http://spiritualworld.co.in श्री गुरु गोबिंद सिंह जी - ज्योति ज्योत समाना:
श्री गुरु गोबिंद सिंह जी दोनों समय दीवान लगाकर संगत को उपदेश देकर निहाल करते थे| इस समय दो युवक पठान भी दीवान में उपस्थित होकर श्रद्धा भाव से गुरु जी के वचन सुनते|
एक दिन शाम के समय जब गुरु जी अपने तम्बू में विश्राम कर रहे थे तो इनमें से एक पठान गुलखां ने समय ताड़ कर आप जी के पेट में कटार के दो वार कर दिए| गुरु जी ने शीघ्र ही अपने आप को सँभालते हुए उसका सिर एक वार से धड़ से अलग कर दिया| गुलखां का साथी रुस्तमखां जो तम्बू से बाहर खड़ा था उसे पहरेदारों ने मार दिया| इसके पश्चात सिंघो ने नादेड़ नगर से जराह को बुलाकर आपके जख्मों की मरहम पट्टी कराई| तथा रोज ही आप की आरोग्यता के लिए बाणी का पाठ व अरदास करने लगे|
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Shri Guru Gobind Singh Sahib Ji Passing Away - 113a
1.
2. श्री गुर गोबिबिंद िसिंह जी दोबनो सिंमय दीवान लगाकर
सिंंगत कोब उपदेश देकर िनहाल करते थे| इसिं सिंमय दोब
युवक पठान भी दीवान मे उपिस्थत होबकर श्रद्धा भाव सिंे
गुर जी के वचन सिंुनते|
एक िदन शाम के सिंमय जबिं गुर जी अपने तम्बिंू मे
िवश्राम कर रहे थे तोब इनमे सिंे एक पठान गुलखां ने
सिंमय ताड कर आप जी के पेट मे कटार के दोब वार कर
िदए| गुर जी ने शीघ ही अपने आप कोब सिंँभालते हुए
उसिंका िसिंर एक वार सिंे धड सिंे अलग कर िदया| गुलखां
का सिंाथी रस्तमखां जोब तम्बिंू सिंे बिंाहर खडा था उसिंे
पहरेदारो ने मार िदया| इसिंके पश्चात िसिंघोब ने नादेड
नगर सिंे जराह कोब बिंुलाकर आपके जख्मो की मरहम पट्टी
कराई|
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3. तथा रोज ही आप की आरोग्यता के िलिए बाणी का पाठ
व अरदास करने लिगे|
जब गुर जी के जख्म गहरे होने के कारण ठीक होने की
आशा न रही तो िसहो ने बेबस होकर प्राथर्थना की िक
सच्चे पातशाह! हमे आप िकसके पास छोड कर सच्च खंड
की तैयारी कर रहे हो? आपके पीछे हमारी रखवालिी
कौन करेगा|
िसहो की प्राथर्थना सुनकर गुर जी ने श्री गुर ग्रंथ सािहब
का प्रकाश करवाया तथा पांच तैयार िसह हजूरी मे खडे
करके आपने तीन पिरक्रमा करके पांच पैसे व नािरयलि
श्री गुर ग्रंथ सािहब के आगे रखकर माथा टेक कर वचन
िकया िक आज से देहधारी गुर
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4. का िसलििसलिा समाप करके इस वाणी को आत्म प्रकाश
करने वालिी बडे गुर सािहब तथा प्रभु के भक्तो ने
उच्चारण की हुई है, गुर नानक सािहब जी की गुर गद्दी
पर स्थािपत कर िदया| हमारे बाद यह गुर युगो-युग
अटलि रहेगा| िजसने हमारे आित्मक दशर्थन करने हो, वह
इस शब्द गुर के दशर्थन करे और िजसने हमारे पांच भूतक
शरीर के दशर्थन करने हो, तो वह हमारे तैयार बर तैयार
खालिसे के दशर्थन करे|
संवत 1765 वालिे िदन काितक सुदी को आप जी ने
खालिसा पंथ को श्री गुर ग्रंथ सािहब जी के सम्मुख करके
यह वचन िकया|
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5. दोहरा ||
गुर ग्रंथ जी मािनिओ प्रगट गुरां की देह ||
जो प्रभ को िमलबो चहै खोज शबद मे लेह ||
गुर स्थापनिा की मयार्यादा करके गुर जी निे िसिहो को हुक्म
िदया िक हमारा अंगीठा तैयार करो तथा उसिके चारो
तरफ कनिात लगा दो| िसिक्खो निे वैसिा ही िकया|
गुर जी निे िसिहो को बड़ा उदासि देखा और प्रेम सिे वचनि
िकया हे प्यारे िसिहो! अकाल पुरख के िनियम के अनिुसिार
यह अस्थूल शरीर िमलते और िबछड़ते रहते है| इनिका
प्यार कभी निही िनिभता| श्री गुर ग्रंथ सिािहब की बाणी
हमारा ह्रदय है|
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6. रात िदनि इनिके िमलनिे सिे प्रभु के गुणो को अपनिे मनि मे
जोड़निा| इनिकी उपिस्थित मे पांच िसिह जो हुक्म करेगे,
उसिे गुर का हुक्म मानिकर स्वीकार करनिा|
गुरबाणी का पाठ और शास्त्रो का अभ्यासि करनिा| गुर
सिािहब का इितहासि सिुनिनिा| पांच रिहतवानि िसिहो को
मेरा रूप सिमझनिा| जो श्रद्धा सिे पांच िसिहो सिे अरदासि
कराएगा, उसिके सिभी मनिोरथ पूरे होगे|
िसिहो को धैयर्या उपदेश देकर जब आदी रात बीत गई तो
आप जी निे पहले "जपुजी सिािहब" िफर -
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7. "हिर हिर जन दुइिि ऐक है ||
िबब िबचार िकछु नािह ||
जल ते उपज तरंिग जयो जल ही िबखै समािह ||“
आदिद पांच दोहरे पढ़कर अरदास की और इसके पश्चात
मखमल का कमर कस्सा करके िकरपान, धनुष, तीर
तथा हाथ मे बंदूक पकड़कर िसख वीरो को हाथ जोड़कर
"वािहगुर जी का खालसा || वािहगुर जी की फतिह ||"
बुलाई| इस समय िसक्ख संगत सेजल नेत्रो से आदपको
नमस्कार करने लगी, तो उनको आदपके शरीर की कोई
छुह प्राप न हुई| मगर शरीर करके आदपके दशर्शन सबको
हो रहे थे| इस कौतक को अनुभव करके सब संगत ने
हाथ जोड़कर धरती पर शीश रखकर आदप जी को
नमस्कार िकया|
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अिन्तम समय आदप जी ने अपने िसहो को कहा िक अब
तुम सब अपने-अपने घर चले जाना और जथेदार संतोख
िसह को आदज्ञा की िक तुम यहाँ रहकर हमारे स्थान की
सेवा करनी| जो धन आद जाए उससे लंगर चलाना|
यह वचन करके आदप जी कनात अन्दर चले गए और
िचखा ऊपर चौकड़ा मारकर बैठ गए| इसके पश्चात
िचखा को अिग प्रचंड करा कर जयोित मे जयोत िमलाकर
अनंत मे लीन हो गए|
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