3. 3
त ां तु र मकथ ां श्रुत्व , वैदेही व नरर्षभ त्।
उवाच वचनां स न्तत्व-ममदां मधुरय गिर ।।5.35.1।।
क्व ते र मेण सांसिषः, कथां जानासस लक्ष्मणम्।
व नर ण ां नर ण ां च, कथमासीत्सम िमः।।5.35.2।।
य नन र मस्य मलङ्ि नन, लक्ष्मणस्य च व नर।
त नन भूयस्समाचक्ष्व, न म ां शोकस्समाववशेत ्।।5.35.3।।
कीदृशां तस्य सांस्थ नां, रूपां र मस्य कीदृशम्।
कथमूरू कथां ब हू, लक्ष्मणस्य च शिंस मे।।5.35.4।।
एवमुक्तस्तु वैदेह्य , हनुम न्तम रुत त्मजः।
ततो र मां यथ तत्त्व-म ख्य तुमुपचक्रमे।।5.35.5।।
4. 4
ज नन्तती बत ददष्ट्य , म ां वैदेदह परिपृच्छसस।
भतुषः कमलपत्र क्षि, सांस्थ नां लक्ष्मणस्य च।।5.35.6।।
य नन र मस्य गचह्न नन, लक्ष्मणस्य च य नन वै।
लक्षित नन ववश ल क्षि, वदतश्शृणु त नन मे।।5.35.7।।
र मः कमलपत्र ि-स्सवषसत्त्वमनोहरः।
रूपद क्षिण्यसम्पन्तनः, प्रसूतो जनक त्मजे।।5.35.8।।
तेजस ऽददत्य सङ्क शः, िमय पृगथवीसमः।
बृहस्पनतसमो बुद्ध्य , यशस व सवोपमः।।5.35.9।।
रक्षित जीवलोकस्य, स्वजनस्य मभरक्षित ।
रक्षित स्वस्य वृत्तस्य, धमषस्य च परन्ततपः।।5.35.10।।
5. 5
र मो भ ममनन लोकस्य, च तुवषण्यषस्य रक्षित ।
मय षद न ां च लोकस्य, कत ष क रनयत च सः।।5.35.11।।
अगचषष्टम नगचषतोऽत्यथं, ब्रह्मचयषव्रते स्स्थतः।
स धून मुपक रज्ञः, प्रच रज्ञश्च कमषण म्।।5.35.12।।
र जववद्धय ववनीतश्च, ब्र ह्मण न मुप मसत ।
श्रुतव न्तशीलसम्पन्तनो, ववनीतश्च परन्ततपः।।5.35.13।।
यजुवेदववनीतश्च, वेदववद्धमभस्सुपूस्जतः।
धनुवेदे च वेदेर्ु, वेद ङ्िेर्ु च ननस्ष्टितः।।5.35.14।।
ववपुल ांसो मह ब हुः, कम्बुग्रीवश्शुभ ननः।
िूढजरुस्सुत म्र िो, र मो देवव जनैश्श्रुतः*।।5.35.15।।
22. 22
भूय एव मह तेज , हनूम न्तपवन त्मजः।
अब्रवीत्प्रगश्रतां व क्यां, सीत प्रत्ययक रण त्।।5.36.1।।.
व नरोऽहां मह भ िे, दूतो र मस्य धीमतः।
र मन म ङ्ककतां चेदां, पश्् देर्वयङ्िुलीयकम्।।5.36.2।।
प्रत्यय थं तव ऽनीतां, तेन दत्तां मह त्मन ।
सम श्वमसदह भरां ते, िीणदुःखफल ह््सस।।5.36.3।।
िृहीत्व प्रेिम ण स , भतुषः करववभूर्णम्।
भत षरममव सम्प्र प्त , ज नकी मुददत ऽिवत्।।5.36.4।।
च रु तद्धवदनां तस्य -स्त म्रशुक्ल यतेिणम्।
अशोित ववश ल क्ष्य , र हुमुक्त इवोडुर ्।।5.36.5।।
23. 23
ततस्स िीमती ब ल , भतृषसन्तदेशहवर्षत ।
पररतुष्टट वप्रयां कृ त्व , प्रशशिंस मह कवपम्।।5.36.6।।
ववक्र न्ततस्त्वां समथषस्त्वां, प्र ज्ञस्त्वां व नरोत्तम।
येनेदां र िसपदां, त्वयैक
े न प्रधवर्षतम्।।5.36.7।।
शतयोजनववस्तीणष-स्स िरो मकर लयः।
ववक्रमश्ल र्घनीयेन, क्रमत िोष्टपदीकृ तः।।5.36.8।।
न दह त्व ां प्र कृ तां मन्त्े, व नरां व नरर्षभ।
यस्य ते नान्स्त सन्तर सो, र वण न्तन वप सम्भ्रमः।।5.36.9।
अर्गसे च कवपश्रेष्टि, मय सममभभ वर्तुम्।
यद््सस प्रेवर्तस्तेन, र मेण ववददत त्मन ।।5.36.10।।
24. 24
प्रेषत्ष््तत दुधषर्ो, र मो न ह्यपरीक्षितम्।
पर क्रममववज्ञ य, मत्सक शां ववशेर्तः।।5.36.11।।
ददष्ट्य च क
ु शली र मो, धम षत्म सत्यसङ्िरः।
लक्ष्मणश्च मह तेज -स्सुममर नन्तदवधषनः।।5.36.12।।
क
ु शली यदद क क
ु त्स्थः, ककां नु स िरमेखल म्।
महीां दर्तत कोपेन, युि न्तत स्ग्नररवोस्त्थतः।।5.36.13।।
अथव शस्क्तमन्ततौ तौ, सुर ण मवप ननग्रहे।
ममैव तु न दुःख न -मन्स्त मन्त्े ववपयषयः।।5.36.14।।
कस्च्छ्चन्तन र्वयगथतो र मः, कस्च्छ्चन्तन परितप््ते।
उत्तर णण च क य षणण, क
ु रुते पुरुर्ोत्तमः।।5.36.15।।
25. 25
कस्च्छ्चन्तन दीनस्सम्भ्र न्ततः, क येर्ु न च मुह््तत।
कस्च्छ्चत्पुरुर्क य षणण, क
ु रुते नृपतेस्सुतः।।5.36.16।।
द्धववववधां त्ररववधोप य-मुप यमवप सेवते।
ववन्जर्ीषुस्सुहृत्कस्च्छ्च-स्न्तमरेर्ु च परन्ततपः।।5.36.17।।
कस्च्छ्चस्न्तमर णण लिते, ममरैश्च प््सिर्म््ते।
कस्च्छ्चत्कल्य णममत्रश्च, ममरत्रैश्च वप पुरस्कृ तः।।18।।
कस्च्छ्चद श स्स्त देव न ां, प्रस दां प गथषव त्मजः।
कस्च्छ्चत्पुरुर्क रां च, दैवां च प्रततपद््ते।।5.36.19।।
कस्च्छ्चन्तन ववितस्नेहः, प्रव स न्तमनय र र्घवः।
कस्च्छ्चन्तम ां र्वयसन दस्म -न्तमोक्षत्ष््तत व नर।।5.36.20।
26. 26
सुख न मुगचतो ननत्य-मसुख न मनौगचतः।
दुःखमुत्तरम स द्धय, कस्च्छ्चर मो न सीदतत।।5.36.21।।
कौसल्य य स्तथ कस्च्छ्च-त्सुममर य स्तथैव च।
अभीक्ष्णां श्रू्ते कस्च्छ्च-त्क
ु शलां भरतस्य च।।5.36.22।।
मस्न्तनममत्तेन म न हषः, कस्च्छ्चच्छ्छोक
े न र र्घवः।
कस्च्छ्चन्तन न्तयमन र मः, कस्च्छ्चन्तम ां ताित्ष््तत।।23।।
कस्च्छ्चदिौदहणीां भीम ां, भरतो भ्र तृवत्सलः।
्वस्जनीां मस्न्तरमभिुषप्त ां, प्रेषत्ष््तत मत्कृ ते।।5.36.24।।
व नर गधपनतश्शीम -न्तसुग्रीवः कस्च्छ्चदेष््तत।
मत्कृ ते हररमभवीरैवृषतो, दन्ततनख युधैः।।5.36.25।।
27. 27
कस्च्छ्चच्छ्छ लक्ष्मणश्शूर-स्सुममर नन्तदवधषनः।
अस्रववच्छ्छरज लेन, र िस न्न्तवधसमष््तत।।5.36.26।।
रौरेण कस्च्छ्चदस्रेण, ज्वलत ननहतां रणे।
द्रक्ष््ाम््ल्पेन क लेन, र वणां ससुहृज्जनम्।।5.36.27।।
कस्च्छ्चन्तन तद्धधेमसम नवणं, तस्य ननां पद्धमसम निस्न्तध।
मय ववन शुष््तत शोकदीनां, जलिये
पद्धमममव तपेन।।28।।
धम षपदेश त्त्यजतश्च र ज्यां म ां, च प्यरण्यां नयतः पद नतम्।
नासीद्र्व्थ यस्य न भीनष शोकः,
कस्च्छ्चत्स धैयं हृदये किोतत।29।।
28. 28
न च स्य म त न वपत च न न्तयः,
स्नेह द्धववमशष्टटोऽन्स्त मय समो व ।
त वत्त्वहां दूत स्जजीववर्ेयां,
य वत्प्रवृवत्तां शृणुय ां वप्रयस्य।।5.36.30।।
इतीव देवी वचनां मह थं, तां व नरेन्तरां मधुर थषमुक्त्व ।
श्रोतुां पुनस्तस्य वचोऽमभर मां, र म थषयुक्तां ववरर म र म ।।
सीत य वचनां श्रुत्व , म रुनतभीमववक्रमः।
मशरस्यञ्जमलम ध य, व क्यमुत्तरमब्रवीत्।।5.36.32।।
न त्व ममहस्थ ां ज नीते, र मः कमललोचने।
तेन त्व ां नान्त््ाशु, शचीममव पुरन्तदरः।।5.36.33।।
29. 29
श्रुत्वैव तु वचो मह्यां, क्षिप्रमेष््तत र र्घवः।
चमूां प्रकर्षन्तमहतीां, हयृषििणसङ्क
ु ल म्।।5.36.34।।
ववष्टटम्भनयत्व ब णौर्घै-रिोभयां वरुण लयम्।
करिष््तत पुरीां लङ्क ां, क क
ु त्स्थः श न्ततर िस म्।।35।।
तर यद्धयन्ततर मृत्यु-यषदद देव स्सह सुर ः।
स्थास््न्न्तत पगथ र मस्य, स त नवप वधधष््तत।।5.36.36।
तव दशषनजेन ये, शोक
े न स पररप्लुतः।
न शमष लिते र म-स्स्सांह ददषत इव द्धववपः।।5.36.37।।
मलयेन च ववन्त्येन, मेरुण मन्तदरेण च।
ददुषरेण च ते देवव, शपे मूलफलेन च।।5.36.38।।
30. 30
यथ सुनयनां वल्िु, त्रबम्बोष्टिां च रु क
ु ण्डलम्।
मुखां द्रक्ष््सस र मस्य, पूणषचन्तरममवोददतम्।।5.36.39।।
क्षिप्रां द्रक्ष््सस वैदेदह, र मां प्रस्रवणे गिरौ।
शतक्रतुममव सीनां, न िर जस्य मूधषनन।।5.36.40।।
न म ांसां र र्घवो िुङक्ते, न च ऽवप मधु सेवते।
वन्तयां सुववदहतां ननत्यां, भक्तमश्नातत पञ्चमम्।।5.36.41।।
नैव दांश न्तन मशक न्तन, कीट न्तन सरीसृप न्।
र र्घवोऽपनयेद्धि र -त्त्वद्धितेन न्ततर त्मन ।।5.36.42।।
ननत्यां ्य नपरो र मो, ननत्यां शोकपर यणः।
न न्तयन्च्चन्तत्ते ककस्ञ्च-त्स तु क मवशां ितः।।5.36.43।।
31. 31
अननरस्सततां र म-स्सुप्तोऽवप च नरोत्तमः।
सीतेनत मधुर ां व णीां, र्वय हरन्तप्रततबुध््ते।।5.36.44।।
दृष्ट्व फलां व पुष्टपां व , यद्धव ऽन्तयत्सुमनोहरम्।
बहुशो ह वप्रयेत्येवां, श्वसांस्त्व मसििाषते।।5.36.45।।
स देवव ननत्यां पररतप्यम न-स्त्व मेव सीतेत्यमभभ र्म णः।
धृतव्रतो र जसुतो मह त्म , तवैव ल भ य कृ तप्रयत्नः।।46।
स र मसङ्कीतषनवीतशोक , र मस्य शोक
े न सम नशोक ।
शरन्तमुखे स म्बुदशेर्चन्तर , ननशेव वैदेहसुत बिूव।।47।।
इत्य र्े श्रीमर म यणे व ल्मीकीये आददक र्वये सुन्तदरक ण्डे
र््त्ररांशस्सिषः।।
33. 33
सीत तद्धवचनां श्रुत्व , पूणषचन्तरननभ नन ।
हम मन्ततमुवाचेदां, धम षथषसदहतां वचः।।5.37.1।।
अमृतां ववर्सांसृष्टटां, त्वय व नर भ वर्तम्।
यच्छ्च न न्तयमन र मो, यच्छ्च शोकपर यणः ।।5.37.2।।
ऐश्वये व सुववस्तीणे, र्वयसने व सुद रुणे।
रज्ज्वेव पुरुर्ां बद्ध्व , कृ त न्ततः पररकर्षनत।।5.37.3।।
ववगधनूषनमसांह यषः, प्र णणन ां प्लविोत्तम।
सौममत्ररां म ां च र मां च, र्वयसनै: पश्् मोदहत न्।।5.37.4।।
शोकस्य स्य कद प रां, र र्घवोऽधधर्समष््तत।
प्लवम नः पररश्र न्ततो, हतनौस्स िरे यथ ।।5.37.5।।
34. 34
र िस न ां वधां कृ त्व , सूदनयत्व च र वणम्।
लङ्क मुन्तमूमलत ां कृ त्व , कद द्रक्ष््तत म ां पनतः।।5.37.6।।
स व च्छ्यस्सांत्वरस्वेनत, य वदेव न पू्गते।
अयां सांवत्सरः क ल-स्त वद्धगध मम जीववतम्।।5.37.7।।
वतषते दशमो म सो, द्धवौ तु शेर्ौ प्लवङ्िम।
र वणेन नृशांसेन, समयो यः कृ तो मम।।5.37.8।।
ववभीर्णेन च भ्र र , मम ननय षतनां प्रनत।
अनुनीतः प्रयत्नेन, न च तत्क
ु रुते मनतम्।।5.37.9।।
मम प्रनतप्रद नां दह, र वणस्य न िोचते।
र वणां म िषते सांख्ये, मृत्युः क लवशां ितम्।।5.37.10।।
35. 35
ज्येष्टि कन्तय नल न म, ववभीर्णसुत कपे।
तय ममेदम ख्य तां, म र प्रदहतय स्वयम्।।5.37.11।।
असांशयां हररश्रेष्टि, क्षिप्रां म ां प्राप्स््ते पनतः।
अन्ततर त्म च मे शुद्धध-स्तस्स्मांश्च बहवो िुण ः।।12।।
उत्स हः पौरुर्ां सत्त्व-म नृशांस्यां कृ तज्ञत ।
ववक्रमश्च प्रभ वश्च, सस्न्तत व नर र र्घवे।।5.37.13।।
चतुदषशसहस्र णण, र िस न ां जघान यः।
जनस्थ ने ववन भ्र र , शरुः कस्तस्य नोद्ववजेत्।।14।।
न स शक्यस्तुलनयतुां, र्वयसनैः पुरुर्र्षभः।
अहां तस्य प्रभ वज्ञ , शक्रस्येव पुलोमज ।।5.37.15।।
36. 36
शरज ल ांशुम न्तशूरः, कपे र मददव करः।
शरुरिोमयां तोय-मुपशोर्ां नत्ष््तत।।5.37.16।।
इनत सञ्जल्पम न ां त ां, र म थे शोककमशषत म ्।
आश्रुसम्पूणषनयन -मुवाच वचनां कवपः।।5.37.17।।
श्रुत्वैव तु वचो मह्यां, क्षिप्रमेष््तत र र्घवः।
चमूां प्रकर्षन्तमहतीां, हयृषििणसङ्क
ु ल म ्।।5.37.18।।
अथव मोचत्ष््ासम, त्व मद्धयैव वर नने।
अस्म द्धधुःख दुप रोह, मम पृष्टिमननस्न्तदते।।5.37.19।।
त्व ां दह पृष्टिित ां कृ त्व , सन्ततरिष््ासम स िरम ्।
शस्क्तिन्स्त दह मे वोढुां, लङ्क मवप सर वण म ्।।20।।
37. 37
अहां प्रस्रवणस्थ य, र र्घव य द्धय मैगथमल।
प्रापत्ष््ासम शक्र य, हर्वयां हुतममव नलः।।5.37.21।।
रक्ष्यस्यद्धवैव वैदेदह, र र्घवां सहलक्ष्मणम्।
र्वयवस यसम युक्तां, ववष्टणुां दैत्यवधे यथ ।।5.37.22।।
त्वद्धदशषनकृ तोत्स ह-म श्रमस्थां मह बलम्।
पुरन्तदरममव सीनां, न िर जस्य मूधषनन।।5.37.23।।
पृष्टिम रोह मे देवव, म ववकाङ्क्क्षस्व शोभने।
योिमस्न्तवच्छ्छ र मेण, शश ङ्क
े नेव रोदहणी।।5.37.24।।
कथयन्ततीव चन्तरेण, सूयेण च मह गचषर् ।
मत्पृष्टिमगधरुह्य त्वां, तर क शमह णषवौ।।5.37.25।।
38. 38
न दह मे सम्प्रय तस्य, त्व ममतो नयतोऽङ्िने।
अनुिन्ततुां िनतां शक्त -स्सवे लङ्क ननव मसनः।।5.37.26।।
यथैव हममह प्र प्त-स्तथैव हमसांशयः।
्ास््ासम पश्य वैदेदह, त्व मुद्धयम्य ववह यसम्।।5.37.27।
मैगथली तु हररश्रेष्टि -च्छ्ुत्व वचनमद्धभुतम्।
हर्षववस्स्मतसव षङ्िी, हनुमन्ततमथाब्रवीत्।।5.37.28।।
हनुमन्तदूरम्व नां, कथां म ां वोढुसमच्छसस।
तदेव खलु ते मन्तये, कवपत्वां हररयूथप।।5.37.29।।
कथां व ल्पशरीरस्त्वां, म ममतो नेतुसमच्छसस।
सक शां म नवेन्तरस्य, भतुषमे प्लविर्षभ।।5.37.30।।
39. 39
सीत य वचनां श्रुत्व , हनुम न्तम रुत त्मजः।
धचन्तत्ामास लक्ष्मीव -न्तनवां पररभवां कृ तम्।।5.37.31।।
न मे जानातत सत्त्वां व , प्रभ वां व ऽमसतेिण ।
तस्म त्पश््तु वैदेही, यरूपां मम क मतः।।5.37.32।।
इनत सस्ञ्चन्तत्य हनुम ां-स्तद प्लविसत्तमः।
दशग्ामास वैदेह्य -स्स्वरूपमररमदषनः।।5.37.33।।
स तस्म त्प दप द्धधी-म न प्लुत्य प्लविर्षभः।
ततो वगधषतुम रेभे, सीत प्रत्ययक रण त्।।5.37.34।।
मेरुमन्तदरसङ्क शो, बिौ दीप्त नलप्रभः।
अग्रतो र्वयवतस्थे च, सीत य व नरोत्तमः।।5.37.35।।
41. 41
प्र कृ तोऽन्तयः कथां चेम ां, भूममम िन्ततुमर्गतत।
उदधेरप्रमेयस्य, प रां व नरपुङ्िव।।5.37.41।।
जानासम िमने शस्क्तां, नयने च वप ते मम।
अवश्यां सम्प्रध य षशु, क यषमसद्धगधमषह त्मनः।।5.37.42।।
अयुक्तां तु कवपश्रेष्टि, मम िन्ततुां त्वय ऽनर्घ।
व युवेिसवेिस्य, वेिो म ां मोहयेत्तव।।5.37.43।।
अहम क शम पन्तन , ह्युपयुषपरर स िरम्।
प्रपतेयां दह ते पृष्टि -द्धभय द्धवेिेव िच्छ्छतः।।5.37.44।।
पनतत स िरे च हां, नतममनक्रझर् क
ु ले।
भवेयम शु वववश , य दस मन्तनमुत्तमम्।।5.37.45।।
42. 42
न च शक्ष््े त्वय स धं, िन्ततुां शरुववन शन।
कलरवनत सन्तदेह-स्त्वय्यवप स्य दसांशयः।।5.37.46।।
दियम ण ां तु म ां दृष्ट्व , र िस भीमववक्रम ः।
अनुिच्छ्छेयुर ददष्टट , र वणेन दुर त्मन ।।5.37.47।।
तैस्त्वां पररवृतश्शूरै-श्शूलमुद्धिरप णणमभः।
भवेस्त्वां सांशयां प्र प्तो, मय वीर कलरव न्।।5.37.48।।
स युध बहवो र्वयोस्म्न, र िस स्त्वां ननर युधः।
कथां शक्ष््सस सांय तुां, म ां चैव परररक्षितुम्।।5.37.49।।
यु्यम नस्य रिोमभ-स्तव तैः क्र
ू रकमषमभः।
प्रपतेयां दह ते पृष्टि -द्धभय त ष कवपसत्तम।।5.37.50।।
43. 43
अथ रि ांमस भीम नन, मह स्न्तत बलवस्न्तत च।
कथस्ञ्चत्स ांपर ये त्व ां, ज्े्ुः कवपसत्तम।।5.37.51।।
अथव यु्यम नस्य, पतेयां ववमुखस्य ते।
पनतत ां च िृहीत्व म ां, न्े्ुः प पर िस ः।।5.37.52।।
म ां व र्िे्ुस्त्वद्धधस्त -द्धववशसेयुरथ वप व ।
अर्वयवस्थौ दह दृश्येते, युद्धधे जयपर जयौ।।5.37.53।।
अहां व वप ववपद्धयेयां, रिोमभरमभतस्जषत ।
त्वत्प्रयत्नो हररश्रेष्टि, भवेस्न्तनष्टफल एव तु।।5.37.54।।
क मां त्वमसस पय षप्तो, ननहन्ततुां सवषर िस न्।
र र्घवस्य यशो र्ी्े-त्त्वय शस्तैस्तु र िसैः।।5.37.55।।
44. 44
अथव ऽद य रि ांमस, न्त्से्ुस्सम्वृते दह म म ्।
यर ते नासिजानी्ु-र्गरयो न वप र र्घवौ।।5.37.56।।
आरम्भस्तु मदथोऽयां, ततस्तव ननरथषकः।
त्वय दह सह र मस्य, मह न िमने िुणः।।5.37.57।।
मनय जीववतम यत्तां, र र्घवस्य मह त्मनः।
भ्र रूण ां च मह ब हो, तव र जक
ु लस्य च।।5.37.58।।
तौ ननर शौ मदथं तु, शोकसन्तत पकमशषतौ।
सह सवषिषहररमभ-स्त्यक्ष्यतः प्र णसङ्ग्रहम्।।5.37.59।।
भतुषभषस्क्तां पुरस्कृ त्य, र म दन्तयस्य व नर।
न स्पृशासम शरीरां तु, पुांसो व नरपुङ्िव।।5.37.60।।
45. 45
यदहां ि रसांस्पशं, र वणस्य बल द्धित ।
अनीश ककां करिष््ासम, ववन थ वववश सती।।5.37.61।।
यदद र मो दशग्रीव-ममह हत्त्व सब न्तधवम्।
म ममतो िृह्य र्च्छेत, तत्तस्य सदृशां िवेत्।।5.37.62।।
श्रुत दह दृष्टट श्च मय पर क्रम ,
मह त्मनस्तस्य रण वमददषनः।
न देविन्तधवषभुजङ्िर िस ,
िवन्न्तत र मेण सम दह सांयुिे ।63।।
समीक्ष्य तां सांयनत गचरक मुषकम्,
मह बलां व सवतुल्यववक्रमम्।
सलक्ष्मणां को ववर्हेत र र्घवां,
46. 46
हुत शनां दीप्तममव ननलेररतम ्।।64।।
सलक्ष्मणां र र्घवम स्जमदषनां,
ददश िजां मत्तममव र्वयवस्स्थतम्।
सर्ेत को व नरमुख्य सांयुिे,
युि न्ततसूयषप्रनतमां शर गचषर्म्।।5.37.65।।
स मे हररश्रेष्टि सलक्ष्मणां पनतां,
सयूथपां क्षिप्रममर्ोपपाद्।
गचर य र मां प्रनत शोककमशषत ां,
क
ु रुष्व म ां व नरमुख्य हवर्षत म ्।।5.37.66।।
इत्य र्े श्रीमर म यणे व ल्मीकीये आददक र्वये सुन्तदरक ण्डे सप्तत्ररांशस्सिषः।।
50. 50
एवमुक्त हनुमत , सीत सुरसुतोपम ।
उवाच वचनां मन्तदां, ब ष्टपप्रग्रगथत िरम्।।5.38.11।।
इदां श्रेष्टिममभज्ञ नां, ब्रू्ास्त्विं तु मम वप्रयम्।
शैलस्य गचरक
ू टस्य, प दे पूवोत्तरे पुर ।।5.38.12।।
त पस श्रमव मसन्तय ः, प्र ज्यमूलफलोदक
े ।
तस्स्मस्न्तसद्धध श्रमे देशे, मन्तद ककन्तय ववदूरतः।।5.38.13।।
तस्योपवनर्ण्डेर्ु, न न पुष्टपसुिस्न्तधर्ु।
ववहृत्य समलले स्क्लन्तन , मम ङ्क
े समुप ववशमः।।14।।
ततो म ांससम युक्तो, व यसः पयषतुण्डयत्।
तमहां लोष्टटमुद्धयम्य, व रय ममस्म व यसम्।।5.38.15।।
51. 51
द रयन्तस च म ां क क-स्तत्रैव पररलीयते।
न च प्युप रमन्तम ांस -द्धभि गथष बमलभोजनः।।5.38.16।।
उत्कर्षन्तत्य ां च रशन ां, क्र
ु द्धध य ां मनय पक्षिणण।
स्रस्यम ने च वसने, ततो दृष्टट त्वय ह्यहम्।।5.38.17।।
त्वय ऽपहमसत च हां, क्र
ु द्धध सांलस्ज्जत तद ।
भििृ्नेन क क
े न, द ररत त्व मुप ित ।।5.38.18।।
आसीनस्य च ते श्र न्तत , पुनरुत्सङ्िम ववशम्।
क्र
ु ्यन्तती च प्रहृष्टटेन, त्वय ऽहां पररस स्न्तत्वत ।।5.38.19।।
ब ष्टपपूणषमुखी मन्तदां, चिुर्ी पररम जषती।
लक्षित ऽहां त्वय न थ, व यसेन प्रकोवपत ।।5.38.20।।
52. 52
पररश्रम त्प्रसुप्त च, र र्घव ङ्क
े ऽप्यहां गचरम्।
पय षयेण प्रसुप्तश्च, मम ङ्क
े भरत ग्रजः।।5.38.21।।
स तर पुनरेव थ, व यसस्समुप िमत्।
ततस्सुप्तप्रबुद्धध ां म ां, र मस्य ङ्क त्समुस्त्थत म्।।22।।
व यसस्सहस िम्य, ववददाि स्तन न्ततरे।
पुनः पुनरथोत्पत्य, ववददाि स म ां भृशम्।।5.38.23।।
ततस्समुक्षितो र मो, मुक्तैश्शोणणतत्रबन्तदुमभः।
व यसेन ततस्तेन, बलवस्त्क्लश्यम नय ।।5.38.24।।
स मय बोगधतश्श्रीम -न्तसुखसुप्तः परन्ततपः।
स म ां दृष्ट्व मह ब हु-ववषतुन्तन ां स्तनयोस्तद ।।5.38.25।।
53. 53
आशीववर् इव क्र
ु द्धध-श्वसन्तव क्यमभ र्त।
क
े न ते न िन सोरु, ववितां वै स्तन न्ततरम्।।5.38.26।।
कः क्रीडतत सरोर्ेण, पञ्चवक्रेण भोगिन ।
वीिम णस्ततस्तां वै, व यसां समुदैक्षत।।5.38.27।।
नखैस्सरुगधरैस्तीक्ष्णै-म षमेव मभमुखां स्स्थतम्।
पुत्रः ककल स शक्रस्य, व यसः पतत ां वरः।।5.38.28।।
धर न्ततरितश्शीघ्रां, पवनस्य ितौ समः।
ततस्तस्स्मन्तमह ब हुः, कोपसांवनतषतेिणः।।5.38.29।।
व यसे कृ तव न्तक्र
ू र ां, मनतां मनतमत ां वरः।
स दभं सांस्तर द्धिृह्य, ब्र ह्मेण स्रेण ्ोज्त्।।5.38.30।।
54. 54
स दीप्त इव क ल स्ग्न-जषज्व ल मभमुखो द्धववजम्।
स तां प्रदीप्तां गचिेप, दभं तां व यसां प्रनत।।5.38.31।।
ततस्तां व यसां दभष-स्सोम्बरेऽनुजर्ाम ह।
अनुसृष्टटस्तद क को, जर्ाम ववववध ां िनतम्।।5.38.32।।
लोकक म इमां लोक
ां , सवं वै ववचच र ह।
स वपर च पररत्यक्त-स्सुरैश्च समहवर्षमभः।।5.38.33।।
रीन्तलोक न्तसम्पररक्रम्य, तमेव शरणां ितः।
स तां ननपनततां भूमौ, शरण्यश्शरण ितम्।।5.38.34।।
वध हषमवप क क
ु त्स्थ:, कृ पय प्गपाल्त्।
पररद्धयूनां ववर्ण्णां च, स तम य न्ततमब्रवीत्।।5.38.35।।
55. 55
मोर्घां कतुं न शक्यां तु, ब्र ह्ममस्रां तदुच्छ्यत म्।
दहनस्तु दक्षिण क्षि त्व-च्छ्छर इत्यथ सोऽब्रवीत्।।5.38.36।।
ततस्तस्य क्षि क कस्य, दहनस्स्त स्म स दक्षिणम्।
दत्त्व स दक्षिणां नेरां, प्र णेभयः परररक्षितः।।5.38.37।।
स र म य नमस्कृ त्य, र ज्ञे दशरथ य च।
ववसृष्टटस्तेन वीरेण, प्रततपेदे स्वम लयम्।।5.38.38।।
मत्कृ ते क कम रे तु, ब्रह्म स्रां समुदीररतम्।
कस्म द्धयो म ां हरेत्त्वत्तः, क्षमसे तां महीपते।।5.38.39।।
स क
ु रुष्टव महोत्स हः, कृ प ां मनय नरर्षभ।
त्वय न थवती न थ, ह्यन थ इव दृश््ते।।5.38.40।।
56. 56
आनृशांस्यां परो धमष-स्तवत्त्त ऐव मय श्रुतः।
जानासम त्व ां मह वीयं, महोत्स हां मह बलम्।।5.38.41।।
अप रप रमिोभयां, ि म्भीय षत्स िरोपमम्।
भत षरां ससमुर य , धरण्य व सवोपमम्।।5.38.42।।
एवमस्रववद ां श्रेष्टि-स्सत्यव न्तबलव नवप।
ककमथषमस्रां रिस्सु, न ्ोज्सस र र्घव।।5.38.43।।
न न ि न ऽवप िन्तधव ष, न सुर न मरुद्धिण ः।
र मस्य समरे वेिां, शक्त ः प्रनतसम गधतुां।।5.38.44।।
तस्य वीयषवतः कस्श्च-द्धयद्धयस्स्त मनय सम्भ्रमः।
ककमथं न शरैस्तीक्ष्णै:, ियां न्तत र िस न्।।5.38.45।।
57. 57
भ्र तुर देशम द य, लक्ष्मणो व परन्ततपः।
कस्य हेतोनष म ां वीरः, पररर नत मह बलः।।5.38.46।।
यदद तौ पुरुर्र्वय घ्रौ, व य्वस्ग्नसमतेजसौ।
सुर ण मवप दुधषर्ौ, ककमथं म मुपेितः।।5.38.47।।
ममैव दुष्टकृ तां ककस्ञ्च-न्तमहदन्स्त न सांशयः।
समथ षववप तौ यन्तम ां, नावेक्षेते परन्ततपौ।।5.38.48।।
वैदेह्य वचनां श्रुत्व , करुणां स श्रुभ वर्तम्।
अथाब्रवीन्तमह तेज , हनुम न्तम रुत त्मजः।।5.38.49।।
त्वच्छ्छोकववमुखो र मो, देवव सत्येन ते शपे।
र मे दुःख मभपन्तने च, लक्ष्मणः परितप््ते।।5.38.50।।
58. 58
कथस्ञ्चद्धभवती दृष्टट , न क लः पररदेववतुम्।
इमां मुहूतं दुःख न ां, द्रक्ष््स््न्ततमननस्न्तदते।।5.38.51।।
त वुभौ पुरुर्र्वय घ्रौ, र जपुरौ मह बलौ।
त्वद्धदशषनकृ तोत्स हौ, लङ्क ां भस्मीकररष्टयतः।।5.38.52।।
हत्त्व च समरे क्र
ू रां, र वणां सहब न्तधवम्।
र र्घवस्त्व ां ववश ल क्षि, नेष््तत स्व ां पुरीां प्रनत।।5.38.53।।
ब्रूहर् यर र्घवो व च्छ्यो, लक्ष्मणश्च मह बलः।
सुग्रीवो व वप तेजस्वी, हरयोऽवप सम ित ः।।5.38.54।।
इत्युक्तवनत तस्स्मांस्तु, सीत सुरसुतोपम ।
उवाच शोकसन्ततप्त , हनुमन्ततां प्लवङ्िमम्।।5.38.55।।
59. 59
कौसल्य लोकभत षरां, सुषुवे यां मनस्स्वनी।
तां मम थे सुखां पृच्छ, मशरस चासिवाद्।।5.38.56।।
स्रजश्च सवषरत्न नन, वप्रय य श्च वर ङ्िन ः।
ऐश्वयं च ववश ल य ां, पृगथर्वय मवप दुलषभम्।।5.38.57।।
वपतरां म तरां चैव, सम्म न्त्ासिप्रसाद्् च।
अनुप्रव्रस्जतो र मां, सुममर येन सुप्रज ः।।5.38.58।।
आनुक
ू ल्येन धम षत्म , त्यक्त्व सुखमनुत्तमम्।
अनुर्च्छतत क क
ु त्स्थां, भ्र तरां प लयन्तवने।।5.38.59।।
मसांहस्कन्तधो मह ब हु-मषनस्वी वप्रयदमशषनः।
वपतृवद्वतगते र मे, म तृवन्तम ां सम चरन्।।5.38.60।।
60. 60
दियम ण ां तद वीरो, न तु म ां वेद लक्ष्मणः।
वृद्धधोपसेवी लक्ष्मीव न्, शक्तो न बहुभ वर्त ।।5.38.61।।
र जपुरः वप्रयः श्रेष्टिः, सदृशः श्वशुरस्य मे।
ममः वप्रयतरो ननत्यां, भ्र त र मस्य लक्ष्मणः।।5.38.62।।
ननयुक्तो धुरर यस्य ां तु, त मुद्वर्तत वीयषव न्।
यां दृष्ट्व र र्घवो नैव, वृत्तम यषमनुस्मिेत्।।5.38.63।।
स मम थ षय क
ु शलां, वक्तर्वयो वचन न्तमम।
मृदुननषत्यां शुगचदषिः, वप्रयो र मस्य लक्ष्मणः।।5.38.64।।
यथ दह व नरश्रेष्टि, दुःखियकरो िवेत्।
त्वमस्स्मन्तक यषननयोिे, प्रम णां हररसत्तमः।।5.38.65।।
61. 61
र र्घवस्त्वत्सम रम्भ -न्तमनय यत्नपरो िवेत्।
इदां ब्रू्ाश्च मे न थां, शूरां र मां पुनः पुनः।।5.38.66।।
जीववतां धाित्ष््ासम, म सां दशरथ त्मज।
ऊ्वं म स न्तन जीवेयां, सत्येन हां ब्रवीसम ते।।5.38.67।।
र वणेनोपरुद्धध ां म ां, ननकृ त्य प पकमषण ।
र तुमर्गसस वीर त्वां, प त ल ददव कौमशकीम्।।5.38.68।।
ततो वस्रितां मुक्त्व , ददर्वयां चूड मणणां शुभम्।
प्रदेयो र र्घव येनत, सीत हनुमते ददौ।।5.38.69।।
प्रनतिृह्य ततो वीरो, मणणरत्नमनुत्तमम्।
अङ्िुल्य ्ोज्ामास, न ह्यस्य प्र भवद्धभुजः।।5.38.70।
65. 65
मशरस वन्त्य वैदेहीां, िमन ्ोपचक्रमे।
ज्ञ त्व सम्प्रस्स्थतां देवी, व नरां म रुत त्मजम्।।5.39.6।।
ब ष्टपिद्धिदय व च , मैगथली व क्यमब्रवीत्।
क
ु शलां हनुमन्तब्रूय ः, सदहतौ र मलक्ष्मणौ।।5.39.7।।
सुग्रीवां च सह म त्यां, वृद्धध न्सव ंश्च व नर न्।
ब्रूय स्त्वां व नरश्रेष्टि, क
ु शलां धमषसांदहतम्।।5.39.8।।
यथ स च मह ब हु-म ं ताि्तत र र्घवः।
अस्म द्धदुःख म्बुसांरोध -त्त्वां* सम ध तुमर्गसस।।5.39.9।।
जीवन्ततीां म ां यथ र मः, सम्िाव्तत कीनतषम न्।
तत्तथ हनुमन्तव च्छ्यां, व च धमषमवाप्नुहर्।।5.39.10।।
66. 66
ननत्यमुत्स हयुक्त श्च, व चश्रुत्व त्वयेररत ः।
वधधगष््ते द शरथेः, पौरुर्ां मदव प्तये।।5.39.11।।
मत्सन्तदेशयुत व च-स्त्वत्तश्श्रुत्व च र र्घवः।
पर क्रमववगधां वीरो, ववगधवत्सिंववधास््तत।।5.39.12।।
सीत य वचनां श्रुत्व , हनुम न्तम रुत त्मजः।
मशरस्यञ्जमलम ध य, व क्यमुत्तरमब्रवीत्।।5.39.13।।
क्षिप्रमेष््तत क क
ु त्स्थो, ह यृषिप्रवरैवृषतः।
यस्ते युगध ववस्जत्य री-न्तशोक
ां र्व्पनत्ष््तत।।5.39.14।।
न दह पश््ासम मत्येर्ु, न सुरेर्ु सुरेर्ु व ।
यस्तस्य क्षिपतो ब ण -न्तस्थ तुमुत्सर्तेऽग्रतः।।5.39.15।।
67. 67
अप्यक
ष मवप पजषन्तय-मवप वैवस्वतां यमम्।
स दह सोढुां रणे शक्त-स्तव हेतोववषशेर्तः।।5.39.16।।
स दह स िरपयषन्तत ां, महीां श मसतुमीहनत।
त्वस्न्तनममत्तो दह र मस्य, जयो जनकनस्न्तदनन।।5.39.17।।
तस्य तद्धवचनां श्रुत्व , सम्यक्सत्यां सुभ वर्तम ्।
ज नकी बहुमेनेऽथ, वचनां चेदमब्रवीत्।।5.39.18।।
ततस्तां प्रस्स्थतां सीत , वीिम ण पुनः पुनः।
भतृषस्नेह स्न्तवतां व क्यां, सौह द षदनुमान्त्।।5.39.19।।
यदद व मन्त्से वीर, वसैक हमररन्तदम।
कस्स्मांस्श्चत्सांवृते देशे, ववश्र न्ततःश्वो र्समष््सस।।20।।
68. 68
मम चेदल्पभ ग्य य , स स्न्तन्य त्तव व नर।
अस्य शोकस्य महतो, मुहूतं मोिणां िवेत्।।5.39.21।।
िते दह हररश दूषल, पुनर िमन य तु।
प्र ण न मवप सन्तदेहो, मम स््ान्तनार सांशयः।।5.39.22।।
तव दशषनजः शोको, भूयो म ां परिताप्ेत्।
दुःख द्धदुःखपर मृष्टट ां,* दीपयस्न्तनव व नर।।5.39.23।।
अयां च वीर सन्तदेह-न्स्तष्ठतीव मम ग्रतः।
सुमह ांस्त्वत्सह येर्ु, हयृषिेर्ु हरीश्वरः।।5.39.24।।
कथां नु खलु दुष्टप रां, तरिष््न्न्तत महोदगधम्।
त नन हयृषिसैन्तय नन, तौ व नरवर त्मजौ।।5.39.25।।
83. 83
स च व स्ग्भः प्रशस्त मभ-िषममष्टयन्तपूस्जतस्तय ।
तस्म द्धदेश दपक्रम्य, धचन्तत्ामास व नरः।।5.41.1।।
अल्पशेर्ममदां क यं, दृष्टटेयममसतेिण ।
रीनुप य ननतक्रम्य, चतुथष: इह ववद््ते।।5.41.2।।
न स म रिस्सु िुण य कल्पते,
न द नमथोपगचतेर्ु ्ुज््ते।
न भेदस ्य बलदवपषत जन ः,
पर क्रमस्त्वेव ममेह िोचते।।3।।
न च स्य क यषस्य पर क्रम दृते,
ववननश्चयः कस्श्चददर्ोपपद््ते।
हतप्रवीर दह रणे दह र िस ः,
कथस्ञ्चदीयुयषददह द्धय म दषवम्।।4।।
84. 84
क ये कमषणण ननददषष्टटे, यो बहून्तयवप साध्ेत ्।
पूवषक य षववरोधेन, स क यं कतुषमर्गतत।।5.41.5।।
न ह्येकस्स धको हेतु-स्स्वल्पस्य पीह कमषणः।
यो ह्यथं बहुध वेद, स समथोऽथषस धने।।5.41.6।।
इहैव त वत्कृ तननश्चयो ह्यहां,
यदद व्रजेयां प्लविेश्वर लयम्।
पर त्मसम्मदषववशेर्तत्त्ववव,
त्ततः कृ तां स््ान्तमम भतृषश सनम्।।5.41.7।।
कथां नु खल्वद्धय िवेत्सुख ितां,
प्रसह्य युद्धधां मम र िसैः सह।
तथैव खल्व त्मबलां च स रव,
त्सम्म नयेन्तम ां च रणे दश ननः।।5.41.8।।
85. 85
ततस्सम स द्धय रणे दश ननां,
समस्न्तरविं सबलप्रय नयनम्।
हृदद स्स्थतां तस्य मतां बलां च वै,
सुखेन मत्त्व ऽहममतः पुनव्रषजे।।9।।
इदमस्य नृशांसस्य, नन्तदनोपममुत्तमम्।
वनां नेरमनःक न्ततां, न न रुमलत युतम्।।5.41.10।।
इदां ववध्विंसत्ष््ासम, शुष्टक
ां वनममव नलः।
अस्स्मन्तभग्ने ततः कोपां, करिष््तत दश ननः।।5.41.11।।
ततो महत्स श्वमह रथद्धववपां,
बलां समादेक्ष््तत र िस गधपः।
त्ररशूलक ल यसप्दटस युधां,
ततो महद्धयुद्धधममदां िववष््तत।।12।।