1. 1 ओरख राजा भोज की, लेखक - गोवर्धन बिसेन
ओरख राजा भोज की
लेखक - गोवर्धन बिसेन
भारत मा असा कम लोक रहेत, जे राजा
भोज ला ओरखत नही. राजा भोज ला अज
हजार साल भया रहेती, पर ओको नाव अज बी
अजर अमर से. येनं महान राजा की चचाा हर घर
मा होसे. पोवार समाज येला आपलो आराध्य
मानसे. या चचाा, वय प्रतापी या मोठो राजा होता
येनं कारण लका नही होय तं, वय खुद एक बहुत
मोठा ववद्वान अना कवव होन को कारण लका
चचाा होसे. खुद कवव अना ववद्वान रहे लका वय
उनको राज मा का कवव अना ववद्वान इनको
मोठो आदर करत होता. वाग्देवी माय को
क
ृ पालका कई ववषय पर ८४ ग्रंथ उननं वलखी
होतीन. उनको राजमा जवरपास १४०० ववद्वान
राजाश्रयमा रव्हत होता. राज्यसभा मा ५००
ववद्वान रोबोविक्स तकनीक अना जहाज वनवमातीको काम करत होता. स्थापत्यशास्त्र मा बी राजा
भोज की बराबरी अजवरी कोनीनं नही करीन. उनको कालमाच बेतवा नदीपर वसंचाई साती
बहुत मोठो माती को धरण बनेव. अकरावो सदीमाच राजाभोज को हात लका उज्जयीनी को
महाकालेश्वर मंवदर, क
े दारनाथ को मंवदर, रामेश्वर को मंवदर, सोमनाथ को मंवदर अना मुंडीर
को मंवदर को जीणोध्दार भयासेती. आब को भोपाल बी राजा भोजनंच बसायी सेस. यहांच एक
मोठो तरा बी बनाईस. जवरच भोजपूर को वशवमंवदर आपलो अजी को स्मृती बनायीतीस. तब
तरा को पानी येनं मंवदर वरी रव्हत होतो. येनं तरा को पानी पववत्र अना वबमारी वठक करने
वालो होतो. राजा भोज को ववशेष वणान करन को कारण की आपलो पोवार वंशमा असा
प्रकारका महान प्रतापी, सावहत्यत्यक अना धावमाक सम्राि राजा भया होता वजनको अकरावी
सदीमा पुरो भारतपर भक्तीभावलका माय वाग्देवीको क
ृ पामा इसवी सन १०५५ वरी राजकाभार
चलेय.
राजा भोज को बारा मा "कहां राजा भोज, कहााँ गंगु तेली" या कहावत तं भारत को
सपाई िुरूपोिू इनन आयकी रहेन, जेकोपर वहंदी वसवलमा का गाना बी बन्या सेती " येनं
कहावत मा "राजा भोज" अना "गंगु तेली" को उल्लेख आयी से. यहान राजा भोज तं आय धार
देश को परमार वंशीय राजा - राजा भोज परमार ला "राजा भोज" अना चालुक्य नरेश तैलप ला
"गंगु तेली" कही गयी से, चालुक्य राजा तैलप ला ....या कहावत काहे पड़ी, येको साती तुमला
इवतहास का पाना पलिनो पड़े.
2. 2 ओरख राजा भोज की, लेखक - गोवर्धन बिसेन
राजा भोज को जनम परमार वंश मा भयी से. संस्क
ृ त मा परमार शब्द को अथा से :-
"परान मारयतीवत परमारः " जेको अथा होसे, शत्रु इनला मारने वालो. येनच परमार वंश मा
ववक्रमावदत्य को जनम भयी से, वजननं ववश्वववजय करीतीन."
सीयक-दुसरो जेव वक महाराज भोज को दादाजी (स्यायनोजी) होता, उनको इवतहास
लकाच आमी घिना को वणान करं सेजन, जेको लका तुमला इवतहास समझनला सोपो होये.
परमार वंश मा सीयक दुसरो नाव को एक प्रतापी राजा भयी से, इननं आपलो समय मा
सबदून ताकदवालो सुमार राष्ट्र क
ू ि ला बड़ो बेकार पररत्यस्थती लका हाराईस. सीयक-दुसरो ला
एक िुरा भेिेव, वू िुरा कोनी सैवनक को िुरा होतो, जेव बाप को मृत्यू को बाद मा अनाथ भय
गयेव होतो, सीयक-दुसरो, ओनं िुरा ला राज महल मा आनं से, वू िुरा येतरो हुशार वनकलसे
की, ओनं सीयक-दुसरो ला येतरो अवधक प्रभाववत कर देईस, की सीयक-दुसरो नं आपलो खुद
को िुरा वसंधुराज ला राजा घोवषत न करता, ओनं अनाथ िुरा ला राजा घोवषत कर देईस. ओनंच
सम्राि को नाव पुढं चलकर पृथ्वीवल्लभ - वाक्यपती - मुंज नाव लका प्रख्यात होसे.
पृथ्वीवल्लभ को अथा से, सप्पाई पृथ्वी को राजा, वाक्यपवत को अथा से, आपलो बचन (वाक्य)
वाया नही जाने देने वालो.
मुंज मोठो क
ु ल को नोहोतो, पर ओनं ववजय को तुफान असो मचाय देईस का, कनाािक
पासून क
े रल वरी को प्रदेश ओनं एक संगमा जीत लेईस. छे दी को कलचुरी नरेश राजदेव
दुसरो ला हारायकर ओको राजधानी ला पूरो लुि लेईस. मेवाड़ पर चढ़ाई करस्यान आहाड़ ला
जीतीस अना वचत्तौड़गढ़ को भाग बी मालवा मा वमलाय देईस. येनं ६ बार चालुक्य नरेश तैलप
ला हारायीस, पर सातवो बेरा मुंज ला क
ै दी कर लेईन, अना बाद मा मोठी यातना देयकर राजा
मुंजला मार िाकीन.
राजा मुंज को ज्योवतष अना पुरोवहत नं मुंज ला सांगी होतीन की तुमी येनं बेरा गोदावरी
नदी पार नोको करो, तुमरो नाश वनवित से. मुंज काही मानेव नही, पुरोवहत नं आत्महत्या कर
लेईस, तरी बी मुंज नही रुक
े व.
तैलप नं मुंज ला क
ै द जरूर करीस, पर राजसी व्यवस्था को संग मा आपलो महल माच
क
ै द करीस. यहान तैलप को बवहन संग मुंज ला वपरम भय गयेव. धार का सैवनक मुंज ला
सोड़ावन साती महल मा सुरंग बी खोद लेईन, पर मुंज राजक
ु मारी को प्रेम मा असो फस गयेव
होतो, की वू सुरंग मा लका बाहेर आयेवच नही, उल्टो आपलो सैवनक इनकी सुरंग दरवाजा
वाली बात आपलो प्रेवमका ला सांग देईस. मंग का भयेव? तैलप नं मुंज ला वभखारी वानी
अवस्था मा पोहचायकर रस्ता पर भीख मांगन लगाईस, ओको बाद ओला ओनं तड़पाय
तड़पायकर मार देईस.
येको बाद वसंधुराज को िुरा अना मुंज को पुतन्या "महाराज भोज परमार" नं प्रवतज्ञा
करीस, की "मी तैलप ला तसोच मारून, जसो ओनं मोरो काका मुंज ला मारीतीस"
3. 3 ओरख राजा भोज की, लेखक - गोवर्धन बिसेन
अना कसेत, भोज नं आपली प्रवतज्ञा पूणा बी करीस, भोज नं अशुभ मुहूता को बेरा
गोदावरी नदी पार करीस, अना जसो ओको काका मुंज ला तड़पाय तडपायकर मारीस तसोच
भोज नं बी तैलप ला तड़पाय तड़पायकर मारीस.
राजा भोज अना वाक्यपवत मुंज ला धरकर एक कथा बहुत प्रचवलत से ....
कहेव जासे की जब भोज आपलो साववत्री माय को गभा मा होतो, तब ओको अजी
वसंधुराज ला राजसत्ता को लड़ाई मा मार देईतीन, इ.स. ९८० को बसंत पंचमी को बेरा बालक
भोज को जनम भयेव. अजी को छत्रछाया को वबना आपलो माय को वशक्षण लका वु िुरा
नहानपन माच आपलो तेज को प्रकाश च्यारही बाजुला पसरावन लगेव. एक वदवस जब बालक
भोज नं हत्ती पर सवार आपलो राज्य को मोठो सेनापवत ला जमीन पर रयकर हाराय देईस तं,
भोज को काका मुंज ला बड़ी वचंता भयी, तुरंत ज्योवतवष ला बुलायकर उनला आदेश देईस,
"भोज की जन्मपत्री देखस्यान सांगो वक कहीं यव िुरा मोठो होयकर मोला अना मोरो िुराईन
साती अडचन तं नही करन को?"
जब की नहान भोज की अद् भुत सुंदरता अना भोलोपन को कारण लका मुंज बी ओको
खूब लाड़ करत होतो, पर राजसत्ता असी चीज से का, जेको लोभ लका महाभारत होय जासे --
ज्योवतषी नं भोज की जनम क
ुं डली देखकर सांगीस, "जेव िुरा तुमरो आंगन मा खेल रही
से, येव साधारण पुरुष नाहाय, येको भाग्य तं ब्रह्माजी बी नही सांग सक, तं मी कसो सांग सक
ु सू.
हं येतरो जरूर सांगुसू का, येव येनं देश को संगमाच दवक्षण मा का पुरा देश जीत लेये, आयाावत
का सप्पाई राजा येको अधीपत्य स्वीकार कर लेयेती. अना येव पचपन साल, सात मवहना, तीन
वदवस वरी बंगाल सवहत पुरो दवक्षण मा राज करे."
वाक्यपवत मुंज नं जब असो आयकीस तं ओको पाय को खाल्या की जमीन सरक गयी,
ओको चेहरा उतर गयेव. ओला रातभर झोप नही लगी. अना सोच मा पड़ेव, येव मालवा पर
राज करे, तं मोरा िुरा का करेती ?? ओनं दुसरो वदवस आपलो सैवनक वत्सराज ला आज्ञा देईस
- "येला गुरुक
ु ल मा लका भुवनेश्वरी को वनजान बन मा वलजायस्यानी मार िाको. अना ओकी
किी मुंडकी मोरो सामने पेश करो."
वत्सराज नं राजा मुंज ला बहुत समझाय बुझायकन असो करन साती रोकीस, पर राजा
काही मानेव नही. अना वत्सराज पर नाराज भय गयेव. आता राजा की आज्ञा पालन करेव वबगर
काही चारा नाहाय असो सोचकर काही सैवनक ला धरकर ज्याहान भोज वशकत होतो ओनं
गुरुक
ु ल मा गयेव अना नहान भोज ला ओको काका नं बुलायीस असो सांगस्यानी भुवनेश्वरी को
भयावन बन मा नहान सो भोज ला वलजायकर राजा मुंज की आज्ञा को बारा मा सांगीस.
4. 4 ओरख राजा भोज की, लेखक - गोवर्धन बिसेन
बालक भोज नं बड़ो वहंमत लका काका मुंज की आज्ञा आयकीस अना वत्सराज ला
कहीस, "तुमी वनडर होयकर राजा को आज्ञा को पालन करो. पर मी तुमला एक पत्र देसु. वु
तुमी मोरो काका राजा मुंज वरी पोहचाय देव."
सैवनक वत्सराज तयार भय गयेव. भोज नं बड़ को पाना तोड़स्यान ओको दोना बनाईस.
सुरी लका आपलो मांडी ला वचरकर खून लका दोना भरीस. गवत को दांडी लका बड़ को दुसरो
पाना पर एक श्लोक वलखीस अना वत्सराज को हात मा देयकर मरन साती तयार भय गयेव.
पत्र देखस्यान वत्सराज को वहरदा वपघल गयेव अना डोरा मा लका पानी वनकलन बसेव. ओनं
राजक
ु मार भोज ला माफी मांगीस अना मारन को वबचार सोड़कर भोज ला रथ पर बसायकन
आपलो घरं वलजायस्यान लुपाय देईस. बाकी सैवनक इनन बी ओला साथ देईन.
एक मुवताकार जवर लका भोज की हुबेहुब मुंडकी तयार करस्यान रात को इंधारो मा
राजा मुंज जवर आनस्यान ठे य देईन. सैवनक इनन कईन, "महाराज आमीनं बालक भोज ला
मार देया. पर मरन को बेरा ओनं तुमरो साती एक पत्र देईस" वाक्यपवत मुंज दू र लकाच मुंडकी
वनहारन बसेव. खुश होयकर वत्सराज ला खबर लेईस, "मरन को बेरा भोज नं अनखी काही
कहीस का?" वत्सराज नं चुपचाप भोज को वलखेव पत्र राजा को हात मा देईस. रानी नं वदवो
पेिायकर राजा जवर आनीस. वदवो को उजारो मा मुंज पत्र बाचन बसेव…..
पत्र मा श्लोक असो वलखेव होतो….
मान्धाता स महीपवत: क
ृ तयुगालंकार भूतो गत:
सेतुयेन महोदधौ ववरवचत: क्वासौ दशस्यांतक: |
अन्ये चावप युवधविर प्रभृवतवभ: याता वदवम् भूपते
नैक
े नावप समम् गता वसुमती नूनम् त्वया यास्यवत ||
अथाात - हे राजा, सतयुग को राजा मान्धाता भी चली गयेव, त्रेता युग मा, समुद्र पर पुल
बांधकर रावण ला मारने वालो राम बी नही रहेव, द्वापरयुग मा युवधविर बी स्वगा लोक चली
गयेव. पर धरती कोनी संग नही गयी, पर होय वसक से, की कलयुग मा, तुमी येनं धरती ला
संगमाच वलजाय लेवो.
येनं श्लोक ला बाचकर वाक्यपवत मुंज ला बहुत पिाताप होसे. "हाय! यव वमनं का कर
िाक
े व, वमनं येतरो होनहार बालक ला मारकर धरती अना राष्ट्र को संग येतरो मोठो अन्याय कर
देयेव , मोला आता जीतो रव्हन को काहीच अवधकार नाहाय." असो कयकर आपली खुद की
मुंडकी कािन ला मुंज नं तलवार उचलीस, तब सैवनक वत्सराज नं मुंज ला पिाताप भयेव देख
ओला रोककर कव्हन बसेव, "असो अनथा नोको करो महाराज, बालक भोज आब बी जीतो से !
आमीनं ओनं मवहमामयी बालक की मवहमा लका मोवहत होयकर ओला लुपाय देया होता."
5. 5 ओरख राजा भोज की, लेखक - गोवर्धन बिसेन
"ओला जल्दी मोरो डोरा को सामने धरकर आनो." मुंज भोज ला वमलन साती येतरो
तड़पत होतो का, जसो पानी वबना मसरी. जब सैवनक भोज ला धरकर आया, तं मुंज नं आपलो
पुतन्या ला कसकर गरो ला लगाय लेईस, अना ओनच बेरा घोषणा कर देईस, की भोजच मालवा
को पुढ़ चलस्यान राजा बने.
मुंज को मृत्यू को बाद बीस साल को उमर माच इ.स. १००० मा बालक भोज राज
वसंहासन पर बससे अना आपलो राजपाि सम्हाल लेसे. तब मालवाकी च्यारही वदशा
दुश्मनलका वघरी होती. दवक्षण पविममा चालुक्य, उत्तरमा तुक
ा अना राजपूत, पुवामा युवराज
कलचुरी असा दुश्मन होता. माय गडकालीकाको आशीवाादलक राजा भोज नं सबला हाराईस.
तपस्या अना साधनालका सरस्वती माताकी बी उनला ववशेष क
ृ पा होती. उनला चौसि
प्रकारकी वसध्दी प्राप्त होती. भोजशाला को वनमााण करीन अना वहान सरस्वती माता सारखीच
वाग्देवी माताकी मुती बनाईन.
अना यहा लका शुरुवात भयी भारत को एक असो राजा की, जेव वीरता, ज्ञान अना
ववज्ञान की नवीन सीमा रेसा तय करे, जहां वरी शायद मंग को हजार साल मा कोनी नही पहुंच
पाया रहेत.
इंजी. गोवर्धन बिसेन "गोक
ु ल"
गोंबिया (महाराष्ट्र), मो. ९४२२८३२९४१
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