http://spiritualworld.co.in श्री गुरु अंगद देव जी - गुरु गद्दी मिलना:
सिखों को श्री लहिणा जी की योग्यता दिखाने के लिए तथा दोनों साहिबजादो, भाई बुड्डा जी आदि और सिख प्रेमियों की परीक्षा के लिए आप ने कई कौतक रचे, जिनमे से कुछ का वर्णन इस प्रकार है:-
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2. िसिखो को श्री लहिहिणा जी की योग्यता िदिखाने के िलहए
तथा दिोनो सिािहिबजादिो, भाई बुड्डा जी आदिदि और िसिख
प्रेिमियो की परीक्षा के िलहए आदप ने कई कौतक रचे,
िजनमिे सिे कुछ का वर्णर्णन इसि प्रकार हिै:-
• गुर जी ने एक िदिन रात के सिमिय अपने िसिखो वर्
सिपुत्रो को बारी-२ सिे यहि कहिा िक हिमिारे वर्स नदिी पर
धो कर सिुखा लहाओ| पुत्रो ने कहिा,"अब रात आदरामि करो
िदिन िनकलहे धो लहायेंगे|" िसिखो ने भी आदज्ञा ना मिानी|
पर लहिहिणा जी उसिी सिमिय आदपके वर्स उठाकर धोने चलहे
गए और सिुखा कर वर्ािपसि लहाए|
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3. • एक िदिन गुर जी के िनवास स्थान पर चूहिहिया मरी
पड़ी थी| गुर जी ने लखमी दिास व श्री चंदि के साथ और
िसखो को भी कहिा िक बेटा! यहि मृत चूहिहिया बाहिर फें क
दिो| बदिबूह के कारण िकसी ने भी गुर जी िक बात िक
परवाहि नहिी िक| िफर गुर जी ने कहिा, पुरष! यहि मृत
चूहिहिया फें क कर फश र साफ कर दिो| तब भाई लिहिणा जी
श ीघ्रता से चूहिहिया पकडकर बाहिर फें क दिी और फश र
धोकर साफ कर िदिया|
• एक िदिन गुर जी ने कंसी का एक कटर कीचड वाले
पानी में फें क कर कहिा िक हिमारा कीचड़ में िगरा कटोरा
साफ करके लाओ| वस खराब हिोने के डर से बेटो व
िसखो ने इंकार कर िदिया| पर लिहिणा जी उसी समय
कीचड़ वाले गड्डे में चले गए और कटोरा साफ करके गुर
जी के समक आये|
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4. • एक बार लगातार बािरश के कारण लंगर का प्रबंध
ना हिो सका| गुर जी जी ने सबको कहिा िक इसी सामने
वाले िककर के वृक पर चढ़कर उसे िहिलाकर िमठाई
झाड़ो| सब ने कहिा, महिाराज! कीकरो पर भी िमठाई
हिोती हिै, जो िहिलाने पर नीचे िगरेगी? संगत के सामने
हिमे श िमदिा क्यो करवाते हिो? तब गुर जी ने भाई
लिहिणा को कहिा, पुरष! तुम हिी िककर को िहिलाकर
संगत को िमठाई िखलाओ| संगत भूहखी हिै| गुर जी का
आदिेश मान कर भाई जी ने वैसा हिी िकया| वृक के िहिलते
हिी बहुत सारी िमठाई नीचे िगरी, िजसे खाकर संगत तृप
हिो गई|
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5. • एक िदिन गुर जी ने मैले कुचैले वस पहनकर, हाथ मे
कट्टार व डंडा पकड़कर, कमर पर रस्से बांध िलए व चार
पांच कुत्ते पीछे लगा िलए| काटने के भय से कोई भी गुर
जी के नजदिीक ना आये| तत्पश्चात जब गुर जी जंगल
पहुँचे तो केवल पांच िसख, बाबा बुड्डा जी व लिहणा जी
साथ रह गए| गुर जी ने अपनी माया के साथ चादिर मे
लपेटा हुआ मुदिार िदिखाया व िसखो को खाने के िलए
कहा| यह बात सुनकर दिूसरे िसख वृक के पीछे जा खड़े
हुए,पर भाई लिहणा जी वही खड़े रहे| गुर जी ने उनसे
ना जाने का कारण पूछा तो भाई कहने लगे, मेरे तो तुम
ही तुम हो, मे कहा जाऊँ ? तब गुर जी ने कहा अगर नही
जाना तो इस मुदिे को खाओ| भाई जी ने गुर जी से पूछा,
महाराज! िकस तरफ से खाऊँ , िसर या पाँव िक तरफ
से?
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6. गुर जी ने उत्तर िदिया पाँव िक तरफ से| जब लिहणा जी
गुर जी का वचन मानकर पाँव वाला कपडा उठाया तो
वहाँ मुदिे िक जगह कड़ाह का परसादि प्रतीत हुआ| जब
भाई जी खाने को तैयार हुए तो गुर जी ने उन्हे अपनी
बाहो मे लेकर कहा िक हमारे अंग के साथ लगकर आप
अंगदि हो गए|
इस तरह आपको अपनी गद्दी का योग्य अिधकारी
जानकर 17 आषाढ संवत 1516 को पांच पैसे व
नािरयल आप जी के आगे रखकर तीन पिरक्रमा िक और
पहले खुदि माथा टेका,िफर संगत से िटकवाया|
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7. उसके पश्चात् वचन िकया िक आज से इन्ही को मेरा ही
रूप समझना, जो इनको नही मानेगा वो हमारा िसख
नही है| गुर जी िक आज्ञा मानकर सभी ने गुर अंगद देव
जी को माथा टेक िदया मगर दोनो सािहबजादो ने यह
कहकर माथा टेकने से इंकार कर िदया िक हम अपने एक
सेवक को माथा टेकते अछे नही लगते|
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