1. आ वश्यक निवेदि
प्रस्तुत आध्ययि स मग्री, त लिक एँ एवं लित्र आ दद
श्रीमती स रिक ववक स छ बड़ द्व ि तैय ि वकये
गए हैं |
इिक आन्यत्र एवं आन्य भ ष में उपय ेग कििे के
पूवव उिसे आनिव यवत: संपकव कि िें |
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2. ग ेम्मटस ि जीवक ण्ड़
आ ि यव िेमीिन्र ससद् ंत-िक्रवतीव द्व ि िलित
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Smt Sarika Vikas Chhabra
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3. ग थ 1 : मंगि ििण
ज े ससद्, शुद् एवं आकिंक हैं एवं
जजिके सद गुणरूपी ित ें के भूषण ें क उदय िहत है,
एेसे श्री जजिेन्रवि िेलमिंर स्व मी क े िमस्क ि किके
जीव की प्ररूपण क े कहंग ।
ससद्ं सुद्ं पणलमय जजणणंदविणेलमिंदमकिंकं ।
गुणियणभूसणुदयं जीवस्स परूवणं व ेच्छं॥
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4. आि ैवकक गणणत क ें पढ़ें?
जजि गम क े समझिे के लिये
तीि ि ेक की ववश ित क े समझिे के लिये
आ त्म आिंत गुण ें की ख ि है, त े वह आिंत वकति
ववश ि है
संस ि परिभ्रमण आथ वत 5 पि वतवि क े समझिे के लिये
...इत्य दद
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5. म ि (गणणत)
ि ैवकक आि ैवकक
रव्य
संख्य
21 भेद
उपम
8 भेद
क्षेत्र क ि भ व
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6. संख्य म ि
संख्य त
ज
.
म. उ.
आसंख्य त
परित
ज. म. उ.
युक्त
ज. म. उ.
आसंख्य त
संख्य त
ज. म. उ.
आिंत
परित
ज. म. उ.
युक्त
ज. म. उ.
आिंत िंत
ज. म. उ.
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7. संख्य त -
• ज े मनत-श्रुतज्ञ ि क ववषय ह े
आसंख्य त -
• ज े मनत,श्रुत ज्ञ ि क ववषय त े िहीं है िेवकि
आवधिज्ञ ि आ ैि मि:पयवय ज्ञ ि क ववषय ह े
आिंत -
• ज े मनत, श्रुत, आवधि, मि:पयवय ज्ञ ि क ववषय
िहीं है िेवकि के विज्ञ ि क ववषय ह े
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8. •2जघन्य संख्य त
•कु ण्ड़ ववि िजघन्य परित संख्य त
•ववििि देयजघन्य युक्त संख्य त
•वगवजघन्य आसंख्य त संख्य त
•शि क त्रय निष्ठ पिजघन्य परित िंत
•ववििि देयजघन्य युक्त िंत
•वगवजघन्य आिंत िंत
•शि क त्रय निष्ठ पिउत्कृ ष्ट आिंत िंत
21 में से 8 ि शशय ं हमें निक ििी है-
ववधि
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9. शेष ि शशय ँ ?
शेष उत्कृ ष्ट ि शशय ं आ गे के जघन्य में से 1 घट िे पि प्र प्त
ह ेती हैं |
जघन्य आ ैि उत्कृ ष्ट के बीि की सब ि शशय ं मध्यम भेद हैं |
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10. संख्य त
=2जघन्य संख्य त
= 3 से (उत्कृ ष्ट संख्य त - 1)मध्यम संख्य त
= जघन्य परित आसंख्य त – 1उत्कृ ष्ट संख्य त
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11. आसंख्यत
परित आसंख्य त
जघन्य
मध्यम
उत्कृ ष्ट
युक्त आसंख्य त
जघन्य
मध्यम
उत्कृ ष्ट
आसंख्य त संख्य त
जघन्य
मध्यम
उत्कृ ष्टvisit www.jainkosh.org for granth, notes, audio & video Page: 11
12. जघन्य परित आसंख्य त
निक ििे की वविी
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16. जघन्य परित आसंख्य त
• आिवस्थ कु ण्ड़ में
सिस ें के द िे
भिेंगें (45 आंक
प्रम ण)
• विि ऊपि तक
भी भिि है जब
तक वपि लमड़
(शशख ऊ) जैस
ि बि ज ये (46
आंक प्रम ण )
आिवस्थ
िगभग 10
गुि ज्य द
सिस ें आ येगी
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19. • यह आिवस्थ कु ण्ड़
एक ब ि भि गय ,
आतः शि क कु ण्ड़
में एक सिस ें
ड़ लिये
• आब 1-1 सिस ें क
द ि निक िकि एक
द्वीप, एक समुर में
ड़ िेंगे जब तक वक
स िी सिस ें सम प्त
ि ह े ज ये
भि हुआ
आिवस्थ
शि क
कु ण्ड़
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21. िये आिवस्थ कु ण्ड़ क े विि सिस ें से शशख ऊ भिेंगें
शि क कु ण्ड़ में आिग से एक सिस ें क द ि ड़ िेंगे
आ ैि एक-एक सिस ें द्वीप-समुर में ड़ िते ज येंगें जब तक वक आिवस्थ कु ण्ड़
ख िी ि ह े ज ये।
ये process किते-किते जब शि क कु ण्ड़ शशख ऊ तक भि ज येग , तब 1
सिस ें प्रनतशि क कु ण्ड़ में ड़ िेंगे
भि हुआ आिवस्थ भि हुआ शि क प्रनतशि क में 1 सिस ेंvisit www.jainkosh.org for granth, notes, audio & video Page: 21
22. आब शि क कु ण्ड़ क े ख िी कि, बढ़ते हुए व्य स व िे आिवस्थ
कु ण्ड़ बि कि, शि क कु ण्ड़ क े भििे की same process द ेहि ते हैं
जब दूसिी ब ि शि क कु ण्ड़ भित है तब एक आ ैि सिस ें
प्रनतशि क में ड़ िेंगें
भि हुआ शि क प्रनतशि क में 1 आ ैि सिस ेंभि हुआ आिवस्थ
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23. ये पूिी process प्रनतशि क कु ण्ड़ भििे तक किेंगें
जब प्रनतशि क कु ण्ड़ भि ज य, तब एक सिस ें मह शि क कु ण्ड़ में ड़ िेंगें
भि हुआ आिवस्थ
भि हुआ शि क भि हुआ प्रनतशि क मह श ि क में एक सिस ें
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24. आब शि क , प्रनतशि क ख िी कि same process किते हैं
जब शि क कु ण्ड़ भि ज य तब एक सिस ें प्रनतशि क में ड़ िेंगें
एेस किते-किते जब प्रनतशि क भि ज य तब एक दूसिी सिस ें मह शि क में ड़ िेंगें
एेस किते-किते जब मह शि क कु ण्ड़ भि ज येग उस समय प्रनतशि क , शि क आ ैि
आिवस्थ कु ण्ड़ भी भि हुआ प्र प्त ह ेग
इस आंनतम आिवस्थ कु ण्ड़ में जजतिी सिस ें क प्रम ण ह ेत है वह जघन्य परित संख्य त
संख्य है
आंनतम आिवस्थ कु ण्ड़ की सिस ें क प्रम ण = जघन्य परित संख्य त
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25. जघन्य युक्त आसंख्य त
(ववििि देय ि शश ववि ि)
ववििि = जजतिी ब ि वबखेि ज ये
देय = जजसे वबखेि ज ये
जैसे - ववििि = 5, देय = 2
त े ववििि-देय प्र प्त ि शश = 2 x 2 x 2 x 2 x 2 = 32
आन्य प्रक ि से = (देय)ववििि
य िे 25 = 32
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26. जघन्य युक्त आसंख्य त
ज परित संख्य त
ज परित संख्य त
देय = जघन्य परित संख्य त
ववििि = जघन्य परित संख्य त
ववशेष : जघन्य युक्त संख्य त = 1 आ विी के समय
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27. जघन्य युक्त आसंख्य त
ज परित संख्य त x ज परित संख्य त x ज परित संख्य त ………….
x ज परित संख्य त x ज परित संख्य त
ज परित संख्य त ब ि
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28. जघन्य आसंख्य त संख्य त
ववशेष : ज. आसंख्य त संख्य त = प्रति विी (य िे आ विी x आ विी)
जघन्य युक्त असंख्यात
𝟐
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29. जघन्य परित आिंत
निक ििे की वविी
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30. शि क त्रय निष्ठ पि
तीि ि शशय ं स्थ वपत कििी-
1. ववििि 2. देय 3. शि क
एक ब ि ववििि-देय किके शि क में से एक घट ि ।
हि ब ि ववििि देय ववि ि कििे पि एक-एक शि क कम-कम किते ज ि
जब शि क शून्य ह े ज य त े वह एक ब ि निष्ठ पि है।
ज े आंत में ि शश आ येगी वह मह ि शश ह ेगी ।
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31. शि क त्रय निष्ठ पि
इस मह ि शश क े पुिः शि क , ववििि, देय रूप
िखि ।
पुिः जब तक शि क ि शश सम प्त िहीं ह े ज ती, तब
तक ववििि-देय ववि ि से ि शशय ं निक िि ।
जब शि क शून्य ह े ज य त े वह दूसिी ब ि निष्ठ पि
है।
ज े आंत में ि शश आ येगी वह मह -मह ि शश ह ेगी ।
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32. शि क त्रय निष्ठ पि
इस मह -मह ि शश क े पुिः शि क , ववििि, देय रूप िखि
पुिः जब तक शि क ि शश सम प्त िहीं ह े ज ती, तब तक
ववििि-देय ववि ि से ि शशय ं निक िि ।
जब शि क शून्य ह े ज य त े वह तीसिी ब ि निष्ठ पि है।
ज े आंत में मह -मह -मह ि शश ह ेगी, वह मूि ि शश क
शि क -त्रय निष्ठ पि से प्र प्त ि शश कहि ती है ।
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35. आिंत
सक्षय आिंत
खिव किते-किते जजस ि शश
क आंत आ ज य
आक्षय आिंत
िवीि वृणद् िहीं ह ेिे पि भी खिव
किते-किते जजस ि शश क आंत िहीं
आ वेvisit www.jainkosh.org for granth, notes, audio & video Page: 35
36. जघन्य परित आिंत
1. जघन्य आसंख्य त संख्य त क शि क त्रय निष्ठ पि (=A)
2. 6 ि शश इसमें ज ेड़ें (=B) :
(1) 1 जीव के प्रदेश ें की संख्य := ि ेक प्रम ण आसंख्य त
(2) िमव रव्य के प्रदेश ें की संख्य =ि ेक प्रम ण आसंख्य त
(3) आिमव रव्य के प्रदेश ें की संख्य =ि ेक प्रम ण आसंख्य त
(4) ि ेक क श के प्रदेश ें की संख्य =ि ेक प्रम ण आसंख्य त
(5) आप्रनतधष्ठत प्रत्येक विस्पनत जीव ें की संख्य =आसंख्य त ि ेक प्रम ण
(6) सप्रनतधष्ठत प्रत्येक विस्पनत की संख्य =आसंख्य त ि ेक प्रम ण
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37. ि ेक प्रम ण आसंख्य त = आसंख्य त ि ेक प्रम ण =
ि ेक क श में जजतिे प्रदेश हैं वे,
i.e. आसंख्य त
ि ेक क श के आसंख्य त प्रदेश ें से
आसंख्य त गुण
आसंख्य त ि ेक प्रम ण आ ैि ि ेक प्रम ण आसंख्य त में आंति
ि ेक प्रम ण आसंख्य त आसंख्य त ि ेक प्रम ण
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38. जघन्य परित आिंत
3. B क शि क त्रय निष्ठ पि किें = C
4. इसमें 4 ि शश ज ेड़ें, D = :
(1) 1 कल्पक ि के समय = 20 क ेड़ -क ेड़ी स गि
(2) स्स्थनत-बंि आध्यवस य स्थ ि ें की संख्य = आसंख्य त ि ेक प्रम ण
(3) आिुभ ग-बंि आध्यवस य स्थ ि ें की संख्य =आसंख्य त ि ेक प्रम ण
(4) मि, विि, क य के आववभ ग-प्रनतच्छेद ें की संख्य =आसंख्य त ि ेक प्रम ण
5. D क शि क त्रय निष्ठ पि = जघन्य परित आिंत
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39. •स्स्थनत बंि के क िणभूत जीव ें
के परिण म ें के स्थ ि (संख्य )
स्स्थनतबंि
आध्यवस य स्थ ि
•आिुभ ग बंि के क िणभूत जीव ें
के परिण म ें के स्थ ि (संख्य )
आिुभ गबंि
आध्यवस य स्थ ि
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40. A= • (ज. आसंख्य त संख्य त) क शि क त्रय निष्ठ पि
B = • A + 6 ि शश
C = • (B) क शि क त्रय निष्ठ पि
D = • C + 4 ि शश
जघन्य
परित िंत
• (D) क शि क त्रय निष्ठ पि
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41. जघन्य परित आिंत
जघन्य परित आिंत
जघन्य युक्त आिंत
आभव्य जीव ि शश जघन्य युक्त आिंत प्रम ण है
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43. 1) जघन्य आिंत िंत क शि क त्रय निष्ठ पि (=A)
2) आब इस मह ि शश में 6 ि शश ज ेड़ें B= :
1) ससद् ें की ि शश
2) निग ेद ि शश {संस ि ि शश –(पृथ्वीक य दी ि ि + प्रत्येक विस्पनत + त्रस ि शश )}
3) प्रत्येक विस्पनत सटहत निग ेद ि शश {संस ि ि शश –(पृथ्वीक य दी ि ि+ त्रस ि शश )}
4) पुद्गि ें की संख्य
5) तीि क ि के समय
6) आ क श के प्रदेश ें की संख्य
उत्कृ ष्ट आिंत िंत
आिंत
गुणी
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44. उत्कृ ष्ट आिंत िंत
3) B क शि क त्रय निष्ठ पि = C मह ि शश
4) इसमें िमव, आिमव रव्य के आगुरुिघु गुण के आववभ ग-प्रनतच्छेद ें
की संख्य ज ेड़ें = D मह मह ि शश
5) D मह मह ि शश क शि क त्रय निष्ठ पि किें = E
6) F = के विज्ञ ि के आववभ ग-प्रनतच्छेद ें की संख्य - E
जह ं F + E = के विज्ञ ि के आववभ ग-प्रनतच्छेद ें की संख्य =
उत्कृ ष्ट आिंत िंत
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45. A= • जघन्य आिंत िंत क शि क त्रय निष्ठ पि
B = • A + 6 ि शश
C = • B क शि क त्रय निष्ठ पि
D = • C + 2 ि शश
E= • D क शि क त्रय निष्ठ पि
F = • के विज्ञ ि के आववभ ग-प्रनतच्छेद ें की संख्य - E
उत्कृ ष्ट आिंत िंत = • F + E
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46. म ि भेद प्रम ण
संख्य त जघन्य संख्य त 2
उत्कृ ष्ट संख्य त जघन्य परित आसंख्य त – 1
आसंख्य त जघन्य परित संख्य त आंनतम आिवस्थ कु ण्ड़ प्रम ण सिस ें
उत्कृ ष्ट परित संख्य त जघन्य युक्त आसंख्य त – 1
जघन्य युक्त आसंख्य त (ज परित संख्य त) ज परित संख्य त
उत्कृ ष्ट युक्त आसंख्य त जघन्य आसंख्य त संख्य त -1
जघन्य आसंख्य त संख्य त (जघन्य युक्त आसंख्य त)2
उत्कृ ष्ट आसंख्य त संख्य त (जघन्य परित िंत) -1
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48. उपम म ि
गणि के द्व ि कहिे में आसमथव एेसी ज े ि शश, उसक वकसी उपम के द्व ि
प्रनतप दि किि
पल्य स गि सूच्यंगुि प्रति ंगुि घि ंगुि
जगतश्रे
णी
जगत्प्रतर जगतघन
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49. वकसक म ि वकय
ज त है?
भेद
पल्य
व्यवह ि पल्य
ि ेमखण्ड़ ें
क प्रम ण
उद् ि पल्य
द्वीप-समुर ें
की संख्य
आद् पल्य
कम ेों की
स्स्थनत आ दद
आथ वत गड्ढ
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50. व्यवह ि पल्य
1 य ेजि प्रम ण गहि आ ैि ि ैड़
गड्ढ किि
उत्तम भ ेगभूलम में जन्में 7 ददि
तक के मेंढ़े के ब ि ें के आग्रभ ग
से (जजिकी िंब , ि ैड़ सम ि
ह े) उस गड्ढे क े ठ ेस (flat)
भिि
जजतिे ि ेमखण्ड़ आ येंगें उति
व्यवह ि पल्य ह ेत है
1 योजन गहरा
1 योजन चौड़ा
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51. पुि: उि एक एक ि ेमखण्ड़
क े 100 - 100 वषव ज िे पि
निक िेंगें, त े जजतिे क ि में
वे सब सम प्त ह ेंगें व े व्यवह ि
पल्य क क ि है
आथ वत ि ेम ें की संख्य में
100 वषव क गुण कििे पि
व्यवह ि पल्य क क ि आ येग
|
100 वर्ष
में एक
रोम
ननकालेंगे
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52. 18= X 65= X 18 X 19 X 1018
आथव
(65536)5 X 18 X 19 X 1018
ि ेम ें की संख्य
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53. व्यवह ि पल्य के वषव
45 आंक प्रम ण x 100 वषव =
47 आंक प्रम ण वषव =
संख्य त वषव
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54. व्यवह ि पल्य
संख्य त
वषव =
मध्यम
युक्त संख्य त
समय
=
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55. व्यवह ि पल्य के समय समूह क प्रम ण
45 आंक प्रम ण ब ि ग्र x 100 वषव x 2 आयि
x 3 ऋतु x 2 म स x 30 आह ेि नत्र x 30
मुहतव x संख्य त हज ि कि ेड़ आ वलि x
ज.युक्त संख्य त समय
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56. उद् ि पल्य
व्यवह ि पल्य की ि ेम ि शश में से प्रत्येक ि ेम खण्ड़ के ,
आसंख्य त वष ेों के जजतिे समय ह े उतिे खण्ड़ किके ,
उिसे दूसिे पल्य क े भिकि पुि: एक-एक समय में एक-एक
ि ेम खण्ड़ निक िें ।
इस प्रक ि जजतिे समय में वह दूसि पल्य ख िी ह ेत है,
उति क ि उद् ि पल्य क है ।
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57. उद् ि पल्य
आसंख्य त
कि ेड़ वषव में
एक ि ेम
निक िेंगे
आसंख्य त कि ेड़ वषव में
जजतिे समय ह ेते हैं उतिे
एक ि ेम के टुकड़े किेंगे
प्रनतसमय एक
ि ेम निक िेंगे
आथव
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58. व्यवह ि पल्य की ि ेम संख्य x आसंख्य त वष ेों
के समय = उद् ि पल्य के समय
आथ वत आसंख्य त वषव
उद् ि पल्य
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59. द्वीप-समुर ें की संख्य
25 क ेड़ क ेड़ी उद् ि पल्य ें के समय प्रम ण मध्य-ि ेक में द्वीप-समुर ें की
संख्य है य िे
25 क ेड़ क ेड़ी x 1 उद् ि पल्य ें के समय = कु ि द्वीप-समुर य िे
25 x 1014
x 1 उद् ि पल्य = कु ि द्वीप-समुर
(उद् ि पल्य से गुण वकय य िे उसमें आ िे व िे समय ें की संख्य से गुण वकय )
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60. आद् पल्य
उद् ि पल्य की ि ेम ि शश में से प्रत्येक ि ेम खण्ड़ के ,
आसंख्य त वष ेों के जजतिे समय ह े उतिे खण्ड़ किके ,
उिसे दूसिे पल्य क े भिकि पुि: एक-एक समय में एक-एक
ि ेम खण्ड़ निक िें ।
इस प्रक ि जजतिे समय में वह दूसि पल्य ख िी ह ेत है,
उति क ि आद् पल्य क है ।
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61. आद् पल्य
आसंख्य त
वषव में एक
ि ेम निक िेंगे
आसंख्य त वषव में जजतिे
समय ह ेते हैं उतिे एक ि ेम
के टुकड़े किेंगे
प्रनत समय
एक ि ेम
निक िेंगे
आथव
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62. उद् ि पल्य के समय x आसंख्य त वष ेों के समय
आद् पल्य
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63. • आसंख्य त
गुि
व्यवह ि
पल्य
• आसंख्य त
गुि
उद् ि पल्य
आद् पल्य
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64. सगि
व्यवह ि स गि =
व्यवह ि पल्य x 10 क ेड़
क ेड़ी
उद् ि स गि =
उद् ि पल्य x 10 क ेड़
क ेड़ी
आद् स गि =
आद् पल्य x 10 क ेड़
क ेड़ी
1 स गि = 10 क ेड़ -क ेड़ी पल्य
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65. पिम णु
ज े सुतीक्ष्ण शस्त्र से भी छेदिे-भेदिे आ ैि म ेड़िे के लिए आशक है
जि, आगि आ दद से ि श क े प्र प्त िहीं ह ेत
1 िस, 1 गंि, 1 रूप आ ैि 2 स्पशव - एेसे 5 गुण संयुक्त है
शब्दरूप स्कं ि क क िण है वकन्तु स्वयं शब्द िहीं है
आ दद, मध्य आ ैि आंत से िटहत है
बहुप्रदेशी ि ह ेिे से आप्रदेशी है
इन्द्न्रय ें के द्व ि ज ििे के आय ेग्य है
जजसक ववभ ग िहीं ह े सकत है उस रव्य क े पिम णु कहते हैं ।
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73. = (घि ंगुि) पल्य के आिवच्छेद क आसंख्य तव भ ग
= (घि ंगुि) पल्य के आिवच्छेद/आसंख्य त
= 7 ि जू
= 7 ि जू प्रम ण आ क श की 1 प्रदेश की 1 पंलक्त में
प्रदेश ें की संख्य
जगत्श्रेणी
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74. = (जगत्श्रेणी) 2
=जगत्श्रेणी x जगत्श्रेणी
जगत्प्रति
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75. = जगत्श्रेणी x जगत्श्रेणी x जगत्श्रेणी
= ( जगत्श्रेणी )3
= ि ेक के प्रदेश ें की संख्य
= 1 जीव के प्रदेश ें की संख्य
= मध्यम आसंख्य त संख्य त
जगतघि
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78. आि ैवकक म ि
म ि
रव्य म ि
क्षेत्र म ि
क ि म ि
भ व म ि
जघन्य
1 पिम णु
1 प्रदेश
1 समय
सूक्ष्म निग ेददय िस्ब्ि
आपय वप्तक के ज्ञ ि के
आववभ ग-प्रनतच्छेद
उत्कृ ष्ट
सभी रव्य ें क प्रम ण
संपूणव आ क श के
प्रदेश
तीि क ि के समय
प्रम ण
के विज्ञ ि के
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79. Reference : श्री नत्रि ेकस िजी, सम्यग्ज्ञ ि िंदरक जीवक ण्ड़
जी
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