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शाक्त धर्म
डॉ. विराग सोनटक्क
े
सहायक प्राध्यापक
प्राचीन भारतीय इवतहास, संस्क
ृ वत और पुरातत्व विभाग
काशी वहंदू विश्वविघालय, िाराणसी
शाक्त धर्म
शाक्त
•शाक्त अर्ामत “शक्तक्त (देिी) की उपासना”
•उपास्यदेि: शक्तक्त (देिी)
•विवभन्न रूपों र्ें शक्तक्त (देिी) की उपासना
• शक्तक्त सिोच्च देिता (देिी)
•सृवि की वनर्ामता, संहारकताम
• शक्तक्त क
े कार्प्रधान रूप की उपासना
देिी उपासना क
े उल्लेख
• प्रागैवतहावसक युग र्ें र्ातृदेिी ?
• वसंधु सभ्यता र्ें र्ातृदेिी ?
• िेदों र्ें पुरुष देिताओं की अवधकता होने से देिी का
उल्लेख कर् ।
• यद्यवप उषा, आवदवत, पृथ्वी, सरस्वती क
े उल्लेख
• र्हवषम अभ्रूण की पुत्री “िाक
् ” की स्तुवत र्ें शक्तक्त का
र्हत्व प्रदवशमत ।
• शतपर् ब्रा॰: रुद्र की बहन “अक्तिका”
• तैतररय उप॰: रुद्र की पत्नी पािमती का िणमन
• क
े नोपवनषद: हेर्िती उर्ा को विद्या-देिी कहा है।
र्हाकाव्ों र्ें देिी उपासना क
े
उल्लेख
• र्हाभारत: दुगाम उपासना (काली, कपाली, उर्ा, विजया, चण्डी
आवद)
• र्हाभारत :र्वहषासुरर्वदमनी, विंध्याचलिवसनी, नारायणवप्रया
• र्हाभारत: अजुमन को क
ृ ष्ण ने दुगाम उपासना का परार्शम वदया
र्ा।
• प्रातःकाल शक्तक्त की उपासना करने िाला युद्ध र्ें विजयी होता
है
पुराणों र्ें देिी उपासना क
े संदभम
• हररिंश, विष्णु पुराण: कालरूवपणी योगवनद्रा से यशोदा से जन्मी,
विंध्याचलिवसनी
• र्ाक
म ण्डेय: र्वहषासुर का िध करने क
े वलए (ब्रम्हा, वशि, विष्णु,
इंद्र, चंद्र, िरुण, सूयम आवद) देिताओं क
े तेज से उत्पन्न
र्वहषासुरर्वदमनी।
• र्ाक
म ण्डेय: “दुगामसिशंती” अंश र्ें देिी क
े तीन रूप
1. र्हाकाली
2. र्हालक्ष्मी
3. र्हासरस्वती
• र्ाक
म ण्डेय पु॰: देिी का सर्स्त प्रावणयो र्ें शक्तक्त, शांवत, दया, बुक्तद्ध,
एिं र्ाता क
े रूप र्ें िास
देिी क
े विवभन्न नार्
1. शुम्भ–वनशुम्भ दैत्ों क
े संहार क
े वलए पािमती क
े शरीर
से उत्पन्न हुई “वशिा”
2. पािमती क
े शरीर-कोश से वनकलने क
े कारण “कौवशकी”
3. वशिा क
े जाने से पािमती का शरीर काला पड गया अंतः
“कावलका”
4. शुम्भ –वनशुम्भ दैत्ों क
े संहार क
े िक्त क
ृ ष्णिणी
ललाट से उत्पन्न “काली”
5. चण्ड-र्ुण्ड दैत्ों क
े संहार वकया इसवलए “चार्ुंडा”
6. अक्तिका से उत्पन्न सिर्ातृका: ब्राह्मी, कौर्ारी,
र्ाहेश्वरी, िैष्णिी, िाराही, नरवसंही और एं द्री
शक्तक्त एिं वशि का सिन्ध
1. शक्तक्त वशि की पत्नी ।
2. वशि-उर्ापती ; उर्ा-र्ाहेश्वरी
3. उर्ा-पािमती, वशि-वगरीश
4. शक्तक्त-काली; वशि-रुद्र
5. अत: देिी वशि की ही शक्तक्त र्ानी गयी।
6. सौर पुराण: देिी को वशि की “ज्ञानर्यी शक्तक्त” कहा है, जो विवभन्न
कायों हेतु वभन्न रूप धारण करती है।
7. र्हाभारत: शक्तक्त को नारायण एिं वशि की पत्नी
• शक्तक्त का स्वरूप :
a) परर्शक्तक्त
b) सिमव्ापी
c) र्ाया
देिी उपासना क
े साक्ष्य
पुरातात्विक साक्ष्य साहित्विक स्त्रोत
६४ योवगनी र्ंवदर, भेडाघाट िैवदक काल: पृथ्वी, सरस्वती, आवदवत
६४ योवगनी र्ंवदर, खजुराहो र्हाभारत: दुगाम, काली, चण्डी, उर्ा
६४ योवगनी र्ंवदर, वहरापुर, ओवडशा र्ाक
े डेय पुराण: र्वहसासुर र्वदमनी
कार्ाख्या देिी र्ंवदर, आसार् दुगामसिशती: र्हाकाली, र्हालक्ष्मी, र्हा
सरस्वती
ओवडशा र्ंवदरों र्ें सिर्ातृका र्त्स्य पुराण: सिर्ातृका
शक्तक्त पीठ
अवभलेख/ ऐवतहावसक वििरण :
1. प्रवतहार राजा र्हेंद्रपाल क
े अवभलेख र्ें
“निदुगाम” का उल्लेख ।
2. कल्हन राजतरंगीनी:
3. कश्मीर र्ें लकडी की शारदा र्ूवतम की पूजा
1. ब्राह्मणी
2. कौर्ारी
3. र्ाहेशश्वरी
4. िैष्णिी
5. इंद्राणी
6. िराही
7. चार्ुंडा
देिी का स्वरूप
वशि की पत्नी
•कल्याणकारी स्वरूप
दुगाम
•उग्र स्वरूप
वत्रपूरसुंदरी
•कार्प्रधान स्वरूप
शक्तक्त का कल्याणकारी
स्वरूप
• वशि की पत्नी, देिी की पूजा वशि क
े सार्
• नार्: वशिा, र्ाहेश्वरी, उर्ा, रुद्राणी, भिानी, पािमती
• रूप: सौम्य, कल्याणकारी, दयािती,
• तुलना: देिी की तुलना सरस्वती, सावित्री से
• र्त: देिी ही परर्ात्मा है
• वशि-परर्वपता एिं देिी-जगतर्ाता
• उपासकों की रविता एिं शत्रुओं की विनावशका
• विश्व (वशि) की परर् शक्तक्त
• अधम-नारीश्वर की कल्पना
• देिी भागित: देिी की क
ृ पा से ब्रह्मा, विष्णु एिं
र्हेश विश्व का सजमन, पालन एिं संहार करते है।
• जन साधारण र्ें लोकवप्रय
• पािमती क
े रूप र्ें पूजनीय
शक्तक्त का उग्र
स्वरूप
• शक्तक्त का स्वतंत्र व्क्तक्तत्व
• नार्: जया, विजया, काली, कराली,चार्ुण्डा,
र्वहषार्वदमनी, र्हाकाली
• रूप: सौम्य (वशि-पत्नी), उग्र (दुगाम), कार्प्रधान
• स्वरूप: बहुर्ुखी, बहुभुजी, नेत्र एिं र्ुख रक्तिणम,
शरीर पर रक्त लेप, हार् र्ें पाश अस्त्र-शस्त्र से
सुसक्तित
• उपासना : विजय हेतु
• र्हाभारत: कालरावत्र रूप र्ें िणमन ; क
ृ ष्णिणम
• कापावलक सम्प्रदाय र्ें पूजनीय
• कापावलक रुद्र की सहचरी क
े रूप र्ें िणमन
• बवल, सुरा से पूजा से प्रसन्न
शक्तक्त का कार्प्रधान रूप
• कार्प्रधान रूप शाक्त धर्म का र्ूल वसद्धांत
• इसक
े उपासकों को शाक्त एिं इस सम्प्रदाय को शाक्त
सम्प्रदाय कहते है।
• उपासना विवध: तांवत्रक साधन (ईसा सातिी शताब्दी)
• कई शक्तक्तयों, सम्प्रदाय, धर्म का प्रभाि
• अिैवदक प्रभाि, बौद्ध धर्म (तारा),
• नार्: आनंदभैरिी, वत्रपूरसुंदरी, लवलता, उपांग-लवलता,
र्हा भैरिी
• सावहत्: शाक्त सम्प्रदाय क
े सावहत् को “तंत्रसावहत्”
कहते है।
• सावहत्: वत्रपूररहस्य, कावलतंत्र, प्रपंचसारतंत्र, र्ावलनी-
विजय, तंत्रराजतंत्र आवद प्रर्ुख ग्रंर्
• इस रूप र्ें देिी सौंदयमिती है
• तांवत्रक साधना से देिी से एकात्म स्र्ावपत करना उपासक
का ध्येय
• कापावलक स्वरूप र्ें देिी का रूप भयािह, क्र
ू र, क
े श
विर्ुक्त, र्ुख कराल, क
ृ ष्णिणम, नरर्ुण्डधाररणी, रक्त-
र्ांस-र्द्य वप्रय
देिी का स्वरूप
हिनम्र स्वरूप उग्र स्वरूप कामप्रधान रूप
देिों क
े सार् उपासना स्वतंत्र व्क्तक्तत्व कार्प्रधान रूप शाक्त धर्म का
र्ूल वसद्धांत
वशि की पत्नी,
वशिा, र्ाहेश्वरी, उर्ा,रुद्राणी
भिानी,पािमती
जया, विजया, काली,
कराली,चार्ुण्डा, र्वहषार्वदमनी,
र्हाकाली
इसक
े उपासकों को शाक्त
सम्प्रदाय कहते है।
तांवत्रक साधन
सौम्य, कल्याणकारी, दयािती, सौम्य (वशि-पत्नी), उग्र (दुगाम),
कार्प्रधान
आनंदभैरिी, वत्रपूरसुंदरी, लवलता,
उपांग-लवलता, र्हा भैरिी
देिी की तुलना सरस्वती,
सावित्री से
वसंह िाहन, अस्त्र-शस्त्र से
सुसक्तित
शाक्त सम्प्रदाय क
े सावहत् को
“तंत्रसावहत्” कहते है।
देिी ही परर्ात्मा है
देिी की पूजा वशि क
े सार्
वशि-परर्वपता
देिी
कापावलक सम्प्रदाय र्ें बवल,
सुरा से पूजा
तांवत्रक साधना से देिी से एकात्म
स्र्ावपत करना उपासक का ध्येय
कापावलक स्वरूप र्ें देिी का रूप
भयािह, क्र
ू र, क
े श विर्ुक्त, र्ुख
कराल, क
ृ ष्णिणम, नरर्ुण्डधाररणी,
रक्त-र्ांस-र्द्य वप्रय
जन साधारण र्ें लोकवप्रय इस रूप र्ें देिी सौंदयमिती है
अधम-नारीश्वर की कल्पना
वत्रपूरसुंद
री
1. अलौवकक सौंदयमिती
2. देिी: सिोच्च स्र्ान र्ें प्रवतवित
3. ब्रह्मा, हरी, रुद्र एिं ईश्वर देिी क
े र्ंच क
े चार पैर
4. नार्: परा, लवलता, भट्टाररका
5. आनंदभैरि या र्हाभैरि देिी की आत्मा
6. देिी क
े ९ व्ूह: काल, क
ु ल, नार्, ज्ञान, वचत्त, अहंकार, बुक्तद्ध, र्हत एिं र्न
7. इन्ही क
े सक्तिलन से विश्व का वनर्ामण
8. तांवत्रक साधना से वत्रपूरसुंदरी ऐकात्म स्र्ावपत करना शाक्त उपासक का उद्देश्य
9. वत्रपूरसुंदरी की प्राक्ति क
े वलए स्त्री बनने की कल्पना
10. वत्रपूरसुंदरी: कावलतंत्र, प्रपंचसारतंत्र क
े अनुसार:
a) क्र
ू र एिं भयािह
b) क
े श विर्ुक्त
c) र्ुख कराल
d) क
ृ ष्णिणम
e) वदगंबरी
f) नरर्ुण्डधाररणी
g) श्मशान विहाररणी
h) रक्त, र्ांस, नरबली, र्द्य वप्रय
शाक्त सम्प्रदाय उपासना विवध
• देिी क
े कार्प्रधान रूप की उपासना
• देिी एकर्ात्र सिोच्च देिता, सृवि की वनर्ामता,पालनकताम, संहारकताम
• देिी उपासना क
े विविध स्वरूप : तंत्र साधना
• वशि क
े कापावलक रूप से सर्ानता
1. विर्ुक्त क
े श,
2. क
ृ ष्णिणी,
3. नरर्ुण्ड धाररणी,
4. स्मशांन विहाररनी,
5. रक्त-र्ांस वप्रय
6. नरबवल वप्रय,
7. र्द्य वप्रय
• देिी क
े सार् अंतरंगता स्र्ावपत करना
• उपावसका: उपासना का र्ाध्यर्
• उपावसका: देिी का रूप
• उपावसका: देिी से एकरूपता क
े वलए अंतरंगता
शाक्त वसद्धांत
• वशि-शक्तक्त को आद्य तत्व र्ाना गया
• शाक्त वसद्धांत क
े अनुसार
a) शक्तक्त र्ें ब्रम्हा,विष्णु और वशि क
े अंश सक्तिवलत है।
b) शक्तक्त सिमव्ापक है।
c) शक्तक्त वशि का वक्रयाशील रूप है।
d) उपासक शक्तक्त क
े वकसी एक रूप को उपास्यदेिी र्ानक
े उपासना करते
है।
e) शाक्त र्त र्ें “क
ुं डवलनी शक्तक्त” जो रहस्यर्यी है, सम्पूणम ब्रम्हाण्ड र्ें व्ाि
है, र्ंत्रो-योग साधना से प्राि की जा सकती है।
हिि
-
शक्तक्त
शाक्त
वसद्धांत
शाक्त वसद्धांत
• आचारों क
े आधार पर शाक्त सम्प्रदाय क
े दो िगम
1. सर्ायाचारी:
2. कौलर्ागी:
समायाचारी कौलमार्गी
सार्ावजक िार्र्ागी
अन्त साधन पे अवधक बल साधक श्रेि र्ाने जाते है।
सर्य क
े अनुसार साधना यह अद्वेतिादी होते है
(पााँच “र्”: र्द्य, र्ांस, र्त्स्य, र्ुद्रा,
र्ैर्ुन)
सर्ाज र्ें र्ान्यता सर्ाज र्ान्यता नही
लोकवप्रय अलोकवप्रय: त्वचा-चंदन, शत्रु-वर्त्र,
स्मशान –घर र्ें कोई भेद नही।
शाक्त सम्प्रदाय उपासना र्त
• र्ास-र्द्य की उपासना क
े कारण पुराणों र्ें वनंदा
• ब्रह्मिैितम पुराण: ज्ञान प्राक्ति र्ें बाधक, योग-र्ागम अिरुद्ध
करनेिाली, अज्ञानरूपा ।
• र्त प्रदवशमत करने हेतु “सांख्य दशमन” का उपयोग
• प्रक
ृ वत+पुरुष का वसद्धांत
• शक्तक्त-प्रक
ृ वत का स्वरूप तर्ा परर्पुरुष-आवद शक्तक्त बताया
गया।
• पूजा-अचाम र्ें क
ु छ सुधार वकए गए।
• व्िहार, र्द्यपान का वनषेध
र्ातृकायें
• पुराणो र्ें उल्लेख : वनन्म कोवट की स्त्री देिताए
• र्त्स्य पुराण: दैत्ों क
े विनाश क
े वलए वशि ने उन्हें उत्पन्न वकया
• िराह पुराण: र्ातृकायें देिी क
े अट्टहास से उत्पन्न हुयी
• संभितः स्र्ानीय, लोक प्रचवलत देिी वजन्हें धर्म र्ें सर्ावहत वकया
गया
• र्ातृकायें की संख्या सात र्ानी गयी है।
• क
ु षाण काल र्ें सि र्ातृकायें का अंकन प्राि होता है।
• अर्रकोश: सि र्ातृकाओं का उल्लेख
• पूिम र्ध्यकाल क
े अनेक र्ंवदरो र्ें प्रदवशमत
योवगनी
• भेडाघाट का ६४ योवगनी र्ंवदर योवगनी पूजा का प्रवसद्ध क
ें द्र
• इन योवगवनयों को र्ातृका कहा जाता र्ा
• आरंभ र्ें इनकी संख्या वनवित नही र्ी
• इनकी पूजा पृर्क अर्िा संयुक्त रूप से होती र्ी।
• इनकी संख्या, ७, बाद र्ें ९ एिं कालांतर र्ें ६४ और ८४ हो गयी
• योवगनी पूजा शाक्त सम्प्रदाय का ही एक रूप है
• योवगनी पूजा क
े सैधाक्तन्तक पि की वििेचना र्त्सेंद्रनार् क
े
कौलज्ञानवनणमय ग्रंर् र्ें प्राि होती है।
• योवगनीयों की पूजा गुि पद्धवत क्तस्त्रयों की संतवत क
े वलए होता र्ा।
• योवगनी सूची र्ें धीरे-धीरे ६४ योवगवनयों का अंतभामि हुआ
• इस सूची र्ें ब्राह्मी, र्ाहेश्वरी, िैष्णिी आवद र्ातृकाओं का सर्ािेश
हुआ
योवगनी
• इनकी तांवत्रक रूप से पूजा-विवध होती र्ी
• इनर्े चार, आठ, बारह, चौसठ एिं अवधक कोणों से बने रहस्यर्य चक्रों क
े
र्ध्य र्ें वशि प्रवतवित रहते र्े।
• ये कोण वशि-शक्तक्त का आंतर-संबंध बताते है।
• कर्ासररतसागर, राजतरंवगणी, रुद्रोपषद, प्रबोधचंद्रोदय, िेतालपंच्चविशंवत
आवद ग्रंर्ो र्ें योवगवनयों की कर्ाए पायी जाती है।
• इसक
े अनुसार
1. योवगनी वनन्म श्रेणी की देिता है
2. क्र
ू र एिं भयािह रूप
3. रक्त की प्यासी
4. नरबली का विधान
5. नरर्ुण्ड की र्ाला का पररधान
6. कपाल र्ें भोजन
7. र्ृत व्क्तीयों को जीवित कर सकती र्ी
8. इच्छा तृक्ति क
े वलए र्नुष्य िध
9. युद्ध िेत्र र्ें नृत्
६४ योवगवनयों क
े र्ंवदर
• भारत र्ें चौसठ योवगनी र्ंवदर ओवडशा (१) तर्ा र्ध्य प्रदेश (३) र्ें हैं।
• इन योवगवनयों को चक्र क
े आकार र्ें प्रदवशमत वकया जाता है।
• उनक
े र्ंवदर भी चक्र क
े आकार र्ें वनवर्मत होते हैं।
• प्रत्ेक योवगनी इस चक्र अर्ामत पवहये क
े एक आरे पर स्र्ावपत होती है।
• प्रत्ेक र्ंवदर र्ें इन योवगवनयों की सूची र्ें वभन्नता होती है।
• प्रत्ेक योवगनी का एक विशेष नार् होता है तर्ा वकसी भी दो र्ंवदरों र्ें
इन नार्ों की सूची सर्ान नहींहोती।
• इन योवगवनयों र्ें क
ु छ दयालु तो क
ु छ क्र
ू र प्रतीत होती हैं।
• प्रत्ेक योवगनी की एक विशेष शक्तक्त होती है वजसक
े आधार पर ही
अपनी इच्छा पूवतम क
े वलए भक्तगण संबंवधत योवगनी की आराधना करते
हैं।
• ये इच्छाएं संतान प्राक्ति से लेकर शत्रु क
े विनाश तक क
ु छ भी हो सकती
हैं।
• योवगवनयों की तांवत्रक वक्रयाएं अत्ंत गोपनीय होती हैं। इस पंर् क
े
अनुयावययों क
े सर्ि ही इन वक्रयाओं को उजागर वकया जाता है।
• यह चौसठ योवगनी र्ंवदर र्ुरैना वजले र्ें वर्तािली गााँि र्ें है।
• 1323 ईस्वी क
े एक वशलालेख क
े अनुसार, यह र्ंवदर कच्छप राजा देिपाल द्वारा बनाया गया र्ा।
• यह बाहरी रूप से 170 फीट की वत्रज्या क
े सार् आकार र्ें गोलाकार है।
• इसक
े आंतररक भाग क
े भीतर 64 छोटे कि हैं।
यह र्वदर हीरापुर भुिनेश्वर से लगभग १५ वकलोर्ीटर की दू री पर है।
इस र्ंवदर का वनर्ामण संभितः भौर् िंश की साम्राज्ञी हीरादेिी ने करिाया र्ा।
चौसठ योवगनी र्ंवदर, उडीसा क
े रानीपुर झारल, बलांगीर व़िला
भेडाघाट,
जबलपुर का
६४ योवगनी र्ंवदर
खजुराहो का ६४ योवगनी
र्ंवदर
उपसंहार
• भारत का प्राचीन धर्म सम्प्रदाय
• शाक्त दशमन र्ें ज्ञान, भक्तक्त और कर्म का सर्न्वय है।
• शाक्त धर्म र्ें अिैवदक तत्वों का प्रभाि प्रदवशमत होता है।
• शक्तक्त पूजा वहंदू धर्म का अवभन्न अंग है।
• सीवर्त स्वरूप र्ें शाक्त-सम्प्रदाय की तांवत्रक उपासना प्रचवलत
है।
• ितमर्ान सर्य र्ें देिी पूजा अत्वधक लोकवप्रय
सर्ाि

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  • 1. शाक्त धर्म डॉ. विराग सोनटक्क े सहायक प्राध्यापक प्राचीन भारतीय इवतहास, संस्क ृ वत और पुरातत्व विभाग काशी वहंदू विश्वविघालय, िाराणसी
  • 3. शाक्त •शाक्त अर्ामत “शक्तक्त (देिी) की उपासना” •उपास्यदेि: शक्तक्त (देिी) •विवभन्न रूपों र्ें शक्तक्त (देिी) की उपासना • शक्तक्त सिोच्च देिता (देिी) •सृवि की वनर्ामता, संहारकताम • शक्तक्त क े कार्प्रधान रूप की उपासना
  • 4. देिी उपासना क े उल्लेख • प्रागैवतहावसक युग र्ें र्ातृदेिी ? • वसंधु सभ्यता र्ें र्ातृदेिी ? • िेदों र्ें पुरुष देिताओं की अवधकता होने से देिी का उल्लेख कर् । • यद्यवप उषा, आवदवत, पृथ्वी, सरस्वती क े उल्लेख • र्हवषम अभ्रूण की पुत्री “िाक ् ” की स्तुवत र्ें शक्तक्त का र्हत्व प्रदवशमत । • शतपर् ब्रा॰: रुद्र की बहन “अक्तिका” • तैतररय उप॰: रुद्र की पत्नी पािमती का िणमन • क े नोपवनषद: हेर्िती उर्ा को विद्या-देिी कहा है।
  • 5. र्हाकाव्ों र्ें देिी उपासना क े उल्लेख • र्हाभारत: दुगाम उपासना (काली, कपाली, उर्ा, विजया, चण्डी आवद) • र्हाभारत :र्वहषासुरर्वदमनी, विंध्याचलिवसनी, नारायणवप्रया • र्हाभारत: अजुमन को क ृ ष्ण ने दुगाम उपासना का परार्शम वदया र्ा। • प्रातःकाल शक्तक्त की उपासना करने िाला युद्ध र्ें विजयी होता है
  • 6. पुराणों र्ें देिी उपासना क े संदभम • हररिंश, विष्णु पुराण: कालरूवपणी योगवनद्रा से यशोदा से जन्मी, विंध्याचलिवसनी • र्ाक म ण्डेय: र्वहषासुर का िध करने क े वलए (ब्रम्हा, वशि, विष्णु, इंद्र, चंद्र, िरुण, सूयम आवद) देिताओं क े तेज से उत्पन्न र्वहषासुरर्वदमनी। • र्ाक म ण्डेय: “दुगामसिशंती” अंश र्ें देिी क े तीन रूप 1. र्हाकाली 2. र्हालक्ष्मी 3. र्हासरस्वती • र्ाक म ण्डेय पु॰: देिी का सर्स्त प्रावणयो र्ें शक्तक्त, शांवत, दया, बुक्तद्ध, एिं र्ाता क े रूप र्ें िास
  • 7. देिी क े विवभन्न नार् 1. शुम्भ–वनशुम्भ दैत्ों क े संहार क े वलए पािमती क े शरीर से उत्पन्न हुई “वशिा” 2. पािमती क े शरीर-कोश से वनकलने क े कारण “कौवशकी” 3. वशिा क े जाने से पािमती का शरीर काला पड गया अंतः “कावलका” 4. शुम्भ –वनशुम्भ दैत्ों क े संहार क े िक्त क ृ ष्णिणी ललाट से उत्पन्न “काली” 5. चण्ड-र्ुण्ड दैत्ों क े संहार वकया इसवलए “चार्ुंडा” 6. अक्तिका से उत्पन्न सिर्ातृका: ब्राह्मी, कौर्ारी, र्ाहेश्वरी, िैष्णिी, िाराही, नरवसंही और एं द्री
  • 8. शक्तक्त एिं वशि का सिन्ध 1. शक्तक्त वशि की पत्नी । 2. वशि-उर्ापती ; उर्ा-र्ाहेश्वरी 3. उर्ा-पािमती, वशि-वगरीश 4. शक्तक्त-काली; वशि-रुद्र 5. अत: देिी वशि की ही शक्तक्त र्ानी गयी। 6. सौर पुराण: देिी को वशि की “ज्ञानर्यी शक्तक्त” कहा है, जो विवभन्न कायों हेतु वभन्न रूप धारण करती है। 7. र्हाभारत: शक्तक्त को नारायण एिं वशि की पत्नी • शक्तक्त का स्वरूप : a) परर्शक्तक्त b) सिमव्ापी c) र्ाया
  • 9. देिी उपासना क े साक्ष्य पुरातात्विक साक्ष्य साहित्विक स्त्रोत ६४ योवगनी र्ंवदर, भेडाघाट िैवदक काल: पृथ्वी, सरस्वती, आवदवत ६४ योवगनी र्ंवदर, खजुराहो र्हाभारत: दुगाम, काली, चण्डी, उर्ा ६४ योवगनी र्ंवदर, वहरापुर, ओवडशा र्ाक े डेय पुराण: र्वहसासुर र्वदमनी कार्ाख्या देिी र्ंवदर, आसार् दुगामसिशती: र्हाकाली, र्हालक्ष्मी, र्हा सरस्वती ओवडशा र्ंवदरों र्ें सिर्ातृका र्त्स्य पुराण: सिर्ातृका शक्तक्त पीठ अवभलेख/ ऐवतहावसक वििरण : 1. प्रवतहार राजा र्हेंद्रपाल क े अवभलेख र्ें “निदुगाम” का उल्लेख । 2. कल्हन राजतरंगीनी: 3. कश्मीर र्ें लकडी की शारदा र्ूवतम की पूजा 1. ब्राह्मणी 2. कौर्ारी 3. र्ाहेशश्वरी 4. िैष्णिी 5. इंद्राणी 6. िराही 7. चार्ुंडा
  • 10.
  • 11.
  • 12.
  • 13. देिी का स्वरूप वशि की पत्नी •कल्याणकारी स्वरूप दुगाम •उग्र स्वरूप वत्रपूरसुंदरी •कार्प्रधान स्वरूप
  • 14. शक्तक्त का कल्याणकारी स्वरूप • वशि की पत्नी, देिी की पूजा वशि क े सार् • नार्: वशिा, र्ाहेश्वरी, उर्ा, रुद्राणी, भिानी, पािमती • रूप: सौम्य, कल्याणकारी, दयािती, • तुलना: देिी की तुलना सरस्वती, सावित्री से • र्त: देिी ही परर्ात्मा है • वशि-परर्वपता एिं देिी-जगतर्ाता • उपासकों की रविता एिं शत्रुओं की विनावशका • विश्व (वशि) की परर् शक्तक्त • अधम-नारीश्वर की कल्पना • देिी भागित: देिी की क ृ पा से ब्रह्मा, विष्णु एिं र्हेश विश्व का सजमन, पालन एिं संहार करते है। • जन साधारण र्ें लोकवप्रय • पािमती क े रूप र्ें पूजनीय
  • 15. शक्तक्त का उग्र स्वरूप • शक्तक्त का स्वतंत्र व्क्तक्तत्व • नार्: जया, विजया, काली, कराली,चार्ुण्डा, र्वहषार्वदमनी, र्हाकाली • रूप: सौम्य (वशि-पत्नी), उग्र (दुगाम), कार्प्रधान • स्वरूप: बहुर्ुखी, बहुभुजी, नेत्र एिं र्ुख रक्तिणम, शरीर पर रक्त लेप, हार् र्ें पाश अस्त्र-शस्त्र से सुसक्तित • उपासना : विजय हेतु • र्हाभारत: कालरावत्र रूप र्ें िणमन ; क ृ ष्णिणम • कापावलक सम्प्रदाय र्ें पूजनीय • कापावलक रुद्र की सहचरी क े रूप र्ें िणमन • बवल, सुरा से पूजा से प्रसन्न
  • 16. शक्तक्त का कार्प्रधान रूप • कार्प्रधान रूप शाक्त धर्म का र्ूल वसद्धांत • इसक े उपासकों को शाक्त एिं इस सम्प्रदाय को शाक्त सम्प्रदाय कहते है। • उपासना विवध: तांवत्रक साधन (ईसा सातिी शताब्दी) • कई शक्तक्तयों, सम्प्रदाय, धर्म का प्रभाि • अिैवदक प्रभाि, बौद्ध धर्म (तारा), • नार्: आनंदभैरिी, वत्रपूरसुंदरी, लवलता, उपांग-लवलता, र्हा भैरिी • सावहत्: शाक्त सम्प्रदाय क े सावहत् को “तंत्रसावहत्” कहते है। • सावहत्: वत्रपूररहस्य, कावलतंत्र, प्रपंचसारतंत्र, र्ावलनी- विजय, तंत्रराजतंत्र आवद प्रर्ुख ग्रंर् • इस रूप र्ें देिी सौंदयमिती है • तांवत्रक साधना से देिी से एकात्म स्र्ावपत करना उपासक का ध्येय • कापावलक स्वरूप र्ें देिी का रूप भयािह, क्र ू र, क े श विर्ुक्त, र्ुख कराल, क ृ ष्णिणम, नरर्ुण्डधाररणी, रक्त- र्ांस-र्द्य वप्रय
  • 17. देिी का स्वरूप हिनम्र स्वरूप उग्र स्वरूप कामप्रधान रूप देिों क े सार् उपासना स्वतंत्र व्क्तक्तत्व कार्प्रधान रूप शाक्त धर्म का र्ूल वसद्धांत वशि की पत्नी, वशिा, र्ाहेश्वरी, उर्ा,रुद्राणी भिानी,पािमती जया, विजया, काली, कराली,चार्ुण्डा, र्वहषार्वदमनी, र्हाकाली इसक े उपासकों को शाक्त सम्प्रदाय कहते है। तांवत्रक साधन सौम्य, कल्याणकारी, दयािती, सौम्य (वशि-पत्नी), उग्र (दुगाम), कार्प्रधान आनंदभैरिी, वत्रपूरसुंदरी, लवलता, उपांग-लवलता, र्हा भैरिी देिी की तुलना सरस्वती, सावित्री से वसंह िाहन, अस्त्र-शस्त्र से सुसक्तित शाक्त सम्प्रदाय क े सावहत् को “तंत्रसावहत्” कहते है। देिी ही परर्ात्मा है देिी की पूजा वशि क े सार् वशि-परर्वपता देिी कापावलक सम्प्रदाय र्ें बवल, सुरा से पूजा तांवत्रक साधना से देिी से एकात्म स्र्ावपत करना उपासक का ध्येय कापावलक स्वरूप र्ें देिी का रूप भयािह, क्र ू र, क े श विर्ुक्त, र्ुख कराल, क ृ ष्णिणम, नरर्ुण्डधाररणी, रक्त-र्ांस-र्द्य वप्रय जन साधारण र्ें लोकवप्रय इस रूप र्ें देिी सौंदयमिती है अधम-नारीश्वर की कल्पना
  • 18.
  • 19.
  • 20. वत्रपूरसुंद री 1. अलौवकक सौंदयमिती 2. देिी: सिोच्च स्र्ान र्ें प्रवतवित 3. ब्रह्मा, हरी, रुद्र एिं ईश्वर देिी क े र्ंच क े चार पैर 4. नार्: परा, लवलता, भट्टाररका 5. आनंदभैरि या र्हाभैरि देिी की आत्मा 6. देिी क े ९ व्ूह: काल, क ु ल, नार्, ज्ञान, वचत्त, अहंकार, बुक्तद्ध, र्हत एिं र्न 7. इन्ही क े सक्तिलन से विश्व का वनर्ामण 8. तांवत्रक साधना से वत्रपूरसुंदरी ऐकात्म स्र्ावपत करना शाक्त उपासक का उद्देश्य 9. वत्रपूरसुंदरी की प्राक्ति क े वलए स्त्री बनने की कल्पना 10. वत्रपूरसुंदरी: कावलतंत्र, प्रपंचसारतंत्र क े अनुसार: a) क्र ू र एिं भयािह b) क े श विर्ुक्त c) र्ुख कराल d) क ृ ष्णिणम e) वदगंबरी f) नरर्ुण्डधाररणी g) श्मशान विहाररणी h) रक्त, र्ांस, नरबली, र्द्य वप्रय
  • 21. शाक्त सम्प्रदाय उपासना विवध • देिी क े कार्प्रधान रूप की उपासना • देिी एकर्ात्र सिोच्च देिता, सृवि की वनर्ामता,पालनकताम, संहारकताम • देिी उपासना क े विविध स्वरूप : तंत्र साधना • वशि क े कापावलक रूप से सर्ानता 1. विर्ुक्त क े श, 2. क ृ ष्णिणी, 3. नरर्ुण्ड धाररणी, 4. स्मशांन विहाररनी, 5. रक्त-र्ांस वप्रय 6. नरबवल वप्रय, 7. र्द्य वप्रय • देिी क े सार् अंतरंगता स्र्ावपत करना • उपावसका: उपासना का र्ाध्यर् • उपावसका: देिी का रूप • उपावसका: देिी से एकरूपता क े वलए अंतरंगता
  • 22. शाक्त वसद्धांत • वशि-शक्तक्त को आद्य तत्व र्ाना गया • शाक्त वसद्धांत क े अनुसार a) शक्तक्त र्ें ब्रम्हा,विष्णु और वशि क े अंश सक्तिवलत है। b) शक्तक्त सिमव्ापक है। c) शक्तक्त वशि का वक्रयाशील रूप है। d) उपासक शक्तक्त क े वकसी एक रूप को उपास्यदेिी र्ानक े उपासना करते है। e) शाक्त र्त र्ें “क ुं डवलनी शक्तक्त” जो रहस्यर्यी है, सम्पूणम ब्रम्हाण्ड र्ें व्ाि है, र्ंत्रो-योग साधना से प्राि की जा सकती है। हिि - शक्तक्त शाक्त वसद्धांत
  • 23. शाक्त वसद्धांत • आचारों क े आधार पर शाक्त सम्प्रदाय क े दो िगम 1. सर्ायाचारी: 2. कौलर्ागी: समायाचारी कौलमार्गी सार्ावजक िार्र्ागी अन्त साधन पे अवधक बल साधक श्रेि र्ाने जाते है। सर्य क े अनुसार साधना यह अद्वेतिादी होते है (पााँच “र्”: र्द्य, र्ांस, र्त्स्य, र्ुद्रा, र्ैर्ुन) सर्ाज र्ें र्ान्यता सर्ाज र्ान्यता नही लोकवप्रय अलोकवप्रय: त्वचा-चंदन, शत्रु-वर्त्र, स्मशान –घर र्ें कोई भेद नही।
  • 24. शाक्त सम्प्रदाय उपासना र्त • र्ास-र्द्य की उपासना क े कारण पुराणों र्ें वनंदा • ब्रह्मिैितम पुराण: ज्ञान प्राक्ति र्ें बाधक, योग-र्ागम अिरुद्ध करनेिाली, अज्ञानरूपा । • र्त प्रदवशमत करने हेतु “सांख्य दशमन” का उपयोग • प्रक ृ वत+पुरुष का वसद्धांत • शक्तक्त-प्रक ृ वत का स्वरूप तर्ा परर्पुरुष-आवद शक्तक्त बताया गया। • पूजा-अचाम र्ें क ु छ सुधार वकए गए। • व्िहार, र्द्यपान का वनषेध
  • 25. र्ातृकायें • पुराणो र्ें उल्लेख : वनन्म कोवट की स्त्री देिताए • र्त्स्य पुराण: दैत्ों क े विनाश क े वलए वशि ने उन्हें उत्पन्न वकया • िराह पुराण: र्ातृकायें देिी क े अट्टहास से उत्पन्न हुयी • संभितः स्र्ानीय, लोक प्रचवलत देिी वजन्हें धर्म र्ें सर्ावहत वकया गया • र्ातृकायें की संख्या सात र्ानी गयी है। • क ु षाण काल र्ें सि र्ातृकायें का अंकन प्राि होता है। • अर्रकोश: सि र्ातृकाओं का उल्लेख • पूिम र्ध्यकाल क े अनेक र्ंवदरो र्ें प्रदवशमत
  • 26. योवगनी • भेडाघाट का ६४ योवगनी र्ंवदर योवगनी पूजा का प्रवसद्ध क ें द्र • इन योवगवनयों को र्ातृका कहा जाता र्ा • आरंभ र्ें इनकी संख्या वनवित नही र्ी • इनकी पूजा पृर्क अर्िा संयुक्त रूप से होती र्ी। • इनकी संख्या, ७, बाद र्ें ९ एिं कालांतर र्ें ६४ और ८४ हो गयी • योवगनी पूजा शाक्त सम्प्रदाय का ही एक रूप है • योवगनी पूजा क े सैधाक्तन्तक पि की वििेचना र्त्सेंद्रनार् क े कौलज्ञानवनणमय ग्रंर् र्ें प्राि होती है। • योवगनीयों की पूजा गुि पद्धवत क्तस्त्रयों की संतवत क े वलए होता र्ा। • योवगनी सूची र्ें धीरे-धीरे ६४ योवगवनयों का अंतभामि हुआ • इस सूची र्ें ब्राह्मी, र्ाहेश्वरी, िैष्णिी आवद र्ातृकाओं का सर्ािेश हुआ
  • 27. योवगनी • इनकी तांवत्रक रूप से पूजा-विवध होती र्ी • इनर्े चार, आठ, बारह, चौसठ एिं अवधक कोणों से बने रहस्यर्य चक्रों क े र्ध्य र्ें वशि प्रवतवित रहते र्े। • ये कोण वशि-शक्तक्त का आंतर-संबंध बताते है। • कर्ासररतसागर, राजतरंवगणी, रुद्रोपषद, प्रबोधचंद्रोदय, िेतालपंच्चविशंवत आवद ग्रंर्ो र्ें योवगवनयों की कर्ाए पायी जाती है। • इसक े अनुसार 1. योवगनी वनन्म श्रेणी की देिता है 2. क्र ू र एिं भयािह रूप 3. रक्त की प्यासी 4. नरबली का विधान 5. नरर्ुण्ड की र्ाला का पररधान 6. कपाल र्ें भोजन 7. र्ृत व्क्तीयों को जीवित कर सकती र्ी 8. इच्छा तृक्ति क े वलए र्नुष्य िध 9. युद्ध िेत्र र्ें नृत्
  • 28. ६४ योवगवनयों क े र्ंवदर • भारत र्ें चौसठ योवगनी र्ंवदर ओवडशा (१) तर्ा र्ध्य प्रदेश (३) र्ें हैं। • इन योवगवनयों को चक्र क े आकार र्ें प्रदवशमत वकया जाता है। • उनक े र्ंवदर भी चक्र क े आकार र्ें वनवर्मत होते हैं। • प्रत्ेक योवगनी इस चक्र अर्ामत पवहये क े एक आरे पर स्र्ावपत होती है। • प्रत्ेक र्ंवदर र्ें इन योवगवनयों की सूची र्ें वभन्नता होती है। • प्रत्ेक योवगनी का एक विशेष नार् होता है तर्ा वकसी भी दो र्ंवदरों र्ें इन नार्ों की सूची सर्ान नहींहोती। • इन योवगवनयों र्ें क ु छ दयालु तो क ु छ क्र ू र प्रतीत होती हैं। • प्रत्ेक योवगनी की एक विशेष शक्तक्त होती है वजसक े आधार पर ही अपनी इच्छा पूवतम क े वलए भक्तगण संबंवधत योवगनी की आराधना करते हैं। • ये इच्छाएं संतान प्राक्ति से लेकर शत्रु क े विनाश तक क ु छ भी हो सकती हैं। • योवगवनयों की तांवत्रक वक्रयाएं अत्ंत गोपनीय होती हैं। इस पंर् क े अनुयावययों क े सर्ि ही इन वक्रयाओं को उजागर वकया जाता है।
  • 29. • यह चौसठ योवगनी र्ंवदर र्ुरैना वजले र्ें वर्तािली गााँि र्ें है। • 1323 ईस्वी क े एक वशलालेख क े अनुसार, यह र्ंवदर कच्छप राजा देिपाल द्वारा बनाया गया र्ा। • यह बाहरी रूप से 170 फीट की वत्रज्या क े सार् आकार र्ें गोलाकार है। • इसक े आंतररक भाग क े भीतर 64 छोटे कि हैं।
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  • 32. यह र्वदर हीरापुर भुिनेश्वर से लगभग १५ वकलोर्ीटर की दू री पर है। इस र्ंवदर का वनर्ामण संभितः भौर् िंश की साम्राज्ञी हीरादेिी ने करिाया र्ा।
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  • 34. चौसठ योवगनी र्ंवदर, उडीसा क े रानीपुर झारल, बलांगीर व़िला
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  • 40. खजुराहो का ६४ योवगनी र्ंवदर
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  • 43. उपसंहार • भारत का प्राचीन धर्म सम्प्रदाय • शाक्त दशमन र्ें ज्ञान, भक्तक्त और कर्म का सर्न्वय है। • शाक्त धर्म र्ें अिैवदक तत्वों का प्रभाि प्रदवशमत होता है। • शक्तक्त पूजा वहंदू धर्म का अवभन्न अंग है। • सीवर्त स्वरूप र्ें शाक्त-सम्प्रदाय की तांवत्रक उपासना प्रचवलत है। • ितमर्ान सर्य र्ें देिी पूजा अत्वधक लोकवप्रय