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भगवदगीता क श ा
डॉ. िवराग सोनट े
सहायक ा ापक
ाचीन भारतीय इितहास, सं ृ ित और पुरात िवभाग
बनारस िहंदू िव ापीठ, वाराणसी
B.A. SEM III
भगवदगीता क श ा
िवषय वेश
• पिव और लोकि य ंथ
• गीता : सम भारतीय दशन का सार
• स ूण िहंदू धम का आधार भगवदगीता है।
• गीता महाभारत के भी पव का अंग है।
• ७०० ोक और १८ अ ाय
• गीता म धािमक और दाशिनक िवचार है।
• उपिनषदो का सार
• गीता को ई र संगीत कहा जाता है (कृ +अजुन)
• लो॰ितलक: धम ंथो का तेज ी और िनमल हीरा
• ी अरिवंद: भारतीय आ ा कता का प रप पु
• दासगु ा: िहंदुओं के सम वग का िव धािमक ंथ
• गीता क रचना ास ने क है, ितलक ने िगतारह , म॰ गांधी ने
अनास योग तथा ी अरिवंद ने िगतािनबं ध ंथ लखे है।
गीता का मह
• उपिनषदो के िव गीता अ ंत सरल, और िव ेषणा क है।
• साधारण मनु के लए सरल
• थोड़े से अ ास से गीता को समझा जा सकता है।
• गीता का मु उ े लोक क ाण है।
• म. गांधी : गीता को ेरणा ोत कहा है
• गीता मानव को संसार का मागदशन कराती है।
• आधुिनक काल म भी गीता का मह है।
गीता सािह
• कई िव ानो ने गीता पर भा लखे है, और गीता को समझाने
का यास िकया है।
• शंकराचाय ल खत “शांकर गीता भा ” संभवतः सबसे ाचीन
भा है।
• रामान ने “भगवद् गीता भा ा ा” नामक ंथ लखा है।
• रामानुज ने “गीता भा ” लखा है।
• सभी भाषाओं म अनुवाद
• लो॰ ितलक: “िगतारह ”
• म॰ गांधी: “अनास योग”
• ी॰ अरिवंद: “िगतािनबं ध”
गीता म योग
• योग श “युग” धातु से बना है जसका अथ है मलना, या स ािपत
करना।
• गीता का योग पतंज ल योग से भ है, गीता का योग समा ध नही है।
• गीता का योग सा नही सोपान है, ल नही माग है।
• िगता म योग: आ ा का परमा ा से मलन
• गीता वह िव ा है जो आ ा को परमा ा को मलने के लए भ - भ माग
िदखाती है।
• इस लए गीता को “योगशा ”कहा जाता है।
• आ ा बं धन म जाती है, योग के ारा बं धन का नाश करके आ ा को ई र
क ओर मोड़ती है।
• गीता म ान, कम और भ को मो का माग कहा है।
• शंकर: ान के ारा मो ा पे बल
• रामानुज: भ के ारा मो अपनाने क सलाह
• मीमांसा दशन: कम के ारा के ारा मो ा पर बल
• गीता म ितनो का सम य आ है।
मो ा के माग
• जीव और ई र म स के तीन साधन
1. ान योग (The Path of Knowledge)
2.भ योग (Path of Devotion)
3.कम योग (Path of Action)
इन ितनो माग से ई र क ा स व है।
ान योग (The Path of Knowledge)
• ई र से संबं ध ािपत करने का “आ ा क माग”
• गीता के अनुसार मनु अ ानवश बं धन क अव ा म पड़ जाता है।
• इस अ ान का अंत ान से होता है।
• मो ा के लए ान माग क मह ा बतायी गयी है।
1. बौ क/तािकक ान: व ुओं के बा प देखकर उनके प क
चचा बु ारा करती है। (िव ान)
2. आ ा क ान: व ुओं के आभास म ा स ता का िन पण
करने का यास।
ान ा के लए िनरंतर अ ास करना पड़ता है, उसके लए
1. शरीर, मन और इंि यों को शु रखना (Purification) आव क है।
मन और इंि य चंचल होने से िवषयों के ित आस होते है, फल प
मन दूिषत और कम के कारण अशु हो जाता है। इस लए मन और
इंि यो को शु रखना आव क है ोंिक ई र अशु व ुओं को
ीकार नही करते है।
ान योग
• ई र पर ान:
मन और इंि यो को अशु िवषयों से हटाकर ई र पर कि कृ त कर देना
आव क है, जससे मन क चंचलता न होती है और मनु ई र के
अनुशीलन म हो जाता है।
• आ ा-ई र संबं ध:
जब साधक को ान ा होती है, तब आ ा-ई र म तादा का
संबं ध हो जाता है। आ ा ई र का अंग है इसका बोध साधक को हो
जाता है।
ान से अमृत क ा होती है, कम क अपिव ता का िवनाश होता
है, साधक सदा के लए इ रमय हो जाता है।
• “ ानी िव श ते”: ानी भ उ म है।
इस संसार म ान के समान पिव कु छ भी नही है।
शंकराचाय : गीता म ान योग का ितपादन
ान योग
• अपने सभी काय , इ ाओं और अपने आपको परमा ा म मला देना
ही गीता का ान योग है।
• ान योग क सबसे बड़ी िवशेषता सम योग है, जसका उ ेख
ी॰कृ ने कई बार िकया है।
• सम योग के तीन प है।
1. आ गत सम : इसे “ त ” कहा गया है। इसके अंतगत सभी
वासना और कामनाओं का ाग, दुःख से उि नही और सुख क
लालसा न रखना। मन म राग, भय, ोध न रखा। (बु र हो
गयी हो)
2. व ुगत सम : समता का भाव रखना, ना श ु, ना म ,स ूण
संसार को प रवार समझना
3. गुणातीत सम : सुख-दुःख के परे क व ा। शत और उ
जसे िवच लत नही कर सकते। ी॰कृ ने अजुन को सुख-दुःख,
लाभ-हािन, जय-पराजय को समान समझाकर यु का आदेश िदया।
भ -माग (भ योग) (Path of Devotion)
• भ भज से बना है =ई र सेवा ,
• भ माग का उदय उपिनषदो के “उपासना” के स ांत से आ है।
• भ -माग: ई र के ित समपण
• भ माग से साधक को तः ई र क अनुभूित होती है।
• ान माग का पालन िव ान, कम योग का पालन धनवान
लेिकन भ माग ेक के लए खुला है।
• भ माग: गरीब, अमीर सब तबके के लोग कर सकते है।
• इसी लए भ माग अनूठा और सहज है।
• जो ई र के ित ेम-समपण, भ -भाव र है ई र उसे ार
करते है।
• भ शु मन से जो ई र को अपण करता है, ई र उसे ीकार
करते है।
भ -माग
• भ का प अकथनीय,इसम परमा ा के ित स ी अ भलाषा है
• ई र के भ का कभी अंत नही होता। इसी लए भ योग को “ ेम-योग”
भी कहते है।
• गीता म कहा है, क “भ के ारा ेम से अपण िकया आ प , पु , फल,
जल इ ािद भगवान ेम से खाते है।
• भ -माग के ारा जीवा ा अपने बुरे कम को भी य कर सकता है।
• ी॰कृ : यिद कोई हम ेम समपण करता है, तब पापी भी पु ा ा
होता है।
• भ -माग म भ का न होना आव क है, तथा वह ई र के स ुख
कु छ भी नही है।
• भ योग का मु ता य “अन भाव” से है : परमा ा के अलावा िकसी
दूसरे का भाव मान म न लाना।
• भगवान म शरणागित क भावना भी भ योग म मह पूण है। अजुन
तः ी॰कृ के शरण म गए थे।
• भ के उ ार के लए ही िनगुण सगुण भगवान बन के िविवध पों म
कट होते है।
भ -माग
चार कार के भ
1. आ : रोग से िपिडत के रोग-िनवारण हेतु क गयी भ , ऐसे
भ को आ कहते है।
2. ज ासु: ान पाने क इ ा रखने वाले भ
3. अयाथ : सांसा रक पदाथ (स ) क ा के उ े से
4. ानी: ई र का ान पाकर कृ ताथ हो जाने वाले भ ,
• आ , ज ासु, अयाथ भ ई र क उपासना ाथवश करते है, और
इ ा पूित प ात ई र भ छोड़ देते है, जबिक ानी भ िन ाम
होते ए पिव भाव से ई र उपासना करते है।
• भ से मन म शु ता का िवकास और ई र के चैत का ान होता है।
• भ म ेम और ेमी का भेद न हो जाता है।
• भ म भ को ान ा से भ िक पूणता ा होती है।
• भ माग सरल और अ धक च लत होने से गीता क लोकि यता बढ़ी।
• लो॰ितलक: गीता क मधुरता, ेम और रस भ माग का ही प रणाम है।
• रामानुज : भ माग का ितपादन
कमयोग (Path of Action)
• कमयोग को गीता का मु उ े कहा जा सकता है।
• ी॰ कृ , अजुन को कमयोग का ही पाठ पढ़ाते है।
• कम का अथ आचरण है।
• उ चत कम से (आचरण से) ई र तक प ँचा जा सकता है।
• स क ा के लए कम करते रहना चािहए।
• अस और अधम क ा के लए िकए जाने वाले कम सफल कम
नही माने जाते।
• को कम के लए य रत रहना चािहए, परंतु कम के फलों क
चंता नही करनी चािहए।
• कम के प रणाम क चंता छोड़नी चािहए।
• जो कम-फल को छोड़ देता है वही वा िवक ागी है।
कमयोग के कार
१) अहंकार रिहत कम ही कमयोग है।
२) अनास कम ही कम योग है :
साधारण मनु लाभ के लए कम करता है। सुख-दुःख, लाभ-हािन,
जय-पराजय इ ािद से ऊपर उठकर कम करने चािहए।
३) िन ाम कम ही कम योग है :
कम के दो कार १) सकाम २) िन ाम
३अ) सकाम: िकसी इ ा से े रत होके िकया जानेवाला कम ( ी,
पु , स क ा )
३ब) िन ाम: कामनाओं का अभाव, तृ ारिहत कम
गीता म कमयोग का ता य िन ाम कम से है।
अहंकार रिहत कमयोग
• अहंकार रिहत कम ही कमयोग है।
• कम करने के प ात कतापन का अ भमान ागना चािहए।
• कम के पाँच कारण
1. अ ध ान: देह या शरीर जसके िबना कोई काय स व नही।शरीर नही तो
कम का ार स व नही।
2. कता: कता म चेतन श है और इसी से मनु कम करता है।
3. करण (इंि या): इंि यो के िबन कम का स ादन स व नही।
4. चे ा: चे ा यास है,कमि यो के रहते अगर यास ना हो तो कोई काय
नही होगा।
5. दैव या ई रीय श : ेक इंि यो के पीछे दैव या ई रीय श श
है, उदा ॰ ने के पीछे सूय काश, ाणवायु इ ािद।
इन सभी कारणो से िकसी काय का स ादन होता है, लेिकन अ ानवश के वल
कता को ही कारण मान लेना अ भमान-अहंकार है।
इस अहंकार से शू होकर कम करना ही कमयोग है।
कमयोग
• गीता का मु िवषय ही कम योग है।
• “ हे अजुन जो पु ष मन से इंि यों को वश म करके कमि यों से कम-
योग का आचरण करता है वही े है।
• स ास और िन ाम कम म से िन ाम कम को ी॰कृ ने े
कहा है।
• िन ाम कम के उपदेश पाकर अजुन यु के लए त र ए।
• िन ाम कम: फल क ा क भावना का ाग
• िन ाम कम योगी पर परमा ा क ा सहज होती है।
• लो॰ितलक: गीता का मु उपदेश “ कम-योग” है।
उपसंहार
• गीता म ान, कम और भ का सम य है।
• ई र को ान, कम और भ से अपनाया जा सकता है।
• जसे जो माग सुलभ हो वह उस माग को अपना सकता है।
• ितनो माग का अंितम ल ई र क ा है।
• ान, कम और भ मनु के जीवन के अंग है, इसी लए ितनो
आव क है।
• ाना क पहलू : ान माग
• भावना क पहलू: भ माग
• ि या क पहलू: कम-माग
समा

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Teaching of bhagvatgita

  • 1. भगवदगीता क श ा डॉ. िवराग सोनट े सहायक ा ापक ाचीन भारतीय इितहास, सं ृ ित और पुरात िवभाग बनारस िहंदू िव ापीठ, वाराणसी B.A. SEM III
  • 3. िवषय वेश • पिव और लोकि य ंथ • गीता : सम भारतीय दशन का सार • स ूण िहंदू धम का आधार भगवदगीता है। • गीता महाभारत के भी पव का अंग है। • ७०० ोक और १८ अ ाय • गीता म धािमक और दाशिनक िवचार है। • उपिनषदो का सार • गीता को ई र संगीत कहा जाता है (कृ +अजुन) • लो॰ितलक: धम ंथो का तेज ी और िनमल हीरा • ी अरिवंद: भारतीय आ ा कता का प रप पु • दासगु ा: िहंदुओं के सम वग का िव धािमक ंथ • गीता क रचना ास ने क है, ितलक ने िगतारह , म॰ गांधी ने अनास योग तथा ी अरिवंद ने िगतािनबं ध ंथ लखे है।
  • 4. गीता का मह • उपिनषदो के िव गीता अ ंत सरल, और िव ेषणा क है। • साधारण मनु के लए सरल • थोड़े से अ ास से गीता को समझा जा सकता है। • गीता का मु उ े लोक क ाण है। • म. गांधी : गीता को ेरणा ोत कहा है • गीता मानव को संसार का मागदशन कराती है। • आधुिनक काल म भी गीता का मह है।
  • 5. गीता सािह • कई िव ानो ने गीता पर भा लखे है, और गीता को समझाने का यास िकया है। • शंकराचाय ल खत “शांकर गीता भा ” संभवतः सबसे ाचीन भा है। • रामान ने “भगवद् गीता भा ा ा” नामक ंथ लखा है। • रामानुज ने “गीता भा ” लखा है। • सभी भाषाओं म अनुवाद • लो॰ ितलक: “िगतारह ” • म॰ गांधी: “अनास योग” • ी॰ अरिवंद: “िगतािनबं ध”
  • 6. गीता म योग • योग श “युग” धातु से बना है जसका अथ है मलना, या स ािपत करना। • गीता का योग पतंज ल योग से भ है, गीता का योग समा ध नही है। • गीता का योग सा नही सोपान है, ल नही माग है। • िगता म योग: आ ा का परमा ा से मलन • गीता वह िव ा है जो आ ा को परमा ा को मलने के लए भ - भ माग िदखाती है। • इस लए गीता को “योगशा ”कहा जाता है। • आ ा बं धन म जाती है, योग के ारा बं धन का नाश करके आ ा को ई र क ओर मोड़ती है। • गीता म ान, कम और भ को मो का माग कहा है। • शंकर: ान के ारा मो ा पे बल • रामानुज: भ के ारा मो अपनाने क सलाह • मीमांसा दशन: कम के ारा के ारा मो ा पर बल • गीता म ितनो का सम य आ है।
  • 7. मो ा के माग • जीव और ई र म स के तीन साधन 1. ान योग (The Path of Knowledge) 2.भ योग (Path of Devotion) 3.कम योग (Path of Action) इन ितनो माग से ई र क ा स व है।
  • 8. ान योग (The Path of Knowledge) • ई र से संबं ध ािपत करने का “आ ा क माग” • गीता के अनुसार मनु अ ानवश बं धन क अव ा म पड़ जाता है। • इस अ ान का अंत ान से होता है। • मो ा के लए ान माग क मह ा बतायी गयी है। 1. बौ क/तािकक ान: व ुओं के बा प देखकर उनके प क चचा बु ारा करती है। (िव ान) 2. आ ा क ान: व ुओं के आभास म ा स ता का िन पण करने का यास। ान ा के लए िनरंतर अ ास करना पड़ता है, उसके लए 1. शरीर, मन और इंि यों को शु रखना (Purification) आव क है। मन और इंि य चंचल होने से िवषयों के ित आस होते है, फल प मन दूिषत और कम के कारण अशु हो जाता है। इस लए मन और इंि यो को शु रखना आव क है ोंिक ई र अशु व ुओं को ीकार नही करते है।
  • 9. ान योग • ई र पर ान: मन और इंि यो को अशु िवषयों से हटाकर ई र पर कि कृ त कर देना आव क है, जससे मन क चंचलता न होती है और मनु ई र के अनुशीलन म हो जाता है। • आ ा-ई र संबं ध: जब साधक को ान ा होती है, तब आ ा-ई र म तादा का संबं ध हो जाता है। आ ा ई र का अंग है इसका बोध साधक को हो जाता है। ान से अमृत क ा होती है, कम क अपिव ता का िवनाश होता है, साधक सदा के लए इ रमय हो जाता है। • “ ानी िव श ते”: ानी भ उ म है। इस संसार म ान के समान पिव कु छ भी नही है। शंकराचाय : गीता म ान योग का ितपादन
  • 10. ान योग • अपने सभी काय , इ ाओं और अपने आपको परमा ा म मला देना ही गीता का ान योग है। • ान योग क सबसे बड़ी िवशेषता सम योग है, जसका उ ेख ी॰कृ ने कई बार िकया है। • सम योग के तीन प है। 1. आ गत सम : इसे “ त ” कहा गया है। इसके अंतगत सभी वासना और कामनाओं का ाग, दुःख से उि नही और सुख क लालसा न रखना। मन म राग, भय, ोध न रखा। (बु र हो गयी हो) 2. व ुगत सम : समता का भाव रखना, ना श ु, ना म ,स ूण संसार को प रवार समझना 3. गुणातीत सम : सुख-दुःख के परे क व ा। शत और उ जसे िवच लत नही कर सकते। ी॰कृ ने अजुन को सुख-दुःख, लाभ-हािन, जय-पराजय को समान समझाकर यु का आदेश िदया।
  • 11. भ -माग (भ योग) (Path of Devotion) • भ भज से बना है =ई र सेवा , • भ माग का उदय उपिनषदो के “उपासना” के स ांत से आ है। • भ -माग: ई र के ित समपण • भ माग से साधक को तः ई र क अनुभूित होती है। • ान माग का पालन िव ान, कम योग का पालन धनवान लेिकन भ माग ेक के लए खुला है। • भ माग: गरीब, अमीर सब तबके के लोग कर सकते है। • इसी लए भ माग अनूठा और सहज है। • जो ई र के ित ेम-समपण, भ -भाव र है ई र उसे ार करते है। • भ शु मन से जो ई र को अपण करता है, ई र उसे ीकार करते है।
  • 12. भ -माग • भ का प अकथनीय,इसम परमा ा के ित स ी अ भलाषा है • ई र के भ का कभी अंत नही होता। इसी लए भ योग को “ ेम-योग” भी कहते है। • गीता म कहा है, क “भ के ारा ेम से अपण िकया आ प , पु , फल, जल इ ािद भगवान ेम से खाते है। • भ -माग के ारा जीवा ा अपने बुरे कम को भी य कर सकता है। • ी॰कृ : यिद कोई हम ेम समपण करता है, तब पापी भी पु ा ा होता है। • भ -माग म भ का न होना आव क है, तथा वह ई र के स ुख कु छ भी नही है। • भ योग का मु ता य “अन भाव” से है : परमा ा के अलावा िकसी दूसरे का भाव मान म न लाना। • भगवान म शरणागित क भावना भी भ योग म मह पूण है। अजुन तः ी॰कृ के शरण म गए थे। • भ के उ ार के लए ही िनगुण सगुण भगवान बन के िविवध पों म कट होते है।
  • 13. भ -माग चार कार के भ 1. आ : रोग से िपिडत के रोग-िनवारण हेतु क गयी भ , ऐसे भ को आ कहते है। 2. ज ासु: ान पाने क इ ा रखने वाले भ 3. अयाथ : सांसा रक पदाथ (स ) क ा के उ े से 4. ानी: ई र का ान पाकर कृ ताथ हो जाने वाले भ , • आ , ज ासु, अयाथ भ ई र क उपासना ाथवश करते है, और इ ा पूित प ात ई र भ छोड़ देते है, जबिक ानी भ िन ाम होते ए पिव भाव से ई र उपासना करते है। • भ से मन म शु ता का िवकास और ई र के चैत का ान होता है। • भ म ेम और ेमी का भेद न हो जाता है। • भ म भ को ान ा से भ िक पूणता ा होती है। • भ माग सरल और अ धक च लत होने से गीता क लोकि यता बढ़ी। • लो॰ितलक: गीता क मधुरता, ेम और रस भ माग का ही प रणाम है। • रामानुज : भ माग का ितपादन
  • 14. कमयोग (Path of Action) • कमयोग को गीता का मु उ े कहा जा सकता है। • ी॰ कृ , अजुन को कमयोग का ही पाठ पढ़ाते है। • कम का अथ आचरण है। • उ चत कम से (आचरण से) ई र तक प ँचा जा सकता है। • स क ा के लए कम करते रहना चािहए। • अस और अधम क ा के लए िकए जाने वाले कम सफल कम नही माने जाते। • को कम के लए य रत रहना चािहए, परंतु कम के फलों क चंता नही करनी चािहए। • कम के प रणाम क चंता छोड़नी चािहए। • जो कम-फल को छोड़ देता है वही वा िवक ागी है।
  • 15. कमयोग के कार १) अहंकार रिहत कम ही कमयोग है। २) अनास कम ही कम योग है : साधारण मनु लाभ के लए कम करता है। सुख-दुःख, लाभ-हािन, जय-पराजय इ ािद से ऊपर उठकर कम करने चािहए। ३) िन ाम कम ही कम योग है : कम के दो कार १) सकाम २) िन ाम ३अ) सकाम: िकसी इ ा से े रत होके िकया जानेवाला कम ( ी, पु , स क ा ) ३ब) िन ाम: कामनाओं का अभाव, तृ ारिहत कम गीता म कमयोग का ता य िन ाम कम से है।
  • 16. अहंकार रिहत कमयोग • अहंकार रिहत कम ही कमयोग है। • कम करने के प ात कतापन का अ भमान ागना चािहए। • कम के पाँच कारण 1. अ ध ान: देह या शरीर जसके िबना कोई काय स व नही।शरीर नही तो कम का ार स व नही। 2. कता: कता म चेतन श है और इसी से मनु कम करता है। 3. करण (इंि या): इंि यो के िबन कम का स ादन स व नही। 4. चे ा: चे ा यास है,कमि यो के रहते अगर यास ना हो तो कोई काय नही होगा। 5. दैव या ई रीय श : ेक इंि यो के पीछे दैव या ई रीय श श है, उदा ॰ ने के पीछे सूय काश, ाणवायु इ ािद। इन सभी कारणो से िकसी काय का स ादन होता है, लेिकन अ ानवश के वल कता को ही कारण मान लेना अ भमान-अहंकार है। इस अहंकार से शू होकर कम करना ही कमयोग है।
  • 17. कमयोग • गीता का मु िवषय ही कम योग है। • “ हे अजुन जो पु ष मन से इंि यों को वश म करके कमि यों से कम- योग का आचरण करता है वही े है। • स ास और िन ाम कम म से िन ाम कम को ी॰कृ ने े कहा है। • िन ाम कम के उपदेश पाकर अजुन यु के लए त र ए। • िन ाम कम: फल क ा क भावना का ाग • िन ाम कम योगी पर परमा ा क ा सहज होती है। • लो॰ितलक: गीता का मु उपदेश “ कम-योग” है।
  • 18. उपसंहार • गीता म ान, कम और भ का सम य है। • ई र को ान, कम और भ से अपनाया जा सकता है। • जसे जो माग सुलभ हो वह उस माग को अपना सकता है। • ितनो माग का अंितम ल ई र क ा है। • ान, कम और भ मनु के जीवन के अंग है, इसी लए ितनो आव क है। • ाना क पहलू : ान माग • भावना क पहलू: भ माग • ि या क पहलू: कम-माग