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लोककला : वार्ली
Prof.Nameeta Shriram Sahare
Tilak College of Education, Pune 411030
भारतातीर्ल र्लोक व आदिवासी कर्ला अदतशय पारंपाररक आदि साधी असूनही इतकी सजीव
आदि प्रभावशार्ली आहेत की ते आपोआपच िेशाच्या समृद्ध वारशाचे आकर्लन करतात.
Warli painting is a style of tribal art mostly created by the tribal people from the North Sahyadri Range
( Palghar District) in India.
Warli painting
•Warli tribal art is created by the tribal people
from the North Sahyadri Range which
encompasses cities such
as Dahanu, Talasari, Jawhar, Palghar, Mo
khada, and Vikramgadh of Palghar
district.
This tribal art was originated in Maharashtra, where it is
still practiced today.
वारली चित्रकला प्रामुख्याने मचिला
करतात. या चित्राांमध्ये पौराचिक पात्र
चक
ां वा देवताांिे स्वरुप दर्शचवले जात
नािी तर सामाचजक जीवनािे चित्रि
क
े ले आिे. दैनांचदन जीवनाच्या
घटनाांबरोबरि, मानवािे आचि
प्राण्ाांिे चित्र बनवले जातात
जे कोित्यािी योजनेचर्वाय,
सरळ र्ैलीत रांगवले जातात.
लोककला
• िमेर्ा से िी भारत की कलाएां और िस्तचर्ल्प इसकी साांस्क
ृ चतक और
परम्परागत प्रभावर्ीलता को अचभव्यक
् त करने का माध्यम बने रिे िैं। देर्
भर में फ
ै ले इसक
े 35 राज्योां और सांघ राज्य क्षेत्रोां की अपनी चवर्ेष
साांस्क
ृ चतक और पारम्पररक पििान िै, जो विाां प्रिचलत कला क
े चभन्न-
चभन्न रूपोां में चदखाई देती िै। भारत क
े िर प्रदेर् में कला की अपनी एक
चवर्ेष र्ैली और पद्धचत िै चजसे लोक कला क
े नाम से जाना जाता िै।
लोककला क
े अलावा भी परम्परागत कला का एक अन्य रूप िै जो अलग-
अलग जनजाचतयोां और देिात क
े लोगोां में प्रिचलत िै। इसे जनजातीय कला क
े
रूप में वगीक
ृ त चकया गया िै। भारत की लोक और जनजातीय कलाएां बहुत िी
पारम्पररक और साधारि िोने पर भी इतनी सजीव और प्रभावर्ाली िैं चक
उनसे देर् की समृद्ध चवरासत का अनुमान स्वत: िो जाता िै।
भारतीय र्लोक कर्ला की अंतरराष्ट्र ीय बाजार में प्रबर्ल संभावना
• अपने परम्परागत सौांदयश भाव और प्रामाचिकता क
े कारि भारतीय लोक कला
की अांतरराष्टरीय बाजार में सांभावना बहुत प्रबल िै। भारत की ग्रामीि लोक
चित्रकारी क
े चिजाइन बहुत िी सुन्दर िैं चजसमें धाचमशक और आध्यात्मिक
चित्रोां को उभारा गया िै। भारत की सवाशचधक प्रचसद्ध लोक चित्रकलाएां िै चबिार
की मधुबनी चित्रकारी, ओचिर्ा राज्य की पताचित्र चित्रकारी, आन्ध्र प्रदेर् की
चनमशल चित्रकारी और इसी तरि लोक क
े अन्य रूप िैं। तथाचप, लोक कला
क
े वल चित्रकारी तक िी सीचमत निीांिै। इसक
े अन्य रूप भी िैं जैसे चक चमट्टी
क
े बतशन, गृि सज्जा, जेवर, कपडा चिजाइन आचद। वास्तव में भारत क
े क
ु छ
प्रदेर्ोां में बने चमट्टी क
े बतशन तो अपने चवचर्ष्ट और परम्परागत सौांदयश क
े
कारि चवदेर्ी पयशटकोां क
े बीि बहुत िी लोकचप्रय िैं।
पांजाब का भाांगिा, गुजरात का िाांचिया,
• इसक
े अलावा, भारत क
े आांिचलक नृत्य जैसे चक पांजाब का भाांगिा, गुजरात का िाांचिया, आचद भी, जो
चक उन प्रदेर्ोां की साांस्क
ृ चतक चवरासत को अचभव्यक
् त करने िैं, भारतीय लोक कला क
े क्षेत्र क
े प्रमुख
दावेदार िैं। इन लोक नृत्योां क
े माध्यम से लोग िर मौक
े जैसे चक नई ऋतु का स्वागत, बि्िे का
जन्म, र्ादी, त्योिार आचद पर अपना उल्लास व्यक
् त करते िैं। भारत सरकार और सांस्थाओां ने
कला क
े उन रूपोां को बढावा देने का िर प्रयास चकया िै, जो भारत की साांस्क
ृ चतक पििान का एक
मित्वपूिश चिस्सा िैं।
• कला क
े उत्थान क
े चलए चकए गए भारत सरकार और अन्य सांगठनोां क
े सतत प्रयासोां की वजि से िी
लोक कला की भाांचत जनजातीय कला में पयाशप्त रूप से प्रगचत हुई िै। जनजातीय कला सामान्यत:
ग्रामीि इलाकोां में देखी गई उस सृजनात्मक ऊजाश को प्रचतचबत्मित करती िै जो जनजातीय लोगोां को
चर्ल्पकाररता क
े चलए प्रेररत करती िै। जनजातीय कला कई रूपोां में मौजूद िै जैसे चक चभचि चित्र,
कबीला नृत्य, कबीला सांगीत आचद
भारत क
े आांिचलक नृत्य: असम कI चबहु नृत्य
भारत क
े आांिचलक नृत्य जैसे चक पांजाब का
भाांगिा, गुजरात का िाांचिया, असम को चबहु
नृत्य आचद भी, जो चक उन प्रदेर्ोां की
साांस्क
ृ चतक चवरासत को अचभव्यक
् त करने िैं,
भारतीय लोक कला क
े क्षेत्र क
े प्रमुख दावेदार
िैं। इन लोक नृत्योां क
े माध्यम से लोग िर
मौक
े जैसे चक नई ऋतु का स्वागत, बि्िे का
जन्म, र्ादी, त्योिार आचद पर अपना
उल्लास व्यक
् त करते िैं। भारत सरकार और
सांस्थाओां ने कला क
े उन रूपोां को बढावा देने
का िर प्रयास चकया िै, जो भारत की
साांस्क
ृ चतक पििान का एक मित्वपूिश
चिस्सा िैं।
दबहू का क्या मतर्लब है? चबहू का त्योिार असचमया लोगोां को एक चवचर्ष्ट पििान देता िै
और उन्हें राष्टर क
े इचतिास में चवचर्ष्ट बनाता िै।चबहू असम की प्राथचमक पििान िोने क
े
साथ-साथ एक फसल उत्सव भी िै।
दबहू - त्योहार का नाम क
ै से पडा?
चबहू र्ब्द मूल रूप से "चबर्ु' र्ब्द से चलया गया िै,
चजसका अथश िै चक लोग कटाई क
े मौसम क
े मित्वपूिश समय क
े दौरान देवताओां से समृत्मद्ध माांगते िैं। इस त्योिार को चबहू क
े
नाम से जाना जाने लगा। एक अन्य स्रोत क
े अनुसार, आमतौर पर यि माना जाता िै चक इस त्योिार का नाम दो अलग-अलग र्ब्दोां से आया िै, अथाशत् "बी"
दजसका अर्थ है मांगना और "हू" दजसका अर्थ है िेना। ये दोनोां र्ब्द चमलकर चबहू नाम बने।
यि क
ृ चष क
ै लेंिर क
े मित्वपूिश अवसरोां पर तीन बार मनाया जाता िै।
पहर्ला दबहू चजसे बोिाग चबहू या रोांगाली चबहू क
े नाम से जाना जाता िै,
सात चदनोां की अवचध क
े चलए मनाया जाता िै। यि वसांत ऋतु की र्ुरुआत का जश्न मनाता िै और इस अवसर पर चकसान खेती क
े चलए खेत तैयार करते
िैं। असम क
े वातावरि में िारोां ओर दावत और उत्सव का मािौल िै।
अगले चबहू को कदट् दबहू क
े नाम से जाना जाता िै
और यि एक दबे हुए अवसर क
े रूप में िोता िै। यि चबहू मुख्य रूप से देवताओां से आर्ीवाशद लेने क
े चलए मनाया जाता िै, ताचक कटाई क
े चलए तैयार िोने
क
े दौरान फसलोां को कोई नुकसान न िो।
अंदतम दबहू को माघ चबहू क
े नाम से जाना जाता िै।
माघ चबहू फसल क
े मौसम क
े अांत का प्रतीक िै। माघ चबहू क
े दौरान, प्राथचमक जोर दावत और जश्न मनाने पर िोता िै, क्ोांचक अन्न भांिार भरे िोते िैं और
चकसानोां को अब अपनी फसलोां क
े बारे में चिांता करने की आवश्यकता निीांिोती िै। माघ चबहू क
े उत्सव में बहुत सारा भोजन और मनोरांजन र्ाचमल िोता
िै और दुचनया क
े चवचभन्न चिस्ोां में त्मथथत सभी असचमया पररवारोां में इसे बहुत उत्साि क
े साथ मनाया जाता िै।
नतशक धीमी गचत से र्ुरुआत करते हुए एक वृि में प्रदर्शन करते िैं, जो धीरे-धीरे गचत पकडता िै। ि
र म, झाांझ,
िॉनशपाइप, वीिा और बाांस की ताचलयाां सांगीत सांगत प्रदान करती िैं। िालााँचक यि नृत्य क
ृ चष कायों से प्रेररत िै, गाने
और सुांदर नृत्य प्रेम और रोमाांस का मािौल बनाते िैं। यि नृत्य प्रामाचिकता बनाए रखने और साथ िी पारांपररक
असचमया िथकरघा और िस्तचर्ल्प को उनकी सुांदरता और मचिमा में प्रदचर्शत करने क
े चलए जाना जाता िै।
मचिलाओां द्वारा पिनी जाने वाली पोर्ाक में चगचतगी (एक प्रकार की टोपी), अगू (मेखला) और लगु ऋिा (िादर)
र्ाचमल िैं। सुांदर आभूषि उनक
े सिायक उपकरि िैं। पुरुष धोती, गोमोिा (तौचलया) और िपकन (र्टश) पिनते
िैं
िालााँचक तीन चबहुओां में सबसे मित्वपूिश और तुलनािक रूप से सबसे बडा रोांगाली चबहू िै
जो असचमया नव वषश क
े साथ मेल खाने वाले फसल क
े मौसम की श्रद्धा में मनाया जाता िै।
रोांगाली चबहू तीन चबहुओां में से एक त्योिार िै, चजसका तात्पयश इस कायशक्रम क
े आसपास धूमधाम
और उत्सव क
े एक भाग क
े रूप में चबहू नृत्य भी िै। अपने आप में एक त्योिार की तरि,
जो चमट्टी और कटी हुई फसल की उवशरता का प्रतीक िै, रोांगाली चबहू का भी प्रजनन उत्सव क
े
रूप में मचिलाओां द्वारा प्रेमालाप क
े माध्यम से उपयुक्त साथी ढूांढने की कोचर्र् में नृत्य रूपोां क
े
माध्यम से उपयोग चकया जाता िै।
र्ैली की दृचष्ट से देखें तो उनकी पििान यिी िै चक ये
साधारि सी चमट्टी क
े बेस पर मात्र सफ
े द रांग से की गई
चित्रकारी िै चजसमें यदा-कदा लाल और पीले चबन्दु
बना चदए जाते िैं।
यह सफ
े ि रंग चावर्ल को बारीक पीस कर
बनाया गया सफ
े ि चूिथ होता है। रंग की इस
सािगी की कमी इसक
े दवषय की प्रबर्लता
से ढक जाती है। इसक
े दवषय बहुत ही
आवृदि और प्रतीकात्मक होते हैं। वार्ली क
े
पार्लघाट्, शािी-दववाह क
े भगवान को
िशाथने वार्ले बहुत से दचत्ोंमें प्राय: घोडे को
भी दिखाया जाता है दजस पर िू र्ल्हा-िुर्ल्हन
सवार होते हैं। यह दचत् बहुत पदवत् माना
जाता है और इसक
े बाि दववाह सम्पन्न
नहींहो सकता है। ये दचत् स्र्ानीय र्लोगों
की सामादजक और धादमथक अदभर्लाषाओं
को भी पूरा करते हैं। ऐसा माना जाता है दक
ये दचत् भगवान की शक्तियोंका आह्वान
करते हैं।
Warli Paintings
वाली लोक चित्रकला
• मिाराष्टर अपनी वाली लोक चित्रकला क
े
चलए प्रचसद्ध िै। वाली एक बहुत बडी
जनजाचत िै जो पर््चिमी भारत क
े मुम्बई
र्िर क
े उिरी बाह्मांिल में बसी िै। भारत
क
े इतने बडे मिानगर क
े इतने चनकट बसे
िोने क
े बावजूद वाली क
े आचदवाचसयोां पर
आधुचनक र्िरीकरि कोई प्रभाव निीां पडा
िै। 1970 क
े प्रारम्भ में पिली बार वाली
कला क
े बारे में पता िला। िालाांचक इसका
कोई चलत्मखत प्रमाि तो निीां चमलता चक इस
कला का प्रारम्भ कब हुआ लेचकन दसवीां
सदी ई.पू. क
े आरत्मिक काल में इसक
े िोने
क
े सांक
े त चमलते िैं। वाली, मिाराष्टर की
वाली जनजाचत की रोजमराश की चजांदगी और
सामाचजक जीवन का सजीव चित्रि िै।
वाली चित्रकला • वाली, मिाराष्टर की वाली जनजाचत की
रोजमराश की चजांदगी और सामाचजक
जीवन का सजीव चित्रि िै। यि
चित्रकारी वे चमट्टी से बने अपने कि्िे
घरोां की दीवारोां को सजाने क
े चलए
करते थे। चलचप का ज्ञान निीां िोने क
े
कारि लोक वाताशओां , लोक
साचित्यक
े l आम लोगोां तक पहुांिाने को
यिी एकमात्र साधन था। मधुबनी की
िटकीली चित्रकारी क
े मुकाबले यि
चित्रकला बहुत साधारि िै।
फसर्ल की बुवाई, फसर्ल की कट्ाई करते हुए व्यक्ति की आक
ृ दतयां
• चित्रकारी का काम मुख्य रूप से मचिलाएां करती िै। इन चित्रोां में पौराचिक
पात्रोां, अथवा देवी-देवताओां क
े रूपोां को निीां दर्ाशया जाता बत्मि सामाचजक
जीवन क
े चवषयोां का चित्रि चकया जाता िै। रोजमराश की चजांदगी से जुडी
घटनाओां क
े साथ-साथ मनुष्योां और पर्ुओां क
े चित्र भी बनाए जाते िैं जो चबना
चकसी योजना क
े , सीधी-सादी र्ैली में चिचत्रत चकए जाते िैं। मिाराष्टर की
जनजातीय (आचदवासी) चित्रकारी का यि कायश परम्परागत रूप से वाली क
े
घरोां में चकया जाता िै। चमट्टी की कि्िी दीवारोां पर बने सफ
े द रांग क
े ये चित्र
प्रागैचतिाचसक गुफा चित्रोां की तरि चदखते िैं और सामान्यत: इनमें चर्कार,
नृत्य फसल की बुवाई, फसल की कटाई करते हुए व्यत्मक्त की आक
ृ चतयाां
दर्ाशई जाती िैं।
वाली : एक चवर्ाल और जादुई सांसार
वाली
क
े चित्रोां में
सीधी लाइन र्ायद िी देखने को चमलती िै। कई चबन्दुओां और छोटी-
छोटी रेखाओां (िेर्) को चमलाकर एक बडी रेखा बनाई जाती िै। िाल िी
में चर्ल्पकारोां ने अपने चित्रोां में सीधी रेखाएां खीांिनी र्ुरू कर दी िै। इन
चदनोां तो पुरुषोां ने भी चित्रकारी र्ुरू कर दी िै और वे यि चित्रकारी प्राय:
कागज पर करते िैं चजनमें वाली की सुन्दर परम्परागत तस्वीरें और
आधुचनक उपकरि जैसे चक साइचकल आचद बनाए जाते िैं। कागज पर
की गई वाली चित्रकार काफी लोकचप्रय िो गई िै और अब पूरे भारत में
इसकी चबक्री िोती िै। आज, कागज और कपडे पर छोटी-छोटी चित्रकारी
की जाती िै पर दीवार पर चित्र अथवा बडे-बडे चभचि चित्र िी देखने में
सबसे सुन्दर लगते िैं जो वाचलशयोां क
े एक चवर्ाल और जादुई सांसार की
छचव को प्रस्तुत करते िैं। वाली आज भी परम्परा से जुडे िैं लेचकन साथ
िी वे नए चविारोां को भी ग्रिि कर रिे िैं जो बाजार की नई िुनौचतयोां का
सामना करने में उनकी मदद करते िैं।
Some Questions ?
Where are Mithila painting and Warli art practiced?
पांजाब का -----------, गुजरात का ----------, असम का ---------- नृत्य
References:
• bihufestival.org/significance-of-bihu.html
• file:///C:/Users/c_nam/Downloads/warli%20bird%20and%20tree.html
• gosahin.com
• https://in.pinterest.com/pin/645211084104924170/visual-search/?cropSource=6&h=562&w=544&x=10&y=10
• https://www.shutterstock.com/image-vector/indian-tribal-painting-warli-house-143534134
• medium.com › the-history-and-origin-of-warli-painting
• timesnownews.com

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  • 1. लोककला : वार्ली Prof.Nameeta Shriram Sahare Tilak College of Education, Pune 411030
  • 2. भारतातीर्ल र्लोक व आदिवासी कर्ला अदतशय पारंपाररक आदि साधी असूनही इतकी सजीव आदि प्रभावशार्ली आहेत की ते आपोआपच िेशाच्या समृद्ध वारशाचे आकर्लन करतात. Warli painting is a style of tribal art mostly created by the tribal people from the North Sahyadri Range ( Palghar District) in India.
  • 3. Warli painting •Warli tribal art is created by the tribal people from the North Sahyadri Range which encompasses cities such as Dahanu, Talasari, Jawhar, Palghar, Mo khada, and Vikramgadh of Palghar district.
  • 4. This tribal art was originated in Maharashtra, where it is still practiced today. वारली चित्रकला प्रामुख्याने मचिला करतात. या चित्राांमध्ये पौराचिक पात्र चक ां वा देवताांिे स्वरुप दर्शचवले जात नािी तर सामाचजक जीवनािे चित्रि क े ले आिे. दैनांचदन जीवनाच्या घटनाांबरोबरि, मानवािे आचि प्राण्ाांिे चित्र बनवले जातात जे कोित्यािी योजनेचर्वाय, सरळ र्ैलीत रांगवले जातात.
  • 5. लोककला • िमेर्ा से िी भारत की कलाएां और िस्तचर्ल्प इसकी साांस्क ृ चतक और परम्परागत प्रभावर्ीलता को अचभव्यक ् त करने का माध्यम बने रिे िैं। देर् भर में फ ै ले इसक े 35 राज्योां और सांघ राज्य क्षेत्रोां की अपनी चवर्ेष साांस्क ृ चतक और पारम्पररक पििान िै, जो विाां प्रिचलत कला क े चभन्न- चभन्न रूपोां में चदखाई देती िै। भारत क े िर प्रदेर् में कला की अपनी एक चवर्ेष र्ैली और पद्धचत िै चजसे लोक कला क े नाम से जाना जाता िै। लोककला क े अलावा भी परम्परागत कला का एक अन्य रूप िै जो अलग- अलग जनजाचतयोां और देिात क े लोगोां में प्रिचलत िै। इसे जनजातीय कला क े रूप में वगीक ृ त चकया गया िै। भारत की लोक और जनजातीय कलाएां बहुत िी पारम्पररक और साधारि िोने पर भी इतनी सजीव और प्रभावर्ाली िैं चक उनसे देर् की समृद्ध चवरासत का अनुमान स्वत: िो जाता िै।
  • 6. भारतीय र्लोक कर्ला की अंतरराष्ट्र ीय बाजार में प्रबर्ल संभावना • अपने परम्परागत सौांदयश भाव और प्रामाचिकता क े कारि भारतीय लोक कला की अांतरराष्टरीय बाजार में सांभावना बहुत प्रबल िै। भारत की ग्रामीि लोक चित्रकारी क े चिजाइन बहुत िी सुन्दर िैं चजसमें धाचमशक और आध्यात्मिक चित्रोां को उभारा गया िै। भारत की सवाशचधक प्रचसद्ध लोक चित्रकलाएां िै चबिार की मधुबनी चित्रकारी, ओचिर्ा राज्य की पताचित्र चित्रकारी, आन्ध्र प्रदेर् की चनमशल चित्रकारी और इसी तरि लोक क े अन्य रूप िैं। तथाचप, लोक कला क े वल चित्रकारी तक िी सीचमत निीांिै। इसक े अन्य रूप भी िैं जैसे चक चमट्टी क े बतशन, गृि सज्जा, जेवर, कपडा चिजाइन आचद। वास्तव में भारत क े क ु छ प्रदेर्ोां में बने चमट्टी क े बतशन तो अपने चवचर्ष्ट और परम्परागत सौांदयश क े कारि चवदेर्ी पयशटकोां क े बीि बहुत िी लोकचप्रय िैं।
  • 7. पांजाब का भाांगिा, गुजरात का िाांचिया, • इसक े अलावा, भारत क े आांिचलक नृत्य जैसे चक पांजाब का भाांगिा, गुजरात का िाांचिया, आचद भी, जो चक उन प्रदेर्ोां की साांस्क ृ चतक चवरासत को अचभव्यक ् त करने िैं, भारतीय लोक कला क े क्षेत्र क े प्रमुख दावेदार िैं। इन लोक नृत्योां क े माध्यम से लोग िर मौक े जैसे चक नई ऋतु का स्वागत, बि्िे का जन्म, र्ादी, त्योिार आचद पर अपना उल्लास व्यक ् त करते िैं। भारत सरकार और सांस्थाओां ने कला क े उन रूपोां को बढावा देने का िर प्रयास चकया िै, जो भारत की साांस्क ृ चतक पििान का एक मित्वपूिश चिस्सा िैं। • कला क े उत्थान क े चलए चकए गए भारत सरकार और अन्य सांगठनोां क े सतत प्रयासोां की वजि से िी लोक कला की भाांचत जनजातीय कला में पयाशप्त रूप से प्रगचत हुई िै। जनजातीय कला सामान्यत: ग्रामीि इलाकोां में देखी गई उस सृजनात्मक ऊजाश को प्रचतचबत्मित करती िै जो जनजातीय लोगोां को चर्ल्पकाररता क े चलए प्रेररत करती िै। जनजातीय कला कई रूपोां में मौजूद िै जैसे चक चभचि चित्र, कबीला नृत्य, कबीला सांगीत आचद
  • 8. भारत क े आांिचलक नृत्य: असम कI चबहु नृत्य भारत क े आांिचलक नृत्य जैसे चक पांजाब का भाांगिा, गुजरात का िाांचिया, असम को चबहु नृत्य आचद भी, जो चक उन प्रदेर्ोां की साांस्क ृ चतक चवरासत को अचभव्यक ् त करने िैं, भारतीय लोक कला क े क्षेत्र क े प्रमुख दावेदार िैं। इन लोक नृत्योां क े माध्यम से लोग िर मौक े जैसे चक नई ऋतु का स्वागत, बि्िे का जन्म, र्ादी, त्योिार आचद पर अपना उल्लास व्यक ् त करते िैं। भारत सरकार और सांस्थाओां ने कला क े उन रूपोां को बढावा देने का िर प्रयास चकया िै, जो भारत की साांस्क ृ चतक पििान का एक मित्वपूिश चिस्सा िैं।
  • 9. दबहू का क्या मतर्लब है? चबहू का त्योिार असचमया लोगोां को एक चवचर्ष्ट पििान देता िै और उन्हें राष्टर क े इचतिास में चवचर्ष्ट बनाता िै।चबहू असम की प्राथचमक पििान िोने क े साथ-साथ एक फसल उत्सव भी िै। दबहू - त्योहार का नाम क ै से पडा? चबहू र्ब्द मूल रूप से "चबर्ु' र्ब्द से चलया गया िै, चजसका अथश िै चक लोग कटाई क े मौसम क े मित्वपूिश समय क े दौरान देवताओां से समृत्मद्ध माांगते िैं। इस त्योिार को चबहू क े नाम से जाना जाने लगा। एक अन्य स्रोत क े अनुसार, आमतौर पर यि माना जाता िै चक इस त्योिार का नाम दो अलग-अलग र्ब्दोां से आया िै, अथाशत् "बी" दजसका अर्थ है मांगना और "हू" दजसका अर्थ है िेना। ये दोनोां र्ब्द चमलकर चबहू नाम बने। यि क ृ चष क ै लेंिर क े मित्वपूिश अवसरोां पर तीन बार मनाया जाता िै। पहर्ला दबहू चजसे बोिाग चबहू या रोांगाली चबहू क े नाम से जाना जाता िै, सात चदनोां की अवचध क े चलए मनाया जाता िै। यि वसांत ऋतु की र्ुरुआत का जश्न मनाता िै और इस अवसर पर चकसान खेती क े चलए खेत तैयार करते िैं। असम क े वातावरि में िारोां ओर दावत और उत्सव का मािौल िै। अगले चबहू को कदट् दबहू क े नाम से जाना जाता िै और यि एक दबे हुए अवसर क े रूप में िोता िै। यि चबहू मुख्य रूप से देवताओां से आर्ीवाशद लेने क े चलए मनाया जाता िै, ताचक कटाई क े चलए तैयार िोने क े दौरान फसलोां को कोई नुकसान न िो। अंदतम दबहू को माघ चबहू क े नाम से जाना जाता िै। माघ चबहू फसल क े मौसम क े अांत का प्रतीक िै। माघ चबहू क े दौरान, प्राथचमक जोर दावत और जश्न मनाने पर िोता िै, क्ोांचक अन्न भांिार भरे िोते िैं और चकसानोां को अब अपनी फसलोां क े बारे में चिांता करने की आवश्यकता निीांिोती िै। माघ चबहू क े उत्सव में बहुत सारा भोजन और मनोरांजन र्ाचमल िोता िै और दुचनया क े चवचभन्न चिस्ोां में त्मथथत सभी असचमया पररवारोां में इसे बहुत उत्साि क े साथ मनाया जाता िै।
  • 10. नतशक धीमी गचत से र्ुरुआत करते हुए एक वृि में प्रदर्शन करते िैं, जो धीरे-धीरे गचत पकडता िै। ि र म, झाांझ, िॉनशपाइप, वीिा और बाांस की ताचलयाां सांगीत सांगत प्रदान करती िैं। िालााँचक यि नृत्य क ृ चष कायों से प्रेररत िै, गाने और सुांदर नृत्य प्रेम और रोमाांस का मािौल बनाते िैं। यि नृत्य प्रामाचिकता बनाए रखने और साथ िी पारांपररक असचमया िथकरघा और िस्तचर्ल्प को उनकी सुांदरता और मचिमा में प्रदचर्शत करने क े चलए जाना जाता िै। मचिलाओां द्वारा पिनी जाने वाली पोर्ाक में चगचतगी (एक प्रकार की टोपी), अगू (मेखला) और लगु ऋिा (िादर) र्ाचमल िैं। सुांदर आभूषि उनक े सिायक उपकरि िैं। पुरुष धोती, गोमोिा (तौचलया) और िपकन (र्टश) पिनते िैं
  • 11. िालााँचक तीन चबहुओां में सबसे मित्वपूिश और तुलनािक रूप से सबसे बडा रोांगाली चबहू िै जो असचमया नव वषश क े साथ मेल खाने वाले फसल क े मौसम की श्रद्धा में मनाया जाता िै। रोांगाली चबहू तीन चबहुओां में से एक त्योिार िै, चजसका तात्पयश इस कायशक्रम क े आसपास धूमधाम और उत्सव क े एक भाग क े रूप में चबहू नृत्य भी िै। अपने आप में एक त्योिार की तरि, जो चमट्टी और कटी हुई फसल की उवशरता का प्रतीक िै, रोांगाली चबहू का भी प्रजनन उत्सव क े रूप में मचिलाओां द्वारा प्रेमालाप क े माध्यम से उपयुक्त साथी ढूांढने की कोचर्र् में नृत्य रूपोां क े माध्यम से उपयोग चकया जाता िै।
  • 12. र्ैली की दृचष्ट से देखें तो उनकी पििान यिी िै चक ये साधारि सी चमट्टी क े बेस पर मात्र सफ े द रांग से की गई चित्रकारी िै चजसमें यदा-कदा लाल और पीले चबन्दु बना चदए जाते िैं। यह सफ े ि रंग चावर्ल को बारीक पीस कर बनाया गया सफ े ि चूिथ होता है। रंग की इस सािगी की कमी इसक े दवषय की प्रबर्लता से ढक जाती है। इसक े दवषय बहुत ही आवृदि और प्रतीकात्मक होते हैं। वार्ली क े पार्लघाट्, शािी-दववाह क े भगवान को िशाथने वार्ले बहुत से दचत्ोंमें प्राय: घोडे को भी दिखाया जाता है दजस पर िू र्ल्हा-िुर्ल्हन सवार होते हैं। यह दचत् बहुत पदवत् माना जाता है और इसक े बाि दववाह सम्पन्न नहींहो सकता है। ये दचत् स्र्ानीय र्लोगों की सामादजक और धादमथक अदभर्लाषाओं को भी पूरा करते हैं। ऐसा माना जाता है दक ये दचत् भगवान की शक्तियोंका आह्वान करते हैं।
  • 14. वाली लोक चित्रकला • मिाराष्टर अपनी वाली लोक चित्रकला क े चलए प्रचसद्ध िै। वाली एक बहुत बडी जनजाचत िै जो पर््चिमी भारत क े मुम्बई र्िर क े उिरी बाह्मांिल में बसी िै। भारत क े इतने बडे मिानगर क े इतने चनकट बसे िोने क े बावजूद वाली क े आचदवाचसयोां पर आधुचनक र्िरीकरि कोई प्रभाव निीां पडा िै। 1970 क े प्रारम्भ में पिली बार वाली कला क े बारे में पता िला। िालाांचक इसका कोई चलत्मखत प्रमाि तो निीां चमलता चक इस कला का प्रारम्भ कब हुआ लेचकन दसवीां सदी ई.पू. क े आरत्मिक काल में इसक े िोने क े सांक े त चमलते िैं। वाली, मिाराष्टर की वाली जनजाचत की रोजमराश की चजांदगी और सामाचजक जीवन का सजीव चित्रि िै।
  • 15. वाली चित्रकला • वाली, मिाराष्टर की वाली जनजाचत की रोजमराश की चजांदगी और सामाचजक जीवन का सजीव चित्रि िै। यि चित्रकारी वे चमट्टी से बने अपने कि्िे घरोां की दीवारोां को सजाने क े चलए करते थे। चलचप का ज्ञान निीां िोने क े कारि लोक वाताशओां , लोक साचित्यक े l आम लोगोां तक पहुांिाने को यिी एकमात्र साधन था। मधुबनी की िटकीली चित्रकारी क े मुकाबले यि चित्रकला बहुत साधारि िै।
  • 16. फसर्ल की बुवाई, फसर्ल की कट्ाई करते हुए व्यक्ति की आक ृ दतयां • चित्रकारी का काम मुख्य रूप से मचिलाएां करती िै। इन चित्रोां में पौराचिक पात्रोां, अथवा देवी-देवताओां क े रूपोां को निीां दर्ाशया जाता बत्मि सामाचजक जीवन क े चवषयोां का चित्रि चकया जाता िै। रोजमराश की चजांदगी से जुडी घटनाओां क े साथ-साथ मनुष्योां और पर्ुओां क े चित्र भी बनाए जाते िैं जो चबना चकसी योजना क े , सीधी-सादी र्ैली में चिचत्रत चकए जाते िैं। मिाराष्टर की जनजातीय (आचदवासी) चित्रकारी का यि कायश परम्परागत रूप से वाली क े घरोां में चकया जाता िै। चमट्टी की कि्िी दीवारोां पर बने सफ े द रांग क े ये चित्र प्रागैचतिाचसक गुफा चित्रोां की तरि चदखते िैं और सामान्यत: इनमें चर्कार, नृत्य फसल की बुवाई, फसल की कटाई करते हुए व्यत्मक्त की आक ृ चतयाां दर्ाशई जाती िैं।
  • 17. वाली : एक चवर्ाल और जादुई सांसार वाली क े चित्रोां में सीधी लाइन र्ायद िी देखने को चमलती िै। कई चबन्दुओां और छोटी- छोटी रेखाओां (िेर्) को चमलाकर एक बडी रेखा बनाई जाती िै। िाल िी में चर्ल्पकारोां ने अपने चित्रोां में सीधी रेखाएां खीांिनी र्ुरू कर दी िै। इन चदनोां तो पुरुषोां ने भी चित्रकारी र्ुरू कर दी िै और वे यि चित्रकारी प्राय: कागज पर करते िैं चजनमें वाली की सुन्दर परम्परागत तस्वीरें और आधुचनक उपकरि जैसे चक साइचकल आचद बनाए जाते िैं। कागज पर की गई वाली चित्रकार काफी लोकचप्रय िो गई िै और अब पूरे भारत में इसकी चबक्री िोती िै। आज, कागज और कपडे पर छोटी-छोटी चित्रकारी की जाती िै पर दीवार पर चित्र अथवा बडे-बडे चभचि चित्र िी देखने में सबसे सुन्दर लगते िैं जो वाचलशयोां क े एक चवर्ाल और जादुई सांसार की छचव को प्रस्तुत करते िैं। वाली आज भी परम्परा से जुडे िैं लेचकन साथ िी वे नए चविारोां को भी ग्रिि कर रिे िैं जो बाजार की नई िुनौचतयोां का सामना करने में उनकी मदद करते िैं।
  • 18. Some Questions ? Where are Mithila painting and Warli art practiced? पांजाब का -----------, गुजरात का ----------, असम का ---------- नृत्य References: • bihufestival.org/significance-of-bihu.html • file:///C:/Users/c_nam/Downloads/warli%20bird%20and%20tree.html • gosahin.com • https://in.pinterest.com/pin/645211084104924170/visual-search/?cropSource=6&h=562&w=544&x=10&y=10 • https://www.shutterstock.com/image-vector/indian-tribal-painting-warli-house-143534134 • medium.com › the-history-and-origin-of-warli-painting • timesnownews.com