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मनुष्यगति में गर्भतनवास िथा
प्रसवकाल क दुुःख
जननी उदर वसया नव मास, अेंग सकु चिें पाया त्रास ।
तनकसि ज दुख पाय घार, तिनका कहि न अाव अार॥14॥
• जननी= मािा क
• उदर= पट में
• वसया= रहा;
• नव मास= ना महीन िक
• अेंग= शरीर
• सकु चिें= ससकाड़कर
रहन स
• त्रास= दुुःख
• तनकसि= तनकलि समय
• ज= जा
• घार= र्येंकर
• तिनका= उन दुुःखाें का
• कहि= कहन स
• न अाव= नहीें अा सकिा
• अार= अन्ि
• मनुष्यगति में र्ी यह जीव
ना महीन िक मािा क पट
में रहा;
• वहााँ शरीर का ससकाड़कर
रहन स िीव्र वदना सहन
की,
• जजसका वर्भन नहीें ककया जा
सकिा॥14॥
जननी उदर वसया नव मास, अेंग सकु चिें पाया त्रास ।
तनकसि ज दुख पाय घार, तिनका कहि न अाव अार॥14॥
गर्ाभवसथा क दुख
• अेंगा का ससकाड़ क समय कििाना पड़िा ह
• उल्ट मुेंह रहना पड़िा ह
• दुगंधिि कीचड़ जस सथान में रहना हािा ह
• माें क उच्छिष्ट र्ाजन स र्ूख ममटानी पड़िी ह
• मािा क गरम, चटपट र्ाजन करन स शरीर में
सेंिाप, दाह अादद हाि हें
• कर्ी गर्भ में ही मरर् हा जािा ह
• गर्भ स तनकलन में अपार वदना र्ागना पड़िी ह
गर्भ स तनकलकर दुख
• अत्येंि र्ूख-प्यास की वदना
• ििान की शमि का अर्ाव
• अनक प्रकार क रागाें स युि
• लागाें क द्वारा च्खलान जसा ्यवहार
मनुष्यगति में िाल, युवा
अार वृद्धावसथा क दुुःख
िालपन में ज्ञान न लह्ा, िरुर् समय िरुर्ी-रि रह्ा ।
अिभमृिकसम िूढ़ापना, कस रूप लख अापना ॥15॥
• िालपन में= िचपन में
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जसा
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िालपन में ज्ञान न लह्ा, िरुर् समय िरुर्ी-रि रह्ा ।
अिभमृिकसम िूढ़ापना, कस रूप लख अापना ॥15॥
मनुष्य जीवन की 3 अवसथाएें
• िचपन
• जवानी
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मनुष्य गति क दुुःख
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• पढ़ाई सम्िन्िी
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• शरीर क रागादी
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दव ककस कहि हें
जा दवगति में हान वाल या पाय जानवाल
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जा अणर्मा, महहमा अादद अाठ गुर्ाें क
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जजनका रूप, लावण्य, यावन अादद सदा
प्रकाशमान रहिा ह
दव
र्वनवासी
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्येंिर
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दवगति में र्वनतत्रक का
दुुःख
कर्ी अकामतनजभरा कर, र्वनतत्रक में सरिन िर ।
कवषय-चाह-दावानल दह्ा, मरि कवलाप करि दुख सह्ा॥16॥
• कर= की
• र्वनतत्रक= र्वनवासी, ्येंिर अार जयातिषी में
• सरिन= दवपयाभय
• िर= िारर् की,
• कवषय चाह= पााँच इच्न्ियाें क कवषयाें की इछिारूपी
• दावानल= र्येंकर अग्नि में
• दह्ा= जलिा रहा
• मरि= मरि समय
• कवलाप करि= रा रा कर
• अकाम तनजभरा क फल स दव
गति में उत्पन्न हुअा
• वहाें र्ी पेंचच्न्िय कवषयाें की इछिा
में जला
• अार मरि समय रा-रा कर दुखाें
का सहन ककया
कर्ी अकामतनजभरा कर, र्वनतत्रक में सरिन िर ।
कवषय-चाह-दावानल दह्ा, मरि कवलाप करि दुख सह्ा॥16॥
तनजभरा
अात्मप्रदशाें स, कमां का
एकदश झड़ना
अकाम तनजभरा
अमर्प्राय स न ककया गया
कवषयाें का त्याग (तनवृत्ति) िथा
परिेंत्रिा क कारर् र्ाग-उपर्ाग का तनराि हान पर
उस शाच्न्ि स सह जाना
दव दुुःखी काें?
कवषयाें की चाह स
मरर् क र्य स
दवाेंगना क कवयाग स
ईष्याभ स
अपन हीन पद स
10 सामान्य र्द
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दवगति में वमातनक
दवाें का दुुःख
जा कवमानवासी हू थाय, सम्यग्दशभन किन दुख पाय ।
िहाँिें चय थावर िन िर, याें पररविभन पूर कर॥17॥
• जा= यदद
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• पररविभन= पााँच पराविभन
• पूर कर= पूर्भ करिा रहिा ह ।
• वमातनक दवाें में र्ी उत्पन्न हुअा,
• ककन्ि वहााँ इसन सम्यग्दशभन क किना दुुःख
उठाय अार
• वहााँ स र्ी मरकर पृथ्वीकाग्नयक अादद
सथावराें क शरीर िारर् ककय; अथाभि पुनुः
तियंचगति में जा ग्नगरा ।
• इसप्रकार यह जीव अनाददकाल स सेंसार
में र्टक रहा ह अार पााँच पराविभन कर
रहा ह ॥17॥
जा कवमानवासी हू थाय, सम्यग्दशभन किन दुख पाय ।
िहाँिें चय थावर िन िर, याें पररविभन पूर कर॥17॥
वमातनक दवाें में उिरािर अधिकिा
स्सथति
अायु
प्रर्ाव
पर का
र्ला िुरा
करन की
शमि
सख
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कवषयाें की
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शरीर, वस्त्र
अार्ूषर् की
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ज्ञान
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असेंख्य कालाें िक र्ागाें का र्ागि हुए र्ी क्षर्मात्र र्ी िृतप्त का
प्राप्त नहीें हाि
कषायें मेंद हान पर र्ी उनका अर्ाव िा नहीें हुअा ह
का दवाें का पुण्य स सख ममलिा ह?
अपक्षाकृ ि थाड़ दु:ख वाल का सखी कहि हें, पर वासिव में वह सखी नहीें ह।
जा पुण्य का उदय ह वह र्ी थाड़ काल क मलय ह, सदा स्सथर रहन वाला नहीें ह,
िा जा थाड़ा दुुःख हमें सख लग रहा ह उसक िाद िहुि दुुःख अायगा।
•का चाह (इछिा) करन स सख ह?
•का इछिानुसार वसियें ममलन पर सख ह?
•का जि उन्हें र्ागा जाय, िि सख ह?
• यान इछिाअाें स
• या पदाथां की प्रातप्त स
• या उन्हें र्ागन पर
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िच्ल्क जजसक जजिनी अधिक इछिाएें हें, जजिन अधिक पदाथभ हें, जजिना
अधिक र्ागिा ह,
यह उसक दुुःख की ही तनशानी ह ।
दव मरकर कहाें उत्पन्न हाि हें?
एकच्न्िय
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कान स सवगभ स कहााँ उत्पन्न हा सकि हें?
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3rd स 12th पेंचदिय तियंच, मनुष्य
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• नाकमभ, कमभ पुद्गलाें का अमुक क्रम स ग्रहर् कर,
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• सि यागसथानाें अार कषायसथानाें क द्वारा ८ कमां की
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र्ाव पराविभन
पराविभनाें का काल
द्रव्य
क्षेत्र
काल
भव
भाव
अनंर् गुणा
अनंर् गुणा
अनंर् गुणा
अनंर् गुणा
➢ Reference : श्री गाम्मटसार जीवकाण्ड़जी, श्री जनन्िससद्धान्ि काष, ित्त्वाथभसूत्रजी
➢ Presentation created by : Smt. Sarika Vikas Chhabra
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Chhand 14-17

  • 1. मनुष्यगति में गर्भतनवास िथा प्रसवकाल क दुुःख
  • 2. जननी उदर वसया नव मास, अेंग सकु चिें पाया त्रास । तनकसि ज दुख पाय घार, तिनका कहि न अाव अार॥14॥ • जननी= मािा क • उदर= पट में • वसया= रहा; • नव मास= ना महीन िक • अेंग= शरीर • सकु चिें= ससकाड़कर रहन स • त्रास= दुुःख • तनकसि= तनकलि समय • ज= जा • घार= र्येंकर • तिनका= उन दुुःखाें का • कहि= कहन स • न अाव= नहीें अा सकिा • अार= अन्ि
  • 3. • मनुष्यगति में र्ी यह जीव ना महीन िक मािा क पट में रहा; • वहााँ शरीर का ससकाड़कर रहन स िीव्र वदना सहन की, • जजसका वर्भन नहीें ककया जा सकिा॥14॥ जननी उदर वसया नव मास, अेंग सकु चिें पाया त्रास । तनकसि ज दुख पाय घार, तिनका कहि न अाव अार॥14॥
  • 4. गर्ाभवसथा क दुख • अेंगा का ससकाड़ क समय कििाना पड़िा ह • उल्ट मुेंह रहना पड़िा ह • दुगंधिि कीचड़ जस सथान में रहना हािा ह • माें क उच्छिष्ट र्ाजन स र्ूख ममटानी पड़िी ह • मािा क गरम, चटपट र्ाजन करन स शरीर में सेंिाप, दाह अादद हाि हें • कर्ी गर्भ में ही मरर् हा जािा ह • गर्भ स तनकलन में अपार वदना र्ागना पड़िी ह
  • 5. गर्भ स तनकलकर दुख • अत्येंि र्ूख-प्यास की वदना • ििान की शमि का अर्ाव • अनक प्रकार क रागाें स युि • लागाें क द्वारा च्खलान जसा ्यवहार
  • 6. मनुष्यगति में िाल, युवा अार वृद्धावसथा क दुुःख
  • 7. िालपन में ज्ञान न लह्ा, िरुर् समय िरुर्ी-रि रह्ा । अिभमृिकसम िूढ़ापना, कस रूप लख अापना ॥15॥ • िालपन में= िचपन में • ज्ञान= ज्ञान न • लह्ा= प्राप्त नहीें कर सका • िरुर् समय= युवावसथा में • िरुर्ी-रि= युविी स्त्री में • लीन रह्ा= रहा • अिभमृिकसम= अिमरा जसा • िूढ़ापना= वृद्धावसथा • कस= ककसप्रकार • रूप= सवरूप • लख= दख कवचार । • अापना= अपना
  • 8. • मनुष्यगति में र्ी यह जीव िाल्यावसथा में कवशष ज्ञान प्राप्त नहीें कर पाया; • यावनावसथा में स्त्री क माह (कवषय-र्ाग) में र्ूला रहा • वृद्धावसथा में अिमरा जसा पड़ा रहा । इसप्रकार यह जीव िीनाें अवसथाअाें में अात्मसवरूप का दशभन (पहहचान) न कर सका ॥15 ॥ िालपन में ज्ञान न लह्ा, िरुर् समय िरुर्ी-रि रह्ा । अिभमृिकसम िूढ़ापना, कस रूप लख अापना ॥15॥
  • 9. मनुष्य जीवन की 3 अवसथाएें • िचपन • जवानी • िुढ़ापा
  • 10. मनुष्य गति क दुुःख • र्ूख – प्यास सम्िन्िी • पढ़ाई सम्िन्िी • घर – पररवार – कु टेंि सम्िन्िी • शरीर क रागादी • इष्ट का किछुड़ना, अतनष्ट का ममलना • समाज – पररवार में उपक्षा • तनिभनिा सम्िन्िी • ्यापार – नाकरी सम्िन्िी • मानससक दुुःख
  • 11. दव ककस कहि हें जा दवगति में हान वाल या पाय जानवाल पररर्ामाें स सदा सखी रहि हें जा अणर्मा, महहमा अादद अाठ गुर्ाें क द्वारा सदा अप्रतिहिरूप स कवहार करि हें जजनका रूप, लावण्य, यावन अादद सदा प्रकाशमान रहिा ह
  • 14. कर्ी अकामतनजभरा कर, र्वनतत्रक में सरिन िर । कवषय-चाह-दावानल दह्ा, मरि कवलाप करि दुख सह्ा॥16॥ • कर= की • र्वनतत्रक= र्वनवासी, ्येंिर अार जयातिषी में • सरिन= दवपयाभय • िर= िारर् की, • कवषय चाह= पााँच इच्न्ियाें क कवषयाें की इछिारूपी • दावानल= र्येंकर अग्नि में • दह्ा= जलिा रहा • मरि= मरि समय • कवलाप करि= रा रा कर
  • 15. • अकाम तनजभरा क फल स दव गति में उत्पन्न हुअा • वहाें र्ी पेंचच्न्िय कवषयाें की इछिा में जला • अार मरि समय रा-रा कर दुखाें का सहन ककया कर्ी अकामतनजभरा कर, र्वनतत्रक में सरिन िर । कवषय-चाह-दावानल दह्ा, मरि कवलाप करि दुख सह्ा॥16॥
  • 17. अकाम तनजभरा अमर्प्राय स न ककया गया कवषयाें का त्याग (तनवृत्ति) िथा परिेंत्रिा क कारर् र्ाग-उपर्ाग का तनराि हान पर उस शाच्न्ि स सह जाना
  • 18. दव दुुःखी काें? कवषयाें की चाह स मरर् क र्य स दवाेंगना क कवयाग स ईष्याभ स अपन हीन पद स
  • 19. 10 सामान्य र्द दव इन्ि सामातनक त्रायस्त्स्त्रेंश पाररषद अात्मरक्ष लाकपाल अनीक प्रकीर्भक अामर्याग्य ककच्ल्वकषक समान राजा कपिा, गुरु, उपाध्याय मेंत्री, पुराहहि सर्ा सदसय(ममत्र ) अेंगरक्षक कािवाल साि प्रकार की सना नगरवासी हाथी अादद वाहन चाण्ड़ाल
  • 21. जा कवमानवासी हू थाय, सम्यग्दशभन किन दुख पाय । िहाँिें चय थावर िन िर, याें पररविभन पूर कर॥17॥ • जा= यदद • कवमानवासी= वमातनक दव • हू= र्ी • थाय= हुअा • िहाँिें= वहााँ स चय= मरकर • थावर िन= सथावर जीव का शरीर • िर= िारर् करिा ह; • याें= इसप्रकार • पररविभन= पााँच पराविभन • पूर कर= पूर्भ करिा रहिा ह ।
  • 22. • वमातनक दवाें में र्ी उत्पन्न हुअा, • ककन्ि वहााँ इसन सम्यग्दशभन क किना दुुःख उठाय अार • वहााँ स र्ी मरकर पृथ्वीकाग्नयक अादद सथावराें क शरीर िारर् ककय; अथाभि पुनुः तियंचगति में जा ग्नगरा । • इसप्रकार यह जीव अनाददकाल स सेंसार में र्टक रहा ह अार पााँच पराविभन कर रहा ह ॥17॥ जा कवमानवासी हू थाय, सम्यग्दशभन किन दुख पाय । िहाँिें चय थावर िन िर, याें पररविभन पूर कर॥17॥
  • 23. वमातनक दवाें में उिरािर अधिकिा स्सथति अायु प्रर्ाव पर का र्ला िुरा करन की शमि सख इच्न्िय कवषयाें की सामग्री द्युति शरीर, वस्त्र अार्ूषर् की चमक लश्या र्ाव इच्न्िय ज्ञान अवधि ज्ञान
  • 24. कफर दव दुखी काें? सम्यग्दशभन नहीें हान पर एक-दूसर की कवर्ूतियाें का दखकर ईष्याभ करक दुखी हाि हें असेंख्य कालाें िक र्ागाें का र्ागि हुए र्ी क्षर्मात्र र्ी िृतप्त का प्राप्त नहीें हाि कषायें मेंद हान पर र्ी उनका अर्ाव िा नहीें हुअा ह
  • 25. का दवाें का पुण्य स सख ममलिा ह? अपक्षाकृ ि थाड़ दु:ख वाल का सखी कहि हें, पर वासिव में वह सखी नहीें ह। जा पुण्य का उदय ह वह र्ी थाड़ काल क मलय ह, सदा स्सथर रहन वाला नहीें ह, िा जा थाड़ा दुुःख हमें सख लग रहा ह उसक िाद िहुि दुुःख अायगा।
  • 26. •का चाह (इछिा) करन स सख ह? •का इछिानुसार वसियें ममलन पर सख ह? •का जि उन्हें र्ागा जाय, िि सख ह?
  • 27. • यान इछिाअाें स • या पदाथां की प्रातप्त स • या उन्हें र्ागन पर – सख नहीें ह. िच्ल्क जजसक जजिनी अधिक इछिाएें हें, जजिन अधिक पदाथभ हें, जजिना अधिक र्ागिा ह, यह उसक दुुःख की ही तनशानी ह ।
  • 28. दव मरकर कहाें उत्पन्न हाि हें? एकच्न्िय पेंचच्न्िय तियंच पयाभप्तक मनुष्य पयाभप्तक
  • 29. कान स सवगभ स कहााँ उत्पन्न हा सकि हें? सवगभ गति र्वनतत्रक एकें दिय, पेंचदिय तियंच, मनुष्य प्रथम-हद्विीय सवगभ एकें दिय, पेंचदिय तियंच, मनुष्य 3rd स 12th पेंचदिय तियंच, मनुष्य 13th स उपर मनुष्य
  • 30. एक र्व स दूसरा र्व िारर् करना
  • 32. • नाकमभ, कमभ पुद्गलाें का अमुक क्रम स ग्रहर् कर, र्ाग कर िाड़ कर पुन: उन्हें ग्रहर् करना ि्य पराविभन • लाकाकाश क सि प्रदशाें पर अमुक क्रम स उत्पन्न हाना अार मरना क्षत्र पराविभन • क्रम स उत्सकपभर्ी अार अवसकपभर्ी काल क सर्ी समयाें में उत्पन्न हाना अार मरना काल पराविभन • नरकादद गतियाें में जघन्य स लकर उत्कृ ष्ट अायु पयंि सि अायु का र्ागना र्व पराविभन • सि यागसथानाें अार कषायसथानाें क द्वारा ८ कमां की सि स्सथतियाें का र्ागना र्ाव पराविभन
  • 33. पराविभनाें का काल द्रव्य क्षेत्र काल भव भाव अनंर् गुणा अनंर् गुणा अनंर् गुणा अनंर् गुणा
  • 34. ➢ Reference : श्री गाम्मटसार जीवकाण्ड़जी, श्री जनन्िससद्धान्ि काष, ित्त्वाथभसूत्रजी ➢ Presentation created by : Smt. Sarika Vikas Chhabra ➢ For updates / comments / feedback / suggestions, please contact ➢sarikam.j@gmail.com ➢: 0731-2410880