आयुर्वेद में वर्णित प्रमुख मानसरोग
मुख्य पांच प्रकार (१) वातज (२) पित्तज (३) सन्निपातज (४) आगंतुज
उन्माद की चिकित्सा
दैव व्यापाश्रय चिकित्सा
युक्तिव्यापाश्रय चिकित्सा
सत्वावाजय
उन्माद के कारण एवं लक्षण
ताड़न, मारण, भय दर्शन
उन्माद में आहार-विहार
उन्माद में पंचकर्म की भूमिका
दर्शन योग धर्मार्थ ट्रस्ट [पंजीकरण क्रमांक- ई/३६१७/साबरकांठा (गुज)],कार्यालय- आर्यवन विकास क्षेत्र,रोजड,पत्रालय-सागपुर,जिला- साबरकांठा,गुजरात,पिन- ३८३३०७] अपने पूर्वजों ऋषि-मुनियों के द्वारा अनुपालित परम्पराओं की अनमोल थाती को सुरक्षित रखने के लिए सदैव प्रयासशील है । ट्रस्ट संविधान(Trust Deed)(न्यासियों के अधिकार क्रमांक- ठ) के अनुसार दिनांक ०१-०२-२०१७ को ट्रस्ट की प्रस्ताव सभा-२० में क्रमांक -४ में इसी दिशा में एक प्रस्ताव पारित किया गया है । आर्य समाज में योग-विद्या में आदर्श माने जाने वाले पूज्य स्वामी सत्यपति जी परिव्राजक की यह अभिलाषा रही है कि समाज में ऐसे सत्यवादी परोपकारी दार्शनिक आदर्श योगियों का निर्माण किया जाये, जिनका मुख्य उद्देश्य निष्ठापूर्वक ईश्वर, जीव, प्रकृति व भौतिक पदार्थों का वैदिक ज्ञान-विज्ञान आदान-प्रदान करना हो । यह सब कार्य समान लक्ष्य वाले व्यक्तियों के धार्मिक संगठन द्वारा ही सम्भव है । दर्शन योग धर्मार्थ ट्रस्ट ने अपने उपरोक्त प्रस्ताव द्वारा ऐसे संगठन-निर्माण का निश्चय किया है ।
पूज्य श्री स्वामी सत्यपति जी परिव्राजक के आशीर्वाद पूर्वक चैत्र शु.०५ वि. २०७४ तदनुसार ०१ अप्रैल २०१७, शनिवार को न्यास के कार्यालय में प्रवंधक न्यासी श्री स्वामी विवेकानन्द जी परिव्राजक के अध्यक्षता में न्यासियों तथा अनेक आमंत्रित महानुभावों के उपस्थिति में सर्वसम्मति पूर्वक परिषद का निर्माण किया गया ।
March-2020 Free Monthly Hindi Astrology Magazines, You can read in Monthly GURUTVA JYOTISH Magazines Astrology, Numerology, Vastu, Gems Stone, Mantra, Yantra, Tantra, Kawach & ETC Related Article absolutely free of cost.
GURUTVA JYOTISH MONTHLY E-MAGAZINE MARCH-2020
गुरुत्व ज्योतिष ई पत्रीका मार्च-2020 में प्रकशित लेख
चैत्र नवरात्र विशेष विशेष
समय की सीख समय पर ले लेनी चाहिए, ऐसा वयोवृद्ध और ज्ञानी महापुरुषों का मार्गदर्शन है।
कहते हैं समय बहुत बलवान होता है, अपने-अपने समय के बड़े-बड़े सूरमाओं का आज नामोनिशान नहीं है।
अतः पहली बात यह कि अपने जीवन के कर्तव्यों को ऐसा निभाया जाये कि करने को कुछ शेष कभी भी न रह जाये। जब बुलावा आये, चल पड़े।
दूसरी आवश्यक बात यह है कि सदा सत्कर्म ही करें।
तीसरी बात समय से अपने जीवन का अंकेक्षण कराना सीख लें। जीवन में कौन हमारा सबसे निकट है, कौन दूर है, कौन शत्रु है और कौन हितशत्रु हैं यह हमें समय ही सिखाता है।
April-2020 Vol: 1 Free Monthly Hindi Astrology Magazines, You can read in Monthly GURUTVA JYOTISH Magazines Astrology, Numerology, Vastu, Gems Stone, Mantra, Yantra, Tantra, Kawach & ETC Related Article absolutely free of cost.
GURUTVA JYOTISH MONTHLY E-MAGAZINE
APRIL-2020 VOL: 1
गुरुत्व ज्योतिष ई पत्रीका अप्रैल-2020 | अंक 1
में प्रकशित लेख राम नवमी विशेष
This Presentation is prepared for Graduate Students. A presentation consisting of basic information regarding the topic. Students are advised to get more information from recommended books and articles. This presentation is only for students and purely for academic purposes. The pictures/Maps included in the presentation are taken/copied from the internet. The presenter is thankful to them and herewith courtesy is given to all. This presentation is only for academic purposes.
आयुर्वेद में वर्णित प्रमुख मानसरोग
मुख्य पांच प्रकार (१) वातज (२) पित्तज (३) सन्निपातज (४) आगंतुज
उन्माद की चिकित्सा
दैव व्यापाश्रय चिकित्सा
युक्तिव्यापाश्रय चिकित्सा
सत्वावाजय
उन्माद के कारण एवं लक्षण
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उन्माद में आहार-विहार
उन्माद में पंचकर्म की भूमिका
दर्शन योग धर्मार्थ ट्रस्ट [पंजीकरण क्रमांक- ई/३६१७/साबरकांठा (गुज)],कार्यालय- आर्यवन विकास क्षेत्र,रोजड,पत्रालय-सागपुर,जिला- साबरकांठा,गुजरात,पिन- ३८३३०७] अपने पूर्वजों ऋषि-मुनियों के द्वारा अनुपालित परम्पराओं की अनमोल थाती को सुरक्षित रखने के लिए सदैव प्रयासशील है । ट्रस्ट संविधान(Trust Deed)(न्यासियों के अधिकार क्रमांक- ठ) के अनुसार दिनांक ०१-०२-२०१७ को ट्रस्ट की प्रस्ताव सभा-२० में क्रमांक -४ में इसी दिशा में एक प्रस्ताव पारित किया गया है । आर्य समाज में योग-विद्या में आदर्श माने जाने वाले पूज्य स्वामी सत्यपति जी परिव्राजक की यह अभिलाषा रही है कि समाज में ऐसे सत्यवादी परोपकारी दार्शनिक आदर्श योगियों का निर्माण किया जाये, जिनका मुख्य उद्देश्य निष्ठापूर्वक ईश्वर, जीव, प्रकृति व भौतिक पदार्थों का वैदिक ज्ञान-विज्ञान आदान-प्रदान करना हो । यह सब कार्य समान लक्ष्य वाले व्यक्तियों के धार्मिक संगठन द्वारा ही सम्भव है । दर्शन योग धर्मार्थ ट्रस्ट ने अपने उपरोक्त प्रस्ताव द्वारा ऐसे संगठन-निर्माण का निश्चय किया है ।
पूज्य श्री स्वामी सत्यपति जी परिव्राजक के आशीर्वाद पूर्वक चैत्र शु.०५ वि. २०७४ तदनुसार ०१ अप्रैल २०१७, शनिवार को न्यास के कार्यालय में प्रवंधक न्यासी श्री स्वामी विवेकानन्द जी परिव्राजक के अध्यक्षता में न्यासियों तथा अनेक आमंत्रित महानुभावों के उपस्थिति में सर्वसम्मति पूर्वक परिषद का निर्माण किया गया ।
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चैत्र नवरात्र विशेष विशेष
समय की सीख समय पर ले लेनी चाहिए, ऐसा वयोवृद्ध और ज्ञानी महापुरुषों का मार्गदर्शन है।
कहते हैं समय बहुत बलवान होता है, अपने-अपने समय के बड़े-बड़े सूरमाओं का आज नामोनिशान नहीं है।
अतः पहली बात यह कि अपने जीवन के कर्तव्यों को ऐसा निभाया जाये कि करने को कुछ शेष कभी भी न रह जाये। जब बुलावा आये, चल पड़े।
दूसरी आवश्यक बात यह है कि सदा सत्कर्म ही करें।
तीसरी बात समय से अपने जीवन का अंकेक्षण कराना सीख लें। जीवन में कौन हमारा सबसे निकट है, कौन दूर है, कौन शत्रु है और कौन हितशत्रु हैं यह हमें समय ही सिखाता है।
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APRIL-2020 VOL: 1
गुरुत्व ज्योतिष ई पत्रीका अप्रैल-2020 | अंक 1
में प्रकशित लेख राम नवमी विशेष
This Presentation is prepared for Graduate Students. A presentation consisting of basic information regarding the topic. Students are advised to get more information from recommended books and articles. This presentation is only for students and purely for academic purposes. The pictures/Maps included in the presentation are taken/copied from the internet. The presenter is thankful to them and herewith courtesy is given to all. This presentation is only for academic purposes.
This presentation describes the relevance of Bhagwadgita and Vasudhaiv Kutumbakam in tourism and hospitality industry with different insights to achieve the real aim and objectives of tourism and hospitality industry through with the help of our holy text book.
Exploring the Philosophy of Bauddha Darshan: Its Origin, Teachings, and Relevance Today Bauddha Darshan, also known as Buddhism, is a philosophy that originated in ancient India and has gained immense popularity across the world.
It is a path of spiritual development that emphasizes the elimination of suffering and attaining enlightenment. In this article, we will explore the origins of Bauddha Darshan, its teachings, and its relevance in modern times.
Table of Contents:-
Introduction to Bauddha Darshan
Historical Development of Bauddha Darshan
The Life of Gautam Buddha
The Spread of Buddhism in India and Beyond The Four Noble Truths
The First Noble Truth: Suffering
The Second Noble Truth: The Cause of Suffering
The Third Noble Truth: The End of Suffering
The Fourth Noble Truth: The Path to the End of Suffering
The Eightfold Path Right View Right Intention Right Speech Right Action Right Livelihood Right Effort Right Mindfulness Right Concentration Key Concepts in Bauddha Darshan Karma Rebirth Nirvana The Relevance of Bauddha Darshan Today Buddhism and Meditation Buddhism and Mindfulness Buddhism and Social Justice
Conclusion
FAQs 1. Introduction to Bauddha Darshan Bauddha Darshan is a philosophy that originated in ancient India and is based on the teachings of Siddhartha Gautama, also known as the Buddha.
It is a path of spiritual development that emphasizes the elimination of suffering and attaining enlightenment. The core teachings of Bauddha Darshan are the Four Noble Truths and the Eightfold Path.
Buddhism has become a popular philosophy across the world and has spread to various parts of Asia, Europe, and America. In this article, we will delve into the history of Bauddha Darshan, its key teachings, and its relevance in modern times.
2. Historical Development of Bauddha Darshan The Life of Gautam Buddha The founder of Bauddha Darshan, Gautam Buddha, was born in Lumbini, Nepal, in the 6th century BCE.
He was born into a royal family but renounced his luxurious lifestyle in search of spiritual truth.
After several years of meditation and contemplation, he attained enlightenment under a Bodhi tree in Bodh Gaya, India.
The Spread of Buddhism in India and Beyond After attaining enlightenment, Gautam Buddha began to preach his teachings to others. The first sermon he gave was in Sarnath, India, and it was there that he laid out the Four Noble Truths and the Eightfold Path.
Buddhism spread rapidly across India and later to other parts of Asia, including China, Japan, and Korea.
Today, Buddhism is a global philosophy that has millions of followers across the world.
3. The Four Noble Truths - The Four Noble Truths are the core teachings of Bauddha Darshan.
They are as follows:
The First Noble Truth: Suffering The First Noble Truth is that suffering exists in the world.
This suffering can take many forms, such as physical pain, emotional distress, and mental anguish.
The Second Noble Truth: The Cause of Suffering The Second Noble Truth....
यह अध्ययन सामग्री मीमांसा दर्शन से सम्बन्धित एक परिचयात्मक अध्ययन है, जिसे विश्वविद्यालय स्तर के एम. ए. शिक्षाशास्त्र विषय के विद्यार्थी को ध्यान में रखकर तैयार किया गया है. हमें आशा ही नहीं अपितु पूर्ण विश्वास है कि यह अध्ययन सामग्री मीमांसा दर्शन के प्रति जिज्ञासु लोगों के लिए यत्किंचित् रूप में उपादेय सिद्ध हो सकता है.
On a path of going-towards-God, our one-point aim, intention, dedication and faith are the only valuable companions, nothing else. No rituals, no fastings, no Puja-Path, nothing is as important as our intentions, our lofty emotions. We cannot ask for the worldly pleasures as well as have Divinity on our side. The two are equal and opposite forces, and each one of us keeps fighting with these totally divergent forces all the life. Alas, we give up zeal for materialistic accomplishments and passions and devote all-out in the other direction. In the bargain, we would be given all that is good for us in our life on this planet anyways. We stand to gain on both sides - external as well as internal, spiritual.
2. जाणइ ततकालिवरिए, दव्वरगुणे पज्जए र् बहुभेदे।
पच्चक्खं च पचाेक्खं, आणेण णाणं तत णं बेंतत॥299॥
❖आथय - जजिके द्वाचा जतवर तिकाल िवरषर्क भूत,
भिवरष्र्त्, वरतयिान काल िंबंधत ििस्त द्रव्र् आाच
उनके गुण तथा उनकी आनेक प्रकाच की पर्ायर्ाें
काे जाने उिकाे ज्ञान कहते हं।
❖इिके दाे भेद हं - प्रत्र्क्ष, पचाेक्ष ॥299॥
3. उिे ज्ञान कहते हं
जाने
ििस्त द्रव्र्
उनके गुण उनके आनेक प्रकाच की पर्ायर्ाें काे
जजिके द्वाचा जतवर
भूत भिवरष्र् वरतयिान काल िम्बन्द्धत
नाेट : ज्ञान की पूणय िवरकसित पर्ायर् का भत र्हत स्वररूप ह ।
4. ज्ञान िकिे कहते हं?
कततय िाधन जाे जानता ह
कचण िाधन जजिके द्वाचा जाना जाता ह
भावर िाधन जानना िाि
5. ज्ञान के भेद
पचाेक्ष
इन्द्न्द्द्रर् आाच िन की िहार्ता द्वाचा
पदाथाेों काे आस्पष्ट जाने
ितत, श्रुत
प्रत्र्क्ष
िबना िकित िहार्ता के
के वरल आात्मा द्वाचा
पदाथाेों काे स्पष्ट जाने
िवरकल (िर्ायददत)
आवरधध, िन:पर्यर्
िकल (िम्पूणय)
के वरलज्ञान
नाेट - पचाेक्ष ज्ञान हत ह, वर िम्र्ग्जज्ञान ह ।
6. पंचेवर हाेंतत णाणा, िददिुदआाेहतिणं च के वरलर्ं ।
खर्उवरिमिर्ा चउचाे, के वरलणाणं हवरे खइर्ं ॥300॥
❖आथय: ज्ञान के पााँच भेद हं - ितत, श्रुत, आवरधध,
िन:पर्यर् तथा के वरल ।
❖इनिें आादद के चाच ज्ञान क्षार्ाेपशमिक हं आाच
के वरलज्ञान क्षायर्क ह ॥300॥
8. •जाे ज्ञान किय के क्षर् िे उत्पन्न हाे, उिे
क्षायर्क ज्ञान कहते हं ।
•र्ह आावरचण चहहत ज्ञान ह।
क्षायर्क ज्ञान
• िवरयघातत स्पधयकाें के उदर्ाभावरत क्षर्, उन्द्हतं के
िदवरस्थारूप उपशि तथा देशघातत स्पधयकाें के उदर्
िे हाेने वराला ज्ञान क्षार्ाेपशमिक ज्ञान कहलाता ह।
• र्ह आावरचण िहहत ज्ञान ह।
क्षार्ाेपशमिक
ज्ञान
9. आण्णाणततर्ं हाेदद हु, िण्णाणततर्ं खु मिच्छआणउदर्े।
णवररच िवरभंगं णाणं, पंमचंददर्िन्द्ण्णपुण्णेवर॥301॥
❖आथय - आादद के ततन (ितत, श्रुत, आवरधध) ज्ञान
िितचतन भत हाेते हं आाच मिथ्र्ा भत हाेते हं।
❖ज्ञान के मिथ्र्ा हाेने का आंतचंग काचण मिथ्र्ात्वर
तथा आनंतानुबंधत कषार् का उदर् ह।
❖मिथ्र्ा-आवरधध काे िवरभंग भत कहते हं। इििें र्ह
िवरशेषता ह िक र्ह िवरभंगज्ञान िंज्ञत पर्ायप्त पंचेन्द्न्द्द्रर्
के हत हाेता ह ॥301॥
52. आनुक्त
िबना कहा र्ा आमभप्रार्
िें वरतयिान
हाथ र्ा शशच के इशाचे िे
िबना कहे 'हााँ' र्ा 'ना'
ििझना
उक्त
कहा हुआा
िकित ने कहा ''र्े घड़ा ह''
53. ध्रुवर
आचल / बहुत काल
स्थार्त
पवरयतादद
आध्रुवर
चंचल / िवरनाशतक
क्षणस्थार्त िबजली
आादद
54. श्राेि इंदद्रर् िंबंधत बहु आादद ज्ञान
• एक साथ र्तर्त, नवर्तर्त, घन आनि शब्दों कद सुननाबहु
• इनमें से नकसी एक-िद शब्दों कद ही सुननाएक
• र्तर्त, नवर्तर्त, घन आनि के अनेकदों प्रकारदों कद सुननाबहुनवध
• नकसी एक-िद प्रकारदों कद ही जाननाएकनवध
• शीघ्रर्ता से कहे शब्, वाक्य आनि कद सुननाक्षिप्र
• मोंिर्ता से कहे शब्, वाक्य आनि कद सुनना अथवा धीरे धीरे
सुनना
अक्षिप्र
55. • पूरे वाक्य का उच्चारण ना हदने पर भी जान लेना नक क्या कहा हैअनन:सृर्त
• पूणण रूप से उच्चाररर्त हदने पर सुननानन:सृर्त
• एक भी शब् का उच्चारण हुए नबना अक्षभप्राय मात्र से अथण कद ्रहहण कर लेनाअनुक्त
• कहे गए शब् कद जान लेनाउक्त
• जैसा प्रथम समय में शब् का ्रहहण हुआ वैसा ही नद्वर्तीय आनि समयदों में शब् का
्रहहण करना | ना न्यून, ना अक्षधक |ध्रुव
• कभी बहुर्त शब्दों कद जानना, कभी अल्प कद, कभी एकनवध कद, कभी बहुनवध कद
इत्यानि रूप ज्ञान कद अध्रुव कहर्ते हैं |अध्रुव
नदट : पर-उपिेशपूवणक शब्दों का ्रहहण उक्त है | जैसे ‘यह गाय है’ - यह सुनकर गाय का ज्ञान | स्वर्त: गाय कद
िेखकर ज्ञान हदना नन:सृर्त ज्ञान है |
56. चक्षु इंदद्रर् िंबंधत बहु आादद ज्ञान
शुक्ल, कृ ष्ण, लाल, नीला आनि बहुर्त वणों का ज्ञान हदनाबहु
नकसी एक-िद रोंगदों का जाननाएक
अनेक प्रकार के रोंगदों का जाननाबहुनवध
एक िद-प्रकार के रोंगदों का जाननाएकनवध
शीघ्रर्ता से गनर्तमान वणों का जाननाक्षिप्र
मोंिरूप पररणर्त वणों का जाननाअक्षिप्र
57. वस्त्र के एक छदर के रोंगदों कद िेखकर पूरे वस्त्र के रोंगदों का ज्ञान हद जाना अथवा एक
वस्त्र के एकिेश रोंग कद िेखकर अन्यत्र स्थिर्त वस्त्र के रोंग का ज्ञान हदना
अनन:सृर्त
पूरे वस्त्र कद िेखकर वणों का जाननानन:सृर्त
िूसरे के कहे नबना अक्षभप्राय मात्र से यह जान लेना नक इन रोंगदों के नमश्रण से यह रोंग
बनाएोंगेअनुक्त
कहे जाने पर रूप कद ्रहहण करनाउक्त
जैसा प्रथम समय में रूप ्रहहण नकया है वैसा ही नद्वर्तीय आनि समय में भी जानना |
ना न्यून, ना अक्षधक |ध्रुव
कभी बहु रूप कद जानना, कभी बहुनवध कद, कभी एक कद, कभी एकनवध कद
इत्यानि अध्रुव रूप से रूप कद ्रहहण करर्ता हुआ ज्ञानअध्रुव
58. वरत्थुस्ि पदेिादाे, वरत्थुग्जगहणं तु वरत्थुदेिं वरा।
िर्लं वरा आवरलंिबर्, आणणन्द्स्िदं आण्णवरत्थुगई॥312॥
❖आथय - वरस्तु के एकदेश काे देखकच ििस्त
वरस्तु का ज्ञान हाेना, आथवरा
❖वरस्तु के एकदेश र्ा पूणय वरस्तु का ग्रहण कचके
उिके तनमित्त िे िकित दूिची वरस्तु के हाेने
वराले ज्ञान काे भत आतन:ितत कहते हं ॥312॥
59. आतन:ितत ज्ञान
वरस्तु के
एकदेश काे देखकच
ििस्त वरस्तु का ज्ञान
आन्द्र् आप्रकट वरस्तु
का ज्ञान
िवराोंग काे
देखकच
आन्द्र् आप्रकट वरस्तु
का ज्ञान
60. पुक्खचगहणे काले, हस्त्थस्ि र् वरदणगवरर्गहणे वरा।
वरत्थुंतचचंदस्ि र्, धेणुस्ि र् बाेहणं च हवरे॥313॥
❖आथय - जल िें ड़ूबे हुए हस्तत की िूंड़ काे देखकच
उित ििर् िें जलिग्न हस्तत का ज्ञान हाेना, आथवरा
❖िुख काे देखकच उि हत ििर् उििे मभन्न िकन्द्तु
उिके िदृश चन्द्द्रिा का ज्ञान हाेना, आथवरा
❖गवरर् काे देखकच उिके िदृश गा का ज्ञान हाेना —
❖इनकाे आतन:ितत ज्ञान कहते हं ॥313॥
61. आतन:ितत - उदाहचण
क्र. उदाहचण कान-िा ज्ञान ?
1
जल िें ड़ूबे हाथत की िूंड़
देखकच हाथत का ज्ञान हाेना
आनुिान
2 िुख देखकच चन्द्द्रिा का ज्ञान स्मततत / प्रत्र्मभज्ञान
3 गवरर् काे देखकच गा का ज्ञान स्मततत / प्रत्र्मभज्ञान
4
आन्द्र्था आनुपपत्तत्त का ज्ञान –
आयग्न नहतं ताे धुआााँ भत नहतं
तकय