आयुर्वेद में वर्णित प्रमुख मानसरोग
मुख्य पांच प्रकार (१) वातज (२) पित्तज (३) सन्निपातज (४) आगंतुज
उन्माद की चिकित्सा
दैव व्यापाश्रय चिकित्सा
युक्तिव्यापाश्रय चिकित्सा
सत्वावाजय
उन्माद के कारण एवं लक्षण
ताड़न, मारण, भय दर्शन
उन्माद में आहार-विहार
उन्माद में पंचकर्म की भूमिका
1. उन्माद (MANIA)`
आयुर्वेद ग्रंथों में र्वर्णित मुख्य मास ोग
Diagnosis of Mental Health Problems and
their management in Ayurveda
(DCPIC Paper 4-Unit 4)
2. प्रकु पित दगष जब उन्मा ि ामी
हगको मस में जब पर्वक्षिप्तता
उत्िन्स कोते है तब उ े उन्माद
कहते है|
3. मस, बुद्धि, ंज्ञा(हगश), स्मृतत, भक्तत(रुधि),
शील (स्र्वभार्व), िेष्टा( तत) औो आिाो(व्यर्वहाो)
के पर्वभ्रम (पर्वक्षिप्तता) कग उन्माद कहते है|
उन्माद के िााँि प्रकाो है| (र्वातज, पित्तज, कफज,
क्न्सिातज एर्वं आ ंतुज)
4. मस जब क्ज का धिंतस कोसा िाहहए उ का
धिंतस सह ं कोता औो क्ज का धिंतस सह ं
कोसा िाहहए उ का धिंतस कोता है उ े
मसगपर्वभ्रम कहते है|
5. बुद्धि जब ह कग लत औो लत कग ह
मझसे ल ती है तब उ े बुद्धिपर्वभ्रम कहते
है|
6. ोग ी कग जब अक्नस के दाह आहद का ज्ञास
सह ं ोहता या जब हगश सह ं ोहता तग उ े
ंज्ञापर्वभ्रम कहते है|
7. ोग ी कग जब कक ी घटसा का स्मोण सह ं
ोहता या उ े हदस, ततधथ, र्वाो आहद कु छ भी
याद सह ं ोहता तग उ े स्मृततपर्वभ्रम कहते है|
8. ोग ी की रुधि जब बदल जाती है तग उ े
भक्ततपर्वभ्रम कहते है|
9. िहले जग शांत था र्वह क्रगिी हग जाए या उलटा
हग जाए अथाित स्र्वभार्व बदल जाए तग उ े
शीलपर्वभ्रम कहते है|
10. जब व्यक्तत हाथ-िैो आहद की पर्वधित्र तत
कोता है, उ की िाल बदल जाती है तथा
िेहोे के भार्व बदल जाते है उ े िेष्टापर्वभ्रम
कहते है|
11. आिोण में जब अिपर्वत्रता आहद पर्वकाो आ
जाते है तग उ े आिाोपर्वभ्रम कहते है|
12. र्वातज उन्माद का काोण
• रुखा- ुखा भगजस, शीत भगजस, अल्ि भगजस, अत्यधिक र्वमस-पर्वोेिस,
अत्यधिक िातुिय, अत्यधिक उिर्वा , अत्यधिक धिन्ता े प्रकु पित र्वायु
धिन्ता े ग्रस त मस में प्रर्वेश कोके मस कग दूपषत कोती है तथा बुद्धि तथा
स्मृतत कग शीघ्र सष्ट कोके उन्माद उत्िन्स कोती है|
13. र्वातज उन्माद के लिण
• तसोंतो िरोभ्रमण, आाँखों की िंिलता, व्यथि ह हाथ-िैो हहलासा, साखूस
होे लाल ों के हग जासा, भगजस का िािस जब हग जाए अधिक र्वे हग
जाता है, तत अ म्बन्ि र्वाणी का उच्िाोण, मुख े फे स तसकलसा आहद|
14. पित्तज उन्माद का काोण
• अजीणि, तीखे िदाथों का अधिक ेर्वस, खट्टे िदाथों का अधिक ेर्वस,
पर्वदाह (अत्यंत ोम) अन्स का अधिक ेर्वस, उष्ण प्रकृ तत के िदाथों का
अधिक ेर्वस े प्रकु पित पित्त मस में प्रर्वेश कोके मस कग दूपषत कोता है
तथा बुद्धि तथा स्मृतत कग सष्ट कोके उन्माद उत्िन्स कोता है|
15. पित्तज उन्माद के लिण
• अ हसशीलता, क्रगि, अस्थास में जगश, अस्थास में
सनस हगसा, शस्त्र आहद े खुद कग या दू ोों कग
सुक ास िहुाँिासा, दू ोों कग डोासा, िमकासा,
दौड़सा, छााँर्व में तसर्वा की इच्छा, शीत जल आहद
की इच्छा, अधिक काल तक बुखाो, आाँखों का होा
पिला या लाल हग जासा, आंखों में ुजस, साखूस
िीले हग जासा आहद|
16. कफज उन्माद का काोण
• कक ी भी प्रकाो की िेष्टा स कोसे े
(शाो रोक श्रम बबलकु ल स कोसे े) तथा
अधिक भगजस कोसे े प्रकु पित कफ पित्त के
ाथ मस में प्रर्वेश कोके मस कग दूपषत कोता
है तथा बुद्धि तथा स्मृतत कग सष्ट कोके
उन्माद उत्िन्स कोता है|
17. कफज उन्माद के लिण
• ऐ ा ोग ी बगलता कम है, घूमसा-कफोसा कम कोता है, भगजस में अरुधि हगती
है, क्स्त्रयााँ औो एकांत उ े अधिक पप्रय हगता है, तसद्रा अधिक हगती है, र्वमस
हगता है, मुख े लाो ध ोती है, भगजस कोसे के बाद उन्माद का र्वे बढ़ जाता
है| साखूस, सेत्र, जीभ, शो ो फ़े द हग जाता है|
18. क्न्सिातज उन्माद के काोण एर्वं लिण
• यह अत्यंत भयंको औो तीसों दगषों के दूपषत हगसे े हगता है| तीसों प्रकाो के
उन्माद के समले-जुले लिण हदखते है| एक दगष की धिककत् ा कोसे िो दू ोा
बढ़ जाता है अतः यह अ ाध्य है|
19. आ ंतुज उन्माद के काोण एर्वं लिण
• देर्वता, ऋपष आहद का अिमास कोसे े,
असुधित रूि े िूजा, िाठ आहद कोसे े तथा
पिछले देह के कमों े आ ंतुज उन्माद हगता है|
• उन्माद का मय तसक्चित सह ं हगता, ोग ी के
र्विस, बल, िेष्टाएाँ मसुष्य जै ी सह ं हगती|
20. आ ंतुज
उन्माद के
प्रकाो
• महपषि िोक से आ ंतुज उन्माद के ८ भेद बताये
है|
1. देर्वगन्माद
2. शािगन्माद
3. पितृग्रहगन्माद
4. ंिर्वोंन्माद
5. यिगन्माद
6. ोािशगन्माद
7. ब्रह्मोािशगन्माद