2. ववषय वस्तु
प्रकिण सूत्र क्रमाांक कु ल सूत्र
जीव के असाधािण भाव १ - ७ ७
जीव का लक्षण ८ - ९ २
जीव के भेद १० - १४ ५
इन्द्रियााँ १५ – २४ १०
ववग्रह गतत २५ - ३० ६
जरम अाि याेनी ३१ - ३५ ५
शिीि ३६ - ४९ १४
वेद ५० – ५२ ३
अायु अपवतथन से मिण ५३ १
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3. अापशममकक्षाययका भावा ममश्रश्च जीवस्य
स्वतत्त्वमादययक-पारिणाममका च।।१।।
☸अापशममक, क्षाययक, ममश्र अर्ाथत्
क्षायाेपशममक, अादययक अाि पारिणाममक ये
जीव के ५ असाधािण भाव हां
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5. जीव के असाधािणभाव
जीव के अततरिक्त अरय िवयाेां मेां न पाये जाने
वाले अर्ाथत् मात्र जीव मेां ही पाये जाने वाले
भावाेां काे जीव के असाधािणभाव कहते हां ।
6. अापशममक भाव
माेहनीय कमथ के
अांतिकिणरूप उपशम के तनममत्त से
हाेनेवाले जीव के भावाेां काे अापशममक
भाव कहते हां ।
7. क्षाययक भाव
कमथक्षय के समय मेां हाेनेवाले
एवां भववष्य मेां अनांत काल पयंत िहने
वाले
जीव के शुद्धभावाेां काे क्षाययक भाव
कहते हां ।
8. क्षायाेपशममक भाव
कमथ के क्षयाेपशम के तनममत्त से हाेनेवाले
जीव के भावाेां काे
क्षायाेपशममक भाव कहते हां
10. पारिणाममक भाव
पूणथत: कमथतनिपेक्ष अर्ाथत्
कमथ के उपशम, क्षय, क्षयाेपशम अाि उदय से तनिपेक्ष
जीव के परिणामाेां काे पारिणाममक भाव कहते हां ।
11. ववशेष
☸शुरू के 4 भाव तनममत्त की प्रधानता से कहे हां अाि
अांततम भाव याेग्यता की प्रधानता से कहा ह
☸इन 5 भावाेां के जीवाेां की सांख्या के क्रम के कािण
से सूत्र मेां इनका क्रम इस प्रकाि िखा गया ह
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16. अापशममक भाव
☸कािण के ममलने पि प्रततपक्षी कमथ की
शमक्त के दब जाने से अात्मा मेां तनमथलता
का हाेना अापशममक भाव हां |
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17. अापशममक भाव
सम्यक्त्व
प्रर्ामाेपशम
ममथ्यात्व अाि अनरतानुबरधी का
उपशम
द्विततयाेपशम
श्रेणी चढने के पूवथ चारित्र माेहनीय
की २१ प्रकृ ततयाेां का उपशम
चारित्र
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18. अनादद ममथ्यादृष्टष्ट के सम्यक्त्व की प्रवक्रया
४ लब्धध प्राप्त कि
५ वी लब्धध के ३
किण परिणाम कि
उपशम सम्यक्त्व
प्राप्त किे
19. ५ लब्धध
सांज्ञी पांचेन्द्रिय पयाथप्त हाेनाक्षयाेपशम लब्धध
कषायाेां की मांदता हाेना, धमाथनुिाग रूप शुभ परिणामाेां की
प्रातप्त
ववशुद्ध लब्धध
6 िवय, 7 तत्त्व अादद का उपदेश देने वाले अाचायाथदद का लाभ, उनके
उपदेश की प्रातप्त, उपदेशशत पदार्थ काे धािण किने की प्रातप्त
देशना लब्धध
बांध अाि सत्ता दाेनाेां के कमाें की ब्स्र्तत अांत:काेड़ाकाेड़ी सागि किनाप्रायाेग्यता लब्धध
3 किण परिणाम हाेते हां, अध:प्रवृत्तकिण, अपूवथकिण, अतनवृत्तत्तकिणकिण लब्धध
20. अापशममक सम्यक्त्व
दशथन माेहनीय की 1 या 2 या 3 प्रकृ ततयाेां का प्रशस्त उपशम किने
पि तर्ा
अनरतानुबरधी की 4 प्रकृ ततयाेां का अप्रशस्त उपशम हाेने पि
हाेने वाले जीव के सम्यक्त्व परिणाम काे अापशममक सम्यक्त्व कहते
हां ।
21. उपशम वकसे कहते हां?
कमाें का अपने परिणामाेां के तनममत्त से अागे-पीछे किना वह
उपशम (प्रशस्त उपशम) कहलाता ह |
उससे जाे gap/empty space बनेगा तब उस gap /
empty space मेां उस-उस कमथ प्रकृ तत का उदय नहीां िहेगा |
22. कमाें काे पहले उदय मेां लाना
कमाें के उदय काे अागे किना
अापशममक सम्यक्त्व
(कमथ के उदय का अभाव)
अांतमुथहूतथ काल
ममथ्यात्व कमथ
प्रर्माेपशम सम्यक्त्व का
प्रर्म समय
15
14
13
12
11
10
9
8
7
6
5
4
3
2
1
23. अापशममक सम्यक्त्व से जाने के 4 मागथ
अापशममक
सम्यक्त्व
ममथ्यात्व
सासादन सम्यन्द्ग्मथ्यात्व
क्षायाेपशममक
सम्यक्त्व
अनांतानुबांधी का
उदय अाने पि
सम्यक्त्व प्रकृ तत का
उदय अाने पि
ममथ्यात्व प्रकृ तत का
उदय अाने पि
सम्यन्द्ग्मथ्यात्व प्रकृ तत का
उदय अाने पि
24. अापशममक भाव के बािे मेां कु छ तथ्य:
☸ये भाव temporary शुद्धभाव हाेता ह ।
☸4 से 11 गुणस्र्ान तक ये भाव हाे सकते हां ।
☸दशथन अाि चारित्र माेहनीय की ही उपशमना हाे
सकती ह
28. • माेहनीय की 7 प्रकृ ततयाेां के क्षय से प्रगट क्षाययक
सम्यक्त्व
क्षाययक सम्यक्त्व
• समस्त माेहनीय कमथ के अभाव से प्रगटक्षाययक चारित्र
• ज्ञानाविण के अत्यांत क्षय से प्रगट के वलज्ञानक्षाययक ज्ञान
• दशथनाविण के अत्यांत क्षय से प्रगट के वलदशथनक्षाययक दशथन
• दानारतािाय कमथ का अत्यांत क्षय हाेने से ददवयध्वनी अादद
िािा अनांत प्राणणयाेां का उपकाि किने वाला क्षाययक दान
क्षाययक दान
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29. • लाभारतािाय के क्षय से के वली भगवान के शिीि का वबना
भाेजनादद ग्रहण वकये बने िहना
क्षाययक लाभ
• भाेगारतिाय का अत्यांत क्षय से सुगब्रधत पवन का बहना,
पुष्प वृष्टष्ट अादद क्षाययक भाेग
क्षाययक भाेग
• उपभाेगारतिाय के अत्यांत क्षय से ससांहासन, 3 छत्र,
भामांड़ल अादद का हाेना क्षाययक भाेग
क्षाययक उपभाेग
• वीयाथरतिाय कमथ के अत्यांत क्षय से क्षाययक वीयथ प्रगट हाेनाक्षाययक वीयथ
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32. क्षयाेपशम वकसे कहते हां?
• वतथमानकालीन सवथघातत स्पधथकाेां का उदयाभावी
क्षय
क्षय
• भववष्य मेां उदय मेां अाने याेग्य सवथघातत स्पधथकाेां
का सदवस्र्ारूप उपशम
उपशम
•वतथमानकालीन देशघाती स्पधथकाेां का उदयउदय
इन 3 रूप कमथ की अवस्र्ा काे क्षयाेपशम कहते हां |
33. उदयाभावी क्षय
सवथघाती प्रकृ ततयाेां का अनांत गुणा हीन हाेकि देशघाती मेां
परिवततथत हाेकि उदय मेां अाने काे उदयाभावी क्षय कहते हां |
इसमेां सवथघातत स्पधथक उदय मेां अाने के एक समय पूवथ
देशघाती मेां परिवततथत हाेते हां |
34. अनुभाग का अनांत गुणा हीन हाेना
सवथघातत का देशघातत रूप उदय हाेना
उदयाभावी क्षय
लता
35. सदवस्र्ारूप उपशम
वतथमान समय काे छाेड़कि
भववष्य मेां उदय मेां अाने वाले कमाें के
सत्ता मेां िहने काे
सदवस्र्ारूप उपशम कहते हां ।
उदीिणा
न हाेना
कमथ
ब्स्र्तत
37. 3 इन्द्रिय जीव के मततज्ञान का क्षयाेपशम
3 इन्द्रिय (स्पशथन, िसना, घ्राण) सम्बांष्टधत मततज्ञान
का क्षयाेपशम
बाकी की 2 इन्द्रिय (चक्षु अाि कणथ) इन्द्रिय सम्बांष्टधत
सवथघाती का उदय
38. मततज्ञान मेां क्षयाेपशम
मततज्ञान के सवथघातत
स्पधथकाेां का
वतथमान मेां
उदयाभावी क्षय
अागामी का
सदवस्र्ारूप
उपशम
मततज्ञान के देशघातत
स्पधथकाेां का
वतथमान मेां
उदय
43. क्षायाेपशममक सम्यक्त्व कसे ?
ममथ्यात्व, सम्यन्द्ग्मथ्यात्व, अनांतानुबांधी ४ का
उदयाभावी क्षय सदवस्र्ारूप उपशम
तत्त्वार्थ श्रद्धान
सम्यक्त्व प्रकृ तत का
उदय
चल मलादद दाेष
44. अनांतानुबांधी
तत्त्वार्थश्रद्धानरूप
सम्यक्त्व का
घात हाे
अनांत सांसाि
(ममथ्यात्व) के
सार् सांबांध किाये
अप्रत्याख्यानाविण
देशचारित्र का
घात हाे
वकां मचत् त्याग न
हाेने दे
प्रत्याख्यानाविण
सकलचारित्र
का घात हाे
पूणथ त्याग न
हाेने दे
सांज्वलन
यर्ाख्यातचारित्र
का घात हाे
जाे सांयम के
सार् प्रज्वमलत
िहे
45. क्षायाेपशममक चारित्र कसे ?
अनांतानुबांधी, अप्रत्याख्यान, प्रत्याख्यान का
उदयाभावी क्षय सदवस्र्ारूप उपशम
वीतिागता
सांज्वलन प्रकृ तत का
उदय
यर्ाख्यात चारित्र
का घात
46. सांयमासांयम कसे ?
अनांतानुबांधी, अप्रत्याख्यान का
उदयाभावी क्षय सदवस्र्ारूप उपशम
वीतिागता
प्रत्याख्यान सवथघाती ,
सांज्वलन देशघाती
प्रकृ तत का
उदय
सकल चारित्र का
घात
60. भवय
तनकट भवय
शीघ्र ही
माेक्ष प्राप्त
किेगा
दूि भवय
कु छ समय
बाद माेक्ष
प्राप्त किेगा
दूिारदूि भवय
याेग्यता हाेने
पि भी जाे
माेक्ष नहीां प्राप्त
किेगा
63. ५ भावाेां के स्वामी कान कान हां?
पारिणाममक
समस्त
जीवाेां मेां
अादाययक
समस्त
सांसािी
जीवाेां मेां
क्षायाेपशममक
१२
गुणस्र्ानवतीथ
जीवाेां तक
क्षाययक
ससद्ध,
अिहांत,
क्षाययक
सम्यग्दृष्टष्ट
अापशममक
अापशममक
सम्यक्त्व,
चारित्र वाले
जीवाेां के
64. 5 भावाेां के काल
•स+अादद=जजसकी शुरुअात हुई हसादी
•स+अांत=जजसका अांत हुअा हसाांत
•अन+अादद जजसकी शुरुअात नहीां हुई हअनादी
•अन+अांत=जजसका अांत नहीां हअनांत
65. 5 भावाेां के काल
औपशमिक
सादी साांत
अांतिमुहूतु
क्षामिक
सादी
साांत/सादी
अनांत
33 सागर+2
पूर्ु कोमि
कम छ कि
क्षािोपशमिक
सादी साांत/
अनामद साांत
औदमिक
सादी साांत/
अनादी अनांत
पाररणामिक
अनामद
अनांत/
अनादी साांत
(भव्यत्व)
67. 5 भाव समझने से लाभ
• स्वभार् कभी नष्ट नहीां हुआ है और न होगा, इसिें अपनत्व से ही
समख की प्रामि होगी |
• आत्म मनभुरता आती है |
पाररणामिक
• िद्यमप िे रागादी भार् िेरे हैं पर किु सापेक्ष हैं िेरा स्वभार् नहीां
हैं |
• स्वभार् से शमद्ध होने पर भी किु सम्बन्ध से मर्कार पिाुि िें है|
औदमिक
68. 5 भाव समझने से लाभ
• पमरुषार्ु से मर्कार नष्ट होता है |
• एक बार मर्कार नष्ट होने पर पमन: मर्कार नहीां आता, स्वभार् बना रहता है|क्षामिक
• मकसी भी दशा िें स्वभार् की व्यक्तता का पूणुत: अभार् नहीां होता है |
• अनामद से मर्कार करता हुआ भी जीर् जड़ नहीां होता है |क्षािोपशमिक
• सबसे पहले श्रद्धा सम्बन्धी शमद्धा प्राि होती है |
• पाररणामिक भार् के आश्रि से मर्कार दूर होना शमरू होता है |औपशमिक
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69. ➢ Reference : श्री गाेम्मटसाि जीवकाण्ड़जी, श्री जनेरिससद्धारत काेष, तत्त्वार्थसूत्रजी
➢ Presentation created by : Smt. Sarika Vikas Chhabra
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