This Presentation is prepared for Graduate Students. A presentation consisting of basic information regarding the topic. Students are advised to get more information from recommended books and articles. This presentation is only for students and purely for academic purposes. The pictures/Maps included in the presentation are taken/copied from the internet. The presenter is thankful to them and herewith courtesy is given to all. This presentation is only for academic purposes.
3. िवषय वेश
• पिव और लोकि य ंथ
• गीता : सम भारतीय दशन का सार
• स ूण िहंदू धम का आधार भगवदगीता है।
• गीता महाभारत के भी पव का अंग है।
• ७०० ोक और १८ अ ाय
• गीता म धािमक और दाशिनक िवचार है।
• उपिनषदो का सार
• गीता को ई र संगीत कहा जाता है (कृ +अजुन)
• लो॰ितलक: धम ंथो का तेज ी और िनमल हीरा
• ी अरिवंद: भारतीय आ ा कता का प रप पु
• दासगु ा: िहंदुओं के सम वग का िव धािमक ंथ
• गीता क रचना ास ने क है, ितलक ने िगतारह , म॰ गांधी ने
अनास योग तथा ी अरिवंद ने िगतािनबं ध ंथ लखे है।
4. गीता का मह
• उपिनषदो के िव गीता अ ंत सरल, और िव ेषणा क है।
• साधारण मनु के लए सरल
• थोड़े से अ ास से गीता को समझा जा सकता है।
• गीता का मु उ े लोक क ाण है।
• म. गांधी : गीता को ेरणा ोत कहा है
• गीता मानव को संसार का मागदशन कराती है।
• आधुिनक काल म भी गीता का मह है।
5. गीता सािह
• कई िव ानो ने गीता पर भा लखे है, और गीता को समझाने
का यास िकया है।
• शंकराचाय ल खत “शांकर गीता भा ” संभवतः सबसे ाचीन
भा है।
• रामान ने “भगवद् गीता भा ा ा” नामक ंथ लखा है।
• रामानुज ने “गीता भा ” लखा है।
• सभी भाषाओं म अनुवाद
• लो॰ ितलक: “िगतारह ”
• म॰ गांधी: “अनास योग”
• ी॰ अरिवंद: “िगतािनबं ध”
6. गीता म योग
• योग श “युग” धातु से बना है जसका अथ है मलना, या स ािपत
करना।
• गीता का योग पतंज ल योग से भ है, गीता का योग समा ध नही है।
• गीता का योग सा नही सोपान है, ल नही माग है।
• िगता म योग: आ ा का परमा ा से मलन
• गीता वह िव ा है जो आ ा को परमा ा को मलने के लए भ - भ माग
िदखाती है।
• इस लए गीता को “योगशा ”कहा जाता है।
• आ ा बं धन म जाती है, योग के ारा बं धन का नाश करके आ ा को ई र
क ओर मोड़ती है।
• गीता म ान, कम और भ को मो का माग कहा है।
• शंकर: ान के ारा मो ा पे बल
• रामानुज: भ के ारा मो अपनाने क सलाह
• मीमांसा दशन: कम के ारा के ारा मो ा पर बल
• गीता म ितनो का सम य आ है।
7. मो ा के माग
• जीव और ई र म स के तीन साधन
1. ान योग (The Path of Knowledge)
2.भ योग (Path of Devotion)
3.कम योग (Path of Action)
इन ितनो माग से ई र क ा स व है।
8. ान योग (The Path of Knowledge)
• ई र से संबं ध ािपत करने का “आ ा क माग”
• गीता के अनुसार मनु अ ानवश बं धन क अव ा म पड़ जाता है।
• इस अ ान का अंत ान से होता है।
• मो ा के लए ान माग क मह ा बतायी गयी है।
1. बौ क/तािकक ान: व ुओं के बा प देखकर उनके प क
चचा बु ारा करती है। (िव ान)
2. आ ा क ान: व ुओं के आभास म ा स ता का िन पण
करने का यास।
ान ा के लए िनरंतर अ ास करना पड़ता है, उसके लए
1. शरीर, मन और इंि यों को शु रखना (Purification) आव क है।
मन और इंि य चंचल होने से िवषयों के ित आस होते है, फल प
मन दूिषत और कम के कारण अशु हो जाता है। इस लए मन और
इंि यो को शु रखना आव क है ोंिक ई र अशु व ुओं को
ीकार नही करते है।
9. ान योग
• ई र पर ान:
मन और इंि यो को अशु िवषयों से हटाकर ई र पर कि कृ त कर देना
आव क है, जससे मन क चंचलता न होती है और मनु ई र के
अनुशीलन म हो जाता है।
• आ ा-ई र संबं ध:
जब साधक को ान ा होती है, तब आ ा-ई र म तादा का
संबं ध हो जाता है। आ ा ई र का अंग है इसका बोध साधक को हो
जाता है।
ान से अमृत क ा होती है, कम क अपिव ता का िवनाश होता
है, साधक सदा के लए इ रमय हो जाता है।
• “ ानी िव श ते”: ानी भ उ म है।
इस संसार म ान के समान पिव कु छ भी नही है।
शंकराचाय : गीता म ान योग का ितपादन
10. ान योग
• अपने सभी काय , इ ाओं और अपने आपको परमा ा म मला देना
ही गीता का ान योग है।
• ान योग क सबसे बड़ी िवशेषता सम योग है, जसका उ ेख
ी॰कृ ने कई बार िकया है।
• सम योग के तीन प है।
1. आ गत सम : इसे “ त ” कहा गया है। इसके अंतगत सभी
वासना और कामनाओं का ाग, दुःख से उि नही और सुख क
लालसा न रखना। मन म राग, भय, ोध न रखा। (बु र हो
गयी हो)
2. व ुगत सम : समता का भाव रखना, ना श ु, ना म ,स ूण
संसार को प रवार समझना
3. गुणातीत सम : सुख-दुःख के परे क व ा। शत और उ
जसे िवच लत नही कर सकते। ी॰कृ ने अजुन को सुख-दुःख,
लाभ-हािन, जय-पराजय को समान समझाकर यु का आदेश िदया।
11. भ -माग (भ योग) (Path of Devotion)
• भ भज से बना है =ई र सेवा ,
• भ माग का उदय उपिनषदो के “उपासना” के स ांत से आ है।
• भ -माग: ई र के ित समपण
• भ माग से साधक को तः ई र क अनुभूित होती है।
• ान माग का पालन िव ान, कम योग का पालन धनवान
लेिकन भ माग ेक के लए खुला है।
• भ माग: गरीब, अमीर सब तबके के लोग कर सकते है।
• इसी लए भ माग अनूठा और सहज है।
• जो ई र के ित ेम-समपण, भ -भाव र है ई र उसे ार
करते है।
• भ शु मन से जो ई र को अपण करता है, ई र उसे ीकार
करते है।
12. भ -माग
• भ का प अकथनीय,इसम परमा ा के ित स ी अ भलाषा है
• ई र के भ का कभी अंत नही होता। इसी लए भ योग को “ ेम-योग”
भी कहते है।
• गीता म कहा है, क “भ के ारा ेम से अपण िकया आ प , पु , फल,
जल इ ािद भगवान ेम से खाते है।
• भ -माग के ारा जीवा ा अपने बुरे कम को भी य कर सकता है।
• ी॰कृ : यिद कोई हम ेम समपण करता है, तब पापी भी पु ा ा
होता है।
• भ -माग म भ का न होना आव क है, तथा वह ई र के स ुख
कु छ भी नही है।
• भ योग का मु ता य “अन भाव” से है : परमा ा के अलावा िकसी
दूसरे का भाव मान म न लाना।
• भगवान म शरणागित क भावना भी भ योग म मह पूण है। अजुन
तः ी॰कृ के शरण म गए थे।
• भ के उ ार के लए ही िनगुण सगुण भगवान बन के िविवध पों म
कट होते है।
13. भ -माग
चार कार के भ
1. आ : रोग से िपिडत के रोग-िनवारण हेतु क गयी भ , ऐसे
भ को आ कहते है।
2. ज ासु: ान पाने क इ ा रखने वाले भ
3. अयाथ : सांसा रक पदाथ (स ) क ा के उ े से
4. ानी: ई र का ान पाकर कृ ताथ हो जाने वाले भ ,
• आ , ज ासु, अयाथ भ ई र क उपासना ाथवश करते है, और
इ ा पूित प ात ई र भ छोड़ देते है, जबिक ानी भ िन ाम
होते ए पिव भाव से ई र उपासना करते है।
• भ से मन म शु ता का िवकास और ई र के चैत का ान होता है।
• भ म ेम और ेमी का भेद न हो जाता है।
• भ म भ को ान ा से भ िक पूणता ा होती है।
• भ माग सरल और अ धक च लत होने से गीता क लोकि यता बढ़ी।
• लो॰ितलक: गीता क मधुरता, ेम और रस भ माग का ही प रणाम है।
• रामानुज : भ माग का ितपादन
14. कमयोग (Path of Action)
• कमयोग को गीता का मु उ े कहा जा सकता है।
• ी॰ कृ , अजुन को कमयोग का ही पाठ पढ़ाते है।
• कम का अथ आचरण है।
• उ चत कम से (आचरण से) ई र तक प ँचा जा सकता है।
• स क ा के लए कम करते रहना चािहए।
• अस और अधम क ा के लए िकए जाने वाले कम सफल कम
नही माने जाते।
• को कम के लए य रत रहना चािहए, परंतु कम के फलों क
चंता नही करनी चािहए।
• कम के प रणाम क चंता छोड़नी चािहए।
• जो कम-फल को छोड़ देता है वही वा िवक ागी है।
15. कमयोग के कार
१) अहंकार रिहत कम ही कमयोग है।
२) अनास कम ही कम योग है :
साधारण मनु लाभ के लए कम करता है। सुख-दुःख, लाभ-हािन,
जय-पराजय इ ािद से ऊपर उठकर कम करने चािहए।
३) िन ाम कम ही कम योग है :
कम के दो कार १) सकाम २) िन ाम
३अ) सकाम: िकसी इ ा से े रत होके िकया जानेवाला कम ( ी,
पु , स क ा )
३ब) िन ाम: कामनाओं का अभाव, तृ ारिहत कम
गीता म कमयोग का ता य िन ाम कम से है।
16. अहंकार रिहत कमयोग
• अहंकार रिहत कम ही कमयोग है।
• कम करने के प ात कतापन का अ भमान ागना चािहए।
• कम के पाँच कारण
1. अ ध ान: देह या शरीर जसके िबना कोई काय स व नही।शरीर नही तो
कम का ार स व नही।
2. कता: कता म चेतन श है और इसी से मनु कम करता है।
3. करण (इंि या): इंि यो के िबन कम का स ादन स व नही।
4. चे ा: चे ा यास है,कमि यो के रहते अगर यास ना हो तो कोई काय
नही होगा।
5. दैव या ई रीय श : ेक इंि यो के पीछे दैव या ई रीय श श
है, उदा ॰ ने के पीछे सूय काश, ाणवायु इ ािद।
इन सभी कारणो से िकसी काय का स ादन होता है, लेिकन अ ानवश के वल
कता को ही कारण मान लेना अ भमान-अहंकार है।
इस अहंकार से शू होकर कम करना ही कमयोग है।
17. कमयोग
• गीता का मु िवषय ही कम योग है।
• “ हे अजुन जो पु ष मन से इंि यों को वश म करके कमि यों से कम-
योग का आचरण करता है वही े है।
• स ास और िन ाम कम म से िन ाम कम को ी॰कृ ने े
कहा है।
• िन ाम कम के उपदेश पाकर अजुन यु के लए त र ए।
• िन ाम कम: फल क ा क भावना का ाग
• िन ाम कम योगी पर परमा ा क ा सहज होती है।
• लो॰ितलक: गीता का मु उपदेश “ कम-योग” है।
18. उपसंहार
• गीता म ान, कम और भ का सम य है।
• ई र को ान, कम और भ से अपनाया जा सकता है।
• जसे जो माग सुलभ हो वह उस माग को अपना सकता है।
• ितनो माग का अंितम ल ई र क ा है।
• ान, कम और भ मनु के जीवन के अंग है, इसी लए ितनो
आव क है।
• ाना क पहलू : ान माग
• भावना क पहलू: भ माग
• ि या क पहलू: कम-माग