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जीवाजी ववश्वववद्यालय, ग्वावलयर
प्राचीन भारतीय इवतहास, संस्क
ृ वत एवं पुरातत्व
अध्ययनशाला
चतुर्थ सेमेस्टर, ववषय कोड : 404
सेवमनार ववषय
देवी जगदम्बी मंवदर, खजुराहो
प्रो० शान्तिदेव वससोवदया चााँदनी नरवररया
खजुराहो पविमी मंवदर समूह
खजुराहो
• खजुराहो वतथमान में मध्य प्रदेश क
े छतरपुर वजले में न्तथर्त एक कस्बा हैं। जो
छतरपुर से पूवोत्तर वदशा में करीब 15 वकमी की दू री पर न्तथर्त हैं।
• प्राचीन काल में खजुराहो चंदेल राजाओ की राजधानी रहा र्ा। चंदेलों ने इस थर्ान
पर कई ववशाल मंवदरो का वनमाथण करवाया।
• ये मंवदर उत्तर भारत की नागर शैली में बने सबसे ववशाल और सवथश्रेष्ठ मंवदरो में
एक हैं।
• खजुराहो क
े मंवदर अपने छोटे आकार-प्रकार क
े पिात भी थर्ापत्य गत वैवशष्टय
एवं मूवतथ संरचना की दृवष्ट से ववश्व प्रवसद्ध हैं।
• जनश्रुवतयों क
े अनुसार खजुराहो में 85 मंवदर र्े परंतु वतथमान में 25 मन्तिर क
े ही
प्रमाण वमलते हैं। इनमे क
ु छ प्रवसद्ध मन्तिर क
ं दररया महादेव, लक्ष्मण मन्तिर,
ववश्वनार् मन्तिर इत्यावद हैं।
• देवी जगदम्बी भी पविमी समूह में न्तथर्त एक मन्तिर हैं।
देवी जगदम्बी मंवदर
देवी जगदम्बी मन्तिर
• खजुराहो क
े मन्तिर एक खुले वातायन में एवं ऊ
ाँ ची जगती पर न्तथर्त होते हैं।
• जगदम्बी मन्तिर भी काफी ऊ
ाँ ची जगती पर न्तथर्त हैं, वजस पर पहुचने क
े वलए
सोपान से चढ़कर जाना होता हैं।
• जगदंबी मन्तिर की जगती क
ं दररया महादेव से जुड़ी हुयी हैं। यह मन्तिर क
ं दररया
महादेव क
े उत्तर में न्तथर्त हैं।
• मन्तिर क
े वलए मात्र क
े प्रवेश द्वार हैं, जो की मुख मंडप की ओर ले जाता हैं, मुख
मंडप से ही जुड़ा हुआ एक ववशाल मंडप हैं वजसे महा-मंडप भी कहा जाता हैं, जो
गभथ गृह से अंतराल क
े माध्यम से जुड़ा हुआ हैं।
• मंवदर क
े भागो में मुख मंडप, महा मण्डप, अिराल और गभथ गृह हैं।
• यह मंवदर अपने मूल रूप में ववष्णु को समवपथत र्ा। क्ूंकी इस मंवदर क
े वसरदल
पर ललाटवबम्ब पर ववष्णु की आक
ृ वत बनी हैं। इसक
े अलावा मंवदर क
े चारो
वदशाओ पर देवो क
े वनरूपण वकसी ववष्णु मंवदर की ओर इशारा करते हैं। हालााँवक
अब इसमे देवी जगदंबा की मूवतथ प्रवतन्तथर्त हैं। इस मंवदर का काल 1000-1025
क
े बीच वनधाथररत वकया गया हैं।
क
ं दररया महादेव और जगदम्बी एक ही जगती
पर बने हैं।
जगदम्बी मन्तिर का मुख मण्डप द्वार और सोपान
जगदम्बी मन्तिर उत्तर पविम वदशा से, कक्षासन
कणथक
ु ट और देवक
ु वलका छज्जे सवहत वदख रही हैं।
जगती पर बने आधे अधूरे पैनल
जगदंबी मंवदर की वास्तु ववशेषता
• मन्तिर में कोई प्रदवक्षण पर् नहीं हैं अत: यह वनरंधार मन्तिर हैं।
• मन्तिर जंघा से नीचे पंचरर् श्रेणी में आता हैं। लेवकन जंघा क
े ऊपर सप्तरर्
में आता हैं।
• मन्तिर में 8 भूवम आमलक हैं।
• मन्तिर बहुत हद तक वचत्रगुप्त मन्तिर जैसा ही बना हुआ हैं।
• मन्तिर में अष्टवसु का कोई दृश्ांकन नहीं हैं।
• जंघा क
े बाहरी ओर तीन पन्तियों की शंखला बनी हुयी हैं, वजस पर वववभन्न
मूवतथयों का वनरूपण हैं।
• मण्डप क
े सबसे ऊपरी वहस्से पर आसनपत्ता बना हुआ हैं, वजन पर कीचक
को वदखाया गया हैं, इसक
े ऊपर ही कलश और कपोता वभवत्त बनी हुयी हैं।
कपोतका क
े ऊपर फम्सना छत का आरम्भ हो जाता हैं।
जंघा में वववभन्न दृश्ांकनों की
तीन पंन्तियो की शंखला हैं ।
सबसे ऊपरी पट्टी र्ोड़ी का
आकार र्ोड़ा कम हैं। यहााँ
हर एक मूवतथ एक आधार पर
खड़ी प्रतीत होती हैं। तर्ा
उनक
े बीच में अलग करने
हेतु ज्यावमती आकार में
पवट्टका हैं। सबसे वनचले स्तर
पर कीवतथमुख की पवट्टका
वजसे ग्रासपट्टी भी बोलते हैं।
इसक
े ऊपर एक छज्जा भी
बना हुआ हैं।
क
ु छ पवट्टका फ
ू लों क
े वडजायन से बनी हुयी हैं। इन दृश्कनों क
े ऊपर वेरान्तण्डका आरंभ होती
हैं वजसक
े ऊपर भी वशखर वाला वहस्सा शुरू हो जाता हैं।
सभी वदशाओ में भद्रा वाले थर्ान पर रवर्का बनी हुयी हैं, वजसमे देवताओ की मूवतथयााँ सुशोवभत
हैं जबवक सवललांतरा वाले वहस्से में काम प्रवतमाए, तर्ा व्याल वमलते हैं, कणथ और प्रवतरर् वाले
थर्ानो पर छोटे देवता गण , अष्टवदग्पाल, अप्सराये, सूरा सुंदरी तर्ा, गन्धवो क
े दृश् देखने को
वमलते हैं।
मन्तिर का वशखर और मण्डप वडजायन
• मन्तिर क
े वशखर पर चैत्य-गवाक्ष की वडजायन देखी जा सकती हैं। मुख्य
वशखर क
े चारों तरफ दो दो उप वशखरों को देखा जा सकता हैं, यह
उरुवश्रंग कहलाए जाते हैं। इन सभी का पुनवनथमाथण वकया हैं।
• अंतराल क
े ऊपर का वहस्सा पूरी तरह से नया बना हुआ हैं, मूल रूप में
क
े वल शूकनावसका का वहस्सा तर्ा छोटे छोटे रवर्का वाली क
ु वलका बनी
हैं, इनमे काम प्रवतमाए थर्ावपत हैं। वेरान्तण्डका क
े दू सरे वहस्से पर वशव-
पावथती का भी अंकन हैं।
• मुख मंडप क
े छत वाले वहस्से को काफी नया बनाया गया हैं, सामने की
तरफ पााँच रवर्का हैं, उसक
े ऊपर से वपरावमड क
े आकार की छत वजसे
फम्सना वशखर भी कहते हैं बना हुआ हैं।
• इसी प्रकार महा मंडप का वशखर भी संवणाथ प्रकार में बना हुआ हैं।
गभथ गृहा जंघा पर तीन कतारों
में वववभन्न मूवतथयो का अंकन
वेरान्तण्डका एवं जंघा में गवाक्ष में वमर्ुन दृश्
एवं देवी-देवताओ क
े दृश्ाकन
गवाक्ष उद्गम
और रवर्का में
वववभन्न देव-
देववयो क
े
दृश्ाकन
मूवतथयों क
े दृश्ांकन
• मूवतथयो में प्रर्म प्रकार में जंघा पर बनाई गयी आक
ृ वतयााँ आती हैं, वजनमे देवी देवताओ क
े
सार् अप्सरा, काम वशल्प, और व्याल की आक
ृ तीय हैं।
• देवी देवताओ में वशव, उमा महेश्वर, सदावशव, कल्याण सुंदर, नटराज, गजसुर संहार, ववष्णु,
लक्ष्मी नारायण, सूयथ, सरस्वती, लक्ष्मी और चामुंडा इत्यावद हैं।
• यहााँ पर आकषथक अप्सराओ और नृत्यांगनों की भी मूवतथयााँ हैं। जैसे वववासजघना, दपथणा,
आलस्य, पयोधाररणी, गूंर्ना, करपुरमंजरी सुकसाररका इत्यावद हैं। इनक
े वेषभूषा और क
े श
ववन्यास अलग प्रकार क
े हैं। हस्त भंवगमाए अर्थयुि हैं।
• वभवत्तयो क
े खाली थर्ानो में, स्तंभो क
े कोशतको पर और जंघा और द्वारशाखाओ पर व्यालों
का अंकन हैं, ये वववभन्न प्रकार क
े हैं जैसे वसंह, शादूथल, नर, शुक, वराह, वहरण वृषभ, ऋछ,
गज अश्व व्याल इत्यावद हैं। वद्वतीय वगथ में वकन्नर, गंधवथ, कीचक, राजसेना की आक
ृ वतयााँ हैं।
भारवाहको क
े रूप में कीचक स्तंभो क
े कोष्ठको पर भी वदखते हैं।
• तृतीय वगथ में नरर्र, युद्ध क
े दृश्, संगीत, भवन वनमाथण, पाररवाररक प्रसंग, आखेट इत्यावद
भी वदखाये गए हैं।
उत्तर दिशा :
िदिण दिशा :
वद्वतीय स्तर पर काम एवं व्याल क
े दृश् हैं तृतीय स्तर पर व्याल और देवताओ क
े दृयांकन
हैं
पविम वदशा की ओर दृश्ांकन
रवर्का में उमा महेश्वर रवर्का में ववष्णु की थर्ानक मूवतथ
मन्तिर का आिररक भाग
• मन्तिर क
े वेवदबन्ध की ऊ
ं चाई काफी अवधक हैं इसे मुख मंडप से सोपान
क
े द्वारा प्रवेश वकया जा सकता हैं।
• अंदर की ओर चार ववशाल स्तम्भ हैं जो की चतुष्कोणीय प्रकार क
े हैं।
ऊपर वसंत पवट्टका से आच्छावदत हैं। तर्ा नीचे की तरफ घटपल्लव बने
हुये हैं । स्तम्भो क
े शीषथ पर वगाथकार क
ै वपटल हैं वजसमे भरवाहकों की
आक
ृ वत उत्कीणथ हैं। वसरदल वववभन्न फ
ू ल पवत्तयों की शंखला से सुसन्तज्जत
हैं।
• महामंडप में चार स्वतंत्र स्तम्भ हैं तर्ा 12 अन्य स्तम्भ चारों ओर दीवारों से
जुड़े हुये हैं। इन स्तम्भो और दीवारों क
े ऊपर महामण्डप की छत बनी हुयी
हैं। स्तम्भो पर वसरदल से जुड़े हैं, तर्ा वसरदलों पर ही ववतान का स्वरूप
बना हुआ हैं। महामंडप का वक्षप्त ववतान प्रकार का बना हुआ हैं।
कक्षसना क
े बाहरी तरफ लहररया
अलंकरण, एवं नरपत्र, ग्रासपत्ती
बाई वदशा क
े ओर से फोटो
अिराल का चतुभुथजाकार नावभछं द ववतान
नावभछं द ववतान
अधथ मण्डप वक्षप्त ववतान
गभथगृह
• मन्तिर का गभथगृह का द्वार पारंपररक रूप से अत्यावधक
साज सज्जा पूणथ हैं, द्वार पर सात सजावटी शाखा तर्ा
उतरंग पर नवगृहों का दृश्ांकन हैं, वजसमे वसंत पवट्टका,
गणो, वकन्नरो, व्यालों, वमर्ुन और कमल पुष्ों, नागों से
सजाया गया हैं। नीचे दोनों तरह गंगा-यमुना को वदखाया
गया हैं। द्वार क
े दोनों और चतुभुथजी द्वारपालक को भी
वदखाया गया हैं।
• चन्द्र् वशला लगभग वचत्रगुप्त मन्तिर की तरह ही बनी हुयी
हैं, बस यहााँ पर क
ु वलका में लक्ष्मी और सरस्वती को
आसीन वदखाया गया हैं।
• गभथगृह में अंदर पावथती (जगदंबा) को गोह क
े ऊपर
थर्ानक मुद्रा में वदखाया गया हैं। हालांवक ऐसा प्रतीत
होता हैं वक आरंभ में यहााँ वकसी और देवी-देवता की मूवतथ
रखी होगी वजसका फ्र
े म पावथती की मूवतथ क
े पीछे रखा
हुआ हैं। इस फ्र
े म पर वराह, वामन, नरवसंह और बलराम,
परशुराम क
े दृश्ांकन हैं। अत: आरंभ में यह मन्तिर
ववष्णु को समवपथत रहा होगा
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  • 1. जीवाजी ववश्वववद्यालय, ग्वावलयर प्राचीन भारतीय इवतहास, संस्क ृ वत एवं पुरातत्व अध्ययनशाला चतुर्थ सेमेस्टर, ववषय कोड : 404 सेवमनार ववषय देवी जगदम्बी मंवदर, खजुराहो प्रो० शान्तिदेव वससोवदया चााँदनी नरवररया
  • 3. खजुराहो • खजुराहो वतथमान में मध्य प्रदेश क े छतरपुर वजले में न्तथर्त एक कस्बा हैं। जो छतरपुर से पूवोत्तर वदशा में करीब 15 वकमी की दू री पर न्तथर्त हैं। • प्राचीन काल में खजुराहो चंदेल राजाओ की राजधानी रहा र्ा। चंदेलों ने इस थर्ान पर कई ववशाल मंवदरो का वनमाथण करवाया। • ये मंवदर उत्तर भारत की नागर शैली में बने सबसे ववशाल और सवथश्रेष्ठ मंवदरो में एक हैं। • खजुराहो क े मंवदर अपने छोटे आकार-प्रकार क े पिात भी थर्ापत्य गत वैवशष्टय एवं मूवतथ संरचना की दृवष्ट से ववश्व प्रवसद्ध हैं। • जनश्रुवतयों क े अनुसार खजुराहो में 85 मंवदर र्े परंतु वतथमान में 25 मन्तिर क े ही प्रमाण वमलते हैं। इनमे क ु छ प्रवसद्ध मन्तिर क ं दररया महादेव, लक्ष्मण मन्तिर, ववश्वनार् मन्तिर इत्यावद हैं। • देवी जगदम्बी भी पविमी समूह में न्तथर्त एक मन्तिर हैं।
  • 5. देवी जगदम्बी मन्तिर • खजुराहो क े मन्तिर एक खुले वातायन में एवं ऊ ाँ ची जगती पर न्तथर्त होते हैं। • जगदम्बी मन्तिर भी काफी ऊ ाँ ची जगती पर न्तथर्त हैं, वजस पर पहुचने क े वलए सोपान से चढ़कर जाना होता हैं। • जगदंबी मन्तिर की जगती क ं दररया महादेव से जुड़ी हुयी हैं। यह मन्तिर क ं दररया महादेव क े उत्तर में न्तथर्त हैं। • मन्तिर क े वलए मात्र क े प्रवेश द्वार हैं, जो की मुख मंडप की ओर ले जाता हैं, मुख मंडप से ही जुड़ा हुआ एक ववशाल मंडप हैं वजसे महा-मंडप भी कहा जाता हैं, जो गभथ गृह से अंतराल क े माध्यम से जुड़ा हुआ हैं। • मंवदर क े भागो में मुख मंडप, महा मण्डप, अिराल और गभथ गृह हैं। • यह मंवदर अपने मूल रूप में ववष्णु को समवपथत र्ा। क्ूंकी इस मंवदर क े वसरदल पर ललाटवबम्ब पर ववष्णु की आक ृ वत बनी हैं। इसक े अलावा मंवदर क े चारो वदशाओ पर देवो क े वनरूपण वकसी ववष्णु मंवदर की ओर इशारा करते हैं। हालााँवक अब इसमे देवी जगदंबा की मूवतथ प्रवतन्तथर्त हैं। इस मंवदर का काल 1000-1025 क े बीच वनधाथररत वकया गया हैं।
  • 6. क ं दररया महादेव और जगदम्बी एक ही जगती पर बने हैं। जगदम्बी मन्तिर का मुख मण्डप द्वार और सोपान जगदम्बी मन्तिर उत्तर पविम वदशा से, कक्षासन कणथक ु ट और देवक ु वलका छज्जे सवहत वदख रही हैं। जगती पर बने आधे अधूरे पैनल
  • 7. जगदंबी मंवदर की वास्तु ववशेषता • मन्तिर में कोई प्रदवक्षण पर् नहीं हैं अत: यह वनरंधार मन्तिर हैं। • मन्तिर जंघा से नीचे पंचरर् श्रेणी में आता हैं। लेवकन जंघा क े ऊपर सप्तरर् में आता हैं। • मन्तिर में 8 भूवम आमलक हैं। • मन्तिर बहुत हद तक वचत्रगुप्त मन्तिर जैसा ही बना हुआ हैं। • मन्तिर में अष्टवसु का कोई दृश्ांकन नहीं हैं। • जंघा क े बाहरी ओर तीन पन्तियों की शंखला बनी हुयी हैं, वजस पर वववभन्न मूवतथयों का वनरूपण हैं। • मण्डप क े सबसे ऊपरी वहस्से पर आसनपत्ता बना हुआ हैं, वजन पर कीचक को वदखाया गया हैं, इसक े ऊपर ही कलश और कपोता वभवत्त बनी हुयी हैं। कपोतका क े ऊपर फम्सना छत का आरम्भ हो जाता हैं।
  • 8. जंघा में वववभन्न दृश्ांकनों की तीन पंन्तियो की शंखला हैं । सबसे ऊपरी पट्टी र्ोड़ी का आकार र्ोड़ा कम हैं। यहााँ हर एक मूवतथ एक आधार पर खड़ी प्रतीत होती हैं। तर्ा उनक े बीच में अलग करने हेतु ज्यावमती आकार में पवट्टका हैं। सबसे वनचले स्तर पर कीवतथमुख की पवट्टका वजसे ग्रासपट्टी भी बोलते हैं। इसक े ऊपर एक छज्जा भी बना हुआ हैं। क ु छ पवट्टका फ ू लों क े वडजायन से बनी हुयी हैं। इन दृश्कनों क े ऊपर वेरान्तण्डका आरंभ होती हैं वजसक े ऊपर भी वशखर वाला वहस्सा शुरू हो जाता हैं। सभी वदशाओ में भद्रा वाले थर्ान पर रवर्का बनी हुयी हैं, वजसमे देवताओ की मूवतथयााँ सुशोवभत हैं जबवक सवललांतरा वाले वहस्से में काम प्रवतमाए, तर्ा व्याल वमलते हैं, कणथ और प्रवतरर् वाले थर्ानो पर छोटे देवता गण , अष्टवदग्पाल, अप्सराये, सूरा सुंदरी तर्ा, गन्धवो क े दृश् देखने को वमलते हैं।
  • 9. मन्तिर का वशखर और मण्डप वडजायन • मन्तिर क े वशखर पर चैत्य-गवाक्ष की वडजायन देखी जा सकती हैं। मुख्य वशखर क े चारों तरफ दो दो उप वशखरों को देखा जा सकता हैं, यह उरुवश्रंग कहलाए जाते हैं। इन सभी का पुनवनथमाथण वकया हैं। • अंतराल क े ऊपर का वहस्सा पूरी तरह से नया बना हुआ हैं, मूल रूप में क े वल शूकनावसका का वहस्सा तर्ा छोटे छोटे रवर्का वाली क ु वलका बनी हैं, इनमे काम प्रवतमाए थर्ावपत हैं। वेरान्तण्डका क े दू सरे वहस्से पर वशव- पावथती का भी अंकन हैं। • मुख मंडप क े छत वाले वहस्से को काफी नया बनाया गया हैं, सामने की तरफ पााँच रवर्का हैं, उसक े ऊपर से वपरावमड क े आकार की छत वजसे फम्सना वशखर भी कहते हैं बना हुआ हैं। • इसी प्रकार महा मंडप का वशखर भी संवणाथ प्रकार में बना हुआ हैं।
  • 10. गभथ गृहा जंघा पर तीन कतारों में वववभन्न मूवतथयो का अंकन वेरान्तण्डका एवं जंघा में गवाक्ष में वमर्ुन दृश् एवं देवी-देवताओ क े दृश्ाकन गवाक्ष उद्गम और रवर्का में वववभन्न देव- देववयो क े दृश्ाकन
  • 11. मूवतथयों क े दृश्ांकन • मूवतथयो में प्रर्म प्रकार में जंघा पर बनाई गयी आक ृ वतयााँ आती हैं, वजनमे देवी देवताओ क े सार् अप्सरा, काम वशल्प, और व्याल की आक ृ तीय हैं। • देवी देवताओ में वशव, उमा महेश्वर, सदावशव, कल्याण सुंदर, नटराज, गजसुर संहार, ववष्णु, लक्ष्मी नारायण, सूयथ, सरस्वती, लक्ष्मी और चामुंडा इत्यावद हैं। • यहााँ पर आकषथक अप्सराओ और नृत्यांगनों की भी मूवतथयााँ हैं। जैसे वववासजघना, दपथणा, आलस्य, पयोधाररणी, गूंर्ना, करपुरमंजरी सुकसाररका इत्यावद हैं। इनक े वेषभूषा और क े श ववन्यास अलग प्रकार क े हैं। हस्त भंवगमाए अर्थयुि हैं। • वभवत्तयो क े खाली थर्ानो में, स्तंभो क े कोशतको पर और जंघा और द्वारशाखाओ पर व्यालों का अंकन हैं, ये वववभन्न प्रकार क े हैं जैसे वसंह, शादूथल, नर, शुक, वराह, वहरण वृषभ, ऋछ, गज अश्व व्याल इत्यावद हैं। वद्वतीय वगथ में वकन्नर, गंधवथ, कीचक, राजसेना की आक ृ वतयााँ हैं। भारवाहको क े रूप में कीचक स्तंभो क े कोष्ठको पर भी वदखते हैं। • तृतीय वगथ में नरर्र, युद्ध क े दृश्, संगीत, भवन वनमाथण, पाररवाररक प्रसंग, आखेट इत्यावद भी वदखाये गए हैं।
  • 12. उत्तर दिशा : िदिण दिशा : वद्वतीय स्तर पर काम एवं व्याल क े दृश् हैं तृतीय स्तर पर व्याल और देवताओ क े दृयांकन हैं
  • 13. पविम वदशा की ओर दृश्ांकन रवर्का में उमा महेश्वर रवर्का में ववष्णु की थर्ानक मूवतथ
  • 14. मन्तिर का आिररक भाग • मन्तिर क े वेवदबन्ध की ऊ ं चाई काफी अवधक हैं इसे मुख मंडप से सोपान क े द्वारा प्रवेश वकया जा सकता हैं। • अंदर की ओर चार ववशाल स्तम्भ हैं जो की चतुष्कोणीय प्रकार क े हैं। ऊपर वसंत पवट्टका से आच्छावदत हैं। तर्ा नीचे की तरफ घटपल्लव बने हुये हैं । स्तम्भो क े शीषथ पर वगाथकार क ै वपटल हैं वजसमे भरवाहकों की आक ृ वत उत्कीणथ हैं। वसरदल वववभन्न फ ू ल पवत्तयों की शंखला से सुसन्तज्जत हैं। • महामंडप में चार स्वतंत्र स्तम्भ हैं तर्ा 12 अन्य स्तम्भ चारों ओर दीवारों से जुड़े हुये हैं। इन स्तम्भो और दीवारों क े ऊपर महामण्डप की छत बनी हुयी हैं। स्तम्भो पर वसरदल से जुड़े हैं, तर्ा वसरदलों पर ही ववतान का स्वरूप बना हुआ हैं। महामंडप का वक्षप्त ववतान प्रकार का बना हुआ हैं।
  • 15. कक्षसना क े बाहरी तरफ लहररया अलंकरण, एवं नरपत्र, ग्रासपत्ती बाई वदशा क े ओर से फोटो अिराल का चतुभुथजाकार नावभछं द ववतान नावभछं द ववतान अधथ मण्डप वक्षप्त ववतान
  • 16. गभथगृह • मन्तिर का गभथगृह का द्वार पारंपररक रूप से अत्यावधक साज सज्जा पूणथ हैं, द्वार पर सात सजावटी शाखा तर्ा उतरंग पर नवगृहों का दृश्ांकन हैं, वजसमे वसंत पवट्टका, गणो, वकन्नरो, व्यालों, वमर्ुन और कमल पुष्ों, नागों से सजाया गया हैं। नीचे दोनों तरह गंगा-यमुना को वदखाया गया हैं। द्वार क े दोनों और चतुभुथजी द्वारपालक को भी वदखाया गया हैं। • चन्द्र् वशला लगभग वचत्रगुप्त मन्तिर की तरह ही बनी हुयी हैं, बस यहााँ पर क ु वलका में लक्ष्मी और सरस्वती को आसीन वदखाया गया हैं। • गभथगृह में अंदर पावथती (जगदंबा) को गोह क े ऊपर थर्ानक मुद्रा में वदखाया गया हैं। हालांवक ऐसा प्रतीत होता हैं वक आरंभ में यहााँ वकसी और देवी-देवता की मूवतथ रखी होगी वजसका फ्र े म पावथती की मूवतथ क े पीछे रखा हुआ हैं। इस फ्र े म पर वराह, वामन, नरवसंह और बलराम, परशुराम क े दृश्ांकन हैं। अत: आरंभ में यह मन्तिर ववष्णु को समवपथत रहा होगा