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ग्रंथ प्रारंभ करने के पूर्व जानने योग्य ६ बातें:
• तत्त्र्ाथवसूत्रग्रंथ का नाम
• आचायव उमास्र्ामीग्रंथ के रचययता
• अरहंत देर् कोमंगलाचरण में ककसे नमस्कार ककया गया है:
• १० अध्याय, ३५७ सूत्रग्रंथ का प्रमाण
• भव्य जीर्ों के यनममत्तयनममत्त
• मोक्ष प्राप्तत हेतुहेतु
मंगलाचरण करने के कारण
1. ग्रंथ की यनर्र्वघ्न समाप्तत के मलये
2. मिष्टाचार के पालन के मलए
3. नाप्स्तकता का पररहार के मलए
4. पुण्य की प्राप्तत के मलये
5. उपकार का स्मरण करने के मलये
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सूत्र अथावत ्क्या?
☸सूत्र = धागा , संके त, साधक
☸व्याकरण के अनुसार जो कम से कम िब्दों में पूणव अथव बता
दे उसे सूत्र कहते हैं ।
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तत्त्र्ाथवसूत्र अथावत ्७ तत्त्र्
• जीर् तत्त्र्१ - ४ अध्याय
• अजीर् तत्त्र्५ र्ााँ अध्याय
• आस्त्रर् तत्त्र्६ - ७ अध्याय
• बंध तत्त्र्८ र्ााँ अध्याय
• संर्र र् यनजवरा तत्त्र्९ र्ााँ अध्याय
• मोक्ष तत्त्र्१० र्ााँ अध्याय
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मंगलाचरण की र्र्िेषता
देर्ागम
स्तोत्र
११५ श्लोक
आचायव समन्तभद्र
स्र्ामी ने(गंधहस्ती
महाभाष्य की टीका)
अष्टिती ८०० श्लोक
भट्ट अकलंक देर्
द्र्ारा(देर्ागम
स्तोत्र पर टीका)
अष्टसहस्त्री ८००० श्लोक
आचायव र्र्द्यानंदी
द्र्ारा(अष्टिती पर
टीका)
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मोक्षमागव क्या है?
सम्यग्दिव
न
सम्यग्ञा
न
सम्यग्चारर
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मोक्षमागव
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सम्यक अथावत्
☸समञ्चयत इयत सम्यक्
☸यहााँ इसका अथव प्रिंसा है |
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गुण
दिवन
ञान
चाररत्र
स्र्रूप
प्जसके द्र्ारा देखा जाता है
प्जसके द्र्ारा जाना जाता है
प्जसके द्र्ारा आचरण ककया जाता है
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िब्द
दिवन
ञान
चाररत्र
सम्यक् िब्द पहले रखने का कारण
पदाथों के यथाथव ञानमूलक श्रद्धान का
संग्रह करने के मलए
संिय, र्र्पयवय और अनध्यर्साय ञानों का
यनराकरण करने के मलए
अञानपूर्वक आचरण का यनराकरण करने के
मलए
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इन तीनों के क्रम का कारण
☸दिवन और ञान साथ में उत्पन्न होने पर भी दिवन पूज्य होने
से पहले रखा है |
☸चाररत्र के पहले ञान रखा है क्योंकक चाररत्र ञानपूर्वक होता है
|
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तीनों की एकता
☸सूत्र में मागव: िब्द एकर्चन को बताने के मलए ककया है |
☸प्जससे प्रत्येक में मोक्षमागव है इस बात का यनराकरण हो
जाता है | इससे 7 प्रकार के ममथ्यामागव का यनषेध हो जाता है |
☸ये तीनों से ममलकर मोक्षमागव होता है |
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तत्त्र्ाथवश्रद्धानम्
सम्यग्दिवनम्॥२॥
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तत्+ त्र् = र्ह + भार्
र्स्तु का सच्चा स्र्रूप
जो र्स्तु जैसी है उसका जो भार्
तत्त्र् ककसे कहते हैं?
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अथव ककसे कहते हैं?
• जो यनश्चय ककया जाता है
तत्त्र्ाथव अथावत्
• तत्त्र् के द्र्ारा जो यनश्चय ककया जाता है र्ह तत्त्र्ाथव है
तत्त्र्ाथव का श्रद्धान सम्यग्दिवन है
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दिवन िब्द का अथव देखना होता है, श्रद्धान रूप
अथव कै से कर मलया ?
धातु के अनेक अथव होते हैं | यहााँ मोक्षमागव का
प्रकरण होने से दिवन िब्द का अथव श्रद्धान मलया है
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मात्र अथव का श्रद्धान भी मोक्षमागव हो सकता है क्या ?
मात्र तत्त्र् का श्रद्धान भी मोक्षमागव हो सकता है क्या
?
सर्व दोषों को दूर करने के हेतु तत्त्र्ाथव कहा है |
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इसे समझना क्यों आर्श्यक है?
क्योंकक ७ तत्त्र्ों के
सही श्रद्धान से ही
सम्यग्दिवन
होता है
तत्त्र्ाथवश्रद्धानं सम्यग्दिवनम्॥
इन ७ तत्त्र्ों के सत्य
श्रद्धान से हम ग्यारंटी से
सुखी होंगे
और उनके सत्य श्रद्धान
बबना हम ग्यारंटी से
दुखी ही रहेंगें
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१.
सच्चे देर्, िास्त्र गुरु का श्रद्धान
२.
सात तत्त्र्ों का यथाथव श्रद्धान
३.
आपा-पर का श्रद्धान
४.
स्र्ानुभर्
स
म्य
ग्द
िव
न
के
ल
क्ष
ण
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प्रथमानुयोग,चरणानु
योग के अनुसार
सच्चे देर्, िास्त्र
गुरु का श्रद्धान.
२५ दोषों से रहहत,
८ अंग सहहत
करणानुयोग के
अनुसार
दिवन मोहनीय र्
अनंतानुबंधी के क्षय,
उपिम या क्षयोपिम
से आत्मा की जो
यनमवल पररणयत है
द्रव्यानुयोग के
अनुसार
सात
तत्त्र्ों का
यथाथव
श्रद्धान
सम्यग्दिवन का स्र्रुप ४ अनुयोगों में
सम्यग्दिवन
सराग
प्रिम, संर्ेग आहद
लक्षण र्ाला
र्ीतराग आत्म-र्र्िुद्धध मात्र
Presentation Developed by: Smt Sarika Chabra
1. प्रिम
2. संर्ेग
3.
अनुकम्पा
4.
आप्स्त
क्य
सम्यक्त्र् के गुण
Created By-श्रीमयत साररका र्र्कास छाबड़ा
• रागाहद की मंदता होनाप्रिम
• संसार से भीयतरूप पररणाम होनासंर्ेग
• सब जीर्ों में दया भार् रखकर प्रर्ृर्त्त करनाअनुकम्पा
• ‘जीर्ाहद पदाथव सत्-स्र्रूप हैं’, ‘संसार–मोक्ष, पुण्य–पाप
आहद का अप्स्तत्र् है’ – ऐसी बुद्धध का होनाआप्स्तक्य
Presentation Developed by: Smt Sarika Chabra
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जो सम्यग्दिवन र्तवमान में
बबना उपदेि के होता है
उसे यनसगवज सम्यग्दिवन
कहते हैं
उपदेि पूर्वक होता है
उसे अधधगमज सम्यग्दिवन
कहते हैं
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बहहरंग कारण
यनसगवज सम्यग्दिवन
☸जायत-स्मरण
☸प्जन बबंब दिवन
☸प्जन कल्याणक दिवन
☸र्ेदना से
अधधगमज सम्यग्दिवन
☸धमव श्रर्ण
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अन्तरंग कारण
दिवन मोहनीय र् अनन्तानुबन्धी कमव का
क्षय क्षयोपिम उपिम
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क्या ऎसा हो सकता है कक जीर् ने
कभी भी उपदेि नहीं सुना हो और
उसे सम्यग्दिवन हो जायें?
नहीं
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७ तत्त्र्
जीर् अजीर् आस्रर् बंध संर्र यनजवरा मोक्ष
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जीर् तत्त्र्
ञान-दिवन
स्र्भार्ी
आत्मा को
कहते हैं
र्ह चेतन
तत्त्र् आत्मा
ही मैं हूाँ
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जीर् तत्त्र् कौन?
स्र्यं का
जीर्
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जीर् तत्त्र् है कक अजीर् तत्त्र्?
अलमारी मेरा आत्मा मेरे कमव गुलाब जामुन
टी. र्ी कम्तयुटर सहेली बच्चे
पयत
पयत की
आत्मा
मेरे र्चन मेरी आंखें
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अजीर् तत्त्र्
ञान-दिवन
स्र्भार् से रहहत
तथा आत्मा से
मभन्न समस्त
पुद्गलाहद पााँच
द्रव्य
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¡àdàw rÞo yÞwÊ
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आस्रव आदि तत्त्वों के प्रकार
द्रव्य तत्त्र्
का आना
का आत्मा से संबंध होना
का आना रुकना
का एकदेि खखरना
का सम्पूणव नाि
- आस्रर्
- बन्ध
- संर्र
- यनजवरा
- मोक्ष
कमों
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का बने रहना
उत्पर्त्त
र्ृद्धी
पूणवता
िुभ-अिुभ भार्ों
िुद्ध भार्ों की
की उत्पर्त्त
भार् तत्त्र् - आस्रर्
- बन्ध
- संर्र
- यनजवरा
- मोक्ष
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इनमें पुण्य–पाप का ग्रहण क्यों नहीं ककया ?
☸क्योंकक आस्रर् – बंध में उनका अंतभावर् हो जाता है |
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आस्रर्
भार्ास्रर्
प्जन मोह राग द्र्ेष भार्ों के
यनममत्त से ञानार्रणाहद कमव
आते हैं, उन मोह राग द्र्ेष
भार्ों को भार्ास्रर् कहते है
द्रव्यास्रर्
भार्ास्त्रर् के यनममत्त से
ञानार्रणाहद कमों का
स्र्यं आना द्रव्यास्रर् है
भार् बंध
आत्मा के प्जन पररणामों के
यनममत्त से कमव आत्मा से
संबंधरूप हो जाते हैं, उन मोह-
राग-द्र्ेष, पुण्य-पाप आहद
र्र्भार् भार्ों को भार् बंध
कहते हैं
द्रव्य बंध
उसके यनममत्त से पुद्गल
का स्र्यं कमवरूप बंधना
द्रव्य बंध है
बंध
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आत्मा के प्जन पररणामों के यनममत्त
से नर्ीन कमव आना रुकते हैं, उन
पररणामों को भार्संर्र कहते हैं
तदनुसार नर्ीन कमों
का आना स्र्यं स्र्तः
रुक जाना द्रव्यसंर्र है ।
संर्र
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यनजवरा
आत्मा के प्जन पररणामों के
यनममत्त से बंधे हुए कमव
एकदेि खखरते हैं, उन
पररणामों को भार्यनजवरा कहते
हैं
आत्मा से कमों का
एकदेि छू ट जाना द्रव्य-
यनजवरा है ।
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भार् मोक्ष
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द्रव्य मोक्ष
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मोक्ष
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☸Cº$ gmVm| Ho$ `WmW© lÕmZ {~Zm _moj_mJ©
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☸Ord Am¡a AOrd H$mo OmZo {~Zm AnZo-nam`o
H$m ^oX-{dkmZ H¡$go hmo ? प्जसे सुखी करना है ऎसे जीर्
को जानना, प्जसके साथ सुखी होने का भ्रम हो सकता है ऎसे अजीर् को जानना
☸_moj H$mo n{hMmZo {~Zm Am¡a {hVê$n _mZo
{~Zm CgH$m Cnm` H¡$go H$ao ?
☸_moj H$m Cnm` संर्र-{ZO©am h¢, AV: CZH$m
OmZZm ^r Amdí`H$ h¡ ।
तत्त्र् ७ ही क्यों?
७ तत्त्र्ों के क्रम का कारण
☸सब फल जीर् को है, अत: सर्वप्रथम जीर् कहा|
☸जीर् का उपकारी अजीर् है, अत: अजीर् कहा|
☸आस्रर्, जीर् और अजीर् दोनों को र्र्षय करता है, अत: आस्रर् कहा|
☸बंध आस्रर्-पूर्वक होता है अत: बंध कहा|
☸संर्ृत जीर् के आस्रर्-बंध नहीं होता है, अत: संर्र कहा |
☸संर्र के होने पर यनजवरा होती है, अत: यनजवरा कही|
☸पूणव यनजवरा होने पर मोक्ष होता है, अत: अंत में मोक्ष कहा |
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द्रव्य हैं, गुण हैं कक पयावयें हैं?
☸जीर्, अजीर् तत्त्र् - द्रव्य हैं
☸भार् आस्त्रर्, बंध, संर्र, यनजवरा, मोक्ष ये जीर् द्रव्य की
पयावयें हैं
☸द्रव्य आस्त्रर्, बंध, संर्र, यनजवरा, मोक्ष ये अजीर् द्रव्य की
पयावयें हैं
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यनक्षेप
☸लोक अथर्ा आगम में िब्द व्यर्हार करने की पद्धयत
☸प्रयोजन
☸अप्रकृ त का यनराकरण करने के मलये
☸प्रकृ त का प्ररूपण करने के मलये
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यनक्षेप (लोक अथर्ा आगम में
िब्द व्यर्हार करने की पद्धयत )
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स्थापना
तदाकार
उसी रुप, आकृ यत र्ाले पदाथव
में "यह र्ही है" ऎसी
स्थापना करना
अतदाकार
मभन्न रुप, आकृ यत र्ाले
पदाथव में "यह र्ही है"
ऎसी स्थापना करना
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पदाथव के सर्वदेि को
ग्रहण करता है
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र्स्तु के एकदेि ग्रहण
करता है
पदाथों को जानने के उपाय
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नय ककसमें लगते है?
ञान में
र्ाणी में
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नय ककसमें नहीं लगते हैं?
र्स्तु में
कक्रया में
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पदाथों को जानने के उपाय
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उदाहरण- सम्यग्दिवन
• जीर्ाहद पदाथों का श्रद्धान सम्यग्दिवन हैंयनदेि-
• सामान्य से जीर् , र्र्िेष से गयत आहद मेंस्र्ामी-
• बाह्य- दिवन मोहनीय कमव का क्षय, उपिम या क्षयोपिम आहद
• अभ्यंतर- जायतस्मरण आहदसाधन-
• बाह्य- १ १४ राजु लम्बी त्रस नाड़ी
• अभ्यंतर- सम्यग्दिवन का जो स्र्ामी हैआधधकरण –
• जघन्य अन्तमुवहूतव एर्ं उत्कृ ष्ट प्स्थयत साहद अनन्त हैप्स्थयत-
• सम्यग्दिवन १, २, ३, संख्यात, असंख्यात एर्ं अनन्त प्रकार का होता हैर्र्धान –
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र्र्स्तार रुधच मिष्यों के मलये
पदाथों को
जानने के
उपाय
सत्
संख्या
क्षेत्र
स्पिवन
काल
अन्तर
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अल्पबहुत्र्
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 Reference : श्री गोम्मटसार जीर्काण्डजी, श्री जैनेन्द्रमसद्धान्त कोष, तत्त्र्ाथवसूत्रजी
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: 0731-2410880
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Tattvarth Sutra - Adhyay 1

  • 3. ग्रंथ प्रारंभ करने के पूर्व जानने योग्य ६ बातें: • तत्त्र्ाथवसूत्रग्रंथ का नाम • आचायव उमास्र्ामीग्रंथ के रचययता • अरहंत देर् कोमंगलाचरण में ककसे नमस्कार ककया गया है: • १० अध्याय, ३५७ सूत्रग्रंथ का प्रमाण • भव्य जीर्ों के यनममत्तयनममत्त • मोक्ष प्राप्तत हेतुहेतु
  • 4. मंगलाचरण करने के कारण 1. ग्रंथ की यनर्र्वघ्न समाप्तत के मलये 2. मिष्टाचार के पालन के मलए 3. नाप्स्तकता का पररहार के मलए 4. पुण्य की प्राप्तत के मलये 5. उपकार का स्मरण करने के मलये Presentation Developed by: Smt Sarika Chabra
  • 5. सूत्र अथावत ्क्या? ☸सूत्र = धागा , संके त, साधक ☸व्याकरण के अनुसार जो कम से कम िब्दों में पूणव अथव बता दे उसे सूत्र कहते हैं । Presentation Developed by: Smt Sarika Chabra
  • 6. तत्त्र्ाथवसूत्र अथावत ्७ तत्त्र् • जीर् तत्त्र्१ - ४ अध्याय • अजीर् तत्त्र्५ र्ााँ अध्याय • आस्त्रर् तत्त्र्६ - ७ अध्याय • बंध तत्त्र्८ र्ााँ अध्याय • संर्र र् यनजवरा तत्त्र्९ र्ााँ अध्याय • मोक्ष तत्त्र्१० र्ााँ अध्याय Presentation Developed by: Smt Sarika Chabra
  • 7. मंगलाचरण की र्र्िेषता देर्ागम स्तोत्र ११५ श्लोक आचायव समन्तभद्र स्र्ामी ने(गंधहस्ती महाभाष्य की टीका) अष्टिती ८०० श्लोक भट्ट अकलंक देर् द्र्ारा(देर्ागम स्तोत्र पर टीका) अष्टसहस्त्री ८००० श्लोक आचायव र्र्द्यानंदी द्र्ारा(अष्टिती पर टीका) Presentation Developed by: Smt Sarika Chabra
  • 9. yÈuªÀÎàêÂàÖààÂàjàáÊØà àâ½à tàçÕàtàªàêßññ1ññ yÈuªÀÎàêÂà, yÈuªÖààÂà ¡àèÊ yÈuक्jàáÊØà – uç mãÂààçÞ âtvकÊ tàçÕà कà tàªàê Ñèññ1ññ Presentation Developed by: Smt Sarika Chabra
  • 11. सम्यक अथावत् ☸समञ्चयत इयत सम्यक् ☸यहााँ इसका अथव प्रिंसा है | Presentation Developed by: Smt Sarika Chabra
  • 12. गुण दिवन ञान चाररत्र स्र्रूप प्जसके द्र्ारा देखा जाता है प्जसके द्र्ारा जाना जाता है प्जसके द्र्ारा आचरण ककया जाता है Presentation Developed by: Smt Sarika Chabra
  • 13. िब्द दिवन ञान चाररत्र सम्यक् िब्द पहले रखने का कारण पदाथों के यथाथव ञानमूलक श्रद्धान का संग्रह करने के मलए संिय, र्र्पयवय और अनध्यर्साय ञानों का यनराकरण करने के मलए अञानपूर्वक आचरण का यनराकरण करने के मलए Presentation Developed by: Smt Sarika Chabra
  • 14. इन तीनों के क्रम का कारण ☸दिवन और ञान साथ में उत्पन्न होने पर भी दिवन पूज्य होने से पहले रखा है | ☸चाररत्र के पहले ञान रखा है क्योंकक चाररत्र ञानपूर्वक होता है | Presentation Developed by: Smt Sarika Chabra
  • 15. तीनों की एकता ☸सूत्र में मागव: िब्द एकर्चन को बताने के मलए ककया है | ☸प्जससे प्रत्येक में मोक्षमागव है इस बात का यनराकरण हो जाता है | इससे 7 प्रकार के ममथ्यामागव का यनषेध हो जाता है | ☸ये तीनों से ममलकर मोक्षमागव होता है | Presentation Developed by: Smt Sarika Chabra
  • 16. yÈuªÀÎàê Âà yÈuªÖàà à yÈu¨jàáÊ Øà ÍuwÑàÊ ÐwÛýq yàm mÙwàçÞ कà yÑã ó÷àÂà yàm mÙwàçÞ कà yÑã ÖààÂà ¡Îàäsyç âÂàwæâÙ à, Îàäs tçÞ ZàwæâÙà âÂàÎju qÊôÍuàçÞ qÊôÍuàçÞ qÊôÍuàçÞ tàçÕàtàªàê क्या Ñè ? Presentation Developed by: Smt Sarika Chabra
  • 17. तत्त्र्ाथवश्रद्धानम् सम्यग्दिवनम्॥२॥ ¡qÂàç-¡qÂàç ÐwÛýq के ý ¡ÂàäyàÊ qÀànàG का kàç श्रद्धान Ñàçmà Ñè, wÑ yÈuªÀÎàêÂà Ñèññ2ññPresentation Developed by: Smt Sarika Chabra
  • 18. yÈuªÀÎàêÂà mÙw + ¡nê + श्रद्धान sàw + sàwwàÂà (qÀànê) + Zàmãâm Presentation Developed by: Smt Sarika Chabra
  • 19. तत्+ त्र् = र्ह + भार् र्स्तु का सच्चा स्र्रूप जो र्स्तु जैसी है उसका जो भार् तत्त्र् ककसे कहते हैं? Presentation Developed by: Smt Sarika Chabra
  • 20. अथव ककसे कहते हैं? • जो यनश्चय ककया जाता है तत्त्र्ाथव अथावत् • तत्त्र् के द्र्ारा जो यनश्चय ककया जाता है र्ह तत्त्र्ाथव है तत्त्र्ाथव का श्रद्धान सम्यग्दिवन है Presentation Developed by: Smt Sarika Chabra
  • 21. दिवन िब्द का अथव देखना होता है, श्रद्धान रूप अथव कै से कर मलया ? धातु के अनेक अथव होते हैं | यहााँ मोक्षमागव का प्रकरण होने से दिवन िब्द का अथव श्रद्धान मलया है Presentation Developed by: Smt Sarika Chabra
  • 22. मात्र अथव का श्रद्धान भी मोक्षमागव हो सकता है क्या ? मात्र तत्त्र् का श्रद्धान भी मोक्षमागव हो सकता है क्या ? सर्व दोषों को दूर करने के हेतु तत्त्र्ाथव कहा है | Presentation Developed by: Smt Sarika Chabra
  • 23. इसे समझना क्यों आर्श्यक है? क्योंकक ७ तत्त्र्ों के सही श्रद्धान से ही सम्यग्दिवन होता है तत्त्र्ाथवश्रद्धानं सम्यग्दिवनम्॥
  • 24. इन ७ तत्त्र्ों के सत्य श्रद्धान से हम ग्यारंटी से सुखी होंगे और उनके सत्य श्रद्धान बबना हम ग्यारंटी से दुखी ही रहेंगें Presentation Developed by: Smt Sarika Chabra
  • 25. १. सच्चे देर्, िास्त्र गुरु का श्रद्धान २. सात तत्त्र्ों का यथाथव श्रद्धान ३. आपा-पर का श्रद्धान ४. स्र्ानुभर् स म्य ग्द िव न के ल क्ष ण Presentation Developed by: Smt Sarika Chabra
  • 26. प्रथमानुयोग,चरणानु योग के अनुसार सच्चे देर्, िास्त्र गुरु का श्रद्धान. २५ दोषों से रहहत, ८ अंग सहहत करणानुयोग के अनुसार दिवन मोहनीय र् अनंतानुबंधी के क्षय, उपिम या क्षयोपिम से आत्मा की जो यनमवल पररणयत है द्रव्यानुयोग के अनुसार सात तत्त्र्ों का यथाथव श्रद्धान सम्यग्दिवन का स्र्रुप ४ अनुयोगों में
  • 27. सम्यग्दिवन सराग प्रिम, संर्ेग आहद लक्षण र्ाला र्ीतराग आत्म-र्र्िुद्धध मात्र Presentation Developed by: Smt Sarika Chabra
  • 28. 1. प्रिम 2. संर्ेग 3. अनुकम्पा 4. आप्स्त क्य सम्यक्त्र् के गुण Created By-श्रीमयत साररका र्र्कास छाबड़ा
  • 29. • रागाहद की मंदता होनाप्रिम • संसार से भीयतरूप पररणाम होनासंर्ेग • सब जीर्ों में दया भार् रखकर प्रर्ृर्त्त करनाअनुकम्पा • ‘जीर्ाहद पदाथव सत्-स्र्रूप हैं’, ‘संसार–मोक्ष, पुण्य–पाप आहद का अप्स्तत्र् है’ – ऐसी बुद्धध का होनाआप्स्तक्य Presentation Developed by: Smt Sarika Chabra
  • 30. mâÂÂàyªààêÀâo ªàtàõàññ3ññ wÑ (yÈuªÀÎàêÂà) âÂàyªàê yç ¡àèÊ ¡âoªàt yç £¾qÂÂà Ñàçmà Ñèññ3ññPresentation Developed by: Smt Sarika Chabra
  • 31. yÈuªÀÎàêÂà कL £¾q âÂàyªàêk ¡âoªàtk * Ðwsàw yç * qÊ कçý £qÀçÎà yç* कàݹþç कL ÂààçÞकý (कàݹçþ कL Âààçकý Ðwàsàâwकý Ñàçmã Ñè * rà½à कL oàÊ (rà½à कL oàÊ कàç rÂààÂàç कçý âv¥ âकýyã कL ¡àwÎuकmà Ñàçmã Ñè)Presentation Developed by: Smt Sarika Chabra
  • 32. जो सम्यग्दिवन र्तवमान में बबना उपदेि के होता है उसे यनसगवज सम्यग्दिवन कहते हैं उपदेि पूर्वक होता है उसे अधधगमज सम्यग्दिवन कहते हैं Presentation Developed by: Smt Sarika Chabra
  • 33. बहहरंग कारण यनसगवज सम्यग्दिवन ☸जायत-स्मरण ☸प्जन बबंब दिवन ☸प्जन कल्याणक दिवन ☸र्ेदना से अधधगमज सम्यग्दिवन ☸धमव श्रर्ण Presentation Developed by: Smt Sarika Chabra
  • 34. अन्तरंग कारण दिवन मोहनीय र् अनन्तानुबन्धी कमव का क्षय क्षयोपिम उपिम Presentation Developed by: Smt Sarika Chabra
  • 35. क्या ऎसा हो सकता है कक जीर् ने कभी भी उपदेि नहीं सुना हो और उसे सम्यग्दिवन हो जायें? नहीं Presentation Developed by: Smt Sarika Chabra
  • 36. kãwàkãwàdàwrÞoyÞwÊâ àkêÊàtàçÕààÐmÙwtîññ4 ññ kãw, ¡kãw,¡àdàw, rÂo, yÞwÊ, âÂàkêÊà ¡àèÊ tàçÕà uç mÙw ÑèAññ4ññ Presentation Developed by: Smt Sarika Chabra
  • 37. ७ तत्त्र् जीर् अजीर् आस्रर् बंध संर्र यनजवरा मोक्ष Presentation Developed by: Smt Sarika Chabra
  • 38. जीर् तत्त्र् ञान-दिवन स्र्भार्ी आत्मा को कहते हैं र्ह चेतन तत्त्र् आत्मा ही मैं हूाँ Presentation Developed by: Smt Sarika Chabra
  • 39. जीर् तत्त्र् कौन? स्र्यं का जीर् Presentation Developed by: Smt Sarika Chabra
  • 40. जीर् तत्त्र् है कक अजीर् तत्त्र्? अलमारी मेरा आत्मा मेरे कमव गुलाब जामुन टी. र्ी कम्तयुटर सहेली बच्चे पयत पयत की आत्मा मेरे र्चन मेरी आंखें Presentation Developed by: Smt Sarika Chabra
  • 41. अजीर् तत्त्र् ञान-दिवन स्र्भार् से रहहत तथा आत्मा से मभन्न समस्त पुद्गलाहद पााँच द्रव्य Presentation Developed by: Smt Sarika Chabra
  • 42. ¡àdàw rÞo yÞwÊ âÂàkêÊà tàçÕà ôÍu sàw Presentation Developed by: Smt Sarika Chabra आस्रव आदि तत्त्वों के प्रकार
  • 43. द्रव्य तत्त्र् का आना का आत्मा से संबंध होना का आना रुकना का एकदेि खखरना का सम्पूणव नाि - आस्रर् - बन्ध - संर्र - यनजवरा - मोक्ष कमों Presentation Developed by: Smt Sarika Chabra
  • 44. का बने रहना उत्पर्त्त र्ृद्धी पूणवता िुभ-अिुभ भार्ों िुद्ध भार्ों की की उत्पर्त्त भार् तत्त्र् - आस्रर् - बन्ध - संर्र - यनजवरा - मोक्ष Presentation Developed by: Smt Sarika Chabra
  • 45. इनमें पुण्य–पाप का ग्रहण क्यों नहीं ककया ? ☸क्योंकक आस्रर् – बंध में उनका अंतभावर् हो जाता है | Presentation Developed by: Smt Sarika Chabra
  • 46. आस्रर् भार्ास्रर् प्जन मोह राग द्र्ेष भार्ों के यनममत्त से ञानार्रणाहद कमव आते हैं, उन मोह राग द्र्ेष भार्ों को भार्ास्रर् कहते है द्रव्यास्रर् भार्ास्त्रर् के यनममत्त से ञानार्रणाहद कमों का स्र्यं आना द्रव्यास्रर् है
  • 47. भार् बंध आत्मा के प्जन पररणामों के यनममत्त से कमव आत्मा से संबंधरूप हो जाते हैं, उन मोह- राग-द्र्ेष, पुण्य-पाप आहद र्र्भार् भार्ों को भार् बंध कहते हैं द्रव्य बंध उसके यनममत्त से पुद्गल का स्र्यं कमवरूप बंधना द्रव्य बंध है बंध Presentation Developed by: Smt Sarika Chabra
  • 48. आत्मा के प्जन पररणामों के यनममत्त से नर्ीन कमव आना रुकते हैं, उन पररणामों को भार्संर्र कहते हैं तदनुसार नर्ीन कमों का आना स्र्यं स्र्तः रुक जाना द्रव्यसंर्र है । संर्र Presentation Developed by: Smt Sarika Chabra
  • 49. यनजवरा आत्मा के प्जन पररणामों के यनममत्त से बंधे हुए कमव एकदेि खखरते हैं, उन पररणामों को भार्यनजवरा कहते हैं आत्मा से कमों का एकदेि छू ट जाना द्रव्य- यनजवरा है । Presentation Developed by: Smt Sarika Chabra
  • 50. भार् मोक्ष AewÕ Xem H$m gd©Wm gånyU© Zme hmoH$a AmË_m H$s nyU© {Z_©b n{dÌXem H$m àH$Q> hmoZm ^md-_moj h¡ द्रव्य मोक्ष {Z{_Îm H$maU Ðì`H$_© H$m gd©Wm Zme (A^md) hmoZm gmo Ðì`_moj h¡Ÿ& मोक्ष Presentation Developed by: Smt Sarika Chabra
  • 51. ☸Cº$ gmVm| Ho$ `WmW© lÕmZ {~Zm _moj_mJ© Zht ~Z gH$Vm h¡ ☸Ord Am¡a AOrd H$mo OmZo {~Zm AnZo-nam`o H$m ^oX-{dkmZ H¡$go hmo ? प्जसे सुखी करना है ऎसे जीर् को जानना, प्जसके साथ सुखी होने का भ्रम हो सकता है ऎसे अजीर् को जानना ☸_moj H$mo n{hMmZo {~Zm Am¡a {hVê$n _mZo {~Zm CgH$m Cnm` H¡$go H$ao ? ☸_moj H$m Cnm` संर्र-{ZO©am h¢, AV: CZH$m OmZZm ^r Amdí`H$ h¡ । तत्त्र् ७ ही क्यों?
  • 52. ७ तत्त्र्ों के क्रम का कारण ☸सब फल जीर् को है, अत: सर्वप्रथम जीर् कहा| ☸जीर् का उपकारी अजीर् है, अत: अजीर् कहा| ☸आस्रर्, जीर् और अजीर् दोनों को र्र्षय करता है, अत: आस्रर् कहा| ☸बंध आस्रर्-पूर्वक होता है अत: बंध कहा| ☸संर्ृत जीर् के आस्रर्-बंध नहीं होता है, अत: संर्र कहा | ☸संर्र के होने पर यनजवरा होती है, अत: यनजवरा कही| ☸पूणव यनजवरा होने पर मोक्ष होता है, अत: अंत में मोक्ष कहा | Presentation Developed by: Smt Sarika Chabra
  • 53. द्रव्य हैं, गुण हैं कक पयावयें हैं? ☸जीर्, अजीर् तत्त्र् - द्रव्य हैं ☸भार् आस्त्रर्, बंध, संर्र, यनजवरा, मोक्ष ये जीर् द्रव्य की पयावयें हैं ☸द्रव्य आस्त्रर्, बंध, संर्र, यनजवरा, मोक्ष ये अजीर् द्रव्य की पयावयें हैं Presentation Developed by: Smt Sarika Chabra
  • 54. ÂààtÐnàqÂààôÍusàw mÐmÂÂuàyßññ5ññ Âààt, ÐnàqÂàà, ôÍu ¡àèÊ sàw Ûýq yç £Âàकà ¡nàêmî yÈuªÀÎàêÂà ¡àâÀ ¡àèÊ kãw ¡àâÀ कà Âuày ¡nàêmî âÂàÕàçq Ñàçmà Ñèññ5ññ Presentation Developed by: Smt Sarika Chabra
  • 55. यनक्षेप ☸लोक अथर्ा आगम में िब्द व्यर्हार करने की पद्धयत ☸प्रयोजन ☸अप्रकृ त का यनराकरण करने के मलये ☸प्रकृ त का प्ररूपण करने के मलये Presentation Developed by: Smt Sarika Chabra
  • 56. यनक्षेप (लोक अथर्ा आगम में िब्द व्यर्हार करने की पद्धयत ) Âààt Ðnàq àà ôÍu sàw âky qÀànê tçÞ ªàä½à ‘‘wÑ Ñè’’ ¢y ZàकàÊ räâ÷ kàç ªàä½à Þ कàç Zààà wmêtà quàêu yÞuä¨ wÐmä Presentation Developed by: Smt Sarika Chabra
  • 57. âÂàÕàçq - £ÀàÑʽà Âààt Ðnàq àà ôÍu sàw wãÊmà Âà ÑàçÂàç qÊ sã tÑàwã कL Zàâmt कàç Êàkकätà w÷êtà कàç ‘tÑàwãÊ ¡ÂàÞm jmä˜þय uä¨m ‘sªàwà Presentation Developed by: Smt Sarika Chabra
  • 58. स्थापना तदाकार उसी रुप, आकृ यत र्ाले पदाथव में "यह र्ही है" ऎसी स्थापना करना अतदाकार मभन्न रुप, आकृ यत र्ाले पदाथव में "यह र्ही है" ऎसी स्थापना करना Presentation Developed by: Smt Sarika Chabra
  • 59. Zàtà½àÂàuèÊâoª àtßññ6ññ Zàtà½à ¡àèÊ ÂàuàçÞ yç qÀànàG कà ÖààÂà Ñàçmà Ñèññ6ññ Presentation Developed by: Smt Sarika Chabra
  • 60. प्रमाण सच्चा ञान पदाथव के सर्वदेि को ग्रहण करता है नय श्रुतञान का अंि र्स्तु के एकदेि ग्रहण करता है पदाथों को जानने के उपाय Presentation Developed by: Smt Sarika Chabra
  • 61. नय ककसमें लगते है? ञान में र्ाणी में Presentation Developed by: Smt Sarika Chabra
  • 62. नय ककसमें नहीं लगते हैं? र्स्तु में कक्रया में Presentation Developed by: Smt Sarika Chabra
  • 63. oÂààâoकʽà OÐnâmâwoàÂàmßññ 7ññ âÂàÀFÎà, Ðwàât¾w, yàoÂà, ¡âoकʽà, OÐnâm ¡àèÊ âwoàÂà yç yÈuªÀÎàêÂà ¡àâÀ âwxuàçÞ कà ÖààÂà Ñàçmà Ñèññ7ññPresentation Developed by: Smt Sarika Chabra
  • 64. âÂà ÀFÎ à Ðwà tã yàoÂ à ¡âoकÊ ½à OÐ nâ m âwo àÂà Ðw tàâv £¾qâ ¡àoàÊ कàv sçÀ tÁut Úâj âÎàÏuàçÞ कçý âv¥ - पदाथों को जानने के उपाय Presentation Developed by: Smt Sarika Chabra
  • 65. उदाहरण- सम्यग्दिवन • जीर्ाहद पदाथों का श्रद्धान सम्यग्दिवन हैंयनदेि- • सामान्य से जीर् , र्र्िेष से गयत आहद मेंस्र्ामी- • बाह्य- दिवन मोहनीय कमव का क्षय, उपिम या क्षयोपिम आहद • अभ्यंतर- जायतस्मरण आहदसाधन- • बाह्य- १ १४ राजु लम्बी त्रस नाड़ी • अभ्यंतर- सम्यग्दिवन का जो स्र्ामी हैआधधकरण – • जघन्य अन्तमुवहूतव एर्ं उत्कृ ष्ट प्स्थयत साहद अनन्त हैप्स्थयत- • सम्यग्दिवन १, २, ३, संख्यात, असंख्यात एर्ं अनन्त प्रकार का होता हैर्र्धान –
  • 66. àêÂàकàvàÂmÊ sàwàÌqrÑB¾wèÎjññ 8ññ ymî, yÞ©uà, ÕàçØà, ÐqÎàêÂà, कàv, ¡ÂmÊ, sàw ¡àèÊ ¡ÌqrÑB¾w yç sã yÈuªÀÎàêÂà ¡àâÀ âwxuàçÞ कà ÖààÂà Ñàçmà Ñèññ8ññPresentation Developed by: Smt Sarika Chabra
  • 67. र्र्स्तार रुधच मिष्यों के मलये पदाथों को जानने के उपाय सत् संख्या क्षेत्र स्पिवन काल अन्तर भार् अल्पबहुत्र् Presentation Developed by: Smt Sarika Chabra
  • 68. ymî ¡OÐm¾w yÞ©uà âªàÂàmã ÕàçØà wmêtàÂà âÂàwày ÐqÎàê Âà mãÂà कàvàçÞ tçÞ âwjʽà ÕàçØà कàv ¡wâo ¡ÞmÊ âwÊÑ कàv sàw qáʽààtPresentation Developed by: Smt Sarika Chabra
  • 69.  Reference : श्री गोम्मटसार जीर्काण्डजी, श्री जैनेन्द्रमसद्धान्त कोष, तत्त्र्ाथवसूत्रजी  Presentation created by : Smt. Sarika Vikas Chhabra  For updates / comments / feedback / suggestions, please contact sarikam.j@gmail.com : 0731-2410880 Presentation Developed by: Smt Sarika Chabra