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पोवार/पंवार समाज क
े वववाह क
े दस्तुर
1
पोवार/पंवार समाज क
े वववाह क
े दस्तुर
लेखक: भोजलालभाऊ पारधी, नागपुर
सृष्टी क
े ननर्ााण होते ही भगवान ने संसार का खेल रचाया तथा उसक
े निन ब निन नवकास स ननर्ााण
नकये गये जीव को बढाने क
े नलए नर र्ािा यह िो प्रकार क
े जीव पैिा नकये तथा प्रजनन क
े नलए क
ु छ
ननयर् बनाये। नववाह यह भी एक भगवान नननधात ननयर् या बंधन है। नजसे भगवानों ने खुि अपनाया तथा
नवष्णुजी ने लक्ष्मी से, निवजी ने पावाती से और इन्द्र ने इद्रायणी से नवधीपूवाक नववाह रचाया।
पुरातन काल से नववाह का बंधन एक नाजुक बंधन ननरूनपत कर उसे नवधीपूवाक अनेक िस्तुर
बनाये गये। हर्ारा पोवारों का सर्ाज क्षनिय वणा र्ें आता है, िािी र्ें ७ भावर की प्रथा प्रचनलत हुई तथा
अनेक िस्तुर बनाये गये। उन सारे िस्तुरो को नवश्लेषणात्मक प्रारूप र्ें नलखाया जाए तो एक बडी नकताब
बन जायेगी। इसनलए संक्षेप र्ें नववाह क
े िस्तुरों को प्रस्तुत कर रहा हं। आज से ६० - ७० साल पहले क
े
िस्तुर नलए जाए तो उस वक्त ७ निन तक िस्तुर हुआ करते थे। उनर्ें सर्य क
े अनुसार पररवतान नकए गए
और नववाह ५ निन, निर ३ निन, निर एक निन पर आ गये। अब सर्य का इतना तकाजा है नक इतने कर्
सर्य र्ें सारे िस्तर करना असंभव हो गया है । निर भी अपने सर्ाज क
े युवा - युवनतयों को ज्ञात करने
हेतु क
ु छ िस्तुर नकए जा रहे है। वर - वधु की खोज नववाह प्रनिया र्ें वर - वधु याने लडका लडकी की
खोज करना अननवाया होता है। इसक
े नलए नर्ि, पररवार ररश्तेिारों क
े र्ित से वर - वधू खोज नकया जाता
है, खुि क
े भी लडका लडकी की बात खुि नहीं कर सकते , इसनलए बीच र्ें र्ध्यस्थ की जरुरत होती है,
नजसे र्ाहती कहते है। यह र्ाहती िोनों पक्षों को नर्लाकर लडका व लडकी िेखकर पसंि नकए जाते है
और लडका - लडकी, क
ु ल, पररवार, गोि, पसंि आने क
े बाि िोनों तरि से पसंती को आखरी र्ुहर लगाई
जाती है तथा इसे पक्का करने क
े नलए (गुरी सुवारी या भातखानी) साधा खाना िेकर िस - बीस रुपये से
िोनों पक्ष पांव पढते है। इससे िािी पक्की होने की प्राथनर्क सम्मती र्ानी जाती है। उसक
े बाि िािी
पक्की करने क
े नलए पांव लगाई, साक्षगंध या िलिान िोनों पक्ष की ओर से होता है। यह हुए नबना िािी
पक्की नहीं र्ानी जाती। इसनलए िोनों पक्ष क
े ओर से िािी का यह पहला िस्तुर र्ाना जाता है और िािी
कानुनन पक्की र्ानी जाती है।
१) पांव लगाई , साक्षगंध या फलदान: यह िस्तुर िोनों पक्ष क
े ओर से अलग - अलग तारीख को नववाह
क
े पहले नकया जाता है। इसर्ें वर - वधु क
े नलए कपडे, श्ृंगार का सार्ान, पांच प्रकार क
े िल, श्ीिल,
सुटक
े स वगैरा खरीिे जाते है तथा िोनों ओर से बाराती वर - वधु को क
ु र्क
ु र् िक्तक्तनुसार पैसे िेकर पांव
पडते है। यही क
ु र्क
ु र् और सार्ान िािी पक्की होने का साक्षीिार होता है। नाई द्वारा िुल्हन क
े क
ु र्क
ु र्
से पांव नलखे जाते है तथा खाना खाकर अपने गांव वापस चले जाते है।
२) मांडोधरी: र्ांडोधरी क
े नलए जंगल र्ें जाकर १२ डेरी, ४ लकटे (िाटे) २५ बांस तथा जार्ुन की डगाल
(टहनी) जरूरी होती है। १२ डेरी र्ें से १ डेरी र्ोहई की अत्यावश्यक है क्ोंनक वही खास लगुनडेर र्ानी
जाती है। घर क
े र्ुहल्ले क
े लोग खेत से या जंगल र्ें बैलगाडी ले जाकर उपरोक्त लकडी लाते है। बाि िुल्हे
क
े घर वर को तथा िुल्हन क
े घर वधु की आरती सजाकर सवानसनी बाई लोग बैलगाडी क
े पास लाते है
तथा चावल और क
ु र्क
ु र् डेररयों को तथा गाडी चालक को नटका लगाते है।
३) मंडप डालना: िािी िुरु होने क
े एक निन पहले र्ंडप बनाया जाता है जो र्ांडोधरी लाई गई होती है
उसे र्ुहल्ले क
े लोग तथा पररवार क
े ओर ररस्तेिार रात र्ें र्ंडप डालते है और उसे सजाते है। गांव का
पोवार/पंवार समाज क
े वववाह क
े दस्तुर
2
बढई बैठने का पाट, र्ायेिसाई क
े िो पाट बनाकर िेता है, तथा बीच क
े डेर को निया टांगने क
े नलए खुंटी
बनाकर िेता है। इसक
े नलए उसे पैसे भी निये जाते है तथा सभी आर्ंनित ननर्ंनित र्ेहर्ानों को चायपानी
िेकर र्ंडप का काया पूरा होता है। पहले क
े जर्ाने र्ें र्ंडप डालने आनेवाले लोगों को खाना भी क्तखलाया
जाता था । इसक
े बाि पांच सवानसनी सब्बल और नबवळा लेकर गांव क
े बाहर जाकर र्ाटी खोिकर लाते
है, उसे ही र्ागरर्ाटी या तेलपाटी कहते है। लाई गई र्ाटी से र्ाथन बेठ तथा चुलहा बनाया जाता है, इसे
बहुत श्ध्िा से र्ंगलर्य र्ाना जाता है। लगुन डेर को िूध िही भात डालकर पांच जने डेर को गढ्ढे र्ें
डालते है तथा सुपारी पैसा हरक
ुं ड की गाठ पीले कपडे र्ें (हल्दी लगा हुआ कपडा) बांधकर र्ोहई की
लगुन डेर को बांधा जाता है।
४) विजोरा: िोनो पक्ष क
े और से नबजोरे की बारात ले जायी जाती है तथा अच्छे ठाटबांट से, बाजा
बजाकर, खाचर से बारात ले जायी जाती है। पहले बारात िुल्हे क
े तरि से िुल्हन क
े घर जाती है। इसर्ें
बारातीयों की बहुत आवभगत होती है तथा नपतल क
े कटोरे र्ें सब बारातीयों क
े पांव धोये जाते है। निर
पहला चढाव र्ंडप र्ें होता है इसर्ें िुल्हन क
े नलये लाए गए कपडे चढाये जाते है। चढावा क
े कपडे पहनने
क
े बाि िुसरा चढावा घर र्ें होता है तथा इस चढावे र्ें सोना, चांिी क
े जेवर चढाये जाते है। तीसरा चढावा
र्ंडप क
े बाहर चार सुर्ी चारपाई नबछाकर चारों कोने पर चार बाराती तथा नबच र्ें िुल्हे का बडा भाई
बैठकर िुल्हन को गोि र्ें नबठाकर बैठता है, और उसी वक्ती तीसरी साडी चढाई जाती है। यह साडी
िािी भर पहनी नहीं जाती तथा यह निपावली क
े वक्त चरळ क
े िस्तुर र्ें पहनी जाती है। इस प्रकार ३
िस्तुर िुल्हन क
े घर होते है। बाि र्ें खाना खाने क
े बाि गणावे का िस्तुर होता है। इसर्ें ९ हरक
ं ड, ९
सुपारी और ९ पैसे पाट क
े ऊपर ९ खाने बनाकर रखते है। िोनों पक्ष क
े सर्धी पाटपर आर्ने सार्ने
बैठकर र्ंि क
े रुप र्ें िेवी िेवताओं क
े नार् पुकारे जाते है तथा प्रत्येक नार् क
े पीछे १ पान (नबडा बनाया
हुआ) िेना पडता है । इसर्ें यनि पूरे र्ंि पढे जाये तो क
ु ल ३६० नबडे लगते है। इसे ही पान जीतनी कहते
है। सभी िेवताओं को साक्षी क
े रूप र्ें र्ंिोच्चार से बुलाया जाता है और उन ९ खानों की िो गाठे बनाई
जाती है, एक र्ें पांच तथा िूसरे र्ें चार खाने की हलिी, सुपारी, पैसा बांधकर गाठे बनाई जाती है तथा वे
गाठे िोनों पक्ष क
े र्ार्ा क
े पास रखी जाती है। इसे ही लगुन गाठ कहा जाता है। जनोसा िेना - गणावे का
िस्तुर होने क
े बाि जनोसा निया जाता है। इसक
े नलए िािी क
े र्कान क
े नवरुध्ि का र्कान िेखा जाता है।
पुरातन काल र्ें िािी क
े नलए लढाईयां भी होती थी इसनलए यह र्कान अपना नवश्वासू या पक्षधर क
े रुप र्ें
बनाते होगे क्ोंनक यह र्कान िुल्हे का खास र्कान होता है, तथा िुल्हे की खाचर (गुडुर) उसी र्कान र्ें
रखी जाती है। इसी प्रकार िुल्हे क
े तरि िुल्हनवालों की भी नबजोरे की बारात जाती है। लेनकन वहां नसि
ा
िो ही िस्तुर होते है। पहला चडाव र्ंडप र्ें कपडे चढाये जाते है। िूसरा चढाव सोना - चांिी का इसर्ें
िक्तक्तनुसार अंगुठी या घडी चढाई जाती है और भोजन क
े बाि बारात वापस आती है।
५) कांकन िांधना: िुल्हा और िुल्हन को अपने अपने र्ंडप र्ें कणेरी पान पांच लेकर उसर्ें घननया जीरा
तथा चावल लपेटकर धागे र्ें तांबे की अंगुठी (र्ुंिी या छल्ला) बांधकर िुल्हा - िुल्हन क
े बुवा, आत्या या
ि
ु वा अगर ये हाजर नहीं है तो बहन यह काकन बांध सकती है। िुल्हा और िुल्हन को िाहीने हात र्ें यह
बंधन बांधते है। इसर्ें ९ गाठे नगराई जाती है। कांकन बंधने क
े बाि ही असनलयत र्ें। िुल्हा - िुल्हन बनते
है तथा इसक
े बाि कोई भी कार् करने की सक्त र्नाई रहती है। बाि र्ें यही गाठे बाल खोलने क
े बाि
िुल्हन क
े घर ही छोडी जाती है।
पोवार/पंवार समाज क
े वववाह क
े दस्तुर
3
६) हलदी चडाना: यह एक र्हत्वपूणा िस्तुर होता है, इसक
े नलए क
ु टूंब पररवार की र्नहलायें आरती तथा
श्ीिल और पूजा का सार्ान लेकर जवाई (िार्ाि) साथ र्ें बाजे सहीत जाते है तथा गांव क
े सभी िेवताओं
की पूजा करक
े िािी र्ें सांसाररक जीवन र्ें सुखिांनत की आराधना की जाती है।
७) तेलमाटी या मागर माटी: इस िस्तुर क
े नलए कर् से कर् ५ सवानसनी गांव क
े बाहर सब्बल लेकर
जाती है और नववले र्ें (टोकनी) र्ाटी भरते है, बाजे क
े साथ र्ाटी घर र्ें लाते है और उस र्ाटी से चुल्हा
तथा र्ाथन बेठ बनाते है उसी चुल्हे पर खाने क
े नलए (प्रसाि सर्झकर) ि
ु ये बनाये जाते है और वे सबको
बांटते है।
८) तेल चढाई, माहे दसाई और मंडप सुतना: िेवघर र्ें क
ु लिेवता क
े सार्ने तेल चढाते है। और र्ाटी क
े
निपक (नांिड) जलाकर बडे टोकन र्ें रखकर उपर से परडा झाककर िुल्हन क
े र्ाता - नपता या चाचा -
चाची, भाई - भवजाई इनर्ें से जो भी हाजर हो यह टोकना पुरुष तथा क
े टली र्ें पानी भरकर स्त्री छपरी से
लेकर र्ंडप तक पानी की धार छोडकर लाते है। इन्ीं जोडे को र्ाहे िसाई करने वाली कहते है। इसक
े
नलए िोनों पुरुष स्त्री को उपवासी रहना पडता है। इसक
े नलए िोनों ला गाठजोडा बांधा जाता है। घर क
े
अंिर र्ाहेिसाई र्ंडप तक लाने क
े नलए लकडी क
े पाट पर र्ाती की बेठ बना क
े बडे वृक्ष क
े पतो क
े १४
जोडी द्रोण चढाये जाते है तथा सोजी बनाकर चढाई जाती है ओर क
ु लिेवता गार्िेवताओं की आराधना की
जाती है। द्रोण बनाने का कार् िार्ाि (जवाई ) को करना पडता है।
९) मंडप सुतना: उसक
े बाि जवाई द्वारा र्ंडप क
े चारों नििा व चारो कोने र्ें सुत तथा आर् क
े पत्ती की
तोरण तथा रंगनबरंगी सजावट की जाती है। द्रोण क
े बिले र्ें िार्ािों को खाजा िेना पडता है, अन्यथा
िार्ाि द्रोण छु पाकर रखते है, और खाजे क
े नलए रुसवा पकडते है। उन्ें खुि करना जरूरी होता।
१०) अहेर: (हल्दी) जवाई द्वारा र्ंडप र्ें नबछायत करक
े िुल्हा िुल्हन को (अपने अपने र्ंडप र्ें) लाकर
नबठाते है इसक
े नलए सर्क
ु ल ही बैठते है, अपने ही गोि क
े पुरुष एकतरि तथा िुल्हा या िुल्हन क
े लाईन
र्ें जनाना बैठती है। इसक
े बाि जो हल्दी गांव क
े िेवताओं को चढाई जाती है वही हल्दी (नपसी हुई गीली
करक
े िल्हा िुल्हन को सवासीनी लेपन करती है तथा सभी बाई लोग तथा बैठे हये पररवार वालों को हल्दी
लगाई जाती है। हल्दी लगाने का काया पूणा होने क
े बाि आर्ंनित र्ेहर्ान र्नहलायें साथ र्ें जो भी नये वस्त्र,
धोती, साडी, िुपट्टा, रुर्ाल वगैरा लाते है। वे संबंधीत व्यक्तक्त को नटका लगाकर उपहार रुप र्ें निये जाते है।
११) डेरी पूजना: अहेर होने क
े बाि नये कपडो क
े टुकडे ननकालकर क
ु लिेवता को चढाये जाते है, इसे
िसी चढाना कहते है। बाि र्ें घरवाले नये कपडे पहनकर र्ंडप क
े डेरीयों की पुजा करते है। इसक
े बाि
घरवाले क
े ओर से जवाई तथा भांजे को यथािक्तक्त नये कपडे िेकर स्वागत नकया जाता है।
१२) जोडी नहाना: पुराने जर्ाने र्ें अहेर पूणा होने क
े बाि ५ जोडे (लडकी जवाई ) याने ५ िािीसुिा
लडकीया तथा जवाई को आर्ने सार्ने नबठाया जाता था। लडकी अपने पती को हल्दी लगाती थी और पती
भी अपने पत्नी को गाल को हल्दी लगाते थे। उसक
े बाि िुल्हा या िुल्हन क
े साथ नहाते थे।
१३) दुल्हा या दुल्हन को नहलाना: डेरी पूजने क
े बाि िुल्हा या िुल्हन को र्ंडप र्ें नहलाया जाता है।
इसक
े नलए नर्ट्टी की िो िो करई र्ें पानी भरकर चार कोने पर रखकर उसे धागे से पांच धेरै गंडकर
बननेवाले चौरस र्ें िुल्हा या िुल्हन को नबठाकर पांच सवानसनी हल्दी लगाकर नहलाती है। आक्तखर र्ें सभी
पोवार/पंवार समाज क
े वववाह क
े दस्तुर
4
आठो करई।का पानी इकट्ठा करक
े िुल्हा या िुल्हन क
े सर पर परडा रखकर छोडा जाता है। इसी को
करस का पानी कहते है।
१४) लगुन की िारात क
े वलए देवघर में दुल्हे को सजाना: िुल्हे को िािी क
े सारे कपडे और साज
श्ृंगार चढाकर र्ाता, चाची याने (नजन्े वरुर्ाये कहते है) पानी का क
ु रला तथा िुध नपलाना, क
ु ल िेवताओं
की पुजा करना, र्ाता ने िुल्हे की उंगली पकडकर र्ंडप र्ें लाकर खडा करना तथा सब क
ु टुंब पररवार,
ररस्तेिारों ने पांव पडना। इसक
े बाि सपटनी करना, पुवाजों को नेवैध चढाना तथा िािी नननवाघ्न ननपटाने
की याचना करना और साक्षी रहने की नवनंती करना। कापड पकडनेवाला र्जूर (कावडी) ने कावड
बनाकर उसर्ें नर्क, चावल, धोती तथा सुर् (घास) पकडना और कावडीया यह कावड लेकर बारात क
े
साथ चलता है। पांव पढने क
े बाि िुल्हे को चंिोडे की ओळ (चािर या िाल) का र्ंडप ( छत ) बनाकर
बीच र्ें खडा करक
े बीच र्ें तुतारी से उठाकर र्ंिीर जैसा सीन बनाकर बाजे बॅड, धुर्ाल, डिली क
े
आवज तथा िटाक
े , बारुि क
े धर्ाक
े क
े साथ घर से बारात ननकलती है। पुराने जर्ाने र्ें बालनववाह होते
थे इसनलए िुल्हे क
े जीजा या र्ार्ा िुल्हे को क
ं धे पर नबठाकर चलते थे। र्ंिीर पर आने क
े बाि पूजापाठ
करक
े िुल्हे की र्ााँ, चाची, भाभी वगैरे गुडुर क
े सार्ने आकर धुरपर आरती रखती है। (गुडुर याने िुल्हे क
े
नलए सजाई गई बडे बडे बैलोवाली बडी से बडी खाचर नजसे जीतना सजाये कर् होता है) आरती छु डाने को
बारती पकडनेवाली र्नहला क
े भाई या नपता को सार्ने आकर आरती र्ें पैसे डालकर छु डाना पडता है।
उसक
े बाि िुल्हा गुडुर र्ें बैठता है तथा सवानसनी (करौली) भी बैठती है, इन सबको नर्ठी िरबत नपलाकर
बारात रवाना होती है। इस वक्त का र्ाहौल जैसे कोई राजा र्हाराजा सजधजकर लश्कर सनहत बाँड बाजे,
नगारे िहनाई नसंडा बजाते िुश्मन पर चढाई करने जाने जैसा होता है। सभी की छाती आनंि और गवा से
ि
ू ली हुई होती है। सार्ने आनेवाले हर गांव क
े बाहर से ही बाजे का आवाज िटाक
े बारुि का िोरगुल क
े
साथ धूर्धार् से चलती है। बाजे िटाको का आवाज गुंजता रहता है। उन बैलों क
े गले क
े घोलर, झील र्ोर
पकट से एक र्धुर संगीत ननर्ााण होता है और यह र्न को बहुत भाता है। बारात िािीवाले गांव क
े
हनुर्ान र्ंिीर पर जाकर खडी हो जाती है। और वहां र्ंिी र्ें श्ीिल चढाकर पुजा की जाती है। बाजेवालों
को िुल्हन क
े घर भेजकर िुल्हन क
े तरि से आरती सजाकर सभी घर बाराती आर्ंनित ननर्ंनित र्ेहर्ान
िुल्हा उतारने आते है। आरतीवाली र्नहला सवासीन गुडुर क
े धुर पर आरती रखती है। (पहले क
े जर्ाने र्ें
इस िस्तुर क
े नलए सर्धी को ज्यािा से ज्यािा पैसे डालने का प्रेिर डाला जाता था तथा कभी कभी झगडा
भी हो जाता था) धुर छुटने क
े बाि आरती िुल्हे को उतारने गुडुर क
े पीछे आकर चंिोडो की ओल नीचे
नबछाकर िुल्हे को तथा सवानसनी (करौली) यों को नर्ठी िरबत नपलाकर िुल्हे को उतारा जाता है। निर
भगवान क
े ििान करक
े चंिोलो की ओल काही छत बनाकर िुलहे को नाचते क
ु िते र्ंडप तक लाया जाता
है। िुल्हा र्ंडप र्ें पहुंचने क
े बाि र्ंडप पर जो िगुन बास डाला जाता है उसे हात पकडकर रखता है तथा
र्ंडप पर से िुल्हन क
े जीजा रंग डालते है तथा उसक
े बाि िुल्हा वापस जानवासे पर पहुंच जाता है। इसे
ही र्ांडो र्ारना कहते है। जनोसे पर िुल्हे को नहलाया जाता है और थोडे सर्य क
े नलए िांतता ि
ै ल जाती
है। इसी सर्य क
े बीच र्ें िुल्हे क
े तरि से लाई गई कावड का सार्ान नर्क, चावल, धोत, धोती वगैरा हर
वक्त एक एक करक
े पहुचाये जाते है। इसक
े नलए कर् से कर् पाच बाराती जाते है तथा िुल्हन क
े तरि से
भी पांच बाराती आकर पांव धोते है, टीका लगाते है और चढावा स्वीकार करते है। इसे ही तेलगौडा,
नोनगौडा की बाराते कहते है। इसक
े बाि िुल्हन क
े तरि से क्तखर लाई जाती है और िुल्हे क
े साथ करोली
सब नर्लकर नर्ठी खीर खाते है। उसक
े बाि िुल्हा निर से सजकर लग्न र्ंडप र्ें पहुंचाया जाता है। इस
सर्य क
े बीच िुल्हन का र्ंडप भी जातना सजाया जा सक
े उतना सजाते है। सभी बाराती आंगन र्ें
नबछायत पर बैठते है। िुल्हा र्ंडप क
े बाहर खडा नकया जाता है और िुल्हन को सजाकर सार्ने खडी
करते है। निर जो लगुन गाठे र्ार्ाओं क
े पास रहती है उसे एक िुसरे को ि
े र निया जाता है। इस सर्य
पोवार/पंवार समाज क
े वववाह क
े दस्तुर
5
िुल्हा िुल्हन को स्टेज या क
ु सी पर (पुराने जर्ाने र्ें बास क
े टोकनों र्ें) नबठाया जाता है। बैठते वक्त िुल्हे
का र्ुह छपरी क
े तरि तथा िुल्हन का र्ुंह अंगन क
े ओर रखा जाता है। निर र्ार्ाओं ने िोनों क
े बीच जो
धोती कापड क
े साथ आती है उसका अंतर - पाट बनाकर पकडा जाता है। इसी धोती को खरगनेत पाट
बनाकर पकडा जाता है। इसी धोती को खरगनेत की धोती कहते है।
१५) शादी लगाना : ब्राम्हण, पंडीत या बारानतयों ने िुभर्ंगल कहना और पांच श्लोक क
े बाि िुल्हा िुल्हन
का नार् लेकर सावधान करना। (पुराने जर्ाने र्ें िािी लगानेवाला पंडीत घर क
े आडे पर चढकर सुयाास्त
होने का इंतजार करता था, जब सूया अस्त हो रहा होता है तभी िािी का आखरी िुभर्ंगल बोला जाता था
इसी सर्य को गोधुली बेला की िािी कहते है। सावधान होते ही बाजे, नगाडे, बाँड, िहनाई, धुर्ाल, बजाना
तथा िटाक
े िोडने का कार् होता है। िुल्हन क
े र्ााँ ने िुल्हा िुल्हन को पान का नबडा चखाना और सोना
या िाब कहना। िुल्हे ने सोना कहां तो ठी नहीं तो तुम्हारे र्ााँ ने डाला गाव ऐसा र्ुहावरा छोडना। इसी बीच
बारानतयों तथा ग्रार्ननवानसयों को पान सुपारी, इतर लगाना, गलाब जल नछडकना यह रस्म अिा होती रहती
है। िुल्हा - िुल्हन को घर र्ें ले जाते वक्त िुल्हन क
े र्ााँ ने िुल्हे की अंगुली तथा िुल्ले ने िुल्हन की अंगुली
पकडकर चलना, िरवाजे पर आजीयो ने या भावजोने िरवाजा रोककर िुल्हन से िुल्हे का और िुल्हे से
िुल्हन का नार् पुछाना और र्जाक करती है। घर र्ें जाकर नास्ता पानी तथा हंसी र्जाक करना चलते
रहता है।
१६) समधी भेट : इसी वक्त र्ंडप क
े बाहर अच्छी नबछायत करक
े िोनों पक्ष क
े ररश्तेिार को िो ग्रुप र्ें
नबठाकर पान सुपारी, अतर गुलाल नछडकाना, गुलाब जल नछडकना और पान नबडी र्ाचीस का इस्तेर्ाल
करना होता है। इसी िौरान िोनों पक्ष का नार् करक
े गले नर्लकर पररचय नकया जाता है। इसे ही सर्धी
भेट कहते है। इसका र्ुख्य उद्देश्य िोनों पक्षों क
े ररस्ते संबंधी पहचान होती है।
१७) भावर वगराना तथा दहेज : पररचय क
े साथ नास्ता पानी हंसी र्जाक होने क
े बाि धोत (जो कावड
क
े साथ आती है) उसे बाजेगाजे से र्ंडप र्ें लाते है और िूल्हा िुल्हन को बैठने क
े नलए गुडुर और सहगुडुर
(खाचर) की जुवाडी लाकर र्ंडप र्ें रखी जाती है। उस पर िुल्हा िुल्हन को नबठाया जाता है। धोत क
े िो
परडे क
े बीच र्ें रखकर िुल्हा िुल्हन क
े सीर पर पांच बारातीयों क
े साथ सात बार घुर्कर ि
े रे नलये जाते हैं
तथा क
ुं वारी कन्या परणु जाये घी यह र्ंिोच्चार करक
े सात भावर का िस्तुर नकया जाता है।
उसक
े बाि िुल्हा िुलन को जुवाडी पर नबठाया जाता है तथा िुल्हन की र्ााँ और नपताजी िोनों गाठ
जोडा बांधकर वर - वधु क
े िुध तथा िुभारी से पांव धोते है। उसक
े बाि जो सुर् (घास) कावड क
े साथ
लाया जाता है उसकी कावडीया एक लंबी रस्सी बनाता है। तथा उसक
े पांच घेरे बनाकर उतनाही घागा क
े
घेरे लेकर बीच र्ें कननक क
े गोले से नचपकाकर वर - वधु क
े गले र्ें िुल्हे क
े छोटे भाई द्वारा पहनाया जाता
है। इसे ही गोत गुथना कहते है। इसक
े बाि िहेज (आंिन) नगराना चालू होता है। और सभी इष्टनर्ि, किंच
पररवार, ररश्तेिारों द्वारा िक्तक्तनुसार सप्रेर् भेट िी जाती है। सप्रेर् भेंट पूरी होने क
े बाि जवाई द्वारा नगनती
करक
े िुल्हे पक्ष को सौंप निया जाते है। आरनपर र्ें िुल्हन क
े छोटे भाई द्वारा गोत छु डाया जाता है तथा
इसक
े बिले गाय, भैस, बकरी, अन्निान, और जो भी िे सकते है उसे कबुल करक
े गोत छु डवाया जाता है।
बाि र्ें डेरी पूजकर खाना पीना होता है।
१८ ) िाल खेलना :नववाह क
े िूसरे निन िुल्हा िुल्हन को र्ंडप र्ें लाकर सारीिासा (हारजीत) का खेल
होता है, इसर्े गोटी क
े रुप र्ें बाल िल्ली क
े िाने का उपयोग नकया जाता है तथा िुल्हा िुल्हन एक िूसरे
पोवार/पंवार समाज क
े वववाह क
े दस्तुर
6
को उना का पूरा कहते है उना याने नवषर् जोडी तथा पूरा याने सर् इस पर से हारजीत लगाई ली गई है।
जाती है इसे वाल खेलना कहते है। संभवतः इस खेल की प्रेरणा निव - पावाती क
े चौसर बाजी से
१९) जोडी नहाना: बाल खेलना होने क
े बाि हारजीत नकसी की भी हो, क्षर्ा कर निया जाता है तथा कोई
िंड या सजा नहीं िी जाती और ५ जोनडयां (िुल्हे क
े तरि की िो और िुल्हन क
े तरि की िो और िुलहा
िुल्हन) ऐसी ५ जोडी नर्लाकर यह काया होता है। इसर्ें बहने और जीजाओं का इस्तेर्ाल नकया जाता है।
िुल्हा िुल्हन क
े साथ नहाना होता है तथा इस वक्त पानी का क
ु रला एक िूसरे पर डालकर खूब पानी खचा
करक
े र्ौजर्स्ती होती है। अपने अपने हसने वाली र्नहलाओं पर पानी डालकर र्ौज करते है। र्ीट्टी की
करई और धागे से चौरस बनाकर उसर्ें िुल्हा िुल्हन को नहलाया जाता है और आठों करई का पानी
इकट्ठा करक
े िुल्हे क
े सार्ने िुल्हन को खडी करक
े िोनों क
े हातों र्ें हात रखकर ओंजल बनाई जाती है
तथा परडे को निरक
े उपर पकडकर वह करस का पानी डाला जाता है। उसक
े बाि िुल्हन को परडे र्ें
नबछाकर उपर से चािर या िाल ढालकर िुल्हे ने िुल्हन को उठाकर िेवघर र्ें ले जाना होता है, तब
आनजया िरवाजा रोककर िुल्हन को पकडकर नाचने को कहती है। और तब तक नहीं छोडती जबतक
िुल्हे को पकडे हुए ही खुि को न नचाये। वैसे ही बाकी जोडी वाले भी अपने अपने पत्नीयों को उठाकर
िेवघर र्ें ले जाते है। कपडे बिलने क
े बाि र्ंडप की डेरी पूजन नकया जाता है।
२०) ढेंडा: र्ंडप र्ें चारपाई (चारसुर्ी खटीया) डालकर चंिोलो की ओल नबछाकर उसपर िुल्हे िुल्हन को
खडा करक
े बाराती तथा र्नहला िुल्हा िुल्हन क
े पांव पढते है। पुराने जर्ाने र्ें िुल्हा िुल्हन को कडे पर
पुरुष लोग िोनों को लेकर नाचते थे। इस वक्त क
े पांव पढाई क
े पैसे बाजंिी तथा नाई को होते है। इसे लैंडा
नाचना कहते है।
२१) क
ु सुंिा: पराने जर्ाने र्ें पानी भरने क
े नलए पैसे लेने िेने का कोई ठराव नहीं होता या तथा कसंब र्ें
जीतना पैसा होता था इसक
े नलए पानी भरनेवाले आरती बनाकर पान सुपारी, रंग गुलाल, नबडी नसगरेट
इतर गुलाब वगैरे सभी सार्ान खरीिकर पानिान सजाकर घरबाराती, बाराती सबको बुलाकर पानसुपारी
िेती थी तथा पैसा वसुल करती थी। इसर्ें िोनों पक्ष आर्ने सार्ने बैठकर िुल्हे का नपता िुल्हन क
े नपता से
िुगना पैसा वसुलने की कोनिि की जाती थी। साथ र्ें बैठनेवाले हर आिर्ी अपने िक्तक्तनुसार पैसा डालते
थे। इसी वक्त जवाई को रंग डालने क
े उपलक्ष र्ें और ७ काटवार, भाट इनको भी पैसा िेकर खुि नकया
जाता था। वही कोटवार िािी होने की खबर िासन को िेते थे। इसी को क
ु सुंबा कहते है।
२२) सपटनी -दुल्हन की विदाई : यह िस्तुर िािी भर र्ें बडा ही नाजुक र्ोड पर होता है तथा जीवन
का िुः ख भरा क्षण होता है। िुल्हन का सारा पररवार और ररस्तेिार लडकी क
े नबछु डने का िुः ख भरा गर् र्ें
डुबे होते है। हर व्यक्तक्त का हृिय ििा से नहल जाता है और अपने आपही आखों र्ें आंसू आ जाते है। इस
िस्तुर क
े वक्त िेवघर र्ें िुल्हा िुल्हन को सजाया जाता है तथा नाई िोनों क
े पाव नलखता है यानी पावों को
रंग से सजाता है। िुल्हे का नजजा या भांजा िनोली क
े ि
ु ल को रंग र्ें डुबारक चेहरे की सजावट करता है
और निर िुल्हा िुल्हन को र्ंडप लाकर खडे नकया जाता है और घरवाले, र्ेहर्ान र्नहलायें सभी िुल्हा
िुल्हन क
े पांव पढते है। इसक
े बाि नांिड को गंगार र्ें पानी रखकर िुल्हा िुल्हन द्वारा घुर्ाकर बुझा निया
जाता है। इसे नांिेड बुझाना कहते है। इसी बीच कावड क
े साथ आये नर्क और चावल को सवाई से
बढाकर वापस िुल्हे पक्ष को लौटाया जाता है और िुल्हा िुल्हन को आक्तखर कन्यािान या लडकी सोपना,
सपटनी क
े नलए िोनों पक्ष क
े पास ले जाया जाता है।
पोवार/पंवार समाज क
े वववाह क
े दस्तुर
7
२३) लडकी सोपना ( कन्यादान ) : नांिेड बुझाने क
े बाि लडकी क
े नपता द्वारा िुल्हन को िुल्हे क
े
नपताजी को सौप निया जाता है तथा िुल्हन की सारी नजंिगी रक्षा करने की नजम्मेिारी िुल्हेपर और उसक
े
पररवार पर सौंपी जाती है। इसे ही कन्यािान या लडकी सोपना कहते है। इसक
े नलए िुल्हा िुल्हन िोनो
पक्ष क
े नपता, चाचा या बडे भाई र्ंडप क
े बाहर नबछायत पर आर्ने सार्ने बैठते है। पहले िुल्हन पक्ष क
े
पास िुल्हा िुल्हन गोि र्ें नबठाते है तथा िोनो सर्धी एक िूसरे को नर्ठाई, गुढ क्तखलाते है और िोनों सर्धी
एकिूसरे को सर्धन का नार् पूछकर र्जाक करते है। उसी प्रकार बाि र्ें यह िस्तुर िुल्हा पक्ष क
े और
से भी नकया जाता है। इस िस्तुर क
े बाि िुल्हा िुल्हन वापस र्ंडप र्ें नहीं जा सकते। इसी सर्य क
े बीच
बारात की वापस जाने की पूणा तैयारी कर ली जाती है, खाचर बैल, गुडुर सजाना हो जाता है तथा गुड्डुर
र्ंिीर क
े पास जाकर खडी कर िी जाती है। कन्यािान का िस्तुर होते ही िुल्हा िुल्हन को जीजा क
े कडे
पर नबठाकर (बालनववाह सर्य) र्ंिी तक लाया जाता है, उस वक्त भी चंिोलो की ओळ का र्ंिीर नुर्ा
सीन बनाकर बीच र्ें िुल्हा िुल्हन को रखा जाता है, इस प्रकार बाजेगाजे और बारूि िटाक
े क
े आवाज र्ें
धूर्धार् से हनुर्ानजी क
े र्ंिीर पर लाया जाता है। हनुर्ानजी की पूजा करने क
े बाि गुडुर क
े पास िुल्हा
िुल्हन को लाया जाता है, तथा िुल्हन क
े तरि की वरुर्ार् (सवानसनी) गुडुर की धुर पकडती है। इसी वक्त
धुर छु डाने का कार् आरती पकडनेवाली क
े नपता या भाई या अन्य ररश्तेिारो द्वारा पैसे चढाकर होता है।
इसक
े बाि िुल्हा - िुल्हन को गुडुर र्ें नबठाकर साथ र्ें करोली भी बैठती है और नर्ठी िरबत नपलाकर
आखरी नबिाई की जाती है। िोनों ओर क
े सर्धी तथा र्ेहर्ान, बराती, एकिूसरे से रार्रार् लेकर बारात
प्रस्थान होती है। रास्ते र्ें हरगांव र्ें बाजा नगाडे तथा बारुि िटाक
े का आवाज होता है तथा सभी खाचरे
छकडे एक पीछे एक कतार र्ें आरार् से चलते है और आक्तखर अपने गांव क
े हनुर्ान र्ंिीर पर आकर
बारात खडी हो जाती है। निर बाजेवालों को घर आरती क
े नलए भेजा जाता है और घर से आरती सजाकर
सभी र्ेहर्ान और र्नहलाये ग्रार्वासी सब नर्लकर िुल्हा िुल्हन क
े स्वागत क
े नलए र्ंिीर क
े पास इकट्ठा
हो जाते है। आरती निर से गुडुर क
े धुर पर रखी जाती है तथा इस वक्त िुल्हे का नपता आरती र्ें पैसे
डालकर धुर छु डाते है। इस वक्त आयी हुई लगभग सभी र्नहलाओं से धुर धराई जाती है, तथा िुल्हे क
े
नपता सभी को यथािक्ती पैसे िेकर धुर छु डाई जाती है। इसी प्रकार िुल्हन तथा सवानसनी (करौली) को
िरबत पानी नपलाकर चंिोलो की ओळ नबछाकर उसपर हात पकडकर (स्वागत स्वरूप) उतारा जाता है
और हनुर्ानजी की पूजा अचाना कर, नाचते किते घर क
े िाटक पर आकर खडे होते है।
२४) फाटक पर दुल्हा - दुल्हन का स्वागत : िाटक पर िो पनीहारीन नसर पर पानी का गुंड लेकर खडी
रहती है, उनक
े गुंड र्ें िुल्हा िुल्हन पैसे डालकर पांच बार पानी का करला लेते है। तब नढर्र लोग भी
अपनी जाल आडी करक
े िुल्हा िहन को बक्षीस र्ांगते है, उन्ें भी यथािक्तक्त पैसा िेकर जाल से र्ुक्त होते
है। निर िाटक पर पाट रखकर घर की किंब पररवार की सार आजे सास, जेठानी, काक
े सास सभी िुल्हा
िुल्हन क
े पांव धोते हे इस वक्त िल्हन जब तक कछ उपहार िेने का वािा नहीं होता तब तक आगे पांव
नहीं बढाती। इसर्ें गहने, पैसे िेकर िुल्हन का स्वागत नकया जाता है।
लेखक: भोजलालभाऊ पारधी, नागपुर
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पोवार पंवार समाज के विवाह के दस्तुर

  • 1. पोवार/पंवार समाज क े वववाह क े दस्तुर 1 पोवार/पंवार समाज क े वववाह क े दस्तुर लेखक: भोजलालभाऊ पारधी, नागपुर सृष्टी क े ननर्ााण होते ही भगवान ने संसार का खेल रचाया तथा उसक े निन ब निन नवकास स ननर्ााण नकये गये जीव को बढाने क े नलए नर र्ािा यह िो प्रकार क े जीव पैिा नकये तथा प्रजनन क े नलए क ु छ ननयर् बनाये। नववाह यह भी एक भगवान नननधात ननयर् या बंधन है। नजसे भगवानों ने खुि अपनाया तथा नवष्णुजी ने लक्ष्मी से, निवजी ने पावाती से और इन्द्र ने इद्रायणी से नवधीपूवाक नववाह रचाया। पुरातन काल से नववाह का बंधन एक नाजुक बंधन ननरूनपत कर उसे नवधीपूवाक अनेक िस्तुर बनाये गये। हर्ारा पोवारों का सर्ाज क्षनिय वणा र्ें आता है, िािी र्ें ७ भावर की प्रथा प्रचनलत हुई तथा अनेक िस्तुर बनाये गये। उन सारे िस्तुरो को नवश्लेषणात्मक प्रारूप र्ें नलखाया जाए तो एक बडी नकताब बन जायेगी। इसनलए संक्षेप र्ें नववाह क े िस्तुरों को प्रस्तुत कर रहा हं। आज से ६० - ७० साल पहले क े िस्तुर नलए जाए तो उस वक्त ७ निन तक िस्तुर हुआ करते थे। उनर्ें सर्य क े अनुसार पररवतान नकए गए और नववाह ५ निन, निर ३ निन, निर एक निन पर आ गये। अब सर्य का इतना तकाजा है नक इतने कर् सर्य र्ें सारे िस्तर करना असंभव हो गया है । निर भी अपने सर्ाज क े युवा - युवनतयों को ज्ञात करने हेतु क ु छ िस्तुर नकए जा रहे है। वर - वधु की खोज नववाह प्रनिया र्ें वर - वधु याने लडका लडकी की खोज करना अननवाया होता है। इसक े नलए नर्ि, पररवार ररश्तेिारों क े र्ित से वर - वधू खोज नकया जाता है, खुि क े भी लडका लडकी की बात खुि नहीं कर सकते , इसनलए बीच र्ें र्ध्यस्थ की जरुरत होती है, नजसे र्ाहती कहते है। यह र्ाहती िोनों पक्षों को नर्लाकर लडका व लडकी िेखकर पसंि नकए जाते है और लडका - लडकी, क ु ल, पररवार, गोि, पसंि आने क े बाि िोनों तरि से पसंती को आखरी र्ुहर लगाई जाती है तथा इसे पक्का करने क े नलए (गुरी सुवारी या भातखानी) साधा खाना िेकर िस - बीस रुपये से िोनों पक्ष पांव पढते है। इससे िािी पक्की होने की प्राथनर्क सम्मती र्ानी जाती है। उसक े बाि िािी पक्की करने क े नलए पांव लगाई, साक्षगंध या िलिान िोनों पक्ष की ओर से होता है। यह हुए नबना िािी पक्की नहीं र्ानी जाती। इसनलए िोनों पक्ष क े ओर से िािी का यह पहला िस्तुर र्ाना जाता है और िािी कानुनन पक्की र्ानी जाती है। १) पांव लगाई , साक्षगंध या फलदान: यह िस्तुर िोनों पक्ष क े ओर से अलग - अलग तारीख को नववाह क े पहले नकया जाता है। इसर्ें वर - वधु क े नलए कपडे, श्ृंगार का सार्ान, पांच प्रकार क े िल, श्ीिल, सुटक े स वगैरा खरीिे जाते है तथा िोनों ओर से बाराती वर - वधु को क ु र्क ु र् िक्तक्तनुसार पैसे िेकर पांव पडते है। यही क ु र्क ु र् और सार्ान िािी पक्की होने का साक्षीिार होता है। नाई द्वारा िुल्हन क े क ु र्क ु र् से पांव नलखे जाते है तथा खाना खाकर अपने गांव वापस चले जाते है। २) मांडोधरी: र्ांडोधरी क े नलए जंगल र्ें जाकर १२ डेरी, ४ लकटे (िाटे) २५ बांस तथा जार्ुन की डगाल (टहनी) जरूरी होती है। १२ डेरी र्ें से १ डेरी र्ोहई की अत्यावश्यक है क्ोंनक वही खास लगुनडेर र्ानी जाती है। घर क े र्ुहल्ले क े लोग खेत से या जंगल र्ें बैलगाडी ले जाकर उपरोक्त लकडी लाते है। बाि िुल्हे क े घर वर को तथा िुल्हन क े घर वधु की आरती सजाकर सवानसनी बाई लोग बैलगाडी क े पास लाते है तथा चावल और क ु र्क ु र् डेररयों को तथा गाडी चालक को नटका लगाते है। ३) मंडप डालना: िािी िुरु होने क े एक निन पहले र्ंडप बनाया जाता है जो र्ांडोधरी लाई गई होती है उसे र्ुहल्ले क े लोग तथा पररवार क े ओर ररस्तेिार रात र्ें र्ंडप डालते है और उसे सजाते है। गांव का
  • 2. पोवार/पंवार समाज क े वववाह क े दस्तुर 2 बढई बैठने का पाट, र्ायेिसाई क े िो पाट बनाकर िेता है, तथा बीच क े डेर को निया टांगने क े नलए खुंटी बनाकर िेता है। इसक े नलए उसे पैसे भी निये जाते है तथा सभी आर्ंनित ननर्ंनित र्ेहर्ानों को चायपानी िेकर र्ंडप का काया पूरा होता है। पहले क े जर्ाने र्ें र्ंडप डालने आनेवाले लोगों को खाना भी क्तखलाया जाता था । इसक े बाि पांच सवानसनी सब्बल और नबवळा लेकर गांव क े बाहर जाकर र्ाटी खोिकर लाते है, उसे ही र्ागरर्ाटी या तेलपाटी कहते है। लाई गई र्ाटी से र्ाथन बेठ तथा चुलहा बनाया जाता है, इसे बहुत श्ध्िा से र्ंगलर्य र्ाना जाता है। लगुन डेर को िूध िही भात डालकर पांच जने डेर को गढ्ढे र्ें डालते है तथा सुपारी पैसा हरक ुं ड की गाठ पीले कपडे र्ें (हल्दी लगा हुआ कपडा) बांधकर र्ोहई की लगुन डेर को बांधा जाता है। ४) विजोरा: िोनो पक्ष क े और से नबजोरे की बारात ले जायी जाती है तथा अच्छे ठाटबांट से, बाजा बजाकर, खाचर से बारात ले जायी जाती है। पहले बारात िुल्हे क े तरि से िुल्हन क े घर जाती है। इसर्ें बारातीयों की बहुत आवभगत होती है तथा नपतल क े कटोरे र्ें सब बारातीयों क े पांव धोये जाते है। निर पहला चढाव र्ंडप र्ें होता है इसर्ें िुल्हन क े नलये लाए गए कपडे चढाये जाते है। चढावा क े कपडे पहनने क े बाि िुसरा चढावा घर र्ें होता है तथा इस चढावे र्ें सोना, चांिी क े जेवर चढाये जाते है। तीसरा चढावा र्ंडप क े बाहर चार सुर्ी चारपाई नबछाकर चारों कोने पर चार बाराती तथा नबच र्ें िुल्हे का बडा भाई बैठकर िुल्हन को गोि र्ें नबठाकर बैठता है, और उसी वक्ती तीसरी साडी चढाई जाती है। यह साडी िािी भर पहनी नहीं जाती तथा यह निपावली क े वक्त चरळ क े िस्तुर र्ें पहनी जाती है। इस प्रकार ३ िस्तुर िुल्हन क े घर होते है। बाि र्ें खाना खाने क े बाि गणावे का िस्तुर होता है। इसर्ें ९ हरक ं ड, ९ सुपारी और ९ पैसे पाट क े ऊपर ९ खाने बनाकर रखते है। िोनों पक्ष क े सर्धी पाटपर आर्ने सार्ने बैठकर र्ंि क े रुप र्ें िेवी िेवताओं क े नार् पुकारे जाते है तथा प्रत्येक नार् क े पीछे १ पान (नबडा बनाया हुआ) िेना पडता है । इसर्ें यनि पूरे र्ंि पढे जाये तो क ु ल ३६० नबडे लगते है। इसे ही पान जीतनी कहते है। सभी िेवताओं को साक्षी क े रूप र्ें र्ंिोच्चार से बुलाया जाता है और उन ९ खानों की िो गाठे बनाई जाती है, एक र्ें पांच तथा िूसरे र्ें चार खाने की हलिी, सुपारी, पैसा बांधकर गाठे बनाई जाती है तथा वे गाठे िोनों पक्ष क े र्ार्ा क े पास रखी जाती है। इसे ही लगुन गाठ कहा जाता है। जनोसा िेना - गणावे का िस्तुर होने क े बाि जनोसा निया जाता है। इसक े नलए िािी क े र्कान क े नवरुध्ि का र्कान िेखा जाता है। पुरातन काल र्ें िािी क े नलए लढाईयां भी होती थी इसनलए यह र्कान अपना नवश्वासू या पक्षधर क े रुप र्ें बनाते होगे क्ोंनक यह र्कान िुल्हे का खास र्कान होता है, तथा िुल्हे की खाचर (गुडुर) उसी र्कान र्ें रखी जाती है। इसी प्रकार िुल्हे क े तरि िुल्हनवालों की भी नबजोरे की बारात जाती है। लेनकन वहां नसि ा िो ही िस्तुर होते है। पहला चडाव र्ंडप र्ें कपडे चढाये जाते है। िूसरा चढाव सोना - चांिी का इसर्ें िक्तक्तनुसार अंगुठी या घडी चढाई जाती है और भोजन क े बाि बारात वापस आती है। ५) कांकन िांधना: िुल्हा और िुल्हन को अपने अपने र्ंडप र्ें कणेरी पान पांच लेकर उसर्ें घननया जीरा तथा चावल लपेटकर धागे र्ें तांबे की अंगुठी (र्ुंिी या छल्ला) बांधकर िुल्हा - िुल्हन क े बुवा, आत्या या ि ु वा अगर ये हाजर नहीं है तो बहन यह काकन बांध सकती है। िुल्हा और िुल्हन को िाहीने हात र्ें यह बंधन बांधते है। इसर्ें ९ गाठे नगराई जाती है। कांकन बंधने क े बाि ही असनलयत र्ें। िुल्हा - िुल्हन बनते है तथा इसक े बाि कोई भी कार् करने की सक्त र्नाई रहती है। बाि र्ें यही गाठे बाल खोलने क े बाि िुल्हन क े घर ही छोडी जाती है।
  • 3. पोवार/पंवार समाज क े वववाह क े दस्तुर 3 ६) हलदी चडाना: यह एक र्हत्वपूणा िस्तुर होता है, इसक े नलए क ु टूंब पररवार की र्नहलायें आरती तथा श्ीिल और पूजा का सार्ान लेकर जवाई (िार्ाि) साथ र्ें बाजे सहीत जाते है तथा गांव क े सभी िेवताओं की पूजा करक े िािी र्ें सांसाररक जीवन र्ें सुखिांनत की आराधना की जाती है। ७) तेलमाटी या मागर माटी: इस िस्तुर क े नलए कर् से कर् ५ सवानसनी गांव क े बाहर सब्बल लेकर जाती है और नववले र्ें (टोकनी) र्ाटी भरते है, बाजे क े साथ र्ाटी घर र्ें लाते है और उस र्ाटी से चुल्हा तथा र्ाथन बेठ बनाते है उसी चुल्हे पर खाने क े नलए (प्रसाि सर्झकर) ि ु ये बनाये जाते है और वे सबको बांटते है। ८) तेल चढाई, माहे दसाई और मंडप सुतना: िेवघर र्ें क ु लिेवता क े सार्ने तेल चढाते है। और र्ाटी क े निपक (नांिड) जलाकर बडे टोकन र्ें रखकर उपर से परडा झाककर िुल्हन क े र्ाता - नपता या चाचा - चाची, भाई - भवजाई इनर्ें से जो भी हाजर हो यह टोकना पुरुष तथा क े टली र्ें पानी भरकर स्त्री छपरी से लेकर र्ंडप तक पानी की धार छोडकर लाते है। इन्ीं जोडे को र्ाहे िसाई करने वाली कहते है। इसक े नलए िोनों पुरुष स्त्री को उपवासी रहना पडता है। इसक े नलए िोनों ला गाठजोडा बांधा जाता है। घर क े अंिर र्ाहेिसाई र्ंडप तक लाने क े नलए लकडी क े पाट पर र्ाती की बेठ बना क े बडे वृक्ष क े पतो क े १४ जोडी द्रोण चढाये जाते है तथा सोजी बनाकर चढाई जाती है ओर क ु लिेवता गार्िेवताओं की आराधना की जाती है। द्रोण बनाने का कार् िार्ाि (जवाई ) को करना पडता है। ९) मंडप सुतना: उसक े बाि जवाई द्वारा र्ंडप क े चारों नििा व चारो कोने र्ें सुत तथा आर् क े पत्ती की तोरण तथा रंगनबरंगी सजावट की जाती है। द्रोण क े बिले र्ें िार्ािों को खाजा िेना पडता है, अन्यथा िार्ाि द्रोण छु पाकर रखते है, और खाजे क े नलए रुसवा पकडते है। उन्ें खुि करना जरूरी होता। १०) अहेर: (हल्दी) जवाई द्वारा र्ंडप र्ें नबछायत करक े िुल्हा िुल्हन को (अपने अपने र्ंडप र्ें) लाकर नबठाते है इसक े नलए सर्क ु ल ही बैठते है, अपने ही गोि क े पुरुष एकतरि तथा िुल्हा या िुल्हन क े लाईन र्ें जनाना बैठती है। इसक े बाि जो हल्दी गांव क े िेवताओं को चढाई जाती है वही हल्दी (नपसी हुई गीली करक े िल्हा िुल्हन को सवासीनी लेपन करती है तथा सभी बाई लोग तथा बैठे हये पररवार वालों को हल्दी लगाई जाती है। हल्दी लगाने का काया पूणा होने क े बाि आर्ंनित र्ेहर्ान र्नहलायें साथ र्ें जो भी नये वस्त्र, धोती, साडी, िुपट्टा, रुर्ाल वगैरा लाते है। वे संबंधीत व्यक्तक्त को नटका लगाकर उपहार रुप र्ें निये जाते है। ११) डेरी पूजना: अहेर होने क े बाि नये कपडो क े टुकडे ननकालकर क ु लिेवता को चढाये जाते है, इसे िसी चढाना कहते है। बाि र्ें घरवाले नये कपडे पहनकर र्ंडप क े डेरीयों की पुजा करते है। इसक े बाि घरवाले क े ओर से जवाई तथा भांजे को यथािक्तक्त नये कपडे िेकर स्वागत नकया जाता है। १२) जोडी नहाना: पुराने जर्ाने र्ें अहेर पूणा होने क े बाि ५ जोडे (लडकी जवाई ) याने ५ िािीसुिा लडकीया तथा जवाई को आर्ने सार्ने नबठाया जाता था। लडकी अपने पती को हल्दी लगाती थी और पती भी अपने पत्नी को गाल को हल्दी लगाते थे। उसक े बाि िुल्हा या िुल्हन क े साथ नहाते थे। १३) दुल्हा या दुल्हन को नहलाना: डेरी पूजने क े बाि िुल्हा या िुल्हन को र्ंडप र्ें नहलाया जाता है। इसक े नलए नर्ट्टी की िो िो करई र्ें पानी भरकर चार कोने पर रखकर उसे धागे से पांच धेरै गंडकर बननेवाले चौरस र्ें िुल्हा या िुल्हन को नबठाकर पांच सवानसनी हल्दी लगाकर नहलाती है। आक्तखर र्ें सभी
  • 4. पोवार/पंवार समाज क े वववाह क े दस्तुर 4 आठो करई।का पानी इकट्ठा करक े िुल्हा या िुल्हन क े सर पर परडा रखकर छोडा जाता है। इसी को करस का पानी कहते है। १४) लगुन की िारात क े वलए देवघर में दुल्हे को सजाना: िुल्हे को िािी क े सारे कपडे और साज श्ृंगार चढाकर र्ाता, चाची याने (नजन्े वरुर्ाये कहते है) पानी का क ु रला तथा िुध नपलाना, क ु ल िेवताओं की पुजा करना, र्ाता ने िुल्हे की उंगली पकडकर र्ंडप र्ें लाकर खडा करना तथा सब क ु टुंब पररवार, ररस्तेिारों ने पांव पडना। इसक े बाि सपटनी करना, पुवाजों को नेवैध चढाना तथा िािी नननवाघ्न ननपटाने की याचना करना और साक्षी रहने की नवनंती करना। कापड पकडनेवाला र्जूर (कावडी) ने कावड बनाकर उसर्ें नर्क, चावल, धोती तथा सुर् (घास) पकडना और कावडीया यह कावड लेकर बारात क े साथ चलता है। पांव पढने क े बाि िुल्हे को चंिोडे की ओळ (चािर या िाल) का र्ंडप ( छत ) बनाकर बीच र्ें खडा करक े बीच र्ें तुतारी से उठाकर र्ंिीर जैसा सीन बनाकर बाजे बॅड, धुर्ाल, डिली क े आवज तथा िटाक े , बारुि क े धर्ाक े क े साथ घर से बारात ननकलती है। पुराने जर्ाने र्ें बालनववाह होते थे इसनलए िुल्हे क े जीजा या र्ार्ा िुल्हे को क ं धे पर नबठाकर चलते थे। र्ंिीर पर आने क े बाि पूजापाठ करक े िुल्हे की र्ााँ, चाची, भाभी वगैरे गुडुर क े सार्ने आकर धुरपर आरती रखती है। (गुडुर याने िुल्हे क े नलए सजाई गई बडे बडे बैलोवाली बडी से बडी खाचर नजसे जीतना सजाये कर् होता है) आरती छु डाने को बारती पकडनेवाली र्नहला क े भाई या नपता को सार्ने आकर आरती र्ें पैसे डालकर छु डाना पडता है। उसक े बाि िुल्हा गुडुर र्ें बैठता है तथा सवानसनी (करौली) भी बैठती है, इन सबको नर्ठी िरबत नपलाकर बारात रवाना होती है। इस वक्त का र्ाहौल जैसे कोई राजा र्हाराजा सजधजकर लश्कर सनहत बाँड बाजे, नगारे िहनाई नसंडा बजाते िुश्मन पर चढाई करने जाने जैसा होता है। सभी की छाती आनंि और गवा से ि ू ली हुई होती है। सार्ने आनेवाले हर गांव क े बाहर से ही बाजे का आवाज िटाक े बारुि का िोरगुल क े साथ धूर्धार् से चलती है। बाजे िटाको का आवाज गुंजता रहता है। उन बैलों क े गले क े घोलर, झील र्ोर पकट से एक र्धुर संगीत ननर्ााण होता है और यह र्न को बहुत भाता है। बारात िािीवाले गांव क े हनुर्ान र्ंिीर पर जाकर खडी हो जाती है। और वहां र्ंिी र्ें श्ीिल चढाकर पुजा की जाती है। बाजेवालों को िुल्हन क े घर भेजकर िुल्हन क े तरि से आरती सजाकर सभी घर बाराती आर्ंनित ननर्ंनित र्ेहर्ान िुल्हा उतारने आते है। आरतीवाली र्नहला सवासीन गुडुर क े धुर पर आरती रखती है। (पहले क े जर्ाने र्ें इस िस्तुर क े नलए सर्धी को ज्यािा से ज्यािा पैसे डालने का प्रेिर डाला जाता था तथा कभी कभी झगडा भी हो जाता था) धुर छुटने क े बाि आरती िुल्हे को उतारने गुडुर क े पीछे आकर चंिोडो की ओल नीचे नबछाकर िुल्हे को तथा सवानसनी (करौली) यों को नर्ठी िरबत नपलाकर िुल्हे को उतारा जाता है। निर भगवान क े ििान करक े चंिोलो की ओल काही छत बनाकर िुलहे को नाचते क ु िते र्ंडप तक लाया जाता है। िुल्हा र्ंडप र्ें पहुंचने क े बाि र्ंडप पर जो िगुन बास डाला जाता है उसे हात पकडकर रखता है तथा र्ंडप पर से िुल्हन क े जीजा रंग डालते है तथा उसक े बाि िुल्हा वापस जानवासे पर पहुंच जाता है। इसे ही र्ांडो र्ारना कहते है। जनोसे पर िुल्हे को नहलाया जाता है और थोडे सर्य क े नलए िांतता ि ै ल जाती है। इसी सर्य क े बीच र्ें िुल्हे क े तरि से लाई गई कावड का सार्ान नर्क, चावल, धोत, धोती वगैरा हर वक्त एक एक करक े पहुचाये जाते है। इसक े नलए कर् से कर् पाच बाराती जाते है तथा िुल्हन क े तरि से भी पांच बाराती आकर पांव धोते है, टीका लगाते है और चढावा स्वीकार करते है। इसे ही तेलगौडा, नोनगौडा की बाराते कहते है। इसक े बाि िुल्हन क े तरि से क्तखर लाई जाती है और िुल्हे क े साथ करोली सब नर्लकर नर्ठी खीर खाते है। उसक े बाि िुल्हा निर से सजकर लग्न र्ंडप र्ें पहुंचाया जाता है। इस सर्य क े बीच िुल्हन का र्ंडप भी जातना सजाया जा सक े उतना सजाते है। सभी बाराती आंगन र्ें नबछायत पर बैठते है। िुल्हा र्ंडप क े बाहर खडा नकया जाता है और िुल्हन को सजाकर सार्ने खडी करते है। निर जो लगुन गाठे र्ार्ाओं क े पास रहती है उसे एक िुसरे को ि े र निया जाता है। इस सर्य
  • 5. पोवार/पंवार समाज क े वववाह क े दस्तुर 5 िुल्हा िुल्हन को स्टेज या क ु सी पर (पुराने जर्ाने र्ें बास क े टोकनों र्ें) नबठाया जाता है। बैठते वक्त िुल्हे का र्ुह छपरी क े तरि तथा िुल्हन का र्ुंह अंगन क े ओर रखा जाता है। निर र्ार्ाओं ने िोनों क े बीच जो धोती कापड क े साथ आती है उसका अंतर - पाट बनाकर पकडा जाता है। इसी धोती को खरगनेत पाट बनाकर पकडा जाता है। इसी धोती को खरगनेत की धोती कहते है। १५) शादी लगाना : ब्राम्हण, पंडीत या बारानतयों ने िुभर्ंगल कहना और पांच श्लोक क े बाि िुल्हा िुल्हन का नार् लेकर सावधान करना। (पुराने जर्ाने र्ें िािी लगानेवाला पंडीत घर क े आडे पर चढकर सुयाास्त होने का इंतजार करता था, जब सूया अस्त हो रहा होता है तभी िािी का आखरी िुभर्ंगल बोला जाता था इसी सर्य को गोधुली बेला की िािी कहते है। सावधान होते ही बाजे, नगाडे, बाँड, िहनाई, धुर्ाल, बजाना तथा िटाक े िोडने का कार् होता है। िुल्हन क े र्ााँ ने िुल्हा िुल्हन को पान का नबडा चखाना और सोना या िाब कहना। िुल्हे ने सोना कहां तो ठी नहीं तो तुम्हारे र्ााँ ने डाला गाव ऐसा र्ुहावरा छोडना। इसी बीच बारानतयों तथा ग्रार्ननवानसयों को पान सुपारी, इतर लगाना, गलाब जल नछडकना यह रस्म अिा होती रहती है। िुल्हा - िुल्हन को घर र्ें ले जाते वक्त िुल्हन क े र्ााँ ने िुल्हे की अंगुली तथा िुल्ले ने िुल्हन की अंगुली पकडकर चलना, िरवाजे पर आजीयो ने या भावजोने िरवाजा रोककर िुल्हन से िुल्हे का और िुल्हे से िुल्हन का नार् पुछाना और र्जाक करती है। घर र्ें जाकर नास्ता पानी तथा हंसी र्जाक करना चलते रहता है। १६) समधी भेट : इसी वक्त र्ंडप क े बाहर अच्छी नबछायत करक े िोनों पक्ष क े ररश्तेिार को िो ग्रुप र्ें नबठाकर पान सुपारी, अतर गुलाल नछडकाना, गुलाब जल नछडकना और पान नबडी र्ाचीस का इस्तेर्ाल करना होता है। इसी िौरान िोनों पक्ष का नार् करक े गले नर्लकर पररचय नकया जाता है। इसे ही सर्धी भेट कहते है। इसका र्ुख्य उद्देश्य िोनों पक्षों क े ररस्ते संबंधी पहचान होती है। १७) भावर वगराना तथा दहेज : पररचय क े साथ नास्ता पानी हंसी र्जाक होने क े बाि धोत (जो कावड क े साथ आती है) उसे बाजेगाजे से र्ंडप र्ें लाते है और िूल्हा िुल्हन को बैठने क े नलए गुडुर और सहगुडुर (खाचर) की जुवाडी लाकर र्ंडप र्ें रखी जाती है। उस पर िुल्हा िुल्हन को नबठाया जाता है। धोत क े िो परडे क े बीच र्ें रखकर िुल्हा िुल्हन क े सीर पर पांच बारातीयों क े साथ सात बार घुर्कर ि े रे नलये जाते हैं तथा क ुं वारी कन्या परणु जाये घी यह र्ंिोच्चार करक े सात भावर का िस्तुर नकया जाता है। उसक े बाि िुल्हा िुलन को जुवाडी पर नबठाया जाता है तथा िुल्हन की र्ााँ और नपताजी िोनों गाठ जोडा बांधकर वर - वधु क े िुध तथा िुभारी से पांव धोते है। उसक े बाि जो सुर् (घास) कावड क े साथ लाया जाता है उसकी कावडीया एक लंबी रस्सी बनाता है। तथा उसक े पांच घेरे बनाकर उतनाही घागा क े घेरे लेकर बीच र्ें कननक क े गोले से नचपकाकर वर - वधु क े गले र्ें िुल्हे क े छोटे भाई द्वारा पहनाया जाता है। इसे ही गोत गुथना कहते है। इसक े बाि िहेज (आंिन) नगराना चालू होता है। और सभी इष्टनर्ि, किंच पररवार, ररश्तेिारों द्वारा िक्तक्तनुसार सप्रेर् भेट िी जाती है। सप्रेर् भेंट पूरी होने क े बाि जवाई द्वारा नगनती करक े िुल्हे पक्ष को सौंप निया जाते है। आरनपर र्ें िुल्हन क े छोटे भाई द्वारा गोत छु डाया जाता है तथा इसक े बिले गाय, भैस, बकरी, अन्निान, और जो भी िे सकते है उसे कबुल करक े गोत छु डवाया जाता है। बाि र्ें डेरी पूजकर खाना पीना होता है। १८ ) िाल खेलना :नववाह क े िूसरे निन िुल्हा िुल्हन को र्ंडप र्ें लाकर सारीिासा (हारजीत) का खेल होता है, इसर्े गोटी क े रुप र्ें बाल िल्ली क े िाने का उपयोग नकया जाता है तथा िुल्हा िुल्हन एक िूसरे
  • 6. पोवार/पंवार समाज क े वववाह क े दस्तुर 6 को उना का पूरा कहते है उना याने नवषर् जोडी तथा पूरा याने सर् इस पर से हारजीत लगाई ली गई है। जाती है इसे वाल खेलना कहते है। संभवतः इस खेल की प्रेरणा निव - पावाती क े चौसर बाजी से १९) जोडी नहाना: बाल खेलना होने क े बाि हारजीत नकसी की भी हो, क्षर्ा कर निया जाता है तथा कोई िंड या सजा नहीं िी जाती और ५ जोनडयां (िुल्हे क े तरि की िो और िुल्हन क े तरि की िो और िुलहा िुल्हन) ऐसी ५ जोडी नर्लाकर यह काया होता है। इसर्ें बहने और जीजाओं का इस्तेर्ाल नकया जाता है। िुल्हा िुल्हन क े साथ नहाना होता है तथा इस वक्त पानी का क ु रला एक िूसरे पर डालकर खूब पानी खचा करक े र्ौजर्स्ती होती है। अपने अपने हसने वाली र्नहलाओं पर पानी डालकर र्ौज करते है। र्ीट्टी की करई और धागे से चौरस बनाकर उसर्ें िुल्हा िुल्हन को नहलाया जाता है और आठों करई का पानी इकट्ठा करक े िुल्हे क े सार्ने िुल्हन को खडी करक े िोनों क े हातों र्ें हात रखकर ओंजल बनाई जाती है तथा परडे को निरक े उपर पकडकर वह करस का पानी डाला जाता है। उसक े बाि िुल्हन को परडे र्ें नबछाकर उपर से चािर या िाल ढालकर िुल्हे ने िुल्हन को उठाकर िेवघर र्ें ले जाना होता है, तब आनजया िरवाजा रोककर िुल्हन को पकडकर नाचने को कहती है। और तब तक नहीं छोडती जबतक िुल्हे को पकडे हुए ही खुि को न नचाये। वैसे ही बाकी जोडी वाले भी अपने अपने पत्नीयों को उठाकर िेवघर र्ें ले जाते है। कपडे बिलने क े बाि र्ंडप की डेरी पूजन नकया जाता है। २०) ढेंडा: र्ंडप र्ें चारपाई (चारसुर्ी खटीया) डालकर चंिोलो की ओल नबछाकर उसपर िुल्हे िुल्हन को खडा करक े बाराती तथा र्नहला िुल्हा िुल्हन क े पांव पढते है। पुराने जर्ाने र्ें िुल्हा िुल्हन को कडे पर पुरुष लोग िोनों को लेकर नाचते थे। इस वक्त क े पांव पढाई क े पैसे बाजंिी तथा नाई को होते है। इसे लैंडा नाचना कहते है। २१) क ु सुंिा: पराने जर्ाने र्ें पानी भरने क े नलए पैसे लेने िेने का कोई ठराव नहीं होता या तथा कसंब र्ें जीतना पैसा होता था इसक े नलए पानी भरनेवाले आरती बनाकर पान सुपारी, रंग गुलाल, नबडी नसगरेट इतर गुलाब वगैरे सभी सार्ान खरीिकर पानिान सजाकर घरबाराती, बाराती सबको बुलाकर पानसुपारी िेती थी तथा पैसा वसुल करती थी। इसर्ें िोनों पक्ष आर्ने सार्ने बैठकर िुल्हे का नपता िुल्हन क े नपता से िुगना पैसा वसुलने की कोनिि की जाती थी। साथ र्ें बैठनेवाले हर आिर्ी अपने िक्तक्तनुसार पैसा डालते थे। इसी वक्त जवाई को रंग डालने क े उपलक्ष र्ें और ७ काटवार, भाट इनको भी पैसा िेकर खुि नकया जाता था। वही कोटवार िािी होने की खबर िासन को िेते थे। इसी को क ु सुंबा कहते है। २२) सपटनी -दुल्हन की विदाई : यह िस्तुर िािी भर र्ें बडा ही नाजुक र्ोड पर होता है तथा जीवन का िुः ख भरा क्षण होता है। िुल्हन का सारा पररवार और ररस्तेिार लडकी क े नबछु डने का िुः ख भरा गर् र्ें डुबे होते है। हर व्यक्तक्त का हृिय ििा से नहल जाता है और अपने आपही आखों र्ें आंसू आ जाते है। इस िस्तुर क े वक्त िेवघर र्ें िुल्हा िुल्हन को सजाया जाता है तथा नाई िोनों क े पाव नलखता है यानी पावों को रंग से सजाता है। िुल्हे का नजजा या भांजा िनोली क े ि ु ल को रंग र्ें डुबारक चेहरे की सजावट करता है और निर िुल्हा िुल्हन को र्ंडप लाकर खडे नकया जाता है और घरवाले, र्ेहर्ान र्नहलायें सभी िुल्हा िुल्हन क े पांव पढते है। इसक े बाि नांिड को गंगार र्ें पानी रखकर िुल्हा िुल्हन द्वारा घुर्ाकर बुझा निया जाता है। इसे नांिेड बुझाना कहते है। इसी बीच कावड क े साथ आये नर्क और चावल को सवाई से बढाकर वापस िुल्हे पक्ष को लौटाया जाता है और िुल्हा िुल्हन को आक्तखर कन्यािान या लडकी सोपना, सपटनी क े नलए िोनों पक्ष क े पास ले जाया जाता है।
  • 7. पोवार/पंवार समाज क े वववाह क े दस्तुर 7 २३) लडकी सोपना ( कन्यादान ) : नांिेड बुझाने क े बाि लडकी क े नपता द्वारा िुल्हन को िुल्हे क े नपताजी को सौप निया जाता है तथा िुल्हन की सारी नजंिगी रक्षा करने की नजम्मेिारी िुल्हेपर और उसक े पररवार पर सौंपी जाती है। इसे ही कन्यािान या लडकी सोपना कहते है। इसक े नलए िुल्हा िुल्हन िोनो पक्ष क े नपता, चाचा या बडे भाई र्ंडप क े बाहर नबछायत पर आर्ने सार्ने बैठते है। पहले िुल्हन पक्ष क े पास िुल्हा िुल्हन गोि र्ें नबठाते है तथा िोनो सर्धी एक िूसरे को नर्ठाई, गुढ क्तखलाते है और िोनों सर्धी एकिूसरे को सर्धन का नार् पूछकर र्जाक करते है। उसी प्रकार बाि र्ें यह िस्तुर िुल्हा पक्ष क े और से भी नकया जाता है। इस िस्तुर क े बाि िुल्हा िुल्हन वापस र्ंडप र्ें नहीं जा सकते। इसी सर्य क े बीच बारात की वापस जाने की पूणा तैयारी कर ली जाती है, खाचर बैल, गुडुर सजाना हो जाता है तथा गुड्डुर र्ंिीर क े पास जाकर खडी कर िी जाती है। कन्यािान का िस्तुर होते ही िुल्हा िुल्हन को जीजा क े कडे पर नबठाकर (बालनववाह सर्य) र्ंिी तक लाया जाता है, उस वक्त भी चंिोलो की ओळ का र्ंिीर नुर्ा सीन बनाकर बीच र्ें िुल्हा िुल्हन को रखा जाता है, इस प्रकार बाजेगाजे और बारूि िटाक े क े आवाज र्ें धूर्धार् से हनुर्ानजी क े र्ंिीर पर लाया जाता है। हनुर्ानजी की पूजा करने क े बाि गुडुर क े पास िुल्हा िुल्हन को लाया जाता है, तथा िुल्हन क े तरि की वरुर्ार् (सवानसनी) गुडुर की धुर पकडती है। इसी वक्त धुर छु डाने का कार् आरती पकडनेवाली क े नपता या भाई या अन्य ररश्तेिारो द्वारा पैसे चढाकर होता है। इसक े बाि िुल्हा - िुल्हन को गुडुर र्ें नबठाकर साथ र्ें करोली भी बैठती है और नर्ठी िरबत नपलाकर आखरी नबिाई की जाती है। िोनों ओर क े सर्धी तथा र्ेहर्ान, बराती, एकिूसरे से रार्रार् लेकर बारात प्रस्थान होती है। रास्ते र्ें हरगांव र्ें बाजा नगाडे तथा बारुि िटाक े का आवाज होता है तथा सभी खाचरे छकडे एक पीछे एक कतार र्ें आरार् से चलते है और आक्तखर अपने गांव क े हनुर्ान र्ंिीर पर आकर बारात खडी हो जाती है। निर बाजेवालों को घर आरती क े नलए भेजा जाता है और घर से आरती सजाकर सभी र्ेहर्ान और र्नहलाये ग्रार्वासी सब नर्लकर िुल्हा िुल्हन क े स्वागत क े नलए र्ंिीर क े पास इकट्ठा हो जाते है। आरती निर से गुडुर क े धुर पर रखी जाती है तथा इस वक्त िुल्हे का नपता आरती र्ें पैसे डालकर धुर छु डाते है। इस वक्त आयी हुई लगभग सभी र्नहलाओं से धुर धराई जाती है, तथा िुल्हे क े नपता सभी को यथािक्ती पैसे िेकर धुर छु डाई जाती है। इसी प्रकार िुल्हन तथा सवानसनी (करौली) को िरबत पानी नपलाकर चंिोलो की ओळ नबछाकर उसपर हात पकडकर (स्वागत स्वरूप) उतारा जाता है और हनुर्ानजी की पूजा अचाना कर, नाचते किते घर क े िाटक पर आकर खडे होते है। २४) फाटक पर दुल्हा - दुल्हन का स्वागत : िाटक पर िो पनीहारीन नसर पर पानी का गुंड लेकर खडी रहती है, उनक े गुंड र्ें िुल्हा िुल्हन पैसे डालकर पांच बार पानी का करला लेते है। तब नढर्र लोग भी अपनी जाल आडी करक े िुल्हा िहन को बक्षीस र्ांगते है, उन्ें भी यथािक्तक्त पैसा िेकर जाल से र्ुक्त होते है। निर िाटक पर पाट रखकर घर की किंब पररवार की सार आजे सास, जेठानी, काक े सास सभी िुल्हा िुल्हन क े पांव धोते हे इस वक्त िल्हन जब तक कछ उपहार िेने का वािा नहीं होता तब तक आगे पांव नहीं बढाती। इसर्ें गहने, पैसे िेकर िुल्हन का स्वागत नकया जाता है। लेखक: भोजलालभाऊ पारधी, नागपुर ******************************************