2. गाथा 1 : मंगलाचरण
• जाो सिद्ध, शुद्ध एवं अकलंक हं एवं
• जजनको िदा गुणरूपी रताों को भूषणाों का उदय रहता ह,
• एोिो श्री जजनोन्द्रवर नोममचंर स्वामी काो नमस्कार करको
• जीव की प्ररूपणा काो कहंगा ।
सिद्धं िुद्धं पणममय जजणणंदवरणोममचंदमकलंकं ।
गुणरयणभूिणुदयं जीवस्ि परूवणं वाोच्छं॥
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3. 14 धाराएं
िवव धारा िम धारा ववषम धारा कृ तत धारा अकृ तत धारा
घन धारा अघन धारा
कृ तत मातृक
धारा
अकृ तत मातृक
धारा
घन मातृक
धारा
अघन मातृक
धारा
द्विरूप वगव
धारा
द्विरूप घन
धारा
द्विरूप घनाघन
धारा
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4. िवव धारा
• 1, 2, 3, 4, 5, 6, 7 ....... को वलज्ञान को अववभाग-
प्रततच्छोद पयंत
• िवव स्थान
– को वलज्ञान प्रमाण
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5. िम धारा
• िारी िम (even) िंख्याएं
• 2, 4, 6, 8, .....
को वलज्ञान को अववभाग-
प्रततच्छोद पयंत
• िवव स्थान
– को वलज्ञान को अधव प्रमाण
ववषम धारा
• िारी ववषम (odd) िंख्याएं
• 1, 3, 5, 7, 9, ........
को वलज्ञान को अववभाग-
प्रततच्छोद – 1
• िववस्थान
– को वलज्ञान को अधव प्रमाण
जजतनी भी जघन्द्य िंख्याएं हं वो िब िम रूप हं अार
उत्कृ ष्ट िंख्याएं ववषम रूप हं, एक को वलज्ञान काो छाोड़कर|
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6. कृ ततधारा
• जजिमों वगवरूप िंख्या ववशोष
प्राप्त हाोती ह
• 1, 4, 9, 16, 25, 36….
को वलज्ञान पयंत
• िववस्थान
– को वलज्ञान
अकृ तत धारा
• जजिमो वगव रूप िंख्या
ववशोष प्राप्त नहीं हाोती ह
• 2, 3, 5, 6, 7, 8,
10,……….को वलज्ञान – 1
• िववस्थान
– को वलज्ञान – को वलज्ञान
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7. घनधारा
• जजिमों घन रूप िंख्या
ववशोष प्राप्त हाोती ह
• 1, 8, 27, 64,……
को वलज्ञान का अािन्नघन
• िवव स्थान
– को वलज्ञान को अािन्नघनमूल
प्रमाण
अघन धारा
• जजिमों घनरूप िंख्या ववशोष
प्राप्त नहीं हाोती
• 2, 3, 4, 5, 6, 7, 9….
को वलज्ञानपयंत
• िवव स्थान
– को वलज्ञान – घनधारा को स्थान
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8. कृ तत मातृक धारा
• जाो िंख्याएं वगव काो उत्पन्न
करनो मों िमथव हाोती हं वो
िंख्याएं इि धारा मों पाई
जाती हं
• 1, 2, 3, 4, 5, 6, 7….
को वलज्ञान पयंत
• िववस्थान
– को वलज्ञान
अकृ तत मातृक धारा
• जजन िंख्याअाों का वगव करनो
पर वगव िंख्या का प्रमाण
को वलज्ञान िो अागो तनकल
जाता ह वो िंख्याएं इि धारा
मों पाई जाती हं
• को वलज्ञान +1,
को वलज्ञान +2
• िववस्थान
– को वलज्ञान – को वलज्ञान
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9. घन मातृक धारा
• जाो िंख्याएं घन काो उत्पन्न
करनो मों िमथव हाोती हं वो
इि धारा मों पाई जाती हं
• 1, 2, 3, 4, 5, 6, 7….
को वलज्ञान का अािन्नघनमूल
• िववस्थान
– को वलज्ञान को अािन्नघनमूल
प्रमाण
अघन मातृक धारा
• जजन िंख्याअाों का घन करनो
पर घन िंख्या का प्रमाण
को वलज्ञान िो अागो तनकल
जाता ह वो इि धारा मों पाई
जाती हं
• को वलज्ञान को अािन्नघन को
प्रथम घनमूल+1, को वलज्ञान
को अािन्नघन को प्रथम घनमूल
+2
• िववस्थान
– को वलज्ञान – को वलज्ञान का
अािन्नघनमूल
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10. द्विरूप वगव धारा
• 2 को वगव िो प्रारंभ कर पूवव-पूवव िंख्या का वगव जजि धारा मों
पाया जाता ह वह द्विरूप वगव धारा ह ।
• द्विरूप = 2
• वगव = 2 2
= (2) 2 यह प्रारंभ स्थान ह।
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11. स्थान िंख्या किो अाई? अन्द्य रूप
1 4 2 x 2 2 2
2 16 4 x 4 2 4
3 256 16 x 16 2 8
4 65536 (पण्णठ्ठि) 256 x 256 2 16
5 4294967296 (बादाल) 65536 x 65536 2 32
6 18446744073709551616 (एकठ्ठि) 42= x 42= 2 64
द्विरूपवगव धारा को स्थान
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13. • जजतनी वववसित राशश की 2 की घात ह, उतनो छोद उि राशश को
हाोतो हं।
• जिो– 4=22
, ताो 4 को छोद 2
• 256 = 28
, ताो 256 को छोद 8
• 65536 = 216
, ताो 65536 को छोद 16
अद्धवच्छोद (2 की घात िो)
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14. • वववसित राशश का log2 तनकालनो पर उि राशश को अधवच्छोद हाोतो
हं।
• जिो – 4 को छोद =log 𝟐 𝟒 = 2
• 256 को छोद = log 𝟐 𝟐𝟓𝟔 = 8
• 65536 को छोद = log 𝟐 𝟔𝟓𝟓𝟑𝟔 = 16
अद्धवच्छोद (गणणत िूत्र िो)
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15. वगवशलाका
• 2 को वगव िो लगाकर जजतनी बार वगव करनो पर वववसित राशश उत्पन्न
हाोती ह, उतनी ही उि राशश की वगवशलाका हाोती ह।
• जिो 4 की वगवशलाका = 1, कयाोंवक
– 2×2=4
• 16 की वगवशलाका = 2, कयाोंवक
– 2×2=4
– 4×4=16
• 256 की वगवशलाका = 3, कयाोंवक
– 2×2=4
– 4×4=16
– 16×16=256
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16. वगवशलाका
• जजि राशश को छोद तनकालो हं, उिी की वगवशलाका तनकालनो को
मलए उि राशश को छोद तनकालना
• जजतनो छोद हाोंगो, उतनी ही मूल राशश की वगवशलाका हाोती ह।
• अथावत् मूल राशश को छोद को छोद = मूल राशश की वगवशलाका
• जिो
4 को छोद 2 2 को छोद 1 4 िंख्या की वगवशलाका = 1
256 को छोद 8 8 को छोद 3 256 िंख्या की वगवशलाका = 3
65536 को छोद 16 16 को छोद 4 65536 िंख्या की वगवशलाका = 4visit www.jainkosh.org for granth, notes, audio & video Page: 16
17. • वववसित राशश का log2 का log2 तनकालनो पर उि राशश की
वगवशलाका हाोती ह।
• जिो – 4 की वगवशलाका = log 𝟐(log 𝟐 4) = log 𝟐 𝟐 = 1
• 256 की वगवशलाका = log 𝟐(log 𝟐 256) = log 𝟐 𝟖 = 3
• 65536 की वगवशलाका = log 𝟐(log 𝟐 65536) = log 𝟐 𝟏𝟔 = 4
वगवशलाका (गणणत िूत्र िो)
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18. द्विरूपवगव धारा की वगवशलाका, छोद, एवं स्थान
वगवशलाका अधवच्छोद िंख्या
1 2 4
2 4 16
3 8 256
4 16 65536 (पणट्िी)
5 32 4294967296 (बादाल)
6 64 18446744073709551616 (इकठ्ट्ि)visit www.jainkosh.org for granth, notes, audio & video Page: 18
19. द्विरूप वगव धारा को िवव स्थान
िंख्या ववशोष
4
16
256
65=
42=
18=
.
.
.
िंख्यात स्थान जानो पर
जघन्द्य पररत अिंख्यात की वगवशलाका
.
.
.
िंख्यात स्थान जानो पर
जघन्द्य पररत अिंख्यात को छोद
.
.
.
िंख्यात स्थान जानो पर
जघन्द्य पररत अिंख्यात का वगवमूल एक स्थान जानो पर
जघन्द्य पररत अिंख्यात
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20. िंख्या ववशोष
.
.
. िंख्यात स्थान जानो पर (जघन्द्य पररत अिंख्यात को छोद
मात्र स्थान)
जघन्द्य युक्त अिंख्यात (अावली) एक स्थान जानो पर
जघन्द्य अिंख्यातािंख्यात (प्रतरावली)
.
.
. अिंख्यात स्थान जानो पर
पल्य की वगवशलाका
.
.
. अिंख्यात स्थान जानो पर
पल्य को छोद
.
.
. अिंख्यात स्थान जानो पर
पल्य एक स्थान जानो पर
पल्य
.
.
.
अिंख्यात स्थान जानो पर (पल्य की वगवशलाका मात्र
स्थान)
िूच्यंगुल एक स्थान जानो पर
प्रतरांगुल
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21. िंख्या ववशोष
.
.
.
अिंख्यात स्थान जानो पर
𝟑
जगत्श्रोणी
.
.
.
अिंख्यात स्थान जानो पर
जघन्द्य पररत अनन्द्त वगवशलाका
.
.
.
अिंख्यात स्थान जानो पर
जघन्द्य पररत अनन्द्त को छोद
.
.
.
अिंख्यात स्थान जानो पर
जघन्द्य पररत अनन्द्त एक स्थान जानो पर
जघन्द्य पररत अनन्द्त
.
.
.
अिंख्यात स्थान जानो पर
जघन्द्य युक्तानन्द्त एक स्थान जानो पर
जघन्द्य अनन्द्तानन्द्त
.
.
.
अनंत-अनंत स्थान जानो पर क्रम िो जीव राशश की
वगवशलाका, अधवच्छोद, वगवमूल। विर एक स्थान जानो परvisit www.jainkosh.org for granth, notes, audio & video Page: 21
22. िंख्या ववशोष
जीव राशश
.
.
.
अनंत-अनंत स्थान जानो पर क्रम िो पुद्गल राशश की
वगवशलाका, अधवच्छोद, वगवमूल। विर एक स्थान जानो पर
पुद्गल
.
.
.
अनंत-अनंत स्थान जानो पर क्रम िो 3 कालाों को िमयाों की
वगवशलाका, अधवच्छोद, वगवमूल। विर एक स्थान जानो पर
3 काल को िमय
.
.
.
अनंत-अनंत स्थान जानो पर क्रम िो अाकाश प्रदोशाों की
वगवशलाका, अधवच्छोद, वगवमूल। विर एक स्थान जानो पर
श्रोणी-रूप अाकाश को प्रदोश (1 D) एक स्थान जानो पर
प्रतराकाश को प्रदोश (2 D) अाकाश प्रदोशाों की वगव रूप िंख्या (लम्बाई x चाड़ाई)
.
.
.
अनंत-अनंत स्थान जानो पर क्रम िो धमव-अधमव को अगुरुलघु गुण
को अववभाग प्रततच्छोद की वगवशलाका, अधवच्छोद, वगवमूल। विर
एक स्थान जानो परvisit www.jainkosh.org for granth, notes, audio & video Page: 22
23. िंख्या ववशोष
धमव-अधमव को अगुरुलघु गुण को अववभाग प्रततच्छोद
.
.
.
अनंत-अनंत स्थान जानो पर क्रम िो एक जीव को
अगुरुलघु गुण को अववभागप्रततच्छोद की वगवशलाका,
अधवच्छोद, वगवमूल। विर एक स्थान जानो पर
एक जीव को अगुरुलघु गुण को अववभागप्रततच्छोद
.
.
.
अनंत-अनंत स्थान जानो पर क्रम िो जघन्द्य ज्ञान को
अववभागप्रततच्छोद की वगवशलाका, अधवच्छोद, वगवमूल।
विर एक स्थान जानो पर
जघन्द्य ज्ञान को अववभागप्रततच्छोद
.
.
.
अनंत-अनंत स्थान जानो पर क्रम िो जघन्द्य िाययक
लब्धध को अववभागप्रततच्छोद की वगवशलाका, अधवच्छोद,
वगवमूल। विर एक स्थान जानो पर
जघन्द्य िाययक लब्धध को अववभागप्रततच्छोद
.
.
.
अनंत स्थान जानो पर
को वलज्ञान की वगवशलाका
.
.
.
अनंत स्थान जानो परvisit www.jainkosh.org for granth, notes, audio & video Page: 23
24. िंख्या ववशोष
को वलज्ञान को अधवच्छोद
.
.
.
अनंत स्थान जानो पर
𝟖
को वलज्ञान (को वलज्ञान का तृतीय वगवमूल) एक स्थान जानो पर
𝟒
को वलज्ञान (को वलज्ञान का द्वितीय वगवमूल) एक स्थान जानो पर
को वलज्ञान एक स्थान जानो पर
को वलज्ञान यही द्विरूप वगवधारा का अंततम स्थान ह
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25. (दोय)ववरलन राशशयाों को अधवच्छोद तनकालनो का िूत्र:
– दोय राशश को अधवच्छोद ववरलन राशश
• जघन्द्य युक्त अिंख्यात दोय-ववरलन को ववधान िो अाता ह । अतः
जघन्द्य युक्त अिंख्यात को अधवच्छोद =
– जघन्द्य पररत अिंख्यात को अधवच्छोद जघन्द्य पररत अिंख्यात
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26. (दोय)ववरलन राशशयाों की वगवशलाका तनकालनो का िूत्र:
– दोय राशश की वगव शलाका + ववरलन राशश को अधवच्छोद
• जघन्द्य युक्त अिंख्यात दोय-ववरलन को ववधान िो अाता ह । अतः
जघन्द्य युक्त अिंख्यात की वगवशलाका =
– जघन्द्य पररत अिंख्यात की वगवशलाका + जघन्द्य पररत अिंख्यात को
अधवच्छोद
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27. द्विरूप वगवधारा को तनयम
• जघन्द्य युक्त अिंख्यात की वगवशलाका अार छोद इि धारा मों काों नहीं अायो?
– जाो राशश दोय-ववरलन को ववधान िो उत्पन्न हाोती ह, उि राशश की वगवशलाका एवं अधवच्छोद उि
धारा मों उत्पन्न नहीं हाोतो हं। यह तनयम तीनाों धाराअाों को मलयो ह। अतः जघन्द्य युक्त अिंख्यात
की वगवशलाका एवं अधवच्छोद द्विरूप वगवधारा मों नहीं अातो।
– इिी प्रकार अन्द्य भी दोय-ववरलन वाली राशशयाों को मलयो जानना ।
• जघन्द्य पररत अिंख्यात को वकतनो स्थान अागो जानो पर जघन्द्य युक्त अिंख्यात
अायोगा?
– जघन्द्य पररत अिंख्यात िो जघन्द्य पररत अिंख्यात को छोद प्रमाण स्थान अागो जानो पर जघन्द्य
युक्त अिंख्यात अायोगा । काोंवक जाो राशश दोय-ववरलन को ववधान िो उत्पन्न हाोती ह वह दोय
राशश िो ववरलन राशश को अधवच्छोद मात्र स्थान ऊपर जानो पर पदा हाोती ह ।
– इिी प्रकार अन्द्य भी दोय-ववरलन वाली राशशयाों को मलयो जानना ।
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28. द्विरूप घनधारा
• 2 को घन िो प्रारंभ कर पूवव-पूवव िंख्या का वगव जजि धारा मों
पाया जाता ह वह द्विरूप घनधारा ह
• द्विरूप = 2
• इिका घन = 2 2 2
= 𝟐 𝟑
= 8 यह इि धारा का पहला स्थान ह।
Slide No 28visit www.jainkosh.org for granth, notes, audio & video Page: 28
29. स्थान िंख्या किो अाई?
अन्द्य
रूप
1 8 2 x 2 x 2 2 3
2 64 8 x 8 2 6
3 4096 64 x 64 2 12
4 4096
𝟐 4096 x 4096 2 24
5 𝟔𝟓𝟓𝟑𝟔 𝟑 65536 x 65536 x 65536 2 48
6 42=
𝟑 42= x 42= x 42= 2 96
द्विरूप घनधारा को स्थान
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30. द्विरूप घनधारा की वगवशलाका, छोद, एवं
िंख्या
वगवशला
का
अधवच्छोद िंख्या
1 3 8
2 6 64
3 12 4096
4 24 4096
𝟐
5 48 𝟔𝟓𝟓𝟑𝟔 𝟑
6 96 42=
𝟑
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31. द्विरूप घनधारा को िवव स्थान
िंख्या ववशोष
8
64
4096
4096
𝟐
𝟔𝟓𝟓𝟑𝟔 𝟑
42=
𝟑
.
.
.
िंख्यात स्थान जानो पर
जघन्द्य पररत अिंख्यात 𝟑
.
.
.
िंख्यात स्थान जानो पर
जघन्द्य युक्त अिंख्यात 𝟑 एक स्थान जानो पर
प्रतरावली 𝟑
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32. िंख्या ववशोष
.
.
.
अिंख्यात स्थान जानो पर
(पल्य की वगवशलाका)3
.
.
.
अिंख्यात स्थान जानो पर
(पल्य को छोद)3
.
.
.
अिंख्यात स्थान जानो पर
( पल्य)3 एक स्थान जानो पर
(पल्य)3
.
.
.
अिंख्यात स्थान जानो पर
घनांगुल
.
.
.
अिंख्यात स्थान जानो पर
जगत्श्रोणी एक स्थान जानो पर
जगत्प्रतर
.
.
.
अनंत-अनंत स्थान जानो पर क्रम िो जीव राशश की
वगवशलाका का घन, अधवच्छोद का घन, वगवमूल का घन।
विर एक स्थान जानो पर
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33. िंख्या ववशोष
(जीव राशश)3
.
.
.
अनंत-अनंत स्थान जानो पर क्रम िो पुद्गल राशश की
वगवशलाका का घन, अधवच्छोद का घन, वगवमूल का
घन। विर एक स्थान जानो पर
(पुद्गल राशश)3
.
.
.
अनंत-अनंत स्थान जानो पर क्रम िो 3 कालाों को
िमयाों की वगवशलाका का घन, अधवच्छोद का घन,
वगवमूल का घन। विर एक स्थान जानो पर
(3 काल को िमय)3
.
.
.
अनंत-अनंत स्थान जानो पर क्रम िो अाकाश प्रदोशाों
की वगवशलाका का घन, अधवच्छोद का घन, वगवमूल
का घन। विर एक स्थान जानो पर
िवव अाकाश को प्रदोश (3 D) एक स्थान जानो पर
.
.
.
अनंतानंत स्थान जानो पर
𝟒
को वलज्ञान
𝟑 को वलज्ञान को द्वितीय वगवमूल का घन। यही इि
धारा का अंततम स्थान ह
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34. ववशोष
1.जाो-जाो राशशयााँ द्विरूप वगवधारा मों अायी हं, उन-उनका घन इि
द्विरूप घनधारा मों पाया जाता ह |
• जिो जघन्द्य पररत अिंख्यात द्विरूप वगवधारा मों ह, ताो उिका
घन द्विरूप घनधारा मों पाया ह |
2.द्विरूप घनधारा की वववसित राशश को छोद उिी स्थान की
द्विरूप वगवधारा को छोद िो तीन गुनो हाोतो हं |
• जिो 64 िंख्या जाो घनधारा मों ह, इिको छोद वगवधारा को इिी
स्थान को छोद 2 िो तीन गुनो यानो 6 हाोतो हं |
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35. द्विरूप घनाघनधारा
• 2 को घन को घन िो प्रारंभ कर पूवव-पूवव िंख्या का वगव जजि
धारा मों पाया जाता ह वह द्विरूप घनाघनधारा ह|
• द्विरूप = 2
• इिका घन = 2 2 2 = 𝟐 𝟑
= 8
• इिका भी घन = 8 8 8 = 𝟖 𝟑
= 512 यह पहला स्थान
ह।
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36. स्थान िंख्या किो अाई? अन्द्य रूप
1 512 2 x 2 x 2 x 2 x 2 x 2 x 2 x 2 x 2 2 9
2 262144 = 𝟒 𝟗 512 x 512 2 18
3 68719476736 = 𝟏𝟔 𝟗 262144 x 262144 2 36
4 𝟐𝟓𝟔 𝟗
𝟏𝟔 𝟗 x 𝟏𝟔 𝟗 2 72
5 𝟔𝟓 = 𝟗
𝟐𝟓𝟔 𝟗 x 𝟐𝟓𝟔 𝟗 2 144
6 42=
𝟗
𝟔𝟓 = 𝟗 x 𝟔𝟓 = 𝟗 2 288
द्विरूप घनाघनधारा को स्थान
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38. द्विरूप घनाघनधारा को िवव स्थान
िंख्या ववशोष
512
262144 = 𝟒 𝟗
68719476736 = 𝟏𝟔 𝟗
𝟐𝟓𝟔 𝟗
.
.
. अिंख्यात स्थान जानो पर
जगत्घन
.
.
. अिंख्यात स्थान जानो पर
अयिकाययक जीव की गुणकार शलाका
...
अिंख्यात-अिंख्यात स्थान जानो पर क्रम िो
अयिकाययक जीव राशश की वगवशलाका,
अधवच्छोद, वगवमूल । विर एक स्थान जानो पर
अयिकाययक जीव राशश
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39. िंख्या ववशोष
.
.
.
अिंख्यात-अिंख्यात स्थान जानो पर क्रम िो अयिकाययक
की ब्स्थतत की वगवशलाका, अधवच्छोद, वगवमूल । विर एक
स्थान जानो पर
अयिकाययक की ब्स्थतत
.
.
.
अिंख्यात-अिंख्यात स्थान जानो पर क्रम िो अवधधज्ञान
िंबंधी उत्कृ ष्ट िोत्र की वगवशलाका, अधवच्छोद, वगवमूल ।
विर एक स्थान जानो पर
अवधधज्ञान िंबंधी उत्कृ ष्ट िोत्र
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अिंख्यात-अिंख्यात स्थान जानो पर क्रम िो ब्स्थततबंध
अध्यविाय स्थानाों की वगवशलाका, अधवच्छोद, वगवमूल ।
विर एक स्थान जानो पर
िवव ब्स्थततबंध अध्यविाय स्थान
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अिंख्यात-अिंख्यात स्थान जानो पर क्रम िो अनुभाग बंध
अध्यविाय स्थानाों की वगवशलाका, अधवच्छोद, वगवमूल ।
विर एक स्थान जानो पर
िवव अनुभाग बंध अध्यविाय स्थानvisit www.jainkosh.org for granth, notes, audio & video Page: 39
40. िंख्या ववशोष
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अिंख्यात-अिंख्यात स्थान जानो पर क्रम िो तनगाोद
शरीर की उत्कृ ष्ट िंख्या की वगवशलाका, अधवच्छोद,
वगवमूल । विर एक स्थान जानो पर
तनगाोद शरीर की उत्कृ ष्ट िंख्या
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अिंख्यात-अिंख्यात स्थान जानो पर क्रम िो तनगाोद
काय ब्स्थतत की वगवशलाका, अधवच्छोद, वगवमूल ।
विर एक स्थान जानो पर
तनगाोद काय ब्स्थतत
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अिंख्यात-अिंख्यात स्थान जानो पर क्रम िो उत्कृ ष्ट
याोगस्थान को अववभागप्रततच्छोदाों की वगवशलाका,
अधवच्छोद, वगवमूल । विर एक स्थान जानो पर
उत्कृ ष्ट याोगस्थान को अववभागप्रततच्छोद एक स्थान जानो पर
..
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अनंतानंत स्थान जानो पर
𝟏𝟔
को वलज्ञान
𝟗 को वलज्ञान को चतुथव वगवमूल का घन का घन । यही
इि धारा का अंततम स्थान ह
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41. ववशोष
1. जाो-जाो राशशयााँ द्विरूप वगवधारा मों अायी हं, उनको घन का घन इि
द्विरूप घनाघनधारा मों पाया जाता ह |
2. जाो-जाो राशशयााँ द्विरूप घनधारा मों अायी हं, उनका घन इि द्विरूप
घनाघनधारा मों पाया जाता ह |
• जिो जगत्श्रोणी घनधारा मों अाती ह, उिका घन यानो लाोक
घनाघनधारा मों अाता ह |
3. द्विरूप घनाघनधारा की वववसित राशश को छोद उिी स्थान की द्विरूप
वगवधारा को छोद िो 9 गुनो हाोतो हं |
4. द्विरूप घनाघनधारा की वववसित राशश को छोद उिी स्थान की द्विरूप
घनधारा को छोद िो 3 गुनो हाोतो हं |
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42. धाराअाों की स्थान िंख्या
द्विरूप वगवधारा को िवव स्थानाों की िंख्या =
•को वलज्ञान की वगवशलाका प्रमाण
द्विरूप घनधारा को िवव स्थानाों की िंख्या =
•द्विरूप वगवधारा को िवव स्थान – 1
द्विरूप घनाघनधारा को िवव स्थानाों की िंख्या =
•द्विरूप वगवधारा को िवव स्थान – 3visit www.jainkosh.org for granth, notes, audio & video Page: 42
43. धाराअाों की स्थान िंख्या
• ग्रन्द्थ मों द्विरूप घनधारा को िवव स्थानाों की िंख्या = (द्विरूप वगवधारा को िवव स्थान – 2) दी ह ।
एोिा प्रतीत हाोता ह वक द्विरूप घनधारा को िभी स्थानाों काो एक ऊपर लो मलया गया ह जजििो
घनधारा मों वगवधारा का हर िमानांतर स्थान वगवधारा की िंख्या का घन कहला िको । एोिा ग्रन्द्थ
मों कहा भी ह वक ‘हर वगवधारा की िंख्या का घनधारा मों उिी स्थान पर घन हाोता ह’, जबवक
वह एक स्थान अागो जाकर हाोता ह । इि प्रकार घनधारा काो एक स्थान पीछो लोनो पर उिको िवव
स्थानाों की िंख्या वगवधारा को स्थानाों िो 2 कम हाो जाती ह अार यदद इि प्रकार एक स्थान पीछो
नहीं मलया जावो, ताो वह वगवधारा को स्थानाों िो 1 ही कम हाोती ह, 2 नहीं ।
• इिी प्रकार घनाघनधारा मों भी िमझना ।
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44. पाररभावषक शधद
• काोई जीव अन्द्य काय (पृथ्वी, जल अादद) िो अाकर अयिकाययक
मों उत्पन्न हुअा, विर पुनः जजतनो अधधकतम काल तक
अयिकाययक मों ही लगातार उत्पन्न हाोवो, अन्द्य काय मों नहीं ।
अयिकाययक की
ब्स्थतत
• िवाववधध ज्ञान काो जजतना िोत्र जाननो की शमक्त ह, उिको
प्रदोशाों का प्रमाण ह ।
अवधधज्ञान िंबंधी
उत्कृ ष्ट िोत्र
• तनगाोद शरीररूप पररणमो पुद्गल स्कं ध उत्कृ ष्टरूप िो जजतनो
काल तक तनगाोद शरीरपनो काो नहीं छाोड़तो।
तनगाोद काय ब्स्थतत
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45. Reference : श्री तत्रलाोकिारजी, श्री गाोम्मटिारजी जीवकांड़
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