चुि य पथसं ति पं िमण्खदिपरं िं , छट्ठिं गवझजग िव ॥431॥ अर्थ - अ नि, प्र णि, अ रण अ र अच्युि थवगथ क िव प ाँिवीं भूलम िक अवधि क द्व र िखि हं अ र ग्रवयकव सी िव छठिी भूलम िक िखि हं ॥431॥
  • 151. न म क्षत्र क ल अ नि-प्र णि 9.5 र जू (5.5+4) (नीि 5 नरक) यर् य ग्य कु छ कम पल्य अ रण-अच्युि 10 र जू (6+4) 9 ग्रवयक कु छ अधिक 11 र जू (6+5) (नीि 6 नरक) वम तनक िव मं अवधिज्ञ न
  • 152. सव्ं ि ल यण ललं , पथसं ति अणुिरसु ज िव सक्‍खि य सकम्म, रूवगिमणं िभ गं ि॥432॥ अर्थ - नव अनुदिश िर् पं ि अनुिरव सी िव सं पूणथ ल कन ली क अवधि द्व र िखि हं अपन क्षत्र मं अर् थि् अपन-अपन ववषयभूि क्षत्र क प्रिशसमूह मं स एक प्रिश घट न ि हहय अ र अपन-अपन अवधिज्ञ न वरण कमथद्रव्य मं एक ब र ध्रुवह र क भ ग िन ि हहय एस िब िक करन ि हहय, जबिक प्रिशसमूह की सम प्ती ह इसस िव ं मं अवधिज्ञ न क ववषयभूि द्रव्य मं भि सूलिि वकय ह ॥432॥
  • 153. न म क्षत्र क ल 9 अनुदिश कु छ अधिक 13 र जू कु छ कम पल्य5 अनुिर कु छ कम 14 र जू वम तनक िव मं अवधिज्ञ न स र िव ं मं यह अवधिज्ञ न की मय थि इिन क्षत्ररूप ही ह यह ाँ-वह ाँ ववह र करन पर क्षत्र मय थि बढिी नहीं ह
  • 154. कप्पसुर णं सगसग अ हीखिं ववववथसस वियं अ हीिव्वपम णं , सं ठ ववय िुवहरण हर॥433॥ सगसगखिपिससल यपम णं समप्पि ज व ित्र्िणिररमखं िं , ित्र्िण हहथस िव्ं िु॥434॥ अर्थ -कल्पव सी िव ं क अपन-अपन अवधिज्ञ न क क्षत्र क अ र अपन-अपन ववस्रस पिय रहहि अवधिज्ञ न वरण द्रव्य क थर् वपि करक क्षत्र मं स एक प्रिश कम करन अ र द्रव्य मं एक ब र ध्रुवह र क भ ग िन एस िब िक करन ि हहय, जब िक अपन-अपन अवधिज्ञ न क क्षत्र सं बं िी प्रिश ं क पररम ण सम प्ि ह एस करन स ज अवधिज्ञ न वरण कमथ द्रव्य क अण्न्द्िम खणि शष रहि ह, उिन ही उस अवधिज्ञ न क ववषयभूि द्रव्य क पररम ण ह ि ह ॥433-434॥
  • 155. िव ं मं अवधिज्ञ न की द्रव्य मय थि •अपन-अपन अवधिज्ञ न क क्षत्रप्रम ण प्रिशशल क र शी • अपन -अपन ववस्रस पिय रहहि अवधिज्ञ न वरण द्रव्यिय र शी •ध्रुवह रभ गह र र शी िय र शी मं ध्रुवह र क िब िक भ ग लग न , जब िक शल क र शश सम प्ि न ह ज ए ज अं ि मं द्रव्य प्र प्ि ह ि ह, वह उस थर् न मं द्रव्य की मय थि ह
  • 156. इस प्रक र क्रम स ध्रुवह र क िब िक भ ग लग न , जब िक शल क र शश सम प्ि न ह ज ए अर् थि् 𝟑 𝟐 िाजू 𝟑 प्रम ण प्रिश ं ब र ध्रुवह र क भ ग लग न पर स िमथ-एश न क द्रव्य क प्रम ण प्र प्त ह ि ह 𝟑 𝟐 िाजू 𝟑 विस्रसोपचय िहित अिधधज्ञानाििण द्रव्‍य ध्रुििाि = A 𝟑 𝟐 िाजू 𝟑 − 1 𝐀 ध्रुििाि = B 𝟑 𝟐 िाजू 𝟑 − 2 𝐁 ध्रुििाि = C स िमथ-एश न क द्रव्य क प्रम ण
  • 157. स िमथ-एश न क द्रव्य क प्रम ण सूत्र रूप मं  अपन अवधिज्ञ न वरण क द्रव्य (ध्रुवह र) 3 2 र जू 3 = स िमथ-एश न क ववषयभूि द्रव्य इसी प्रक र स प्रत्यक कल्प मं अपन-अपन अवधिज्ञ न वरण द्रव्य क अपन क्षत्र प्रम ण ब र ध्रुवह र रखकर भ ग िन पर प्रत्यक कल्प क अवधिज्ञ न क ववषयभूि द्रव्य प्र प्ि ह ि ह  अपन −अपन ववस्रस पिय रहहि अवधिज्ञ न वरण क द्रव्य (ध्रुवह र)अपन−अपनअवधिज्ञ नकववषयभूिअ क शप्रिश
  • 158. स हम्मीस ण णमसं खज्ज अ हु वथसक िीअ उवररमकप्पिउक्क पल्ल सं खझजभ ग िु॥435॥ िि ल ं िवकप्पप्पहुिी सव्वत्र्ससणिपरं िं वकं िूणपल्लमिं , क लपम णं जह ज ग्गं ॥436॥ अर्थ - स िमथ अ र एश न थवगथ क िव ं क अवधि क क ल असं ख्य ि क हट वषथ ह इसक ऊपर स नत्कु म र-म हन्द्द्र, ब्रह्म-ब्रह्म िर कल्पव ल िव ं क अवधि क क ल यर् य ग्य पल्य क असं ख्य िव ाँ भ ग ह इसक ऊपर ल न्द्िव थवगथ स लकर सव थर्थससणि पयथन्द्िव ल िव ं क अवधि क क ल यर् य ग्य कु छ कम पल्यप्रम ण ह ॥435-436॥
  • 159. कल्पव सी िव ं क अवधिज्ञ न की क ल मय थि स िमथ-एश न असं ख्य ि कर ि वषथ स नत्कु म र स ब्रह्म िर यर् य ग्य पल्‍य असंख्‍यात ल न्द्िव स सव थर्थससणि पयंि यर् य ग्य कु छ कम पल्य
  • 160. ज इससयं ि ण ही, खि उि ण ह ं ति घणपिर कप्पसुर णं ि पुण , ववसररत्र्ं अ यिं ह दि ॥ 437 ॥ अर्थ: भवनव सी, व्यन्द्िर, झय तिषी इनक अवधि क क्षत्र क प्रम ण ज पहल बि य गय ह वह ववसदृश ह, बर बर ि क र घनरूप नहीं ह कल्पव सी िव ं क अवधि क क्षत्र अ यिििुरस्र अर् थि् लम्ब ई मं ऊध्वथ-अि: अधिक अ र ि ि ई मं अर् थि् तियथक् र् ि ह शष मनुष्य, तियंि, न रकी इनक अवधि क ववषयभूि क्षत्र बर बर ि क र घनरूप ह ॥ 437॥
  • 161. अ यिििुरस्र क्षत्र अर् थि् लम्ब ई मं ऊध्वथ-अि: अधिक अ र ि ि ई मं अर् थि् तियथक् र् ि घनरूप क्षत्र अर् थि् लम्ब ई, ि ि ई, ऊं ि ई सम न
  • 162. ि र ं गतिय ं मं अवधिज्ञ न की दिश भवनतत्रक वम तनक शष 3 गति ि क र घनरूप नहीं ह ववसदृश अ यि ििुरस्र ि क र घनरूप ऊपर-नीि अल्प, तियथक् अधिक लं ब अधिक, ि ि अल्प िीन ं अ य म मं सम न