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आाहार मार्गणा
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उदयावण्णसरीराो-दयोण तद्दोहवयणचित्ताणं।
णाोकम्मवग्र्णाणं, र्हणं आाहारयं णाम॥664॥
❖आर्ग - आादाररक, वक्रिययक, आाहारक इन तीन
शरीर नामक नामकमग मों सो क्रकसी को भी उदय सो
जाो उस शरीररूप, विनरूप आार द्रव्यमनरूप हाोनो
याोग्य नाोकमगवर्गणा का ग्रहण करना, उसका आाहार
ऐोसा नाम हं ॥664॥
3 शरीर नामकमग को उदय सो
आाहार वर्गणा, भाषा वर्गणा, मनाोवर्गणा ―
ऐोसी नाोकमग वर्गणाआाों का ग्रहण करना
आाहार कहलाता ह ꠰
आाहार
आाहरदद सरीराणं, ततण्हं ऐयदरवग्र्णाआाो य।
भासमणाणं णणयदं, तम्हा आाहारयाो भणणयाो॥665॥
❖आर्ग - आादाररक, वक्रिययक, आाहारक इन तीन शरीराों
मों सो क्रकसी भी ऐक शरीर को याोग्य वर्गणाआाों काो तर्ा
विन आार मन को याोग्य वर्गणाआाों काो यर्ायाोग्य
जीवसमास तर्ा काल मों जीव आाहरण आर्ागत् ग्रहण
करता ह इसचलयो इसकाो आाहारक कहतो हं ॥665॥
क्रवशोष
ऐक समय मों आादाररक, वक्रिययक आार आाहारक मों सो ऐक नामकमग
का ही उदय हाोता ह ꠰
जाो आाहरण करता ह, आर्ागत् ग्रहण करता ह, उसो आाहारक कहतो हं ꠰
आर्ागत् 3 शरीराों मों ऐक शरीर को याोग्य आाहार वर्गणा, भाषा वर्गणा, मनाो वर्गणा
काो यर्ायाोग्य जाो ग्रहण करता ह, वह आाहारक कहलाता ह ꠰
क्रवग्र्हर्ददमावण्णा, को वचलणा समुग्घदाो आजाोर्ी य।
ससद्धा य आणाहारा, सोसा आाहारया जीवा॥666॥
❖आर्ग - क्रवग्रहर्तत काो प्राप्त हाोनो वालो िाराों
र्ततसंबंधी जीव, प्रतर आार लाोकपूणग समुद्घात
करनोवालो सयाोर्को वली, आयाोर्को वली, समस्त
ससद्ध इतनो जीव ताो आनाहारक हाोतो हं आार
❖इनकाो छाोड़कर शोष सभी जीव आाहारक हाोतो
हं॥666॥
आनाहारक जाो नाोकमग आाहार
ग्रहण नहीं करता,
उसो आनाहारक
कहतो हं ꠰
1. क्रवग्रह र्तत काो प्राप्त जीव
2. प्रतर, लाोकपूरण समुद्घात काो
प्राप्त को वली जजन
3. आयाोर्ी जजन
4. ससद्ध
आनाहारक
कान ?
वोयणकसायवोर्ुव्व्वयाो य मरणंततयाो समुग्घादाो।
तोजाहाराो छट्ाो, सत्तमआाो को वलीणं तु॥667॥
❖आर्ग - समुद्घात को सात भोद हं - वोदना, कषाय,
वक्रिययक, मारणांततक, तजस, आाहारक, को वल।
इनका स्वरूप लोश्यामार्गणा को क्षोत्राधधकार मों कहा
जा िुका ह, इसचलयो यहााँ नहीं कहा ह॥667॥
समुद्घात को प्रकार
प्रारंभ को 4 समुद्घात सामान्‍य हं ꠰
शोष 3 समुद्घात क्रवशोष जीवाों काो ही हाोतो हं ꠰
वोदना
कषाय
वक्रिययक
मारणांततक
तजस
आाहारक
को वली
मूलसरीरमछंदड़य, उत्तरदोहस्स जीवक्रपंड़स्स।
णणग्र्मणं दोहादाो, हाोदद समुग्घादणामं तु॥668॥
❖आर्ग - मूल शरीर काो न छाोड़कर तजस-कामगण
रूप उत्तर दोह को सार् जीवप्रदोशाों को शरीर सो
बाहर तनकलनो काो समुद्घात कहतो हं ॥668॥
समुद्घात
मूल शरीर काो छाोड़ो क्रबना
कामगण-तजसरूप उत्तर शरीराों को सार्
जीव को प्रदोशसमूह का
मूल शरीर सो बाहर तनकलना
समुद्घात कहलाता ह ꠰
आाहारमारणंततय, दुर्ं क्रप णणयमोण ऐर्ददससर्ं तु।
दसददसस र्दा हु सोसा, पंि समुग्घादया हाोंतत॥669॥
❖आर्ग - उक्त सात प्रकार को समुद्घाताों मों आाहारक
आार मारणांततक यो दाो समुद्घात ताो ऐक ही ददशा मों
र्मन करतो हं,
❖क्रकन्‍तु बाकी को पााँि समुद्घात दशाों ददशाआाों मों
र्मन करतो हं ॥669॥
क्रवशोष
आाहारक आार मारणांततक ऐक बार मों ऐक
ददशा मों ही र्मन करतो हं आर्ागत् यो श्रोणीरूप
मों फलतो हं ꠰
शोष 5 समुद्घात दसाों ददशाआाों मों ऐक सार्
फल सकतो हं ꠰
आात्मप्रदोश घनाकार रूप सो फलना
आाहारक मों
ऐक ददशा मों
र्मन
आंर्ुलआसंखभार्ाो, कालाो आाहारयस्स उक्कस्साो।
कम्मव्म्म आणाहाराो, उक्कस्सं ततण्ण समया हु॥670॥
❖आर्ग - आाहारक का उत्कृ ष्ट काल सूच्यंर्ुल को आसंख्यातवों
भार्प्रमाण ह।
❖कामगण शरीर मों आनाहार का उत्कृ ष्ट काल तीन समय का
ह आार जघन्‍य काल ऐक समय का ह। तर्ा
❖आाहारक का जघन्‍य काल तीन समय कम श्वास को
आठारहवों भार् प्रमाण ह काोंक्रक क्रवग्रहर्ततसंबंधी तीन समयाों
को घटानो पर क्षुद्रभव का काल इतना ही आवशोष रहता ह
॥670॥
काल
क्रवग्रहर्तत आार को वली समुद्घात मों आनाहारक का उत्कृ ष्ट
काल 3 समय ह ꠰
जघन्‍य उत्कृ ष्ट
आाहारक क्षुद्रभव ― 3 समय सूच्यंर्ुल
आसंख्यात
आनाहारक 1 समय आंतमुगहूतग
उत्तर― ऐक भव पूणग हाोनो पर
क्रवग्रहर्तत रहहत ऋजुर्तत सो
जन्‍म लो, तब जीव आनाहारक
नहीं हाो पाता, आाहारक बना
रहता ह ꠰ ऐोसो ऋजुर्तत सो भी
पुन:-पुन: जन्‍म लो, ताो
सूच्यंर्ुल
आसंख्यात
काल तक ही लोर्ा ꠰ उसको बाद
आनाहारक हाोर्ा ही ꠰
कम्मइयकायजाोर्ी, हाोदद आणाहारयाण पररमाणं।
तव्व्वरहहदसंसारी, सव्वाो आाहारपररमाणं॥671॥
❖आर्ग - कामगणकाययाोर्ी जीवाों का जजतना प्रमाण ह
उतना ही आनाहारक जीवाों का प्रमाण ह आार
संसारी जीवराशश मों सो कामगणकाययाोर्ी जीवाों का
प्रमाण घटानो पर जाो शोष रहो उतना ही आाहारक
जीवाों का प्रमाण ह ॥671॥
आाहार मार्गणा ― संख्या
आनाहारक
•कामगण काययाोर्ी + आयाोर्
को वली = आनंत
आाहारक
•संसारी जीव ― आनाहारक
•१३- (कु छ कम संसार राशश)
➢Reference : र्ाोम्मटसार जीवकाण्ड़, सम्यग्ञान िंदद्रका,
र्ाोम्मटसार जीवकांड़ - रोखाचित्र ऐवं ताचलकाआाों मों
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Aahar Margna

  • 2. उदयावण्णसरीराो-दयोण तद्दोहवयणचित्ताणं। णाोकम्मवग्र्णाणं, र्हणं आाहारयं णाम॥664॥ ❖आर्ग - आादाररक, वक्रिययक, आाहारक इन तीन शरीर नामक नामकमग मों सो क्रकसी को भी उदय सो जाो उस शरीररूप, विनरूप आार द्रव्यमनरूप हाोनो याोग्य नाोकमगवर्गणा का ग्रहण करना, उसका आाहार ऐोसा नाम हं ॥664॥
  • 3. 3 शरीर नामकमग को उदय सो आाहार वर्गणा, भाषा वर्गणा, मनाोवर्गणा ― ऐोसी नाोकमग वर्गणाआाों का ग्रहण करना आाहार कहलाता ह ꠰ आाहार
  • 4. आाहरदद सरीराणं, ततण्हं ऐयदरवग्र्णाआाो य। भासमणाणं णणयदं, तम्हा आाहारयाो भणणयाो॥665॥ ❖आर्ग - आादाररक, वक्रिययक, आाहारक इन तीन शरीराों मों सो क्रकसी भी ऐक शरीर को याोग्य वर्गणाआाों काो तर्ा विन आार मन को याोग्य वर्गणाआाों काो यर्ायाोग्य जीवसमास तर्ा काल मों जीव आाहरण आर्ागत् ग्रहण करता ह इसचलयो इसकाो आाहारक कहतो हं ॥665॥
  • 5. क्रवशोष ऐक समय मों आादाररक, वक्रिययक आार आाहारक मों सो ऐक नामकमग का ही उदय हाोता ह ꠰ जाो आाहरण करता ह, आर्ागत् ग्रहण करता ह, उसो आाहारक कहतो हं ꠰ आर्ागत् 3 शरीराों मों ऐक शरीर को याोग्य आाहार वर्गणा, भाषा वर्गणा, मनाो वर्गणा काो यर्ायाोग्य जाो ग्रहण करता ह, वह आाहारक कहलाता ह ꠰
  • 6. क्रवग्र्हर्ददमावण्णा, को वचलणा समुग्घदाो आजाोर्ी य। ससद्धा य आणाहारा, सोसा आाहारया जीवा॥666॥ ❖आर्ग - क्रवग्रहर्तत काो प्राप्त हाोनो वालो िाराों र्ततसंबंधी जीव, प्रतर आार लाोकपूणग समुद्घात करनोवालो सयाोर्को वली, आयाोर्को वली, समस्त ससद्ध इतनो जीव ताो आनाहारक हाोतो हं आार ❖इनकाो छाोड़कर शोष सभी जीव आाहारक हाोतो हं॥666॥
  • 7. आनाहारक जाो नाोकमग आाहार ग्रहण नहीं करता, उसो आनाहारक कहतो हं ꠰
  • 8. 1. क्रवग्रह र्तत काो प्राप्त जीव 2. प्रतर, लाोकपूरण समुद्घात काो प्राप्त को वली जजन 3. आयाोर्ी जजन 4. ससद्ध आनाहारक कान ?
  • 9. वोयणकसायवोर्ुव्व्वयाो य मरणंततयाो समुग्घादाो। तोजाहाराो छट्ाो, सत्तमआाो को वलीणं तु॥667॥ ❖आर्ग - समुद्घात को सात भोद हं - वोदना, कषाय, वक्रिययक, मारणांततक, तजस, आाहारक, को वल। इनका स्वरूप लोश्यामार्गणा को क्षोत्राधधकार मों कहा जा िुका ह, इसचलयो यहााँ नहीं कहा ह॥667॥
  • 10. समुद्घात को प्रकार प्रारंभ को 4 समुद्घात सामान्‍य हं ꠰ शोष 3 समुद्घात क्रवशोष जीवाों काो ही हाोतो हं ꠰ वोदना कषाय वक्रिययक मारणांततक तजस आाहारक को वली
  • 11. मूलसरीरमछंदड़य, उत्तरदोहस्स जीवक्रपंड़स्स। णणग्र्मणं दोहादाो, हाोदद समुग्घादणामं तु॥668॥ ❖आर्ग - मूल शरीर काो न छाोड़कर तजस-कामगण रूप उत्तर दोह को सार् जीवप्रदोशाों को शरीर सो बाहर तनकलनो काो समुद्घात कहतो हं ॥668॥
  • 12. समुद्घात मूल शरीर काो छाोड़ो क्रबना कामगण-तजसरूप उत्तर शरीराों को सार् जीव को प्रदोशसमूह का मूल शरीर सो बाहर तनकलना समुद्घात कहलाता ह ꠰
  • 13. आाहारमारणंततय, दुर्ं क्रप णणयमोण ऐर्ददससर्ं तु। दसददसस र्दा हु सोसा, पंि समुग्घादया हाोंतत॥669॥ ❖आर्ग - उक्त सात प्रकार को समुद्घाताों मों आाहारक आार मारणांततक यो दाो समुद्घात ताो ऐक ही ददशा मों र्मन करतो हं, ❖क्रकन्‍तु बाकी को पााँि समुद्घात दशाों ददशाआाों मों र्मन करतो हं ॥669॥
  • 14. क्रवशोष आाहारक आार मारणांततक ऐक बार मों ऐक ददशा मों ही र्मन करतो हं आर्ागत् यो श्रोणीरूप मों फलतो हं ꠰ शोष 5 समुद्घात दसाों ददशाआाों मों ऐक सार् फल सकतो हं ꠰ आात्मप्रदोश घनाकार रूप सो फलना आाहारक मों ऐक ददशा मों र्मन
  • 15. आंर्ुलआसंखभार्ाो, कालाो आाहारयस्स उक्कस्साो। कम्मव्म्म आणाहाराो, उक्कस्सं ततण्ण समया हु॥670॥ ❖आर्ग - आाहारक का उत्कृ ष्ट काल सूच्यंर्ुल को आसंख्यातवों भार्प्रमाण ह। ❖कामगण शरीर मों आनाहार का उत्कृ ष्ट काल तीन समय का ह आार जघन्‍य काल ऐक समय का ह। तर्ा ❖आाहारक का जघन्‍य काल तीन समय कम श्वास को आठारहवों भार् प्रमाण ह काोंक्रक क्रवग्रहर्ततसंबंधी तीन समयाों को घटानो पर क्षुद्रभव का काल इतना ही आवशोष रहता ह ॥670॥
  • 16. काल क्रवग्रहर्तत आार को वली समुद्घात मों आनाहारक का उत्कृ ष्ट काल 3 समय ह ꠰ जघन्‍य उत्कृ ष्ट आाहारक क्षुद्रभव ― 3 समय सूच्यंर्ुल आसंख्यात आनाहारक 1 समय आंतमुगहूतग
  • 17. उत्तर― ऐक भव पूणग हाोनो पर क्रवग्रहर्तत रहहत ऋजुर्तत सो जन्‍म लो, तब जीव आनाहारक नहीं हाो पाता, आाहारक बना रहता ह ꠰ ऐोसो ऋजुर्तत सो भी पुन:-पुन: जन्‍म लो, ताो सूच्यंर्ुल आसंख्यात काल तक ही लोर्ा ꠰ उसको बाद आनाहारक हाोर्ा ही ꠰
  • 18. कम्मइयकायजाोर्ी, हाोदद आणाहारयाण पररमाणं। तव्व्वरहहदसंसारी, सव्वाो आाहारपररमाणं॥671॥ ❖आर्ग - कामगणकाययाोर्ी जीवाों का जजतना प्रमाण ह उतना ही आनाहारक जीवाों का प्रमाण ह आार संसारी जीवराशश मों सो कामगणकाययाोर्ी जीवाों का प्रमाण घटानो पर जाो शोष रहो उतना ही आाहारक जीवाों का प्रमाण ह ॥671॥
  • 19. आाहार मार्गणा ― संख्या आनाहारक •कामगण काययाोर्ी + आयाोर् को वली = आनंत आाहारक •संसारी जीव ― आनाहारक •१३- (कु छ कम संसार राशश)
  • 20. ➢Reference : र्ाोम्मटसार जीवकाण्ड़, सम्यग्ञान िंदद्रका, र्ाोम्मटसार जीवकांड़ - रोखाचित्र ऐवं ताचलकाआाों मों Presentation developed by Smt. Sarika Vikas Chhabra ➢For updates / feedback / suggestions, please contact ➢Sarika Jain, sarikam.j@gmail.com ➢www.jainkosh.org ➢: 94066-82889