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1. उत्तर वैदिक धर्म
डॉ. दवराग सोनटक्क
े
सहायक प्राध्यापक
प्राचीन भारतीय इदतहास, संस्क
ृ दत और पुरातत्व दवभाग
काशी दहंिू दवश्वदवघालय, वाराणसी
B.A. Semester III
Paper:301, UNIT: III
Vaidik Religion
2. उत्तर वैदिक काल
• सभ्यता का क
े न्द्र पंजाब से बढ़कर क
ु रूक्षेत्र(दिल्ली और गंगा-
यर्ुना िोआब का उत्तरी भाग)
• ऋग्वैदिक िेवताओं की इस काल र्ें भी पूजा
• अनेक िेवताओं की स्थिदत र्ें पररवतमन
• ऋग्वैदिक प्रर्ुख िेवता जैसे इंद्र व वरुण आदि इस काल र्ें प्रर्ुख
नहींरहे।
• प्रजापदत को सवोच्च थिान प्राप्त हो गया।
• रुद्र एवं दवष्णु का र्हत्व भी बढ़ गया।
• यज्ञ इस संस्क
ृ दत का र्ूल िा। यज्ञ क
े साि-
साि् अनेकानेक अनुष्ठान व र्ंत्रदवदधयां भी प्रचदलत हुईं।
• उत्तर वैदिक काल र्ें अनेक प्रकार क
े यज्ञों का प्रचलन दकया गया
िा।
• स्त्रोत:
3. यज्ञ
• वैदिक युग र्ें यज्ञ करना प्रर्ुख कायम िा।
• धर्म, िेश, सर्ाज की र्यामिा की रक्षा क
े दनदर्त्त र्हापुरुषों को एकत्र
करना यज्ञ कहलाता है।
• िेवताओं क
े उद्देश से अदि र्ें हदवद्रव्य का जो त्याग दकया जाता है, उसे
यज्ञ कहते है
• िेवता अदि क
े द्वारा र्ानव द्वारा प्रित्त भोजन करते है।
• प्रारस्िक काल र्ें सम्पदत्त, सुरक्षा, दवजय, िीघामयु, संतदत, आदि क
े दलए
यज्ञ दकए जाते िे।
• यज्ञ लोक कल्याणकारी कायम र्ाना गया
• ऐसा दवश्वास िा की संसार की कोई सम्पिा नही जो यज्ञ द्वारा प्राप्त न हो
सक
े ।
• ऋग्वेि: यज्ञ से लौदकक तिा पारलौदकक सुख की प्रास्प्त होती है।
• श॰ ब्रा॰: सर्स्त कर्ो र्ें श्रेष्ठ कर्म यज्ञ को कहा है।
4. • पुरोदहतों की र्हत्ता र्ें दवकास
• र्ंत्रो क
े उच्चारण की र्हत्ता
• इस काल र्ें प्रत्येक वेि क
े अपने पुरोदहत हो गए
• यज्ञ राजा एवं प्रजा प्रर्ुखता से कर रहे िे
• िान-िदक्षणा र्ें बढ़ोतरी
• आहुदत (बदल)
यज्ञ
वेद पुरोहित
ऋग्वेद होतृ
सामवेद उद्गाता
यजुवेद अध्वयुम
अथवववे
द
ब्रह्म
5. यज्ञ की र्हत्ता
• ऋग्वेि: यज्ञ से वेि, छं ि , जौ, चतुष्पि की उत्पदत्त।
• श्रौत सूत्र और गृह्य सूत्र र्ें सूक्ष्म और दवस्तृत वणमन।
• ऋग्वेि (पुरुषसूक्त): दवश्व की उत्पदत्त यज्ञ कर्म से।
• अिवमवेि: संसार की नादभ यज्ञ है।
• यजुवेि: यज्ञ सृदि चक्र का क
ें द्र है।
• शतपि ब्राह्मण: यज्ञ श्रेष्ठ कर्म।
• ऋग्वेि: जो यज्ञ नही र्ानता वो सुख वंदचत होते हुए , काक, दगद्ध,
क
ु कर योनी प्राप्त
• एतरेय ब्राह्मण: ऐसी कोई सम्पिा नही जो यज्ञ से प्राप्त नही होती।
• यज्ञ: वैदिक धर्म का र्ेरुिंड। (बलिेव उपाध्याय)
6. यज्ञ का अिम
• स्वाहा: स्व: स्वािम बुस्द्ध + आ: पूणमतः + हा: त्याग।
• आध्यास्िक: र्ानव हृिय र्ें आिज्योदत (सुप्त ) जागृत करना।
• धादर्मक: िेवताओं को प्रसन्न करने का साधन, श्रद्धा प्रकट करने
का स्त्रोत,
• वैज्ञादनक: प्राक
ृ दतक संतुलन की दवदध , प्रक
ृ दत चक्र : ऋतुचक,
सौरचक्र, चलायर्ान
7. Later Vedic religion was hugely based on sacrifices.
Sacrifices or yajnas were performed for various reasons.
To invoke
Gods
To grant
victory in
battle
Acquisition
of cattle
Boon for
sons &
prosperity
Panch
mahayajnas
for cultural
duties
Later Vedic Sacrifices
8. Meaning of Yajna
• Three fold concept.
Spiritual
meaning
Religious
meaning
Scientific
meaning
It’s a process to
awaken hidden self
fire in man.
Mode to please
Gods.
Cyclical &
Continuous process
Concept of Edam
na mam:
Nothing is mine
Tool to express
religious faith.
Maintains natural
balance.
Yajna offering:
Swaha
Meaning sacrificing
one’s selfish mind &
motives.
Holds the merit of
best good deed.
By cycle of Yajna
everything reaches
back to its original
place.
9. Elements of Yajna
5 main components.
1. God : to whom sacrifice is made.
2. Havya: That which is offered to Gods.
3. Mantra: Power filled words to make the offering.
4. Rtwija: Priest who performs the sacrifice. Called
Hota for Rgveda, Adhvaryu for Yajurveda,
Udgaataa for Saamveda, Brahma for Atharvaveda
5. Dakshina: wages for labor in form of cash & kind.
10. वैदिक यज्ञ
• ररग्वेदिक काल
• स्वरूप: सरल और साधारण
• कर्मकांड की सरलता
• घर र्ें गृहपदत द्वारा सम्पन्न
• पुरोदहतों की आवश्यकता कर्
• राजा द्वारा दकए यज्ञों का वणमन प्राप्त नही।
• उत्तर वेदिक काल:
• कालांतर र्ें यज्ञों का दवदध-दवधान जदटल हुआ।
11. यज्ञों का वगीकरण
• गृह्य और श्रौत इन िो वगों र्ें दवभादजत
• यज्ञ अदि से ही सम्पन्न होते िे।
• अदि क
े िो प्रकार ज्ञात है ।
• इनकी संख्या २१ बतायी गयी है।
१) स्मारमतादि (smatargni):
गृह कर्म से सम्बंदधत सार्ान्य यज्ञ (जन्म, दववाह, श्राद्ध)
२) श्रोतादि :
श्रौत यज्ञ (श्रुदत (वेि) अनुसार दवस्तृत यज्ञ)
12. यज्ञों का वगीकरण
यज्ञ
स्मारमतादि
गृह कर्म से सम्बंदधत
सार्ान्य यज्ञ
(जन्म, दववाह, श्राद्ध)
पाकयज्ञ
गृहथि
श्रोतादि
श्रौत यज्ञ (श्रुदत (वेि)
अनुसार दवस्तृत यज्ञ)
हवीयमज्ञ
एवं सोर्यज्ञ
1.अ) २५-४० वषम आयु
2.ब) आजीवन अदि
उपासना
15. अदिहोत्र
• अदिहोत्र हवीयमज्ञ र्ें प्रिर् है।
• अदिहोत्र: वह यज्ञ जो यजर्ान और उसकी पत्नी द्वारा चार
पुरोदहतों की सहायता से सम्पादित हो।
• काल: प्रदतदिन:- प्रातः तिा सायंकाल
• अदि की उपासना
• दकि क
े अनुसार: प्रातः काल और सायंकाल र्ें अदि दक
उपासना दजसर्ें िू ध, तंडुल,िदध,घृत की आहुदत िी जाए।
• प्रास्प्त: पापों से र्ुक्त, स्वगम ले जाने की नाव हेतु
16. िशम-पूणमर्ास
• ऐसे यज्ञ दजसर्ें पशुबली िी जायें
• िशम : वह दिन जब चंद्र को क
े वल सूयम ही िेख सकता है।
• पूणमर्ास: जब चंद्र पूणम रहता है।
• यह यज्ञ िशम और पूणमर्ास को सम्पादित होते िे।
• आपस्तंभ: इस यज्ञ का सम्पािन जीवनभर, सन्यास होने पूवम तिा
तीस वषों तक या जब तक शरीर जीणम ना हो जाए करते रहना
चादहए।
• अिाधेय यज्ञ करनेवाला पूणमर्ासी को यह यज्ञ कर सकता है।
• कालावदध: १ या २ दिन
• ४ पुरोदहत
• िशम: अदि, इंद्र प्रर्ुख िेवता
• पूणमर्ास: अदि, सोर् प्रर्ुख िेवता
17. चातुर्ामस्य
• ऋतु सम्बन्धी यज्ञ
• हर चार र्हीने र्ें होने से इसे चातुर्ामस्य नार् पडा।
• इसर्ें चार पवम होते है।
i. वैश्विेव: फाल्गुनी पूदणमर्ा
ii. वरुण -प्रघास: आषाढ़ पूदणमर्ा
iii. साकर्ेध : कादतमकी पूदणमर्ा
iv. शुनासीरीय : फाल्गुन शुक्ल प्रदतपिा
• वसंत, हेर्ंत और वषाम का आगर्न
• शुनासीरीय: क
ृ दष कर्म से संबंदधत
• साकर्ेध: बदल चढ़ाने की प्रिा का उल्लेख, यह बदल दचदटयों क
े
झुंड पे फ
ें क क
े “ रुद्र यह तुम्हारा भाग है”
18. आग्रयण
• आग्रयण: अग्र (प्रिर् फल)+अयन (ग्रहण)
• स्त्रोत: शतपि ब्राह्मण, आपस्तंब धर्मसूत्र, आश्वलायन गृहसूत्र,
बौधायन गृहसूत्र
• नवीन उत्पन्न धान्य (धान तिा यव) क
े सर्य
• यह यज्ञ सम्पादित दकए दबना नए अन्न का प्रयोग नही कर
सकते।
• काल: पूदणमर्ा या अर्ावस्या क
े दिन
• िेव: इंद्र, अदि तिा आहुदतयााँ
• जैदर्दन क
े अनुसार यह श्रोत यज्ञ का एक रूप है।
19. पशुबंध या दनरूढ-पशुबंध
• पशुबंध र्हत्वपूणम यज्ञ है।
• स्वतंत्र पशुबंध को दनरूढ-पशुबंध कहा जाता है।
• यह यज्ञ व्यस्क्त जीवनभर करते िे: ६ र्ास उपरांत या साल र्ें एक बार स्वतंत्र
रूप से
• उत्तरायण एवं िदक्षणयार् क
े सर्य
• दकसी भी दिन सम्पन्न होता िा, वषामऋतु
• कालावदध: २ दिन
• यज्ञ स्ति (यूप) का दनर्ामण: पलाश, खदिर, दबल्ब या रौदहतक नार्क वृक्ष क
े
काष्ठ से होता िा।
• वेिी का दनर्ामण:
1. वेिी पर एक उत्तरवेिी (ऊ
ाँ चवेिी) का दनर्ामण
2. वेिी की पूवम दिशा क
े उत्तरीकोण से लेकर ३२ अंगुल पररणार् का गड्ढा
खोिा जाता िा, दजसे चात्वाल कहते िे।
3. यह गड्डा ३६ अंगुल गहरा होता िा।
• िेवता: प्रजापदत, सूयम, इंद्र
• संज्ञपन: शस्त्रघात क
े दबना पशु को श्वास रोक क
े र्ारना (अंग-दवशेष को अदि
र्ें हवन)
23. सोर्यज्ञ
१) एकाह एक दिन
२) अहीन २ से १२ दिन
३) सत्र
१३ से एक वषम, १०००
वषम
सोर्यज्ञ क
े प्रकार
दवस्तृत, िीघमकालीन तिा बहुसाधनव्यादप
सोर्रस की आहुदत िेने से “सोर्यज्ञ” कहलाता है।
24. अदििोर्
• स्त्रोत: तैतररय संदहता, तैतररय ब्राह्मण, शिपि ब्राह्मण एवं एतरेय
ब्राह्मण।
• अदििोर् सोर्यज्ञों क
े सात प्रकारों र्ें सवमश्रेष्ठ (आिशम) र्ाना जाता िा।
• अदि की स्तुदत की जाने से इसका नार् अदििोर् पडा।
• प्रदतवषम बसंत र्ें अर्ावस्या या पूदणमर्ा को दकया जाता िा ।
• इस यज्ञ का दवभाजन तीन भागो र्ें दकया जाता िा,
1. यिा (दृदि)
2. पशु
3. सोर्
• कालावदध: ५ दिन
• प्रक
ृ दत यज्ञ होने से इसका दवशेष र्हत्व िा ।
• दहलेब्रांड: इसका सम्बन्ध वसंतोत्सव से है।
• इस यज्ञ र्ें १२ शस्त्रों का प्रयोग दकया जाता िा।
सोर्यज्ञ
25. अदतरात्र
• इसर्ें २९ शस्त्र होते है।
• इसका सम्पािन रात्र र्ें होता है।
• पशुओं की संख्या ४ होती है।
27. Vajpeya Yajna
• Vajpeya = Drinking of energy/ food/race?
• Special significance for 17
• Number of shastras, number of animals sacrificed, 17
types of water used, number of items for dakshina,
number of days for completion etc = 17.
• Offerings to Savitr, Agni, Soma, Brihaspati, Indra,
Rudra, Mitra, Varuna
• Taitiriya Brahman: Organization of a chariot race
• King receives the title of Samraata.
• Aashwalayan: After completion of Vajapeya, King
should perform Rajsuya Yajna.
28. राजसूय यज्ञ
• यजुवेि एवं ऐतरेय ब्राह्मण र्ें दवस्तृत वणमन
• राज्यारोहण क
े पश्चात् ।
• कालावदध: २ वषों तक
• राजसूय यज्ञ चक्रवती राजा बनने क
े दलए दकया जाता िा।
• राजसूय यज्ञ सम्राट का प्रर्ुख कतमव्य सर्झा जाने लगा।
• जनता इसर्ें भाग लेती िी
• दवस्तृत आयोजन
• राजसूय यज्ञ धादर्मक की अपेक्षा अदधक सार्ादजक होता गया।
• लाभ: र्नोकार्ना की पूदतम होती, धन प्रास्प्त, कर्ों क
े प्रायदश्चत, अदनि को रोकने, िुभामग्य से र्ुस्क्त,
सौभाग्य की प्रास्प्त, रोगों से र्ुस्क्त आदि
• King had to follow certain rules: No dip in water while bathing, no cutting of hair
for king, horses and his subjects, sleeping near fire altar on tiger skin etc.
• Cutting of hair ceremony after 1 year
• Conducted only by Kshatriyas
• Telling of Shunahshepa legend after completion of gambling rite.
• Extravagant Dakshina
• Performance of Sautramani yajna one month after the completion of Rajsooya.
29. अश्वर्ेध यज्ञ
• प्राचीन यज्ञ : ऋग्वेि र्ें, तैतररय ब्राह्मण, शिपि ब्राह्मण र्ें दवस्तृत वणमन
• बहु प्रचदलत यज्ञ
• कालावदध: तीन दिन
• अश्व की बदल िी जाती िी।
• अश्व का र्ास “उखा” नार्क पात्र र्ें पका क
े आहुदत िी जाती।
• तैतररय ब्राह्मण: अश्वर्ेध को राज्य या रािर कहा है।
• पात्रता: सावमभौर् या अदभदषक्त राजा, दजतने की इच्छा रखने वाले, अतुल
सर्ृस्द्ध पाने की कार्ना करनेवाले
• यदि शत्रु अश्व को पकड ले तो यज्ञ नि हो जाता है।
• फाल्गुन शुक्ल पक्ष क
े ८ वे या ९ वे दिन, आषाढ़ र्ास क
े दिनो र्ें दकया जाता
िा।
• अश्वर्ेध ब्रह्म-हत्या आदि पापक्षय, स्वगम प्रास्प्त एवं र्ोक्ष प्रास्प्त क
े दलये भी दकया
जाता िा।
• रार्ायण र्ें उल्लेख
• सर्ुद्रगुप्त क
े दसक्क
े
• सातवाहन, गुप्त, वाकाटक
30. Ashwamedha Yajna
• Referred to in Rigveda.
• Shatpath & Taitiriya Brahman: provide extensive details.
• Only a consecrated king can perform it along with his consort.
• Done to attain overall prosperity & victory.
• Horse sacrificed at the completion of yajna.
• Huge event. Many events were organized like the chariot race.
Daan to priests and Brahmans at the completion of Yajna.
• Historical examples:
1. Not a popular Yajna in Vedic times.
2. Mahabharata & Ramayana mentions its performance.
3. Samudragupta & Chandra Gupta II: Dwirashwamedhyajin
4. Patnajali: Pushyamitra Sunga did it twice.
5. Naneghat Inscription of Satavahanas: performed
Ashwamedha yajna.
6. Chalukyas (Pulkesin II), Pallavas (Nandivarmman
Pallavmalla), Vakatakas (Pravarsena) also performed it.
31. पुरुषर्ेध यज्ञ
• सोर्यज्ञों र्ें सवामदधक जदटल यज्ञ
• स्त्रोत: शुल्क यजुवेि, क
ृ ष्ण यजुवेि, वाजनसेयी संदहता, एवं सूत्र
• Sacrifice of five animals: Horse, Goat, sheep, Bull & Human.
• Shatapath Brahman: Purushmedha Yajna continues for 40
days.
• पुरुषर्ेध : पुरुष की बदल
• चेदत-दनर्ामण: र्ें ५ पशु की बदल
• दवद्वानो र्ें पुरुष बदल पर र्तभेि (प्रतीकािक और वास्तदवक)
• दर्त्र: तैतररय शाखा क
े अनुसार पुरुषर्ेध वास्तदवक िा।
• शुल्क यजुवेि: प्रािदर्क अनुिान क
े बाि सभी र्ेध्य र्नुष्ों को र्ुक्त कर
दिया जाता िा।
• कालावदध: ५ दिन, श॰ब्रा॰: ४० दिन
• प्रास्प्त: इसक
े सम्पािन से पुरुष की स्थिदत सवमश्रेष्ठ हो जाती है।
• यजर्ान सवम प्रादणयों र्ें श्रेष्ठ और सब क
ु छ प्राप्त करने र्ें सर्िम
• पुरातास्त्वक प्रर्ाण: कौशाम्बी (उत्तर प्रिेश), र्नसर (नागपुर, र्हारािर )
33. पाकयज्ञ (स्मारमतादि)
1. ओपासन होर्
2. वैश्विेव
3. पाणवम
4. अिका
5. र्ादसक
6. श्राद्ध
7. शुलगव
यज्ञ स्वरूप:
• साधारण
• सरल
• गृहथि
• पदत-पत्नी
• दबना पुरोदहत क
े सम्पन्न
• साधारण अदि प्रयोग
34. शुलगव यज्ञ
• काल: वसंत अिवा हेर्ंत ऋतु र्ें शुक्ल पक्ष र्ें
• थिान: नगर से बाहर, वन्य क्षेत्र
• यजर्ान क
े आवास से उत्तर-पूवम दिशा र्ें
• गाय की दवदधवत बदल रुद्र क
े िी जाती।
• वध्य पशु क
े रुदधर आठ पात्रों र्ें भरकर, आठ दिशाओं र्ें
दछडका जाता
• इस वक्त “शतरुदद्रय” र्ंत्र का पाठ दकया जाता
• तिनंतर, वध्य पशु की खाल उतारी जाती, और हृिय एवं भीतरी
अंग को रुद्र पर चढ़ाया जाता
• सिभम: र्ानव गृह्यसूत्र, बौधायन गृह्यसूत्र, आश्वलायन गृह्यसूत्र
35. Continuity of Vedic tradition of Yajnas
Archaeological evidence
• Fire altars in specific shapes as outlined in Vedic literature
recovered from a few sites.
• Contents from the sacrificial pit are also similar to those
prescribed in texts.
• Kausambi: Syenchiti.
• Jagat gram: Syenchiti.
• Purola: Syenchiti.
• Coins and inscriptions bearing titles of kings
36. Syenciti: Purola, Uttarkashi
As told in
texts
At
Purola
Brick alter identified as Syenachitti by the excavator. The structure is in the
shape of a flying eagle Garuda, datable to circa first century BCE to second
century CE।
Also a copper coin of Kuninda, a few bone pieces and a thin gold leaf
impressed with a human figure identified as Agni.
37. Asvamesha evidence: Jagatgram, Dehradoon
• Excavated by, ASI between the year
1952 - 54.
• Excavations revealed remains of three
fire altars and other associated material
including inscribed bricks.
• Fire altar known as Syena chiti (in form
of flying Eagle)
• Sanskrit inscriptions in the late third
century CE Brahmi characters on bricks
used in one of the three Jagatgram altars
inform that the king
Silavarmanperformed four Asvamedha
sacrifices here.
44. Kings who performed Ashwamedha
• Purukutsya
• Trasyadasyu
• Sudas
• Parikshit
• Pushyamitra Sunga
• Satavahan Satakarni
• Ikshkavaku King Vasishthiputra
Chamtamula
• Vakataka King Pravarsena
• Bhavnaga of Naga dynasty
Padmavati
• Samudragupta I
• Kumaragupta I
• Vishnukundin,
Kadamba,
Shailodabhava
• Pulkesin I and II
• Pallava
Narsimhavarman I
• Chola Rajadhiraj
45. उपसंहार
• वेदिक काल र्ें यज्ञ प्रर्ुख धर्म कायम
• यज्ञ: द्रव्य, िेवता एवं त्याग
• प्रारि र्ें यज्ञ लोक कल्याणकारी भावना से पररपूणम
• संसार की सवम सम्पिा यज्ञ से प्रास्प्त की धारणा
• पारलौदकक र्ोक्ष की प्रास्प्त
• वेदिक कालीन सम्पूणम जीवन यज्ञर्य
• र्ूदतम, र्ंदिर का अभाव
• प्रारि र्ें सरल यज्ञ कायम उत्तर वेदिक काल र्ें जदटल बन गए
• यज्ञ दवदध, सर्य, द्रव्य, िदक्षणा अत्यदधक जदटल
• यज्ञ सार्ान्य क
े दलए िुरूह और व्यवसाध्य हो गए
• उत्तरवैदिक काल र्ें धर्म र्ें आडंबरों एवं अंधदवश्वासों ने भी प्रवेश कर
दलया िा।
• यज्ञ परम्परा से भदवष् र्ें पूजा का रूप ग्रहण दकया