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1. सौर सम्प्रदाय
डॉ. विराग सोनटक्क
े
सहायक राध्यापक
राचीन भारतीय इततहास, संस्कृ तत और पुरातत्ि विभाग
बनारस हहंदू विद्यापीठ, िाराणसी
B.A. Semester III
Paper: 301, UNIT: V
Cult Worship
3. प्रस्तावना
• सूयय से ही पृथ्िी पर जीिन है
• सूयय : सिय रेरक, सिय रकाशक, सिय रितयक एिं कल्याणकारी है।
• सूयय विश्ि को रकाश देता है इसलिए इसे भास्कर कहा जाता है।
• सूयय िनस्पततयों क
े पोषण में अपनी ऊजाय समाहहत करता है अत:
इसे पूषा क
े नाम से जाना जाता है।
• हदन, रात, मास, पक्ष, संित्सर, ऋतु आहद का रितयक सूयय है।
• सूयय मानि क
े लिए उजाय का रथम स्रोत है।
• सूयय को ईश्िर का नेत्र कहा है।
4. सौर सम्प्प्रदाय
• सूयय को “उपास्यदेव” पूजने वाले
• सूयय के ववविन्न रूपों की आराधना करनेवाले
• सूयय हमेशा से ही प्रिावशाली देवता रहे है।
• प्राचीन काल से ही सूयय देव के अपने
अनुयायी रहे है।
• यह अनुयायी “सौर सम्प्प्रदाय” के नाम से
जाने जाते है।
• प्रकृवत का महत्वपूर्य स्त्रोत : वनत्य प्रत्यक्ष
दशयन
• सूयय “सृवि का वनमायता”
5. सूयोपासना के उल्लेख
• ऋग्वेद के दस सूक्तों में सूयय के प्राकृवतक स्वरूप का वर्यन है।
• ऋग्वेद: सूयय, उषा, साववत्र
• ऋग्वेद में सूयय गौर् देवता
• सूयय को आकाश (घौस) का पुत्र कहा है।
• उत्पवि: ववराट पुरुष के नेत्र से
• वह अंधकार दूर करते है
• कायय : प्रकाश के देवता है।(िूतों पे ववजय)
• मनुष्य को दीघयजीवन प्रदान करते है, आलस्य और दु:स्वप्नो को दूर करते है।
• ऋग्वेद में सूयय को पापनाशक देवता कहा है।
• कौषीतवक ब्राह्मर्: प्रातः, मधयांह और सायंकाल को आराधना
• सूयय: पाप-क्षय, सम्प्पवि, यश, स्वास्थ आवद के पूजन
• महाकाव्य में उल्लेख
• ऐवतहावसक काल में सूयय पूजा का प्रचलन लोकवप्रय होने के साक्ष्य
6. सूयय पूजा के ऐवतहावसक प्रमार्
•लोकवप्रयता: आहत मुद्राओं पे सूयय का अंकन
•िरहूत: वशल्पकलाओं में कर्यकुंडल पे सूयय का मानवी अंकन
•कुषार् वसक्कों पर सूयय के नाम
•गुप्त काल में वैशाली एवं िीटा में प्राप्त सूयय प्रवतमा
•मंदसोर अविलेख: सूयय मंवदर एवं सूयय पूजा के उल्लेख
•स्कंदगुप्त का इंदोर ताम्रपट : सूयय मंवदर के स्थापना के उल्लेख
•ग्वालीयर अविलेख: हुर् राजा तोरमान और वमवहरकुल सुयोपासक थे।
•हषयवधयन के दानपत्रों से ज्ञात होता है की, प्रिाकर वधयन, आवदत्य वधयन
और राज्य वधयन सूयय (आवदत्य) के परमिक्त थे।
•बार्िट्ट : उज्जेन में सूयय पूजा का उल्ल्लेख
•हेनत्सााँग : कश्मीर में सूयय मवदर का वर्यन
7. पूवय-मधयकाल में सूयय पूजा
• गहडवालों का कन्नोज ताम्रपत्र
• चंदमहासेन, चाहमान राजा सूयय िक्त था।
• चालुक्य राजा िीम देव का पाटन ताम्रपत्र में सूयय मंवदर के वलए दान का
उल्लेख
• प्रबंध वचंतामवर् : पविम िारत में जैन अनुयायी द्वारा सूयय उपासना के
उल्लेख
•गोववंदपर अविलेख: वबहार में “मग” ब्राह्मर्ों की उपवस्थवत।
• अनेक मंवदरो में सूयय की मूवतययााँ।
• कश्मीर का मातंड मंवदर, मोढेरा गुजरात का सूयय मंवदर एवं कोर्ाकय
ओव़िशा का सूयय मंवदर सूयय पूजा के लोकवप्रयता के प्रमार् है।
12. सूयय पूजा का ववदेशी सम्प्बन्ध
• सूयय पूजा का संबंध ईरान से
• सौर सम्प्रदाय का ईरानी लमथ्र सम्प्रदाय से भी पहिी शताब्दी में सम्प्बन्ध दृष्टटगत होता
है।
• वराहवमवहर: सूयय की मूवतययों और मंवदरो की प्रवतष्ठा मगों से करवानी चावहए क्योंवक उनकी वववशि
वववध है।
• िववष्य पुरार्: कृष्र् और जाम्प्बवंती के पुत्र साम्प्ब ने वसंध में चंद्रिागा नदी के तट पर सूयय मंवदर का
वनमायर् कराया था, वजसकी पूजा शक द्वीप के “मग” ब्राह्मर्ों ने की थी।
• गरु़ि पुरार्: साम्प्ब कुष्ठरोग से ग्रवसत था, तब शकद्वीपी को बुलाया गया और सूयय के पूजा द्वारा
कुष्ठरोग से मुवक्त वदलायी गयी।
• िववष्य पुरार्: मगों का इवतहास ववशद है, उसमें मगों की उत्पवि सूयय से और मगों का वर्यन
उदीच्य वेश वाला वकया है।
• िववष्य पुरार्: मगों के संदिय में जरशब्द या जरशस्त का उल्लेख आता है। ये मग प्राचीन फारस के
मगी है।
• अलबरुनी: िारत में मगों का अवस्तत्व स्वीकार करता है।
• मगों को शकद्वीपी, शक प्रदेश का वनवासी कहा है, जो उनके ववदेशी होने का प्रमार् है।
• अंतः सूयय अथवा वमवहर की पूजा िारत में फारस से पारवसक मगों द्वारा लायी गयी होगी।
• डॉ॰ िण्डारकर: ईसा प्रथम सदी तक ववदेशी प्रिाव नही
13. सूयय पूजा का स्वरूप
•सूयय की ववविन रूपों में पूजा।
•नाम: लोलाकय , िास्कर, मातंड, िास्कर-स्वामी
•लाल पुष्प माला
•लाल चंदन
•गायत्री मंत्रो का उच्चारर्
•रवववार को व्रत का पालन
•प्रातः सूयय दशयन एवं उपासना
•वववशि उत्सव: कुम्प्ि, छट एवं लोलाकय
14. सौर लसद्धांत
• छान्दोग्यपतनषद: सूयय को रणि तनरूवपत कर उनकी ध्यान
साधना से पुत्र राष्तत का िाभ बताया गया है।
• ब्रह्मिैियत पुराण: सूयय को परमात्मा स्िरूप मानता है।
• गायत्री मंत्र सूयय परक ही है।
• सूयोपतनषद: सूयय को ही संपूणय जगत की उत्पवत्त का कारण
तनरूवपत ककया गया है।
• सूयोपतनषद: सूयय को संपूणय जगत की आत्मा तथा ब्रह्म बताया
गया है।
• सूयोपतनषद: संपूणय जगत की सृष्टट तथा उसका पािन सूयय ही
करते है।
• सूयय ही संपूणय जगत की अंतरात्मा हैं।
15. सौर उपासक
• तनत्य: सूयय नमस्कार, अर्घययदान
• सूयोदय एिं सूयायस्त समय सूयोन्मुख होक
े आहदत्यव्रत
• षष्टट एिं सततमी में उपिास एिं पूजा
• अनुयायी ििाट पर िाि चंदन से सूयय की आकृ तत बनाते है।
• िाि फ
ू िो की मािा धारण करते है
• मोक्ष पाने क
े लिए उदीयमान तथा अस्ताचिगामी सूयय की
आराधना करते है।
16. सौर उपासक
सूयय उपसको की ६ श्रेणणया
1. सूयय को जगत ब्रह्म क
े रूप में रातः सूयय की उपासना
2. सूयय को जगतसंहारक महेश्िर क
े रूप में मध्यांन्हकाि में
सूयय की उपासना
3. सूयय को जगतपािक विटणु क
े रूप में अस्तंगत सूयय की
उपासना
4. सूयय की ततनो रूपों में रातः, मध्यांन्ह, सााँयकाि में
उपासना
5. सूयय बबम्प्ब क
े दैतनक दशयनाथी, सूयय-बबम्प्ब में परमेश्िर की
कल्पना (सूयय-बबम्प्ब क
े दशयन बबना अन्न नही)
6. तापसी शिाका से सूयय-बबम्प्ब को रतीक क
े रूप में मस्तक,
बाहु एिं िक्ष पर गुदिाते है।
17. सूयय प्रवतमा
उदीच्यवेश (उत्तरी)
• सूयय पूजा पर पारसीक रभाि
हदखता है।
• कतनटक क
े लसक्कों पर उत्कीणय
लमहहर पारसी है।
• सूयय रततमा क
े तनमायण क
े संबंध
में िराहलमहहर क
े अनुसार:
1. सूयय मूततयउदीच्यिेश
(पैरजानुपयंत ढक
े )
2. कमर में अव्यंग (मेखिा)
3. दोनों हाथ में सूययफ
ु ि लिए।
4. पैरों में जूता
5. अिंकरण युक्त
6. अश्िरथ पे आरूढ
7. सहयोगी देिता: उषा,
रत्युषा, सारण्य एिं छािा
दक्षिणी
• अंशुमद्भेदागम्, सुरभेदागम्आहद
में उनक
े शरीर को अनािृत्त रदलशयत
करने पर बि हदया गया है।
• इस रूप में विदेशी रभाि अत्यल्प
है।
• सूयय क
े दोनों हाथों में कमि तथा
मुट्हठयां बंधी एिं क
ं धों पर उठी
होनी चाहहये।
• सूयय का शरीर उत्तरीय से आिृत्त हो,
• सूयय कमि पर खडे या सात घोङों
क
े ऊपर हदखाए जाते है।
18. सूयय रततमाओं का मूतय रुपांकन
रथ पर आरुढ - बैठी हुई सूयय रततमाएाँ
• इन मूततययों में सूयय की रततमा
सहजासन में कमि पर बैठी हुई
अंककत की जाती है।
• आसन क
े नीचे सात अश्िों से युक्त
रथ तथा अश्ि पंष्क्त क
े मध्य में
सातों अश्िों की िल्गाएाँ खींचता
हुआ साराथय अरुण उत्कीणय ककया
जाता है।
• विदेशी रभाि से रेररत क्त सूययदेि
क
े चरण स्पटट रुप से अंउपानह
युककत लमिते हैं।
• सूयय की मूततय किच पहने हुए, दोनों
हाथों में दो विकलसत कमि लिए
उत्कीणय होती है।
• दोनों पाश्िों पर सूयय क
े पररिार
देिताओं की अन्य आकृ ततयााँ भी
अंककत की जाती है।
सूययदेि की स्थानक मूततययााँ
• सूयय मूततययााँ पर ईरानी रभाि को
स्पटट रुप से अंककत करता है।
• इन मूततययों में सूयय कमि की चरण
चौकी पर खडे।
• किच तथा कहट से चरण तक
चोिक पहने हुए
• दो पूणय विकलसत कमि या कमि
कालिकाओं क
े गुच्छे लिए हुए
उत्कीणय ककये जाते हैं।
• सूयय क
े पररिार-देिता भी अंककत
रहते हैं ष्जनकी क
ु ि संख्या
तनधायररत नहीं है।
19.
20.
21.
22. उपसंहार
• सूयय को कभी विस्मृत नही ककया गया
• िेहदक काि से सूयय क
े रमाण
• एततहालसक काि में सूययपूजा का अष्स्तत्ि
• ितयमान काि में भी पूजनीय
• पाप-क्षय,सम्प्पवत्त, स्िस्थ, यश क
े लिए सूययपूजन
• राजपूताना एिं उत्तर भारत में “मग ब्राह्मणों” का अष्स्तत्ि
• सूयय को पाँचदेिोपासना क
े पंच महादेिों में िैटणि, शैि, शष्क्त
और गणेश क
े साथ रततष्टठत ककया गया है।
• छठ पिय सूयय देिता की उपासना क
े लिए मनाया जाता है।