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Compound - समास
∙ जब दो या दो से अधिक पद ममलकर कोई संक्षिप्त
रूप में बन जाते हैं तब उसे समास पद कहते हैं।
∙ पदों का समास होने पर विभक्तत नह ं रह जाती। पुनः
उन्हें विभक्तत रूप में मलखना विग्रह कहलाता ह।।
∙ व्याकरण में समास का प्रयोग िातय में सुन्दरता और
गुरुता या महत्ता को बढ़ाने के मलये होता ह।।
ज।से - नराणाम् पतत = नरपतत
हहमस्य आलयः = हहमालयः
पररभाषा
समास के चार भेद होते हैं।
1. अव्ययीभाव
2. तत्पुरुष
3. बहुव्रीहह,
4. WnW
तत्पुरुष
कममिारय द्विगु
तत्पुरुष
व्यधिकरण समानाधिकरण
व्यधिकरण तत्पुरुष
विभक्तत उपपद नञ् प्राहद
विभक्तत तत्पुरुष : -
द्ववतीया से लेकर सप्तमी ववभक्तत तक का अर्थ देने वाले ६
ववभक्ततयों को ववभक्तत तत्पुरुष समास कहते हैं। इसमें प्रर्मा
और सम्बोधन नह ीं सक्म्मललत है। ये समास अलग-अलग
ववभक्तत का अर्थ देते हैं इसललये इन्हें ‘ववभक्तत तत्पुरुष’ कहा
जाता है। सामालसक पद क्जस ववभक्तत का अर्थ देता है उसका
ववग्रह उसी ववभक्तत में होता है।
1. द्वितीया तत्पुरुष समास
1. ग्रामगतः
2. कू पपतततः
3. कृ ष्णश्रितः
4. शरणागता
ग्रामीं गतः
कू पीं पतततः
कृ ष्णीं श्रितः
शरणम ् आगता
- गााँव को गया हुआ
- कुाँ ए में श्रगरा हुआ
- कृ ष्ण को आश्रित
- शरण में आई हुई।
∙ सामालसक पद द्ववतीया ववभक्तत का अर्थ देता है।
∙ श्रित, अतीत, पततत, गत, अत्यस्त, प्राप्त, आपन्न आहद
शब्द दूसरे पद में ललींगानुसार लगते हैं ।
∙ प्रर्म पद का ववग्रह द्ववतीया में होगा।
1. द्वितीया तत्पुरुष समास
दुःखातीता
कल्पनातीतः
नरकपतततः
सुखप्राप्तः
दुखापन्नः
आपणगतातन
गतमपतततः
ग्रामत्यस्तः
संशयापन्नः
• दुःखम ् अतीता दुःख से परे गई हुई।
• कल्पनाम ् अतीतः कल्पना से परे।
• नरकीं पतततः नरक में श्रगरा हुआ।
• सुखीं प्राप्तः सुख को पाया हुआ।
• दुःखम ् आपन्नः दुःख को पाया हुआ।
• आपणीं गतातन बाजार गये हुए।
• गतं पतततः गढ़्ढ़े में श्रगरा हुआ।
• ग्रामम ् अत्यस्तः गााँव से पार पहुाँचा हुआ।
• सींशयम ् आपन्नः सींशय को पाया हुआ।
२. तृतीया तत्पुरुष
• जब सामामसक पद तृतीया विभक्तत का अर्म दे।
• दूसरा पद अर्म, खण्ड, पूिम, सदृश, सम, ऊन, विकल, कलह,
तनपुण, ममश्र आहद पदों से बना हो।
• पूिम पद का विग्रह तृतीया विभक्तत में होता ह।।
सुखयुततः
ववद्याह नः
नखलभन्नः
वपतृतुल्यः
देवदत्तः
सीताववरहहतः
सुखेन युततः
ववद्यया ह नः
नखैः लभन्नः
वपत्रा तुल्यः
देवेन दत्तः
सीतया ववरहहतः
सुख से युतत
ववद्या से रहहत
नखों से कटा हुआ
वपता के समान
देव द्वारा हदया गया
सीता से रहहत
२. तृतीया तत्पुरुष
शींकु लाखण्डः
धान्यार्थः
मासपूवथः
वातकलहः
गुडलमिः
वस्त्रपूतीं
वपतृसदृशः
धनसींपन्नः
क्षेत्रह नाः
हस्तग्राह्यः
जलरहहता
शींकु लया खण्डः
धान्येन अर्थः
मासेन पूवथः
वाचा कलहः
गुडेन लमिः
वस्त्रेण पूतम्
वपत्रा सदृशः
धनेन सींपन्नः
क्षेत्रेण ह नाः
हस्तेन ग्राह्यः
जलेन रहहता
सरौते से खक्ण्डत
धान्य से प्राप्त धन
एक माह पहले
वाणी से कलह
गुड से लमश्रित
वस्त्र द्वारा पववत्र
वपता के समान
धन से सींपन्न
क्षेत्र से ह न
हार् द्वारा ग्राह्य
जल से रहहत
३. चतुर्ी तत्पुरुष समास
गुरुदक्षक्षणा
क्रीडोद्यानम ्
छात्रावासः
भोजनसामग्री
जनहहतम्
गुरवे दक्षक्षणा
क्रीडायै उद्यानम्
छात्रेभ्यः आवासः
भोजनाय सामग्री
जनेभ्यः हहतम्
1. सामामसक पद चतुर्ी विभक्तत का अर्म देता ह।।
२. दूसरा पद अर्म, बमल, हहत, सुख, रक्षित आहद पदों से बना हो।
३. प्रर्म पद का विग्रह चतुर्ी विभक्तत में होगा।
४. अर्म से बने हुए शब्द के विग्रह में ‘इतत’ या ‘इदम्’ जोड़तते हैं।
उदाहरण :
3. चतुर्ी तत्पुरुष समास
िीकृ ष्णापथणम ्
वविामस्र्ानम्
क्रीडाशैलः
वातानुकू लनयन्त्राणण
सञ्चारमागथः
भोजनसामग्री
सुखार्थम ्
प्रीत्यर्थम्
सन्तोषार्थम ्
द्ववजार्थम ्
िीकृ ष्णाय अपथणम ्
वविामाय स्र्ानम्
क्रीडायै शैलः
वातानुकू लनाय यन्त्राणण
सञ्चाराय मागथः
भोजनाय सामग्री
सुखाय अर्थम ् इतत
प्रीत्यै अर्थम्इतत
सन्तोषाय अर्थम ्इतत
द्ववजाय अर्थम ् इतत
4. पञ्चमी तत्पुरुष
 समामसक पद पञ्चमी विभक्तत का अर्म देता हो
(भय, भीतः, भीततः, भीः), मुतत, पततत, अपेत, अपोढ़,
अपत्रस्त, च्युत, भ्रष्ट आहद पदों से बने शब्द हों।
 व्याघ्रभीतः
चौरभयम्
दुष्टभीः
सुखापेतः
िृिपतततः
व्याघ्रात्भीतः
चौरात् भयम्
दुष्टात् भीः
सुखात् अपेतः
िृिात् पतततः
व्याघ्र से भय
चोर से डर
दुष्ट से डर
सुख से िक्ञ्चत
िृि से धगरा हुआ
4. पञ्चमी तत्पुरुष
तरंगापत्रस्तः
कल्पनापोढ़ः
दुःखमुततः
स्िगमच्युतः
पर्भ्रष्टः
तरींगात्अपत्रस्तः
कल्पनायाः अपोढ़ः
दुःखात् मुततः
स्वगाथत् च्युतः
पर्ात् भ्रष्टः
लहरों से डरा हुआ
कल्पना रहहत
दुःख से मुतत
स्वगथ से अलग हुआ
रास्ते से भटका हुआ
सपमभयम्, शत्रुभीतः , व्याघ्रभयम्, आकशपतततः
5. षष्ठी तत्पुरुष
बुद्धिप्रभािात्
हहमालयः
कृ ष्णभधगतन
राजप्रासादः
स्िणमपात्रम्
बुद्िेः प्रभािात्
हहमस्य आलयः
कृ ष्णस्य भधगतन
राज्ञः प्रासादः
स्िणमस्य पात्रम्
बुद्श्रध के प्रभाव से
बर्थ का आलय
कृ ष्ण की बहन
राजा का महल
सोने का बरतन
∙ सामामसक पद षष्ठी विभक्तत अर्िा संबंििाचक होता ह।।
∙ प्रर्म पद का विग्रह षष्ठी विभक्तत में होता ह।।
कभी-कभी दोनों पदों में अियि अियिी (body & limb) संबंि होता ह।।
5. षष्ठी तत्पुरुष
राष्रपततः
िममलिणम ्
शर राङ्गातन
िृिपणामतन
धगररमशखरम ्
प्रज्ञाबलेन
परगुणाः
राष्रस्य पततः
िममस्य लिणम्
शर रस्य अंगातन
िृिस्य पणामतन
धगरेः मशखरम्
प्रज्ञायाः बलेन
परेषाम् गुणाः
देश का पतत
धमथ का लक्षण
शर र के अींग
वृक्ष के पत्ते
पवथत का लशखर
बुद्श्रध के बल से
दूसरों के गुण
5. षष्ठी तत्पुरुष
जीिनरिा, िृिमूले,
आत्मरिाय। (आत्मनः), मानिशक्ततः,
यन्त्रदशमनेन, शत्रुगणाः,
स्िश्रृंगेण, िृिशाखा,
परतापतनिारणम्, स्िमेिया (स्िस्य),
पाररजातपल्लिेभ्यः, द।ििशेन,
नगाधिराजः, सुरपततः,
गणपततः
पापतापहारेण (पापतापयोः हारकः तेन), ।
6. सप्तमी तत्पुरुष
शास्त्रतनपुणः
अिशौण्डः
िातपटुत्िम्
कममकु शलः
शास्त्रेषु तनपुणः
अिेषु शौण्डः
िाधच पटुत्िम्
कममणण कु शलः
∙ सामामसक पद सप्तमी विभक्तत या अधिकरण का अर्म देता ह।।
∙ कु शल, प्रिीण, तनपुण, मसद्ि, शौण्ड, पटु, पक्ण्डत, चतुर आहद पदों से बना
हो।
∙ विग्रह सप्तमी विभक्तत में करते हैं।
शास्त्रों में तनपुण
पााँसे खेलने में चतुर
वाणी में पटु
कमथ में कु शल
6. सप्तमी तत्पुरुष
सभापक्ण्डतः
आतपशुष्कः
व्यिहारचपलः
क्रीडनककतिः
स्र्ाल पतिः
ग्राममसद्िः
पाशबन्िः
सभायाीं पक्ण्डतः
आतपे शुष्कः
व्यवहारे चपल
क्रीडने ककतवः
स्र्ाल्याीं पतवः
ग्रामे लसद्धः
पाशे बन्धः
सभा में पक्ण्डत
धूप में सूखा हुआ
व्यवहार में चींचल
खेल में मतकार
र्ाल में पकाया हुआ
गााँव में लसद्ध
पाश में बींधा हुआ
कायमदिः, ध्यानमग्नः, पूजारता, कलासतता,
विज्ञानािीनः, मागामरब्िाः, दानसूरः, भुिनविहदते।
2. उपपद तत्पुरुष
∙ इस समास में उत्तरपद कक्रया से बना हुआ होता ह। और उसी
का समास होता ह।। इसमलए इसे उपपद नाम हदया गया ह।।
• कक्रया का लघुरूप प्रयुतत होता ह।।
• सामामसक पद अलग - अलग मलंगों में होता ह। और उसके
रूप चलते ह।।
• सामामसक पद प्रायः विशेषण बनता ह।।
• प्रर्म पद का विग्रह अर्म के अनुसार अलग-अलग विभक्तत
में होगा
2. उपपद तत्पुरुष
स्िणमकारः
कु म्भकारः
सिमदा
जलदः
इन्रक्जत ्
उरगः
नगः
िेदवित ्
स्वणं करोतत इतत
कु म्भीं करोतत इतत
सवं ददातत इतत
जलीं ददातत इतत
इन्रीं जयतत इतत
उरसा गच्छतत इतत
न गच्छतत इतत
वेदान ् वेवत्त इतत
स्वणथकार
कु म्भार
सब कु छ देने वाल
बादल
मेघनाद
सपथ
पवथत
वेदज्ञाता
2. उपपद तत्पुरुष
पंकजः
नीरजम्
पाठकः
शास्त्रज्ञः
अल्पज्ञाः
गृहस्र्ः
आसनस्र्ाः
मिुपः
मिुपाः
नृपः
कृ तघ्नः
पङ्के /पङ्कात ् जायते इतत
नीरे/नीरात ् जायते इतत
पाठीं करोतत इतत
शास्त्रीं जानातत इतत
अल्पीं जानक्न्त इतत
गृहे ततष्ठतत इतत
आसने ततष्ठक्न्त इतत
मधु वपबतत इतत
मधु वपबक्न्त इतत
नॄन ् पातत इतत
कृ तीं हक्न्त इतत
कमल
कमल
पाठ करने वाला
शास्त्र जानने वाला
कम जानने वाले
गृहस्र्
आसनस्र् लोग
भ्रमर
भौरे
राजा
कृ तघ्न (Ungrateful)
2. उपपद तत्पुरुष
भारिाह
अग्रणी
िुरंिरः
िुरंिराः
भारीं वहतत इतत
अग्रे नयतत इतत
धुरीं धारयतत इतत
धुरीं धारयक्न्त इतत
भार ढ़ोने वाला
आगे रहने वाला
उत्तरदायी
उत्तरदायी लोग
3. नञ्तत्पुरुष
न योग्यम्
न आवृतम्
अयोग्यम्
अनावृतम्
 तनषेध (नह ीं) अर्थ में नञ ् तत्पुरुष के पदों का समास होता है।
 प्रर्म पद ‘अ’ अर्वा ‘अन ्’ से बना होता है।
 स्वर से प्रारम्भ होने वाले पदों में ‘अन ्’ और व्यींजन से प्रारम्भ
होने वाले पदों में ‘अ’ जुड़ता है।
अन ् + स्िर अ + व्यंजन
3. नञ्तत्पुरुष
• न शतयम ्
• न इष्टम ्
• न अल्पः
• न उत्सुकः
• न वववेकः
• न साध्यम ्
• न दूरम्
• न ॠतीं
• न कायथम ्
• न अवद्यम ्
• न पर क्षक्षतम्
• न आगतम ्
• न ववज्ञातम ्
• अशतयम ्
• अतनष्टम ्
• अनल्पः
• अनुत्सुकः
• अवववेकः,
• असाध्यम ्
• अदूरम्
• अनृतीं
• अकायथम ्
• अनवद्यम ्
• अपर क्षक्षतम्
• अनागतम ्
• अववज्ञातम ्
3. नञ ्तत्पुरुष
अदृष्टम ्, अश्रुतम ्, अपहठतम ्, अिामममकः,
अनुपक्स्र्तः, अनादरः, अनेकः, अविद्या,
असत्यम ्, असत्, अध्रुिम ्, अनागतः।
4. प्राहद तत्पुरुष
प्र = प्रगत: दुर् = दुष्टः
 प्रर्म पद प्र, परा, तनर् दुर्, सु आहद उपसगों (Prefixes) से
बना होता है।
 सभी उपसगों का अपना ववलशष्ट अर्थ होता है क्जसे ववग्रह में
ललखते हैं।
सु / सत ् = शोभनः / सुष्ठु वि = ववलभन्नः/ ववशेषः
4. प्राहद तत्पुरुष
सुजनः
दुजमनः
विदेशः
विज्ञानम्
सुमसद्धिः
सक्न्नधिम्
सुपर क्षितम्
विवििाः
सुभावषतम्
शोभनः जनः
दुष्टः जनः
ववलभन्नः देशः
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शोभना लसद्श्रधः
शोभना तनश्रधम ्
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तत्पुरुष (विभक्ति, उपपद ऽ नञ्)

  • 1. Compound - समास ∙ जब दो या दो से अधिक पद ममलकर कोई संक्षिप्त रूप में बन जाते हैं तब उसे समास पद कहते हैं। ∙ पदों का समास होने पर विभक्तत नह ं रह जाती। पुनः उन्हें विभक्तत रूप में मलखना विग्रह कहलाता ह।। ∙ व्याकरण में समास का प्रयोग िातय में सुन्दरता और गुरुता या महत्ता को बढ़ाने के मलये होता ह।। ज।से - नराणाम् पतत = नरपतत हहमस्य आलयः = हहमालयः पररभाषा
  • 2. समास के चार भेद होते हैं। 1. अव्ययीभाव 2. तत्पुरुष 3. बहुव्रीहह, 4. WnW तत्पुरुष कममिारय द्विगु तत्पुरुष व्यधिकरण समानाधिकरण
  • 3. व्यधिकरण तत्पुरुष विभक्तत उपपद नञ् प्राहद विभक्तत तत्पुरुष : - द्ववतीया से लेकर सप्तमी ववभक्तत तक का अर्थ देने वाले ६ ववभक्ततयों को ववभक्तत तत्पुरुष समास कहते हैं। इसमें प्रर्मा और सम्बोधन नह ीं सक्म्मललत है। ये समास अलग-अलग ववभक्तत का अर्थ देते हैं इसललये इन्हें ‘ववभक्तत तत्पुरुष’ कहा जाता है। सामालसक पद क्जस ववभक्तत का अर्थ देता है उसका ववग्रह उसी ववभक्तत में होता है।
  • 4. 1. द्वितीया तत्पुरुष समास 1. ग्रामगतः 2. कू पपतततः 3. कृ ष्णश्रितः 4. शरणागता ग्रामीं गतः कू पीं पतततः कृ ष्णीं श्रितः शरणम ् आगता - गााँव को गया हुआ - कुाँ ए में श्रगरा हुआ - कृ ष्ण को आश्रित - शरण में आई हुई। ∙ सामालसक पद द्ववतीया ववभक्तत का अर्थ देता है। ∙ श्रित, अतीत, पततत, गत, अत्यस्त, प्राप्त, आपन्न आहद शब्द दूसरे पद में ललींगानुसार लगते हैं । ∙ प्रर्म पद का ववग्रह द्ववतीया में होगा।
  • 5. 1. द्वितीया तत्पुरुष समास दुःखातीता कल्पनातीतः नरकपतततः सुखप्राप्तः दुखापन्नः आपणगतातन गतमपतततः ग्रामत्यस्तः संशयापन्नः • दुःखम ् अतीता दुःख से परे गई हुई। • कल्पनाम ् अतीतः कल्पना से परे। • नरकीं पतततः नरक में श्रगरा हुआ। • सुखीं प्राप्तः सुख को पाया हुआ। • दुःखम ् आपन्नः दुःख को पाया हुआ। • आपणीं गतातन बाजार गये हुए। • गतं पतततः गढ़्ढ़े में श्रगरा हुआ। • ग्रामम ् अत्यस्तः गााँव से पार पहुाँचा हुआ। • सींशयम ् आपन्नः सींशय को पाया हुआ।
  • 6. २. तृतीया तत्पुरुष • जब सामामसक पद तृतीया विभक्तत का अर्म दे। • दूसरा पद अर्म, खण्ड, पूिम, सदृश, सम, ऊन, विकल, कलह, तनपुण, ममश्र आहद पदों से बना हो। • पूिम पद का विग्रह तृतीया विभक्तत में होता ह।। सुखयुततः ववद्याह नः नखलभन्नः वपतृतुल्यः देवदत्तः सीताववरहहतः सुखेन युततः ववद्यया ह नः नखैः लभन्नः वपत्रा तुल्यः देवेन दत्तः सीतया ववरहहतः सुख से युतत ववद्या से रहहत नखों से कटा हुआ वपता के समान देव द्वारा हदया गया सीता से रहहत
  • 7. २. तृतीया तत्पुरुष शींकु लाखण्डः धान्यार्थः मासपूवथः वातकलहः गुडलमिः वस्त्रपूतीं वपतृसदृशः धनसींपन्नः क्षेत्रह नाः हस्तग्राह्यः जलरहहता शींकु लया खण्डः धान्येन अर्थः मासेन पूवथः वाचा कलहः गुडेन लमिः वस्त्रेण पूतम् वपत्रा सदृशः धनेन सींपन्नः क्षेत्रेण ह नाः हस्तेन ग्राह्यः जलेन रहहता सरौते से खक्ण्डत धान्य से प्राप्त धन एक माह पहले वाणी से कलह गुड से लमश्रित वस्त्र द्वारा पववत्र वपता के समान धन से सींपन्न क्षेत्र से ह न हार् द्वारा ग्राह्य जल से रहहत
  • 8. ३. चतुर्ी तत्पुरुष समास गुरुदक्षक्षणा क्रीडोद्यानम ् छात्रावासः भोजनसामग्री जनहहतम् गुरवे दक्षक्षणा क्रीडायै उद्यानम् छात्रेभ्यः आवासः भोजनाय सामग्री जनेभ्यः हहतम् 1. सामामसक पद चतुर्ी विभक्तत का अर्म देता ह।। २. दूसरा पद अर्म, बमल, हहत, सुख, रक्षित आहद पदों से बना हो। ३. प्रर्म पद का विग्रह चतुर्ी विभक्तत में होगा। ४. अर्म से बने हुए शब्द के विग्रह में ‘इतत’ या ‘इदम्’ जोड़तते हैं। उदाहरण :
  • 9. 3. चतुर्ी तत्पुरुष समास िीकृ ष्णापथणम ् वविामस्र्ानम् क्रीडाशैलः वातानुकू लनयन्त्राणण सञ्चारमागथः भोजनसामग्री सुखार्थम ् प्रीत्यर्थम् सन्तोषार्थम ् द्ववजार्थम ् िीकृ ष्णाय अपथणम ् वविामाय स्र्ानम् क्रीडायै शैलः वातानुकू लनाय यन्त्राणण सञ्चाराय मागथः भोजनाय सामग्री सुखाय अर्थम ् इतत प्रीत्यै अर्थम्इतत सन्तोषाय अर्थम ्इतत द्ववजाय अर्थम ् इतत
  • 10. 4. पञ्चमी तत्पुरुष  समामसक पद पञ्चमी विभक्तत का अर्म देता हो (भय, भीतः, भीततः, भीः), मुतत, पततत, अपेत, अपोढ़, अपत्रस्त, च्युत, भ्रष्ट आहद पदों से बने शब्द हों।  व्याघ्रभीतः चौरभयम् दुष्टभीः सुखापेतः िृिपतततः व्याघ्रात्भीतः चौरात् भयम् दुष्टात् भीः सुखात् अपेतः िृिात् पतततः व्याघ्र से भय चोर से डर दुष्ट से डर सुख से िक्ञ्चत िृि से धगरा हुआ
  • 11. 4. पञ्चमी तत्पुरुष तरंगापत्रस्तः कल्पनापोढ़ः दुःखमुततः स्िगमच्युतः पर्भ्रष्टः तरींगात्अपत्रस्तः कल्पनायाः अपोढ़ः दुःखात् मुततः स्वगाथत् च्युतः पर्ात् भ्रष्टः लहरों से डरा हुआ कल्पना रहहत दुःख से मुतत स्वगथ से अलग हुआ रास्ते से भटका हुआ सपमभयम्, शत्रुभीतः , व्याघ्रभयम्, आकशपतततः
  • 12. 5. षष्ठी तत्पुरुष बुद्धिप्रभािात् हहमालयः कृ ष्णभधगतन राजप्रासादः स्िणमपात्रम् बुद्िेः प्रभािात् हहमस्य आलयः कृ ष्णस्य भधगतन राज्ञः प्रासादः स्िणमस्य पात्रम् बुद्श्रध के प्रभाव से बर्थ का आलय कृ ष्ण की बहन राजा का महल सोने का बरतन ∙ सामामसक पद षष्ठी विभक्तत अर्िा संबंििाचक होता ह।। ∙ प्रर्म पद का विग्रह षष्ठी विभक्तत में होता ह।। कभी-कभी दोनों पदों में अियि अियिी (body & limb) संबंि होता ह।।
  • 13. 5. षष्ठी तत्पुरुष राष्रपततः िममलिणम ् शर राङ्गातन िृिपणामतन धगररमशखरम ् प्रज्ञाबलेन परगुणाः राष्रस्य पततः िममस्य लिणम् शर रस्य अंगातन िृिस्य पणामतन धगरेः मशखरम् प्रज्ञायाः बलेन परेषाम् गुणाः देश का पतत धमथ का लक्षण शर र के अींग वृक्ष के पत्ते पवथत का लशखर बुद्श्रध के बल से दूसरों के गुण
  • 14. 5. षष्ठी तत्पुरुष जीिनरिा, िृिमूले, आत्मरिाय। (आत्मनः), मानिशक्ततः, यन्त्रदशमनेन, शत्रुगणाः, स्िश्रृंगेण, िृिशाखा, परतापतनिारणम्, स्िमेिया (स्िस्य), पाररजातपल्लिेभ्यः, द।ििशेन, नगाधिराजः, सुरपततः, गणपततः पापतापहारेण (पापतापयोः हारकः तेन), ।
  • 15. 6. सप्तमी तत्पुरुष शास्त्रतनपुणः अिशौण्डः िातपटुत्िम् कममकु शलः शास्त्रेषु तनपुणः अिेषु शौण्डः िाधच पटुत्िम् कममणण कु शलः ∙ सामामसक पद सप्तमी विभक्तत या अधिकरण का अर्म देता ह।। ∙ कु शल, प्रिीण, तनपुण, मसद्ि, शौण्ड, पटु, पक्ण्डत, चतुर आहद पदों से बना हो। ∙ विग्रह सप्तमी विभक्तत में करते हैं। शास्त्रों में तनपुण पााँसे खेलने में चतुर वाणी में पटु कमथ में कु शल
  • 16. 6. सप्तमी तत्पुरुष सभापक्ण्डतः आतपशुष्कः व्यिहारचपलः क्रीडनककतिः स्र्ाल पतिः ग्राममसद्िः पाशबन्िः सभायाीं पक्ण्डतः आतपे शुष्कः व्यवहारे चपल क्रीडने ककतवः स्र्ाल्याीं पतवः ग्रामे लसद्धः पाशे बन्धः सभा में पक्ण्डत धूप में सूखा हुआ व्यवहार में चींचल खेल में मतकार र्ाल में पकाया हुआ गााँव में लसद्ध पाश में बींधा हुआ कायमदिः, ध्यानमग्नः, पूजारता, कलासतता, विज्ञानािीनः, मागामरब्िाः, दानसूरः, भुिनविहदते।
  • 17. 2. उपपद तत्पुरुष ∙ इस समास में उत्तरपद कक्रया से बना हुआ होता ह। और उसी का समास होता ह।। इसमलए इसे उपपद नाम हदया गया ह।। • कक्रया का लघुरूप प्रयुतत होता ह।। • सामामसक पद अलग - अलग मलंगों में होता ह। और उसके रूप चलते ह।। • सामामसक पद प्रायः विशेषण बनता ह।। • प्रर्म पद का विग्रह अर्म के अनुसार अलग-अलग विभक्तत में होगा
  • 18. 2. उपपद तत्पुरुष स्िणमकारः कु म्भकारः सिमदा जलदः इन्रक्जत ् उरगः नगः िेदवित ् स्वणं करोतत इतत कु म्भीं करोतत इतत सवं ददातत इतत जलीं ददातत इतत इन्रीं जयतत इतत उरसा गच्छतत इतत न गच्छतत इतत वेदान ् वेवत्त इतत स्वणथकार कु म्भार सब कु छ देने वाल बादल मेघनाद सपथ पवथत वेदज्ञाता
  • 19. 2. उपपद तत्पुरुष पंकजः नीरजम् पाठकः शास्त्रज्ञः अल्पज्ञाः गृहस्र्ः आसनस्र्ाः मिुपः मिुपाः नृपः कृ तघ्नः पङ्के /पङ्कात ् जायते इतत नीरे/नीरात ् जायते इतत पाठीं करोतत इतत शास्त्रीं जानातत इतत अल्पीं जानक्न्त इतत गृहे ततष्ठतत इतत आसने ततष्ठक्न्त इतत मधु वपबतत इतत मधु वपबक्न्त इतत नॄन ् पातत इतत कृ तीं हक्न्त इतत कमल कमल पाठ करने वाला शास्त्र जानने वाला कम जानने वाले गृहस्र् आसनस्र् लोग भ्रमर भौरे राजा कृ तघ्न (Ungrateful)
  • 20. 2. उपपद तत्पुरुष भारिाह अग्रणी िुरंिरः िुरंिराः भारीं वहतत इतत अग्रे नयतत इतत धुरीं धारयतत इतत धुरीं धारयक्न्त इतत भार ढ़ोने वाला आगे रहने वाला उत्तरदायी उत्तरदायी लोग
  • 21. 3. नञ्तत्पुरुष न योग्यम् न आवृतम् अयोग्यम् अनावृतम्  तनषेध (नह ीं) अर्थ में नञ ् तत्पुरुष के पदों का समास होता है।  प्रर्म पद ‘अ’ अर्वा ‘अन ्’ से बना होता है।  स्वर से प्रारम्भ होने वाले पदों में ‘अन ्’ और व्यींजन से प्रारम्भ होने वाले पदों में ‘अ’ जुड़ता है। अन ् + स्िर अ + व्यंजन
  • 22. 3. नञ्तत्पुरुष • न शतयम ् • न इष्टम ् • न अल्पः • न उत्सुकः • न वववेकः • न साध्यम ् • न दूरम् • न ॠतीं • न कायथम ् • न अवद्यम ् • न पर क्षक्षतम् • न आगतम ् • न ववज्ञातम ् • अशतयम ् • अतनष्टम ् • अनल्पः • अनुत्सुकः • अवववेकः, • असाध्यम ् • अदूरम् • अनृतीं • अकायथम ् • अनवद्यम ् • अपर क्षक्षतम् • अनागतम ् • अववज्ञातम ्
  • 23. 3. नञ ्तत्पुरुष अदृष्टम ्, अश्रुतम ्, अपहठतम ्, अिामममकः, अनुपक्स्र्तः, अनादरः, अनेकः, अविद्या, असत्यम ्, असत्, अध्रुिम ्, अनागतः।
  • 24. 4. प्राहद तत्पुरुष प्र = प्रगत: दुर् = दुष्टः  प्रर्म पद प्र, परा, तनर् दुर्, सु आहद उपसगों (Prefixes) से बना होता है।  सभी उपसगों का अपना ववलशष्ट अर्थ होता है क्जसे ववग्रह में ललखते हैं। सु / सत ् = शोभनः / सुष्ठु वि = ववलभन्नः/ ववशेषः
  • 25. 4. प्राहद तत्पुरुष सुजनः दुजमनः विदेशः विज्ञानम् सुमसद्धिः सक्न्नधिम् सुपर क्षितम् विवििाः सुभावषतम् शोभनः जनः दुष्टः जनः ववलभन्नः देशः ववशेषीं ज्ञानम् शोभना लसद्श्रधः शोभना तनश्रधम ् सुष्ठु पर क्षक्षतम् ववलशष्टाः ववधाः शोभनीं भावषतम ् सज्जन दुजथन ववदेश ववज्ञान कीततथ खजाना Well Tested Different Types Good Sayings
  • 26. Sample questions from the board papers
  • 27.