दमा के लक्षण व उपचार: (http://spiritualworld.co.in)
श्वसन-संस्थान से सम्बंधित एक भयावह रोग दमा या अस्थमा है| यह श्वास नली का रोग है| श्वास नली में सूजन हो जाने से यह रोग भुक्त भोगी को चैन से नहीं बैठने देता| दमा रोग के पांच प्रकार बताए गए हैं - महश्वास, नूपर की श्वास, छिन्न श्वास, निम्न श्वास तथा छोटी श्वास| यह श्वासवाही तंत्रों में व्याधि उत्पन्न करने वाला रोग है, इसलिए रोगी को बहुत सावधान रहना चाहिए|
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श्वसन-संस्थान से सम्बंिधित एक भयावह रोग दमा या
अस्थमा है| यह श्वास नली का रोग है| श्वास नली मे
सूजन हो जाने से यह रोग भुक भोगी को चैन से नही
बैठने देता| दमा रोग के पांच प्रकार बताए गए है -
महश्वास, नूपर की श्वास, िछिन श्वास, िनम श्वास तथा
छिोटी श्वास| यह श्वासवाही तंत्रो मे व्यािधि उत्पन करने
वाला रोग है, इसिलए रोगी को बहुत सावधिान रहना
चािहए|
कारण - यह बड़ी कष्टप्रद बीमारी मानी जाती है| इस
हम 'एलिजक बीमारी' कह सकते है| धिूल के कण, धिुआं
आिद श्वास निलका मे प्रवेश करने के कारण यह रोग हो
जाता है|
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शराब, बासी, ठंडा एवं रूखा भोजन करने, मूत्र तथा
मल रोकने, मूली खाकर पानी पी लेने आिद के कारण
श्वास निलयो और फे फड़ो मे पहले कफ जमता है, िफर
सूखा जाता है| ऐसी हालत मे प्राणवायु से लेकर कंठ तक
उदान वायु िमल जाती है िजसके कारण सांस लेने मे
किठनाई होती है और यह रोग हो जाता है| इसमे पहले
खांसी होती है, िफर गहरी सांसे आने लगती है|
पहचान - इस रोग मे श्वास ऊपर-नीचे की तरफ तेजी
से चलती है| जब कफ मुख मे आ जाता है तो सांस फू ल
जाती है| श्वास से दु:खी होकर आंखो मे भ्रम, मोह तथा
ग्लािन के लक्षण पैदा हो जाते है| कई बार अफरा की
िशकायत हो जाती है|
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माथे तथा कंठ के ऊपरी भाग मे पसीना आता है और
श्वास भरते समय आंखे लाल हो जाती है| चेतना जाती
रहती है| शरीर का रंग काला-सा पड़ जाता है| कफ
िनकलने मे किठनाई होती है क्योंकिक कफ काफी गाढ़ा
तथा दुर्गर्गंध भरा होता है| पाचन शिक कमजोर पड़
जाती है| दमे का दौरा सुर्बह-शाम पड़ता है| रोगी काफी
घबरा जाता है| उसको लगता है, जैसे उसकी मृत्युर्
िनकट है| वायुर् कंठ के नीचे भर जाती है और गुर्ड़गुर्ड़ की
आवाज होती है| श्वास का वेग सोते समय भी रहता है
तथा नींद नहीं आती| आंखोंक मे सूजन, धौंकनी के समान
श्वास लेने आिद के लक्षण बार-बार िदखाई देते है|
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नुर्सखे - कड़वे तेल को गरम करके उसमे जरा-सा नमक
डाले| िफर उसको सुर्हाता-सुर्हाता रोगी की छाती पर
मले|
• अदरक का रस एक चम्मच तथा शहद आधा चम्मच
िमलाकर चाटे|
• पेठे की जड़ िनकालकर सुर्खा ले| िफर उसे पीसकर चूणर
बनाएं| इसमे से 5 ग्राम चूणर गरम पानी के साथ सेवन
करे|
• हल्दी, कालीिमचर, कचूर, िकशिमश और पीपल - सभी
10-10 ग्राम की मात्रा मे लेकर पीस डाले| इसमे थोड़ा-
सा पुर्राना गुर्ड़ िमलाकर झरबेरी के बेर के बराबर
गोिलयां बना ले| सुर्बह-शाम एक-एक गोली पानी के
साथ खाएं|
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• धतूरे के दो बीज प्रतितिदन एक माह तक खाएं| दमा नष
हो जाएगा|
• 30 ग्राम आक के पेड़ की कोंकपले, 50 ग्राम अजवायन
तथा 50 ग्राम पुर्राना गुर्ड़ - तीनोंक को पीसकर चटनी
बना ले| इसमे से 4 ग्राम चटनी सुर्बह-शाम गरम पानी
से खाएं|
• लौकी को उबालकर उसके 50 ग्राम रस मे शहद
िमलकर िपएं|
• एक रत्ती फू ली हुई िफटिकरी मुर्ंह मे डालकर चूसे|
• प्याज का रस 10 ग्राम, लहसुर्न का रस 3 ग्राम और
तुर्लसी के पत्तोंक का रस 5 ग्राम - इन रसोंक मे शहद
िमलाकर िनत्य 40 िदनोंक तक सेवन करे|
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• कपूर को उबलते पानी मे डालकर िदिन मे तीन-चार
बार सूंघे| श्वसन सम्बंधी रोिगियो के िलए यह काफी
लाभदिायक होता है|
• 10 बूंदिे नीम का तेल पान पर डालकर खाएं|
• पीपल, कालीिमचर, सोठ तथा चीनी-सभी 50-50
ग्राम लेकर चूण र बना ले| प्रतितिदिन सुबह-शाम 5-5 ग्राम
चूण र गिुनगिुने पानी से ले|
• 5 ग्राम मुलहठी का चूण र एक कप पानी मे उबालकर
चाय की तरह िपएं| लगिभगि दिो माह मे यह रोगि चला
जाएगिा|
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• 1 ग्राम भुना नीला थोथा, 2 ग्राम आक का दिूध तथा
10 ग्राम गिुड़ - तीनो को िमलाकर दिो माता करे| इसे
सुबह-शाम गिरम पानी के साथ ले|
• शलजम, गिाजर, पतागिोभी तथा सेम की फली का
आधा-आधा कप रस िमलाकर गिरम करके जरा-सा सेधा
नमक डालकर सुबह-शाम िपएं|
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• 5 ग्राम अड़ूसा (बांसा), 5 ग्राम अदिरक तथा 10 ग्राम
शहदि - तीनो को िमलाकर िदिन मे चार-चार घंटे बादि
सेवन करे| 40 िदिन लगिातार यह नुसखा लेने से दिमा जड़
से नष हो जाएगिा|
• पीपल की गिुलिड़यो (फल) को सुखा-पीसकर चूण र बना
ले| 4 ग्राम चूण र सुबह और 4 ग्राम शाम को शहदि के
साथ सेवन करे| यह नुसखा 60 िदिनो तक लेने से दिमा मे
काफी लाभ होता है|
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• कुलथी को पानी मे उबालकर पीने से श्वास रोग चला
जाता है|
• लहसुन तथा बादाम के तेल की मािलश छाती एवं पीठ
पर करे|
• प्रतितिदन खाली पेट दो अंजीर खाएं| कफ बाहर िनकल
जाएगा तथा दमे का रोग नष होगा|
• िबना दूध की गरम चाय दमे का दौरा पड़ने पर िपएं|
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• हरिसगार के पेड़ (पौधा) की छाल को पानी मे
उबालकर िपएं|
• प्रतितिदन दो चम्मच करेले के रस मे जरा-सा नमक
िमलाकर िपएं|
• हरे गेहूं के पौधे का रस आधा-आधा चम्मच िदन मे दो
बार ले|
• हल्दी को रेत मे भूनकर पीस ले| इसे एक चम्मच की
मात्रा मे दो बार गरम पानी से ले|
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कया खाएं कया नही - प्रतितिदन जाड़े के मौसम मे
रोगी को धूप का सेवन करना चािहए| तरोई, लौकी,
पालक, गाजर, पेठा, कच्चा पपीता आिद की सिब्जयां
चपाती के साथ ले| चना, मूंग की दाल, अरहर, उरद
तथा काली मलका की दाल न खाएं| ठंडी चीजो जैसे
दही, खोया, िमठाई, िफ्रिज मे रखा सामान, केला,
अनार, अमरूद, सेब, ककड़ी, तरबूज, खरबूजा,
चचीड़ा, िसघाड़ा आिद का सेवन न करे| दूध मे एक
लौंग तथा एक गांठ अदरक डालकर िपएं| बकरी के दूध
का सेवन अिधक करे| बादाम का छौंका िपएं| खट्टे-
पदाथर, नाशपाती तथा नीबू का सेवन न करे|