मलेरिया परजीवी का जीवन चक्र
मलेरिया प्लास्मोडियम वंश के प्रोटोज़ोआ परजीवियों से फैलता है। इस वंश की पाच प्रजातियां मानव को संक्रमित करती हैं - प्लास्मोडियम फैल्सीपैरम, प्लास्मोडियम वाईवैक्स, प्लास्मोडियम ओवेल, प्लास्मोडियम मलेरिये तथा प्लास्मोडियम नौलेसी। इनमें से सबसे पराक्रमी और घातक पी. फैल्सीपैरम माना जाता है, मलेरिया के 80 प्रतिशत रोगी इसी प्रजाति के संक्रमण की देन है। मलेरिया से मरने वाले 90 प्रतिशत रोगियों का कारण पी. फैल्सीपैरम संक्रमण ही माना गया है।
Oriental rat fleas (Xenopsylla cheopis) are bloodsucking parasites of warm blooded animals (mainly rodents).These act as vector for may disease causing organisms like Yersinia pestis, which cause plague and murine typhus.
Difference between head lice, body lice and pubic licePrimoz Borovnik
As the human population grows, so too the infestations of parasitic bugs that thrive on the human body. In fact, contrary to what some believe, head lice, body louse and pubic crab infestations are not exchanged by other mammals but are species specific to humans, and humans only.
Oriental rat fleas (Xenopsylla cheopis) are bloodsucking parasites of warm blooded animals (mainly rodents).These act as vector for may disease causing organisms like Yersinia pestis, which cause plague and murine typhus.
Difference between head lice, body lice and pubic licePrimoz Borovnik
As the human population grows, so too the infestations of parasitic bugs that thrive on the human body. In fact, contrary to what some believe, head lice, body louse and pubic crab infestations are not exchanged by other mammals but are species specific to humans, and humans only.
An introduction to Medical Parasitologyrinki singh
Medical parasitology: “the study and medical implications of parasites that infect humans”. A parasite: “a living organism that acquires some of its basic ...
निदान पक्का होने पर पी.वाइवेक्स की क्लोरोक्वीन संवेदनशील परजीवी के संक्रमण में क्लोरोक्वीन दी जाती है। पी. वाइवेक्स और पी. ओवेल के कुछ मीरोजोइट्स जिन्हे हिप्नोजोइट्स कहते हैं, यकृत में लम्बे समय तक सुषुप्तावस्था में पड़े रहते हैं और कभी भी पुनरसंक्रमण के कारक बन सकते हैं। इससे बचने के लिए 14 दिन तक 0.25 मिलि ग्राम/ किलो प्राइमाक्वीन दी जाती है। G6PD का कमी, छोटे शिशुओं और गर्भवती स्त्रियों को प्राइमाक्वीन नहीं दी जाती है। G6PD का कमी में प्राइमाक्वीन देने से रक्त-क्षय hemolysis हो सकता है। इसलिए यदि प्राइमाक्वीन ले रहे रोगी को गहरे रंग का मूत्र आने लगे, पीलिया हो जाये, पेट में दर्द, उबकाई, वमन हो तो प्राइमाक्वीन तुरन्त बंद कर दें और चिकित्सक से संपर्क करे।
मलेरिया
मलेरिया एक संक्रामक रोग है जो एक प्लाज्मोडियम नामक परजीवी रोगाणु द्वारा फैलता है। ऐनोफिलीज प्रजाति के मादा मच्छर के काटने से यह रोगाणु मनुष्य के शरीर में प्रवेश करता है और लाल रक्त कणों को संक्रमित करता है। तेज सर्दी और कंपकंपी लग कर बुखार आना, बदन में दर्द होना और चार छः घन्टे बाद पसीना आकर बुखार उतर जाना इस रोग के प्रमुख लक्षण हैं। शायद जब से यह सृष्टि बनी है तभी से यह सूक्ष्म लेकिन खतरनाक रोगाणु मानव जाति के लिए एक बड़ी चुनौती बना हुआ है। हमने बहुत उन्नति कर ली है, चांद सितारों पर पहुँच चुके हैं लेकिन इस छोटे से परजीवी के सामने हिजड़े साबित हो रहे हैं।
An introduction to Medical Parasitologyrinki singh
Medical parasitology: “the study and medical implications of parasites that infect humans”. A parasite: “a living organism that acquires some of its basic ...
निदान पक्का होने पर पी.वाइवेक्स की क्लोरोक्वीन संवेदनशील परजीवी के संक्रमण में क्लोरोक्वीन दी जाती है। पी. वाइवेक्स और पी. ओवेल के कुछ मीरोजोइट्स जिन्हे हिप्नोजोइट्स कहते हैं, यकृत में लम्बे समय तक सुषुप्तावस्था में पड़े रहते हैं और कभी भी पुनरसंक्रमण के कारक बन सकते हैं। इससे बचने के लिए 14 दिन तक 0.25 मिलि ग्राम/ किलो प्राइमाक्वीन दी जाती है। G6PD का कमी, छोटे शिशुओं और गर्भवती स्त्रियों को प्राइमाक्वीन नहीं दी जाती है। G6PD का कमी में प्राइमाक्वीन देने से रक्त-क्षय hemolysis हो सकता है। इसलिए यदि प्राइमाक्वीन ले रहे रोगी को गहरे रंग का मूत्र आने लगे, पीलिया हो जाये, पेट में दर्द, उबकाई, वमन हो तो प्राइमाक्वीन तुरन्त बंद कर दें और चिकित्सक से संपर्क करे।
मलेरिया
मलेरिया एक संक्रामक रोग है जो एक प्लाज्मोडियम नामक परजीवी रोगाणु द्वारा फैलता है। ऐनोफिलीज प्रजाति के मादा मच्छर के काटने से यह रोगाणु मनुष्य के शरीर में प्रवेश करता है और लाल रक्त कणों को संक्रमित करता है। तेज सर्दी और कंपकंपी लग कर बुखार आना, बदन में दर्द होना और चार छः घन्टे बाद पसीना आकर बुखार उतर जाना इस रोग के प्रमुख लक्षण हैं। शायद जब से यह सृष्टि बनी है तभी से यह सूक्ष्म लेकिन खतरनाक रोगाणु मानव जाति के लिए एक बड़ी चुनौती बना हुआ है। हमने बहुत उन्नति कर ली है, चांद सितारों पर पहुँच चुके हैं लेकिन इस छोटे से परजीवी के सामने हिजड़े साबित हो रहे हैं।
मनुष्य के शरीर में पौरुष ग्रंथि या प्रोस्टेट ग्रंथि ही एक मात्र अंग है जिसे पुरुषार्थ का प्रतीक माना जाता है, क्योंकि पुरुष की परम श्रेष्ठ धातु शुक्र या वीर्य पौरुष ग्रंथि में ही बनती है। शरीर की सात धातुओं में सातवीं धातु शुक्र अथवा वीर्य सबसे श्रेष्ठ मानी जाती है। केवल वीर्य ही शरीर का अनमोल आभूषण है, वीर्य ही शक्ति है, वीर्य ही सुन्दरता है। शरीर में वीर्य ही प्रधान वस्तु है। वीर्य ही आँखों का तेज है, वीर्य ही ज्ञान, वीर्य ही प्रकाश है, वीर्य ही वेद हैं और वीर ही ब्रह्म है। वीर्य का संचय करना ही ब्रह्मचर्य है। वीर्य ही एक ऐसा तत्त्व है, जो शरीर के प्रत्येक अंग का पोषण करके शरीर को सुन्दर व सुदृढ़ बनाता है। वीर्य ही आनन्द-प्रमोद का सागर है। जिस मनुष्य में वीर्य का खजाना है वह दुनिया के सारे आनंद-प्रमोद मना सकता है और सौ वर्ष तक जी सकता है। वीर्य में नया शरीर पैदा करने की शक्ति होती है। जब तक शरीर में वीर्य होता है तब तक शत्रु की ताकत नहीं है कि वह भिड़ सके, रोग इसे दबा नहीं सकता। भोजन से वीर्य बनने की प्रक्रिया भी बड़ी लम्बी और जटिल है, जो प्रोस्टेट में ही सम्पन्न होती है।
पौरुष ग्रंथि Prostate
मनुष्य के शरीर में पौरुष ग्रंथि या प्रोस्टेट ग्रंथि ही एक मात्र अंग है जिसे पुरुषार्थ का प्रतीक माना जाता है, क्योंकि पुरुष की परम श्रेष्ठ धातु शुक्र या वीर्य पौरुष ग्रंथि में ही बनती है। शरीर की सात धातुओं में सातवीं धातु शुक्र अथवा वीर्य सबसे श्रेष्ठ मानी जाती है। केवल वीर्य ही शरीर का अनमोल आभूषण है, वीर्य ही शक्ति है, वीर्य ही सुन्दरता है। शरीर में वीर्य ही प्रधान वस्तु है। वीर्य ही आँखों का तेज है, वीर्य ही ज्ञान, वीर्य ही प्रकाश है, वीर्य ही वेद हैं और वीर ही ब्रह्म है। वीर्य का संचय करना ही ब्रह्मचर्य है। वीर्य ही एक ऐसा तत्त्व है, जो शरीर के प्रत्येक अंग का पोषण करके शरीर को सुन्दर व सुदृढ़ बनाता है। वीर्य ही आनन्द-प्रमोद का सागर है। जिस मनुष्य में वीर्य का खजाना है वह दुनिया के सारे आनंद-प्रमोद मना सकता है और सौ वर्ष तक जी सकता है। वीर्य में नया शरीर पैदा करने की शक्ति होती है। जब तक शरीर में वीर्य होता है तब तक शत्रु की ताकत नहीं है कि वह भिड़ सके, रोग इसे दबा नहीं सकता। भोजन से वीर्य बनने की प्रक्रिया भी बड़ी लम्बी और जटिल है, जो प्रोस्टेट में ही सम्पन्न होती है। इस बारे में श्री सुश्रुताचार्य ने लिखा है :
रसाद्रक्तं ततो मांसं मांसान्मेदः प्रजायते ।
मेदस्यास्थिः ततो मज्जा मज्जाया: शुक्रसंभवः ।।
कहते हैं कि वीर्य बनने में करीब 30 दिन व 4 घंटे लग जाते हैं। वैज्ञानिक लोग कहते हैं कि 32 किलोग्राम भोजन से 700 ग्राम रक्त बनता है और 700 ग्राम रक्त से लगभग 20 ग्राम वीर्य बनता है। ग्रीक भाषा में भी प्रोस्टेट का मतलब होता है "One who stands before" यानि "Protector" या "Guardian" अर्थात यह पूरे शरीर का संरक्षक या पालनहार है। प्रोस्टेट के बारे में एक महत्वपूर्ण बात यह है कि सन् 2002 में फेडरल इंटरनेशनल कमेटी ऑन टर्मिनोलोजी ने स्त्रियों की पेरा
वह प्रक्रिया, जिससे किसी आबादी में, जो किसी विशिष्ट स्थान पर एक साथ वास करते हों, एक बहुत ही लंबे समय में बदलाव आते हैं, उसे जैव विकास (एवोल्यूशन) कहते हैं।
गुर्दों की गीता
गुर्दों का आर्थिक और सामाजिक महत्व
गुर्दा या वृक्क शरीर का बहुत मँहगा और दुर्लभ अंग है। आदमी का रौब, रुतबा, शान-शौकत, बाज़ुओं की ताकत सब कुछ गुर्दे के दम से ही होती है। आपके गुर्दे में दम-खम है तो दुनिया डरती है, सलाम करती है। गुर्दे के दम पर कई बिना पढ़े या कम पढ़े लोग भी नेता, मुख्य मंत्री या बड़े-बड़े ओहदों पर पहुँच जाते हैं। फिर गुर्दों की देख-भाल और सुरक्षा में हम कोई कोताही क्यों बरतें। देख लीजियेगा समय आने पर गुर्दे के मामले में सगे-संबन्धी तथा इष्ट-मित्र किनारा कर लेंगे और तन-मन न्यौछावर करने वाली आपकी अंकशायिनी या चाँद-सितारे तोड़ कर लाने वाला आपका बलमा भी धोखा दे जायेगा। गुर्दा खरीदना भी आसान काम नहीं है। बाज़ार में गुर्दे सिमित हैं, कीमतें आसमान को छू रही हैं और खरीदने वालों की कतार बड़ी लम्बी है। भारत गुर्दे के रोगों में भी विश्व की राजधानी है।
Linomel Muesli
“Muesli" should be eaten regularly, prepared as follows:
Put 2 tablespoons of LINOMEL in a glass bowl. Cover this with a layer of fresh fruit in season, (i.e.: berries, cherries, apricots, peaches, grated apples). Now prepare a mixture made with Quark and Flax Seed Oil.
Add 3 tablespoons Flax Seed Oil to 100 - 125 g Quark, a little milk (2 Tblsp) and mix thoroughly until the oil has been totally absorbed. Lastly, add 1 tablespoon honey. In order to give it a new flavor every day, rosehip pulp, buckthorn juice, other fruit juices or ground nuts may be added. Butter is not recommended. Only herb teas should be served, but a cup of black tea is permitted on occasion.
अभी तक हुए 1500 से अधिक शोधों से यह साबित होता है कि नारियल तेल (कोकोस न्युसिफेरा) हमारी धरा पर विद्यमान एक स्वास्थ्यप्रद और उत्कृष्ट तेल है। सेहत से लेकर सुंदरता तक नारियल तेल प्रकृति का नायाब और अनमोल उपहार है। इसके करिश्माई फायदे आपको चौंका देंगे। गर्म करने पर यह खराब नहीं होता। इसकी शैल्फ लाइफ दो वर्ष से अधिक है। हमें अनरिफाइंड, अनहीटेड, ऑर्गेनिक, कॉल्ड-प्रेस्ड और एक्स्ट्रावर्जिन तेल प्रयोग में लेना चाहिए।
विश्वविख्यात फैट और ऑयल्स एक्सपर्ट और जर्मनी के फेडरल इंस्टिट्यूट ऑफ फैट्स रिसर्च की चीफ एक्सपर्ट डॉ जॉहाना बडविग ने साबित किया है कि नारियल तेल फ्राइंग और डीप फ्राइंग के लिए सबसे अच्छा विकल्प है। गर्म करने पर इसमें ट्रांसफैट नहीं बनते। कैंसर के रोगी भी इस तेल को प्रयोग कर सकते हैं।
पौराणिक महत्व
हिंदू धर्म में नारियल एक शुद्ध, सात्विक, पवित्र, फलदायी एवं लक्ष्मी माता से मनुष्य को जोड़ने वाला फल है, इसीलिए इसे संस्कृत में श्रीफल कहते हैं, श्री का अर्थ होता है लक्ष्मी। किसी भी धार्मिक एवं शुभ कार्य में हुई पूजा में नारियल रखने से सभी कार्य सिद्ध होते हैं और लक्ष्मी की विशेष कृपा बनी रहती है। घर में नारियल रखने से घर के वास्तु दोष दूर होते हैं। मंदिरों में आमतौर पर इसे पूजा के दौरान भगवान की मूर्ति के सामने फोड़ा जाता है। फोड़ने के बाद यह नारियल प्रसाद के रूप में भक्तों में बांटा जाता है।
What is the Black Seed?
Its botanical name is Nigella sativa. It is believed to be indigenous to the Mediterranean region but has been cultivated into other parts of the world including the Arabian peninsula, northern Africa and parts of Asia.
The Black seeds originate from the common fennel flower plant (Nigella sativa) of the buttercup (Ranunculaceae) family. It is sometimes mistakenly confused with the fennel herb plant (Foeniculum vulgare).
The plant has finely divided foliage and pale bluish purple or white flowers. The stalk of the plant reaches a height of twelve to eighteen inches as its fruit, the black seed, matures.
The Black Seed forms a fruit capsule which consists of many white trigonal seeds. Once the fruit capsule has matured, it opens up and the seeds contained within are exposed to the air, becoming black in color.
The Black seeds are small black grains with a rough surface and an oily white interior, similar to onion seeds. The seeds have little bouquet, though when rubbed, their aroma resembles oregano. They have a slightly bitter, peppery flavor and a crunchy texture.
The Black Seed is also known by other names, varying between places. Some call it black caraway, others call it black cumin, onion seeds or even coriander seeds. The plant has no relation to the common kitchen herb, cumin.
Muslims’ use of the Black Seed:
Muslims have been using and promoting the use of the Black Seed for hundreds of years, and hundreds of articles have been written about it. The Black Seed has also been in use worldwide for over 3000 years. It is not only a prophetic herb, but it also holds a unique place in the medicine of the Prophet .
It is unique in that it was not used profusely before the Prophet Muhammad made its use popular. Although there were more than 400 herbs in use before the Prophet Muhammad and recorded in the herbals of Galen and Hippocrates, the Black Seed was not one of the most popular remedies of the time. Because of the way Islam has spread, the usage and popularity of the Black Seed is widely known as a "remedy of the Prophet ." In fact, a large part of this herbal preparation's popularity is based on the teachings of the Prophet .
The Black Seed has become very popular in recent years and is marketed and sold by many Muslim and non-Muslim
Sauerkraut Health Benefits
Professor of Probiotics including rare Lactobacillus Plantarum
Digests everything
High in Vitamin B group and C
Vanishes GERD and IBS
Immunity booster
High in Fabulous Fiber
Fights Cancer
benefits of Cottage Cheese
sulfur containing protein
bonds and carries flax oil into the cells
Makes healthy and electron rich cell wall
Detoxify the body
dextro rotating lactic acid
alkalize the body
Neutralize the killer levo rotating lactic acid
lactoferrin and lactoferricin
anti-bacterial and anti-viral
builds lymphocytes, monocytes & macrophage
boosts immunity
FOCC is mixture of Flax oil and cottage or quark. It is full of electron rich omega-3 fats, has power to attract healing photons from sun and other celestial bodies through resonance. These fats are full of high energy pi-electrons, which attract oxygen into the cells and are capable of healing cell membranes.
As “Om” is divine word and synonym of God in India. According to Hindu mythology, the whole universe is located inside “Om”, so the name Omkhand has been given to this wonderful recipe.
Black Seed – Cures every disease except death Om Verma
Nigella sativa or Black Seed is an annual flowering plant, native to southwest Asia, eastern coastal countries of Mediterranean region and North Africa. Nigella is a derived from Latin word Niger (black). It grows to 20–30 cm tall, with finely divided, linear leaves. The flowers are delicate and usually coloured pale blue and white, with five to ten petals. The fruit is a large and inflated capsule composed of three to seven united follicles, each containing numerous seeds.
The Black seeds are small black grains with a rough surface and an oily white interior, similar to onion seeds. Black seed has a peculiar aromatic and pungent smell, while onion seeds don’t have this smell. Black seeds have a slightly bitter, peppery flavor and a crunchy texture. The seed is used as a spice, medicine, cosmetic and flavoring agent.
Sour cabbage – Professor of Probiotics
The first and most overlooked reason that our digestive tract is crucial to our
health is because 80 percent of our entire immune system is located in your
digestive tract. In addition, our digestive system is the second largest part of our
neurological system, called enteric nervous system or the second brain.
Probiotics are live beneficial bacteria, which hold the master key for healing
digestive issues, better health, stronger immune system, mental and neurological
disorders. Sour cabbage is the best probiotic food (Germans call it Sauerkraut), It
is produced by lacto-fermentation of the cabbage.
Wild Oregano (Origanum Vulgare ) is a perennial herb that has purple flowers and spade-shaped, olive-green leaves. The whole plant has a strong, peculiar, fragrant, balsamic odour and a warm, bitterish, aromatic taste, both of which properties are preserved when the herb is dry. The oregano sold as a spice is either Sweet Marjoram (Origanum majorana) or Mexican Sage.
There are over 40 oregano species, but the most therapeutically beneficial is the wild oregano or Origanum vulgare that's native to Mediterranean mountains. To obtain oregano oil, the dried flowers and leaves of the plant are harvested when the oil content of the plant is at its highest, and then distilled.
Mayo Dressing
This is part of Budwig Protocol proposed to cure cancer developed by Dr. Budwig.
Delicious mayo salad dressing can be prepared by mixing together 2 Tbsp (30 ml) Flax Oil, 2 Tbsp (30 ml) milk, and 2 Tbsp (30 ml) cottage cheese. Then add 2 tablespoons (30 ml) of Lemon juice (or Apple Cider Vinegar) and add some herbs of your choice.
Health Benefits
Ocean of Probiotics including rare
Lactobacillus Plantarum
Digests everything
Very high in B Vitamins and Vitamin C
Vanishes GERD and IBS
Immunity booster
High in Fabulous Fiber
Fights Cancer
Biography of Dr. Johanna Budwig in Health of India (Covery Story)Om Verma
Definitively Budwig Protocol is a miracle cure for cancer with documented 90% success if you follow this treatment perfectly and religiously. This treatment targets on prime cause of cancer. Prime cause of Cancer is oxygen deficiency in the cells. Two factors are essential to attract oxygen in the cells: 1- Sulfur containing protein (found in cottage cheese) and 2- some unknown fat which nobody could identify until 1949 when Dr. Budwig developed paperchromatography technique to identify fats. These fats were Alpha-linolenic acid and linoleic acid found abundantly in FLAX OIL. Thus she developed Cancer therapy based on Flax oil and cottage cheese.
पिछले महीने हमें बॉक्सर प्रजाति का एक श्वेत “पप” प्राप्त हुआ, जिसे हम मिनी बुलाने लगे थे। हम सब बहुत खुश थे। पूरे परिवार में खुशी की लहर थी।
परंतु 4 मई की रात को अचानक मुई बिजली गुल हो गई। मिनी अंधेरे में नीचे उतर गई और नीचे किसी लड़के ने गलती से अपना पैर मिनी के पैर पर रख दिया। बस बेचारी असहाय मिनी की जोर से चीख निकली। हम सब उसकी चीख सुन कर नीचे भागे। वह दर्द के मारे चीखती ही जा रही थी। हमारी समझ में आ चुका था कि मामला अत्यंत गंभीर है और जरूर इसकी फीमर का फ्रेक्चर हुआ है। हमारी सारी श्वेत और उज्वल खुशियों पर यह काली रात कालिख पोत चुकी थी। पूरी रात हम सो भी न सके। कभी मैं, तो कभी मेरी पत्नि उसे गोद में लेकर रात भर बैठे रहे।
सुबह कोटा के कई वेट चिकित्सकों से परामर्श ले लिया गया। कोई ठीक से बता नहीं पा रहा था कि मिनी के पैर का उपचार किस प्रकार होगा, रोड डलेगी, सर्जरी होगी या प्लेटिंग करनी होगी। हमें लगा कि कोटा में समय बर्बाद नहीं करना व्यर्थ है और तुरंत मिनी को जयपुर या दिल्ली के किसी बड़े वेट सर्जन को दिखाना चाहिये।
मैंने मेरे एक मित्र अनिल, जो जयपुर में रहते हैं, से बात की। उन्होंने मुझे पूरा आश्वासन दिया व कहा कि उनके ब्रदर-इन-लॉ विख्यात वेट चिकित्सक हैं और वे सब व्यवस्था करवा देंगे। तब जाकर मन को थोड़ा सकून मिला। 10 मिनट बाद ही उनके ब्रदर-इन-लॉ ड
After the advent of "lipid hypothesis", which linked the consumption of dietary fat with increased risk of heart disease and other health problems, fat was highly defamed by the medical establishment that many people started thinking that the best answer to the "fat problem" is to stay away from it as far as possible. Food processing companies quickly took advantage of this era of “fat phobia”, and soon flooded the market with "low fat" and "no fat" products, promising to put an end to heart disease and obesity, but the incidence of these diseases is still skyrocketing.
The truth is that not all fats are equal. While the consumption of some bad fats (trans-fats) are, really, a risk factor for many health problems, some other fats, including alpha-linolenic acid ALA and linoleic acid LA, are so important for health that they have been termed "essential fatty acids" (EFAs). Our body needs them to perform vitally important functions, but our body is unable to produce them. Therefore, we must get them from our food. That's why any attempt to indiscriminately reduce or eliminate all fats from our diet inevitably leads to an EFA deficiency, which may be very dangerous to health.
For all the good it does, fat is often blamed to cause obesity, because it contains 9 calories per gram, in contrast to carbohydrate and protein which contain only 4 calories. Yet, it's a mistake to relate dietary fat with body fat. You can get fat by eating carbs and protein, even if you eat little dietary fat.
In 1956, Hugh Sinclair, one of the world's greatest researchers in the field of nutrition, suggested that an upsurge in the so-called "diseases of civilization" e.g. coronary heart disease, strokes, type-2 diabetes, arthritis and cancer - was caused by modern diets being extremely poor in essential fatty acids (EFA) and full of processed foods rich in trans-fatty acids. Although Sinclair's opinion was not supported by his pears, and he was even criticized by some of them for his bold hypothesis; later research convincingly showed that he was, indeed, correct. In fact, he is now praised for insights that were far ahead of his time.
Fat gives us beauty, shape and protection. A thin fat layer located under the skin helps to insulate and maintain the proper body temperature. Fat is used as a source of backup energy when carbohydrates are not available. Vitamin A, D, E and K are known as fat-soluble vitamins, need fat in order to be absorbed and stored. Fats are also responsible for making sex hormones, cell membranes and prostaglandins.
आपने पोर्नोग्राफिक वेब साइट्स और सेक्स पत्रिकाओं में जी-स्पॉट के बारे में अक्सर पढ़ा होगा। जहाँ कुछ लोग इसको लेकर बहुत उत्सुक हैं और इसका आनंद भी उठा रहे हैं, वहीं कुछ नकारात्मक विचारधारा वाले लोग इसे महज़ किसी सिरफिरे व्यक्ति के दिमाग की उपज मानते हैं। वे मानते हैं कि जी-स्पॉट नाम की कोई चीज है ही नहीं। जी-स्पॉट पर इतना हल्ला होने के बाद भी असमंजस की स्थिति बनी हुई है। इसलिए मैं आज रहस्य के सारे परदे उठा कर सच्चाई को उजागर कर देना चाहता हूँ। तो चलिए सबसे पहले हम इतिहास के पन्नों को पलटने की कौशिश करते हैं।
1950 के दशक में विख्यात गायनेकोलोजिस्ट डॉ. अर्न्सट ग्रेफनबर्ग ने इंटरनेशनल जरनल ऑफ सेक्सोलोजी में The Role of Urethra in Female Orgasm नाम से एक प्रपत्र प्रकाशित किया था। इन्होंने स्त्रियों की यूरेथ्रा के चारो तरफ कोर्पोरा केवर्नोजा की तरह एक स्पंजी और इरेक्टाइल टिश्यू को चिन्हित किया, जिसे यूरीथ्रल स्पंज कहा जाता है। इसके बाद 1980 के दशक में सेक्स एजूकेटर और काउंसलर बेवर्ली व्हिपल और सायकोलोजिस्ट और सेक्सोलोजिस्ट जॉन पेरी ने डॉ. अर्न्सट ग्रेफनबर्ग की शोध को आगे बढ़ाया और अंततः डॉ. अर्न्सट ग्रेफनबर्ग के नाम पर इस इस रहस्यमय स्पॉट का नाम जी-स्पॉट रखा।
आज हम सभी के लिए खुशी और उल्हास का अवसर है, हमारे कुंवर निशिपाल का परिणय बंधन सौ.कां. निधि के साथ होने जा रहा है। हम सब इनके सुखी और आनंदमय वैवाहिक जीवन की कामना करते हैं। इस अवसर पर मैंने यह सत्यपाल गीता तैयार की है। अलसी के नीले फूलों से सजी यह गीता में हमारे आदरणीय पिताजी ठाकुर सत्यपाल सिंह जी के चरणों में समर्पित करता हूँ।
डाॅ. ओ.पी.वर्मा श्रीमती उषा वर्मा
1. मले�रया परजीवी का जीवन चक
मले�रया प्लास्मोिडयमवंश के प्रोटोज़ोआ परजीिवयोंसे फैलता है।इस वंश क� पाच प्रजाितयां म
संक्रिमत करती - प्लास्मोिडयमफैल्सीप , प्लास्मोिडयम वाईवै , प्लास्मोिडयम ओव ,
प्लास्मोिडयम मले�रये तथा प्लास्मोिडयम नौलेसी।इनमें से सबसे पराक्रमी और . फैल्सीपैरम
माना जाता है, मले�रया के 80 प्रितशत रोगी इसी प्रजाित के संक्रमण क�देन है। मले�रया से मरने90
प्रितशत रोयो का कारण पी. फैल्सीपैर संक्रमण ही माना गयाहै
मच्छ
मादा एनोिफलीज़ मच्छर मले�रया परजीवी क� प्राथि
पोषक होती है , िजसे मले�रया का संक्रमणफैला में
महारत हािसल है। एनोिफलीज़ वंश के मच्छर सव र्
व्या� हैं। लेिकन िसफर् मादा एनोिफलीज़ मच्छर
र�पान करती है, अतः यही परजीवी क� वाहक बनती है
न िक नर। मादा एनोिफलीज़ मच्छरों क� सेना रात होत
ही िशकार क� तलाश में उड़ान भरती है और हमारे घर
तथा शयन-क� में पहँच कर मंडराते ह�ए हमारे शरीर के
�
कई िहस्सों पर अवतरण करतीहै और अपनेमुँह पर लग
सेंससर् से पता करतीहै िक कहाँ से र� लेना आसान रहेगा। उिचत स्थान का चुनाव होते ही एक कुशल
िचिकत्सा कम� क� तरह अपना लम्बा चूषण यंत्र त्वचा में घुसा देती है और पलक झपकते ही खून चू
चम्प हो जाती है।
यह ठहरे ह�ए पानी मे अंडे देती है क्योंिकअंडों और उनसे िनकलने वाले लावार् दोनों को पानी क� अ
आवश्यकता होती है। इसके अित�र� ल वार को �सन के िलए पानी क� सतह पर बार-बार आना पड़ता है।
अंडे, लावार , प्यूपा और िफर वयस्क होनेमें मच्छर ल10-14 िदन का समय लेते हैं। वयस्क मच्
पराग और शकर्रा वाले भोज-पदाथ� पर पलते हैं लेिकन मादा मच्छर कोअंडे देने के िलए र� क� ज�र
होती है।
प्लास्मोिडयम का जीवन
मले�रया परजीवी का पहला िशकार तथा वाहक मादा एनोिफ़लीज़ मच्छर बनती है। वयस्क मच्छर संक्
मनुष् को काटने पर उसके र� से मले�रया परजीवी को ग्रहण कर लेतेहैं। र� में मौजूद परजीवी के जनन
2. (gametocytes) मच्छर क मध्य आहार निलक (Mid Gut) में नर और मादा के �प में िवकिसत होतेह
और िफर िमलकर अंडाणु ( Zygote) बनाते हैं जो मच्छर क आहार निलका क� िभि�यों में पलने लगतेहै
प�रपक्व होने पर ये फूटते ह , और इसमें से िनकलने वाले बीजाणु( Sporozoites) उस मच्छर क� लाग्रंिथयों में पह�ँच जाते हैं। जब मच् एक स्वस्थ मनुष्य को काटता है तो त्वचा में लार क-साथ
बीजाणु भी भेज देता है।
मले�रया परजीवी का मानव में िवकास दो चरणोंमें होता: यकृत में प्रथम , और लाल र� कोिशकाओं
में दूसरा चरण। जब एक संक्रिमत मच्छर मानव को काटता है तो बीज(Sporozoites) मानव र� में प्रव
कर यकृत में पहँचते हैं और शरीरमें प्रवेश पान30 िमनट के भीतर
ही ये यकृत क� कोिशकाओं को
�
संक्रिमत कर देतेहैं। िफर ये यकृत में अलैंिगक जनन करने लगते हैं। य6 से 15 िदन चलता है। इस
जनन से हजारों अंशाणु( Merozoites) बनते हैं जो अपनी मेहमान कोिशकाओं को तोड़ कर र -प्रवा में
प्रवेश कर जातेहैं तथा लाल र� कोिशकाओं को संक्रिमत करना शु� कर देत
3. मच्छर में स्पोरोगो
वयस्क मच्छरसंक्रि नुष् को काटने पर उसके र� से मले�रया परजीवी को भी ग्रहण कर लेताह
अितसू�म, एक कािशक�य और संसाधनहीन मले�रया परजीवी का जीवन चक्र बह�त जिटल होताहै और द
वाहकों मादा एनोिफलीज़ मच्छर और मनुष्य पर आिश्रत रहता है। परजीवी अपनी सुर�ा और िवका
िलए वाहकों के5000 से ज्यादा जीन्स तथा िविश� प्रोटीन्स समेत अनेक संसाधनों का भर पूर
करता है।
मले�रया परजीवी का पहला िशकार तथा वाहक मादा एनोिफ़लीज़ मच्छर बनती ह, जहाँ इसके जीवन चक्
क� लैंिगक अवस्, िजसे स्पोरोगोनी कहते ह, सम्पन्न होतीहै। इस अवस्था में मच्छर के शरीर में
बीजाणु िवकिसत होते हैं जो मनुष्य के शरीरमें पह�ँच कर मले�रया का कारक बनते ह
जब मादा एनोिफ़लीज़ मच्छर मले�रया से संक्रिमतमनुष्य का र�पान करत, तब र� के साथ मले�रया के
नर और मादा जननाणु (gametocytes) भी उसक� आहार-निलका में प्रवेश कर जाते हैं। यहाँ नर और म
जननाणु जुड़ कर जाइगोट बनाते है, जो िवकिसत होकर सिक्रय ऊकाइने (Ookinete) बनता है। यह
ऊकाइनेट मध्य आहा-निलका क� िभि� में प्रवेश करता, जहाँ यह िवकिसत और िवभािजत होता है और
ऊिसस्ट(oocysts) बनता है। इसमें हजारों बीजाण( sporozoites) रहते हैं।8-15 िदन क� स्पोरोगोिनक
अवस्था के अन्तमें ऊिसस्ट टूट जाता है और असंख्य बीजाणु-निलका में आ जाते हैं। ये बीजाण
चल कर मच्छर क� लार ग्रंिथ( salivary glands) में एकित्रत हो जाते हैं। अब यह मच्छर मनुष
मले�रया फैलाने के िलए पूरी तरह तैयार है। जैसे ही यह मच्छर र�पान के िलए मनुष्य को काटता, लार
ग्रंिथयों में एकित्रतबीजाणुभी मनुष्य केशरीर में छोड़ िदये जाते हैं। यह देखा गया है िक परजीवी
दोनों एक दूसरे क� मदद करते हैं और मले�रयाफैलानेमें सिक्रय भागीदारी िनभाते
मनष्य में शाइज़ोगोन(Schizogony in the Human)
ु
मले�रया परजीवी के जीवन चक्र का अगला भाग मनुष्य के शरीर में सम्पन्न होता है। जैसे हीब
(Sporozoites) मनुष्य के शरीर में पह�ँचते, ये यकृत क� कोिशकाओं में िछप कर अपने िवकास को आगे
बढ़ाते हैं। यकृत में अपना चक्र पूरा करने के बाद परजीवी अपनी अगली जीवन लीला लालर� कोिशकाओं
पूरा करते हैं। जीवन चक्र के इसी भाग में मनुष्य को मले�रया के अनेक ल�ण और जिटलताओं का स
करना पड़ता है।
4. िप्रइरेथ्रोसाइिटक अव– यकृत में शाइज़ोगोनी(Pre-erythrocytic Phase -
Schizogony in the Liver)
जब मनुष्य को संक्रिमत मच्छर काटता है तो मनुष्य क� त्वचा में दजर्नों या सैंकड़ों बीजाणु प्रवेश
कुछ बीजाणुओं को तो शरीर क� भ�ी कोिशकाएं ( Macrophages) खा जाती हैं। कुछ बीजाणु लिसका
वािहकाओं में तो कुछ र-वािहकाओं में पहँचने में सफल हो जातेहैं। जो बीजाणु लिसका वािहकाओं
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पह�ँचते है, पास के लिसकापवर् में जाकर एक्सोइरेथ्रोसाइिटक अ( Exoerythrocytic stages) में
चिक्रत होने लगतेहैं। जो बीजाणु-वािहकाओं में पहँचते ह, वे मनुष्य क� सुर�ा सेना से बचते ह�ए कुछ ही
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घंटों में सीधे यकृतमें पह�ँच जाते हैं। बीजाणु थ्रोम्बो-�रलेटेड ऐनोिनमस प्रोटी( TRAP) प�रवार
और ऐिक्ट-सायोिसन मोटर क� मदद से प�रवहन करते हैं। यकृत में पह�ँच कर ये यकृत क� कोिशकाओं क
पेरसाइटोफोरस वेक्युओल में िवभािजत और िवकास करतेहैं। यहाँ हर बीजाणु बढ़ कर शाइज़ोन्ट बनत,
े
िजसमें10000-30000 अंशाणु ( Merozoites) होते हैं। यकृत में परजीवी के िवकासमें सकर्मस्पोरो
नामक प्रोटीन बह�त मदद करता, जो परजीवी स्वयं बनाता है। िप्रइरेथ्रोसाइिटक अ5-16 िदन चलती
है, फैिल्सपैरम में औसत5-6 िदन, वाइवेक्स मे8 िदन, ओवेल में8 िदन, मले�रये में13 िदन और नौलेसी
में8-9 चलती है। यह परजीवी क� शांत अवस्था ह, इसमें पोषक मनुष्य को मले�रया का कोई ल�ण य
िवकृित नहीं होती ह, क्योंिक बीजाणु यकृत क� थोड़ी कोिशकाओं पर ही आक्रमण करते हैं। यह अवस
ही चक्र पूरा करती, जबिक अगली इरेथ्रोसाइिटक अवस्था -बार पुनरचिक्रत होतीहै।
यकृत कोिशका में पनपने वाले अंशाणु पोषक कोिशका द्वारा ही बनाई मीरोज़ोम नामक एक कुिटया में
िवय� (Isolated) रहते है, और यकृत में िस्थत भ�ीकुफर कोिशकाओं के प्रकोप से सुरि�त रहते
ु
अंततः अंशाणु यकृत कोिशका से िनकल कर र�-प्रवाहमें िवलय हो जाते हैं और घातक तथा स
महत्वपूणर् इरेथ्रोसाइिटक अवस्थाक� शु�वात करते
वाइवेक्स और ओवेल मले�रया मेंकुछ बीजाणु यकृतमें महीनों और वष� तकसुषु� पड़े रहते हैं। इन्हों
(Hypnozoites) कहते है, और ये अव्य� अविध(जो कुछ स�ाह से कुछ महीने हो सकती है) के बाद
िवकिसत होकर शाइज़ोन्ट बनते हैं। येसु�ाणु हीसंक्रमण के कई महीने बाद ह�ए आवत� मले�रया का क
बनते हैं।
इरेथ्रोसाइिटक शाइगोन– लालर� कोिशकाओ ं में होने वाली मुख्य और केन्द
अवस्थ (Erythrocytic Schizogony - Centre Stage in Red Cells)
मले�रया परजीवी के अलैंिगक जीवन चक्र क� मुख्य और केन्द्रीय अवस्था लालर�कोिशकाओ
होती है। लालर� कोिशकाओं में परजीवी के िवकास का च एक िनि�त अविध में बा-बार पुनरचिक्र
5. होता है और चक्र केअंतमें सैंकड़ों नन्हेअंशाणु उत्पन्न होते हैं जो नई लालकोिशकाओं पर आ
हैं।
6. यकृत से िनकल कर अंशाणुओं को लालर� कोिशकाओं को पहचान कर उनसे िचपकने और िफर उनमें
प्रवेश करनेमें एक िमनट से भी कम समय लगता है। इससे परजीवी क� सतह पर लगा एंटीजन पो
(मनुष्) के सुर�ाकिमर्यों क� नजर से बच िनकलनेमें सफल हो जाता है। अंशाणुओं के लालर� कािशका
प्रवेश हेतु दोनों क� सतह पर लगे लाइगे न्ड्स के पारस्प�रक आणिवक संवाद भी मदद करता है। वाइ
डफ� बाइिन्डं-लाइक प्रोटीन और रेिटकुलोसाइट होमोलोजी प्रोटीन क� मदद से िसफर् डफ� ब्ल
पोज़ीिटव लाल कोिशकाओं पर ही आक्रमण करतेहै
ध्यान रहे ि आक्रामक और घातकफैलिसपैरममें चार तरह के डफ� बाइिन-लाइक प्रोटी( DBLEBP) जीन्स होते ह, जबिक वाइवेक्स में एक ही डफ� बाइिन्-लाइक प्रोटी( DBL-EBP) जीन होता है।
इसिलए फैलिसपैरम कई तरह के लाल र� कोिशकाओं पर आक्रमण कर सकताहै
अंशाणु के िसरे पर बने िविश� उपांग िजन्हें माइक्रो, रोपट्राइन्स और घने दा(
Micronemes,
Rhoptries, and Dense granules) कहते है, अंशाणु को लालर� कोिशकाओं से जुड़ने और घुसने क�
प्रिक्रया में बह�त सहायक होते हैं।अंशाणु और लाल कोिशका का प्रारंिभक सम्पकर् लाल कोिश
को एक लहर क� भांित तेजी से िवकृत करता है, इससे दोनों का िस्थरजुड़ाव स्थल बनता है। इसके ब
अंशाणु एिक्ट-मायोिसन मोटर, थ्रोम्बोस्पो-�रलेटेड ऐनोिनमस प्रोटी(
TRAP) प�रवार और
ऐल्डोलेज क� मदद से लाल कोिशका क� ि-िभि� ( Bilayer) में घुसता है और पेरासाइटोफोरस वेक्युओ
बनाता है, िजससे अंशाणु का लाल कोिशका के कोिशका द्रव( Cytoplasm) से कोई सम्पकर् नहीं रहता,
और वह िनि�ंत होकर अपना जीवन चक्र आगे बढ़ाताहै। इस अवस्था में परजीवी लालकोिशका मे
अंगूठी जैसा िदखाई देता है, इसे मुिद्रकाणु कहतेहै
िवकासशील परजीवी का प्रमुख भोजन हीमोग्लोिबन होता है। इसिलए इसे भोजन पुिट( Food vacuole)
में ले जाकर अपघिटत िकया जाता ह, िजससे अमाइनो एिसड्स िनकलते है जो प्रोटीन िनमार्ण में काम
हैं। हीम पोलीमरेज एंजाइम बचे ह�ए टॉिक्सक हीम से हीमोज़ोइ (Malaria pigment) बनाते हैं। परजीवी
पीएलडीएच और प्लाज़मोिडयम ऐल्डोल्ज़ एंजाइम्स क� मदद से अवायवीय ग्लाइकोलाइिसस द्वार
उत्पादन करता है। जैसे जैसे परजीवी िवकिसत और िवभािजत होता ह, लालकोिशका क� पारगम्यता और
संरचना में बदलाव आता है। यह बदलाव चयापचय अपिश� को बाहर करन, बाहर से उपयोगी पदाथ� का
अवशोषण करने में और िवद्-रासायिनक संतुलन बनाये रखने मे सहायता करता है। साथ ही हीमोग्लोिबन
का अन्तग्रर(Ingestion), पाचन और िवषहरण ( Detoxification) अितपारगम्य लालकोिशका के रअपघटन (Hemolysis) के रोकता है। और परासरणीय िस्थरता(Osmotic Stability) बनाये रहता है।
परजीवी का इरेथ्रोसाइिटक चक्र नौलेसी मे24 घंटे मे, फैलिसपैरम, वाइवेक्स तथा ओवेल में ह48 घंटे
में और मले�रये में ह72 घंटे में दोहराया जाता है। हर चक्र में अंशाणुवेकुओल में िवकिसत तथा िवभ
7. होते हैं और मुिद्रक, ट्रोफोजोइट तथा शाइज़ोन्ट अवस्था से गुजरते 8-32 (औसत 10) नये अंशाणु
बनते हैं। चक्र के अंत में लालकोिशका टूट जाती है औरनन्हेंअंशाणु बाहर िनकल
िफर से
लालकोिशका को िशकार बनाती है। इस तरह अंशाणु बड़ी तेजी से बढ़ते हैं और इनक� संख्य 1013 तक
पह�ँच जाती है।
कुछ अलैंिगक परजीवी शाइज़ोगोनी चक्र में न जाकर लैंिगक अवस्थाज(Gametocytes) में िवभेिदत
हो जाते हैं। ये नर और मादा जननाणु लालकोिशका से बाहर र� में रहतेहैं और पोषक के शरीर में कोई
या िवकृित उत्पन्न नहीं करते हैं। ये मादा ऐनोिफलीज़ मच्छर के काटने पर उसके शरीर में चले जाते
परजीवी के लैंिगक िवकास को आगे बढ़ाते हैं। इस तरह ये मले�रया केफैलनेमें मदद करते हैं। वाइवेक्
जननाणु बह�त जल्दी बन जाते ह, जबिक फैलिसपैरम में अलैंिगक चक्र के भी काफ� देर बाद बनते