Pollination, transfer of pollen grains from the stamens, the flower parts that produce them, to the ovule-bearing organs or to the ovules (seed precursors) themselves. In plants such as conifers and cycads, in which the ovules are exposed, the pollen is simply caught in a drop of fluid secreted by the ovule. In flowering plants, however, the ovules are contained within a hollow organ called the pistil, and the pollen is deposited on the pistil’s receptive surface, the stigma. There the pollen germinates and gives rise to a pollen tube, which grows down through the pistil toward one of the ovules in its base. In an act of double fertilization, one of the two sperm cells within the pollen tube fuses with the egg cell of the ovule, making possible the development of an embryo, and the other cell combines with the two subsidiary sexual nuclei of the ovule, which initiates formation of a reserve food tissue, the endosperm. The growing ovule then transforms itself into a seed.
This file gives general information about characteristics and importance of the fungi belonging to the order Perenosporalees and its major families albuginaceae, perenosporaceae and pythiaceae
Volvox is a spherical multicellular green alga, which contains many small biflagellate somatic cells and a few large, non-motile reproductive cells called gonidia, and swims with a characteristic rolling motion.
Pollination, transfer of pollen grains from the stamens, the flower parts that produce them, to the ovule-bearing organs or to the ovules (seed precursors) themselves. In plants such as conifers and cycads, in which the ovules are exposed, the pollen is simply caught in a drop of fluid secreted by the ovule. In flowering plants, however, the ovules are contained within a hollow organ called the pistil, and the pollen is deposited on the pistil’s receptive surface, the stigma. There the pollen germinates and gives rise to a pollen tube, which grows down through the pistil toward one of the ovules in its base. In an act of double fertilization, one of the two sperm cells within the pollen tube fuses with the egg cell of the ovule, making possible the development of an embryo, and the other cell combines with the two subsidiary sexual nuclei of the ovule, which initiates formation of a reserve food tissue, the endosperm. The growing ovule then transforms itself into a seed.
This file gives general information about characteristics and importance of the fungi belonging to the order Perenosporalees and its major families albuginaceae, perenosporaceae and pythiaceae
Volvox is a spherical multicellular green alga, which contains many small biflagellate somatic cells and a few large, non-motile reproductive cells called gonidia, and swims with a characteristic rolling motion.
This is an illustrated account for Unit 1 of Coure Course III Mycology and Phytopathology of Bsc Hons Program - Introduction to True fungi including characters, affinities, thallus, cell wall, nutrition and classification
मलेरिया परजीवी का जीवन चक्र
मलेरिया प्लास्मोडियम वंश के प्रोटोज़ोआ परजीवियों से फैलता है। इस वंश की पाच प्रजातियां मानव को संक्रमित करती हैं - प्लास्मोडियम फैल्सीपैरम, प्लास्मोडियम वाईवैक्स, प्लास्मोडियम ओवेल, प्लास्मोडियम मलेरिये तथा प्लास्मोडियम नौलेसी। इनमें से सबसे पराक्रमी और घातक पी. फैल्सीपैरम माना जाता है, मलेरिया के 80 प्रतिशत रोगी इसी प्रजाति के संक्रमण की देन है। मलेरिया से मरने वाले 90 प्रतिशत रोगियों का कारण पी. फैल्सीपैरम संक्रमण ही माना गया है।
This is an illustrated account for Unit 1 of Coure Course III Mycology and Phytopathology of Bsc Hons Program - Introduction to True fungi including characters, affinities, thallus, cell wall, nutrition and classification
मलेरिया परजीवी का जीवन चक्र
मलेरिया प्लास्मोडियम वंश के प्रोटोज़ोआ परजीवियों से फैलता है। इस वंश की पाच प्रजातियां मानव को संक्रमित करती हैं - प्लास्मोडियम फैल्सीपैरम, प्लास्मोडियम वाईवैक्स, प्लास्मोडियम ओवेल, प्लास्मोडियम मलेरिये तथा प्लास्मोडियम नौलेसी। इनमें से सबसे पराक्रमी और घातक पी. फैल्सीपैरम माना जाता है, मलेरिया के 80 प्रतिशत रोगी इसी प्रजाति के संक्रमण की देन है। मलेरिया से मरने वाले 90 प्रतिशत रोगियों का कारण पी. फैल्सीपैरम संक्रमण ही माना गया है।
परागण (Pollination): परागकणों (Pollengrains) के परागकोष (Anther) से मुक्त होकर उसी जाति के पौधे के जायांग (Gynoecium) के वर्तिकाग्र (stigma) तक पहुँचने की क्रिया को परागण कहते हैं।
परागण के प्रकार Type of Pollination:
परागण दो प्रकार के होते हैं-
स्वपरागण (self Pollination): जब एक पुष्प के परागकण उसी पुष्प के वर्तिकाग्र पर या उसी पौधे पर स्थित किसी अन्य पुष्प के वर्तिकाग्र पर पहुँचता है, तो इसे स्वपरागण कहते हैं।
पर-परागण (Cross pollination): जब एक पुष्प का परागकण उसी जाति के दूसरे पौधे पर स्थित पुष्प के वर्तिकाग्र पर पहुँचता है, तो उसे पर-परागण कहते हैं। पर-परागण कई माध्यमों से होता है। पर परागण पौधों के लिए उपयोगी होता है। पर-परागण के लिए किसी माध्यम की आवश्यकता होती है। वायु, कीट, जल या जन्तु इस आवश्यकता की पूर्ति करते हैं।
परागण की विधियां (Methods of pollination): परागण की निम्नलिखित विधियां हैं–
वायु परागण (Anemophilous): वायु द्वारा परागण
कीट परागण (Entomophilous): कीट द्वारा परागण
जल परागण (Hydrophilous): जल द्वारा परागण
जन्तु परागण (zoophilous): जन्तु द्वारा परागण
पक्षी परागण (Ornithophilous): पक्षियों द्वारा परागण
मेलेकोफिलस (Malacophilous): घोंघे द्वारा परागण
चिरोप्टोफिलस (Chiroptophilous): चमगादड़ द्वारा परागण
निषेचन (Fertilization): परागण के पश्चात निषेचन की क्रिया प्रारम्भ होती है। परागनली (Pollen tube) बीजाण्ड (ovule) में प्रवेश करके बीजाण्डासन को भेदती हुई भ्रूणपोष (Endosperm) तक पहुँचती है और परागकणों को वहीं छोड़ देती है। इसके पश्चात् एक नर युग्मक एक अण्डकोशिका से संयोजन करता है। इसे ही निषेचन कहते हैं। अब निषेचित अण्ड (Fertilized egg) युग्मनज (zygote) कहलाता है। यह युग्मनज बीजाणुभिद की प्रथम इकाई है।
निषेचन के पश्चात बीजाण्ड से बीज, युग्मनज से भ्रूण (embryo) तथा अण्डाशय से फल का निर्माण होता है। आवृत्तबीजी पौधों (Angiospermic plants) में निषेचन को त्रिक संलयन (Triple fusion) कहते हैं।
The term isolation refers to the separation of a strain from a natural, mixed population of living microbes, as present in the environment. It becomes necessary to maintain the viability and purity of the microorganism by keeping the pure culture free from contamination.
3. बैक्टिरिया में जनन
जीवाणुओं में जनन मुख्यतः अलैंगिक ववगियों से होता है । परन्तु इलेक्ट्रोन सूक्ष्मदर्शी से ज्ञात हुआ है कक जीवाणु की कु छ
जाततयों में आनुवांशर्शक पुनयोजन अथवा आनुवांशर्शक पदाथथ का ववतनमय होता है ।
जीवाणुओं में जनन अलैंगिक व लैंगिक ववगियों द्वारा होता है –
I) अलैंगिक जनन – जब एकल कोशर्शका अथवा एकल जनक ,कोशर्शका ववभाजन द्वारा अपने समान ही संततत कोशर्शकाओं को
उत्पन्न करते है तो इसे अलैंगिक जनन कहते है । जीवाणुओं में अलैंगिक जनन तनम्न ववगियों के द्वारा होता है –
1. द्ववखण्डन (Binary fission) – वातावरणीय दर्शाओं के अनुकू ल होने पर जीवाण्ण्वक कोशर्शका एक अनुप्रस्थ शभवि द्वारा
दो संततत कोशर्शकाओं में ववभाण्जत हो जाती है । इस किया को द्ववखण्डन अथवा ववखण्डन (fission) कहते है ।
ववखण्डन से पूवथ जीवाण्ण्वक कोशर्शका की लंबाई में वृद्गि होती है । इसके पश्चात् कोशर्शका के मध्य से
संकीणथन (constriction) प्रारंभ होता है ,जो िीरे-िीरे िहरा होकर कोशर्शका को दो संततत कोशर्शकाओं में ववभक्ट्त
कर देता है । इस प्रकिया में कोशर्शका द्रव्य के साथ-साथ नाशभकीय द्रव्य (nuclear matter) भी ववभाण्जत होता
है ।
ववखण्डन सामान्य सूत्री ववभाजन से शभन्न होता है । इसमें तकूथ तनमाथण नहीं होता है । इस प्रकार के
ववभाजन में यह तनण्श्चत रूप से ज्ञात नहीं है कक आनुवांशर्शक पदाथथ संततत कोशर्शकाओं में समान रूप से
ववतररत होता है अथवा नहीं । ववखण्डन लिभि सभी प्रकार के जीवाणुओं का लाक्षणणक िुण है । इस कारण
इन्हें र्शाइजोमाइसीटीज विथ में रखा िया है
4. 2. मुकु लन (Budding) – इस प्रकिया में जीवाणु कोशर्शका से अनेक उद्विथ (outgrowths)
तनकलते है । कु छ समय पश्चात् इनमें कोशर्शका द्रव्य व अन्य कोशर्शकांि आ जाते है । ये
उद्विथ मुकु ल (Bud) कहलाते है । मुकु ल जनक कोशर्शका से संकीणथन द्वारा पृथक हो जाते
है । तथा नई जीवाण्ण्वक कोशर्शका के रूप में कायथ करते है ।
कु छ जीवाणु जैसे हाइफोमाइिोबबयम वल्िैरी व रोडोमाइिोबबयम वेनेशलया में मुकु लन
सामान्य रूपसे पाया जाता है
3. कोनेडडया द्वारा (By conidia) – तंतुमय जीवाणुओं (filamentous bacteria) जैसे
स्रेप्टोमाइसीज में तंतुओं के र्शीर्थ पर बीजाणु के समान छोटी-छोटी िोल अथवा अण्डाकार
संरचनाएँ बनती है , ण्जन्हें कोतनडडया कहते है । इनका ववकास जीवाणु तंतु में अनुप्रस्थ
शभवियों के बनने से एक लंबी श्ृंखला में होता है । कोतनडडया युक्ट्त तंतु कोतनडडयमिर
(conidiophore or sporophore) कहलाता है । प्रत्येक कोतनडडयम मुक्ट्त होने के पश्चात्
अनुकू ल पररण्स्थततयों में अंकु ररत होकर नये जीवाण्ण्वक तंतु का तनमाथण करता है ।
5. The bacterial cell develops small swelling
at one side which gradually increases in
size . Simultaneously the nucleus
undergoes division, where one remains
with the mother and other one with some
cytoplasm goes to the swelling. This
outgrowth is the bud, which gets sepa-
rated from the mother by partition wall,
e.g., Hyphomicrobium vulgare,
Rhodomicrobium vannielia, etc
6. Conidia formation takes place in filamentous bacteria like
Streptomyces etc., by the formation of a transverse septum
at the apex of the filament . The part of this filament which
bears conidia is called conidiophore. After detachment from
the mother and getting contact with suitable substratum,
the conidium germinates and gives rise to new mycelium
Conidia:
7. Cysts:
Cysts are formed by the deposition
of additional layer around the
mother wall. These are the resting
structure and during favourable
condition they again behave as the
mother, e.g., many members of
Azotobacter.
Some endospore forming bacteria:
1. Gram-positive
(a) Bacilli
(i) Obligate aerobes, e.g., Bacillus
subtilis, B. anthracis.
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13. II) लैंगिक पुनयोजन (Genetic recombination) – जीवाणुओं में लैंगिकता
सवथप्रथम टेटम तथा लीडरबिथ द्वारा Escherichia coli (E. कोलाई =
एसररककया कोलाई) में प्रदशर्शथत की िई । इनमें अन्य जीविाररयों की
भाँतत कोशर्शकाओं (युग्मकों) का संलयन नहीं होता है । जीवाणुओं में
लैंगिक जनन का मुख्य लक्षण आनुवांशर्शक पदाथथ का ववतनमय(
Interchange of genetic material) है । ववतनमय संयुग्मन(conjugation)
अथवा ववदेर्शज(exotic) ववगियों द्वारा संपन्न होता है । संयुग्मन में
आनुवांशर्शक पदाथथ का ववतनमय एक नशलका के द्वारा होता है ,ण्जसे
संयुग्मन नशलका (conjugation tube ) कहते है ,परन्तु ववदेर्शज ववगि
द्वारा ववतनमय में दो जीवाणु कभी भी एक दूसरे के संपकथ में नहीं
आते है ,इसमें आनुवांशर्शक पदाथथ(DNA) का ववतनमय रूपांतरण
(Transformation) अथवा परािमण ( transduction) द्वारा होता है ।
14. 1. संयुग्मन ( conjugation)
यद्यवप संयुग्मन अनेक जीवाणुओं में पाया जाता है परन्तु इसका ववस्तृत अध्ययन ई.कोलाई
में ककया िया है । संयुग्मन के शलए जीवाणु के दो संिम प्ररूप (mating types) की
आवश्यकता होती है । ये दोनों ही प्ररूप अिुणणत होते है । इनमें एक प्ररूप कोशर्शका दाता
कोशर्शका (donar cell) अथवा जननक्षम कोशर्शका (fertile cell , F+ ) तथा दूसरी ग्राही कोशर्शका
(recipient cell, F- ) होती है । संयुग्मन से पूवथ दाता जीवाण्ण्वक कोशर्शका के वलतयत DNA की
पुनरावृतत (replication) होती है ।
F को उवथरता कारक(fertility factor or F- factor) कहते है । ण्जस जीवाण्ण्वक कोशर्शका में F-
कारक होता है ,उसे F+ और ण्जसमें यह अनुपण्स्थत होता है ,उसे F- कहते है ।
जब दो ववपररत प्ररूप ( F+ व F- ) की कोशर्शकाएँ तनकट आतत है तो दाता कोशर्शका लैंगिक
रोमों (sex pili) की सहायता से ग्राही कोशर्शका से संलग्न हो जाती है । दोनों प्ररूपों के संलग्न
बबन्दू पर संयुग्मन नशलका (conjugation tube ) बनती है । ण्जसके द्वारा दाता कोशर्शका का
आनुवांशर्शक पदाथथ ग्राही कोशर्शका में प्रवेर्श कर जाता है ।
दाता कोशर्शका ण्जसे नर प्ररूप (male type) भी कहते है ,का एक ववशर्शष्ट लक्षण इनके
िुणसूत्र में उवथरता कारक(fertility factor or F- factor) की उपण्स्थतत है । यह कारक जब दाता
कोशर्शका से ग्राही कोशर्शका (स्त्री प्ररूप) में चला जाता है तो ग्राही कोशर्शका F+ में पररवततथत हो
जाती है ।
एसररककया के अततररक्ट्त स्यूडोमोनास ,साल्मोनेला ,ववबियो में भी संयुग्मन पाया जाता है ।
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19. 2. रूपांतरण (Transformation) – वह प्रकिया ण्जसमें एक जीवाण्ण्वक कोशर्शका का DNA दूसरी
जीवाण्ण्वक कोशर्शका में उस माध्यम द्वारा प्रवेर्श करता है ण्जसमें जीवाणु वृद्गि कर रहे हों,
रूपांतरण कहलाती है ।
ऐसी कोशर्शकाएँ ण्जनमें रूपांतरण संभव हो , समथथ कोशर्शकाएँ (competent cells) कहलाती है
। तथा DNAरज्जुक का वह अंर्श ण्जसमें रूपांतरण की योग्यता तनहहत होती है ,रूपांतरण
कारक ( transfer factor) कहलाता है ।
रूपांतरण की खोज- रूपांतरण की खोज का श्ेय फ्रे डेररक गग्रकफथ को जाता है । इन्होंने
स्रेप्टोकोकस तनमोनी ( जीवाणु जो तनमोतनया के शलए ण्जम्मेदार है ) के साथ कई प्रयोिों
से रूपांतरण की अच्छे ढंि से व्याख्या की है ।
गग्रकफथ का प्रयोि – जब स्रेप्टोकोकस तनमोनी (न्यूमोकोकस) जीवाणु की संविथन प्लेट पर
वृद्गि करता है तब इसकी कु छ गचकनी चमकीली कालोनी( S-प्रभेद) व दूसरी खुरदरी
कालोनी(R-प्रभेद) का तनमाथण होता है । S-प्रभेद के जीवाणु में श्लेष्मा (बहुर्शकथ राइड) युक्ट्त
आवरण होता है । S-प्रभेद उग्र होते है अथवा तनमोतनया रोि उत्पन्न करते है जबकी R-
प्रभेद द्वारा तनमोतनया नहीं होता है ।
20. जब ताप से मृत S-प्रभेद के जीवाणुओं को चूहे में प्रवेर्श कराते है तो चूहा जीववत रहता है
क्ट्योंकक िमथ करने से जीवाणु मर जाते है और रोि उत्पन्न नहीं करते है । लेककन जब
ताप से मृत S-प्रभेद को R-प्रभेद के साथ प्रवेर्श कराते है तो चूहा मर जाता है क्ट्योंकक िमथ
करने से S-प्रभेद के जीवाणु मर जाते है परन्तु उनका आनुवांशर्शक पदाथथ DNA नष्ट नहीं
होता है ण्जसमें रूपांतरण की क्षमता होती है और यह रूपांतरण कारक DNA R-प्रभेद के
जीवाणुओं में कोशर्शका शभवि में उपण्स्थत तछद्रों के माध्यम से प्रवेर्श कर जाता है ,ण्जसके
पश्चात् R-प्रभेद के जीवाणु ,S-प्रभेद के जीवाणुओं में पररवततथत हो जाते है और ये
तनमोतनया रोि उत्पन्न करते है ण्जसके काऱण चूहा मर जाता है ।
गग्रकफथ अपनों प्रयोिों के द्वारा यह नहीं बता सके की रूपांतरण कारक DNA होता है ।
तत्पश्चात् एवेरी, मैक्ट्लीऑइड तथा मैकाटे ने प्रयोिर्शाला में प्रयोिों से प्रदशर्शथत ककया कक
रूपांतरण कारक DNA होता है ।
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22. 3. परािमण ( transduction) – वह प्रकिया ण्जसमें आनुवांशर्शक पदाथथ दाता कोशर्शका से ग्राही कोशर्शका को
स्थानांतरण जीवाणुभोजी (bacteriophage) द्वारा होता है , परािमण कहलाती है ।
इसका अध्ययन सवथप्रथम ण्जन्डर व लेडरबिथ द्वारा सैल्मोनेला टाइफीम्यूररयम नामक जीवाणु में ककया
िया । उन्होने देखा कक ववभोजी कण (phage particle) ककसी ववशर्शष्ट जीवाणु कोशर्शका पर आिमण करके
उस ववशर्शष्ट जीवाणु के लक्षण(X) ग्रहण कर लेता है और जब वह ववभोजी ककसी अन्य जीवाणु कोशर्शका
पर आिमण करता है तो ववशर्शष्ट लक्षण (X) उस जीवाणु को स्थानांतररत हो जाते है ।
परािमण दो प्रकार का होता है –
i) ववशर्शष्ट परािमण (specialised transduction)
ii) व्यापकीकृ त परािमण (generalised transduction)
i) ववशर्शष्ट परािमण (specialised transduction) – ववशर्शष्ट परािमण के मुख्य चरण
तनम्न है –
अ) जीवाणुभोजी जीवाणु के ग्राही स्थल (receptor site) पर संलग्न हो जाता है तथा
ववभोजी का न्युण्क्ट्लक अम्ल (nucleic acid) जीवाणु कोशर्शका के कोशर्शकाद्रव्य में
स्थानांतररत हो जाता है ।
ब) ववभोजी का न्युण्क्ट्लक अम्ल जीवाणु कोशर्शका में कु छ ववर्शेर् प्रकार के प्रोटीन बनाने
के शलए कोडडत होता है , इन्हें दमनकर प्रोटीन(repressor protein) कहते है । इनका कायथ
जीवाणु कोशर्शका में ववभोजी कणों का संश्लेर्ण (synthesis of phage particles) रोकना है ।
23. ववभोजी का DNA जीवाणु कोशर्शका में खण्डों (Fregments) के रूप में रहता है ,ण्जन्हें प्रोफाज( prophage) कहते है ।
प्रोफाज जीवाणु कोशर्शका के कोशर्शकाद्रव्य में स्वतंत्र रूप से ववतररत अथवा जीवाणु के िुणसूत्र पर संलग्न रहते है
। प्रोफाज युक्ट्त जीवाणु कोशर्शका लयजनक (Lysogenic) कहलाती है । जीवाणु कोशर्शका अनेक पीहढयों तक
लयजनक रह सकती है । तथा ववभोजी DNA जीवाणु के िुणसूत्र के साथ ववभाण्जत होता रहता है । परन्तु एक
अवस्था ऐसी आती है जब जीवाणु कोशर्शका में दमनकारी प्रोटीन का संश्लेर्ण रूक जाता है तथा इसमें ववभोजी
घटकों का संश्लेर्ण (synthesis of phage components) प्रारंभ हो जाता है । और इनमें ववभोजी प्रोटीन का संश्लेर्ण
भी होने लिता है ।
स) ववभोजी DNA जब जीवाणु िुणसूत्र से टूटता है तब जीवाणु के कु छ जीन भी इसके साथ संलग्न हो जाते है ।
इनकी पुनरावृतत ववभोजी DNA के साथ होती रहती है । तथा ये नए ववभोजी कणों का एक भाि बन जाते है ।
जब नए ववभोजी कण ककसी अन्य जीवाणु कोशर्शका को संिशमत करते है तो इनमें उपण्स्थत जीवाणु जीन भी नई
जीवाणु कोशर्शका के िुणसूत्र में समावेशर्शत हो जाते है । नई जीवाणु कोशर्शका (recombined cell) के िुणसूत्र में
अपने जीनों के अततररक्ट्त मातृ अथवा पहली वाली जीवाणु कोशर्शका के जीन भी होते है ।
आनुवांशर्शक पदाथथ का यह ववतनमय ववशर्शष्ट परािमण कहलाता है । इसमें जीवाणु िुणसूत्र से के वल कु छ
ववशर्शष्ट जीन का ही स्थनांतरण होता है ।
अथवा
जीवाणुभोजी द्वारा एक जीवाणु कोशर्शका के ववशर्शष्ट जीनों का अन्य जीवाणु कोशर्शका के िुणसूत्र में समावेर्शन
होना , ववशर्शष्ट परािमण कहलाता है ।
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25. ii) व्यापकीकृ त परािमण (generalised transduction) – ववशर्शष्ट परािमण की तुलना में
व्यापकीकृ त परािमण एक अगिक सामान्य घटना है ।
इसमें तनम्न चरण होते है –
अ) लयजनक जीवाणु कोशर्शका में उपण्स्थत ववभोजी DNA नये ववभोजी घटकों का
संश्लेर्ण करता है । इस प्रकिया में जीवाणु कोशर्शका का िुणसूत्र खंडडत हो जाता है ।
तथा इन खण्डों का कु छ नये ववभोजी DNA में समावेर्शन हो जाता है । इस प्रकार
लयजनक कोशर्शका में उपण्स्थत कु छ ववभोण्जयों में के वल ववभोजी DNA होता है ,जबकक
अन्य में जीवाणु िुणसूत्र के खण्ड समावेशर्शत होते है ।
ब) यहद ऐसे ववभोजी ,ण्जनमें जीवाणु िुणसूत्र के खण्ड समावेशर्शत होते है ,जब वे अन्य
ववभेद की जीवाणु कोशर्शका को संिशमत करते है तो ववभोजी तो ववभोजी में उपण्स्थत
मातृ जीवाणु कोशर्शका के जीन नई जीवाणु कोशर्शका को स्थानांतररत हो जाते है । इस
प्रकार इन ववभोजी कण में परािमण की क्षमता होती है । इसके ववपररत ऐसे ववभोजी
ण्जनमें के वल ववभोजी DNA हो ,वह परािमण की दृण्ष्ट से अनुपयोिी है ।