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जीवाजी ववश्वववद्यालय
प्राचीन भारतीय इवतहास, संस्क
ृ वत एवं पुरातत्व अध्ययन शाला
सेविनार प्रस्तुवत
ववषय : प्राचीन भारतीय िन्दिर वास्तु एवं कला (403-404)
कोर्स : एि॰ ए॰ – चतुर्थ सेिेस्टर सेशन : 2021-23
वामन मन्दिर
प्रो॰ एस क
े विवेदी
प्रो॰ एस डी वससोवदया
योगेश
एि ए -IV सेिेस्टर
AIHCA
खजुराहो िें वािन िन्दिर पूवथ
वदशा की ओर, वननोरा निक
ताल क
े पूवोत्तर छोर पर न्दथर्त
हैं, ब्रह्मा एवं जवारी िन्दिर क
े
सार् ये सभी पूवी सिूह
िंवदरो िें आते हैं।
वविानों ने िंवदर का काल 1050-75 क
े बीच वनवित वकया यह िंवदर देव बिथन या
कीवतथविथन सिकालीन है.
िंवदर िें गभथ ग्रह अंतराल िहा िंडप एवं िुख्य िंडप है
आकार एवं प्रकार िें यह िंवदर आवदनार् िन्दिर से काफी सिानता रखता है।
िन्दिर वशखर लतीना प्रकार ऊ
ं चाई भी ५ पवििी सिूह क
े िन्दिरों से कि
है।इसकी लंबाई ६२' और चौडाई ४५' है।
•िंवदर एक ऊ
ँ चे चबुतरे पर बना हुआ हैं वजसे जगती भी कह्ते हैं.
• जगती क
े उपर िंवदर एक पीठ/अविष्ठान पर न्दथर्त हैं वजसिे कई वभवत्त एवि िोन्दडंग
बनी हुयी हैं सार् ही पत्र, पशु एवि नर वल्लरी भी हैं
•अविष्ठान पर देव िुवतथ थर्वपत हैं, इसक
े उपर िंवदर की दीवार आरंभ होती हैं, वजसे जंघा
भी कह्ते हैं
•जंघा पर िुवतथयो की 2 श्रंखलाये हैं. इनिे देवी-देवताओ, अप्सराओ एवि व्याल की िुवतथया
हैं.
• कीवतथिुख की श्रंखला ग्रासपत्ती भी दोनो िुवतथ की पंन्दियो क
े बीच
ववभाजक का कायथ करती हैं.
• जंघा क
े सबसे उपरी पंन्दि िें ज्यविवत आक
ृ वत हैं
• रवर्का क
े सबसे उपरी वहस्से िे एक छज्जा सा दशाथया गया हैं वजसिे
क
ु छ िानव अक
ृ वतयो को बैठे वदखाया गया हैं.
• वनचली रर्ीका िे देव िुवतथया सुशोवभत है
• वशखर सािारण लतीना रूप िें बना हुआ है, वजसिे 20 भुवि आिलक
हैं. चैत्य गवाक्षो की श्रेवणयो से अटा पडा हैं.
• वशखर क
े उपरी भाग पर स्क
ं ि वफर ग्रीवा हैं वजसक
े उपर अिलक
और कलश ववद्यिान हैं
• गभथगृह और िन्ड्प को जोडने वाले अंतराल क
े उपर शुकनवसका बनी
हुयी है वजसिे चंद्रशाला क
े ठीक उपर वसंह बैठे हुये हैं
गभथगृह क
े ऊपर न्दथर्त
वशखर लतीना रूप का है
और सप्त रर् वकस्म का है।
वशखर िें इक्कीस छोटी
िंवजलें हैं जो बीस कोण-
अिलक िारा दशाथई गई
हैं, प्रत्येक एक कपोत िारा
छाया हुआ है। वशखर चैत्य-
िेहराबों क
े सूक्ष्म झल्लाहट
क
े काि से ढका हुआ है।
ग्रीवा क
े ऊपर आिलक,
अिलसररका, और कलश
इत्यावद बने हुये हैं।
वशखर
• जंघा वभन्न वभन्न िौन्दडंग से
अच्छावदत हैं।
• चारो वदशाओ िें रवर्का बनी
हुयी हैं, वजनक
े अंदर देवो की
प्रवतिा बनी हुयी हैं.
• इसक
े अवतररि सुरसुंदरी,
अष्टवसु की अवतररि दो
शंखलाये भी इन रवर्काओ क
े
सार् सार् िन्दिर क
े चारो ओर
बनी हुयी हैं। सलीलान्तरों िें
व्यालों का वनरूपण हैं।
• यह शंखलाये कीवतथिुख की
पविकाओ िारा एक दू सरे से
पृर्क होती हैं।
िन्दिर का िुख िंडप पूरी तरह से ध्वस्त हो
चुका हैं,
क
े वल कक्षासन क
े क
ु छ वहस्से और पीठ
वेडीबंि वाले वहस्से सही सलाित बचे हुये हैं।
ऊपर की छत और ववतान वाला वहस्से अब
नहीं हैं। बाकी िहािंडप से जुडे वसरे की
पुरातत्व ववभाग िारा िरम्मत करवा दी गयी
हैं।
ऊपर का बरािदा और सोपान (सीढ़ी) का
वनिाथण भी एएसआई िारा करवाया गया हैं।
िहािंडप की छत
सिवणथ प्रकार की हैं, जो
की खजुराहो क
े अन्य
िंवदरों िें भी देखने को
विलती हैं।
िंडप क
े दोनों ओर
अवलोकन क
े वलए छज्जे
विलते हैं, जो की
वेरान्दिका और छदया
से ढक
े हुये हैं।
• गभथगृह का िार सात पवियों का है।
• पहले बैंड को स्टेंवसल स्क्रॉल से सजाया गया है।
• दू सरे और चौर्े बैंड िें गण (करूब) नृत्य करते हैं या वाद्य यंत्र बजाते हैं।
• विर्ुनों (जोडों) को ले जाने वाले तीसरे को
• पाँचवाँ बैंड स्टेंवसल स्क्रॉल से अलंक
ृ त है।
• छठे और सातवें बैंड िार क
े चारों ओर उभरे हुए घेरे को बनाते हुए
किल की पंखुवडयों और लहरदार स्क्रॉल को नागा की आक
ृ वत िें विलते
हुये वदखाया गया हैं।
• दवक्षण और उत्तर क
े वनचले वहस्से िें किल क
े पत्तों की छतरी क
े नीचे
वत्रभंगा िें खडी गंगा और यिुना का प्रवतवनवित्व करते हैं,
• घेरे क
े वनचले वहस्से िें हर तरफ एक चार भुजाओं वाला नाग है वजसका
वसर गायब है।
• सरदल क
े िध्य िें चार सशस्त्र खडे ववष्णु की छवव है। ववष्णु को एक
छह-सशस्त्र कीचक िारा शंख (शंख-खोल) बजाते हुए सिवर्थत वकया
जाता है।
• दावहने छोर पर तीन वसरों और चार भुजाओं वाले ब्रह्मा को वदखाया गया
है, और बाएं छोर पर चार भुजाओं वाले वशव को प्रदवशथत वकया गया है।
• ववष्णु क
े वकनारों पर गजलक्ष्मी और सरस्वती प्रदवशथत हैं।
• गजलक्ष्मी हावर्यों की एक जोडी िारा वदखाई हैं, जबवक सरस्वती हार्ों
की वनचली जोडी िें वीणा और ऊपरी जोडी िें किल की डंठल और
वकताब पकडे हैं।
• चन्द्र वशला िें भी नतथवकयों और ढोल वादकों को दशाथया गया है।
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Ganga
Yamuna
ChandraShila
• गभथगृह िें चार सशस्त्र हार्ों वाले वािन, ववष्णु क
े बौने अवतार,
एक ववस्तृत फ्र
े ि क
े सार् एक ववद्यिान है।
• वािन सभी हार् टू टे हैं, वे थर्ानक िुद्रा िें है।
• उसक
े घुँघराले बाल हैं और वह बलाघूणथ, हार, कौस्तुभ-िवण,
यज्ञोपवीत, एक चौडा उपौता, बाजूबंद और नूपुर पहने है
• वे चक्रपुरुष िारा दावहनी ओर चक्र ले जाने क
े वलए और
शंखपुरुष िारा दाईं ओर शंख िारण वकए हुए है।
• लक्ष्मी शंखपुरुष क
े पीछे खडी हैं, बुद्ध को लक्ष्मी क
े नीचे पृथ्वी-
स्पशी िुद्रा िें दावहने हार् से बैठे हुए वचवत्रत वकया गया है, जबवक
लक्ष्मी क
े पीछे खडे राि और बैठे हुए वािन को वचवत्रत वकया गया
है।
• चक्रपुरुष क
े पीछे दाढ़ी वाले गरुड को सपथ को ले जाते हुए
वदखाया गया है। गरुड क
े सािने घोडे पर सवार कन्दि को वचवत्रत
वकया गया है। जबवक गरुड क
े पीछे खडे बलराि को शराब का
प्याला वलए हुए और परशुराि को फरसा वलए बैठे वदखाया गया है।
• गरुड क
े ऊपर नरवसंह को देखा जाता है, जबवक ऊपर लक्ष्मी को
भू वराह क
े सार् िें दशाथया गया है। इस प्रकार हिारे पास फ्र
े ि पर
सभी दस अवतार हैं,
• दावहनी ओर वािन, राि और वराह और कन्दि। दाईं ओर
परशुराि, बलराि और नरवसम्हा शीषथ पर िछली और कछु आ
अवतारों क
े जूिोवफ
थ क प्रवतवनवित्व क
े सार्। पीवठका पर एक नाग
को एक कछु ए पर बैठा हुआ देखा जा सकता है,
• बादलो पर बैठे हुए ब्रह्मा दाईं ओर और बाईं ओर वशव को बैठाया
गया है।
Kramrisch, Stella (1976). The Hindu Temple. Motilal Banarsidass. ISBN 978-81-208-0224-7.
Mitra, Sisirkumar (1 January 1977). The Early Rulers of Khajurāho. Motilal Banarsidass. ISBN
978-81-208-1997-9.
Pacaurī, Lakshmīnārāyaṇa (1989). The Erotic Sculpture of Khajuraho. Naya Prokash. ISBN 978-
81-85109-79-4.
Deva, Krishna (1986). Khajuraho, Brijbasi Printers
Punja, Shobhita (1992), Divine Esctasy, the story of Khajuraho

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  • 1. जीवाजी ववश्वववद्यालय प्राचीन भारतीय इवतहास, संस्क ृ वत एवं पुरातत्व अध्ययन शाला सेविनार प्रस्तुवत ववषय : प्राचीन भारतीय िन्दिर वास्तु एवं कला (403-404) कोर्स : एि॰ ए॰ – चतुर्थ सेिेस्टर सेशन : 2021-23 वामन मन्दिर प्रो॰ एस क े विवेदी प्रो॰ एस डी वससोवदया योगेश एि ए -IV सेिेस्टर AIHCA
  • 2. खजुराहो िें वािन िन्दिर पूवथ वदशा की ओर, वननोरा निक ताल क े पूवोत्तर छोर पर न्दथर्त हैं, ब्रह्मा एवं जवारी िन्दिर क े सार् ये सभी पूवी सिूह िंवदरो िें आते हैं।
  • 3. वविानों ने िंवदर का काल 1050-75 क े बीच वनवित वकया यह िंवदर देव बिथन या कीवतथविथन सिकालीन है. िंवदर िें गभथ ग्रह अंतराल िहा िंडप एवं िुख्य िंडप है आकार एवं प्रकार िें यह िंवदर आवदनार् िन्दिर से काफी सिानता रखता है। िन्दिर वशखर लतीना प्रकार ऊ ं चाई भी ५ पवििी सिूह क े िन्दिरों से कि है।इसकी लंबाई ६२' और चौडाई ४५' है।
  • 4. •िंवदर एक ऊ ँ चे चबुतरे पर बना हुआ हैं वजसे जगती भी कह्ते हैं. • जगती क े उपर िंवदर एक पीठ/अविष्ठान पर न्दथर्त हैं वजसिे कई वभवत्त एवि िोन्दडंग बनी हुयी हैं सार् ही पत्र, पशु एवि नर वल्लरी भी हैं •अविष्ठान पर देव िुवतथ थर्वपत हैं, इसक े उपर िंवदर की दीवार आरंभ होती हैं, वजसे जंघा भी कह्ते हैं •जंघा पर िुवतथयो की 2 श्रंखलाये हैं. इनिे देवी-देवताओ, अप्सराओ एवि व्याल की िुवतथया हैं.
  • 5. • कीवतथिुख की श्रंखला ग्रासपत्ती भी दोनो िुवतथ की पंन्दियो क े बीच ववभाजक का कायथ करती हैं. • जंघा क े सबसे उपरी पंन्दि िें ज्यविवत आक ृ वत हैं • रवर्का क े सबसे उपरी वहस्से िे एक छज्जा सा दशाथया गया हैं वजसिे क ु छ िानव अक ृ वतयो को बैठे वदखाया गया हैं. • वनचली रर्ीका िे देव िुवतथया सुशोवभत है • वशखर सािारण लतीना रूप िें बना हुआ है, वजसिे 20 भुवि आिलक हैं. चैत्य गवाक्षो की श्रेवणयो से अटा पडा हैं. • वशखर क े उपरी भाग पर स्क ं ि वफर ग्रीवा हैं वजसक े उपर अिलक और कलश ववद्यिान हैं • गभथगृह और िन्ड्प को जोडने वाले अंतराल क े उपर शुकनवसका बनी हुयी है वजसिे चंद्रशाला क े ठीक उपर वसंह बैठे हुये हैं
  • 6. गभथगृह क े ऊपर न्दथर्त वशखर लतीना रूप का है और सप्त रर् वकस्म का है। वशखर िें इक्कीस छोटी िंवजलें हैं जो बीस कोण- अिलक िारा दशाथई गई हैं, प्रत्येक एक कपोत िारा छाया हुआ है। वशखर चैत्य- िेहराबों क े सूक्ष्म झल्लाहट क े काि से ढका हुआ है। ग्रीवा क े ऊपर आिलक, अिलसररका, और कलश इत्यावद बने हुये हैं। वशखर
  • 7. • जंघा वभन्न वभन्न िौन्दडंग से अच्छावदत हैं। • चारो वदशाओ िें रवर्का बनी हुयी हैं, वजनक े अंदर देवो की प्रवतिा बनी हुयी हैं. • इसक े अवतररि सुरसुंदरी, अष्टवसु की अवतररि दो शंखलाये भी इन रवर्काओ क े सार् सार् िन्दिर क े चारो ओर बनी हुयी हैं। सलीलान्तरों िें व्यालों का वनरूपण हैं। • यह शंखलाये कीवतथिुख की पविकाओ िारा एक दू सरे से पृर्क होती हैं।
  • 8. िन्दिर का िुख िंडप पूरी तरह से ध्वस्त हो चुका हैं, क े वल कक्षासन क े क ु छ वहस्से और पीठ वेडीबंि वाले वहस्से सही सलाित बचे हुये हैं। ऊपर की छत और ववतान वाला वहस्से अब नहीं हैं। बाकी िहािंडप से जुडे वसरे की पुरातत्व ववभाग िारा िरम्मत करवा दी गयी हैं। ऊपर का बरािदा और सोपान (सीढ़ी) का वनिाथण भी एएसआई िारा करवाया गया हैं।
  • 9. िहािंडप की छत सिवणथ प्रकार की हैं, जो की खजुराहो क े अन्य िंवदरों िें भी देखने को विलती हैं। िंडप क े दोनों ओर अवलोकन क े वलए छज्जे विलते हैं, जो की वेरान्दिका और छदया से ढक े हुये हैं।
  • 10. • गभथगृह का िार सात पवियों का है। • पहले बैंड को स्टेंवसल स्क्रॉल से सजाया गया है। • दू सरे और चौर्े बैंड िें गण (करूब) नृत्य करते हैं या वाद्य यंत्र बजाते हैं। • विर्ुनों (जोडों) को ले जाने वाले तीसरे को • पाँचवाँ बैंड स्टेंवसल स्क्रॉल से अलंक ृ त है। • छठे और सातवें बैंड िार क े चारों ओर उभरे हुए घेरे को बनाते हुए किल की पंखुवडयों और लहरदार स्क्रॉल को नागा की आक ृ वत िें विलते हुये वदखाया गया हैं। • दवक्षण और उत्तर क े वनचले वहस्से िें किल क े पत्तों की छतरी क े नीचे वत्रभंगा िें खडी गंगा और यिुना का प्रवतवनवित्व करते हैं, • घेरे क े वनचले वहस्से िें हर तरफ एक चार भुजाओं वाला नाग है वजसका वसर गायब है। • सरदल क े िध्य िें चार सशस्त्र खडे ववष्णु की छवव है। ववष्णु को एक छह-सशस्त्र कीचक िारा शंख (शंख-खोल) बजाते हुए सिवर्थत वकया जाता है। • दावहने छोर पर तीन वसरों और चार भुजाओं वाले ब्रह्मा को वदखाया गया है, और बाएं छोर पर चार भुजाओं वाले वशव को प्रदवशथत वकया गया है। • ववष्णु क े वकनारों पर गजलक्ष्मी और सरस्वती प्रदवशथत हैं। • गजलक्ष्मी हावर्यों की एक जोडी िारा वदखाई हैं, जबवक सरस्वती हार्ों की वनचली जोडी िें वीणा और ऊपरी जोडी िें किल की डंठल और वकताब पकडे हैं। • चन्द्र वशला िें भी नतथवकयों और ढोल वादकों को दशाथया गया है। 1 2 3 4 5 6 7 Ganga Yamuna ChandraShila
  • 11. • गभथगृह िें चार सशस्त्र हार्ों वाले वािन, ववष्णु क े बौने अवतार, एक ववस्तृत फ्र े ि क े सार् एक ववद्यिान है। • वािन सभी हार् टू टे हैं, वे थर्ानक िुद्रा िें है। • उसक े घुँघराले बाल हैं और वह बलाघूणथ, हार, कौस्तुभ-िवण, यज्ञोपवीत, एक चौडा उपौता, बाजूबंद और नूपुर पहने है • वे चक्रपुरुष िारा दावहनी ओर चक्र ले जाने क े वलए और शंखपुरुष िारा दाईं ओर शंख िारण वकए हुए है। • लक्ष्मी शंखपुरुष क े पीछे खडी हैं, बुद्ध को लक्ष्मी क े नीचे पृथ्वी- स्पशी िुद्रा िें दावहने हार् से बैठे हुए वचवत्रत वकया गया है, जबवक लक्ष्मी क े पीछे खडे राि और बैठे हुए वािन को वचवत्रत वकया गया है। • चक्रपुरुष क े पीछे दाढ़ी वाले गरुड को सपथ को ले जाते हुए वदखाया गया है। गरुड क े सािने घोडे पर सवार कन्दि को वचवत्रत वकया गया है। जबवक गरुड क े पीछे खडे बलराि को शराब का प्याला वलए हुए और परशुराि को फरसा वलए बैठे वदखाया गया है। • गरुड क े ऊपर नरवसंह को देखा जाता है, जबवक ऊपर लक्ष्मी को भू वराह क े सार् िें दशाथया गया है। इस प्रकार हिारे पास फ्र े ि पर सभी दस अवतार हैं, • दावहनी ओर वािन, राि और वराह और कन्दि। दाईं ओर परशुराि, बलराि और नरवसम्हा शीषथ पर िछली और कछु आ अवतारों क े जूिोवफ थ क प्रवतवनवित्व क े सार्। पीवठका पर एक नाग को एक कछु ए पर बैठा हुआ देखा जा सकता है, • बादलो पर बैठे हुए ब्रह्मा दाईं ओर और बाईं ओर वशव को बैठाया गया है।
  • 12. Kramrisch, Stella (1976). The Hindu Temple. Motilal Banarsidass. ISBN 978-81-208-0224-7. Mitra, Sisirkumar (1 January 1977). The Early Rulers of Khajurāho. Motilal Banarsidass. ISBN 978-81-208-1997-9. Pacaurī, Lakshmīnārāyaṇa (1989). The Erotic Sculpture of Khajuraho. Naya Prokash. ISBN 978- 81-85109-79-4. Deva, Krishna (1986). Khajuraho, Brijbasi Printers Punja, Shobhita (1992), Divine Esctasy, the story of Khajuraho