SlideShare a Scribd company logo
1 of 34
वैिदक और उ र वैिदक धम
डॉ. िवराग सोनट े
सहायक ा ापक
ाचीन भारतीय इितहास, सं ृ ित और पुरात िवभाग
बनारस िहंदू िव ापीठ, वाराणसी
B.A. SEM III
वैिदक धम
ावना
• वैिदक धम का प ऋ ेद से ा होता है।
• ऋ ेद स ूण िव का ाचीनतम ंथ है।
• वेदों पर आच रत और अनुस रत धम
• अलौिकक त ों के रह ों को जानने के लए वेद आव क
• मनु:
a) चारों वण,
b) चारों आ म,
c) भूत तथा भिव और वतमान वेद से ही मा णत होते है।
• वेदों का रचनाकाल ईसा पूव १५०० से ११०० है।
• वैिदक काल सिदयों तक चलता रहा और प रवतनशील रहा
वैिदक धम(-भावना का उदय
• धािमक भावनाओं का उदय भय से
• कृ ित के भय से मु के लए उपासक
• कृ ित क िविवधताओं म देवताओं क क ना
• कृ ित क श यों म क क ना और उनक िवशालता से देव
का उदय
• कृ ित क श पर देवताओं के िनयं ण क क ना
• इंि यो और बा जगत से मु क प रक ना
• मैकड़ोनेल: सभी व ुय जो भय उ कर सक तथा ि य अथवा अि य
भाव उ कर सक वह सभी वैिदक काल म पूजनीय बन गयी।
1. आकाश, पृ ी, पवत,नािदया, पेड़-पौधे,
2. घोड़े, गाय, प ी, अ पशु
• भौितक जगत क उ और क ाण के लए
• उ खुश करने के लए मं , ुित गीतों क रचना
वैिदक देवता
• देवता: कोई िद श
• देव वह है,
1. जो कु छ देते है,
2. काशमान थे
3. दूसरों को काशमान करते है
4. जनमे असाधारण और िद श है
5. अमरता का वरदान
• या : लोकों म मण करने वाले, का शत होने वाले,भो आिद सुख चैन
सम पदाथ को दान करने वाले को देवता कहते है ।
• देवताओं को ऋचाओं म ाणी के प म द शत िकया है।
• उ मानवी प िदया है
• हर देवता को िकसी कृ ित से स जोड़ िदया है ।
• पृ ी, जल, अि ,वायु,सूय, चं , मेघ देव है, ोंिक ये संसार पर उपकार कर
रहे है ।
• वैिदक ऋिषयों ने देवताओं पर मं क रचना क है ।
देव/ का 0व1प
• देवों का प कृ ित पे िनभर है
• देवता ाकृ ितक श के मानवी प थे
• सूय, वायु, पृ ी, अि , व ण इं …।
• कु छ देवताओं का मानवीकरण आ (सूय, अि , उषा देवी,)
• देवों संबं धी परेखा क अिन तता तथा वैय तता का अभाव
सव द शत होता है ।
• देवताओं के प क क ना अ होने से ही उनक ितमा नही
मलती ।(मैकड़ोनेल)
• मानवी प: देव वेशभूषा, श ों, रथों, महल, से स त है
• ऋत के पोषक, नैितक, दयालु, कृ पालु
• इनका प समयानुसार बदलता रहता था ।
वैिदक देव-भावना का िवकास
ब देव-वाद Polytheism
• ाकृ ितक ेम, भय, श , रह मय घटनाय आिद को पूजनीय करने हेतु
सूय, चं , न आिद को देवता बनाया गया।
• ये अनेक देवता कृ ित क श यों के मानवी प थे।
• ाकृ ितक पदाथ को आ ंतर प क क ना क गयी, और मानव
समान देवों क शु वात हो गयी।
• अनेक देवताओं क पूजा के सू
• ऋ ेद से ऐसा लगता है क , ार क वैिदक धम ब देववादी था।
• ऋ ेद : एक ऋिष कहते है “संत जन उसे िव भ नाम से पुकारते है”।
• डा राधाकृ न: गहन धािमक भावना के णों म मनु जब िकसी
ाकृ ितक श यों से मु पाता है, तब ई र क उप ित क यथाथता
को समझता है।
• वैिदक देवतमंडल म ३००० से अ धक देवताओं क क ना क गयी।
एके रवाद Monotheism
• ूमफ़ : ब देववाद को ि या क जीवन म असमथ होने के कारण ही
एके रवाद क उ ई।
• िह रय ा के अनुसार: “जब वैिदक मानव अनुभूत त ों और घटनाओं का कारण
नाना देवों को मानने म संतु न हो सका, तब उस ई र को पाने के लए
य शील हो गया जो सव है, सबके ऊपर शासन करता हो और उनके ऊपर
िनयं ण करता हो।
• मानव का ई र के ित समपण तभी स व है, जब एक ही ई र क स ा को
ीकार िकया जाए।
• एके रवाद: एकमा जो यंभू हो। जो अिवनाशी हो। जो सम देवताओं म
उ तम हो।
• एके रवाद:
वह जो ना पु ष है, ना ी है, वह एक ऐसी स ा है, जो मानवी एवं ाकृ ितक सव
अव ाओं और बं धनो से मु ब त ऊँ ची ेणी क है।
i. इं
ii. अि
iii. मात र ा
iv. जापित
एके रवाद
• हापिकं स के अनुसार जगत के सृ ा के प म जापित अथवा परम
पु ष क क ना ही एके रवाद है।
• मै मूलर: ेक देवता को मश: पू मानकर ही,अ म सव
देवता/ई र तक प ँचा जा सकता है।
• एक देवता को मानने का यह अथ नही क अ देवताओं क स ा
का िनषेध िकया जाता हो, कभी-कभी छोटे देवता भी ऊँ चे पद पाते
थे।
• यह लखने वाले ऋिष/किवयों पर भी िनभर होता था,
• व ण : १) आकाश है, २) पृ लोक है, ३) वायुम ल है, ४) सम
िव है।
• अि : सवदेवता है।
• इं : सब देवों म महानतम
एका धदेववाद (Henotheism)
• जब देवता को जगत के िनमाता के प म समजा गया और अ
देवताओं क उ उससे मानी गयी तब एका धदेववाद का उदय
आ।
• मै मूलर: एका धदेववाद (हेनो थसम) का स ोधन िकया।
• एक देवता ब त कु छ दूसरे देवता के समान द शत िकए गए, िबना
देवताओं के उ ेख से ऋचाओं के देवता को पहचानना किठन हो गया
• वैिदक ऋिष जस देवता क ुित करते उसको सव े स करने का
यास करते।
• अ देवताओं क उपे ा करते।
• आधुिनक िहंदू धम का उदाहरण: एक सवश मान देव
• एक ािपत करने क सहज वृ क अ भ ।
• एक वाद क सूरवात
सव रवाद (Pantheism)
• िकसी देवता िवशेष को सव म, सव े प म ीकार
करने क वृ ही सव रवाद है।
• िकसी एक देवता को ायी प से सव म नही ीकार
िकया गया।
• ार म इं , िफर िव ु मुख देवता हो गये
• कभी सबको समेटकर “िव े देवा:” क क ना
• जापित को सव प र ान िदया गया ोंिक वह जीवों का
ामी था।
एक वाद (Monism)
• देवी-देवताओं क भीड़ बढ़ गयी।
• अ ेतवाद : एक ही आ ा का प
• या : सृि के मूल म एक ही श है जो िव श होने के कारण
“ई र” या “परमा ा” कही जाती है।
• सभी देवता एक ही “आ ा” के प है।
• सभी देवता एक ही परमा ा के प है और उसी आ ा का िव भ
कारों से पूजन होता है।
• एक का िन पण ऋ ेद के नासिदय सू म है, जसे आदरयु
श ों म भारतीय िवचारधारा का पु कहा गया है।
• एक वाद का चरम िवकास उ र वैिदक काल म ा ण क धारणा म
आ।
ऋत
• वैिदक मं ो म उ ान।
• ऋत: ित ा,िनयम और ाय व ा के त
• िव सबसे पहले ऋत का सजन था।
• ऋत: िव क व ा
• संसार के प रवतनशील म िनरंतर रहनेवाले ऋत क ही भ - भ अ भ है
• ऋत: सबका जनक
• ऋत: िव के ेक पदाथ क व ा ऋत से है।
• ऋत: िव क ाभािवक गित, ाभािवक ि या
• ऋत: ेक घटना होने पूव ही ऋत िव मान रहता है।
• काय: अशांित के ान पर शांित, िहंसा-अिहंसा, असमानता-समानता,
• सम देवता ऋत के पोषक
• यं देवता भी ऋत का पालन करते है।
• व ण को “ ऋत गोपा” कहा जाता है।
• सूय ऋत का ाजमान तीक है, वषा ऋत का ही च है, जल ोत ऋत के
अनुसार ही वािहत होते है।
• यह श इंडो-ईरानी ात होता है अवे ा ( डॉ. ि पाठी )
देव/ क3 सं6या
• वेदों म देवों क सं ा १ से लेकर ६ हज़ार तक बतायी है ।
• ऋ ेद: मूल प म एक ई र क स ा है, उसको ही िव ानो ने
इं ,व ण आिद नाम िदए है ।
• ऋ ेद म तीन मु देवता माने है, १) अि , २)वायु ३) सूय
• ऋ ेद और अथववेद म देवताओं क सं ा ३३ बतायी गयी है ।
• ११ ग, ११ पृ ी, ११ जल (११ x ३ = ३३)
• यजुवद के एक मं म ३३३९ देवता अि क पूजा करने का उ ेख
है ।
• अथववेद के एक मं म देवों क सं ा मशः ३३, ३००, ६०००
वैिदक देवों का वग करण
• या ने वैिदक देवों को ३ वग म िवभा जत िकया है ।
१) पृ ी: ानीय २) अ र ३) घु ानीय (आकाश)
1. पृ ी ानीय देवता: अि , सोम, बृह ित, ा, जापित,
िव कमा, आिदित-िदती देिवयाँ, निदयाँ आिद ।
2. अ र ानीय देवता: इं , वायु, मात र ा, , म त, पज ,
आप: (जल), अपांनपात, ि त-आ आिद
3. घु ानीय देवता: धौस, आिद , सिवता,सूय, म ,व ण,अ न,
अयमा आिद ।
मुख देव (पृ ी)• अि :
• ऋ ेद: २०० सू ( मुख देवता), २६८ नाम
• ३ पों म पूजनीय
१) भौितक (प र, जल, मेघ)
२) मानिवकृ त (घौस – पृ ी का पु , तेज जबड़े, णम दांत)
३) पशु (वृषभ,अ ,)
q भोजन: का +घी
q ज : ७
• अि मु प से य ीय अि का बोधक है।
• सभी य ों का आधार अि है : िव ,पुरोिहत, ऋ ज
• अि के िबन कोई भी दैवी काय अस व है।
• अि देवों दूत है और उनका मुख है
• अि ारा ही देव सम ों को हण करते है
• सभी देवों को उनका अंश प ँचता है
• अि का प िवराट है,
• अि मानवीय आवासों का ितिदन का अित थ है।
• पथो का ाता, धनुधर,
• पृ ी-आकाश: (माता-िपता)
• ार क प: गृह देवता
• उ र वैिदक: य ों के चलन से मुख देवता
सोम
• सोम वेदों के एक मुख देवता है
• ऋ ेद का नवम मंडल “पवमान सोम” है
• आधारभूत त :
• २ पों म पूजनीय
1. प : सोम
2. मानव प: यो ा,
• सोम को ओष ध का राजा कहा है।
• सोम को अजेय राजा कहा गया है
• वह यु ों म श ु-सेनाओं का नाशक है ।
• इं के साथ यु म शा मल
• सोम का अथ परमा ा भी लया गया है,उसे वृ -वन ित का
उ ादक, जल-पशुओं का जनक, अंधकार का नाशक, अंत र का
िव ारक कहा है ।
पृ#वी/'थानीय देवता
सोम
• सोमरस ु ितदायक, श वधक, बौ क श का वधक,
रोगनाशक भी था ।
• ऋ ेद: हमने सोमपान िकया और अमर हो गए ।
• सोमयाग म सोम रस का मु से उपयोग होता है, वैिदक कमकांड
का मुख अंग
• सोमलता : ऋ ेद अनुसार यह मुं जवत पवत पर होता है, तथा
• अथववेद: यह अंशुमती नदी के िकनारे है
• िहमालय, मह , मलय पवत आिद पर सोम के ा ान है ।
पृ ी/ ानीय देवता
बृह ित
• ऋ ेद: ११ सू ों म बृह ित का उ ेख
• बृह : बु , ा का ामी
• यह बु और ान के देवता है
• बु क सहायता से रा सों पर िवजय, ान पी देवों का
गु
• देवों के गु और पुरोिहत
• बृह ित यौ ा और यु -िवशारद है
• इं के साथ यु म सहयोग और रा सों पर िवजय
• देवों क िवजय म बड़ा योगदान
• आयुध: तीर,धनुष, कु ाड़ी, रथ
पृ#वी/'थानीय देवता
पृ ी
• ऋ ेद: १ सू
• ी देवी
• आकाश (घौस) के साथ उ ेख
• पवतों के भार को स ालती है
• वन ओषधी धारण करती है
• धरती को उवर बनती है
• घाजा-पृ ी (dhyajapruthvi): संयु देवता
पृ#वी/'थानीय देवता
अंत र देवता
इं
• वैिदक काल म एक मह पूण एवं तापी देवता
• ऋ ेद: २५० (अ देवों के साथ ५०)
• अथववेद: १००० मं
• प: १) यु का देवता २) वषा का देवता ३) रा सों का ह ा,४)
उ म शासक ५) सेनापित ६) य का अ ध त,
• नाम: पुरंदर, पुर भत, शत तु, नय(जनिहत कता),
• अ : व
• रसानु दान:
• १)वृि करना २) वृ वध ३) बलकृ ित : श वाले काय (नदी
बहाना)
इं
• आय का र क
• द ुओं का संहारक
• अनाय को आय करनेवाला
• उ म शासक
• जा का संर क
• सेनापित और सेना का संचालक
• गोपित
• इं ाणी, श चपित –प ी, पृ ी –माता, घौस:िपता
• सोमपान का अ धक सन
• ल े के स और दाढ़ी, वण: णम,भसों का मांस ि य
• उ र वैिदक काल म वषा के देवता के कारण भावशाली बने रहे।
अंत$र& देवता
• ऋ ेद, यजुवद और अथववेद के अनेक सू ों म का वणन है ।
• ापक वणन यजुवद के १६ वे अ ाय ( ा ाय) म है ।
• यजुवद: ११ ; १० इंि या + १ मन = जब ये शरीर छोड़कर िनकलते
है तो मृतक स ं धी दन होता है = इसी लए इ कहा जाता है ।
• यजुवद के पयायवाची: िगरीश, नीलि व, सह ा , पशुपित,
जगतपती, े पित, वनपती, वृ पित, सेनानी, गणपित, शव,
शंकर, शंभु, भाव, शरव, शितकं ठ, आिद ।
• अथववेद के पयायवाची: शव, यम, मृ ु, ब ु, िनलकं ठ,
पशुपित, आिद ।
अंत$र& देवता
• ऋ ेद: जलाषभेषक = जल- चिक ा-िवशेष
• यजुवद और अथववेद: १) महान यो ा २) कपद (जटाजुट वाले), ३) उ षी ४) थम दे
भषक: िद चिक क ५) ंबक कहा है ।
• धनुष िपनाक है, जो हज़ारों बाणों से यु है, जो सोने का बना है और हज़ारों को मार सकता है ।
• : पृ ी, आकाश और अंत र म सवतः ा है ।
• यजुवद:
1. पृ ी: अ
2. आकाश: वषा (जल)
3. अंत र : वायु
• तीन श याँ:
I. कतु : संसार को ज देना
II. भरतृ : पालन करना
III. हरतृ : संहार करना
का ् यही है क वह िवष पीते है और अमृत ( ाणवायु (H२O) देते है ।
रौ प का प: वह वनपती है, यिद वृ -वन ित नही रहगे तो ाणवायु के िबना मानव जाती का
िवनाश अटल है ।
अंत$र& देवता
म त
• वेदों म म त का ब त गुणगान है।
• इं के सहायक और साथी ।
• के पु
• यो ा, वीर, सैिनक, शशा ों से यु
• म त वायुदेव भी है, इनका उ प आँधी-तूफ़ान है ।
• वेदों म इनक सं ा “स -स ” ७ x ७= ४९ बतायी गयी है ।
• ऋ ेद: ये िव ुत (Electricity) देवता है, तेज और काश फै लाते है ।
• इनम चु क का गुण है ।
• म त िव ुत-चु क य े (Electro Magnetic Field) उ करते
है, अपने श से, िबना आधार के चलते है, प ी जैसे अंत र म
िवचरण करते है ।
अंत$र& देवता
आकाश देवता : सूय (सिवता)
• सिवता का अथ: संसार को ज देने वाला, ेरणा और ू ित देने
वाला ।
• सूय: गाय ी मं का देवता है ।
• काय:
1. बु को ेरणा देते है
2. ोित देते है
3. आकाश-पृ ी को काशमय करते है
4. मनु को दीघायु देते है
5. अंधकार को दूर करते है ।
• रथ पर बैठ कर संसार को ऊजा देते है ।
आकाश देवता
धौस
• ऋ ेद: ५०० बार उ ेख (अ देवताओं के साथ)
• आकाशीय देवता
• भारतीय काल का देवता
• ऋ ेद : उषा, अ न,अि , सूय, पज ,आिद आिद के
जनक और पृ ी के पित।
• सूय-अि के िपता के प मे भी सू म वणन है।
• घावा –पृ ी: िपता-माता
िव ु
• िव ु का उ ेख ऋ ेद, यजुवद और अथववेद के अनेक सू ों म
है ।
• वह सव ा है इसी लए िव ु कहलाते है
• यजुवद: वह अपनी िकरणो से पृ ी को चारों और से रोके ए है
(िव ु सूय के लए है)।
• तीन पग: ात:, म ांह, सायं (सूय दय से सूया नापना)
• ि भुज (Triangle Theory): सारा िव िवशाल ि भुज है, इसक
तीन भजाए पृ ी, आकाश और अंत र है ।
आकाश देवता
व ण
• ऋ ेद, यजुवद और अथववेद के अनेक सू ों म व ण का वणन है ।
• ऋ ेद के महानतम देव, १२ तं सू ों म ुित
• यजुवद: धमपती ( ाय और िनयमो का देवता)
• अथववेद: सव , सवश मान और सव ापक है । पृ ी और आकाश व ण के शासन म है, वह
सं सार का राजा है । वह जल के कण-कण म समािहत है ।
• ऋ ेद: व ण के राज ार म १००० ख े है,भवन म १००० ार है ।
• व ण सब देखता है, सब मनु ों का record रखता है ।
• व ण के दूत बड़े बल है, वह सब गु वाता जानता है उसे कोई धोखा नही दे सकता ।
• अथववेद: व ण का घर जल म है, उसका भवन सोने का है ।
• अथववेद: व ण ाय का अ ध ाता होने से उसके ाय के िनयमो को “पाश”(बं धन-बेिड़याँ) कहा
गया है ।
• तीन कार के पाश १) उ म (अित कठोर), २) म म (कठोर), ३) अधम (सामा )
• पाशों का उपाय:
1. स भाषण
2. स वहार
3. िन ाप
4. नैितक आचरण
5. अ े कम
आकाश देवता
व ण
• इं क अपे ा इ अ धक बार स ाट कहा गया है।
• इनके पास महान राज ासाद है,
• व ण को “िव ” (सव Úि रखने वाला)
• व ण सम देवों म नैितक Úि से सव े था ।
• उसे अ धक िनमल एवं पिव देवता कहा गया है ।
• नैितक आचरणों से उसक कृ पा ा क जा सकती थी ।
• वषा करना उसका गुण एवं काय है ।
• व ण - म िनकट संबं धत देवता है ।
अ न /अ नी
• ऋ ेद: ५० से अ धक सू ों म अ नों का वणन है।
• चरो वेदों म सेकडों सू ों म अ िनकु मारो का वणन है।
• ये युगल देवता है।
• या : अ न: अश ( ा होना)= सव ा है।
• यजुवद: राि और उषा के सम त प को अ न कहते है।
• ऋ ेद : अ न देवों के वै और अ त चिक क है।
• उदाहरण १) च न ऋिष को वृ से युवा बनाया २) तु के पु को समु म डूबने से बचाया ३) यु म
िव पला क टांग काटने पर कृ ि म पैर लगाया ४)दधी च का सर काटकर उसके ान पर घोड़े का सर
लगाया।
• अ नी देव सूय के पु ी सूय के पित है।
• उनके पास तगित रथ है, जो ितनो लोकों म चल सकता है। समु और पवत ितनो जगह या ा कर सकता
है।
आकाश देवता
अ न के दो भ गुण- मों वाले त ों का सम त प है।
Positive Negative
काशमय अंधकारमय
धना क ऋणा क
शु कृ
अि त धान सो मय त धान
अतः अ न कण –कण म ा है ।
अ देवता
ऊषस (उषा) म पूषन (पूषा) पज
आकाश देवता आकाश देवता आकाश देवता अंत र देवता
मनोरम का ा क वणन, सूय
क प ी
ऋ: १ सू ( तं ) अ
व ण के साथ
ऋ: ८ सू ऋ+ अ= कई सू
ातः काल से संबं ध, ितिदन
तज पर उदय होके संसार म
नवचेतना, उ ाह,
ू ित दान करती है ।
गुण:
१) मनु को उ मी करते
है,
२) लोगों को एकता के सू
म बांधते है,
सूयपु ी सूया का पित
गुण:
पशुपालक, तेजोमय,
पज : वषाक़ालीन मेघ ।
मेघों का गरजना, िबजली,
चमकना, वषा का बरसाना,
वृ -वन ित का सचेतन
नाम/ पहचान:
१) सुभगा: सौभा वती,
म + व ण के साथ ुित
क गयी है ।
मनु के बु को शु
करते है,
अ -स दा देने के कारण इ
श शाली िपता कहते है ।
२) रेवती: वैभवस
३) चेता: - बु मती
४) मघोनी: दानशील
म : सूय क positive
श लेते है । िदन से
स
सा क भावना देते है। पज के मानवीकरण के प
म उ “वृषभ” के प म
िदखाते है ।
उषा अमर का तीक है उसे
“अमृत के तु: (अमर का
च ) कहा है ।
व ण: सूय क negative
श लेते है । रात से
स
पूषा: श +साम +पुि
दान करते है ।
आयुध: श शाली “व ”
उषा और राि बहने है, माग का र क,
चोर-लुटेरों से र ा
म त देव पज के सहायक
है, वे उ यथा ान प ँचाते
है ।
उपसंहार
• वैिदक देव कृ ित , तेज, काश तथा श के तीक
• देवता उदार, सव ,नैितक,दयालु, अमर के गुणों से यु
• पािपयों को दंड तथा सदाचा रयो को वैभव दान करनेवाले ।
• ऋत और स के िनयामक
• तं मानवीकरण का अभाव।
• एक ही कार के गुण और श यों का चलन
• देवताओं क मह ाओं म प रवतन
• ऋ ेद : अि , व ण मुख देवता
• उ रवैिदक: इं , मुख देवता
• क अवधारणा का िवकास उ र वैिदक काल म Úि गत
• उ रवैिदक: य ों का देवताओं से ादा मह

More Related Content

What's hot

शैव सम्प्रदाय
शैव सम्प्रदाय शैव सम्प्रदाय
शैव सम्प्रदाय Virag Sontakke
 
अवतारवाद
अवतारवाद  अवतारवाद
अवतारवाद Virag Sontakke
 
व्रत एवं दान
व्रत एवं दान व्रत एवं दान
व्रत एवं दान Virag Sontakke
 
वैष्णव धर्म
वैष्णव धर्म वैष्णव धर्म
वैष्णव धर्म Virag Sontakke
 
Religion and sacrifice of later vedic period
Religion and sacrifice of later vedic periodReligion and sacrifice of later vedic period
Religion and sacrifice of later vedic periodVirag Sontakke
 
Religion of vedic and later vedic
Religion of vedic and later vedic Religion of vedic and later vedic
Religion of vedic and later vedic Virag Sontakke
 
सौर सम्प्रदाय
सौर सम्प्रदाय सौर सम्प्रदाय
सौर सम्प्रदाय Virag Sontakke
 
प्रयाग तीर्थ
प्रयाग तीर्थ प्रयाग तीर्थ
प्रयाग तीर्थ Virag Sontakke
 
शाक्त धर्म .pptx
शाक्त धर्म .pptxशाक्त धर्म .pptx
शाक्त धर्म .pptxVirag Sontakke
 
Later vedik sacrifices
Later vedik sacrificesLater vedik sacrifices
Later vedik sacrificesVirag Sontakke
 
उत्तर वैदिक यज्ञ .pptx
उत्तर वैदिक यज्ञ  .pptxउत्तर वैदिक यज्ञ  .pptx
उत्तर वैदिक यज्ञ .pptxVirag Sontakke
 
Later Vedic religion new.pdf
Later Vedic religion new.pdfLater Vedic religion new.pdf
Later Vedic religion new.pdfPrachiSontakke5
 
पूर्व-मध्य कालीन अर्थव्यवस्था की विशेषताएँ .pptx
पूर्व-मध्य कालीन अर्थव्यवस्था की विशेषताएँ  .pptxपूर्व-मध्य कालीन अर्थव्यवस्था की विशेषताएँ  .pptx
पूर्व-मध्य कालीन अर्थव्यवस्था की विशेषताएँ .pptxVirag Sontakke
 

What's hot (20)

शैव सम्प्रदाय
शैव सम्प्रदाय शैव सम्प्रदाय
शैव सम्प्रदाय
 
Shaiva Cult
Shaiva CultShaiva Cult
Shaiva Cult
 
अवतारवाद
अवतारवाद  अवतारवाद
अवतारवाद
 
व्रत एवं दान
व्रत एवं दान व्रत एवं दान
व्रत एवं दान
 
वैष्णव धर्म
वैष्णव धर्म वैष्णव धर्म
वैष्णव धर्म
 
Religion and sacrifice of later vedic period
Religion and sacrifice of later vedic periodReligion and sacrifice of later vedic period
Religion and sacrifice of later vedic period
 
Religion of vedic and later vedic
Religion of vedic and later vedic Religion of vedic and later vedic
Religion of vedic and later vedic
 
सौर सम्प्रदाय
सौर सम्प्रदाय सौर सम्प्रदाय
सौर सम्प्रदाय
 
प्रयाग तीर्थ
प्रयाग तीर्थ प्रयाग तीर्थ
प्रयाग तीर्थ
 
Primitive Religion
Primitive ReligionPrimitive Religion
Primitive Religion
 
Avatarvad
AvatarvadAvatarvad
Avatarvad
 
शाक्त धर्म .pptx
शाक्त धर्म .pptxशाक्त धर्म .pptx
शाक्त धर्म .pptx
 
Later vedik sacrifices
Later vedik sacrificesLater vedik sacrifices
Later vedik sacrifices
 
Avatarvaada.pdf
Avatarvaada.pdfAvatarvaada.pdf
Avatarvaada.pdf
 
उत्तर वैदिक यज्ञ .pptx
उत्तर वैदिक यज्ञ  .pptxउत्तर वैदिक यज्ञ  .pptx
उत्तर वैदिक यज्ञ .pptx
 
shaiva pdf.pdf
shaiva pdf.pdfshaiva pdf.pdf
shaiva pdf.pdf
 
banking.pdf
banking.pdfbanking.pdf
banking.pdf
 
Later Vedic religion new.pdf
Later Vedic religion new.pdfLater Vedic religion new.pdf
Later Vedic religion new.pdf
 
पूर्व-मध्य कालीन अर्थव्यवस्था की विशेषताएँ .pptx
पूर्व-मध्य कालीन अर्थव्यवस्था की विशेषताएँ  .pptxपूर्व-मध्य कालीन अर्थव्यवस्था की विशेषताएँ  .pptx
पूर्व-मध्य कालीन अर्थव्यवस्था की विशेषताएँ .pptx
 
Syadwad-Anekantwad
Syadwad-AnekantwadSyadwad-Anekantwad
Syadwad-Anekantwad
 

Similar to Early and later vaidik religion

उत्तर वैदिक यज्ञ .pptx
उत्तर वैदिक यज्ञ  .pptxउत्तर वैदिक यज्ञ  .pptx
उत्तर वैदिक यज्ञ .pptxVirag Sontakke
 
Chhand 4-9
Chhand 4-9Chhand 4-9
Chhand 4-9Jainkosh
 
BJS E-Bulletin | Edition 35 | 05 June 2020 | Environment Protection
BJS E-Bulletin | Edition 35 | 05 June 2020 | Environment ProtectionBJS E-Bulletin | Edition 35 | 05 June 2020 | Environment Protection
BJS E-Bulletin | Edition 35 | 05 June 2020 | Environment ProtectionBharatiya Jain Sanghatana
 
नाड़ी एवं चक्र.pptx
नाड़ी एवं चक्र.pptxनाड़ी एवं चक्र.pptx
नाड़ी एवं चक्र.pptxVeenaMoondra
 
Sutra 36-53
Sutra 36-53Sutra 36-53
Sutra 36-53Jainkosh
 
Sutra 26-33
Sutra 26-33Sutra 26-33
Sutra 26-33Jainkosh
 
dharm nature and meaning
dharm nature and meaningdharm nature and meaning
dharm nature and meaningPrachiSontakke5
 
Gati Margna
Gati MargnaGati Margna
Gati MargnaJainkosh
 
वैदिक संस्कृति pdf
वैदिक संस्कृति pdf वैदिक संस्कृति pdf
वैदिक संस्कृति pdf sachin vats
 
हड़प्पा सभ्यता का धार्मिक जीवन (YOGENDRA MEROTHA).pptx
हड़प्पा सभ्यता का धार्मिक जीवन (YOGENDRA MEROTHA).pptxहड़प्पा सभ्यता का धार्मिक जीवन (YOGENDRA MEROTHA).pptx
हड़प्पा सभ्यता का धार्मिक जीवन (YOGENDRA MEROTHA).pptxAbvp2
 
बृहदारण्यक उपनिषद.pptx
बृहदारण्यक उपनिषद.pptxबृहदारण्यक उपनिषद.pptx
बृहदारण्यक उपनिषद.pptxJiyaSingh28
 
GyanMargna - Matigyan
GyanMargna - MatigyanGyanMargna - Matigyan
GyanMargna - MatigyanJainkosh
 
Sutra 8-35
Sutra 8-35Sutra 8-35
Sutra 8-35Jainkosh
 
वैदिक अर्थव्यवस्था.pptx, प्राचीन भारतीय वैदिक अर्थव्यवस्था.pptx
वैदिक अर्थव्यवस्था.pptx, प्राचीन भारतीय वैदिक अर्थव्यवस्था.pptxवैदिक अर्थव्यवस्था.pptx, प्राचीन भारतीय वैदिक अर्थव्यवस्था.pptx
वैदिक अर्थव्यवस्था.pptx, प्राचीन भारतीय वैदिक अर्थव्यवस्था.pptxVirag Sontakke
 

Similar to Early and later vaidik religion (20)

Vishnu cult
Vishnu cult Vishnu cult
Vishnu cult
 
उत्तर वैदिक यज्ञ .pptx
उत्तर वैदिक यज्ञ  .pptxउत्तर वैदिक यज्ञ  .pptx
उत्तर वैदिक यज्ञ .pptx
 
Qci ved Upnishad Agam Puran
Qci ved Upnishad Agam PuranQci ved Upnishad Agam Puran
Qci ved Upnishad Agam Puran
 
Guna first year
Guna first year Guna first year
Guna first year
 
BJS e-Bulletin
BJS e-Bulletin BJS e-Bulletin
BJS e-Bulletin
 
Chhand 4-9
Chhand 4-9Chhand 4-9
Chhand 4-9
 
BJS E-Bulletin | Edition 35 | 05 June 2020 | Environment Protection
BJS E-Bulletin | Edition 35 | 05 June 2020 | Environment ProtectionBJS E-Bulletin | Edition 35 | 05 June 2020 | Environment Protection
BJS E-Bulletin | Edition 35 | 05 June 2020 | Environment Protection
 
नाड़ी एवं चक्र.pptx
नाड़ी एवं चक्र.pptxनाड़ी एवं चक्र.pptx
नाड़ी एवं चक्र.pptx
 
Sutra 36-53
Sutra 36-53Sutra 36-53
Sutra 36-53
 
Sutra 26-33
Sutra 26-33Sutra 26-33
Sutra 26-33
 
dharm nature and meaning
dharm nature and meaningdharm nature and meaning
dharm nature and meaning
 
legal institutions.pdf
legal institutions.pdflegal institutions.pdf
legal institutions.pdf
 
Gati Margna
Gati MargnaGati Margna
Gati Margna
 
वैदिक संस्कृति pdf
वैदिक संस्कृति pdf वैदिक संस्कृति pdf
वैदिक संस्कृति pdf
 
हड़प्पा सभ्यता का धार्मिक जीवन (YOGENDRA MEROTHA).pptx
हड़प्पा सभ्यता का धार्मिक जीवन (YOGENDRA MEROTHA).pptxहड़प्पा सभ्यता का धार्मिक जीवन (YOGENDRA MEROTHA).pptx
हड़प्पा सभ्यता का धार्मिक जीवन (YOGENDRA MEROTHA).pptx
 
बृहदारण्यक उपनिषद.pptx
बृहदारण्यक उपनिषद.pptxबृहदारण्यक उपनिषद.pptx
बृहदारण्यक उपनिषद.pptx
 
Mimansa philosophy
Mimansa philosophyMimansa philosophy
Mimansa philosophy
 
GyanMargna - Matigyan
GyanMargna - MatigyanGyanMargna - Matigyan
GyanMargna - Matigyan
 
Sutra 8-35
Sutra 8-35Sutra 8-35
Sutra 8-35
 
वैदिक अर्थव्यवस्था.pptx, प्राचीन भारतीय वैदिक अर्थव्यवस्था.pptx
वैदिक अर्थव्यवस्था.pptx, प्राचीन भारतीय वैदिक अर्थव्यवस्था.pptxवैदिक अर्थव्यवस्था.pptx, प्राचीन भारतीय वैदिक अर्थव्यवस्था.pptx
वैदिक अर्थव्यवस्था.pptx, प्राचीन भारतीय वैदिक अर्थव्यवस्था.pptx
 

More from Virag Sontakke

समुद्री व्यापार.pptx Maritime Trade in India
समुद्री व्यापार.pptx Maritime Trade in Indiaसमुद्री व्यापार.pptx Maritime Trade in India
समुद्री व्यापार.pptx Maritime Trade in IndiaVirag Sontakke
 
Military Administration and Ethics of War .pdf
Military Administration and Ethics of War .pdfMilitary Administration and Ethics of War .pdf
Military Administration and Ethics of War .pdfVirag Sontakke
 
Megalithic Culture of India, Megalithic Culture of Penisular India
Megalithic Culture of India, Megalithic Culture of Penisular IndiaMegalithic Culture of India, Megalithic Culture of Penisular India
Megalithic Culture of India, Megalithic Culture of Penisular IndiaVirag Sontakke
 
Painted Grey Ware.pptx, PGW Culture of India
Painted Grey Ware.pptx, PGW Culture of IndiaPainted Grey Ware.pptx, PGW Culture of India
Painted Grey Ware.pptx, PGW Culture of IndiaVirag Sontakke
 
भारत-रोम व्यापार.pptx, Indo-Roman Trade,
भारत-रोम व्यापार.pptx, Indo-Roman Trade,भारत-रोम व्यापार.pptx, Indo-Roman Trade,
भारत-रोम व्यापार.pptx, Indo-Roman Trade,Virag Sontakke
 
गुप्त कालीन अर्थव्यवस्था .pptx, Economy of Gupta Period
गुप्त कालीन अर्थव्यवस्था .pptx, Economy of Gupta Periodगुप्त कालीन अर्थव्यवस्था .pptx, Economy of Gupta Period
गुप्त कालीन अर्थव्यवस्था .pptx, Economy of Gupta PeriodVirag Sontakke
 
Odisha Temple Architecture .pptx
Odisha Temple Architecture .pptxOdisha Temple Architecture .pptx
Odisha Temple Architecture .pptxVirag Sontakke
 
Kandariya Mahadev Temple.pdf
Kandariya Mahadev Temple.pdfKandariya Mahadev Temple.pdf
Kandariya Mahadev Temple.pdfVirag Sontakke
 
Temple Architecture of Early Chalukyas “Pattadkal” .pptx
Temple Architecture of Early Chalukyas “Pattadkal”   .pptxTemple Architecture of Early Chalukyas “Pattadkal”   .pptx
Temple Architecture of Early Chalukyas “Pattadkal” .pptxVirag Sontakke
 
Origin of physical form and structures in Indian architecture.pptx
Origin of physical form and structures in Indian architecture.pptxOrigin of physical form and structures in Indian architecture.pptx
Origin of physical form and structures in Indian architecture.pptxVirag Sontakke
 
KONARK SUN TEMPLE.pptx
KONARK SUN TEMPLE.pptxKONARK SUN TEMPLE.pptx
KONARK SUN TEMPLE.pptxVirag Sontakke
 
Ellora Caves 16.46.42.pptx
Ellora Caves 16.46.42.pptxEllora Caves 16.46.42.pptx
Ellora Caves 16.46.42.pptxVirag Sontakke
 
Ellora cave no 10 .pptx
Ellora cave no 10 .pptxEllora cave no 10 .pptx
Ellora cave no 10 .pptxVirag Sontakke
 
Beginning of Rock-cut Architecture- Sudama Cave, Lomas Rishi, Bhaja, Kondane...
Beginning of Rock-cut Architecture- Sudama Cave, Lomas Rishi, Bhaja,  Kondane...Beginning of Rock-cut Architecture- Sudama Cave, Lomas Rishi, Bhaja,  Kondane...
Beginning of Rock-cut Architecture- Sudama Cave, Lomas Rishi, Bhaja, Kondane...Virag Sontakke
 
Town Planning depicted in Kautilya Arthashatra.pptx
Town Planning depicted in Kautilya Arthashatra.pptxTown Planning depicted in Kautilya Arthashatra.pptx
Town Planning depicted in Kautilya Arthashatra.pptxVirag Sontakke
 
Collection- Nature, Purchase.pptx
Collection- Nature, Purchase.pptxCollection- Nature, Purchase.pptx
Collection- Nature, Purchase.pptxVirag Sontakke
 

More from Virag Sontakke (20)

समुद्री व्यापार.pptx Maritime Trade in India
समुद्री व्यापार.pptx Maritime Trade in Indiaसमुद्री व्यापार.pptx Maritime Trade in India
समुद्री व्यापार.pptx Maritime Trade in India
 
Military Administration and Ethics of War .pdf
Military Administration and Ethics of War .pdfMilitary Administration and Ethics of War .pdf
Military Administration and Ethics of War .pdf
 
Megalithic Culture of India, Megalithic Culture of Penisular India
Megalithic Culture of India, Megalithic Culture of Penisular IndiaMegalithic Culture of India, Megalithic Culture of Penisular India
Megalithic Culture of India, Megalithic Culture of Penisular India
 
Painted Grey Ware.pptx, PGW Culture of India
Painted Grey Ware.pptx, PGW Culture of IndiaPainted Grey Ware.pptx, PGW Culture of India
Painted Grey Ware.pptx, PGW Culture of India
 
भारत-रोम व्यापार.pptx, Indo-Roman Trade,
भारत-रोम व्यापार.pptx, Indo-Roman Trade,भारत-रोम व्यापार.pptx, Indo-Roman Trade,
भारत-रोम व्यापार.pptx, Indo-Roman Trade,
 
गुप्त कालीन अर्थव्यवस्था .pptx, Economy of Gupta Period
गुप्त कालीन अर्थव्यवस्था .pptx, Economy of Gupta Periodगुप्त कालीन अर्थव्यवस्था .pptx, Economy of Gupta Period
गुप्त कालीन अर्थव्यवस्था .pptx, Economy of Gupta Period
 
Odisha Temple Architecture .pptx
Odisha Temple Architecture .pptxOdisha Temple Architecture .pptx
Odisha Temple Architecture .pptx
 
Kandariya Mahadev Temple.pdf
Kandariya Mahadev Temple.pdfKandariya Mahadev Temple.pdf
Kandariya Mahadev Temple.pdf
 
Temple Architecture of Early Chalukyas “Pattadkal” .pptx
Temple Architecture of Early Chalukyas “Pattadkal”   .pptxTemple Architecture of Early Chalukyas “Pattadkal”   .pptx
Temple Architecture of Early Chalukyas “Pattadkal” .pptx
 
Pallava Ratha.pptx
Pallava Ratha.pptxPallava Ratha.pptx
Pallava Ratha.pptx
 
Origin of physical form and structures in Indian architecture.pptx
Origin of physical form and structures in Indian architecture.pptxOrigin of physical form and structures in Indian architecture.pptx
Origin of physical form and structures in Indian architecture.pptx
 
KONARK SUN TEMPLE.pptx
KONARK SUN TEMPLE.pptxKONARK SUN TEMPLE.pptx
KONARK SUN TEMPLE.pptx
 
Ellora Caves 16.46.42.pptx
Ellora Caves 16.46.42.pptxEllora Caves 16.46.42.pptx
Ellora Caves 16.46.42.pptx
 
Ellora cave no 10 .pptx
Ellora cave no 10 .pptxEllora cave no 10 .pptx
Ellora cave no 10 .pptx
 
Beginning of Rock-cut Architecture- Sudama Cave, Lomas Rishi, Bhaja, Kondane...
Beginning of Rock-cut Architecture- Sudama Cave, Lomas Rishi, Bhaja,  Kondane...Beginning of Rock-cut Architecture- Sudama Cave, Lomas Rishi, Bhaja,  Kondane...
Beginning of Rock-cut Architecture- Sudama Cave, Lomas Rishi, Bhaja, Kondane...
 
Pataliputra.pptx
Pataliputra.pptxPataliputra.pptx
Pataliputra.pptx
 
Rajgriha town.pptx
Rajgriha town.pptxRajgriha town.pptx
Rajgriha town.pptx
 
Town Planning depicted in Kautilya Arthashatra.pptx
Town Planning depicted in Kautilya Arthashatra.pptxTown Planning depicted in Kautilya Arthashatra.pptx
Town Planning depicted in Kautilya Arthashatra.pptx
 
Collection- Nature, Purchase.pptx
Collection- Nature, Purchase.pptxCollection- Nature, Purchase.pptx
Collection- Nature, Purchase.pptx
 
Kashmir Neolthic.pptx
Kashmir Neolthic.pptxKashmir Neolthic.pptx
Kashmir Neolthic.pptx
 

Early and later vaidik religion

  • 1. वैिदक और उ र वैिदक धम डॉ. िवराग सोनट े सहायक ा ापक ाचीन भारतीय इितहास, सं ृ ित और पुरात िवभाग बनारस िहंदू िव ापीठ, वाराणसी B.A. SEM III
  • 3. ावना • वैिदक धम का प ऋ ेद से ा होता है। • ऋ ेद स ूण िव का ाचीनतम ंथ है। • वेदों पर आच रत और अनुस रत धम • अलौिकक त ों के रह ों को जानने के लए वेद आव क • मनु: a) चारों वण, b) चारों आ म, c) भूत तथा भिव और वतमान वेद से ही मा णत होते है। • वेदों का रचनाकाल ईसा पूव १५०० से ११०० है। • वैिदक काल सिदयों तक चलता रहा और प रवतनशील रहा
  • 4.
  • 5. वैिदक धम(-भावना का उदय • धािमक भावनाओं का उदय भय से • कृ ित के भय से मु के लए उपासक • कृ ित क िविवधताओं म देवताओं क क ना • कृ ित क श यों म क क ना और उनक िवशालता से देव का उदय • कृ ित क श पर देवताओं के िनयं ण क क ना • इंि यो और बा जगत से मु क प रक ना • मैकड़ोनेल: सभी व ुय जो भय उ कर सक तथा ि य अथवा अि य भाव उ कर सक वह सभी वैिदक काल म पूजनीय बन गयी। 1. आकाश, पृ ी, पवत,नािदया, पेड़-पौधे, 2. घोड़े, गाय, प ी, अ पशु • भौितक जगत क उ और क ाण के लए • उ खुश करने के लए मं , ुित गीतों क रचना
  • 6. वैिदक देवता • देवता: कोई िद श • देव वह है, 1. जो कु छ देते है, 2. काशमान थे 3. दूसरों को काशमान करते है 4. जनमे असाधारण और िद श है 5. अमरता का वरदान • या : लोकों म मण करने वाले, का शत होने वाले,भो आिद सुख चैन सम पदाथ को दान करने वाले को देवता कहते है । • देवताओं को ऋचाओं म ाणी के प म द शत िकया है। • उ मानवी प िदया है • हर देवता को िकसी कृ ित से स जोड़ िदया है । • पृ ी, जल, अि ,वायु,सूय, चं , मेघ देव है, ोंिक ये संसार पर उपकार कर रहे है । • वैिदक ऋिषयों ने देवताओं पर मं क रचना क है ।
  • 7. देव/ का 0व1प • देवों का प कृ ित पे िनभर है • देवता ाकृ ितक श के मानवी प थे • सूय, वायु, पृ ी, अि , व ण इं …। • कु छ देवताओं का मानवीकरण आ (सूय, अि , उषा देवी,) • देवों संबं धी परेखा क अिन तता तथा वैय तता का अभाव सव द शत होता है । • देवताओं के प क क ना अ होने से ही उनक ितमा नही मलती ।(मैकड़ोनेल) • मानवी प: देव वेशभूषा, श ों, रथों, महल, से स त है • ऋत के पोषक, नैितक, दयालु, कृ पालु • इनका प समयानुसार बदलता रहता था ।
  • 8. वैिदक देव-भावना का िवकास ब देव-वाद Polytheism • ाकृ ितक ेम, भय, श , रह मय घटनाय आिद को पूजनीय करने हेतु सूय, चं , न आिद को देवता बनाया गया। • ये अनेक देवता कृ ित क श यों के मानवी प थे। • ाकृ ितक पदाथ को आ ंतर प क क ना क गयी, और मानव समान देवों क शु वात हो गयी। • अनेक देवताओं क पूजा के सू • ऋ ेद से ऐसा लगता है क , ार क वैिदक धम ब देववादी था। • ऋ ेद : एक ऋिष कहते है “संत जन उसे िव भ नाम से पुकारते है”। • डा राधाकृ न: गहन धािमक भावना के णों म मनु जब िकसी ाकृ ितक श यों से मु पाता है, तब ई र क उप ित क यथाथता को समझता है। • वैिदक देवतमंडल म ३००० से अ धक देवताओं क क ना क गयी।
  • 9. एके रवाद Monotheism • ूमफ़ : ब देववाद को ि या क जीवन म असमथ होने के कारण ही एके रवाद क उ ई। • िह रय ा के अनुसार: “जब वैिदक मानव अनुभूत त ों और घटनाओं का कारण नाना देवों को मानने म संतु न हो सका, तब उस ई र को पाने के लए य शील हो गया जो सव है, सबके ऊपर शासन करता हो और उनके ऊपर िनयं ण करता हो। • मानव का ई र के ित समपण तभी स व है, जब एक ही ई र क स ा को ीकार िकया जाए। • एके रवाद: एकमा जो यंभू हो। जो अिवनाशी हो। जो सम देवताओं म उ तम हो। • एके रवाद: वह जो ना पु ष है, ना ी है, वह एक ऐसी स ा है, जो मानवी एवं ाकृ ितक सव अव ाओं और बं धनो से मु ब त ऊँ ची ेणी क है। i. इं ii. अि iii. मात र ा iv. जापित
  • 10. एके रवाद • हापिकं स के अनुसार जगत के सृ ा के प म जापित अथवा परम पु ष क क ना ही एके रवाद है। • मै मूलर: ेक देवता को मश: पू मानकर ही,अ म सव देवता/ई र तक प ँचा जा सकता है। • एक देवता को मानने का यह अथ नही क अ देवताओं क स ा का िनषेध िकया जाता हो, कभी-कभी छोटे देवता भी ऊँ चे पद पाते थे। • यह लखने वाले ऋिष/किवयों पर भी िनभर होता था, • व ण : १) आकाश है, २) पृ लोक है, ३) वायुम ल है, ४) सम िव है। • अि : सवदेवता है। • इं : सब देवों म महानतम
  • 11. एका धदेववाद (Henotheism) • जब देवता को जगत के िनमाता के प म समजा गया और अ देवताओं क उ उससे मानी गयी तब एका धदेववाद का उदय आ। • मै मूलर: एका धदेववाद (हेनो थसम) का स ोधन िकया। • एक देवता ब त कु छ दूसरे देवता के समान द शत िकए गए, िबना देवताओं के उ ेख से ऋचाओं के देवता को पहचानना किठन हो गया • वैिदक ऋिष जस देवता क ुित करते उसको सव े स करने का यास करते। • अ देवताओं क उपे ा करते। • आधुिनक िहंदू धम का उदाहरण: एक सवश मान देव • एक ािपत करने क सहज वृ क अ भ । • एक वाद क सूरवात
  • 12. सव रवाद (Pantheism) • िकसी देवता िवशेष को सव म, सव े प म ीकार करने क वृ ही सव रवाद है। • िकसी एक देवता को ायी प से सव म नही ीकार िकया गया। • ार म इं , िफर िव ु मुख देवता हो गये • कभी सबको समेटकर “िव े देवा:” क क ना • जापित को सव प र ान िदया गया ोंिक वह जीवों का ामी था।
  • 13. एक वाद (Monism) • देवी-देवताओं क भीड़ बढ़ गयी। • अ ेतवाद : एक ही आ ा का प • या : सृि के मूल म एक ही श है जो िव श होने के कारण “ई र” या “परमा ा” कही जाती है। • सभी देवता एक ही “आ ा” के प है। • सभी देवता एक ही परमा ा के प है और उसी आ ा का िव भ कारों से पूजन होता है। • एक का िन पण ऋ ेद के नासिदय सू म है, जसे आदरयु श ों म भारतीय िवचारधारा का पु कहा गया है। • एक वाद का चरम िवकास उ र वैिदक काल म ा ण क धारणा म आ।
  • 14. ऋत • वैिदक मं ो म उ ान। • ऋत: ित ा,िनयम और ाय व ा के त • िव सबसे पहले ऋत का सजन था। • ऋत: िव क व ा • संसार के प रवतनशील म िनरंतर रहनेवाले ऋत क ही भ - भ अ भ है • ऋत: सबका जनक • ऋत: िव के ेक पदाथ क व ा ऋत से है। • ऋत: िव क ाभािवक गित, ाभािवक ि या • ऋत: ेक घटना होने पूव ही ऋत िव मान रहता है। • काय: अशांित के ान पर शांित, िहंसा-अिहंसा, असमानता-समानता, • सम देवता ऋत के पोषक • यं देवता भी ऋत का पालन करते है। • व ण को “ ऋत गोपा” कहा जाता है। • सूय ऋत का ाजमान तीक है, वषा ऋत का ही च है, जल ोत ऋत के अनुसार ही वािहत होते है। • यह श इंडो-ईरानी ात होता है अवे ा ( डॉ. ि पाठी )
  • 15. देव/ क3 सं6या • वेदों म देवों क सं ा १ से लेकर ६ हज़ार तक बतायी है । • ऋ ेद: मूल प म एक ई र क स ा है, उसको ही िव ानो ने इं ,व ण आिद नाम िदए है । • ऋ ेद म तीन मु देवता माने है, १) अि , २)वायु ३) सूय • ऋ ेद और अथववेद म देवताओं क सं ा ३३ बतायी गयी है । • ११ ग, ११ पृ ी, ११ जल (११ x ३ = ३३) • यजुवद के एक मं म ३३३९ देवता अि क पूजा करने का उ ेख है । • अथववेद के एक मं म देवों क सं ा मशः ३३, ३००, ६०००
  • 16. वैिदक देवों का वग करण • या ने वैिदक देवों को ३ वग म िवभा जत िकया है । १) पृ ी: ानीय २) अ र ३) घु ानीय (आकाश) 1. पृ ी ानीय देवता: अि , सोम, बृह ित, ा, जापित, िव कमा, आिदित-िदती देिवयाँ, निदयाँ आिद । 2. अ र ानीय देवता: इं , वायु, मात र ा, , म त, पज , आप: (जल), अपांनपात, ि त-आ आिद 3. घु ानीय देवता: धौस, आिद , सिवता,सूय, म ,व ण,अ न, अयमा आिद ।
  • 17. मुख देव (पृ ी)• अि : • ऋ ेद: २०० सू ( मुख देवता), २६८ नाम • ३ पों म पूजनीय १) भौितक (प र, जल, मेघ) २) मानिवकृ त (घौस – पृ ी का पु , तेज जबड़े, णम दांत) ३) पशु (वृषभ,अ ,) q भोजन: का +घी q ज : ७ • अि मु प से य ीय अि का बोधक है। • सभी य ों का आधार अि है : िव ,पुरोिहत, ऋ ज • अि के िबन कोई भी दैवी काय अस व है। • अि देवों दूत है और उनका मुख है • अि ारा ही देव सम ों को हण करते है • सभी देवों को उनका अंश प ँचता है • अि का प िवराट है, • अि मानवीय आवासों का ितिदन का अित थ है। • पथो का ाता, धनुधर, • पृ ी-आकाश: (माता-िपता) • ार क प: गृह देवता • उ र वैिदक: य ों के चलन से मुख देवता
  • 18. सोम • सोम वेदों के एक मुख देवता है • ऋ ेद का नवम मंडल “पवमान सोम” है • आधारभूत त : • २ पों म पूजनीय 1. प : सोम 2. मानव प: यो ा, • सोम को ओष ध का राजा कहा है। • सोम को अजेय राजा कहा गया है • वह यु ों म श ु-सेनाओं का नाशक है । • इं के साथ यु म शा मल • सोम का अथ परमा ा भी लया गया है,उसे वृ -वन ित का उ ादक, जल-पशुओं का जनक, अंधकार का नाशक, अंत र का िव ारक कहा है । पृ#वी/'थानीय देवता
  • 19. सोम • सोमरस ु ितदायक, श वधक, बौ क श का वधक, रोगनाशक भी था । • ऋ ेद: हमने सोमपान िकया और अमर हो गए । • सोमयाग म सोम रस का मु से उपयोग होता है, वैिदक कमकांड का मुख अंग • सोमलता : ऋ ेद अनुसार यह मुं जवत पवत पर होता है, तथा • अथववेद: यह अंशुमती नदी के िकनारे है • िहमालय, मह , मलय पवत आिद पर सोम के ा ान है । पृ ी/ ानीय देवता
  • 20. बृह ित • ऋ ेद: ११ सू ों म बृह ित का उ ेख • बृह : बु , ा का ामी • यह बु और ान के देवता है • बु क सहायता से रा सों पर िवजय, ान पी देवों का गु • देवों के गु और पुरोिहत • बृह ित यौ ा और यु -िवशारद है • इं के साथ यु म सहयोग और रा सों पर िवजय • देवों क िवजय म बड़ा योगदान • आयुध: तीर,धनुष, कु ाड़ी, रथ पृ#वी/'थानीय देवता
  • 21. पृ ी • ऋ ेद: १ सू • ी देवी • आकाश (घौस) के साथ उ ेख • पवतों के भार को स ालती है • वन ओषधी धारण करती है • धरती को उवर बनती है • घाजा-पृ ी (dhyajapruthvi): संयु देवता पृ#वी/'थानीय देवता
  • 22. अंत र देवता इं • वैिदक काल म एक मह पूण एवं तापी देवता • ऋ ेद: २५० (अ देवों के साथ ५०) • अथववेद: १००० मं • प: १) यु का देवता २) वषा का देवता ३) रा सों का ह ा,४) उ म शासक ५) सेनापित ६) य का अ ध त, • नाम: पुरंदर, पुर भत, शत तु, नय(जनिहत कता), • अ : व • रसानु दान: • १)वृि करना २) वृ वध ३) बलकृ ित : श वाले काय (नदी बहाना)
  • 23. इं • आय का र क • द ुओं का संहारक • अनाय को आय करनेवाला • उ म शासक • जा का संर क • सेनापित और सेना का संचालक • गोपित • इं ाणी, श चपित –प ी, पृ ी –माता, घौस:िपता • सोमपान का अ धक सन • ल े के स और दाढ़ी, वण: णम,भसों का मांस ि य • उ र वैिदक काल म वषा के देवता के कारण भावशाली बने रहे। अंत$र& देवता
  • 24. • ऋ ेद, यजुवद और अथववेद के अनेक सू ों म का वणन है । • ापक वणन यजुवद के १६ वे अ ाय ( ा ाय) म है । • यजुवद: ११ ; १० इंि या + १ मन = जब ये शरीर छोड़कर िनकलते है तो मृतक स ं धी दन होता है = इसी लए इ कहा जाता है । • यजुवद के पयायवाची: िगरीश, नीलि व, सह ा , पशुपित, जगतपती, े पित, वनपती, वृ पित, सेनानी, गणपित, शव, शंकर, शंभु, भाव, शरव, शितकं ठ, आिद । • अथववेद के पयायवाची: शव, यम, मृ ु, ब ु, िनलकं ठ, पशुपित, आिद । अंत$र& देवता
  • 25. • ऋ ेद: जलाषभेषक = जल- चिक ा-िवशेष • यजुवद और अथववेद: १) महान यो ा २) कपद (जटाजुट वाले), ३) उ षी ४) थम दे भषक: िद चिक क ५) ंबक कहा है । • धनुष िपनाक है, जो हज़ारों बाणों से यु है, जो सोने का बना है और हज़ारों को मार सकता है । • : पृ ी, आकाश और अंत र म सवतः ा है । • यजुवद: 1. पृ ी: अ 2. आकाश: वषा (जल) 3. अंत र : वायु • तीन श याँ: I. कतु : संसार को ज देना II. भरतृ : पालन करना III. हरतृ : संहार करना का ् यही है क वह िवष पीते है और अमृत ( ाणवायु (H२O) देते है । रौ प का प: वह वनपती है, यिद वृ -वन ित नही रहगे तो ाणवायु के िबना मानव जाती का िवनाश अटल है । अंत$र& देवता
  • 26. म त • वेदों म म त का ब त गुणगान है। • इं के सहायक और साथी । • के पु • यो ा, वीर, सैिनक, शशा ों से यु • म त वायुदेव भी है, इनका उ प आँधी-तूफ़ान है । • वेदों म इनक सं ा “स -स ” ७ x ७= ४९ बतायी गयी है । • ऋ ेद: ये िव ुत (Electricity) देवता है, तेज और काश फै लाते है । • इनम चु क का गुण है । • म त िव ुत-चु क य े (Electro Magnetic Field) उ करते है, अपने श से, िबना आधार के चलते है, प ी जैसे अंत र म िवचरण करते है । अंत$र& देवता
  • 27. आकाश देवता : सूय (सिवता) • सिवता का अथ: संसार को ज देने वाला, ेरणा और ू ित देने वाला । • सूय: गाय ी मं का देवता है । • काय: 1. बु को ेरणा देते है 2. ोित देते है 3. आकाश-पृ ी को काशमय करते है 4. मनु को दीघायु देते है 5. अंधकार को दूर करते है । • रथ पर बैठ कर संसार को ऊजा देते है । आकाश देवता
  • 28. धौस • ऋ ेद: ५०० बार उ ेख (अ देवताओं के साथ) • आकाशीय देवता • भारतीय काल का देवता • ऋ ेद : उषा, अ न,अि , सूय, पज ,आिद आिद के जनक और पृ ी के पित। • सूय-अि के िपता के प मे भी सू म वणन है। • घावा –पृ ी: िपता-माता
  • 29. िव ु • िव ु का उ ेख ऋ ेद, यजुवद और अथववेद के अनेक सू ों म है । • वह सव ा है इसी लए िव ु कहलाते है • यजुवद: वह अपनी िकरणो से पृ ी को चारों और से रोके ए है (िव ु सूय के लए है)। • तीन पग: ात:, म ांह, सायं (सूय दय से सूया नापना) • ि भुज (Triangle Theory): सारा िव िवशाल ि भुज है, इसक तीन भजाए पृ ी, आकाश और अंत र है । आकाश देवता
  • 30. व ण • ऋ ेद, यजुवद और अथववेद के अनेक सू ों म व ण का वणन है । • ऋ ेद के महानतम देव, १२ तं सू ों म ुित • यजुवद: धमपती ( ाय और िनयमो का देवता) • अथववेद: सव , सवश मान और सव ापक है । पृ ी और आकाश व ण के शासन म है, वह सं सार का राजा है । वह जल के कण-कण म समािहत है । • ऋ ेद: व ण के राज ार म १००० ख े है,भवन म १००० ार है । • व ण सब देखता है, सब मनु ों का record रखता है । • व ण के दूत बड़े बल है, वह सब गु वाता जानता है उसे कोई धोखा नही दे सकता । • अथववेद: व ण का घर जल म है, उसका भवन सोने का है । • अथववेद: व ण ाय का अ ध ाता होने से उसके ाय के िनयमो को “पाश”(बं धन-बेिड़याँ) कहा गया है । • तीन कार के पाश १) उ म (अित कठोर), २) म म (कठोर), ३) अधम (सामा ) • पाशों का उपाय: 1. स भाषण 2. स वहार 3. िन ाप 4. नैितक आचरण 5. अ े कम आकाश देवता
  • 31. व ण • इं क अपे ा इ अ धक बार स ाट कहा गया है। • इनके पास महान राज ासाद है, • व ण को “िव ” (सव Úि रखने वाला) • व ण सम देवों म नैितक Úि से सव े था । • उसे अ धक िनमल एवं पिव देवता कहा गया है । • नैितक आचरणों से उसक कृ पा ा क जा सकती थी । • वषा करना उसका गुण एवं काय है । • व ण - म िनकट संबं धत देवता है ।
  • 32. अ न /अ नी • ऋ ेद: ५० से अ धक सू ों म अ नों का वणन है। • चरो वेदों म सेकडों सू ों म अ िनकु मारो का वणन है। • ये युगल देवता है। • या : अ न: अश ( ा होना)= सव ा है। • यजुवद: राि और उषा के सम त प को अ न कहते है। • ऋ ेद : अ न देवों के वै और अ त चिक क है। • उदाहरण १) च न ऋिष को वृ से युवा बनाया २) तु के पु को समु म डूबने से बचाया ३) यु म िव पला क टांग काटने पर कृ ि म पैर लगाया ४)दधी च का सर काटकर उसके ान पर घोड़े का सर लगाया। • अ नी देव सूय के पु ी सूय के पित है। • उनके पास तगित रथ है, जो ितनो लोकों म चल सकता है। समु और पवत ितनो जगह या ा कर सकता है। आकाश देवता अ न के दो भ गुण- मों वाले त ों का सम त प है। Positive Negative काशमय अंधकारमय धना क ऋणा क शु कृ अि त धान सो मय त धान अतः अ न कण –कण म ा है ।
  • 33. अ देवता ऊषस (उषा) म पूषन (पूषा) पज आकाश देवता आकाश देवता आकाश देवता अंत र देवता मनोरम का ा क वणन, सूय क प ी ऋ: १ सू ( तं ) अ व ण के साथ ऋ: ८ सू ऋ+ अ= कई सू ातः काल से संबं ध, ितिदन तज पर उदय होके संसार म नवचेतना, उ ाह, ू ित दान करती है । गुण: १) मनु को उ मी करते है, २) लोगों को एकता के सू म बांधते है, सूयपु ी सूया का पित गुण: पशुपालक, तेजोमय, पज : वषाक़ालीन मेघ । मेघों का गरजना, िबजली, चमकना, वषा का बरसाना, वृ -वन ित का सचेतन नाम/ पहचान: १) सुभगा: सौभा वती, म + व ण के साथ ुित क गयी है । मनु के बु को शु करते है, अ -स दा देने के कारण इ श शाली िपता कहते है । २) रेवती: वैभवस ३) चेता: - बु मती ४) मघोनी: दानशील म : सूय क positive श लेते है । िदन से स सा क भावना देते है। पज के मानवीकरण के प म उ “वृषभ” के प म िदखाते है । उषा अमर का तीक है उसे “अमृत के तु: (अमर का च ) कहा है । व ण: सूय क negative श लेते है । रात से स पूषा: श +साम +पुि दान करते है । आयुध: श शाली “व ” उषा और राि बहने है, माग का र क, चोर-लुटेरों से र ा म त देव पज के सहायक है, वे उ यथा ान प ँचाते है ।
  • 34. उपसंहार • वैिदक देव कृ ित , तेज, काश तथा श के तीक • देवता उदार, सव ,नैितक,दयालु, अमर के गुणों से यु • पािपयों को दंड तथा सदाचा रयो को वैभव दान करनेवाले । • ऋत और स के िनयामक • तं मानवीकरण का अभाव। • एक ही कार के गुण और श यों का चलन • देवताओं क मह ाओं म प रवतन • ऋ ेद : अि , व ण मुख देवता • उ रवैिदक: इं , मुख देवता • क अवधारणा का िवकास उ र वैिदक काल म Úि गत • उ रवैिदक: य ों का देवताओं से ादा मह