2. 2 Ram Raksha Stotra & Ganapati Atharvashirsa
ीरामर ा तो म ् बुधकौ शक नामक ऋ ष वारा भगवान ीराम क तु त म
रचा गया तो है।
॥ ीरामर ा तो म् ॥
॥ ीगणेशायनम: ॥
॥ व नयोग ॥
अ य ीरामर ा तो म य। बुधकौ शक ऋ ष:। ीसीतारामचं ोदेवता।
अनु टुप् छ द:। सीता शि त:। ीम हनुमान् क लकम्।
ीसीतारामचं ी यथ जपे व नयोग: ॥
अथ: — इस राम र ा तो मं क
े रच यता बुधकौ शक ऋ ष ह, सीता और
रामचं देवता ह, अनु टुप छंद ह, सीता शि त ह, हनुमानजी क लक है तथा
ीरामचं जीक स नताक
े लए राम र ा तो क
े जपम व नयोग कया जाता
ह।
॥ अथ यानम् ॥
यायेदाजानुबाहुं धृतशरधनुषं ब धप मासन थं।
पीतं वासोवसानं नवकमलदल प धने ं स नम् ॥
वामांका ढसीता मुखकमल मल लोचनं नीरदाभं।
नानालंकारद तं दधतमु जटाम डलं रामचं म् ॥
यान ध रए — जो धनुष-बाण धारण कए हुए ह, ब ध प मासनक मु ाम
वराजमान ह और पीतांबर पहने हुए ह, िजनक
े आलो कत ने नए कमल दलक
े
समान पधा करते ह, जो बाय ओर ि थत सीताजीक
े मुख कमलसे मले हुए ह-
उन आजानु बाहु, मेघ याम, व भ न अलंकार से वभू षत तथा जटाधार ीरामका
यान कर।
॥ इ त यानम् ॥
3. 3 Ram Raksha Stotra & Ganapati Atharvashirsa
च रतं रघुनाथ य शतको ट व तरम्।
एक
ै कम रं पुंसां महापातकनाशनम् ॥१॥
ी रघुनाथजीका च र सौ को ट व तारवाला ह। उसका एक-एक अ र
महापातक को न ट करनेवाला है।
या वा नीलो पल यामं रामं राजीवलोचनम्।
जानक ल मणोपेतं जटामुक
ु टमि डतम् ॥२॥
नीले कमलक
े याम वणवाले, कमलने वाले , जटाओंक
े मुक
ु टसे सुशो भत,
जानक तथा ल मण स हत ऐसे भगवान् ीरामका मरण कर,
सा सतूणधनुबाणपा णं न तं चरा तकम्।
वल लया जग ातुमा वभूतमजं वभुम् ॥३॥
जो अज मा एवं सव यापक, हाथ म ख ग, तुणीर, धनुष-बाण धारण कए रा स क
े
संहार तथा अपनी ल लाओंसे जगत र ा हेतु अवतीण ीरामका मरण कर,
रामर ां पठे ा : पाप नीं सवकामदाम्।
शरो मे राघव: पातु भालं दशरथा मज: ॥४॥
म सवकाम द और पाप को न ट करनेवाले राम र ा तो का पाठ करता हूं ।
राघव मेरे सरक और दशरथक
े पु मेरे ललाटक र ा कर।
कौस येयो शौ पातु व वा म य: ुती।
ाणं पातु मख ाता मुखं सौ म व सल: ॥५॥
4. 4 Ram Raksha Stotra & Ganapati Atharvashirsa
कौश या नंदन मेरे ने क , व वा म क
े य मेरे कान क , य र क मेरे
ाणक और सु म ाक
े व सल मेरे मुखक र ा कर।
िज वां व या न ध: पातु क ठं भरतवं दत:।
क धौ द यायुध: पातु भुजौ भ नेशकामुक: ॥६॥
व या न ध मेर िज वाक र ा कर, क
ं ठक भरत-वं दत, क
ं ध क द यायुध और
भुजाओंक महादेवजीका धनुष तोडनेवाले भगवान ् ीराम र ा कर।
करौ सीतप त: पातु दयं जामद यिजत्।
म यं पातु खर वंसी ना भं जा बवदा य: ॥७॥
मेरे हाथ क सीता प त ीराम र ा कर, दयक जमदि न ऋ षक
े पु को
(परशुराम) जीतनेवाले, म य भागक खरक
े (नामक रा स) वधकता और ना भक
जांबवानक
े आ यदाता र ा कर।
सु ीवेश: कट पातु सि थनी हनुम भु:।
ऊ रघु म: पातु र :क
ु ल वनाशक
ृ त् ॥८॥
मेरे कमरक सु ीवक
े वामी, ह डय क हनुमानक
े भु और रान क रा स क
ु लका
वनाश करनेवाले रघुक
ु ल े ठ र ा कर।
जानुनी सेतुक
ृ पातु जंघे दशमुखा तक:।
पादौ बभीषण ीद: पातु रामोऽ खलं वपु: ॥९॥
मेरे जानुओंक सेतुकृ त, जंघाओक दशानन वधकता, चरण क वभीषणको ऐ वय
दान करनेवाले और स पूण शर रक ीराम र ा कर।
एतां रामबलोपेतां र ां य: सुक
ृ ती पठेत्।
स चरायु: सुखी पु ी वजयी वनयी भवेत् ॥१०॥
5. 5 Ram Raksha Stotra & Ganapati Atharvashirsa
शुभ काय करनेवाला जो भ त भि त एवं धाक
े साथ रामबलसे संयु त होकर
इस तो का पाठ करता ह, वह द घायु, सुखी, पु वान, वजयी और वनयशील हो
जाता ह।
पातालभूतल योम चा रण छ मचा रण:।
न टुम प श ता ते र तं रामनाम भ: ॥११॥
जो जीव पाताल, पृ वी और आकाशम वचरते रहते ह अथवा छ दम वेशम घूमते
रहते ह , वे राम नाम से सुर त मनु यको देख भी नह ं पाते ।
रामे त रामभ े त रामचं े त वा मरन्।
नरो न ल यते पापै भुि तं मुि तं च व द त ॥१२॥
राम, रामभ तथा रामचं आ द नाम का मरण करनेवाला रामभ त पाप से
ल त नह ं होता, इतना ह नह ं, वह अव य ह भोग और मो दोन को ा त
करता है।
जग जे ैकम ेण रामना ना भर तम्।
य: क ठे धारये य कर था: सव स धय: ॥१३॥
जो संसारपर वजय करनेवाले मं राम-नाम से सुर त इस तो को क
ं ठ थ
कर लेता ह, उसे स पूण स धयाँ ा त हो जाती ह।
व पंजरनामेदं यो रामकवचं मरेत्।
अ याहता : सव लभते जयमंगलम् ॥१४॥
जो मनु य व पंजर नामक इस राम कवचका मरण करता ह, उसक आ ाका
कह ं भी उ लंघन नह ं होता तथा उसे सदैव वजय और मंगलक ह ाि त
होती ह।
आ द टवा यथा व ने रामर ा ममां हर:।
तथा ल खतवान् ात: बु धो बुधकौ शक: ॥१५॥
6. 6 Ram Raksha Stotra & Ganapati Atharvashirsa
भगवान् शंकरने व नम इस रामर ा तो का आदेश बुध कौ शक
ऋ षको दया था, उ ह ने ातः काल जागनेपर उसे वैसा ह लख दया।
आराम: क पवृ ाणां वराम: सकलापदाम्।
अ भरामि लोकानां राम: ीमान् स न: भु: ॥१६॥
जो क प वृ क
े बागक
े समान व ाम देने वाले ह, जो सम त वप य को दूर
करनेवाले ह और जो तीनो लोक म सुंदर ह, वह ीमान राम हमारे भु ह।
त णौ पसंप नौ सुक
ु मारौ महाबलौ।
पु डर क वशाला ौ चीरक
ृ णािजना बरौ ॥१७॥
जो युवा, सु दर, सुक
ु मार, महाबल और कमलक
े (पु डर क) समान वशाल ने
वाले ह, मु नय क समान व एवं काले मृगका चम धारण करते ह।
फलमूला शनौ दा तौ तापसौ मचा रणौ।
पु ौ दशरथ यैतौ ातरौ रामल मणौ ॥१८॥
जो फल और क
ं दका आहार हण करते ह, जो संयमी , तप वी एवं
मचार ह , वे दशरथक
े पु राम और ल मण दोन भाई हमार र ा
कर।
शर यौ सवस वानां े ठौ सवधनु मताम्।
र :क
ु ल नह तारौ ायेतां नो रघू मौ ॥१९॥
ऐसे महाबल – रघु े ठ मयादा पु षोतम सम त ा णय क
े शरणदाता, सभी
धनुधा रय म े ठ और रा स क
े क
ु ल का समूल नाश करनेम समथ हमारा र ण
कर।
आ स जधनुषा वषु पृशा व याशुग नषंग स गनौ।
र णाय मम रामल मणाव त: प थ सदैव ग छताम् ॥२०॥
संघान कए धनुष धारण कए, बाणका पश कर रहे, अ य बाणोसे यु त तुणीर
लए हुए राम और ल मण मेर र ा करनेक
े लए मेरे आगे चल ।
7. 7 Ram Raksha Stotra & Ganapati Atharvashirsa
संन ध: कवची ख गी चापबाणधरो युवा।
ग छ मनोरथोऽ माक
ं राम: पातु सल मण: ॥२१॥
हमेशा त पर, कवचधार , हाथम खडग, धनुष-बाण तथा युवाव थावाले भगवान ्
राम ल मण स हत आगे-आगे चलकर हमार र ा कर।
रामो दाशर थ: शूरो ल मणानुचरो बल ।
काक
ु थ: पु ष: पूण: कौस येयो रघू म: ॥२२॥
भगवानका कथन है क ीराम, दाशरथी, शूर, ल मनाचुर, बल , काक
ु थ , पु ष,
पूण, कौस येय, रघुतम,
वेदा तवे यो य ेश: पुराणपु षो म:।
जानक व लभ: ीमान मेय परा म: ॥२३॥
वेदा वेघ, य ेश, पुराण पु षोतम , जानक व लभ, ीमान और अ मेय परा म
आ द नाम का
इ येता न जपेि न यं म भ त: धयाि वत:।
अ वमेधा धक
ं पु यं सं ा नो त न संशय: ॥२४॥
न य त धापूवक जप करनेवालेको नि चत पसे अ वमेध य से भी
अ धक फल ा त होता ह।
रामं दूवादल यामं प मा ं पीतवाससम्।
तुवि त नाम भ द यैन ते संसा रणो नर: ॥२५॥
दूवादलक
े समान याम वण, कमल-नयन एवं पीतांबरधार ीरामक उपरो त
द य नाम से तु त करनेवाला संसारच म नह ं पड़ता ।
रामं ल मण पूवजं रघुवरं सीताप तं सुंदरम्।
काक
ु थं क णाणवं गुण न धं व यं धा मकम्
राजे ं स यसंधं दशरथनयं यामलं शा तमू तम्।
8. 8 Ram Raksha Stotra & Ganapati Atharvashirsa
व दे लोक भरामं रघुक
ु ल तलक
ं राघवं रावणा रम् ॥२६॥
ल मण जीक
े पूवज , सीताजीक
े प त, काक
ु थ, क
ु ल-नंदन, क णाक
े सागर , गुण-
नधान , व भ त, परम धा मक , राजराजे वर, स य न ठ, दशरथक
े पु , याम
और शांत मू त, स पूण लोक म सु दर, रघुक
ु ल तलक , राघव एवं रावणक
े श ु
भगवान ् रामक म वंदना करता हूं ।
रामाय रामभ ाय रामचं ाय वेधसे।
रघुनाथाय नाथाय सीताया: पतये नम: ॥२७॥
राम, रामभ , रामचं , वधात व प , रघुनाथ, भु एवं सीताजीक
े वामीक म
वंदना करता हूं ।
ीराम राम रघुन दन राम राम।
ीराम राम भरता ज राम राम।
ीराम राम रणककश राम राम।
ीराम राम शरणं भव राम राम ॥२८॥
हे रघुन दन ीराम ! हे भरतक
े अ ज भगवान् राम! हे रणधीर, मयादा पु षो म
ीराम ! आप मुझे शरण द िजए ।
ीरामच चरणौ मनसा मरा म।
ीरामच चरणौ वचसा गृणा म।
ीरामच चरणौ शरसा नमा म।
ीरामच चरणौ शरणं प ये ॥२९॥
म एका मनसे ीरामचं जीक
े चरण का मरण और वाणीसे गुणगान करता हूं,
वाणी धारा और पूर धाक
े साथ भगवान ् रामच क
े चरण को णाम करता
हुआ म उनक
े चरण क शरण लेता हूँ।
माता रामो मि पता रामचं :।
वामी रामो म सखा रामचं :।
9. 9 Ram Raksha Stotra & Ganapati Atharvashirsa
सव वं मे रामच ो दयालुर् ।
ना यं जाने नैव जाने न जाने ॥३०॥
ीराम मेरे माता, मेरे पता , मेरे वामी और मेरे सखा ह। इस कार
दयालु ीराम मेरे सव व ह, उनक
े सवाम कसी दुसरेको नह ं जानता ।
द णे ल मणो य य वामे तु जनका मजा।
पुरतो मा तय य तं व दे रघुनंदनम् ॥३१॥
िजनक
े दा और ल मणजी, बा और जानक जी और सामने हनुमान ह
वराजमान ह, म उ ह रघुनाथजीक वंदना करता हूं ।
लोका भरामं रणरंगधीरं राजीवने ं रघुवंशनाथम्।
का य पं क णाकरंतं ीरामचं ं शरणं प ये ॥३२॥
म स पूण लोक म सु दर तथा रण डाम धीर, कमलने , रघुवंश नायक, क णा
क मू त और क णाक
े भ डार पी ीरामक शरण म हूँ ।
मनोजवं मा ततु यवेगं िजतेि यं बु धमतां व र ठम्।
वाता मजं वानरयूथमु यं ीरामदूतं शरणं प ये ॥३३॥
िजनक ग त मनक
े समान और वेग वायुक
े समान (अ यंत तेज) है, जो परम
िजतेि य एवं बु धमान म े ठ ह, म उन पवन-नंदन वानार ग य ीराम
दूतक शरण लेता हूं ।
क
ू ज तं रामरामे त मधुरं मधुरा रम्।
आ य क वताशाखां व दे वा मी कको कलम् ॥३४॥
म क वतामयी डाल पर बैठकर, मधुर अ र वाले ‘राम-राम’ क
े मधुर नामको
क
ू जते हुए वा मी क पी कोयलक वंदना करता हूं ।
आपदामपहतारं दातारं सवसंपदाम्।
लोका भरामं ीरामं भूयो भूयो नमा यहम् ॥३५॥
10. 10 Ram Raksha Stotra & Ganapati Atharvashirsa
म इस संसारक
े य एवं सु दर , उन भगवान ् रामको बार-बार नमन करता हूं,
जो सभी आपदाओंको दूर करनेवाले तथा सुख-स प त दान करनेवाले ह।
भजनं भवबीजानामजनं सुखसंपदाम्।
तजनं यमदूतानां रामरामे त गजनम् ॥३६॥
‘राम-राम’ का जप करनेसे मनु यक
े सभी क ट समा त हो जाते ह। वह सम त
सुख-स प त तथा ऐ वय ा त कर लेता ह। राम-रामक गजनासे यमदूत सदा
भयभीत रहते ह।
रामो राजम ण: सदा वजयते रामं रमेशं भजे।
रामेणा भहता नशाचरचमू रामाय त मै नम:।
रामा नाि त परायणं परतरं राम य दासोऽ यहम्।
रामे च लय: सदा भवतु मे भो राम मामु धर ॥३७॥
राजाओंम े ठ ीराम सदा वजयको ा त करते ह। म ल मीप त भगवान ्
ीरामका भजन करता हूं । स पूण रा स सेनाका नाश करनेवाले ीरामको म
नम कार करता हूं । ीरामक
े समान अ य कोई आ यदाता नह ं। म उन
शरणागत व सलका दास हूँ । म स सव ीरामम ह ल न रहूं । हे ीराम! आप
मेरा (इस संसार सागर से) उ धार कर।
राम रामे त रामे त रमे रामे मनोरमे।
सह नाम त ु यं रामनाम वरानने ॥३८॥
( शव पावती से बोले –) हे सुमुखी ! राम- नाम ‘ व णु सह नाम’ क
े समान ह।
म सदा रामका तवन करता हूं और राम-नामम ह रमण करता हूं ।
इ त ीबुधकौ शक वर चतं ीरामर ा तो ं संपूणम् ॥
इस कार बुधकौ शक वारा र चत ीराम र ा तो स पूण होता है।
॥ ी सीतारामचं ापणम तु ॥
11. 11 Ram Raksha Stotra & Ganapati Atharvashirsa
गणेश अथवशीष
12. 12 Ram Raksha Stotra & Ganapati Atharvashirsa
गणप त अथवशीष सं कृ त म र चत एक लघु उप नषद है। इस उप नषद म गणेश
को परम म बताया गया है। यह अथववेद का भाग है।अथवशीष म दस ऋचाएं
ह।
गणप त का आ ददै वक व प
ॐ नम ते गणपतये ॥ वमेव य ं त वम स ॥ वमेव क
े वलं कता स ॥
वमेव क
े वलं धता स ॥ वमेव क
े वलं हता स ॥ वमेव सव खि वदं मा स ॥
वं सा ादा मा स न यम ् ॥१॥
स य कथन
ऋतम ् वि म ॥ स यं वि म ॥ २॥
र ण क
े लये ाथना
अव वं माम ् ॥ अव व तारम् ॥ अव ोतारम् ॥ अव दातारम् ॥ अव धातारम्
॥ अवानूचानमव श यम ् ॥ अव प चा ात् ॥ अव पुर तात् ॥ अवो रा ात ् ॥
अव द णा ात् ॥ अव चो वा ात ् ॥ अवाधरा ात ् ॥ सवतो मां पा ह पा ह
सम तात् ॥३॥
गणप तजी का आ याि मक व प
वं वा मय वं च मयः ॥ वमानंदमय वं ममयः ॥ वं
सि चदानंदा वतीयोऽ स। वं य ं मा स। वं ानमयो व ानमयोऽ स
॥४॥
गणप त का व प
सव जग ददं व ो जायते ॥ सव जग ददं व ि त ठ त ॥ सव जग ददं व य
लयमे य त ॥ सव जग ददं व य ये त ॥
वं भू मरापोऽनलोऽ नलो नभः ॥ वं च वा र वा पदा न ॥५॥
13. 13 Ram Raksha Stotra & Ganapati Atharvashirsa
वं गुण यातीतः। वं अव था यातीतः। वं देह यातीतः। वं काल यातीतः। वं
मूलाधारि थतोऽ स न यम ् ॥ वं शि त या मकः। वां यो गनो यायि त
न यम ् ॥ वं हमा वं व णु वं वं इ वं अि न वं वायु वं सूय वं
चं मा वं मभूभुवः वरोम ् ॥६॥
गणेश व या
गणा दन ् पूवमु चाय वणा द तदन तरम ्। अनु वारः परतरः। अध दुल सतम ्।
तारेण ऋ धम ्। एत व मनु व पम ्। गकारः पूव पम ्। अकारो म यम पम ्।
अनु वार चा य पम ्। ब दु र पम ्। नादः संधानम् ॥ सं हता सि धः। सैषा
गणेश व या। गणक ऋ षः। नचृ गाय ीछंदः गणप तदवता। ॐ गं गणपतये
नमः ॥७॥
एकद ताय व महे व तुंडाय धीम ह। त नो द ती चोदयात् ॥ ८ ॥
एकद तं चतुह तम ् पाशमं क
ु शधा रणम ् ॥ रदं च वरदं ह तै ब ाणं
मूषक वजम ्। र तम ् ल बोदरं शूपकणक
ं र तवाससम ् ॥
र तग धानु ल तांगं र तपु पैः सुपूिजतम्। भ तानुकि पनं देवं
जग कारणम युतम ्। आ वभूतं च सृ यादौ कृ तेः पु षा परम ् ॥ एवं याय त
यो न यं स योगी यो गनां वरः ॥९॥
नमन
नमो ातपतये नमो गणपतये नमः मथपतये नम तेऽ तु ल बोदरायैकद ताय
व नना शने शवसुताय वरदमूतये नमः ॥ १० ॥
फल ु त
एतदथवशीषम ् योऽधीते ॥ स मभूयाय क पते ॥ स सव व नैन बा यते ॥ स
सवतः सुखमेधते ॥ स पंचमहापापा मु यते ॥ सायमधीयानो दवसकृ तम् पापान ्
14. 14 Ram Raksha Stotra & Ganapati Atharvashirsa
नाशय त ॥ ातरधीयानो रा कृ तम ् पापान ् नाशय त ॥ सायं ातः युंजानो
अपापो भव त ॥ सव ाधीयानोऽप व नो भव त। धमाथकाममो ं च वंद त ॥
इदम् अथवशीषम ् अ श याय न देयम ्॥ यो य द मोहा दा य त ॥ स पापीयान ्
भव त ॥ सह ावतनात् यं यं काममधीते तं तमनेन साधयेत्॥११॥
अनेन गणप तम ् अ भ षंच त ॥ स वा मी भव त ॥ चतु यामन नंजप त ॥ स
व यावा भव त ॥ इ यथवणवा यम ्॥ मा यावरणं व यात्॥ न बभे त
कदाचने त ॥ १२ ॥
यो दूवाक
ु रैयज त ॥ स वै वणोपमो भव त ॥ यो लाजैयज त ॥ स यशोवा भव त
॥ स मेधावा भव त ॥ यो मोदकसह ेण यज त ॥ स वां छतफलमवा नो त ॥
यः सा यस म भयज त ॥ स सवम ् लभते स सवम ् लभते ॥ अ टौ ा मणान ्
स य ाह य वा ॥ सूयवच वी भव त ॥ सूय हे महान यां तमासं नधौ वा
ज वा स धम ो भव त ॥ महा व ना मु यते। महादोषा मु यते ॥
महापापा मु यते ॥ स सव व भव त स सव व भव त ॥ य एवं वेद इ युप नषत्
॥१३॥
अथ
गणप त को नम कार है, तु ह ं य त व हो, तु ह ं क
े वल क ा, तु ह ं क
े वल
धारणकता और तु ह ं क
े वल संहारकता हो, तु ह ं क
े वल सम त व व प म हो
और तु ह ं सा ात ् न य आ मा हो। ॥ १॥
॥ व प त व ॥
यथाथ कहता हूँ। स य कहता हूँ। ॥ २॥
तुम मेर र ा करो। व ता क र ा करो। ोता क र ा करो। दाता क र ा
करो। धाता क र ा करो। षडंग वेद व आचाय क र ा करो। श य र ा करो।
पीछे से र ा करो। आगे से र ा करो। उ र (वाम भाग) क र ा करो। द ण
15. 15 Ram Raksha Stotra & Ganapati Atharvashirsa
भाग क र ा करो। ऊपर से र ा करो। नीचे क ओर से र ा करो। सवतोभाव
से मेर र ा करो। सब दशाओं से मेर र ा करो। ॥ ३॥
तुम वा मय हो, तुम च मय हो। तुम आन दमय हो। तुम ममय हो। तुम
सि चदान द अ वतीय परमा मा हो। तुम य म हो। तुम ानमय हो,
व ानमय हो। ॥ ४॥
यह सारा जगत ् तुमसे उ प न होता है। यह सारा जगत ् तुमसे सुर त रहता है।
यह सारा जगत ् तुमम ल न होता है। यह अ खल व व तुमम ह तीत होता है।
तु ह ं भू म, जल, अि न और आकाश हो। तु ह ं परा, प य ती, म यमा और
वैखर चतु वध वाक् हो। ॥ ५॥
तुम स व-रज-तम-इन तीन गुण से परे हो। तुम भूत-भ व य-वतमान-इन तीन
काल से परे हो। तुम थूल, सू म और कारण- इन तीन देह से परे हो। तुम
न य मूलाधार च म ि थत हो। तुम भु-शि त, उ साह-शि त और म -
शि त- इन तीन शि तय से संयु त हो। यो गजन न य तु हारा यान करते
ह। तुम मा हो। तुम व णु हो। तुम हो। तुम इ हो। तुम अि न हो।
तुम वायु हो। तुम सूय हो। तुम च मा हो। तुम (सगूण) म हो, तुम ( नगुण)
पाद भूः भुवः वः एवं णव हो। ॥ ६॥
॥ गणेश मं ॥
‘गण’ श द क
े आ द अ र गकार का पहले उ चारण करक
े अन तर आ दवण
अकार का उ चारण कर। उसक
े बाद अनु वार रहे। इस कार अधच से पहले
शो भत जो ‘गं’ है, वह ओंकार क
े वारा ध हो, अथात् उसक
े पहले और पीछे
भी ओंकार हो। यह तु हारे म का व प (ॐ गं ॐ) है। ‘गकार’ पूव प है,
‘अकार’ म यम प है, ‘अनु वार’ अ य प है। ‘ ब दु’ उ र प है। ‘नाद’ संधान
है। सं हता’ सं ध है। ऐसी यह गणेश व या है। इस व या क
े गणक ऋ ष ह।
नचृ गाय ी छ द है और गणप त देवता है। म है- ‘ॐ गं गणपतये नमः”
॥ ७॥
॥ गणेश गाय ी ॥
16. 16 Ram Raksha Stotra & Ganapati Atharvashirsa
एकद त को हम जानते ह, व तु ड का हम यान करते ह। द ती हमको उस
ान और यान म े रत कर। ॥ ८॥
॥ गणेश प ( यान)॥
गणप तदेव एकद त और चतुबाहु ह। वे अपने चार हाथ म पाश, अंक
ु श, द त
और वरमु ा धारण करते ह। उनक
े वज म मूषक का च न है। वे र तवण,
ल बोदर, शूपकण तथा र तव धार ह। र तच दन क
े वारा उनक
े अंग
अनु ल त ह। वे र तवण क
े पु प वारा सुपूिजत ह। भ त क कामना पूण
करने वाले, यो तमय, जगत् क
े कारण, अ युत तथा कृ त और पु ष से परे
व यमान वे पु षो म सृि ट क
े आ द म आ वभूत हुए। इनका जो इस कार
न य यान करता है, वह योगी यो गय म े ठ है। ॥ ९॥
॥ अ ट नाम गणप त ॥
ातप त, गणप त, मथप त, ल बोदर, एकद त, व ननाशक, शवतनय तथा
वरदमू त को नम कार है। ॥ १०॥
॥ फल ु त ॥
इस अथवशीष का जो पाठ करता है, वह मीभूत होता है, वह कसी कार क
े
व न से बा धत नह ं होता, वह सवतोभावेन सुखी होता है, वह पंच महापाप से
मु त हो जाता है। सायंकाल इसका अ ययन करनेवाला दन म कये हुए पाप
का नाश करता है, ातःकाल पाठ करनेवाला रा म कये हुए पाप का नाश
करता है। सायं और ातःकाल पाठ करने वाला न पाप हो जाता है। (सदा)
सव पाठ करनेवाले सभी व न से मु त हो जाता है एवं धम, अथ, काम और
मो - इन चार पु षाथ को ा त करता है। यह अथवशीष इसको नह ं देना
चा हये, जो श य न हो। जो मोहवश अ श य को उपदेश देगा, वह महापापी
होगा। इसक १००० आवृ करने से उपासक जो कामना करेगा, इसक
े वारा उसे
स ध कर लेगा। ॥ ११॥
( व वध योग)
17. 17 Ram Raksha Stotra & Ganapati Atharvashirsa
जो इस म क
े वारा ीगणप त का अ भषेक करता है, वह वा मी हो जाता है।
जो चतुथ त थ म उपवास कर जप करता है, वह व यावान ् हो जाता है। यह
अथवण-वा य है। जो मा द आवरण को जानता है, वह कभी भयभीत नह ं
होता। ॥ १२॥
(य योग)
जो दुवाक
ु र वारा यजन करता है, वह क
ु बेर क
े समान हो जाता है। जो लाजा क
े
वारा यजन करता है, वह यश वी होता है, वह मेधावान होता है। जो सह
मोदक क
े वारा यजन करता है, वह मनोवां छत फल ा त करता है। जो
घृता त स मधा क
े वारा हवन करता है, वह सब क
ु छ ा त करता है, वह सब
क
ु छ ा त करता है। ॥ १३॥
(अ य योग)
जो आठ ा मण को इस उप नष का स यक हण करा देता है, वह सूय क
े
समान तेज-स प न होता है। सूय हण क
े समय महानद म अथवा तमा क
े
नकट इस उप नष का जप करक
े साधक स धम हो जाता है। स पूण
महा व न से मु त हो जाता है। महापाप से मु त हो जाता है। महादोष से
मु त हो जाता है। वह सव व हो जाता है। जो इस कार जानता है-वह सव व
हो जाता है। ॥ १४॥