3. ावना
• वैिदक धम का प ऋ ेद से ा होता है।
• ऋ ेद स ूण िव का ाचीनतम ंथ है।
• वेदों पर आच रत और अनुस रत धम
• अलौिकक त ों के रह ों को जानने के लए वेद आव क
• मनु:
a) चारों वण,
b) चारों आ म,
c) भूत तथा भिव और वतमान वेद से ही मा णत होते है।
• वेदों का रचनाकाल ईसा पूव १५०० से ११०० है।
• वैिदक काल सिदयों तक चलता रहा और प रवतनशील रहा
4.
5. वैिदक धम(-भावना का उदय
• धािमक भावनाओं का उदय भय से
• कृ ित के भय से मु के लए उपासक
• कृ ित क िविवधताओं म देवताओं क क ना
• कृ ित क श यों म क क ना और उनक िवशालता से देव
का उदय
• कृ ित क श पर देवताओं के िनयं ण क क ना
• इंि यो और बा जगत से मु क प रक ना
• मैकड़ोनेल: सभी व ुय जो भय उ कर सक तथा ि य अथवा अि य
भाव उ कर सक वह सभी वैिदक काल म पूजनीय बन गयी।
1. आकाश, पृ ी, पवत,नािदया, पेड़-पौधे,
2. घोड़े, गाय, प ी, अ पशु
• भौितक जगत क उ और क ाण के लए
• उ खुश करने के लए मं , ुित गीतों क रचना
6. वैिदक देवता
• देवता: कोई िद श
• देव वह है,
1. जो कु छ देते है,
2. काशमान थे
3. दूसरों को काशमान करते है
4. जनमे असाधारण और िद श है
5. अमरता का वरदान
• या : लोकों म मण करने वाले, का शत होने वाले,भो आिद सुख चैन
सम पदाथ को दान करने वाले को देवता कहते है ।
• देवताओं को ऋचाओं म ाणी के प म द शत िकया है।
• उ मानवी प िदया है
• हर देवता को िकसी कृ ित से स जोड़ िदया है ।
• पृ ी, जल, अि ,वायु,सूय, चं , मेघ देव है, ोंिक ये संसार पर उपकार कर
रहे है ।
• वैिदक ऋिषयों ने देवताओं पर मं क रचना क है ।
7. देव/ का 0व1प
• देवों का प कृ ित पे िनभर है
• देवता ाकृ ितक श के मानवी प थे
• सूय, वायु, पृ ी, अि , व ण इं …।
• कु छ देवताओं का मानवीकरण आ (सूय, अि , उषा देवी,)
• देवों संबं धी परेखा क अिन तता तथा वैय तता का अभाव
सव द शत होता है ।
• देवताओं के प क क ना अ होने से ही उनक ितमा नही
मलती ।(मैकड़ोनेल)
• मानवी प: देव वेशभूषा, श ों, रथों, महल, से स त है
• ऋत के पोषक, नैितक, दयालु, कृ पालु
• इनका प समयानुसार बदलता रहता था ।
8. वैिदक देव-भावना का िवकास
ब देव-वाद Polytheism
• ाकृ ितक ेम, भय, श , रह मय घटनाय आिद को पूजनीय करने हेतु
सूय, चं , न आिद को देवता बनाया गया।
• ये अनेक देवता कृ ित क श यों के मानवी प थे।
• ाकृ ितक पदाथ को आ ंतर प क क ना क गयी, और मानव
समान देवों क शु वात हो गयी।
• अनेक देवताओं क पूजा के सू
• ऋ ेद से ऐसा लगता है क , ार क वैिदक धम ब देववादी था।
• ऋ ेद : एक ऋिष कहते है “संत जन उसे िव भ नाम से पुकारते है”।
• डा राधाकृ न: गहन धािमक भावना के णों म मनु जब िकसी
ाकृ ितक श यों से मु पाता है, तब ई र क उप ित क यथाथता
को समझता है।
• वैिदक देवतमंडल म ३००० से अ धक देवताओं क क ना क गयी।
9. एके रवाद Monotheism
• ूमफ़ : ब देववाद को ि या क जीवन म असमथ होने के कारण ही
एके रवाद क उ ई।
• िह रय ा के अनुसार: “जब वैिदक मानव अनुभूत त ों और घटनाओं का कारण
नाना देवों को मानने म संतु न हो सका, तब उस ई र को पाने के लए
य शील हो गया जो सव है, सबके ऊपर शासन करता हो और उनके ऊपर
िनयं ण करता हो।
• मानव का ई र के ित समपण तभी स व है, जब एक ही ई र क स ा को
ीकार िकया जाए।
• एके रवाद: एकमा जो यंभू हो। जो अिवनाशी हो। जो सम देवताओं म
उ तम हो।
• एके रवाद:
वह जो ना पु ष है, ना ी है, वह एक ऐसी स ा है, जो मानवी एवं ाकृ ितक सव
अव ाओं और बं धनो से मु ब त ऊँ ची ेणी क है।
i. इं
ii. अि
iii. मात र ा
iv. जापित
10. एके रवाद
• हापिकं स के अनुसार जगत के सृ ा के प म जापित अथवा परम
पु ष क क ना ही एके रवाद है।
• मै मूलर: ेक देवता को मश: पू मानकर ही,अ म सव
देवता/ई र तक प ँचा जा सकता है।
• एक देवता को मानने का यह अथ नही क अ देवताओं क स ा
का िनषेध िकया जाता हो, कभी-कभी छोटे देवता भी ऊँ चे पद पाते
थे।
• यह लखने वाले ऋिष/किवयों पर भी िनभर होता था,
• व ण : १) आकाश है, २) पृ लोक है, ३) वायुम ल है, ४) सम
िव है।
• अि : सवदेवता है।
• इं : सब देवों म महानतम
11. एका धदेववाद (Henotheism)
• जब देवता को जगत के िनमाता के प म समजा गया और अ
देवताओं क उ उससे मानी गयी तब एका धदेववाद का उदय
आ।
• मै मूलर: एका धदेववाद (हेनो थसम) का स ोधन िकया।
• एक देवता ब त कु छ दूसरे देवता के समान द शत िकए गए, िबना
देवताओं के उ ेख से ऋचाओं के देवता को पहचानना किठन हो गया
• वैिदक ऋिष जस देवता क ुित करते उसको सव े स करने का
यास करते।
• अ देवताओं क उपे ा करते।
• आधुिनक िहंदू धम का उदाहरण: एक सवश मान देव
• एक ािपत करने क सहज वृ क अ भ ।
• एक वाद क सूरवात
12. सव रवाद (Pantheism)
• िकसी देवता िवशेष को सव म, सव े प म ीकार
करने क वृ ही सव रवाद है।
• िकसी एक देवता को ायी प से सव म नही ीकार
िकया गया।
• ार म इं , िफर िव ु मुख देवता हो गये
• कभी सबको समेटकर “िव े देवा:” क क ना
• जापित को सव प र ान िदया गया ोंिक वह जीवों का
ामी था।
13. एक वाद (Monism)
• देवी-देवताओं क भीड़ बढ़ गयी।
• अ ेतवाद : एक ही आ ा का प
• या : सृि के मूल म एक ही श है जो िव श होने के कारण
“ई र” या “परमा ा” कही जाती है।
• सभी देवता एक ही “आ ा” के प है।
• सभी देवता एक ही परमा ा के प है और उसी आ ा का िव भ
कारों से पूजन होता है।
• एक का िन पण ऋ ेद के नासिदय सू म है, जसे आदरयु
श ों म भारतीय िवचारधारा का पु कहा गया है।
• एक वाद का चरम िवकास उ र वैिदक काल म ा ण क धारणा म
आ।
14. ऋत
• वैिदक मं ो म उ ान।
• ऋत: ित ा,िनयम और ाय व ा के त
• िव सबसे पहले ऋत का सजन था।
• ऋत: िव क व ा
• संसार के प रवतनशील म िनरंतर रहनेवाले ऋत क ही भ - भ अ भ है
• ऋत: सबका जनक
• ऋत: िव के ेक पदाथ क व ा ऋत से है।
• ऋत: िव क ाभािवक गित, ाभािवक ि या
• ऋत: ेक घटना होने पूव ही ऋत िव मान रहता है।
• काय: अशांित के ान पर शांित, िहंसा-अिहंसा, असमानता-समानता,
• सम देवता ऋत के पोषक
• यं देवता भी ऋत का पालन करते है।
• व ण को “ ऋत गोपा” कहा जाता है।
• सूय ऋत का ाजमान तीक है, वषा ऋत का ही च है, जल ोत ऋत के
अनुसार ही वािहत होते है।
• यह श इंडो-ईरानी ात होता है अवे ा ( डॉ. ि पाठी )
15. देव/ क3 सं6या
• वेदों म देवों क सं ा १ से लेकर ६ हज़ार तक बतायी है ।
• ऋ ेद: मूल प म एक ई र क स ा है, उसको ही िव ानो ने
इं ,व ण आिद नाम िदए है ।
• ऋ ेद म तीन मु देवता माने है, १) अि , २)वायु ३) सूय
• ऋ ेद और अथववेद म देवताओं क सं ा ३३ बतायी गयी है ।
• ११ ग, ११ पृ ी, ११ जल (११ x ३ = ३३)
• यजुवद के एक मं म ३३३९ देवता अि क पूजा करने का उ ेख
है ।
• अथववेद के एक मं म देवों क सं ा मशः ३३, ३००, ६०००
16. वैिदक देवों का वग करण
• या ने वैिदक देवों को ३ वग म िवभा जत िकया है ।
१) पृ ी: ानीय २) अ र ३) घु ानीय (आकाश)
1. पृ ी ानीय देवता: अि , सोम, बृह ित, ा, जापित,
िव कमा, आिदित-िदती देिवयाँ, निदयाँ आिद ।
2. अ र ानीय देवता: इं , वायु, मात र ा, , म त, पज ,
आप: (जल), अपांनपात, ि त-आ आिद
3. घु ानीय देवता: धौस, आिद , सिवता,सूय, म ,व ण,अ न,
अयमा आिद ।
17. मुख देव (पृ ी)• अि :
• ऋ ेद: २०० सू ( मुख देवता), २६८ नाम
• ३ पों म पूजनीय
१) भौितक (प र, जल, मेघ)
२) मानिवकृ त (घौस – पृ ी का पु , तेज जबड़े, णम दांत)
३) पशु (वृषभ,अ ,)
q भोजन: का +घी
q ज : ७
• अि मु प से य ीय अि का बोधक है।
• सभी य ों का आधार अि है : िव ,पुरोिहत, ऋ ज
• अि के िबन कोई भी दैवी काय अस व है।
• अि देवों दूत है और उनका मुख है
• अि ारा ही देव सम ों को हण करते है
• सभी देवों को उनका अंश प ँचता है
• अि का प िवराट है,
• अि मानवीय आवासों का ितिदन का अित थ है।
• पथो का ाता, धनुधर,
• पृ ी-आकाश: (माता-िपता)
• ार क प: गृह देवता
• उ र वैिदक: य ों के चलन से मुख देवता
18. सोम
• सोम वेदों के एक मुख देवता है
• ऋ ेद का नवम मंडल “पवमान सोम” है
• आधारभूत त :
• २ पों म पूजनीय
1. प : सोम
2. मानव प: यो ा,
• सोम को ओष ध का राजा कहा है।
• सोम को अजेय राजा कहा गया है
• वह यु ों म श ु-सेनाओं का नाशक है ।
• इं के साथ यु म शा मल
• सोम का अथ परमा ा भी लया गया है,उसे वृ -वन ित का
उ ादक, जल-पशुओं का जनक, अंधकार का नाशक, अंत र का
िव ारक कहा है ।
पृ#वी/'थानीय देवता
19. सोम
• सोमरस ु ितदायक, श वधक, बौ क श का वधक,
रोगनाशक भी था ।
• ऋ ेद: हमने सोमपान िकया और अमर हो गए ।
• सोमयाग म सोम रस का मु से उपयोग होता है, वैिदक कमकांड
का मुख अंग
• सोमलता : ऋ ेद अनुसार यह मुं जवत पवत पर होता है, तथा
• अथववेद: यह अंशुमती नदी के िकनारे है
• िहमालय, मह , मलय पवत आिद पर सोम के ा ान है ।
पृ ी/ ानीय देवता
20. बृह ित
• ऋ ेद: ११ सू ों म बृह ित का उ ेख
• बृह : बु , ा का ामी
• यह बु और ान के देवता है
• बु क सहायता से रा सों पर िवजय, ान पी देवों का
गु
• देवों के गु और पुरोिहत
• बृह ित यौ ा और यु -िवशारद है
• इं के साथ यु म सहयोग और रा सों पर िवजय
• देवों क िवजय म बड़ा योगदान
• आयुध: तीर,धनुष, कु ाड़ी, रथ
पृ#वी/'थानीय देवता
21. पृ ी
• ऋ ेद: १ सू
• ी देवी
• आकाश (घौस) के साथ उ ेख
• पवतों के भार को स ालती है
• वन ओषधी धारण करती है
• धरती को उवर बनती है
• घाजा-पृ ी (dhyajapruthvi): संयु देवता
पृ#वी/'थानीय देवता
22. अंत र देवता
इं
• वैिदक काल म एक मह पूण एवं तापी देवता
• ऋ ेद: २५० (अ देवों के साथ ५०)
• अथववेद: १००० मं
• प: १) यु का देवता २) वषा का देवता ३) रा सों का ह ा,४)
उ म शासक ५) सेनापित ६) य का अ ध त,
• नाम: पुरंदर, पुर भत, शत तु, नय(जनिहत कता),
• अ : व
• रसानु दान:
• १)वृि करना २) वृ वध ३) बलकृ ित : श वाले काय (नदी
बहाना)
23. इं
• आय का र क
• द ुओं का संहारक
• अनाय को आय करनेवाला
• उ म शासक
• जा का संर क
• सेनापित और सेना का संचालक
• गोपित
• इं ाणी, श चपित –प ी, पृ ी –माता, घौस:िपता
• सोमपान का अ धक सन
• ल े के स और दाढ़ी, वण: णम,भसों का मांस ि य
• उ र वैिदक काल म वषा के देवता के कारण भावशाली बने रहे।
अंत$र& देवता
24. • ऋ ेद, यजुवद और अथववेद के अनेक सू ों म का वणन है ।
• ापक वणन यजुवद के १६ वे अ ाय ( ा ाय) म है ।
• यजुवद: ११ ; १० इंि या + १ मन = जब ये शरीर छोड़कर िनकलते
है तो मृतक स ं धी दन होता है = इसी लए इ कहा जाता है ।
• यजुवद के पयायवाची: िगरीश, नीलि व, सह ा , पशुपित,
जगतपती, े पित, वनपती, वृ पित, सेनानी, गणपित, शव,
शंकर, शंभु, भाव, शरव, शितकं ठ, आिद ।
• अथववेद के पयायवाची: शव, यम, मृ ु, ब ु, िनलकं ठ,
पशुपित, आिद ।
अंत$र& देवता
25. • ऋ ेद: जलाषभेषक = जल- चिक ा-िवशेष
• यजुवद और अथववेद: १) महान यो ा २) कपद (जटाजुट वाले), ३) उ षी ४) थम दे
भषक: िद चिक क ५) ंबक कहा है ।
• धनुष िपनाक है, जो हज़ारों बाणों से यु है, जो सोने का बना है और हज़ारों को मार सकता है ।
• : पृ ी, आकाश और अंत र म सवतः ा है ।
• यजुवद:
1. पृ ी: अ
2. आकाश: वषा (जल)
3. अंत र : वायु
• तीन श याँ:
I. कतु : संसार को ज देना
II. भरतृ : पालन करना
III. हरतृ : संहार करना
का ् यही है क वह िवष पीते है और अमृत ( ाणवायु (H२O) देते है ।
रौ प का प: वह वनपती है, यिद वृ -वन ित नही रहगे तो ाणवायु के िबना मानव जाती का
िवनाश अटल है ।
अंत$र& देवता
26. म त
• वेदों म म त का ब त गुणगान है।
• इं के सहायक और साथी ।
• के पु
• यो ा, वीर, सैिनक, शशा ों से यु
• म त वायुदेव भी है, इनका उ प आँधी-तूफ़ान है ।
• वेदों म इनक सं ा “स -स ” ७ x ७= ४९ बतायी गयी है ।
• ऋ ेद: ये िव ुत (Electricity) देवता है, तेज और काश फै लाते है ।
• इनम चु क का गुण है ।
• म त िव ुत-चु क य े (Electro Magnetic Field) उ करते
है, अपने श से, िबना आधार के चलते है, प ी जैसे अंत र म
िवचरण करते है ।
अंत$र& देवता
27. आकाश देवता : सूय (सिवता)
• सिवता का अथ: संसार को ज देने वाला, ेरणा और ू ित देने
वाला ।
• सूय: गाय ी मं का देवता है ।
• काय:
1. बु को ेरणा देते है
2. ोित देते है
3. आकाश-पृ ी को काशमय करते है
4. मनु को दीघायु देते है
5. अंधकार को दूर करते है ।
• रथ पर बैठ कर संसार को ऊजा देते है ।
आकाश देवता
28. धौस
• ऋ ेद: ५०० बार उ ेख (अ देवताओं के साथ)
• आकाशीय देवता
• भारतीय काल का देवता
• ऋ ेद : उषा, अ न,अि , सूय, पज ,आिद आिद के
जनक और पृ ी के पित।
• सूय-अि के िपता के प मे भी सू म वणन है।
• घावा –पृ ी: िपता-माता
29. िव ु
• िव ु का उ ेख ऋ ेद, यजुवद और अथववेद के अनेक सू ों म
है ।
• वह सव ा है इसी लए िव ु कहलाते है
• यजुवद: वह अपनी िकरणो से पृ ी को चारों और से रोके ए है
(िव ु सूय के लए है)।
• तीन पग: ात:, म ांह, सायं (सूय दय से सूया नापना)
• ि भुज (Triangle Theory): सारा िव िवशाल ि भुज है, इसक
तीन भजाए पृ ी, आकाश और अंत र है ।
आकाश देवता
30. व ण
• ऋ ेद, यजुवद और अथववेद के अनेक सू ों म व ण का वणन है ।
• ऋ ेद के महानतम देव, १२ तं सू ों म ुित
• यजुवद: धमपती ( ाय और िनयमो का देवता)
• अथववेद: सव , सवश मान और सव ापक है । पृ ी और आकाश व ण के शासन म है, वह
सं सार का राजा है । वह जल के कण-कण म समािहत है ।
• ऋ ेद: व ण के राज ार म १००० ख े है,भवन म १००० ार है ।
• व ण सब देखता है, सब मनु ों का record रखता है ।
• व ण के दूत बड़े बल है, वह सब गु वाता जानता है उसे कोई धोखा नही दे सकता ।
• अथववेद: व ण का घर जल म है, उसका भवन सोने का है ।
• अथववेद: व ण ाय का अ ध ाता होने से उसके ाय के िनयमो को “पाश”(बं धन-बेिड़याँ) कहा
गया है ।
• तीन कार के पाश १) उ म (अित कठोर), २) म म (कठोर), ३) अधम (सामा )
• पाशों का उपाय:
1. स भाषण
2. स वहार
3. िन ाप
4. नैितक आचरण
5. अ े कम
आकाश देवता
31. व ण
• इं क अपे ा इ अ धक बार स ाट कहा गया है।
• इनके पास महान राज ासाद है,
• व ण को “िव ” (सव Úि रखने वाला)
• व ण सम देवों म नैितक Úि से सव े था ।
• उसे अ धक िनमल एवं पिव देवता कहा गया है ।
• नैितक आचरणों से उसक कृ पा ा क जा सकती थी ।
• वषा करना उसका गुण एवं काय है ।
• व ण - म िनकट संबं धत देवता है ।
32. अ न /अ नी
• ऋ ेद: ५० से अ धक सू ों म अ नों का वणन है।
• चरो वेदों म सेकडों सू ों म अ िनकु मारो का वणन है।
• ये युगल देवता है।
• या : अ न: अश ( ा होना)= सव ा है।
• यजुवद: राि और उषा के सम त प को अ न कहते है।
• ऋ ेद : अ न देवों के वै और अ त चिक क है।
• उदाहरण १) च न ऋिष को वृ से युवा बनाया २) तु के पु को समु म डूबने से बचाया ३) यु म
िव पला क टांग काटने पर कृ ि म पैर लगाया ४)दधी च का सर काटकर उसके ान पर घोड़े का सर
लगाया।
• अ नी देव सूय के पु ी सूय के पित है।
• उनके पास तगित रथ है, जो ितनो लोकों म चल सकता है। समु और पवत ितनो जगह या ा कर सकता
है।
आकाश देवता
अ न के दो भ गुण- मों वाले त ों का सम त प है।
Positive Negative
काशमय अंधकारमय
धना क ऋणा क
शु कृ
अि त धान सो मय त धान
अतः अ न कण –कण म ा है ।
33. अ देवता
ऊषस (उषा) म पूषन (पूषा) पज
आकाश देवता आकाश देवता आकाश देवता अंत र देवता
मनोरम का ा क वणन, सूय
क प ी
ऋ: १ सू ( तं ) अ
व ण के साथ
ऋ: ८ सू ऋ+ अ= कई सू
ातः काल से संबं ध, ितिदन
तज पर उदय होके संसार म
नवचेतना, उ ाह,
ू ित दान करती है ।
गुण:
१) मनु को उ मी करते
है,
२) लोगों को एकता के सू
म बांधते है,
सूयपु ी सूया का पित
गुण:
पशुपालक, तेजोमय,
पज : वषाक़ालीन मेघ ।
मेघों का गरजना, िबजली,
चमकना, वषा का बरसाना,
वृ -वन ित का सचेतन
नाम/ पहचान:
१) सुभगा: सौभा वती,
म + व ण के साथ ुित
क गयी है ।
मनु के बु को शु
करते है,
अ -स दा देने के कारण इ
श शाली िपता कहते है ।
२) रेवती: वैभवस
३) चेता: - बु मती
४) मघोनी: दानशील
म : सूय क positive
श लेते है । िदन से
स
सा क भावना देते है। पज के मानवीकरण के प
म उ “वृषभ” के प म
िदखाते है ।
उषा अमर का तीक है उसे
“अमृत के तु: (अमर का
च ) कहा है ।
व ण: सूय क negative
श लेते है । रात से
स
पूषा: श +साम +पुि
दान करते है ।
आयुध: श शाली “व ”
उषा और राि बहने है, माग का र क,
चोर-लुटेरों से र ा
म त देव पज के सहायक
है, वे उ यथा ान प ँचाते
है ।
34. उपसंहार
• वैिदक देव कृ ित , तेज, काश तथा श के तीक
• देवता उदार, सव ,नैितक,दयालु, अमर के गुणों से यु
• पािपयों को दंड तथा सदाचा रयो को वैभव दान करनेवाले ।
• ऋत और स के िनयामक
• तं मानवीकरण का अभाव।
• एक ही कार के गुण और श यों का चलन
• देवताओं क मह ाओं म प रवतन
• ऋ ेद : अि , व ण मुख देवता
• उ रवैिदक: इं , मुख देवता
• क अवधारणा का िवकास उ र वैिदक काल म Úि गत
• उ रवैिदक: य ों का देवताओं से ादा मह