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 वागर्ााववव संपृक्तौ वागर्ाप्रततपत्तये ।
जगतः वपतरौ वन्दे पावातीपरमेश्वरौ । । १.१ । ।
1. ददलीप
2. रघु
3. अज
4. दशरर्
5. राम
6. कु श
7. अततथर्
8. तिषध
9. िल
10. िभ
1. पुण्डरीक
2. क्षेमधन्वा
3. देवािीक
4. अहीिगु
5. पाररयात्र
6. शशल
7. उन्िाभ
8. वज्रिाभ
9. शंखण
10. व्युवषताश्व
1. ववश्वसह
2. दहरण्यिाभ
3. कौसल्य
4. ब्रह्ममष्ठ
5. पुत्र
6. पुष्य
7. धृवसह्न्ध
8. सुदशाि
9. अह्निवणा
इक्कीस सगों में वर्णात रघुवंशी राजाओं की िामावली क्रमािुसार तिम्िशलर्खत है- यर्ा-
प्रर्म सगा
राजा ददलीप के चररत्र-वणाि से प्रारम्भ होता है। पुत्रववहीि राजा ददलीप
अपिी पत्िी 'सुदक्षक्षणा' सदहत पुत्र लाभ की कामिा से कु ल गुरु वशसष्ठ
के आश्रम में जाते हैं। वशसष्ठ उिकी व्यर्ा का कारण जाि अपिे आश्रम
में तिवास करिे वाली कामधेिु पुत्री िह्न्दिी िामक गौ की सेवा का
परामशा देते हैं।
द्ववतीय सगा
द्ववतीय सगा राजा ददलीप की गोभह्क्त-परायणता प्रस्तुत करता है। राजा पत्िी सुदक्षक्षणा
सदहत एकाग्रथचत्त से िह्न्दिी की सेवा में संलनि हो जाते हैं। कु छ काल व्यतीत होिे पर
िह्न्दिी राजा के भह्क्त-भाव की परीक्षा लेिे को उद्यत होती है। वह चरती हुई, दहमालय पवात
की कन्दरा में प्रववष्ट हो जाती है, गुफा में एक शसंह िह्न्दिी पर आक्रमण करता है। राजा
िह्न्दिी को मुक्त करिे के शलए शसंह से याचिा करते है। शसंह राजा का शरीर लेकर गाय को
मुक्त करिे को तैयार हो जाता है। राजा शसंह के समक्ष स्वशरीर अपाण कर देते हैं। िह्न्दिी
राजा के इस भह्क्त भाव से प्रसन्ि हो पुत्र प्राह्तत का आशीवााद देती है और अपिा दुनध पीिे का
तिदेश देती है। राजा आश्रम में लौट कर महवषा वशसष्ठ को सम्पूणा वृतांत से अवगत करा, गुरु
की अिुमतत से गाय का दूध पीते हैं तर्ा उद्देश्य की पूतता से प्रसन्ि राजधािी लौट आते हैं।
तृतीय सगा
तृतीय सगा में रघु के जन्म, वधाि, यौवराज्य का वणाि है। अश्वमेध यज्ञायोजि कर रघु वपता
ददलीप से राज्य ग्रहण करते हैं। ददलीप एवं सुदक्षक्षणा पुत्र को राज्य देकर तपोवि में सन्न्यास
हेतु प्रस्र्ाि करते हैं।
चतुर्ा सगा
चतुर्ा सगा में रघु-ददह्नवजय के अिंतर ववश्वह्जत यज्ञ की सम्पन्िता वर्णात है।
पञ्चम सगा
पञ्चम सगा रघु की दािशीलता से पररपूणा है, उिका राजकोष असीशमत दािवृवत्त से ररक्त हो
चुका है, इसी समय कौत्स िामक एक ब्रममचारी, गुरु दक्षक्षणा हेतु चौदह करोड़ स्वणा मुद्राओं
की याचिा ले सभा में उपह्स्र्त होता है। धिवेद कु बेर रघु के आक्रमण के भय से स्वणा मुद्राओं
की वषाा करते हैं, ब्रममचारी कौत्स अभीष्ट मात्रा में स्वणा मुद्राएं लेकर राजा को पुत्र-प्राह्तत का
आशीवााद देते हैं।
षष्ठम सगा
छठे सगा में रघुपुत्र अज का जन्म एवं ववदभा राजकन्या इन्दुमती से स्वयंवर वववाह का थचत्रण
है। अिेक देशों के भूपतत स्वयंवर में उपह्स्र्त हैं, ककं तु एक गन्धवा से प्रातत सम्मोहि िामक
अस्त्र की मदहमा से अज ही इन्दुमती को आकृ ष्ट करते हैं और वरमाला उिके ही गले पड़ती है।
ववशभन्ि देशों से आगत राजाओं के प्रसंग में अिेक व्यह्क्तगत गुणों, वंशावली, शौया, समृद्थध
और ववशेषरूप से राज्य की भौगोशलक सीमाओं का समुथचत वणाि है।
सततम सगा
सततम सगा अज के िगरभ्रमण एवं इन्दुमती सदहत अज के स्विगर प्रस्र्ाि को प्रस्तुत करता
है।
अष्टम सगा
अष्टम सगा रघु के राज्यत्याग, दशरर् की उत्पवत्त, इन्दुमती की मृत्यु, अज के ववलाप एवं
शरीर त्याग से पररपूणा है।
िवम सगा
िवम सगा दशरर्-प्रशंसा से आरम्भ है। आखेट काल में श्रवण वध इसी सगा का अंश है।
दशम सगा
दशम सगा में राम आदद चारों भाइयों के जन्म की कर्ा और शैशव की लीलाएं
थचत्रत्रत हैं।
नयारहवां सगा
नयारहवां सगा ववश्वाशमत्र के सार् राम-लक्ष्मण के वि-गमि, धिुष यज्ञ दशाि हेतु
शमथर्ला प्रस्र्ाि, धिुष भंजि, चारों भाइयों का सीता इत्यादद बदहिों से वववाह,
परशुराम संवाद आख्यािों को प्रस्तुत करता है।
बारहवां सगा
बारहवें सगा में राजततलक, मााँ कै के यी द्वारा वर मााँगिा, राम-लक्ष्मण व सीता का विप्रस्र्ाि,
शूपाणखा के िाक-काि काटिा, सीता हरण, वािरराज सुग्रीव का राज्याशभषेक, राम-रावण
युद्ध एवं रावण की राम के द्वारा पराजय कर्ा है।
तेरहवां सगा
तेरहवां सगा राम - सीता व लक्ष्मण के पुष्पक ववमाि द्वारा अयोध्या प्रत्यागमि तर्ा भरत
शमलि का थचत्रण है।
चौदहवां सगा
चौदहवां सगा सीता गभाधारण एवं राम द्वारा सीता पररत्याग, लक्ष्मण का सीता को वाल्मीकक
आश्रम में पहुाँचािे के वृत्तांत को प्रस्तुत करता है।
पन्द्रहवां सगा
पन्द्रहवां सगा अश्वमेध यज्ञ, लव कु श - जन्म, श्म्बूक वध, पृथ्वी का सीता को स्वयं में
समादहत कर लेिा तर्ा राम के स्वगा गमि तक की कर्ा से समातत होता है।
सोलहवां सगा
सोलहवें सगा से राम के वंशजों लव-कु श इत्यादद भ्राताओं का राज्य-शासि, पररणय, अयोध्या
की िगरदेवी द्वारा याचिा ककये जािे पर कु श का अयोध्या में शासिसूत्र संभालिा, कु श का
रातियों के सार् जल-क्रीड़ा का सुन्दर थचत्रण उपलब्ध होता है।
सत्रहवां सगा
सत्रहवें सगा में कु शपुत्र अततथर् के पराक्रम एवं यशोगार्ा का वणाि है।
अठारहवां सगा
अठारहवें सगा में अततथर्पुत्र तिषध, तिषधपुत्र िल, िल पुत्र पुण्डरीक, पुण्डरीक पुत्र
क्षेमधंवा, क्षेमधंवा पुत्र देवािीक, देवािीक पुत्र अहीिग, अहीिग पुत्र पाररयात्र,
पररयात्र पुत्र शशल, शशल पुत्र उन्िाभ, उन्िाभ पुत्र वज्रिाभ, वज्रिाभ पुत्र शंखण,
शंखण पुत्र व्युवषताश्व, व्युवषताश्व पुत्र ववश्वसह, ववश्वसह पुत्र दहरण्यिाभ,
दहरण्यिाभ पुत्र कौशल्य, कौशल्य पुत्र पुष्य, पुष्य पुत्र ध्रुवसह्न्ध, ध्रुवसह्न्ध पुत्र
सुदशाि समग्र वंशावली राजाओं के गुण पररचय को भी प्रस्तुत करती है।
उन्िीसवां सगा
उन्िीसवां सगा सूया वंश के अंततम िृपतत अह्निवणा के कामुक जीवि के भरपूर
ववलास का थचत्रण करता है, अत्यथधक ववलासी जीवि के पररणाम स्वरूप अह्निवणा
क्षयरोग से पीडड़त हुआ। रोग के प्रभाव से ददि प्रततददि दुबाल होकर तिस्संताि
मृत्यु को प्रातत हुआ। मृत्यु के पश्चात्प्रधाि मदहषी (गभावती) िे राज्य भार संभाला
और मंत्रत्रयों के परामशा से राज्य को सुव्यह्स्र्त ककया।
क्व सूयाप्रभवो वंशः क्व चाल्पववषया मततः ।
तततीषुादुास्तरं मोहादुडुपेिाह्स्म सागरम् । । १.२ । ।
मन्दः कववयशः प्रार्ी गशमष्याम्युपहास्यताम् ।
प्रांशुलभ्ये फले लोभादुद्बाहुररव वामिः । । १.३ । ।
अर् वा कृ तवानद्वारे वंशेऽह्स्मन्पूवासूररशभः ।
मणौ वज्रसमुत्कीणे सूत्रस्येवाह्स्त मे गततः । । १.४ । ।
त्यागाय संभृतार्ाािां सत्याय शमतभावषणाम् ।
यशसे ववह्जगीषुणां प्रजायै गृहमेह्न्धिाम् । । १.७ । ।
शैशवेऽभ्यस्तववद्यािां यौविे ववषयैवषणाम ् ।
वाधाके मुतिवृत्तीिां योगेिान्ते तिुत्यजाम् । । १.८ । ।
रघूणाम ् अन्वयं वक्ष्ये तिुवाह्नवभवोऽवप सि् ।
तद्गुणैः कणामागत्य चापलाय प्रचोददतः । । १.९ । ।
तं सन्तः श्रोतुमहाह्न्त सदसद्व्यह्क्तहेतवः ।
हेम्िः संलक्ष्यते मयनिौ ववशुद्थधः श्याशमकावप वा । । १.१० । ।
धन्यवाद:

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  • 1.
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  • 4.  वागर्ााववव संपृक्तौ वागर्ाप्रततपत्तये । जगतः वपतरौ वन्दे पावातीपरमेश्वरौ । । १.१ । ।
  • 5.
  • 6.
  • 7.
  • 8.
  • 9.
  • 10.
  • 11. 1. ददलीप 2. रघु 3. अज 4. दशरर् 5. राम 6. कु श 7. अततथर् 8. तिषध 9. िल 10. िभ 1. पुण्डरीक 2. क्षेमधन्वा 3. देवािीक 4. अहीिगु 5. पाररयात्र 6. शशल 7. उन्िाभ 8. वज्रिाभ 9. शंखण 10. व्युवषताश्व 1. ववश्वसह 2. दहरण्यिाभ 3. कौसल्य 4. ब्रह्ममष्ठ 5. पुत्र 6. पुष्य 7. धृवसह्न्ध 8. सुदशाि 9. अह्निवणा इक्कीस सगों में वर्णात रघुवंशी राजाओं की िामावली क्रमािुसार तिम्िशलर्खत है- यर्ा-
  • 12. प्रर्म सगा राजा ददलीप के चररत्र-वणाि से प्रारम्भ होता है। पुत्रववहीि राजा ददलीप अपिी पत्िी 'सुदक्षक्षणा' सदहत पुत्र लाभ की कामिा से कु ल गुरु वशसष्ठ के आश्रम में जाते हैं। वशसष्ठ उिकी व्यर्ा का कारण जाि अपिे आश्रम में तिवास करिे वाली कामधेिु पुत्री िह्न्दिी िामक गौ की सेवा का परामशा देते हैं।
  • 13. द्ववतीय सगा द्ववतीय सगा राजा ददलीप की गोभह्क्त-परायणता प्रस्तुत करता है। राजा पत्िी सुदक्षक्षणा सदहत एकाग्रथचत्त से िह्न्दिी की सेवा में संलनि हो जाते हैं। कु छ काल व्यतीत होिे पर िह्न्दिी राजा के भह्क्त-भाव की परीक्षा लेिे को उद्यत होती है। वह चरती हुई, दहमालय पवात की कन्दरा में प्रववष्ट हो जाती है, गुफा में एक शसंह िह्न्दिी पर आक्रमण करता है। राजा िह्न्दिी को मुक्त करिे के शलए शसंह से याचिा करते है। शसंह राजा का शरीर लेकर गाय को मुक्त करिे को तैयार हो जाता है। राजा शसंह के समक्ष स्वशरीर अपाण कर देते हैं। िह्न्दिी राजा के इस भह्क्त भाव से प्रसन्ि हो पुत्र प्राह्तत का आशीवााद देती है और अपिा दुनध पीिे का तिदेश देती है। राजा आश्रम में लौट कर महवषा वशसष्ठ को सम्पूणा वृतांत से अवगत करा, गुरु की अिुमतत से गाय का दूध पीते हैं तर्ा उद्देश्य की पूतता से प्रसन्ि राजधािी लौट आते हैं।
  • 14. तृतीय सगा तृतीय सगा में रघु के जन्म, वधाि, यौवराज्य का वणाि है। अश्वमेध यज्ञायोजि कर रघु वपता ददलीप से राज्य ग्रहण करते हैं। ददलीप एवं सुदक्षक्षणा पुत्र को राज्य देकर तपोवि में सन्न्यास हेतु प्रस्र्ाि करते हैं। चतुर्ा सगा चतुर्ा सगा में रघु-ददह्नवजय के अिंतर ववश्वह्जत यज्ञ की सम्पन्िता वर्णात है।
  • 15. पञ्चम सगा पञ्चम सगा रघु की दािशीलता से पररपूणा है, उिका राजकोष असीशमत दािवृवत्त से ररक्त हो चुका है, इसी समय कौत्स िामक एक ब्रममचारी, गुरु दक्षक्षणा हेतु चौदह करोड़ स्वणा मुद्राओं की याचिा ले सभा में उपह्स्र्त होता है। धिवेद कु बेर रघु के आक्रमण के भय से स्वणा मुद्राओं की वषाा करते हैं, ब्रममचारी कौत्स अभीष्ट मात्रा में स्वणा मुद्राएं लेकर राजा को पुत्र-प्राह्तत का आशीवााद देते हैं।
  • 16. षष्ठम सगा छठे सगा में रघुपुत्र अज का जन्म एवं ववदभा राजकन्या इन्दुमती से स्वयंवर वववाह का थचत्रण है। अिेक देशों के भूपतत स्वयंवर में उपह्स्र्त हैं, ककं तु एक गन्धवा से प्रातत सम्मोहि िामक अस्त्र की मदहमा से अज ही इन्दुमती को आकृ ष्ट करते हैं और वरमाला उिके ही गले पड़ती है। ववशभन्ि देशों से आगत राजाओं के प्रसंग में अिेक व्यह्क्तगत गुणों, वंशावली, शौया, समृद्थध और ववशेषरूप से राज्य की भौगोशलक सीमाओं का समुथचत वणाि है।
  • 17. सततम सगा सततम सगा अज के िगरभ्रमण एवं इन्दुमती सदहत अज के स्विगर प्रस्र्ाि को प्रस्तुत करता है। अष्टम सगा अष्टम सगा रघु के राज्यत्याग, दशरर् की उत्पवत्त, इन्दुमती की मृत्यु, अज के ववलाप एवं शरीर त्याग से पररपूणा है। िवम सगा िवम सगा दशरर्-प्रशंसा से आरम्भ है। आखेट काल में श्रवण वध इसी सगा का अंश है।
  • 18. दशम सगा दशम सगा में राम आदद चारों भाइयों के जन्म की कर्ा और शैशव की लीलाएं थचत्रत्रत हैं। नयारहवां सगा नयारहवां सगा ववश्वाशमत्र के सार् राम-लक्ष्मण के वि-गमि, धिुष यज्ञ दशाि हेतु शमथर्ला प्रस्र्ाि, धिुष भंजि, चारों भाइयों का सीता इत्यादद बदहिों से वववाह, परशुराम संवाद आख्यािों को प्रस्तुत करता है।
  • 19. बारहवां सगा बारहवें सगा में राजततलक, मााँ कै के यी द्वारा वर मााँगिा, राम-लक्ष्मण व सीता का विप्रस्र्ाि, शूपाणखा के िाक-काि काटिा, सीता हरण, वािरराज सुग्रीव का राज्याशभषेक, राम-रावण युद्ध एवं रावण की राम के द्वारा पराजय कर्ा है। तेरहवां सगा तेरहवां सगा राम - सीता व लक्ष्मण के पुष्पक ववमाि द्वारा अयोध्या प्रत्यागमि तर्ा भरत शमलि का थचत्रण है।
  • 20. चौदहवां सगा चौदहवां सगा सीता गभाधारण एवं राम द्वारा सीता पररत्याग, लक्ष्मण का सीता को वाल्मीकक आश्रम में पहुाँचािे के वृत्तांत को प्रस्तुत करता है। पन्द्रहवां सगा पन्द्रहवां सगा अश्वमेध यज्ञ, लव कु श - जन्म, श्म्बूक वध, पृथ्वी का सीता को स्वयं में समादहत कर लेिा तर्ा राम के स्वगा गमि तक की कर्ा से समातत होता है।
  • 21. सोलहवां सगा सोलहवें सगा से राम के वंशजों लव-कु श इत्यादद भ्राताओं का राज्य-शासि, पररणय, अयोध्या की िगरदेवी द्वारा याचिा ककये जािे पर कु श का अयोध्या में शासिसूत्र संभालिा, कु श का रातियों के सार् जल-क्रीड़ा का सुन्दर थचत्रण उपलब्ध होता है। सत्रहवां सगा सत्रहवें सगा में कु शपुत्र अततथर् के पराक्रम एवं यशोगार्ा का वणाि है।
  • 22. अठारहवां सगा अठारहवें सगा में अततथर्पुत्र तिषध, तिषधपुत्र िल, िल पुत्र पुण्डरीक, पुण्डरीक पुत्र क्षेमधंवा, क्षेमधंवा पुत्र देवािीक, देवािीक पुत्र अहीिग, अहीिग पुत्र पाररयात्र, पररयात्र पुत्र शशल, शशल पुत्र उन्िाभ, उन्िाभ पुत्र वज्रिाभ, वज्रिाभ पुत्र शंखण, शंखण पुत्र व्युवषताश्व, व्युवषताश्व पुत्र ववश्वसह, ववश्वसह पुत्र दहरण्यिाभ, दहरण्यिाभ पुत्र कौशल्य, कौशल्य पुत्र पुष्य, पुष्य पुत्र ध्रुवसह्न्ध, ध्रुवसह्न्ध पुत्र सुदशाि समग्र वंशावली राजाओं के गुण पररचय को भी प्रस्तुत करती है।
  • 23. उन्िीसवां सगा उन्िीसवां सगा सूया वंश के अंततम िृपतत अह्निवणा के कामुक जीवि के भरपूर ववलास का थचत्रण करता है, अत्यथधक ववलासी जीवि के पररणाम स्वरूप अह्निवणा क्षयरोग से पीडड़त हुआ। रोग के प्रभाव से ददि प्रततददि दुबाल होकर तिस्संताि मृत्यु को प्रातत हुआ। मृत्यु के पश्चात्प्रधाि मदहषी (गभावती) िे राज्य भार संभाला और मंत्रत्रयों के परामशा से राज्य को सुव्यह्स्र्त ककया।
  • 24. क्व सूयाप्रभवो वंशः क्व चाल्पववषया मततः । तततीषुादुास्तरं मोहादुडुपेिाह्स्म सागरम् । । १.२ । । मन्दः कववयशः प्रार्ी गशमष्याम्युपहास्यताम् । प्रांशुलभ्ये फले लोभादुद्बाहुररव वामिः । । १.३ । । अर् वा कृ तवानद्वारे वंशेऽह्स्मन्पूवासूररशभः । मणौ वज्रसमुत्कीणे सूत्रस्येवाह्स्त मे गततः । । १.४ । ।
  • 25. त्यागाय संभृतार्ाािां सत्याय शमतभावषणाम् । यशसे ववह्जगीषुणां प्रजायै गृहमेह्न्धिाम् । । १.७ । । शैशवेऽभ्यस्तववद्यािां यौविे ववषयैवषणाम ् । वाधाके मुतिवृत्तीिां योगेिान्ते तिुत्यजाम् । । १.८ । । रघूणाम ् अन्वयं वक्ष्ये तिुवाह्नवभवोऽवप सि् । तद्गुणैः कणामागत्य चापलाय प्रचोददतः । । १.९ । । तं सन्तः श्रोतुमहाह्न्त सदसद्व्यह्क्तहेतवः । हेम्िः संलक्ष्यते मयनिौ ववशुद्थधः श्याशमकावप वा । । १.१० । ।
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