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प्रकरण- ओस
कक्षा –आठव ीं
पुस्तक :-दूवाा भाग -३
• सोहन लाल द्वववेदी
• जन्म 04 मार्ा 1906
• ननधन 29 फ़रवरी 1988
• जन्म स्थान ग्राम : बिन्दकी, फ़तेहपुर,
• द्वववेदी ज हहन्दी के राष्ट्रीय कवव के रूप में प्रनतष्ष्ट्ठत हुए। ऊजाा
और र्ेतना से भरपूर रर्नाओीं के इस रर्नयता को राष्ट्रकवव की
उपाधध से अलींकृ त ककया गया। महात्मा गाींध के दर्ान से प्रभाववत,
द्वववेदी ज ने िालोपयोग रर्नाएँ भ ललख ीं। 1969 में भारत सरकार
ने आपको पद्मश्र उपाधध प्रदान कर सम्माननत ककया था।
कवव पररर्य
• हरी घास पर बिखेर
दी हैं
ये किसने मोती िी
लड़ियााँ?
िौन रात में गाँथ
गया है
ये उज्‍ज्‍वल हीरों िी
िड़ियााँ?
ओस
जाड़े के मौसम में सुिह
सुिह ओस की िूँदें ऐसे
लग रही हैं जैसे ककस
ने हरी-हरी घास पर
मोत की लड़ड़याँ बिखेर
दी है। या ऐसा लगता
है जैसे ककस ने
र्मकते हीरों की कड़
िना दी हो।
• लुटा गया है िौन
जौहरी
अपने घर िा भरा
खजा ा़ना?
पत्तों पर, फलों पर,
पगपग
बिखरे हुए रतन हैं
नाना।
• पत्तों, फलों और
िदम-िदम पर इस
तरह िे नाना प्रिार
िे रतन बिखरे हुए हैं
जैसे किसी जौहरी ने
अपना परा खजाना
लुटा ददया हो।
ओस
• जुगन से जगमग
जगमग ये
िौन चमिते हैं यों
चमचम?
नभ िे नन्हें तारों से ये
िौन दमिते हैं यों
दमदम?
• जि सरज िी किरणें
ओस िी िाँदों पर प़िती
हैं तो वे असंख्य
जुगनुओं िी भांतत
चमिते हैं। आप उनमें
आसमान िे तारों िी
दमि भी देख सिते हैं।
ओस
ओस
•
िड़े सवेरे मना रहा है
कौन खुर् में यह
दीवाली?
वन उपवन में जला दी है
ककसने दीपावली ननराली?
ओस िवव िो ऐसा लगता
जैसे िाग िगीचों में
िोई सैंि़िों दीप
जलािर सिेरे सिेरे
दीवाली मना रहा है।
• ज होता, इन ओस
कणों को
अींजली में भर घर
ले आऊँ ?
इनकी र्ोभा ननरख
ननरख कर
इन पर कववता
एक िनाऊँ ।
• आखखर में िवव ओस िी
नैसर्गिि सुंदरता से इतना
अभभभत हो गया है कि
उसिी इक्षा हो रही है कि
उन्हें अपनी अंजभल में भर
िर घर ले जाए। घर में
वह उनिी शोभा िो
िारीिी से देखिर उनपर
एि सुंदर-सी िववता
भलखना चाहता है।
ओस
भावाथा
• जाड़े के मौसम में सुिह सुिह ओस की िूँदें ऐसे लग रही हैं जैसे ककस ने
हरी-हरी घास पर मोत की लड़ड़याँ बिखेर दी है। या ऐसा लगता है जैसे
ककस ने र्मकते हीरों की कड़ िना दी हो।
• जि सूरज की ककरणें ओस की िूँदों पर पड़त हैं तो वे असींख्य जुगनुओीं की
भाींनत र्मकते हैं। आप उनमें आसमान के तारों की दमक भ देख सकते हैं।
• पत्तों, फू लों और कदम-कदम पर इस तरह के नाना प्रकार के रतन बिखरे
हुए हैं जैसे ककस जौहरी ने अपना पूरा खजाना लुटा हदया हो।
• कवव को ऐसा लगता जैसे िाग िग र्ों में कोई सैंकड़ों दीप जलाकर सिेरे
सिेरे हदवाली मना रहा है।
• आखखर में कवव ओस की नैसधगाक सुींदरता से इतना अलभभूत हो गया है कक
उसकी इक्षा हो रही है कक उन्हें अपन अींजलल में भर कर घर ले जाए। घर
में वह उनकी र्ोभा को िारीकी से देखकर उनपर एक सुींदर स कववता
ललखना र्ाहता है।
• गंथना-वपरोना
• जुगन-रात में उ़िनेवाली एि िी़िा जजसिी दम
से रौशनी तनिलती है
• जौहरी- रत्नों िो जााँच परखने वाला
• खजाना –रुपया ,सोना-चांदी रखने िा स्थान
• अंजभल-दोनों हथेभलयों िो भमलाने से
िनानेवाली मुद्रा
• तनराली –सुन्दर ,मनोहर
र्ब्दाथा
प्रश्नोत्तर
1. कववता में रतन ककसे कहा गया है और वे कहाँ-कहाँ बिखरे हुए
हैं?
उत्तर: कववता में ओस को रतन कहा गया है। यह हरी घास, पत्तों
और फू लों पर बिखरे हुए हैं।
2. ओस कणों को देखकर कवव का मन क्या करना र्ाहता है?
उत्तर: ओस कणों को देखकर कवव का मन कर रहा है कक वह अींजलल
भर कर इन्हें ले आए और इनको देख-देख कर एक कववता
ललखे।
3. पता करो कक सुिह के समय खुले स्थानों पर ओस की िूँदें
कै से िन जात हैं? इसे अपने लर्क्षक को िताओ।
उत्तर: हदन में सूरज की रोर्न से पान गमा होकर भाप िनकर ऊपर
की ओर उठता है। रात में यह ठींडा होकर धगरता है और
िूँदों के रूप में हरे घास, पत्ते और फू लों पर रुक जात है। यहाँ
यह जल्दी से सूखत नहीीं है। इसललए यह हमें धूप ननकलने
से पहले हदखाई देत है और धूप ननकलते ही कफर से भाप
िनकर उड़ जात है।
प्रश्नोत्तर
4. क्या ओस, कोहरा और वर्ाा में कोई सींिींध है? इसके िनने और
होने के कारणों का पता लगाओ और उसे अपने ढींग से
ललखकर लर्क्षक को हदखाओ।
उत्तर: ओस, कोहरा व वर्ाा त नों ही तेज़ गमी में पान से भाप िनकर
उड़ जाते हैं। ऊपर ठींडक लमलने से ये जम जाते हैं, जो हमें िादलों के
रूप में हदखते हैं। ओस िहुत ही हल्की सदी में छोटी-छोटी िूदों के रूप
में धगरत है। कोहरा िहुत ठींड में होता है। कोहरे में पान नहीीं धगरता
परन्तु ठींड़ भाप न र्े की तरफ़ आ जात है। वर्ाा ककस िादल के
थोड़ा गरम र् ज़ से टकराने से पान के रूप में धगरता है।
5. सूरज ननकलने के कु छ समय िाद ओस कहाँ र्ली जात है?
इसका उत्तर तुम अपने लमत्रों, िड़ों, पुस्तकों और इींटरनेट की
सहायता से प्राप्त करो और लर्क्षक को िताओ।
उत्तर: सूरज ननकलने के िाद पान कफर गमा होकर भाप िनकर उड़
जाता है, तो ओस गायि हो जात है।
प्रश्नोत्तर
•
पसींद की
कववता
नततली रान
नततली रान , नततली रान
दूर देर् से आई हो।
इतने सुींदर, रींग-बिरींगे
पींख कहाँ से लाई हो।
फू ल तुम्हें हैं अच्छे लगते।
आसमान में उड़ना है भाता।
जैसे तुम कोई र्हज़ादी हो
जो परीलोक से आई हो।
• १. कववता में रत्न ककसे कहा गया है ?
• २. सूरज ननकलने के िाद ओस कहाँ र्ली
जात है?
• ३. तुम्हारे प्रदेर् में कौन-कौन से मौसम आते
है ?
• ४. कववता में मोत ककसे कहा गया है?
• ५. ‘िस’ र्ब्द का प्रयोग कई तरह से ककया
जा सकता है। तुम ‘िस’ र्ब्द का प्रयोग
करते हुए अपने मन से कु छ वाक्य िनाओ।
गृह काया
प्रस्तुनत
हदलीप कु मार िाडत्या
प .ज .टी(हहींदी)
जवाहर नवोदय ववद्यालय
पालझार,िौद्ध ,ओड़डर्ा

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ओस(कविता)

  • 1. प्रकरण- ओस कक्षा –आठव ीं पुस्तक :-दूवाा भाग -३
  • 2. • सोहन लाल द्वववेदी • जन्म 04 मार्ा 1906 • ननधन 29 फ़रवरी 1988 • जन्म स्थान ग्राम : बिन्दकी, फ़तेहपुर, • द्वववेदी ज हहन्दी के राष्ट्रीय कवव के रूप में प्रनतष्ष्ट्ठत हुए। ऊजाा और र्ेतना से भरपूर रर्नाओीं के इस रर्नयता को राष्ट्रकवव की उपाधध से अलींकृ त ककया गया। महात्मा गाींध के दर्ान से प्रभाववत, द्वववेदी ज ने िालोपयोग रर्नाएँ भ ललख ीं। 1969 में भारत सरकार ने आपको पद्मश्र उपाधध प्रदान कर सम्माननत ककया था। कवव पररर्य
  • 3. • हरी घास पर बिखेर दी हैं ये किसने मोती िी लड़ियााँ? िौन रात में गाँथ गया है ये उज्‍ज्‍वल हीरों िी िड़ियााँ? ओस जाड़े के मौसम में सुिह सुिह ओस की िूँदें ऐसे लग रही हैं जैसे ककस ने हरी-हरी घास पर मोत की लड़ड़याँ बिखेर दी है। या ऐसा लगता है जैसे ककस ने र्मकते हीरों की कड़ िना दी हो।
  • 4. • लुटा गया है िौन जौहरी अपने घर िा भरा खजा ा़ना? पत्तों पर, फलों पर, पगपग बिखरे हुए रतन हैं नाना। • पत्तों, फलों और िदम-िदम पर इस तरह िे नाना प्रिार िे रतन बिखरे हुए हैं जैसे किसी जौहरी ने अपना परा खजाना लुटा ददया हो। ओस
  • 5. • जुगन से जगमग जगमग ये िौन चमिते हैं यों चमचम? नभ िे नन्हें तारों से ये िौन दमिते हैं यों दमदम? • जि सरज िी किरणें ओस िी िाँदों पर प़िती हैं तो वे असंख्य जुगनुओं िी भांतत चमिते हैं। आप उनमें आसमान िे तारों िी दमि भी देख सिते हैं। ओस
  • 6. ओस • िड़े सवेरे मना रहा है कौन खुर् में यह दीवाली? वन उपवन में जला दी है ककसने दीपावली ननराली? ओस िवव िो ऐसा लगता जैसे िाग िगीचों में िोई सैंि़िों दीप जलािर सिेरे सिेरे दीवाली मना रहा है।
  • 7. • ज होता, इन ओस कणों को अींजली में भर घर ले आऊँ ? इनकी र्ोभा ननरख ननरख कर इन पर कववता एक िनाऊँ । • आखखर में िवव ओस िी नैसर्गिि सुंदरता से इतना अभभभत हो गया है कि उसिी इक्षा हो रही है कि उन्हें अपनी अंजभल में भर िर घर ले जाए। घर में वह उनिी शोभा िो िारीिी से देखिर उनपर एि सुंदर-सी िववता भलखना चाहता है। ओस
  • 8. भावाथा • जाड़े के मौसम में सुिह सुिह ओस की िूँदें ऐसे लग रही हैं जैसे ककस ने हरी-हरी घास पर मोत की लड़ड़याँ बिखेर दी है। या ऐसा लगता है जैसे ककस ने र्मकते हीरों की कड़ िना दी हो। • जि सूरज की ककरणें ओस की िूँदों पर पड़त हैं तो वे असींख्य जुगनुओीं की भाींनत र्मकते हैं। आप उनमें आसमान के तारों की दमक भ देख सकते हैं। • पत्तों, फू लों और कदम-कदम पर इस तरह के नाना प्रकार के रतन बिखरे हुए हैं जैसे ककस जौहरी ने अपना पूरा खजाना लुटा हदया हो। • कवव को ऐसा लगता जैसे िाग िग र्ों में कोई सैंकड़ों दीप जलाकर सिेरे सिेरे हदवाली मना रहा है। • आखखर में कवव ओस की नैसधगाक सुींदरता से इतना अलभभूत हो गया है कक उसकी इक्षा हो रही है कक उन्हें अपन अींजलल में भर कर घर ले जाए। घर में वह उनकी र्ोभा को िारीकी से देखकर उनपर एक सुींदर स कववता ललखना र्ाहता है।
  • 9. • गंथना-वपरोना • जुगन-रात में उ़िनेवाली एि िी़िा जजसिी दम से रौशनी तनिलती है • जौहरी- रत्नों िो जााँच परखने वाला • खजाना –रुपया ,सोना-चांदी रखने िा स्थान • अंजभल-दोनों हथेभलयों िो भमलाने से िनानेवाली मुद्रा • तनराली –सुन्दर ,मनोहर र्ब्दाथा
  • 10. प्रश्नोत्तर 1. कववता में रतन ककसे कहा गया है और वे कहाँ-कहाँ बिखरे हुए हैं? उत्तर: कववता में ओस को रतन कहा गया है। यह हरी घास, पत्तों और फू लों पर बिखरे हुए हैं। 2. ओस कणों को देखकर कवव का मन क्या करना र्ाहता है? उत्तर: ओस कणों को देखकर कवव का मन कर रहा है कक वह अींजलल भर कर इन्हें ले आए और इनको देख-देख कर एक कववता ललखे। 3. पता करो कक सुिह के समय खुले स्थानों पर ओस की िूँदें कै से िन जात हैं? इसे अपने लर्क्षक को िताओ। उत्तर: हदन में सूरज की रोर्न से पान गमा होकर भाप िनकर ऊपर की ओर उठता है। रात में यह ठींडा होकर धगरता है और िूँदों के रूप में हरे घास, पत्ते और फू लों पर रुक जात है। यहाँ यह जल्दी से सूखत नहीीं है। इसललए यह हमें धूप ननकलने से पहले हदखाई देत है और धूप ननकलते ही कफर से भाप िनकर उड़ जात है। प्रश्नोत्तर
  • 11. 4. क्या ओस, कोहरा और वर्ाा में कोई सींिींध है? इसके िनने और होने के कारणों का पता लगाओ और उसे अपने ढींग से ललखकर लर्क्षक को हदखाओ। उत्तर: ओस, कोहरा व वर्ाा त नों ही तेज़ गमी में पान से भाप िनकर उड़ जाते हैं। ऊपर ठींडक लमलने से ये जम जाते हैं, जो हमें िादलों के रूप में हदखते हैं। ओस िहुत ही हल्की सदी में छोटी-छोटी िूदों के रूप में धगरत है। कोहरा िहुत ठींड में होता है। कोहरे में पान नहीीं धगरता परन्तु ठींड़ भाप न र्े की तरफ़ आ जात है। वर्ाा ककस िादल के थोड़ा गरम र् ज़ से टकराने से पान के रूप में धगरता है। 5. सूरज ननकलने के कु छ समय िाद ओस कहाँ र्ली जात है? इसका उत्तर तुम अपने लमत्रों, िड़ों, पुस्तकों और इींटरनेट की सहायता से प्राप्त करो और लर्क्षक को िताओ। उत्तर: सूरज ननकलने के िाद पान कफर गमा होकर भाप िनकर उड़ जाता है, तो ओस गायि हो जात है। प्रश्नोत्तर
  • 12. • पसींद की कववता नततली रान नततली रान , नततली रान दूर देर् से आई हो। इतने सुींदर, रींग-बिरींगे पींख कहाँ से लाई हो। फू ल तुम्हें हैं अच्छे लगते। आसमान में उड़ना है भाता। जैसे तुम कोई र्हज़ादी हो जो परीलोक से आई हो।
  • 13. • १. कववता में रत्न ककसे कहा गया है ? • २. सूरज ननकलने के िाद ओस कहाँ र्ली जात है? • ३. तुम्हारे प्रदेर् में कौन-कौन से मौसम आते है ? • ४. कववता में मोत ककसे कहा गया है? • ५. ‘िस’ र्ब्द का प्रयोग कई तरह से ककया जा सकता है। तुम ‘िस’ र्ब्द का प्रयोग करते हुए अपने मन से कु छ वाक्य िनाओ। गृह काया
  • 14. प्रस्तुनत हदलीप कु मार िाडत्या प .ज .टी(हहींदी) जवाहर नवोदय ववद्यालय पालझार,िौद्ध ,ओड़डर्ा