3. पररचय
जॉन डीवी का जन्म वरमाांट क
े वरशलांगटन िहर में
अक्टूबर सन् 1859 में हुआ था। 19 वर्श की अवस्था
में इन्होंने दिशनिास्र में सबसे अधिक अांक प्राप्त करक
े
वरमाांट ववश्वववद्यालय में बीए की डडग्री प्राप्त की।
इसक
े बाद इन्होंने शमनेसोटा, शमिीगन और शिकागो
ववश्व ववद्यालय में दिशन िास्र का अध्ययन ककया
तथा शिकागो में Progressive School नामक एक
ववद्यालय की स्थापना की। सन् 1952 में डीवी का
स्वगशवास हुआ।
4. जॉन डीवी क
े अनुसार शिक्षा का अथश
जॉन डीवी शिक्षा को एक अननवायश सामाजजक
गनत मानते थे उनक
े अनुसार बबना शिक्षा क
े
समाज गनत नह ां कर सकता।
मनुष्य क
े बाह्य(external) व अांतररक(internal)
अनुभव सदा पररवनतशत होते रहते हैं।
Contd…
5. उसे समय-समय पर नवीन अनुभवों व समस्याओां
का सामना करना होता है। अतः उसक
े कियाकलाप
भी उन्ह ां क
े अनुसार बदलते रहते हैं। डीवी इसी
वृद्धि ,पररवतशन अथवा सांिोिन कोशिक्षा कहकर
पुकारते हैं।
वह यह नह ां मानते कक बच्चे क
े स्क
ू ल जाने पर ह
शिक्षा का आरांभ होता है शिक्षा तो उसक
े जन्म से ह
प्रारांभ हो जाती है और जीवन भर चलती है। शिक्षा
जीवन की तैयार ना होकर स्वयां जीवन है।
….Contd.
6. डीवी क
े अनुसार शिक्षा का उद्देश्य
डीवी क
े अनुसार शिक्षा का एकमार उद्देश्य बालक की
िजक्तयों का ववकास है। वह ववकास ककस प्रकार से
होगा, इसक
े शलए कोई सामान्य शसद्िाांत ननजश्चत नह ां
ककया जा सकता, क्योंकक शभन्न-शभन्न रुधचयों और
योग्यताओां क
े बालकों में ववकास शभन्न शभन्न प्रकार से
होता है।
Contd…
7. डीवी ने शिक्षा क
े ननम्नशिखित उद्देश्य ददए-
बालक का सवाांगीण ववकास:- शिक्षा का मुख्य उद्देि
वािों का सवाांगीण ववकास करना है ताकक वह समाज
में भावी जीवन में समायोजन कर सक
े ।
बालक को महत्ता:- प्रयोजनवाददयों ने शिक्षा क
े उद्देश्य
क
े ननर्ाारण में बािक को महत्ता दी है। उनका मत है
कक बािक अपने मूल्यों एवं आदिों का स्वयं ननमााण
करता है।
….Contd.
8. गत्यात्मक ननदेिन:- प्रयोजनवादी शिक्षा का एक
उद्देश्य बािक को गनतिीि बनाना भी है ताकक वह
स्वयं ददिा में प्रगनत कर सक
ें ।
बालक का सामाजजक ववकास:- प्रयोजनवाद शिक्षा
का अन्य उद्देश्य बािक का सामाजजक ववकास
करना है ताकक बािक समाज क
े साथ समायोजन
कर सक
े और सामाजजक दानयत्वों का ननवाहन कर
सक
े ।
…Contd.
9. डीवी क
े अनुसार शिक्षा का पाठ्ययिम
डीवी ने पाठ्ययिम को भी क
ु छ शसद्िाांतों क
े
आिार पर ननजश्चत ककया है, जजसक
े शलए
जरूर है कक बालक क
े सांपूणश ववकास को
ध्यान में रखा जाए।
10. रुधच का शसद्िाांत:- पाठ्यक्रम का ननमााण बािक की रुचियों
क
े आर्ार पर ककया जाना िादहए ताकक उसकी ववशिष्टततांं
को ववकशसत ककया जा सक
े ।
इसीशिए डीवी ने पाठ्यक्रम क
े ननमााण क
े समय भूगोि,
इनतहास, किा, ववज्ञान, गखणत, भाषा, संगीत किा आदद
को सजम्मशित ककया।
उपयोधगता का शसद्िाांत:- रुचि की प्रमुिता क
े साथ साथ
पाठ्यक्रम सार्ारण जीवन में भी उपयोगी होना िादहए ताकक
बािक अपने जीवन में आने वािी समस्यांं का समार्ान
कर सक
े तथा वातावरण में अपने को समायोजजत कर सक
े ।
11. डीवी क
े अनुसार शिक्षण ववधियाां
डीवी ने ननम्नशलखखत शिक्षण ववधियों को उधचत
समझा है –
किया द्वारा सीखना(learning by doing)
स्वानुभव द्वारा सीखना (learning by self-
experience)
प्रयोग द्वारा सीखना (learning by experience)
अप्रत्यक्ष रूप से योजना ववधि (project method)
को भी सह ठहराया है।
12. डीवी क
े अनुसार अनुिासन
डीवी दंड क
े कट्तर ववरोर्ी थे। उनक
े अनुसार शिक्षा को
डर क
े साथ ववद्याथी पर नहीं थोपा (Impose) जाना
िादहए। अनुिासन स्वाभाववक हो, जो ववनम्रता पर
आर्ाररत हो, जजससे बािक क
े काया में रुकावत नहीं
आना िादहए। अनुिासन उसमें अंदर से उत्पन्न होना
िादहए जो स्थाई होगा।
13. डीवी क
े अनुसार ववद्यालय और शिक्षक
डीवी ऐसे ववद्यालयों की ननांदा करते हैं जहाां बालक क
े
प्रनत कठोरता का व्यवहार ककया जाता है और
परांपरागत पाठ्ययिम क
े द्वारा क
े वल ककताबी ज्ञान
ददया जाता है।
डीवी क
े अनुसार,”ववद्यालय को सामाजजक अनुभवों
की प्रयोगिाला होना चादहए, जहाां बालक परस्पर सांपक
श
द्वारा जीवन यापन की सवशश्रेष्ठ प्रणाशलयों का
अधिगम कर सक
े ।” Contd…
14. डीवी शिक्षक को महत्वपूणश स्थान देते हैं। उनक
े
अनुसार शिक्षक एक सजम्मशलत व्यजक्त है जो
उपयोगी शिक्षण ववधि द्वारा बालक क
े सवाांगीण
ववकास में सहायक शसद्ि होता है तथा एक
मागशदिशक क
े रुप में कायश करता है वह एक चतुर
बढाई क
े समान है, जो अपने ज्ञान क
े आिार पर
लकडी का सवोत्तम उपयोग करता है।
…Contd.