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Credit & Banking
By
Prachi Virag Sontakke
बैंक : अवधारणा
• ववत्तीय संस्था
• जनता से धनराशि जमा
• जनता को ऋण देने
• लोग अपनी अपनी बचत राशि को सुरक्षा की दृष्टि से अथवा ब्याज कमाने क
े हेतु
इन संस्थाओं में जमा करते व आवश्यकतानुसार समय समय पर ननकालते रहते हैं
• बैंक इस प्रकार जमा से प्राप्त राशि को व्यापाररयों एवं व्यवसानययों को ऋण देकर
ब्याज कमाते हैं
• आर्थिक आयोजन में कृ वि, उद्योग एवं व्यापार क
े ववकास क
े शलए बैंक एवं बैंककं ग
व्यवस्था एक अननवायि आवश्यकता मानी जाती है
बैंक क
े कायि
धन को सुरक्षित जमा रखना
ब्याज पर धन देना
ब्याज क
े मूल्य का ननयंत्रण
रखना
उधार लेने क
े ननयम
प्राचीन बैंककं ग क
े आधारभूत शसद्धांत : िुक्रनीनत
नैनतकता
सुरिा
सही ब्याज दर
लाभ का प्रावधान
बचत की व्यवस्था
नैनतकता
• प्राचीन नीनतकारों द्वारा अनुमोददत बैंककं ग
ईमानदारी से एवं छल कपि से मुक्त होनी
चादहए
• राजा का दानयत्व न्यायपरक संचालन देखना
• उल्लंघन पर दंड की व्यवस्था
सुरक्षा
• िुक्रनीनत : उधार उनको ना ददया जाए ष्जसने उसकी वसूली दुटकर हो
• मनुस्मृनत : भरोसेमंद व्यष्क्तयों को ही अर्िम धन राशि एवं उधार दे
• मनु + याज्ञवल्क्य : जरूरी दस्तावेजों पर हस्ताक्षर पश्चात, गवाह क
े
समक्ष ही धन दे
सही ब्याज दर
• स्मृनत िंथ : ब्याज की दर कम होनी चादहए
• उधार लेने वाले क
े दहतों का ध्यान
• महाभारत : नारद द्वारा युर्धष्टिर को कृ वि प्रोत्सादहत करने हेतु 1% ब्याज लेने की सलाह
• मनुस्मृनत : धन पर ब्याज की क
ु ल दर, मूल का दोगुना नहीं होना चादहए + खाद्य पर
ब्याज 5 गुना से अर्धक नहीं
• िुक्र नीनत : मूल से 4 गुना अर्धक ब्याज लेने पर और क
ु छ नहीं देना िेि
• याज्ञवल्क्य : बंधक पर ब्याज दर सालाना 15%
• अबन्धक ब्याज दर : ब्राह्मण = 20%, क्षत्रिय = 5%, वैश्य + िूद्र = 4%,
• कालांतर मे ब्याज दर वणि अनुसार
लाभ
• िुक्रनीनत : ष्जस प्रकार एक हाथी क
े शिकार हेतु हार्थयों का ही प्रयोग
ककया जाता है, धन का प्रयोग धन वृद्र्ध हेतु ककया जाए
• मनुटय को धन अष्जित करने हेतु पयािप्त प्रयास करने चादहए
बचत
• िुक्रनीनत : धन संिहण/बचत एवं
सूदखोरी एक क
े अभाव में नहीं हो
सकती
• धन का व्यय सावधानीपूविक
• संिहीत धन का ननवेि
सुरक्षक्षत रखने हेतु दी गई वस्तु संबंधी ननयम
• मनुस्मृनत : 2 प्रकार की वस्तुएँ सुरक्षक्षत रखने क
े
शलए
1. ननक्षेप = मुहर लगा कर शलफ़ाफ़
े में रखी गई
वस्तु
2. उपननर्ध = रुपये, शसक्क
े , गहने क
े रूप में त्रबना
शलफ़ाफ़
े क
े रखी वस्तु
• दोनों प्रकार की वस्तुओं को सुरक्षक्षत रखने हेतु क
ु छ
िुल्क का प्रवधान
• लॉकर व्यवस्था का पूवि रूप ?
बैंककं ग
प्रणाली
संस्था द्वारा
श्रेणी संगिन मंददर/मि
व्यष्क्त द्वारा
व्यष्क्तगत लेन देन
• वैददक सादहत्य: क
ु सीददन का उल्लेख
• मनुस्मृनत : रुपये पैसे संबंधी लेन देन धमि सम्मत व्यवसाय
• जातक कथाएँ : ऐसे सूदखोरों का उल्लेख जो ब्याज पर धन देते थे
• आदेि पि : बैंकर को आदेि शलए व्यष्क्त को रुपये देने हेतु ननददेशि
• वचन पि : ननवेि की राशि क
े भुगतान हेतु वचन बद्धता
व्यष्क्तगत लेन देन : ऋणपि – ऋणालेख
• ऋण लेने वाले का नाम
• ऋण देने वाले का नाम
• गवाह का नाम
• ऋणपि-ऋणालेख का लेखक
• ऋण की कीमत
• ऋण भुगतान की ितें
• ऋण भुगतान का समय
• भुगतान क
े समय वस्तु की ष्स्थनत
प्राचीनता एवं ववकास
• सैन्धव सभ्यता : अपिनीय प्रमाण
• वैददक काल :
• ितपथ ब्राह्मण में सूदखोरी एवं महाजनी की चचाि भी की गई है महाजन को
क
ु सीददन कहा गया है
• अथविवेद : अष्नन से प्राथिना देवताओं क
े , पूविजों क
े एवं लौककक उधार से मुक्त
होने हेतु
• छिी िताब्दी ईसा पूवि : प्रारष्म्भक बैंककं ग क
े उल्लेख
• मौयि काल : अथििास्ि में पूंजी एवं बैंककं ग संबंधी चचािएँ
• कौदिल्य क
े अथििास्ि से पता चलता है कक प्राचीन काल में साहूकारी ब्याज की
दर एवं राशि वसूल करने क
े ननयम थे
• मौयोत्तर काल : बैंककं ग प्रणाली क
े ववकास का चरण
• मनुस्मृनत में ब्याज क
े बदले राशि उधार देने का पयािप्त संक
े त शमलता है
बैंककं ग का प्रारष्म्भक स्वरूप
• लेन-देन की परंपरा से बैंककं ग क
े बीज प्रस्फ
ु दित
• मूलतः यह लेने देन खाद्य पदाथि का
• अथविवेद : उधार लेने वाले की प्राथिना कक वह उधार ली अपशमत्या लौिाकर स्वयं को कजिमुक्त करे
• उधार ली गई वस्तु = खाद्य = अपशमत्या
• पाणणनी : अपशमत्या = उधार शलया वह अन्न ष्जस पर ब्याज नहीं लगता
• कौदिल्य : अपशमत्या ब्याज सदहत लौिाया जाता है
• अथविवेद : अष्नन से प्राथिना लौककक उधार से मुक्त होने हेतु
• पाणणनी : वासननक = वह ष्जसने धन ननवेि कर उस पर लाभ कमाया
• वाताि : क
ु सीद (सूदखोरी)का ववकास एक उद्योग रूप में ष्जसक
े अपने ननयम एवं प्रावधान
• महाभारत, मनुस्मृनत, िुक्रनीनत : क
ु सीद वाताि का एक अंग
• अथििास्ि : आर्थिक संकि क
े समय राजा भी श्रेणणयों से उधार ले सकता था
• इस प्रकार श्रेणी संगिन प्राचीन बैंककं ग व्यवस्था का बोधक था
पूंजी पर ब्याज
• ब्याज = ऐसा िुल्क जो उधार ली गयी संपवत्त (ऋण) क
े शलए ककया जाता है
• यह उधार शलए गए पैसे क
े शलए अदा की गयी कीमत है
• या जमा धन से अष्जित ककया गया पैसा है
• अन्य की धनराशि अक्षयनीवी क
े रूप में जमा
• अथििास्ि : उधार पर 12% ब्याज राज्य द्वारा मान्य दर
• मनुस्मृनत : धमििंथों में सुननष्श्चत दर से अर्धक ब्याज लेन पाप
• मनुस्मृनत : जानत अनुसार ब्याज : ब्राह्मण-24% ,क्षत्रिय-36%, वैश्य-48%, िूद्र- 60%
मौयि काल
• श्रेणणयाँ ववश्वसनीय व्यष्क्त/संस्था क
े पास अपना धन जमा कर सकती
थी
• आवश्यकता पड़ने पर उसे वापस भी ले सकती थी
• श्रेणणयाँ व्यापाररयों को ऋण भी देती थी
मौयोत्तर काल
• श्रेणी संगिन पूरी ईमानदारी, ननटिा एवं क
ु िलता से कायि करते थे
• राजा और प्रजा दोनों क
े बीच श्रेणणयों की अच्छी एवं प्रनतष्टित साख
• ववशभन्न कायों हेतु लोग श्रेणी का पास धन जमा करते थे
• श्रेणणयों को वविेि ननददेशि ददए गए धन से कायि सम्पन्न कराने हेतु
• अपने पास जमा धन पर श्रेणणयाँ ये तो ब्याज देती थी या ब्याज की धनराशि से उस
कायि को सम्पन्न करती थी ष्जस हेतु धन जमा ककया गया था
• दानदाता द्वारा प्रदत्त धनराशि की ितों क
े अनुसार श्रेणणयों द्वारा मूलधन या उससे
अष्जित ब्याज की धनराशि का धाशमिक या लोकोपकारी कायों में उपयोग
• इसी काल में श्रणीयों ने बैंक क
े रूप में कायि करना प्रारंभ ककया
मौयोत्तर काल
• बैंककं ग प्रणाली का प्रारष्म्भक रूप
• तकनीकी अथि में श्रेणी अभी बैंक जैसी संस्था नहीं
• दैवी ववपवत्त अथवा राजा द्वारा श्रेणी संगिन क
े पास जमा राशि-संपवत्त
नटि ककए जाने पर या चोरी हो जाने पर संगिन/जमाकताि को उसकी
अदायगी, क्षनतपूनति क
े शलए उत्तरदायी नहीं माना जाता था
मौयोत्तर काल : अशभलेखीय साक्ष्य
❑ हुववटक का मथुरा लेख (106 ईस्वी) : अर्धकारी द्वारा 1000 काििपण 2
श्रेणणयों क
े पास अक्षयनीवव क
े रूप में जमा ककए
❑ 550 काििपण आिा पीसने की श्रेणी क
े पास, 550 अन्य श्रेणी क पास
❑ ननददेशि : जमा राशि क
े ब्याज से महीने में एक बार 100 ब्राह्मणों को
भोजन कराए श्रेणी
❑ इसक
े अनतररक्त 3 आढ़क सत्तू, 1 प्रस्थ नमक, 1 प्रस्थ िुक्थ तथा 3 घड़े
पानी ननधिन और भूखे लोगों को उपलब्ध कराएँ
अक्षयनीवी : स्थायी ननवेि की पूंजी
• क
ु िाणों क
े समय स्थायी दान (अक्षयनीवव) की परम्परा की िुरूआत हुई
• अक्षयनीवी = स्थायी ननवेि की पूँजी
• स्थायी दान = ष्जससे अनवरत राजस्व प्राप्त होता रहे
• व्यष्क्तयों द्वारा श्रेणणयों या साहूकारों (श्रेष्टिनों) क
े पास सावर्ध जमा धनराशि
• दानदाता द्वारा दान में प्रदत्त धनराशि की ितों क
े अनुसार श्रेणणयों द्वारा मूलधन या उससे अष्जित
ब्याज की धनराशि काधाशमिक या लोकोपकारी कायों में उपयोग
• अक्षयनीवव क
े रूप में प्राप्त दान को िहण करने वाला ना र्गरवी रख सकता था ना उसे बेच सकता
था
• प्रचालन क
ु िाण काल से
• गुप्त काल में अर्धक प्रचशलत
हुववटक का मथुरा अशभलेख
• शसद्र्ध हो 28वें विि में पौि मास क
े प्रथम ददन पूविददिा की इस पुण्यिाला क
े
शलए कनसरुकमान क
े पुि खरासलेर तथा वकन क
े अधीश्वर क
े द्वारा अक्षयनीवव
प्रदत्त की गई इस अक्षयनीवव से प्रनतमास ष्जतना ब्याज प्राप्त होगा, उससे प्रत्येक
मास की िुक्ल चतुदििी को पुण्यिाला में सौ ब्राह्मणों का भोजन करवाया जायेगा
तथा उसी ब्याज से प्रत्येक ददन पुण्यिाला क
े द्वार पर 3 आढक सत्तू, 1 प्रस्थ
नमक, 1 प्रस्थ िक
ु , 3 घिक और 5 मल्लक हरी िाकभाजी, ये वस्तुएँ भूखे, प्यासे
तथा अनाथ लोगों में बांिी जाएंगी इसका जो पुण्य होगा, वह देवपुि िादहहुववटक
तथा उसक
े प्रिंसकों और सारे संसार क
े लोगों को होगा अक्षयनीवव में से 550
पुराण िक श्रेणी में तथा 550 पुराण आिा पीसने वालों की श्रेणी में जमा ककए गए
मौयोत्तर काल : अशभलेखीय साक्ष्य
• नहपान का नाशसक गुफालेख : नहपान क
े दामाद द्वारा शभक्षुओं की वस्ि
(चीवर) एवं र्चककत्सीय व्यवस्था हेतु 3000 काििपण अक्षयनीवव क
े रूप मे
वह कायिरत श्रेणणयों क
े पास जमा कराये
• नाशसक लेख : बुनकरों की एक श्रेणी क
े पास 2000 कािािपण की एक
अक्षयनीवी (स्थायी ननवेि की पूँजी) एक प्रनतित माशसक ब्याज की दर पर
जमा की गयी थी
• एक अन्य ननर्ध 1000 काहापणों की थी ष्जस पर 3/4 प्रनतित माशसक
ब्याज देय था
• जुन्नर अशभलेख : बांस का काम करने वाले कारीगरों तथा ििेरों की श्रेणी
क
े पास धन जमा कराने का वववरण
• नागाजुिनकोंडा अशभलेख : एक श्रेणी क
े पास 70 दीनार जमा करने का
उल्लेख तथा जमा राशि क
े ब्याज से श्रेणणयों को क
ु छ धाशमिक कायों को
सम्पन्न कराने का ननददेशि
श्रेणी और बैंककं ग
• अपने पास जमा धन पर चूंकक श्रेणणयाँ ब्याज देती थी इसशलए वे अवश्य
इस धन को अन्य व्यापाररयों या लोगों को अर्धक ब्याज पर ऋण क
े रूप
में देती होंगी
• अथवा इसे अपने व्यवसाय में लगा कर लाभ कमाती होंगी
• बैंकों क
े रूप में कायि करने वाली श्रेणणयों क
े प्रमाण क
े वल महाराटर क
े
नाशसक एवं जुन्नर क
े अशभलेखों से प्राप्त हैं
• अनुमान ककया जा सकता हैं की भारत क
े अन्य प्रदेिों मे भी ऐसे बैंककं ग क
े
कायों से जुड़ी थी
गुप्त काल
• श्रेणणयों की साख में वृद्र्ध
• राजा तथा अन्य लोगों का धन जमा करती थी और उस पर दे ब्याज से
जमाकताि द्वारा बताए सामाष्जक-धाशमिक-जनकल्याण क
े कायि सम्पन्न
करती थी
• पारस्पररक समझौते क
े अनुसार श्रेणी क
े सदस्य पूंजी ननवेि क
े शलए
सामूदहक एवं व्यष्क्तगत, दोनों प्रकार से दहस्सेदार होते थे
• श्रेणी क
े ककसी एक सदस्य द्वरा शलया ऋण या ककया गया अनुबंध पूणि
करने का दानयत्व सभी सदस्यों का होता था
गुप्त काल : अशभलेखीय प्रमाण
• चंद्रगुप्त द्ववतीय का गढ़वा अशभलेख : चंद्रगुप्त द्ववतीय ने गढ़वा क
े दो
सिों में से प्रत्येक क
े व्यय हेतु 10-10 ददनार वहाँ की श्रेणी क
े पास
अक्षयनीवी धमि क
े रूप में जमा कराए थे
• क
ु मारगुप्त ने 2 शभन्न अवसरों पर दो शभन्न श्रेणणयों क
े पास क्रमिः 12
तथा 13 दीनार सि क
े खचि क
े शलए अक्षयनीवी धमि क
े रूप में जमा की
• इंदौर ताम्रपि : तैशलक श्रेणी ने सूयि मंददर में प्रनतददन दीप जलाने हेतु 2
पल तेल उपलब्ध करने क
े शलए धनराशि अक्षयनीवी धमि क
े अंतगित जमा
की थी
पूवि मध्य काल
• श्रेणी संगिनों की आर्थिक ष्स्थनत पहले जैसी सुदृढ़ नहीं
• 1000 ईस्वी क
े पश्चात बैंककं ग संस्था क
े रूप में मंददर एवं मि श्रेणी क
े प्रनतद्वंदी क
े रूप में उभरे
• वविाल मंददरों को हजारों गाँव तथा अन्य संपवत्तयाँ दान में दी गई: मंददरों की समृद्धता में वृद्र्ध
• रोशमला थापर : व्यापाररयों से घननटि संबंध क
े कारण बौद्ध मि बैंककं ग संस्था बने
• मंददर/मि अपने पास जमा राशि पर यद्यवप कोई ब्याज नहीं देते थे, तथावप श्रेणी संगिनों की
तुलना में उन्हे वरीयता दी जाने लगी
• जमाकताि ब्याज क रूप में श्रेणणयों से प्राप्त होने वाले धन की अपेक्षा मूलधन की सुरक्षा को
प्राथशमकता देते हुए मंददरों/मिों का चुनाव ककया
• सीयदोणण अशभलेख : नागक नाम क
े व्यापारी ने मददरा ननमािताओं की श्रेणी क
े पास जमा अपनी
धनराशि वापस ले कर उसे एक मंददर मे पुनः जमा करा ददया
• मंददरों क
े समृद्ध होने क
े बाद भी श्रेणणयों क
े पास धन जमा ककया जाता रहा
पूवि मध्य काल
• पी.सी.जैन : 11 वी -12 वी सदी ईस्वी में उत्तर भारत क
े ककसी भी अशभलेख में श्रेणी संगिन क
े पास धन जमा करने तथा
श्रेणी द्वारा उस पर ब्याज देने का का उल्लेख प्राप्त नहीं
• पूविवती कालों की अपेक्षा इस काल में श्रेणी संगिनों क
े पास धन जमा ककए जाने क
े कम उल्लेख प्राप्त
• श्रेणणयों क
े बैंक क
े रूप में कायि करने क
े वववरण प्राप्त
• मथुरा का 700 ईस्वी का अशभलेख : राजा ने शिव मंददर में प्रनतददन फ
ू ल चढ़ाने हेतु मालाकारों की श्रेणी क
े पास क
ु छ धन
राशि जमा की
• अंजनेरी ताम्रपि : वणणजों की श्रेणी क
े पास 100 रुपक जमा कराने कर राशि क
े ब्याज से पूजा क
े शलए गुनगुल उपलब्ध
करने का प्रावधान
• कामन प्रस्तर लेख : काम्यक में कायिरत शिष्ल्पयों,मालकारों,क
ुं भकारों की श्रेणी क
े पास क
ु छ धन इस ननददेशि क
े साथ जमा
ककया गया की वे प्रनतददन 34 मालाएँ ववटणु क
े मंददर में व 26 मालाएँ चामुंडा क
े मंददर में चढ़ाने की व्यवस्था करें
• येवूर अशभलेख : शिवपुर की एक श्रेणी क
े पास धाशमिक कायि सम्पन्न कराने हेतु क
ु छ धनराशि जमा कराने का वववरण

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  • 1. Credit & Banking By Prachi Virag Sontakke
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  • 3. बैंक : अवधारणा • ववत्तीय संस्था • जनता से धनराशि जमा • जनता को ऋण देने • लोग अपनी अपनी बचत राशि को सुरक्षा की दृष्टि से अथवा ब्याज कमाने क े हेतु इन संस्थाओं में जमा करते व आवश्यकतानुसार समय समय पर ननकालते रहते हैं • बैंक इस प्रकार जमा से प्राप्त राशि को व्यापाररयों एवं व्यवसानययों को ऋण देकर ब्याज कमाते हैं • आर्थिक आयोजन में कृ वि, उद्योग एवं व्यापार क े ववकास क े शलए बैंक एवं बैंककं ग व्यवस्था एक अननवायि आवश्यकता मानी जाती है
  • 4. बैंक क े कायि धन को सुरक्षित जमा रखना ब्याज पर धन देना ब्याज क े मूल्य का ननयंत्रण रखना उधार लेने क े ननयम
  • 5. प्राचीन बैंककं ग क े आधारभूत शसद्धांत : िुक्रनीनत नैनतकता सुरिा सही ब्याज दर लाभ का प्रावधान बचत की व्यवस्था
  • 6. नैनतकता • प्राचीन नीनतकारों द्वारा अनुमोददत बैंककं ग ईमानदारी से एवं छल कपि से मुक्त होनी चादहए • राजा का दानयत्व न्यायपरक संचालन देखना • उल्लंघन पर दंड की व्यवस्था
  • 7. सुरक्षा • िुक्रनीनत : उधार उनको ना ददया जाए ष्जसने उसकी वसूली दुटकर हो • मनुस्मृनत : भरोसेमंद व्यष्क्तयों को ही अर्िम धन राशि एवं उधार दे • मनु + याज्ञवल्क्य : जरूरी दस्तावेजों पर हस्ताक्षर पश्चात, गवाह क े समक्ष ही धन दे
  • 8. सही ब्याज दर • स्मृनत िंथ : ब्याज की दर कम होनी चादहए • उधार लेने वाले क े दहतों का ध्यान • महाभारत : नारद द्वारा युर्धष्टिर को कृ वि प्रोत्सादहत करने हेतु 1% ब्याज लेने की सलाह • मनुस्मृनत : धन पर ब्याज की क ु ल दर, मूल का दोगुना नहीं होना चादहए + खाद्य पर ब्याज 5 गुना से अर्धक नहीं • िुक्र नीनत : मूल से 4 गुना अर्धक ब्याज लेने पर और क ु छ नहीं देना िेि • याज्ञवल्क्य : बंधक पर ब्याज दर सालाना 15% • अबन्धक ब्याज दर : ब्राह्मण = 20%, क्षत्रिय = 5%, वैश्य + िूद्र = 4%, • कालांतर मे ब्याज दर वणि अनुसार
  • 9. लाभ • िुक्रनीनत : ष्जस प्रकार एक हाथी क े शिकार हेतु हार्थयों का ही प्रयोग ककया जाता है, धन का प्रयोग धन वृद्र्ध हेतु ककया जाए • मनुटय को धन अष्जित करने हेतु पयािप्त प्रयास करने चादहए
  • 10. बचत • िुक्रनीनत : धन संिहण/बचत एवं सूदखोरी एक क े अभाव में नहीं हो सकती • धन का व्यय सावधानीपूविक • संिहीत धन का ननवेि
  • 11. सुरक्षक्षत रखने हेतु दी गई वस्तु संबंधी ननयम • मनुस्मृनत : 2 प्रकार की वस्तुएँ सुरक्षक्षत रखने क े शलए 1. ननक्षेप = मुहर लगा कर शलफ़ाफ़ े में रखी गई वस्तु 2. उपननर्ध = रुपये, शसक्क े , गहने क े रूप में त्रबना शलफ़ाफ़ े क े रखी वस्तु • दोनों प्रकार की वस्तुओं को सुरक्षक्षत रखने हेतु क ु छ िुल्क का प्रवधान • लॉकर व्यवस्था का पूवि रूप ?
  • 12. बैंककं ग प्रणाली संस्था द्वारा श्रेणी संगिन मंददर/मि व्यष्क्त द्वारा
  • 13. व्यष्क्तगत लेन देन • वैददक सादहत्य: क ु सीददन का उल्लेख • मनुस्मृनत : रुपये पैसे संबंधी लेन देन धमि सम्मत व्यवसाय • जातक कथाएँ : ऐसे सूदखोरों का उल्लेख जो ब्याज पर धन देते थे • आदेि पि : बैंकर को आदेि शलए व्यष्क्त को रुपये देने हेतु ननददेशि • वचन पि : ननवेि की राशि क े भुगतान हेतु वचन बद्धता
  • 14. व्यष्क्तगत लेन देन : ऋणपि – ऋणालेख • ऋण लेने वाले का नाम • ऋण देने वाले का नाम • गवाह का नाम • ऋणपि-ऋणालेख का लेखक • ऋण की कीमत • ऋण भुगतान की ितें • ऋण भुगतान का समय • भुगतान क े समय वस्तु की ष्स्थनत
  • 15. प्राचीनता एवं ववकास • सैन्धव सभ्यता : अपिनीय प्रमाण • वैददक काल : • ितपथ ब्राह्मण में सूदखोरी एवं महाजनी की चचाि भी की गई है महाजन को क ु सीददन कहा गया है • अथविवेद : अष्नन से प्राथिना देवताओं क े , पूविजों क े एवं लौककक उधार से मुक्त होने हेतु • छिी िताब्दी ईसा पूवि : प्रारष्म्भक बैंककं ग क े उल्लेख • मौयि काल : अथििास्ि में पूंजी एवं बैंककं ग संबंधी चचािएँ • कौदिल्य क े अथििास्ि से पता चलता है कक प्राचीन काल में साहूकारी ब्याज की दर एवं राशि वसूल करने क े ननयम थे • मौयोत्तर काल : बैंककं ग प्रणाली क े ववकास का चरण • मनुस्मृनत में ब्याज क े बदले राशि उधार देने का पयािप्त संक े त शमलता है
  • 16. बैंककं ग का प्रारष्म्भक स्वरूप • लेन-देन की परंपरा से बैंककं ग क े बीज प्रस्फ ु दित • मूलतः यह लेने देन खाद्य पदाथि का • अथविवेद : उधार लेने वाले की प्राथिना कक वह उधार ली अपशमत्या लौिाकर स्वयं को कजिमुक्त करे • उधार ली गई वस्तु = खाद्य = अपशमत्या • पाणणनी : अपशमत्या = उधार शलया वह अन्न ष्जस पर ब्याज नहीं लगता • कौदिल्य : अपशमत्या ब्याज सदहत लौिाया जाता है • अथविवेद : अष्नन से प्राथिना लौककक उधार से मुक्त होने हेतु • पाणणनी : वासननक = वह ष्जसने धन ननवेि कर उस पर लाभ कमाया • वाताि : क ु सीद (सूदखोरी)का ववकास एक उद्योग रूप में ष्जसक े अपने ननयम एवं प्रावधान • महाभारत, मनुस्मृनत, िुक्रनीनत : क ु सीद वाताि का एक अंग • अथििास्ि : आर्थिक संकि क े समय राजा भी श्रेणणयों से उधार ले सकता था • इस प्रकार श्रेणी संगिन प्राचीन बैंककं ग व्यवस्था का बोधक था
  • 17. पूंजी पर ब्याज • ब्याज = ऐसा िुल्क जो उधार ली गयी संपवत्त (ऋण) क े शलए ककया जाता है • यह उधार शलए गए पैसे क े शलए अदा की गयी कीमत है • या जमा धन से अष्जित ककया गया पैसा है • अन्य की धनराशि अक्षयनीवी क े रूप में जमा • अथििास्ि : उधार पर 12% ब्याज राज्य द्वारा मान्य दर • मनुस्मृनत : धमििंथों में सुननष्श्चत दर से अर्धक ब्याज लेन पाप • मनुस्मृनत : जानत अनुसार ब्याज : ब्राह्मण-24% ,क्षत्रिय-36%, वैश्य-48%, िूद्र- 60%
  • 18. मौयि काल • श्रेणणयाँ ववश्वसनीय व्यष्क्त/संस्था क े पास अपना धन जमा कर सकती थी • आवश्यकता पड़ने पर उसे वापस भी ले सकती थी • श्रेणणयाँ व्यापाररयों को ऋण भी देती थी
  • 19. मौयोत्तर काल • श्रेणी संगिन पूरी ईमानदारी, ननटिा एवं क ु िलता से कायि करते थे • राजा और प्रजा दोनों क े बीच श्रेणणयों की अच्छी एवं प्रनतष्टित साख • ववशभन्न कायों हेतु लोग श्रेणी का पास धन जमा करते थे • श्रेणणयों को वविेि ननददेशि ददए गए धन से कायि सम्पन्न कराने हेतु • अपने पास जमा धन पर श्रेणणयाँ ये तो ब्याज देती थी या ब्याज की धनराशि से उस कायि को सम्पन्न करती थी ष्जस हेतु धन जमा ककया गया था • दानदाता द्वारा प्रदत्त धनराशि की ितों क े अनुसार श्रेणणयों द्वारा मूलधन या उससे अष्जित ब्याज की धनराशि का धाशमिक या लोकोपकारी कायों में उपयोग • इसी काल में श्रणीयों ने बैंक क े रूप में कायि करना प्रारंभ ककया
  • 20. मौयोत्तर काल • बैंककं ग प्रणाली का प्रारष्म्भक रूप • तकनीकी अथि में श्रेणी अभी बैंक जैसी संस्था नहीं • दैवी ववपवत्त अथवा राजा द्वारा श्रेणी संगिन क े पास जमा राशि-संपवत्त नटि ककए जाने पर या चोरी हो जाने पर संगिन/जमाकताि को उसकी अदायगी, क्षनतपूनति क े शलए उत्तरदायी नहीं माना जाता था
  • 21. मौयोत्तर काल : अशभलेखीय साक्ष्य ❑ हुववटक का मथुरा लेख (106 ईस्वी) : अर्धकारी द्वारा 1000 काििपण 2 श्रेणणयों क े पास अक्षयनीवव क े रूप में जमा ककए ❑ 550 काििपण आिा पीसने की श्रेणी क े पास, 550 अन्य श्रेणी क पास ❑ ननददेशि : जमा राशि क े ब्याज से महीने में एक बार 100 ब्राह्मणों को भोजन कराए श्रेणी ❑ इसक े अनतररक्त 3 आढ़क सत्तू, 1 प्रस्थ नमक, 1 प्रस्थ िुक्थ तथा 3 घड़े पानी ननधिन और भूखे लोगों को उपलब्ध कराएँ
  • 22. अक्षयनीवी : स्थायी ननवेि की पूंजी • क ु िाणों क े समय स्थायी दान (अक्षयनीवव) की परम्परा की िुरूआत हुई • अक्षयनीवी = स्थायी ननवेि की पूँजी • स्थायी दान = ष्जससे अनवरत राजस्व प्राप्त होता रहे • व्यष्क्तयों द्वारा श्रेणणयों या साहूकारों (श्रेष्टिनों) क े पास सावर्ध जमा धनराशि • दानदाता द्वारा दान में प्रदत्त धनराशि की ितों क े अनुसार श्रेणणयों द्वारा मूलधन या उससे अष्जित ब्याज की धनराशि काधाशमिक या लोकोपकारी कायों में उपयोग • अक्षयनीवव क े रूप में प्राप्त दान को िहण करने वाला ना र्गरवी रख सकता था ना उसे बेच सकता था • प्रचालन क ु िाण काल से • गुप्त काल में अर्धक प्रचशलत
  • 23. हुववटक का मथुरा अशभलेख • शसद्र्ध हो 28वें विि में पौि मास क े प्रथम ददन पूविददिा की इस पुण्यिाला क े शलए कनसरुकमान क े पुि खरासलेर तथा वकन क े अधीश्वर क े द्वारा अक्षयनीवव प्रदत्त की गई इस अक्षयनीवव से प्रनतमास ष्जतना ब्याज प्राप्त होगा, उससे प्रत्येक मास की िुक्ल चतुदििी को पुण्यिाला में सौ ब्राह्मणों का भोजन करवाया जायेगा तथा उसी ब्याज से प्रत्येक ददन पुण्यिाला क े द्वार पर 3 आढक सत्तू, 1 प्रस्थ नमक, 1 प्रस्थ िक ु , 3 घिक और 5 मल्लक हरी िाकभाजी, ये वस्तुएँ भूखे, प्यासे तथा अनाथ लोगों में बांिी जाएंगी इसका जो पुण्य होगा, वह देवपुि िादहहुववटक तथा उसक े प्रिंसकों और सारे संसार क े लोगों को होगा अक्षयनीवव में से 550 पुराण िक श्रेणी में तथा 550 पुराण आिा पीसने वालों की श्रेणी में जमा ककए गए
  • 24. मौयोत्तर काल : अशभलेखीय साक्ष्य • नहपान का नाशसक गुफालेख : नहपान क े दामाद द्वारा शभक्षुओं की वस्ि (चीवर) एवं र्चककत्सीय व्यवस्था हेतु 3000 काििपण अक्षयनीवव क े रूप मे वह कायिरत श्रेणणयों क े पास जमा कराये • नाशसक लेख : बुनकरों की एक श्रेणी क े पास 2000 कािािपण की एक अक्षयनीवी (स्थायी ननवेि की पूँजी) एक प्रनतित माशसक ब्याज की दर पर जमा की गयी थी • एक अन्य ननर्ध 1000 काहापणों की थी ष्जस पर 3/4 प्रनतित माशसक ब्याज देय था • जुन्नर अशभलेख : बांस का काम करने वाले कारीगरों तथा ििेरों की श्रेणी क े पास धन जमा कराने का वववरण • नागाजुिनकोंडा अशभलेख : एक श्रेणी क े पास 70 दीनार जमा करने का उल्लेख तथा जमा राशि क े ब्याज से श्रेणणयों को क ु छ धाशमिक कायों को सम्पन्न कराने का ननददेशि
  • 25. श्रेणी और बैंककं ग • अपने पास जमा धन पर चूंकक श्रेणणयाँ ब्याज देती थी इसशलए वे अवश्य इस धन को अन्य व्यापाररयों या लोगों को अर्धक ब्याज पर ऋण क े रूप में देती होंगी • अथवा इसे अपने व्यवसाय में लगा कर लाभ कमाती होंगी • बैंकों क े रूप में कायि करने वाली श्रेणणयों क े प्रमाण क े वल महाराटर क े नाशसक एवं जुन्नर क े अशभलेखों से प्राप्त हैं • अनुमान ककया जा सकता हैं की भारत क े अन्य प्रदेिों मे भी ऐसे बैंककं ग क े कायों से जुड़ी थी
  • 26. गुप्त काल • श्रेणणयों की साख में वृद्र्ध • राजा तथा अन्य लोगों का धन जमा करती थी और उस पर दे ब्याज से जमाकताि द्वारा बताए सामाष्जक-धाशमिक-जनकल्याण क े कायि सम्पन्न करती थी • पारस्पररक समझौते क े अनुसार श्रेणी क े सदस्य पूंजी ननवेि क े शलए सामूदहक एवं व्यष्क्तगत, दोनों प्रकार से दहस्सेदार होते थे • श्रेणी क े ककसी एक सदस्य द्वरा शलया ऋण या ककया गया अनुबंध पूणि करने का दानयत्व सभी सदस्यों का होता था
  • 27. गुप्त काल : अशभलेखीय प्रमाण • चंद्रगुप्त द्ववतीय का गढ़वा अशभलेख : चंद्रगुप्त द्ववतीय ने गढ़वा क े दो सिों में से प्रत्येक क े व्यय हेतु 10-10 ददनार वहाँ की श्रेणी क े पास अक्षयनीवी धमि क े रूप में जमा कराए थे • क ु मारगुप्त ने 2 शभन्न अवसरों पर दो शभन्न श्रेणणयों क े पास क्रमिः 12 तथा 13 दीनार सि क े खचि क े शलए अक्षयनीवी धमि क े रूप में जमा की • इंदौर ताम्रपि : तैशलक श्रेणी ने सूयि मंददर में प्रनतददन दीप जलाने हेतु 2 पल तेल उपलब्ध करने क े शलए धनराशि अक्षयनीवी धमि क े अंतगित जमा की थी
  • 28. पूवि मध्य काल • श्रेणी संगिनों की आर्थिक ष्स्थनत पहले जैसी सुदृढ़ नहीं • 1000 ईस्वी क े पश्चात बैंककं ग संस्था क े रूप में मंददर एवं मि श्रेणी क े प्रनतद्वंदी क े रूप में उभरे • वविाल मंददरों को हजारों गाँव तथा अन्य संपवत्तयाँ दान में दी गई: मंददरों की समृद्धता में वृद्र्ध • रोशमला थापर : व्यापाररयों से घननटि संबंध क े कारण बौद्ध मि बैंककं ग संस्था बने • मंददर/मि अपने पास जमा राशि पर यद्यवप कोई ब्याज नहीं देते थे, तथावप श्रेणी संगिनों की तुलना में उन्हे वरीयता दी जाने लगी • जमाकताि ब्याज क रूप में श्रेणणयों से प्राप्त होने वाले धन की अपेक्षा मूलधन की सुरक्षा को प्राथशमकता देते हुए मंददरों/मिों का चुनाव ककया • सीयदोणण अशभलेख : नागक नाम क े व्यापारी ने मददरा ननमािताओं की श्रेणी क े पास जमा अपनी धनराशि वापस ले कर उसे एक मंददर मे पुनः जमा करा ददया • मंददरों क े समृद्ध होने क े बाद भी श्रेणणयों क े पास धन जमा ककया जाता रहा
  • 29. पूवि मध्य काल • पी.सी.जैन : 11 वी -12 वी सदी ईस्वी में उत्तर भारत क े ककसी भी अशभलेख में श्रेणी संगिन क े पास धन जमा करने तथा श्रेणी द्वारा उस पर ब्याज देने का का उल्लेख प्राप्त नहीं • पूविवती कालों की अपेक्षा इस काल में श्रेणी संगिनों क े पास धन जमा ककए जाने क े कम उल्लेख प्राप्त • श्रेणणयों क े बैंक क े रूप में कायि करने क े वववरण प्राप्त • मथुरा का 700 ईस्वी का अशभलेख : राजा ने शिव मंददर में प्रनतददन फ ू ल चढ़ाने हेतु मालाकारों की श्रेणी क े पास क ु छ धन राशि जमा की • अंजनेरी ताम्रपि : वणणजों की श्रेणी क े पास 100 रुपक जमा कराने कर राशि क े ब्याज से पूजा क े शलए गुनगुल उपलब्ध करने का प्रावधान • कामन प्रस्तर लेख : काम्यक में कायिरत शिष्ल्पयों,मालकारों,क ुं भकारों की श्रेणी क े पास क ु छ धन इस ननददेशि क े साथ जमा ककया गया की वे प्रनतददन 34 मालाएँ ववटणु क े मंददर में व 26 मालाएँ चामुंडा क े मंददर में चढ़ाने की व्यवस्था करें • येवूर अशभलेख : शिवपुर की एक श्रेणी क े पास धाशमिक कायि सम्पन्न कराने हेतु क ु छ धनराशि जमा कराने का वववरण