6. वकन्द्हं ह ि ह
कह ाँ स उत्पन्द्न ह ि ह
प्रक र
भव-प्रत्यय
सवथ िव ं , न रवकय ं एवं
िीर्ंकर ं क
सव ंग स
िश वधि
गुण-प्रत्यय
वकन्द्हीं पय थप्त मनुष्य ं एवं
पय थप्ि सं ज्ञी तियंि ं क
न लभ क ऊपर शं ख, कमल,
वज्र दि शुभ लिह ं स एवं
सव ंग स
िीन ं (िश वधि, परम वधि
व सव थवधि)
7. गुणपच्चइग छि , अणुग वट्ठििपवड्ढम णणिर
िस ही परम ही, सव् हह त्ति य तिि अ ही॥372॥
अर्थ - गुणप्रत्यय अवधिज्ञ न क छह भि हं -
अनुग मी, अननुग मी, अवस्थर्ि, अनवस्थर्ि,
विथम न, हीयम न िर्
स म न्द्य स अवधिज्ञ न क िश वधि, परम वधि,
सव थवधि इस िरह स िीन भि भी ह ि हं ॥372॥
8. गुणप्रत्यय
अवधिज्ञ न क
6 भि
अनुग मी
अन्द्य क्षत्र / भव मं स र्
ज ए
अननुग मी
अन्द्य क्षत्र / भव मं स र्
न ज ए
विथम न बढि हुअ
हीयम न घटि हुअ
अवस्थर्ि न घट, न बढ
अनवस्थर्ि घटि -बढि रह
9. अनुग मी अवधिज्ञ न
क्षत्र नुग मी
अन्द्य क्षत्र मं गमन करन
पर भी नष्ट न ह
भव नुग मी
भव क बिलन पर भी
नष्ट न ह
उभय नुग मी
क्षत्र अ र भव क बिलन
पर भी नष्ट न ह
एस ही अननुग मी पर लग न
10. क्षत्र बिलन पर
नष्ट
भव बिलन पर
नष्ट
ि न ं बिलन
पर नष्ट
क्षत्र नुग मी
भव नुग मी (सम न भव मं )
उभय नुग मी
क्षत्र ननुग मी
भव ननुग मी
उभय ननुग मी
11. भवपच्चइग अ ही, िस ही ह दि परमसव् ही
गुणपच्चइग णणयम , िस ही वव य गुण ह दि॥373॥
अर्थ - भवप्रत्यय अवधि तनयम स िश वधि ही ह ि
ह अ र परम वधि िर् सव थवधि तनयम स गुणप्रत्यय
ही हुअ करि हं
िश वधिज्ञ न भवप्रत्यय अ र गुणप्रत्यय ि न ं िरह
क ह ि ह ॥373॥
13. िस हहथस य अवरं , णरतिररय ह दि सं जिण्म्ह वरं
परम ही सव् ही, िरमसरीथस ववरिथस॥374॥
अर्थ - जघन्द्य िश वधिज्ञ न सं यि य असं यि
मनुष्य अ र तियंि ं क ह ि ह
उत्कृ ष्ट िश वधिज्ञ न सं यि जीव ं क ही ह ि ह
वकन्द्िु परम वधि अ र सव थवधि िरमशरीरी मह व्रिी
क ही ह ि ह ॥374॥
15. पदिव िी िस ही, अप्पदिव िी हवं ति सस अ
लमच्छिं अववरमणं , ण य पदिवज्जं ति िरमिुग॥375॥
अर्थ - िश वधिज्ञ न प्रतिप िी ह ि ह अ र
परम वधि िर् सव थवधि अप्रतिप िी ह ि हं
परम वधि अ र सव थवधिव ल जीव तनयम स
लमथ्य त्व अ र अव्रि अवथर् क प्र प्ि नहीं
ह ि॥375॥
16. प्रतिप ि = सम्यक्त्व अ र ि ररत्र स च्युि ह न
िश वधि
•प्रतिप िी
परम वधि / सव थवधि
•अप्रतिप िी
17. िव्ं खिं क लं , भ वं पदि रूवव ज णि अ ही
अवर िुक्कथस त्ति य, ववयप्परहहि िु सव् ही॥376॥
अर्थ - जघन्द्य भि स लकर उत्कृ ष्ट भिपयथन्द्ि
अवधिज्ञ न क ज असं ख्य ि ल क प्रम ण भि हं व सब
ही द्रव्य, क्षत्र, क ल, भ व की अपक्ष स प्रत्यक्षिय रूपी
(पुि्गल) द्रव्य क ही ग्रहण करि हं िर् उसक सं बं ि
स सं स री जीव द्रव्य क भी ज नि हं वकन्द्िु
सव थवधिज्ञ न मं जघन्द्य- उत्कृ ष्ट अ दि भि नहीं हं - वह
तनववथकल्प - एक प्रक र क ह ॥376॥
18. अवधिज्ञ न क ववषय
द्रव्य, क्षत्र, क ल, भ व की मय थि सहहि
1) रूपी द्रव्य (पुि्गल)
2) पुि्गल सं बं ि सहहि सं स री जीव
20. ण कम्मुर लसं िं , मण्झिमज गत्तज्जयं सववथसियं
ल यववभिं ज णदि, अवर ही िव्वि णणयम ॥377॥
अर्थ - मध्यम य ग क द्व र सं लिि ववस्रस पिय
सहहि न कमथ अ ि ररक वगथण क सं िय मं ल क क
भ ग िन स जजिन द्रव्य लब्ि अ व उिन क तनयम
स जघन्द्य अवधिज्ञ न द्रव्य की अपक्ष स ज नि ह
इसस छ ट (सूक्ष्म) थकं ि क वह नहीं ज नि
इसस थर्ूल थकं ि क ज नन मं कु छ ब ि नहीं
ह॥377॥
21. अवधिज्ञ न क जघन्द्य द्रव्य प्रम ण
अर् थि् इस प्रक र क इिन परम णुअ ं क थकन्द्ि क जघन्द्य
अवधिज्ञ न ज नि ह
इसस थर्ूल क ि ज न सकि ह, पर इसस सूक्ष्म क नहीं
ज नि
विस्रसोपचय सहित औदारिक शिीि का संचय
लोक
= जघन्द्य द्रव्य
22. 𝟑
𝟐
× गुणह तन × समयप्रबि = अ ि ररक शरीर क सं िय
इसक ववस्रस पिय इसस अनं ि गुण ह
ि न ं क ज िकर ल क क भ ग िन पर जजिन प्रम ण अ ि ह
उिन अनन्द्ि परम णुअ ं क थकन्द्ि क जघन्द्य अवधिज्ञ न ज नि ह
एस थकन्द्ि िक्षु अ दि इण्न्द्द्रय ं द्व र नहीं ज न ज सकि
23. सुहमणणग िअपझजियथस ज िथस िदियसमयण्म्ह
अवर ग हणम णं , जहणणयं अ हहखिं िु॥378॥
अर्थ - सूक्ष्म तनग दिय लब्ध्यपय थप्िक की
उत्पन्न ह न स िीसर समय मं ज जघन्द्य
अवग हन ह िी ह उसक जजिन प्रम ण ह
उिन ही अवधिज्ञ न क जघन्द्य क्षत्र क प्रम ण
ह ॥378॥
24. अवधिज्ञ न क जघन्द्य क्षत्र प्रम ण
सूक्ष्म तनग दिय लस्ब्ि-अपय थप्िक क
जन्द्म लन क िृिीय समय मं
जघन्द्य अवग हन ह िी ह
इस जघन्द्य अवग हन प्रम ण क्षत्र क
जघन्द्य अवधिज्ञ न ज नि ह
अर् थि् इिन क्षत्र क भीिर स्थर्ि द्रव्य क ज नि ह
25. अवर हहखििीहं , ववत्र् रुथसहयं ण ज ण म
अणणं पुण समकरण, अवर ग हणपम णं िु॥379॥
अर्थ - जघन्द्य अवधिज्ञ न क क्षत्र की ऊाँ ि ई,
लम्ब ई, ि ि ई क लभन्न-लभन्न प्रम ण हम नहीं
ज नि िर् वप इिन ज नि हं वक समीकरण करन
स ज क्षत्रफल ह ि ह, वह जघन्द्य अवग हन क
सम न घन ं गुल क असं ख्य िवं भ गम त्र ह ि ह
॥379॥
43. मणिव्ववग्गण णं , ववयप्प णं तिमसमं खु िुवह र
अवरुक्कथसववसस , रूवहहय िहव्यप्प हु॥386॥
अर्थ - मन द्रव्य वगथण क उत्कृ ष्ट प्रम ण मं स जघन्द्य
प्रम ण क घट न पर ज शष रह उसमं एक लमल न स
मन द्रव्य वगथण अ ं क ववकल्प ं क प्रम ण ह ि ह
इन ववकल्प ं क जजिन प्रम ण ह उसक अनं ि भ ग ं
मं स एक भ ग क बर बर अवधिज्ञ न क ववषयभूि द्रव्य
क ध्रुवह र क प्रम ण ह ि ह ॥386॥
44. ध्रुवह र क प्रम ण
मनोिगगणा के प्रकाि
अनंत
मनोिगगणा के प्रकाि = उत्कृ ष्ट मन वगथण ‒ जघन्द्य मन वगथण +
1
अिः ध्रुििाि =
उत्कृ ष्ट मनोिगगणा ‒ जघन्य मनोिगगणा + 1
अनंत
45. अवरं ह दि अणं िं , अणं िभ गण अहहयमुक्कथसं
इदि मणभि णं तिम-भ ग िव्वण्म्म िुवह र ॥387॥
अर्थ - मन वगथण क जघन्द्य भि अनं ि प्रम ण ह अनं ि
परम णुअ ं क थकं िरूप जघन्द्य मन वगथण ह
उस प्रम ण क अनं ि क भ ग िन पर ज प्रम ण अ ि ह,
उिन उस जघन्द्य भि क प्रम ण मं ज िन पर ज प्रम ण ह ,
वही मन वगथण क उत्कृ ष्ट भि क प्रम ण ज नन इिन
परम णुअ ं क थकं िरूप उत्कृ ष्ट मन वगथण ह
स जघन्द्य स लकर उत्कृ ष्ट िक पूव थक्त प्रक र स मन वगथण
क जजिन भि हुय, उनक अनं िवं भ गम त्र यह ाँ ध्रुवह र क
प्रम ण ह ॥387॥
46. •अनं ि परम णुअ ं क थकन्द्िजघन्द्य मन वगथण
•जघन्द्य मन वगथण +
जघन्य मनोिगगणा
अनंत
उत्कृ ष्ट मन वगथण
•अनन्द्ि (य न
जघन्य मनोिगगणा
अनंत
+ 1)
अि: मन वगथण क
प्रक र
इन ववकल्प ं क अनन्द्िव ं भ ग ध्रुवह र क प्रम ण ह
47. म न – मन वगथण जघन्द्य =8193, उत्कृ ष्ट = 8704, अनं ि = 256
• मन वगथण क प्रक र = उत्कृ ष्ट – जघन्द्य + 1
• = 8704 – 8193 + 1
• = 511 + 1
• = 512
• ध्रुवह र =
उत्कृ ष्ट मनोिगगणा ‒ जघन्य मनोिगगणा + 1
अनंत
• =
512
256
= 2 = ध्रुवह र
48. िुवह रथस पम णं , ससि णं तिमपम णमिं वप
समयपबिणणलमिं , कम्मणवग्गणगुण ि िु॥388॥
ह दि अणं तिमभ ग , िग्गुणग र वव िसअ हहथस
ि ऊणिव्वभि-पम ण िुवह रसं वग्ग ॥389॥
अर्थ - यद्यवप ध्रुवह र क प्रम ण ससिर शश क अनं िवं भ ग हं ,
िर् वप अवधिज्ञ न ववषयक समयप्रबि क प्रम ण तनक लन क
तनलमिभूि क मथणवगथण क गुणक र स अनं िवं भ ग समिन
ि हहय
द्रव्य की अपक्ष स िश वधिज्ञ न क जजिन भि हं , उनमं ि
कम करन स ज प्रम ण शष रह उिनी ब र ध्रुवह र क
परथपर गुण करन स क मथण वगथण क गुणक र क प्रम ण
तनकलि ह ॥388-389॥
49. ध्रुवह र
ससि र शश
अनं ि
य अभव्य ं स अनं ि गुण
कामगण िगगणा का गुणकाि
अनंत
मनोिगगणा के प्रकाि
अनंत
50. अन्द्य प्रक र स जघन्द्य द्रव्य (समयप्रबि) क
प्रम ण
क मथण वगथण क गुणक र × क मथण वगथण
(ध्रुििाि)देशािधध के विकल्प ‒𝟐
× (ध्रुििाि)पिमािधध के विकल्प +𝟐
(ध्रुििाि)(देशािधध ि पिमािधध के समस्त विकल्प)
52. अं गुलअसं खगुणणि , खिववयप्प य िव्वभि हु
खिववयप्प अवरुक्कथसववससं हव एत्र्॥390॥
अर्थ - िश वधिज्ञ न क क्षत्र की अपक्ष जजिन भि हं उनक
सूच्यं गुल क असं ख्य िवं भ ग स गुण करन पर द्रव्य की
अपक्ष स िश वधि क भि ं क प्रम ण तनकलि ह
क्षत्र की अपक्ष उत्कृ ष्ट प्रम ण स सवथ जघन्द्य प्रम ण क
घट न स ज प्रम ण शष रह उिन ही क्षत्र की अपक्ष स
िश वधि क ववकल्प ह ि हं इसक सूच्यं गुल क असं ख्य िवं
भ ग स गुण करक उसमं एक लमल न पर द्रव्य की अपक्ष स
िश वधि क भि ह ि हं ॥390॥
63. िस हहअवरिव्ं , िुवह रणवहहि हव ववदियं
िदिय दिववयप्पसु वव, असं खव र त्ति एस कम ॥394॥
अर्थ - िश वधिज्ञ न क ववषयभूि जघन्द्य द्रव्य
पहल कह र् , उसक ध्रुवह र क भ ग िन पर ज
प्रम ण ह , वह िूसर िश वधि क भि क ववषयभूि
द्रव्य ह एस ही ध्रुवह र क भ ग िि-िि िीसर,
ि र् अ दि भि ं क ववषयभूि द्रव्य ह ि ह एस
असं ख्य ि ब र अनुक्रम करन ॥394॥
64. िस हहमझिभि सववथसस वियिजकम्मं गं
िज भ समण णं , वग्गणयं कवलं जत्र्॥395॥
पथसदि अ ही ित्र् असं खज्ज अ हवं ति िीउवही
व स णण असं खज्ज ह ं ति असं खझजगुणणिकम ॥396॥
अर्थ - िश वधिज्ञ न क मध्यम भि ं मं स जह ाँ िश वधिज्ञ न
ववस्रस पिय सहहि िजस शरीररूप थकन्द्ि क ज नि ह,
उसस अ ग जह ाँ-जह ाँ ववस्रस पिय सहहि क मथणथकं ि,
ववस्रस पिय रहहि िजस वगथण , ववस्रस पिय रहहि
भ ष वगथण , ववस्रस पिय रहहि मन वगथण क ज नि ह, वह ाँ-
वह ाँ इन प ाँि ं थर् न ं मं क्षत्र असं ख्य ि द्वीप-समुद्र अ र क ल
असं ख्य ि वषथ ह ि ह िर् वप उिर िर असं ख्य ि गुणणिक्रम
ह ि ह अर् थि पहल स िूसर, िूसर स िीसर, िीसर स ि र्
अ र ि र् स प ाँिवं भि सम्बन्द्िी क्षत्र, क ल क पररम ण
असं ख्य ि गुण ह ॥395-396॥
65. एस ध्रुवह र क भ ग िि-िि क्रम-क्रम स य थर् न
अ ि हं —
द्रव्य क्षत्र क ल
ववस्रस पिय सहहि
िजस शरीर
असं ख्य ि
द्वीप समुद्र
(उिर िर थर् न ं मं
असं ख्य ि गुण )
असं ख्य ि
वषथ
(उिर िर थर् न ं मं
असं ख्य ि गुण )
ववस्रस पिय सहहि
क मथण शरीर
1 िजस वगथण
1 भ ष वगथण
1 मन वगथण
66. िि कम्मइयण्थसयग-समयपबिं ववववथसस वियं
िुवह रथस ववभज्जं , सव् ही ज व ि व हव॥397॥
अर्थ - इसक अनन्द्िर मन वगथण मं ध्रुवह र क
भ ग िन ि हहय इसिरह भ ग िि-िि
ववस्रस पियरहहि क मथण क एक समयप्रबि प्रम ण
ववषय अ ि ह उक्त क्रम नुस र इसमं भी सव थवधि
क ववषय पयथन्द्ि ध्रुवह र क भ ग िि ज न ि हहय
॥397॥
67. इसी क्रम स ववस्रस पिय रहहि क मथण
क एक समयप्रबि क प्रम ण अ ि ह
एस ही सव थवधिज्ञ न पयथन्द्ि ध्रुवह र क
भ ग लग ि ज न ि हहए
68. एिण्म्ह ववभज्जं ि, िुिररमिस वहहण्म्म वग्गणयं
िररम कम्मइयण्थसयग-वग्गणलमयगव रभजजिं िु॥398॥
अर्थ - इस क मथण समयप्रबि मं ध्रुवह र स
भ ग िन पर िश वधि क हद्विरम
भिक मथणवगथण रूप द्रव्य ववषय ह ि ह अ र
अण्न्द्िम भि मं ध्रुवह र स एक ब र भ जजि
क मथणवगथण द्रव्य ह ि ह ॥398॥
70. अं गुलअसं खभ ग, िव्वववयप्प गि िु खिण्म्ह
एग ग सपिस , वड्ढदि सं पुणणल ग त्ति॥399॥
अर्थ - सूच्यं गुल क असं ख्य िवं भ गप्रम ण जब
द्रव्य क ववकल्प ह ज य िब क्षत्र की अपक्ष
अ क श क एक प्रिश बढि ह इस ही क्रम स
एक-एक अ क श क प्रिश की वृणि वह ाँ िक करनी
ि हहय वक जह ाँ िक िश वधि क उत्कृ ष्ट क्षत्र
सवथल क ह ज य ॥399॥
71. द्रव्य के भेद क्षेत्र मर्यादय
प्रथम, द्वितीर्, तृतीर् आद्वद भेद जघन्र् क्षेत्र
सू/ 𝛛 भेद जघन्र् क्षेत्र + 1 प्रदेश
सू/ 𝛛 भेद जघन्र् क्षेत्र + 2 प्रदेश
ऐसे लोक पर्ान्त प्रदेशोों को बढयनय ।
सू
𝜕
प्रम ण द्रव्य क भि ह न पर
क्षत्र मं 1 प्रिश की वृणि ह िी ह
72. अ वललअसं खभ ग , जहणणक ल कमण समयण
वड्ढदि िस हहवरं , पल्लं समऊणयं ज व॥400॥
अर्थ - जघन्द्य िश वधि क ववषयभूि क ल क
प्रम ण अ वली क असं ख्य िव ाँ भ ग ह
इसक ऊपर उत्कृ ष्ट िश वधि क ववषयभूि एक
समय कम एक पल्यप्रम ण क ल पयथन्द्ि, ध्रुव िर्
अध्रुव वृणिरूप क्रम स एक-एक समय की वृणि ह िी
ह ॥400
73. क्षत्र मं ध्रुववृणि अर्व अध्रुववृणि ह न पर
क ल मं 1 समय बढि ह
क्षत्र क भि क ल मय थि
जघन्द्य क्षत्र जघन्द्य क ल
+ 1 प्रिश ''
+ 2 प्रिश ''
+ घ/𝝏 प्रिश जघन्द्य क ल+1 समय
..... + घ/𝝏 प्रिश जघन्द्य क ल+2 समय
इस प्रक र ध्रुव अर्व अध्रुव वृणि क क्रम स 1-1 समय की
वृणि ह ि हुए (पल्य‒1 समय) िक वृणि ह िी ह
74. िश वधि की क ल मय थि
जघन्द्य
आिली
𝝏
उत्कृ ष्ट
पल्य ‒ 1 समय
75. अं गुल असं खभ गं , िुवरूवण य असं खब रं िु
असं खसं खं भ गं , असं खव रं िु अिुवग ॥401॥
अर्थ: घन ं गुल क अ वली स भ ग िन पर घन ं गुल क
असं ख्य िव भ ग ह ि ह उिन ही ध्रुवरूप स वृणि क
प्रम ण ह ि ह यह वृणि प्रर्म क णिक क अण्न्द्िम भि
पयथन्द्ि असं ख्य ि ब र ह िी ह
पुन: उसी प्रर्म क णिक म अध्रुववृणि की वववक्ष ह न पर
उस वृणि क प्रम ण घन ं गुल क असं ख्य िव भ ग अ र
सं ख्य िव भ ग ह ि ह अध्रुववृणि भी प्रर्म क णिक क
अण्न्द्िम भि पयथन्द्ि असं ख्य ि ब र ह िी ह ॥401॥
76. प्रर्म क णिक (पवथ) की ववशषि
जघन्द्य क ल स उत्कृ ष्ट क ल पयथन्द्ि
वृणि वकिन प्रिश ं की वृणि ह न
पर 1 समय की वृणि ह िी ह
समय की वृणि वकिनी
ब र ह िी ह
ध्रुव वृणि घनांगुल
आिली
=
घनांगुल
असं.
असं ख्य ि ब र
अध्रुव वृणि घनांगुल
असं.
अर्व
घनांगुल
संख्यात
असं ख्य ि ब र
कु ल वृणि असं ख्य ि समय
77. िुवअिुवरूवण य, अवर खिण्म्ह वहड्ढि खि
अवर क लण्म्ह पुण , एक्कक्कं वड्ढि समयं ॥402॥
अर्थ - जघन्द्य िश वधि क ववषयभूि क्षत्र क
ऊपर ध्रुवरूप स अर्व अध्रुवरूप स क्षत्र की
वृणि ह न पर जघन्द्य क ल क ऊपर एक-एक
समय की वृणि ह िी ह॥402॥
78. • क्षत्र मं तनयि प्रिश ं की वृणि ह न पर क ल मं
वृणि ह न यह ध्रुववृणि ह
ध्रुववृणि
• क्षत्र मं अतनयि प्रिश ं की वृणि ह न पर क ल
मं वृणि ह न यह अध्रुववृणि ह
अध्रुववृणि
Note - यह ि न ं वृणिय ाँ क ल वृणि क ललए ही हं
द्रव्य अ र भ व की वृणि प्रत्यक भि मं ह िी ह
क्षत्र मं वृणि प्रत्यक
सू
𝛛
प्रम ण भि ज न पर ह िी ह
ध्रुववृणि अ र अध्रुववृणि - ि न ं प्रक र की वृणि ह ि हुए क ल मं 1-1 समय बढि ह
79. सं ख िीि समय , पढम पव्वण्म्म उभयि वड्ढी
खिं क लं अण्थसय, पढम िी कं िय व च्छं ॥403॥
अर्थ - प्रर्म क णिक मं ध्रुवरूप स अ र
अध्रुवरूप स असं ख्य ि समय की वृणि ह िी ह
इसक अ ग प्रर्म दि क णिक ं क क्षत्र अ र
क ल क अ श्रय स वणथन करि हं ॥403॥
82. अ वललयपुििं पुण, हत्र्ं िह ग उयं मुहुिं िु
ज यणलभणणमुहुिं , दिवसं ि पणणुवीसं िु॥405॥
अर्थ - ििुर्थ क णिक मं क ल अ वली पृर्क्त्व अ र
क्षत्र हथिप्रम ण ह
प ाँिवं क णिक मं क्षत्र एक क श अ र क ल अन्द्िमुथहूिथ
ह
छठ क णिक मं क्षत्र एक य जन अ र क ल लभन्नमुहूिथ
ह
स िवं क णिक मं क ल कु छ कम एक दिन अ र क्षत्र
पच्चीस य जन ह ॥405॥
83. क णिक द्रव्य क्षत्र क ल भ व
ि र् ¦ एक ह र् पृर्क्त्व अ वली ¦
प ाँिव ाँ ¦ एक क स अन्द्िमुथहूिथ ¦
छठ ¦ एक य जन लभन्द्न मुहूिथ ¦
स िव ाँ ¦ 25 य जन कु छ कम 1 दिन ¦
अवधिज्ञ न क 19 क ं िक
84. भरहण्म्म अिम सं , स हहयम सं ि जम्बुिीवण्म्म
व सं ि मणुवल ए, व सपुििं ि रुिगण्म्म॥406॥
अर्थ - अ ठवं क णिक मं क्षत्र भरिक्षत्र प्रम ण अ र
क ल अिथम स (पक्ष) प्रम ण ह
न वं क णिक मं क्षत्र जम्बूद्वीप प्रम ण अ र क ल एक
म स स कु छ अधिक ह
िशवं क णिक मं क्षत्र मनुष्यल क प्रम ण अ र क ल
एक वषथ प्रम ण ह
ग्य रहवं क णिक मं क्षत्र रुिक द्वीप अ र क ल
वषथपृर्क्त्व प्रम ण ह ॥406॥
85. क णिक द्रव्य क्षत्र क ल भ व
अ ठव ाँ ¦ भरि क्षत्र 1/2 महीन ¦
न व ाँ ¦ जम्बूद्वीप
कु छ अधिक
1 महीन
¦
िसव ाँ ¦
मनुष्य ल क
(45 ल ख य जन प्रम ण)
1 वषथ ¦
ग्य रहव ाँ ¦ रुिक (13व ाँ) द्वीप पृर्क्त्व वषथ ¦
अवधिज्ञ न क 19 क ं िक
86. सं खझजपम व स, िीवसमुद्द हवं ति सं खज्ज
व सण्म्म असं खज्ज, िीवसमुद्द असं खज्ज ॥407॥
अर्थ - ब रहवं क णिक मं सं ख्य ि वषथप्रम ण क ल
अ र सं ख्य ि द्वीप-समुद्रप्रम ण क्षत्र ह
इसक अ ग िरहवं स लकर उन्नीसवं क णिक
पयथन्द्ि असं ख्य ि वषथप्रम ण क ल अ र असं ख्य ि
द्वीप-समुद्र प्रम ण क्षत्र ह ॥407॥
87. क णिक द्रव्य क्षत्र क ल भ व
ब रहव ाँ ¦ सं ख्य ि द्वीप-समुद्र सं ख्य ि वषथ ¦
िरहव ाँ
ववस्रस पिय सहहि
िजस शरीर
असं ख्य ि द्वीप-समुद्र
1
उिर ि
र असं .
गुण -
असं .
गुण
अधिक
असं ख्य ि वषथ
1
¦
ि िहव ाँ
ववस्रस पिय सहहि
क मथण शरीर
असं ख्य ि द्वीप-समुद्र
2
असं ख्य ि वषथ
2
¦
पन्द्द्रहव ाँ
ववस्रस पिय रहहि
िजस वगथण
असं ख्य ि द्वीप-समुद्र
3
असं ख्य ि वषथ
3
¦
अवधिज्ञ न क 19 क ं िक
88. क णिक द्रव्य क्षत्र क ल भ व
स लहव ाँ
ववस्रस पिय रहहि
भ ष वगथण
असं ख्य ि द्वीप-
समुद्र 4
उिर िर
असं .
गुण -
असं .
गुण
अधिक
असं ख्य ि वषथ
4
¦
सत्रहव ाँ
ववस्रस पिय रहहि
मन वगथण
असं ख्य ि द्वीप-
समुद्र 5
असं ख्य ि वषथ
5
¦
अठ रहव ाँ
क मथण क एक
समयप्रबि
असं ख्य ि द्वीप-
समुद्र 6
असं ख्य ि वषथ
6
¦
उन्नीसव ाँ क मथण वगथण
ध्रुििाि
ल क
पल्य – 1
समय
¦
अवधिज्ञ न क 19 क ं िक
95. पल्लसमऊण क ल, भ वण असं खल गमि हु
िव्वथस य पज्ज य , वरिस हहथस ववसय हु॥411॥
अर्थ - क ल की अपक्ष एक समय कम एक
पल्य अ र भ व की अपक्ष असं ख्य ि
ल कप्रम ण द्रव्य की पय थय उत्कृ ष्ट िश वधि क
ववषय ह ॥411॥
96. उत्कृ ष्ट िश वधिज्ञ न
द्रव्य
क मथण वगथण
ध्रुवह र
क्षत्र
ल क क श
क ल
पल्य ‒
1 समय
भ व
असं ख्य ि
ल कप्रम ण
97. क ल िउणण उड्ढी, क ल भजजिव्व खिउड्ढी य
उड्ढीए िव्वपझजय, भजजिव् खि-क ल हु॥412॥
अर्थ - क ल की वृणि ह न पर ि र ं प्रक र की
वृणि ह िी ह क्षत्र की वृणि ह न पर क ल की वृणि
ह िी ह अ र नहीं भी ह िी ह इस ही िरह द्रव्य
अ र भ व की अपक्ष वृणि ह न पर क्षत्र अ र क ल
की वृणि ह िी भी ह अ र नहीं भी ह िी ह परन्द्िु
क्षत्र अ र क ल की वृणि ह न पर द्रव्य अ र भ व की
वृणि अवश्य ह िी ह ॥412॥
98. द्रव्य की वृणि ह न पर
क्षत्रवृणि
भजनीय
क लवृणि
भजनीय
भ ववृणि
तनयम स
99. क्षत्र की वृणि ह न पर
द्रव्यवृणि
तनयम स
क लवृणि
भजनीय
भ ववृणि
तनयम स
100. क ल की वृणि ह न पर
द्रव्यवृणि
तनयम स
क्षत्रवृणि
तनयम स
भ ववृणि
तनयम स
101. भ व की वृणि ह न पर
द्रव्यवृणि
तनयम स
क्षत्रवृणि
भजनीय
क लवृणि
भजनीय
102. वकसकी
वृणि
ह न पर
वकसकी
वृणि
ह िी
ह
द्रव्य क्षत्र क ल भ व
द्रव्य ---- भजनीय भजनीय तनयम स
क्षत्र तनयम स -- भजनीय तनयम स
क ल तनयम स तनयम स -- तनयम स
भ व तनयम स भजनीय भजनीय --
भजनीय अर् थि् ह भी अर्व न भी ह
109. सव् वहहथस एक्क , परम णू ह दि णणहव्यप्प स
गं ग मह णइथस, पव ह व्व िुव हव ह र ॥415॥
अर्थ - परम वधि क उत्कृ ष्ट द्रव्यप्रम ण मं ध्रुवह र
क एकब र भ ग िन स लब्ि एक परम णुम त्र द्रव्य
अ ि ह, वही सव थवधिज्ञ न क ववषय ह ि ह यह
ज्ञ न िर् इसक ववषयभूि परम णु तनववथकल्पक ह
यह ाँ पर ज भ गह र ह वह गं ग मह निी क प्रव ह
की िरह ध्रुव ह ॥415॥
110. सव थवधि क द्रव्य
पिमािधध का उत्कृ ष्ट द्रव्य
ध्रुििाि
=
ध्रुििाि
ध्रुििाि
= 1 परम णु
यह एक परम णु
सव थवधि क
ववषयभूि द्रव्य ह
111. परम हहिव्वभि , जत्तियमि हु ित्तिय ह ं ति
िथसव खिक ल-ववयप्प ववसय असं खगुणणिकम ॥416॥
अर्थ - परम वधि क जजिन द्रव्य की अपक्ष स
भि हं उिन ही भि क्षत्र अ र क ल की अपक्ष
स हं परन्द्िु उनक ववषय असं ख्य िगुणणिक्रम
ह ॥416॥
112. परम वधि ज्ञ न क जजिन द्रव्य की अपक्ष भि हं ,
उिन ही क्षत्र, क ल, भ व अपक्ष भि हं
अर् थि् प्रत्यक भि मं द्रव्य, क्षत्र, क ल, भ व
ि र ं की युगपि् वृणि ह िी ह
प्रत्यक भि स अ ग क भि क ववषय असं ख्य ि गुण ह
113. अ वललअसं खभ ग , इण्च्छिगच्छिणम णमि अ
िस वहहथस खि, क ल वव य ह ं ति सं वग्ग॥417॥
अर्थ - वकसी भी परम वधि क वववसक्षि क्षत्र क
ववकल्प मं अर्व वववसक्षि क ल क ववकल्प मं
सं कण्ल्पि िन क जजिन प्रम ण ह उिनी जगह
अ वली क असं ख्य िवं भ ग ं क रखकर परथपर
गुण करन स ज र शश उत्पन्न ह वही िश वधि क
उत्कृ ष्ट क्षत्र अ र उत्कृ ष्ट क ल मं गुण क र क प्रम ण
ह ि ह ॥417॥
114. गुणक र क प्रम ण
यदि N = वववसक्षि भि ह, ि
गुणक र = (
आ
𝝏
) 𝑵 का संकलन धन
N क सं कलन िन =
𝐍×(𝐍+𝟏)
𝟐
सं कलन िन ब र
आ
𝝏
क परथपर गुण करन पर ज असं ख्य ि प्र प्ि ह ,
वह परम वधि क उस भि क क्षत्र अ र क ल क गुणक र ह
115. इस गुणक र क िश वधि क
उत्कृ ष्ट क्षत्र स गुण करन
पर परम वधि क वववसक्षि
भि क क्षत्र अ ि ह
Nth परम वधि क क्षत्र =
ल क × प्र प्त गुणक र
इस गुणक र क िश वधि क
उत्कृ ष्ट क ल स गुण करन
पर परम वधि क वववसक्षि
भि क क ल अ ि ह
Nth परम वधि क क ल =
(पल्य - 1) × प्र प्त गुणक र
118. गच्छसम िक्क ललयिीि रूऊणगच्छिणमि
उभय वव य गच्छथस य, िणमि ह ं ति गुणग र ॥418॥
अर्थ - गच्छ क सम न िन अ र गच्छ स
ित्क ल अिीि ज वववसक्षि भि स पहल भि,
स वववसक्षि गच्छ स एक कम गच्छ क ज
सं कललि िन, इन ि न ं क लमल न स गच्छ क
सं कललि िन प्रम ण गुणक र ह ि ह ॥418॥
123. इण्च्छिर ससच्छिं , दिणणच्छिहहं भ जजि ित्र्
लिलमिदिणणर सीणब्भ स इण्च्छि र सी॥420॥
अर्थ - वववसक्षि र शश क अिथच्छि ं मं ियर शश
क अिथच्छि ं क भ ग िन स ज लब्ि अ व
उिनी जगह ियर शश क रखकर परथपर गुण
करन स वववसक्षि र शश क प्रम ण तनकलि ह
॥420॥
124. (16) 𝑥
= 256
य न 16 क वकिनी ब र रखकर गुण करं , जजसस
256 अ य
सूत्र =
इण्च्छि र शश क छि
िय र शश क छि
= ववरलन र शश
(यह सूत्र log स ससि भी ह ि ह )
256 क छि
16 क छि
=
8
4
= 2
अर् थि् (16)2
= 16×16 = 256
125. ❖इसी प्रक र (
अ
𝝏
) 𝒙
= ल क तनक लन ह
❖
ल क क छि
अ
𝝏
क छि
=
वव छ छ 𝟗
𝝏
❖य न
अ
𝝏
(पल्य क छि) 𝟑
करन पर ल क स भी बिी र शी
अ िी ह
❖इस सूत्र क द्व र वकसी भी र शश की ववरलन र शश तनक ली
ज सकिी ह
126. दिणणच्छिणवहहिल गच्छिण पििण भजजि
लिलमिल गगुणणं , परम वहहिररमगुणग र ॥421॥
अर्थ - ियर शश क अिथच्छि ं क ल क क अिथच्छि ं
मं भ ग िन स ज लब्ि अ व उसक वववसक्षि
सं कण्ल्पि िन मं भ ग िन स ज लब्ि अ व उिनी
जगह ल कप्रम ण क रखकर परथपर गुण करन स
ज र शश उत्पन्न ह वह वववसक्षि पि मं क्षत्र य क ल
क गुणक र ह ि ह एस ही परम वधि क अं तिम
भि मं भी गुणक र ज नन ॥421॥
127. (
64
4
)2
= 256 ि
(
64
4
)6
= (256) 𝑥
?
सूत्र =
ववरलन र शश
इण्च्छिर शशकछि
ियर शशकछि
अर्व ववरलन र शश ×
िय र शश क छि
इण्च्छि र शश क छि
यह सूत्र भी log स ससि ह ि ह
परम वधिज्ञ न क वकसी वववसक्षि भि पर ल क क वकिन ब र
परथपर गुण ह ग - यह तनक लन हिु इस सूत्र क प्रय ग वकय
ज ि ह
128. यर् -
आ
𝛛
के छेद = मध्यम परीि सं ख्य ि
ल क क छि = वव छ छ 9
ल क क छि पल्य स भी कम हं अि: जह ाँ
सं कलन िन (पल्य क छि)(𝟑 × असं ख्य ि) हुअ
वह ाँ स ल करूप गुणक र असं ख्य ि-असं ख्य ि रूप
बढि ज एग
130. जघन्द्य अवधिज्ञ न = जघन्द्य िश वधि ज्ञ न
यह जघन्द्य
अवधिज्ञ न
➢जघन्द्य द्रव्य क
➢
आ
𝝏
प्रम ण अिीि अ र अन गि क ल
क
➢
आ
𝝏𝝏
प्रम ण जघन्द्य भ व ं क
➢प्रत्यक्ष ज नि ह
131. सव् हह त्ति य कमस , अ वललअसं खभ गगुणणिकम
िव् णं भ व णं , पिसं ख सररसग ह ं ति॥423॥
अर्थ - जघन्द्य िश वधि स सव थवधि पयथन्द्ि द्रव्य
की पय थयरूप भ व क भि पूवथ-पूवथ भि की
अपक्ष अ वली क असं ख्य िवं भ ग स
गुणणिक्रम हं अिएव द्रव्य िर् भ व क पि ं
की सं ख्य सदृश ह ॥423॥
132. सवथत्र भ व प्रम ण क गुणक र =
अ
𝜕
= हद्विीय अवधिज्ञ न क भ वजघन्द्य िश वधि ×
आ
𝝏
= िृिीय अवधिज्ञ न क भ वहद्विीय िश वधि ×
आ
𝝏
= सव थवधि क भ व प्रम णउत्कृ ष्ट परम वधि ×
आ
𝝏
133. ववशष
िूं वक जघन्द्य अवधिज्ञ न स उत्कृ ष्ट अवधिज्ञ न
िक प्रत्यक भि मं द्रव्य अ र भ व की वृणि
ह िी ह,
अि: जजिन द्रव्य की अपक्ष अवधिज्ञ न क
भि हं उिन ही भ व की अपक्ष अवधिज्ञ न क
भि हं
134. सिमण्खदिण्म्म क सं , क सथसिं पवड्ढि ि व
ज व य पढम णणरय, ज यणमक्कं हव पुणणं ॥424॥
अर्थ - स िवीं भूलम मं अवधिज्ञ न क ववषयभूि
क्षत्र क प्रम ण एक क स ह इसक ऊपर अ ि-
अ ि क स की वृणि ह ि-ह ि प्रर्म नरक मं
अवधिज्ञ न क ववषयभूि क्षत्र क प्रम ण पूणथ एक
य जन ह ज ि ह ॥424॥
135. नरक गति मं अवधिज्ञ न
नरक उत्कृ ष्ट क्षत्र उत्कृ ष्ट क ल
प्रर्म नरक 1 य जन लभन्द्न मुहूिथ
हद्विीय नरक 3.5 क स
यर् य ग्य अन्द्िमुथहूिथ
िृिीय नरक 3 क स
ििुर्थ नरक 2.5 क स
पं िम नरक 2 क स
षष्ठम नरक 1.5 क स
सप्िम नरक 1 क स अन्द्िमुथहूिथ
136. तिररय अवरं अ घ , िज यं ि य ह दि उक्कथसं
मणुए अ घं िव, जह कमं सुणह व च्छ लम॥425॥
अर्थ - तियथञ ं क अवधिज्ञ न जघन्द्य िश वधि स लकर
उत्कृ ष्टि की अपक्ष उस भिपयथन्द्ि ह ि ह वक ज
िश वधि क भि िजस शरीर क ववषय करि ह
मनुष्यगति मं अवधिज्ञ न जघन्द्य िश वधि स लकर
उत्कृ ष्टिय सव थवधि पयथन्द्ि ह ि ह
िवगति मं अवधिज्ञ न क यर् क्रम स कहूाँग स सुन
॥425॥
137. तियंि व मनुष्य गति मं अवधिज्ञ न
जघन्द्य उत्कृ ष्ट
तियंि
जघन्द्य
िश वधि
िजस शरीर (िश वधि क
िरहवं क णिक पयंि)
मनुष्य
जघन्द्य
िश वधि
सव थवधि
138. पणुवीसज यण इं , दिवसं िं ि य कु म रभ म्म णं
सं खझजगुणं खिं , बहुगं क लं िु ज इससग॥426॥
अर्थ - भवनव सी अ र व्यं िर ं क अवधि क
क्षत्र क जघन्द्य प्रम ण पच्चीस य जन अ र
जघन्द्य क ल कु छ कम एक दिन ह अ र
झय तिषी िव ं क अवधि क क्षत्र इसस
सं ख्य िगुण ह अ र क ल इसस बहुि अधिक ह
॥426॥
139. भवनतत्रक मं जघन्द्य अवधिज्ञ न
भवनव सी-व्यं िर झय तिषी
क्षत्र 25 य जन 25 य जन × सं ख्य ि
क ल कु छ कम 1 दिन 1 दिन स बहुि अधिक
140. असुर णमसं खज्ज , क िीअ ससज इसं ि णं
सं ख िीिसहथस , उक्कथस हीण ववसअ िु॥427॥
अर्थ - असुरकु म र ं क अवधि क उत्कृ ष्ट ववषयक्षत्र
असं ख्य ि क हट य जन ह
असुर ं क छ िकर ब की क झय तिषी िव ं िक क
सभी भवनतत्रक अर् थि् न प्रक र क भवनव सी िर्
सं पूणथ व्यन्द्िर अ र झय तिषी इनक अवधि क उत्कृ ष्ट
ववषयक्षत्र असं ख्य ि हज र य जन ह ॥427॥
141. असुर णमसं खज्ज , वथस पुण ससज इसं ि णं
िथसं खझजदिभ गं , क लण य ह दि णणयमण॥428॥
अर्थ - असुरकु म र ं क अवधि क उत्कृ ष्ट क ल क
प्रम ण असं ख्य ि वषथ ह अ र
शष न प्रक र क भवनव सी िर् व्यन्द्िर अ र
झय तिषी इनक अवधि क उत्कृ ष्ट क ल क प्रम ण
असुर ं क अवधि क उत्कृ ष्ट क ल क प्रम ण स
तनयम स सं ख्य िवं भ गम त्र ह ॥428॥
142. भवनव सी क असुरकु म र ं मं उत्कृ ष्ट अवधिज्ञ न
क्षत्र
असं ख्य ि
कर ि य जन
क ल
असं ख्य ि
वषथ
143. शष भवनव सी, व्यं िर, झय तिषी मं उत्कृ ष्ट
अवधिज्ञ न
क्षत्र
असं ख्य ि
हज र य जन
क ल
असुरकु म र ं क उत्कृ ष्ट क ल
सं ख्य ि
= असं ख्य ि वषथ
144. जघन्द्य उत्कृ ष्ट
िव
भवनव सी,
व्यं िर
झय तिषी
भवनव सी -
असुरकु म र
शष 9
भवनव सी,
व्यं िर, झय तिषी
क्षत्र 25 य जन
25 य जन ×
सं ख्य ि
असं . कर ि
य जन
असं . हज र
य जन
क ल
कु छ कम
1 दिन
1 दिन स
बहुि अधिक
असं . वषथ
असं . वषथ /
सं ख्य ि
भवनतत्रक की अवधिज्ञ न मय थि यं
145. भवणतिय णमि ि , र् वं तिररयण ह दि बहुगं िु
उड्ढण भवणव सी, सुरयगररससहर त्ति पथसं ति॥429॥
अर्थ – भवनव सी, व्यन्द्िर, झय तिषी इनक अवधि
क क्षत्र नीि-नीि कम ह ि ह अ र तियथग् रूप स
अधिक ह ि ह िर्
भवनव सी िव अपन अवस्थर्ि थर् न स सुरयगरर
क (मरु क) शशखरपयथन्द्ि अवधि क द्व र िखि हं
॥429॥
147. सक्कीस ण पढमं , वबदियं िु सणक्कु म र म हहं ि
िदियं िु बम्ह-ल ं िव, सुक्क-सहथस रय िुररयं ॥430॥
अर्थ - स िमथ अ र एश न थवगथ क िव अवधि क
द्व र प्रर्म भूलमपयथन्द्ि िखि हं स नत्कु म र अ र
म हन्द्द्र थवगथ क िव िूसरी पृथ्वी िक िखि हं ब्रह्म,
ब्रह्म िर, ल ं िव अ र क वपष्ठ थवगथव ल िव िीसरी
भूलम िक िखि हं शुक्र, मह शुक्र, शि र अ र
सहस्र र थवगथ क िव ि र्ी भूलम िक िखि हं
॥430॥
148.
149. वम तनक िव मं अवधिज्ञ न
थवगथ क्षत्र क ल
स िमथ-एश न कु छ अधिक 1.5
र जू
(नीि 1 नरक) असं . कर ि वषथ
स नत्कु म र-
म हन्द्द्र
4 र जू (3+1) (नीि 2 नरक)
यर् य ग्य
पल्य
असं .ब्रह्म-ब्रह्म िर 5.5 र जू (3.5+2)
(नीि 3 नरक)
ल न्द्िव-क वपष्ठ 6 र जू (4+2)
यर् य ग्य कु छ कम
पल्य
शुक्र-मह शुक्र 7.5 र जू (4.5+3)
(नीि 4 नरक)
शि र-सहस्र र 8 र जू (5+3)
151. न म क्षत्र क ल
अ नि-प्र णि
9.5 र जू
(5.5+4) (नीि 5
नरक) यर् य ग्य
कु छ कम
पल्य
अ रण-अच्युि
10 र जू
(6+4)
9 ग्रवयक
कु छ अधिक 11
र जू (6+5)
(नीि 6
नरक)
वम तनक िव मं अवधिज्ञ न
152. सव्ं ि ल यण ललं , पथसं ति अणुिरसु ज िव
सक्खि य सकम्म, रूवगिमणं िभ गं ि॥432॥
अर्थ - नव अनुदिश िर् पं ि अनुिरव सी िव सं पूणथ
ल कन ली क अवधि द्व र िखि हं अपन क्षत्र मं
अर् थि् अपन-अपन ववषयभूि क्षत्र क प्रिशसमूह मं स
एक प्रिश घट न ि हहय अ र अपन-अपन
अवधिज्ञ न वरण कमथद्रव्य मं एक ब र ध्रुवह र क भ ग
िन ि हहय एस िब िक करन ि हहय, जबिक
प्रिशसमूह की सम प्ती ह इसस िव ं मं अवधिज्ञ न क
ववषयभूि द्रव्य मं भि सूलिि वकय ह ॥432॥
153. न म क्षत्र क ल
9 अनुदिश कु छ अधिक 13 र जू कु छ कम
पल्य5 अनुिर कु छ कम 14 र जू
वम तनक िव मं अवधिज्ञ न
स र िव ं मं यह अवधिज्ञ न की मय थि इिन क्षत्ररूप ही ह
यह ाँ-वह ाँ ववह र करन पर क्षत्र मय थि बढिी नहीं ह
154. कप्पसुर णं सगसग अ हीखिं ववववथसस वियं
अ हीिव्वपम णं , सं ठ ववय िुवहरण हर॥433॥
सगसगखिपिससल यपम णं समप्पि ज व
ित्र्िणिररमखं िं , ित्र्िण हहथस िव्ं िु॥434॥
अर्थ -कल्पव सी िव ं क अपन-अपन अवधिज्ञ न क
क्षत्र क अ र अपन-अपन ववस्रस पिय रहहि
अवधिज्ञ न वरण द्रव्य क थर् वपि करक क्षत्र मं स एक
प्रिश कम करन अ र द्रव्य मं एक ब र ध्रुवह र क भ ग
िन एस िब िक करन ि हहय, जब िक अपन-अपन
अवधिज्ञ न क क्षत्र सं बं िी प्रिश ं क पररम ण सम प्ि
ह एस करन स ज अवधिज्ञ न वरण कमथ द्रव्य क
अण्न्द्िम खणि शष रहि ह, उिन ही उस अवधिज्ञ न क
ववषयभूि द्रव्य क पररम ण ह ि ह ॥433-434॥
155. िव ं मं अवधिज्ञ न की द्रव्य मय थि
•अपन-अपन अवधिज्ञ न क क्षत्रप्रम ण प्रिशशल क र शी
• अपन -अपन ववस्रस पिय रहहि अवधिज्ञ न वरण द्रव्यिय र शी
•ध्रुवह रभ गह र र शी
िय र शी मं ध्रुवह र क िब िक भ ग लग न , जब िक
शल क र शश सम प्ि न ह ज ए ज अं ि मं द्रव्य
प्र प्ि ह ि ह, वह उस थर् न मं द्रव्य की मय थि ह
156. इस प्रक र क्रम स ध्रुवह र क िब िक भ ग लग न , जब िक शल क र शश
सम प्ि न ह ज ए
अर् थि्
𝟑
𝟐
िाजू
𝟑
प्रम ण प्रिश ं ब र ध्रुवह र क भ ग लग न पर स िमथ-एश न क द्रव्य
क प्रम ण प्र प्त ह ि ह
𝟑
𝟐
िाजू
𝟑
विस्रसोपचय िहित अिधधज्ञानाििण द्रव्य
ध्रुििाि
= A
𝟑
𝟐
िाजू
𝟑
− 1
𝐀
ध्रुििाि
= B
𝟑
𝟐
िाजू
𝟑
− 2
𝐁
ध्रुििाि
= C
स िमथ-एश न क द्रव्य क प्रम ण
157. स िमथ-एश न क द्रव्य क प्रम ण
सूत्र रूप मं
अपन अवधिज्ञ न वरण क द्रव्य
(ध्रुवह र)
3
2
र जू
3 = स िमथ-एश न क ववषयभूि द्रव्य
इसी प्रक र स प्रत्यक कल्प मं अपन-अपन अवधिज्ञ न वरण द्रव्य क
अपन क्षत्र प्रम ण ब र ध्रुवह र रखकर भ ग िन पर प्रत्यक कल्प क
अवधिज्ञ न क ववषयभूि द्रव्य प्र प्ि ह ि ह
अपन −अपन ववस्रस पिय रहहि अवधिज्ञ न वरण क द्रव्य
(ध्रुवह र)अपन−अपनअवधिज्ञ नकववषयभूिअ क शप्रिश
158. स हम्मीस ण णमसं खज्ज अ हु वथसक िीअ
उवररमकप्पिउक्क पल्ल सं खझजभ ग िु॥435॥
िि ल ं िवकप्पप्पहुिी सव्वत्र्ससणिपरं िं
वकं िूणपल्लमिं , क लपम णं जह ज ग्गं ॥436॥
अर्थ - स िमथ अ र एश न थवगथ क िव ं क अवधि
क क ल असं ख्य ि क हट वषथ ह इसक ऊपर
स नत्कु म र-म हन्द्द्र, ब्रह्म-ब्रह्म िर कल्पव ल िव ं क
अवधि क क ल यर् य ग्य पल्य क असं ख्य िव ाँ
भ ग ह इसक ऊपर ल न्द्िव थवगथ स लकर
सव थर्थससणि पयथन्द्िव ल िव ं क अवधि क क ल
यर् य ग्य कु छ कम पल्यप्रम ण ह ॥435-436॥
159. कल्पव सी िव ं क अवधिज्ञ न की क ल मय थि
स िमथ-एश न
असं ख्य ि
कर ि वषथ
स नत्कु म र स ब्रह्म िर
यर् य ग्य
पल्य
असंख्यात
ल न्द्िव स सव थर्थससणि
पयंि
यर् य ग्य
कु छ कम
पल्य
160. ज इससयं ि ण ही, खि उि ण ह ं ति घणपिर
कप्पसुर णं ि पुण , ववसररत्र्ं अ यिं ह दि ॥ 437 ॥
अर्थ: भवनव सी, व्यन्द्िर, झय तिषी इनक अवधि क
क्षत्र क प्रम ण ज पहल बि य गय ह वह ववसदृश ह,
बर बर ि क र घनरूप नहीं ह
कल्पव सी िव ं क अवधि क क्षत्र अ यिििुरस्र अर् थि्
लम्ब ई मं ऊध्वथ-अि: अधिक अ र ि ि ई मं अर् थि्
तियथक् र् ि ह
शष मनुष्य, तियंि, न रकी इनक अवधि क ववषयभूि
क्षत्र बर बर ि क र घनरूप ह ॥ 437॥
162. ि र ं गतिय ं मं अवधिज्ञ न की दिश
भवनतत्रक
वम तनक
शष 3 गति
ि क र घनरूप नहीं ह
ववसदृश अ यि ििुरस्र
ि क र घनरूप
ऊपर-नीि अल्प,
तियथक् अधिक
लं ब अधिक,
ि ि अल्प
िीन ं अ य म
मं सम न