4. • ॐ पूर्णमद: पूर्णनमदं......(इ क़ा र्वणगन खखल़ा
क़ाण्ड में समलत़ा है)
• िेनि िेनि (अथ़ागत ब्रह्म ये भी नहीिंहै, र्वो भी
नहीिंहैं)
• अहं ब्रह्माऽखि (मैं ब्रह्म हिं)
• असिो मा सद्गमय........ (इनक़ा र्वणगन इ
उपसनषद् में समलत़ा है)
बृहद़ारण्यक उपसनषद
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5. पुरुष य़ानी ब्रह्म क
े तीन अन्न हैं -
• मन
• र्व़ाणी (र्व़ाक
् )
• प्ऱाण
आत्मा क
े ब़ारे में कह़ा र्य़ा है –
।।अथो अयं वा आत्मा सवेषां भूिािां लोक।।
अथ़ागत्- आत्म़ा भी जीर्वोिं क़ा लोक हैं।
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बृहद़ारण्यक उपसनषद
7. िीि लोकोंकी चच़ाग की र्ई है:
• मिुष्य लोक (पुत्र द्व़ाऱा जीत़ा ज़ात़ा हैं)
• नपिृ लोक (कमग द्व़ाऱा जीत़ा ज़ात़ा हैं)
• देव लोक (सर्वद्य़ा य़ासन उत्क
ृ ष्ट ज्ञ़ान द्व़ाऱा जीत़ा ज़ात़ा
हैं)
" तीनोिं लोको में, देर्व लोक र्वगश्रेष्ठ है, इ सलए सर्वद्य़ा को
र्वगश्रेष्ठ भी कह़ा र्य़ा है ।"
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बृहद़ारण्यक उपसनषद
8. • प्रार्ायाम क़ा र्वणगन सकय़ा है।
• व्रत की महत्त्वत़ा बत़ाई र्ई है।
"एकमेव व्रिं चरेिं"
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बृहद़ारण्यक उपसनषद
9. आत्मा और ज्ञाियोग –
इ में मैत्रेयी और महनषण याज्ञवल्क्य क़ा िंर्व़ाद हैं ।
महसषग य़ाज्ञर्वल्क्य ने कह़ा :
।।आत्मा वा अरे दृष्टव्यः श्रोिव्य: मन्तव्यो निनदध्यानसिव्यो।।
अथ़ागत्- यह आत्म़ा ही दर्णि करने योग्य है, श्रवर् करने योग्य है, मिि करने योग्य है और
निनधध्यासि (ध्य़ान) करने योग्य है।
• दशगन
• श्रर्वण
• मनन
• सनसिध्य़ा न
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बृहद़ारण्यक उपसनषद
10. आत्मा
।।अथो अयं वा आत्मा सवेषां भूिािां लोकः।।
अथ़ागत्- यह आत्म़ा (मनुष्य) मस्त जीर्वोिं क़ा लोक है।
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बृहद़ारण्यक उपसनषद