2. Path of Salvation / Triple Gems of Jainism / र न / र ना य
र न
स यक ान / ान
मीमांसा/ Right Knowledge
यादवाद- अनेका तवाद
यादवाद या 'अनेकांतवाद' या 'स तभंगी का
स धा त' जैन धम म मा य स धांत म से
एक है। ' यादवाद' का अथ 'सापे तावाद‘.
वाद श द का अथ कथन
स यक धा / स यक
दशन / त व मीमांसा / Right
Faith
स यक आचरण / आचरण
मीमांसा / Right
Conduct/Action
पंचमहा त
3. यादवाद- अनेका तवाद
व तुम एक ह समय अनेक मवत व अ मवत वरोधी
धम , गुण , वभाव व पयाय के प म-भल कार ती त के
वषय बन रहे ह।
यायद पका अ धकार 3/$76 अनेके अंता धमाः सामा य वशेषपयाया गुणा
य ये त स धोऽनेकांतः।
= िजसके सामा य वशेष पयाय व गुण प अनेक अंत या धम ह, वह
अनेकांत प स ध होता है।
अनेका त - अनेक+अ त=अनेका त। अनेक का अथ है - एक
से अ धक, अ त का अथ है गुण या धम। व तु म पर पर
वरोधी अनेक गुण या धम के व यमान रहने को अनेका त
कहते ह।
https://www.jainkosh.org/wiki
अनेकांतमयी व तु का कथन करने क प ध त या वाद
समयसार / ता पयवृ / या वाद अ धकार/513/17 या कथं चत्
वव त कारेणानेकांत पेण वदनं वादो ज प: कथनं तपादन म त
या वाद:।= यात ् अथात ् कथं चत् या वव त कार से अनेकांत प
से वदना, वाद करना, ज प करना, कहना तपादन करना या वाद
है।
या वाद - अनेका त धम का कथन करने वाल भाषा
प ध त को यादवाद कहते ह। यात् का अथ है- कथ चत ्
कसी अपे ा से एवं वाद का अथ है- कथन करना। जैसे -
रामच जी राजा दशरथ क अपे ा से पु ह एवं
रामच जी लव-कु श क अपे ा से पता ह।
4. 1. अनेका त कसे कहते ह ?
अनेक + अ त = अनेका त। अनेक का अथ है एक से अ धक, अ त का
अथ है गुण या धम। व तु म पर पर वरोधी अनेक गुण या धम के
व यमान रहने को अनेका त कहते ह।
2. अनेका त के कतने भेद ह ?
अनेका त के दो भेद ह -
1.स यक् अनेका त - व तु के अनेक गुण धम को सापे प से
वीकार करना।
2. म या अनेका त - नरपे प से अनेक गुण धम क क पना
करना।
3. या वाद कसे कहते ह ?
अनेका त धम का कथन करने वाल भाषा प ध त को या वाद कहते
ह। यात ् का अथ है कथ चत ् कसी अपे ा से एवं वाद का अथ है
कथन करना।
4. या वाद के कतने भ ग ह ?
या वाद के सात भ ग ह, िजसे स तभ गी के नाम से भी जाना जाता
है।https://vidyasagar.guru/paathshala/jinsaraswati/dravyanuyog/
6. शुभचं (ई.1516-1556)
वारा र चत
याय वषयक ंथ
एक नगर म हाथी आया। छ: सूरदास ने सुना तो सभी हाथी
के पास पहुँचे। उनम से-
1. एक ने पूँछ को छु आ और कहा क ‘हाथी र सी क तरह है”।
2. दूसरे ने उसके पैर को छु आ और कहा क ‘हाथी तो ख भे क
तरह है”।
3. तीसरे ने हाथी क सँड को छु आ और कहा ‘यह तो मूसल के
समान है”।
4. चौथे ने हाथी के पेट को छु आ और कहा ‘‘यह तो द वार के
समान है”।
5. पाँचव ने उसके कान को छु आ और कहा ‘यह तो सूप के
समान है”
6. छठव सूरदास ने दाँत को छु आ और कहा‘यह तो धनुष के
समान है”।
छ: सूरदास एक थान पर बैठकर हाथी के वषय म झगड़ने लगे,
सब अपनी-अपनी बात पर अड़े थे वहाँ से एक यि त नकला
उसने उनके ववाद का कारण जानकर कहा, य झगड़ते हो? तुम
सबने हाथी के एक-एक अ ग का पश कया है, स पूण हाथी का
नह ं। इस लए आपस म झगड़ रहे हो। यान से सुनो-म तु ह हाथी
का पूण प बताता हूँ। पूँछ, पैर, सुंड, पेट, कान, दाँत आ द सभी
अ ग मलाने से हाथी का पूण प होता है। सूरदास को बात समझ
म आ गई। उ ह अपनी-अपनी एका त ि ट पर प चाताप हुआ।
कसी भी व तु को उसम िजतने गुण धम तथा
पयाय ह उतनी ि टय से उसको बताना ह
या वाद है। या वाद के बना एका तवाद से
कसी व तु का स पूण व यथाथ बोध नह ं हो
सकता।
7. 6. स त भ ग के नाम या ह ?
यात्-अि त- यह पहला मत है। उदाहरण के तौर पर य द
कहा जाय क ' यात् हाथी ख भे जैसा है' तो उसका अथ
होगा क कसी वशेष देश, काल और प रि थ त म हाथी
ख भे जैसा है। यह मत भावा मक है।
यात्-नाि त- यह एक अभावा मक मत है। इस प र े य
म हाथी के संबंध म मत इस कार होना चा हए क-
यात् हाथी इस कमरे के भीतर नह ं है। इसका अथ यह
नह ं है क कमरे म कोई हाथी नह ं है। यात् श द इस
त य का बोध कराता है क वशेष प, रंग, आकार और
कार का हाथी इस कमरे के भीतर नह ं है। िजसके बोध
म हाथी द वार या र सी क तरह है उसके लए
अभावा मक मत के प म इस नय का योग कया
जाता है। यात् श द से उस हाथी का बोध होता है जो
मत दये जाने के समय कमरे म उपि थत नह ं है।
यात् अि त च नाि त च- इस मत का अथ है क व तु
क स ा कसी वशेष ि टकोण से हो भी सकती है और
नह ं भी। हाथी के उदाहरण को यान म रख तो वह
ख भे के समान हो भी सकती है और नह ं भी हो सकती
है। ऐसी प रि थ तय म ' यात् है और यात् नह ं है' का
ह योग हो सकता है।
5. स तभ गी कसे कहते ह ?
“ न वशादेकि मन ् व तु य वरोधेन व ध तषेध वक पना
स तभ गी'।
अथ– न के अनुसार एक व तु म माण से अ व ध व ध
नषेध धम क क पना स त भ गी है।
स त भ ग के समूह को स तभ गी कहते ह।
8. यात् अव त यम ्- य द कसी मत म पर पर वरोधी गुण के संबंध म एक साथ
वचार करना हो तो उस वषय म यात् अव त यम् का योग कया जाता है। हाथी
के संबंध म कभी ऐसा भी हो सकता है क नि चत प से नह ं कहा जा सके क
वह ख भे जैसा है या र सी जैसा। ऐसी ि थ त म ह यात् अव त यम ् का योग
कया जाता है। कु छ ऐसे न होते ह िजनके संबंध म मौन रहना, या यह कहना
क इसके बारे म नि चत प से कु छ भी नह ं कहा जा सकता, उ चत होता है। जैन
दशन का यह चौथा परामश इस बात का माण है क वे वरोध को एक दोष के प
म वीकार करते ह।
यात् अि त च अव त यम ् च- कोई व तु या घटना एक ह समय म हो सकती
है और फर भी संभव है क उसके वषय म कु छ कहा न जा सके । कसी वशेष
ि टकोण से हाथी को र सी जैसा कहा जा सकता है। पर तु ि ट का प ट संके त
न हो तो हाथी के व प का वणन असंभव हो जाता है। अतः हाथी र सी जैसी और
अवणनीय है। जैन का यह परामश पहले और चौथे नय को जोड़ने से ा त होता है।
यात् नाि त च अव त यम ् च- कसी वशेष ि टकोण से संभव है क कसी
भी व तु या घटना के संबंध म 'नह ं है' कह सकते ह, कं तु ि ट प ट न होने पर
कु छ भी नह ं कहा जा सकता। अतः हाथी र सी जैसी नह ं है और अवणनीय भी है।
यह परामश दूसरे और चौथे नय को मला देने से ा त हो जाता है।
यात् अि त च नाि त च अव त यम ् च- इस मत के अनुसार एक ि ट से
हाथी र सी जैसी है, दूसर ि ट से नह ं है और जब ि टकोण अ प ट हो तो
अवणनीय भी है। यह परामश तीसरे और चौथे नय को मलाकर बनाया गया है।
9. 7. अनेका त हमारे न य यवहार क
व तु कस कार से है ?
अनेका त हमारे न य यवहार क व तु
है, इसे वीकार कए बना हमारा लोक
यवहार एक ण भी नह ं चल सकता।
लोक यवहार म देखा जाता है। जैसे-एक
ह यि त अपने पता क अपे ा से पु
कहलाता है, वह अपने पु क अपे ा से
पता भी कहलाता है। इसी कार अपने
भांजे क अपे ा से मामा एवं अपने मामा
क अपे ा से भांजा। इसी कार वसुर
क अपे ा से दामाद एवं अपने दामाद क
अपे ा से वसुर कहलाता है। इसी कार
अपने गु क अपे ा से श य एवं श य
क अपे ा से गु कहलाता है। िजस
कार एक ह यि त म अनेक र ते
संभव ह, उसी कार एक व तु म अनेक
धम व यमान ह। कोई कहे हमारे मामा
ह तो सबके मामा ह, सब मामा कहो तो
यह एका त ि ट है, झगड़े का कारण है,
अनेका त सम वय क व तु है।
यादवाद- अनेका तवाद