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नारकी ककसे कहते हैं?
नारकी के पर्ाार्वाची - नारत, नरक, ननरर्,ननरत
ना+रत = स्वर्ैं अथवा परस्पर प्रीती काे प्राप्त नहीैं हाेते
द्रव्र्, क्षेत्र, काल, भाव मेैं परस्पर रमते नहीैं
नरक -> नरान = मनुषर्ाेैं काे कार्न्तत = क्लेश पहैंचावेैं
ननरर् -> जिनका पुण्र्कमा चला गर्ा ह
ननरत -> िाे हहैंसादि असमीचीन कार्ाेों मेैं रत हैं
7 नरक
 रत्नप्रभा
 शका राप्रभा
 बालुकाप्रभा
 पैंकप्रभा
 धूमप्रभा
 तमप्रभा
 महातमप्रभा
तहााँ भूमम परसत िुख इसाे, कबच्छू सहस डसे नहहैं नतसाे
तहााँ राध-श्ाेणितवाहहनी, कृ मम-कु ल-कमलत, िेह-िाहहनी 10
 तहााँ= उस नरक मेैं
 भूमम= धरती
 परसत= स्पशा करने से
 इसाे= ऐेसा िुख= िुुःख
 सहस= हिाराेैं
 डसे= डैंक मारेैं
 नहहैं नतसाे= उसके समान नहीैं
 तहााँ= वहााँ
 राध-श्ाेणितवाहहनी= रक्त अार मवाि बहानेवाली कवतरिी नामक निी
 कृ ममकु लकमलत= छाेटे-छाेटे क्षुद्र कीडाेैं से भरी
 िेहिाहहनी= शरीर मेैं िाह उत्पन्न
 उन नरकाेैं की भूमम का
स्पशामात्र करने से नारककर्ाेैं
काे इतनी वेिना हाेती ह कक
हिाराेैं कबच्छू ऐकसाथ डैंक
मारेैं, तब भी उतनी वेिना न
हाे
तहााँ भूमम परसत िुख इसाे, कबच्छू सहस डसे नहहैं नतसाे
ितम के िुख
ितमते ही तीक्ष्ि शस्ताेैं पर गगरकर उछलते हैं
नरक ककतना उछलते हैं
1st नरक 7.81 र्ाेिन ऊाँ चा
2nd नरक 15.62 र्ाेिन ऊाँ चा
3rd नरक 31.25 र्ाेिन ऊाँ चा
4th नरक 62.5 र्ाेिन ऊाँ चा
5th नरक 125 र्ाेिन ऊाँ चा
6th नरक 250 र्ाेिन ऊाँ चा
7th नरक 500 र्ाेिन ऊैं चा
1 र्ाेिन मेैं 4 काेस
1 काेस मेैं 2 मील
1 मील मेैं 1.5 KM
र्ाने 1 र्ाेिन मेैं 4 x 2 x 1.5 KM = 12 KM
 उस नरक मेैं ऐक वतरिी निी
ह, जिसमेैं शाैंनतलाभ की
इच्छछा से नारकी िीव कू िते
हैं, ककततु वहााँ ताे उनकी पीडा
अधधक भर्ैंकर हाे िाती ह
तहााँ राध-श्ाेणितवाहहनी, कृ मम-कु ल-कमलत, िेह-िाहहनी 10
सेमर तरु िलिुत अससपत्र, असस जर्ाेैं िेह कविारैं तत्र
मेरु समान लाेह गमल िार्, ऐेसी शीत उषिता थार् 11
 तरु= सेमल के वृक्ष
 िलिुत= पत्ेैंवाले सेमर
 अससपत्र जर्ाेैं= तलवार की धार
की भााँनत तीक्ष्ि
 असस जर्ाेैं= तलवार की भााँनत
 िेह= शरीर काे
 कविारैं= चीर िेते हैं
 तत्र= उन नरकाेैं मेैं,
 मेरु समान= मेरु पवात के बराबर
 लाेह= लाेहे का गाेला भी
 गमल= गल िार्
 उषिता=गरमी
 थार्= हाेती ह
 उन नरकाेैं मेैं अनेक सेमल के
वृक्ष हैं, जिनके पत्े तलवार
की धार के समान तीक्ष्ि हाेते
हैं
 िब िुुःखी नारकी छार्ा ममलने
की अाशा लेकर उस वृक्ष के
नीचे िाता ह, तब उस वृक्ष के
पत्े गगरकर उसके शरीर काे
चीर िेते हैं
सेमर तरु िलिुत अससपत्र, असस जर्ाेैं िेह कविारैं तत्र
मेरु समान लाेह गमल िार्, ऐेसी शीत उषिता थार्
 शारीररक िुख
 कसी गमीा ? - कक ऐक लाख
र्ाेिन ऊाँ चे सुमेरु पवात के बराबर
लाेहे का कपण्ड भी कपघल िाता ह
तथा
 कसी ठण्डी?- सुमेरु के समान
लाेहे का गाेला भी गल िाता ह
कान से नरक मेैं गमीा/ठण्डी?
उषिता
•१
•२
•३
•४
•५.७५ नरक मेैं
ठण्डी
• ५.२५
• ६
• ७ नरक मेैं
नतल-नतल करैं िेह के खण्ड, असुर मभडावैं िुष्ट प्रचण्ड
ससतधुनीर तैं प्र्ास न िार्, ताे पि ऐक न बूाँि लहार् 12
 नतल-नतल= नतल्ली के िाने
बराबर
 करेैं= कर डालते हैं
 िेह के = शरीर के
 खण्ड= टुकडे
 असुर= असुरकु मार िानत
के िेव
 मभडावैं= लडाते हैं
 िुष्ट= क्रू र
 प्रचण्ड= अत्र्तत
 ससतधुनीर तैं= समुद्रभर
पानी पीने से भी
 न िार्= शाैंत न हाे,
 ताे पि= तथाकप
 ऐक बूाँि= ऐक बूाँि भी न
 लहार्= नहीैं ममलती
वे ऐक-िूसरे के शरीर के टुकडे-टुकडे
कर डालते हैं, तथाकप उनके शरीर
बारम्बार पारे की भााँनत कबखर कर किर
िुड िाते हैं
नतल-नतल करैं िेह के खण्ड,
परस्परकृ त िुख :
वकक्रगर्क शरीर
िाे कवकक्रर्ाअाेैं काे कर सके ऐेसे िेव, नारककर्ाेैं के
शरीर काे वकक्रगर्क शरीर कहते हैं
कवकक्रर्ा= कवमचत्र कक्रर्ाऐैं
छाेटे-बडे, ऐक-अनेक, पृथक-अपृथक
अादि कवमचत्र कक्रर्ाऐैं
कवकक्रर्ा
पृथक
शरीर से मभन्न
अलग रूप बना
लेना
ऐकत्व
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अलग रूप िे िेना
 नारकी के अपृथक कवकक्रर्ा हाेती
ह
 वाे अपने शरीर काे ही कबच्छु,
साैंप, लट, तलवार, भाला अादि
बना लेते हैं
शरीर से िुख
 सातवेैं नरक के नारकी के
5 कराेड,68 लाख, 99
हिार, 584 राेग हाेते हैं
असुर मभडावैं िुष्ट प्रचण्ड
 सैंकिष्ट पररिामवाले अम्बरीष अादि
िानत के असुरकु मार िेव तीसरे नरक
तक िाकर
 नारककर्ाेैं काे अपने अवधधज्ञान के द्वारा
 क्रू रता अार कु तूहल से अापस मेैं लडाते
हैं अार स्वर्ैं अानन्तित हाेते हैं
अागैंतुक िुख :
 कसी प्र्ास?- ममल िार्े ताे पूरे
महासागर का िल भी पी िार्ेैं,
तथाकप तृषा शाैंत न हाे;
 ममलता क्या?- ककततु पीने के मलऐ
िल की ऐक बूाँि भी नहीैं ममलती
12
ससतधुनीर तैं प्र्ास न िार्,
ताे पि ऐक न बूाँि लहार् 12
तीनलाेक काे नाि िु खार्, ममट न भूख किा न लहार्
र्े िुख बह सागर लाैं सह, करम िाेगतैं नरगनत लह 13
 नाि= अनाि
 िु खार्= खा िार्े
 ममट= शाैंत
 भूख= क्षुधा
 किा= ऐक िाना भी
 न लहार्= नहीैं ममलता
 र्े िुख= ऐेसे िुुःख
 बह सागर लाैं= अनेक सागराेपमकाल तक
 सह= सहन करता ह,
 करम िाेगतैं= ककसी कवशेष शुभकमा के र्ाेग से
 नरगनत= मनुषर्गनत लह= प्राप्त करता ह
 कसी भूख? -र्दि ममल
िार्े ताे तीनाेैं लाेक का
अनाि ऐकसाथ खा िार्ेैं,
तथाकप क्षुधा शाैंत न हाे;
 ममलता क्या? -परततु वहााँ
खाने के मलऐ ऐक िाना भी
नहीैं ममलता
 ताे क्या खाते हैं? -अत्र्ैंत
िुगोंधवाली अत्र्ल्प ममट्टी
तीनलाेक काे नाि िु खार्, ममट न भूख किा न लहार्
नरक की ममट्टी की िुगोंध का प्रभाव
र्े िुख बह सागर लाैं सह, करम िाेगतैं नरगनत लह 13
 र्े िुख कब तक भाेगता ह?
 मरि पर्ोंत
 किर क्या हाेता ह?
 किर ककसी शुभकमा के उिर् से
र्ह िीव मनुषर्गनत प्राप्त करता ह|
कान से नरक की अार्ु ककतनी हाेती ह?
अार्ु पूिा हाेने
पर शरीर
कािू रवत उड
िाता ह
नारकी के िुख
• असुरकु मार िेवाेैं के द्वाराआगंतुक
• भूख-प्र्ास के िुख, परस्पर कृ त िुखशारीररक
• ितम के , शीत-उषिता, भूमी, वृक्ष, निी अादि के द्वारा िुखक्षेत्रजन्य
• कषार्ाेैं से िुखमानसिक
• मारकाट के पररिामाेैं से तीव्र सैंक्लेश पररिामाेैं से िुखवैभाववक
नारकी मरकर कहाैं उत्पन्न हाे सकते हैं?
पयााप्तक िंज्ञी ततयंच पयााप्तक िंज्ञी मनुष्य
नरक गनत की प्रानप्त का कारि
•बहत हहैंसादि के
पररिाम
बहत
अारैंभ
•तीव्र मूछाा का
परीिाम
बहत
पररग्रह
➢ Reference : श्ी गाेम्मटसार िीवकाण्डिी, श्ी िनेतद्रससद्धातत काेष, तत्त्वाथासूत्रिी
➢ Presentation created by : Smt. Sarika Vikas Chhabra
➢ For updates / comments / feedback / suggestions, please
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Chhand 10-13

  • 1.
  • 2. नारकी ककसे कहते हैं? नारकी के पर्ाार्वाची - नारत, नरक, ननरर्,ननरत ना+रत = स्वर्ैं अथवा परस्पर प्रीती काे प्राप्त नहीैं हाेते द्रव्र्, क्षेत्र, काल, भाव मेैं परस्पर रमते नहीैं नरक -> नरान = मनुषर्ाेैं काे कार्न्तत = क्लेश पहैंचावेैं ननरर् -> जिनका पुण्र्कमा चला गर्ा ह ननरत -> िाे हहैंसादि असमीचीन कार्ाेों मेैं रत हैं
  • 3. 7 नरक  रत्नप्रभा  शका राप्रभा  बालुकाप्रभा  पैंकप्रभा  धूमप्रभा  तमप्रभा  महातमप्रभा
  • 4.
  • 5. तहााँ भूमम परसत िुख इसाे, कबच्छू सहस डसे नहहैं नतसाे तहााँ राध-श्ाेणितवाहहनी, कृ मम-कु ल-कमलत, िेह-िाहहनी 10  तहााँ= उस नरक मेैं  भूमम= धरती  परसत= स्पशा करने से  इसाे= ऐेसा िुख= िुुःख  सहस= हिाराेैं  डसे= डैंक मारेैं  नहहैं नतसाे= उसके समान नहीैं  तहााँ= वहााँ  राध-श्ाेणितवाहहनी= रक्त अार मवाि बहानेवाली कवतरिी नामक निी  कृ ममकु लकमलत= छाेटे-छाेटे क्षुद्र कीडाेैं से भरी  िेहिाहहनी= शरीर मेैं िाह उत्पन्न
  • 6.  उन नरकाेैं की भूमम का स्पशामात्र करने से नारककर्ाेैं काे इतनी वेिना हाेती ह कक हिाराेैं कबच्छू ऐकसाथ डैंक मारेैं, तब भी उतनी वेिना न हाे तहााँ भूमम परसत िुख इसाे, कबच्छू सहस डसे नहहैं नतसाे
  • 8. ितमते ही तीक्ष्ि शस्ताेैं पर गगरकर उछलते हैं नरक ककतना उछलते हैं 1st नरक 7.81 र्ाेिन ऊाँ चा 2nd नरक 15.62 र्ाेिन ऊाँ चा 3rd नरक 31.25 र्ाेिन ऊाँ चा 4th नरक 62.5 र्ाेिन ऊाँ चा 5th नरक 125 र्ाेिन ऊाँ चा 6th नरक 250 र्ाेिन ऊाँ चा 7th नरक 500 र्ाेिन ऊैं चा 1 र्ाेिन मेैं 4 काेस 1 काेस मेैं 2 मील 1 मील मेैं 1.5 KM र्ाने 1 र्ाेिन मेैं 4 x 2 x 1.5 KM = 12 KM
  • 9.  उस नरक मेैं ऐक वतरिी निी ह, जिसमेैं शाैंनतलाभ की इच्छछा से नारकी िीव कू िते हैं, ककततु वहााँ ताे उनकी पीडा अधधक भर्ैंकर हाे िाती ह तहााँ राध-श्ाेणितवाहहनी, कृ मम-कु ल-कमलत, िेह-िाहहनी 10
  • 10.
  • 11. सेमर तरु िलिुत अससपत्र, असस जर्ाेैं िेह कविारैं तत्र मेरु समान लाेह गमल िार्, ऐेसी शीत उषिता थार् 11  तरु= सेमल के वृक्ष  िलिुत= पत्ेैंवाले सेमर  अससपत्र जर्ाेैं= तलवार की धार की भााँनत तीक्ष्ि  असस जर्ाेैं= तलवार की भााँनत  िेह= शरीर काे  कविारैं= चीर िेते हैं  तत्र= उन नरकाेैं मेैं,  मेरु समान= मेरु पवात के बराबर  लाेह= लाेहे का गाेला भी  गमल= गल िार्  उषिता=गरमी  थार्= हाेती ह
  • 12.  उन नरकाेैं मेैं अनेक सेमल के वृक्ष हैं, जिनके पत्े तलवार की धार के समान तीक्ष्ि हाेते हैं  िब िुुःखी नारकी छार्ा ममलने की अाशा लेकर उस वृक्ष के नीचे िाता ह, तब उस वृक्ष के पत्े गगरकर उसके शरीर काे चीर िेते हैं सेमर तरु िलिुत अससपत्र, असस जर्ाेैं िेह कविारैं तत्र
  • 13. मेरु समान लाेह गमल िार्, ऐेसी शीत उषिता थार्  शारीररक िुख  कसी गमीा ? - कक ऐक लाख र्ाेिन ऊाँ चे सुमेरु पवात के बराबर लाेहे का कपण्ड भी कपघल िाता ह तथा  कसी ठण्डी?- सुमेरु के समान लाेहे का गाेला भी गल िाता ह
  • 14. कान से नरक मेैं गमीा/ठण्डी? उषिता •१ •२ •३ •४ •५.७५ नरक मेैं ठण्डी • ५.२५ • ६ • ७ नरक मेैं
  • 15.
  • 16. नतल-नतल करैं िेह के खण्ड, असुर मभडावैं िुष्ट प्रचण्ड ससतधुनीर तैं प्र्ास न िार्, ताे पि ऐक न बूाँि लहार् 12  नतल-नतल= नतल्ली के िाने बराबर  करेैं= कर डालते हैं  िेह के = शरीर के  खण्ड= टुकडे  असुर= असुरकु मार िानत के िेव  मभडावैं= लडाते हैं  िुष्ट= क्रू र  प्रचण्ड= अत्र्तत  ससतधुनीर तैं= समुद्रभर पानी पीने से भी  न िार्= शाैंत न हाे,  ताे पि= तथाकप  ऐक बूाँि= ऐक बूाँि भी न  लहार्= नहीैं ममलती
  • 17. वे ऐक-िूसरे के शरीर के टुकडे-टुकडे कर डालते हैं, तथाकप उनके शरीर बारम्बार पारे की भााँनत कबखर कर किर िुड िाते हैं नतल-नतल करैं िेह के खण्ड, परस्परकृ त िुख :
  • 18. वकक्रगर्क शरीर िाे कवकक्रर्ाअाेैं काे कर सके ऐेसे िेव, नारककर्ाेैं के शरीर काे वकक्रगर्क शरीर कहते हैं कवकक्रर्ा= कवमचत्र कक्रर्ाऐैं छाेटे-बडे, ऐक-अनेक, पृथक-अपृथक अादि कवमचत्र कक्रर्ाऐैं
  • 19. कवकक्रर्ा पृथक शरीर से मभन्न अलग रूप बना लेना ऐकत्व शरीर काे ही अलग रूप िे िेना
  • 20.  नारकी के अपृथक कवकक्रर्ा हाेती ह  वाे अपने शरीर काे ही कबच्छु, साैंप, लट, तलवार, भाला अादि बना लेते हैं
  • 21. शरीर से िुख  सातवेैं नरक के नारकी के 5 कराेड,68 लाख, 99 हिार, 584 राेग हाेते हैं
  • 22. असुर मभडावैं िुष्ट प्रचण्ड  सैंकिष्ट पररिामवाले अम्बरीष अादि िानत के असुरकु मार िेव तीसरे नरक तक िाकर  नारककर्ाेैं काे अपने अवधधज्ञान के द्वारा  क्रू रता अार कु तूहल से अापस मेैं लडाते हैं अार स्वर्ैं अानन्तित हाेते हैं अागैंतुक िुख :
  • 23.  कसी प्र्ास?- ममल िार्े ताे पूरे महासागर का िल भी पी िार्ेैं, तथाकप तृषा शाैंत न हाे;  ममलता क्या?- ककततु पीने के मलऐ िल की ऐक बूाँि भी नहीैं ममलती 12 ससतधुनीर तैं प्र्ास न िार्, ताे पि ऐक न बूाँि लहार् 12
  • 24.
  • 25. तीनलाेक काे नाि िु खार्, ममट न भूख किा न लहार् र्े िुख बह सागर लाैं सह, करम िाेगतैं नरगनत लह 13  नाि= अनाि  िु खार्= खा िार्े  ममट= शाैंत  भूख= क्षुधा  किा= ऐक िाना भी  न लहार्= नहीैं ममलता  र्े िुख= ऐेसे िुुःख  बह सागर लाैं= अनेक सागराेपमकाल तक  सह= सहन करता ह,  करम िाेगतैं= ककसी कवशेष शुभकमा के र्ाेग से  नरगनत= मनुषर्गनत लह= प्राप्त करता ह
  • 26.  कसी भूख? -र्दि ममल िार्े ताे तीनाेैं लाेक का अनाि ऐकसाथ खा िार्ेैं, तथाकप क्षुधा शाैंत न हाे;  ममलता क्या? -परततु वहााँ खाने के मलऐ ऐक िाना भी नहीैं ममलता  ताे क्या खाते हैं? -अत्र्ैंत िुगोंधवाली अत्र्ल्प ममट्टी तीनलाेक काे नाि िु खार्, ममट न भूख किा न लहार्
  • 27. नरक की ममट्टी की िुगोंध का प्रभाव
  • 28. र्े िुख बह सागर लाैं सह, करम िाेगतैं नरगनत लह 13  र्े िुख कब तक भाेगता ह?  मरि पर्ोंत  किर क्या हाेता ह?  किर ककसी शुभकमा के उिर् से र्ह िीव मनुषर्गनत प्राप्त करता ह|
  • 29. कान से नरक की अार्ु ककतनी हाेती ह?
  • 30. अार्ु पूिा हाेने पर शरीर कािू रवत उड िाता ह
  • 31. नारकी के िुख • असुरकु मार िेवाेैं के द्वाराआगंतुक • भूख-प्र्ास के िुख, परस्पर कृ त िुखशारीररक • ितम के , शीत-उषिता, भूमी, वृक्ष, निी अादि के द्वारा िुखक्षेत्रजन्य • कषार्ाेैं से िुखमानसिक • मारकाट के पररिामाेैं से तीव्र सैंक्लेश पररिामाेैं से िुखवैभाववक
  • 32. नारकी मरकर कहाैं उत्पन्न हाे सकते हैं? पयााप्तक िंज्ञी ततयंच पयााप्तक िंज्ञी मनुष्य
  • 33. नरक गनत की प्रानप्त का कारि •बहत हहैंसादि के पररिाम बहत अारैंभ •तीव्र मूछाा का परीिाम बहत पररग्रह
  • 34. ➢ Reference : श्ी गाेम्मटसार िीवकाण्डिी, श्ी िनेतद्रससद्धातत काेष, तत्त्वाथासूत्रिी ➢ Presentation created by : Smt. Sarika Vikas Chhabra ➢ For updates / comments / feedback / suggestions, please contact ➢ sarikam.j@gmail.com ➢ : 0731-2410880