Manoj kumar sr. no. 06, kabir kavy me samajik chintan
1. गु ज भे र िव ान एवं तकनीक िव िव ालय
िहसार
Faculty Induction Programme -2
November, 18, 2020 to December,23, 2020
Sr. No. 06
कबीर का म सामािजक चंतन
तुतक ा
मनोज कु मार
सहायक ा यापक, िह दी
राजक य महािव ालय बालसमंद
2. भूिमका :
कबीर का म सामािजकता क बात करते समय सबसे बड़ी धारणा यह होती क वे वभाव से ही समाज सुधारक, युगदृ ा
और स त किव थे । संत श द क प रभाषा य द हम ापक अथ म कर तो इसका अथ होता है :- पिव आ मा, परोपकारी,
सदाचारी । मुिन राम संह ने अपनी रचना पा ड़ दोहा म स त को िनरंजन बताया है, वासुदेव संह ने अपने हंदी सािह य
के समी ा मक इितहास म पृ सं या 74 पर िलखा क कबीर दास ने कहा -िजसका कोई श ु नह , जो िन काम है, ई र
से ेम करता है और िवषय से असंपृ रहता है, वही संत है।
परशुराम चतुवदी ने िलखा “संत श द उस ि क ओर संकेत करता है िजसने सत पी परमत व का अनुभव
कर िलया हो। कबीर ने ऐसे समय म ज म िलया था िजसम भारतवष क सां कृितक आ था का पतन हो रहा था । हम
देखते ह क रामानंद के बाद भि काल म कबीर का ही नाम िलया जाता है । कबीर िनगुण िनराकार के उपासक थे ।
वे चंतन के े म ानी थे। उनके रह यवाद म अ ात स ा के ित िज ासा भाव प रलि त होता है । उनका रह यवाद
िज ासा का फल है, उ ह संसार के येक कण म ि यतम का मधुर प ही दखाई देता है।
3. कबीर का भाव :
कबीर एक ि नह थे बि क एक ि व थे ।
कबीर हंदु के िलए वै णव भ ; मुसलमान के
िलए पीर; िसख के िलए भ ; कबीरपंिथय के िलए
अवतार थे; आधुिनक रा वा दय के िलए हंदू
मुि लम एकता के ित प और नए वेदांितय के िलए
िव धम व मानव धम के वतक; गितशील लोग
क दृि म समाज सुधारक, जाितगत े ता के
िवरोधी, ांितकारी और एकता के तीक थे।
ामािणक रचना :
कबीर क सबसे अिधक ामािणक समझी जाने वाली
रचना म डॉ० यामसुंदरदास ारा संपा दत
कबीर ंथावली, डॉ० रामकुमार वमा ारा संपा दत
संत कबीर, कबीरपंिथय के सं दाय के ंथ बीजक
का उ लेख कया जा सकता है ।
4. समाज म िनगुण ई र क उ ावना
िनगुण ई र म िव ास के प म कबीर ने राम को ही पूजा है । कबीर ने कहा क
उनके राम ने न तो दशरथ के घर ज म िलया है, उसने ना ही रावण को तािड़त
कया है, ना देवक क कोख से ज म िलया है, ना ही उसे यशोदा ने ज म दया
और ना ही वे अवतार थे । उ ह ने कहा क मेरे राम तो घट घट म िव मान ह ।
उसे कह खोजने क आव यकता नह है ।
5. कबीर
कबीर का उ े य एक ऐसे धम का
उपदेश देना था जो सभी जाितय म
एकता थािपत कर सके। कुरीितय ,
बा -आडंबर का िवरोध करते ए
जनमानस को जाग क करने का भरपूर
यास उ ह ने कया। कबीर हंदू होकर
भी हंदू नह थे, मुसलमान होकर
मुसलमान नह थे; वह तो उस ई र के
अन य भ थे जो हमारे अंदर ही ा
है और ेम ही उनका आदश था।
म यकालीन समाज म भेदभाव,
अनाचार, िभचार, ढ़वाद व
आचरण ता अपनी चरम सीमा पर
था। समाज अ त- त था, िविभ
धा मक सं दाय का बोलबाला था,
येक ि कसी न कसी धम म
पड़कर अपनी-अपनी डफली अपना-
अपना राग अलाप रहा था। आपसी ेम,
भाईचारा और सौहा का लेश मा भी
नह था । ऐसे समय म कबीरदास जी ने
आपसी स ाव को बढ़ावा दया।
मू त पूजा पर क र हार: आपसी स ाव:
6. वण- व था पर कड़ा हार
म य काल म वण व था के कारण हंदु के भीतर ा ण, ि य, वै य और
शु के अित र अनेक जाितयां उ प हो चुक थ िजनम ऊं च-नीच, कुलीन-
अकुलीन का भाव पनप चुका था । कबीर ने उस समय चिलत इस जाित और वण
व था का कड़ा िवरोध कया ।
उ ह ने कहा- जाित-पाित पूछे नह कोई,
ह र को भजै सो ह र का होई ।
7. कबीर
कबीर समाज म ा भोग-िवलास, धन- संचय क वृि के घोर िवरोधी थे ।
त कालीन समाज क आ थक ि थित से प रिचत थे। उ ह ने उस भेदभाव को
अपनी आंख से देखा था, भोगा था, अनुभव कया था, उसी को उ ह ने अपनी
वाणी के ारा अपने का म तुत कया।
उनका कहना था- सा इतना दीिजए जामे कुटुंब समाय ।
म भी भूखा ना र ं साधु न भूखा जाए ।।
धन-संचय िवरोध:
8. समाज म पुराण, शा संबंिधत अवधारणा:
कबीर दास जी पुराण, शा आ द के िवचार का गलत चार- सार करने वाल का भी िवरोध
करते दखाई देते ह । वे वतं वेता ि व के वामी थे। इसिलए वे दासता, हीनता, ूरता और शोषण
आ द को जड़ से उखाड़ फकने के िलए हमेशा ही त पर रहते थे ।
भि का प:
कबीरदास जी ने समाज के परंपरागत कमकांड, सां दाियक असिह णुता का बिह कार कया।
उ ह ने समाज म ा पूजा, छापा, माथे पर ितलक आ द सभी को नकार दया, उ ह ने भि का सीधा,
सरल एवं संपूण प िनगुण ई र के प म समाज के सामने रखा।
9. कबीर पढ़े-िलखे नह थे, उ ह ने वयं वीकार कया, कंतु ान शू य भी नह थे । वह अपने जीवन के मण, अनुभव एवं स संग ारा
जीवन के सार त व को ा कर चुके थे। उनका ान अनुभव ज य था इसी कारण वे समाज म अिधक लोकि य हो पाए । उ ह यह ान
ा करने के िलए कसी पवत या कसी जंगल म तप या करने के िलए नह जाना पड़ा यह ान उ ह अपने चार तरफ फैले समाज
और अपने अनुभव से ही ा आ और वह था मानवता क सेवा, मानवता का जागरण। यही ान येक मानव अपने वहार म
धारण कर ले तो उनका जीवन सफल हो जाए।
समाज म ि को समझाते ए उ ह ने कहा क मनु य को सबसे पहले अपने मन और तन क बुराई देखनी चािहए, उसे अपने अंदर
झांकना चािहए । अपना वभाव शांत रखने वाले अपने आप को हीन समझ सकते ह, परंतु अिभमानी ि दूसरे को बुरा और वयं
को अ छा समझते ह ।
उ ह ने कहा- बुरा जो देखन म चला, बुरा न िमिलया कोय ।
जो दल खोजा आपना मुझसे बुरा न कोय । ।
ान ाि आधार:
आंत रक मन म झांकने क नसीहत :
10. मानव सेवा सव प र:
कबीर दास जी ने मानवता क सेवा को अपने जीवन का सबसे बड़ा धम बताया । उ ह ने
कहा समाज सेवा ही सव म सेवा है। समाज सेवा के िबना मनु य क गित संभव नह है ।
उ ह ने कहा-
सेवक सेवा म रहे अनंत क नह जाय,
दुख सुख िसर ऊपर सहै, कह कबीर समझाय।
11. िन कष :
कबीर दास जी ने ऐसे समाज क क पना क िजसम ना कोई हंदू, ना कोई मुसलमान, ना
ा ण, न कोई शू , न िनधन, न बलशाली, ना कोई कमजोर, ना मं दर, ना मि जद, त
माला,छापा, ितलक, रोजा, नमाज आ द का झंझट ना हो । जीवन िब कुल शांत, सरल वभाव
से जीया जाए, उसे ही समाज म कबीरदास जी ने मा यता दी है।
इस कार कबीरदास जी गौतम बु , गांधी और अंबेडकर जैसे ांितका रय क ेणी म रखे जा
सकते ह । एक समाज सुधारक क सबसे बड़ी पहचान यही होती है क वह अपने युग क
िवसंगितय को पहचानकर, एक मौिलक व समयानुकूल धारणा तुत करे, उ ह म से एक थे
कबीरदास ।
सुिखया सब संसार है, खावे अ सोए
दुिखया दास कबीर है, जागे अ रोए ।