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मालवा से आये वैनगंगा क्षेत्र में बसे पंवार/पोवार क्षत्रत्रयों का इत्रिहास
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मालवा से आये वैनगंगा क्षेत्र में बसे पंवार/पोवार क्षत्रत्रयों का इत्रिहास
मालवा से नगरधन होकर वैनगंगा क्षेत्र में बसे पंवारों का गौरवशाली लेककन संघर्षों से भरा इकिहास रहा
है। ग्यारहवी से िेरहवीं सदी िक मध्य भारि पर मालवा क
े पंवार राजाओं का शासन था लेककन मालवा
पर इनकी सत्ता खोने क
े बाद मध्यभारि में पंवारों का कोई और कवशेर्ष इकिहास नही कमलिा। यह
समय पंवारों का संघर्षष भरा समय था और वे समय समय पर अन्य भारिीय राजाओं का सहयोग करिे
रहे। मराठा काल और किकिश काल में कलखी ककिाबें, जनगणना दस्तावेज, कजला गैज़ेि और शासकीय
ररपोिटषस में विषमान में वैनगंगा क्षेत्र में बसे पोवारों का व्यापक इकिहास कमलिा है और इसमें कहा गया
है कक इनका आगमन स्थानीय राजाओं क
े मुगलों क
े कवरुद्ध संघर्षष हेिु सहयोग मांगने पर आगमन
हुआ। इन शासकों ने पंवारों की वीरिा को देखिे हुए इन क्षेत्रों में स्थायी रूप से बसने क
े कलए प्रेररि
ककया।
वैनगंगा क्षेत्र में पोवारों की बसाहि : Central Provinces' Census, १८७२, क
े अनुसार वैनगंगा क्षेत्र
क
े पोवार(पंवार) मुलि: मालवा क
े प्रमार(Pramars) है जो सवषप्रथम नगरधन, जो की कजला नागपुर क
े
रामिेक क
े पास है, आकर बसे थे। सन १८७२ की इस ररपोिष में कहा गया है की इन क्षेत्रों में पोवारों
का मालवा से आगमन इस जनगणना क
े लगभग सौ वर्षष पूवष हुआ है। इसका अथष यह है की १७७० क
े
आसपास वैनगंगा क्षेत्र में पोवार बस चुक
े थे। भािों की पोकथयों में मालवा राजपुिाना से परमार क्षकत्रयों
क
े नगरधन आकर, वैनगंगा क्षेत्र में कवस्ताररि होने का उल्लेख कमलिा है। नगरधन(नंकदवधषन), कवदभष
का सबसे पुराना ऐकिहाकसक नगर है और ग्यारहवीं शदी क
े अंि में भी इन क्षेत्रों पर मालवा क
े प्रमार
वंश का शासन था। ११०४ में मालवा नरेश उकदयाकदत्य क
े पुत्र लक्ष्मण देव ने नगरधन आकर कवदभष का
शासन संभाला था। नागपुर प्रशस्तस्त और सेंिरल प्रोकवएन्सेस गैज़ेि १८७० में इसका उल्लेख कमलिा है।
१८७२ की जनगणना ररपोिष में कलखा है की पोवारों क
े द्वारा नगरधन में ककले का कनमाषण ककया। चूूँकक
यह पहले से ही कवदभष क
े कवकभन्न राजवंशो की राजधानी रही है इसकलए उसी जगह पर पोवारों क
े द्वारा
नगरधन में ककले का कनमाषण ककया गया।
मराठा काल में भी नगरधन, महत्वपूणष सैकनक क
ें द्र था और सेना में पोवारों की भूकमका महत्वपूणष थी।
नगरधन और आसपास क
े क्षेत्रों में पोवारों ने अनेक बस्तस्तयां बसाई थी। भािो की पोकथयों में भी
नगरधन और नागपुर में िीन चार पीकियों क
े बसने की जानकारी कमलिी हैं। उज्जैन से आये श्री
कदगपालकसंह कबसेन अन्य पंवार सरदारों क
े साथ नगरधन आये थे। पोथी में ७१३ शब्द कलखा हैं और
सम्भविया यह १७१३ होगा जब उनका पररवार नगरधन आया होगा। उनक
े पुत्र श्री कसरीराज और
लक्ष्मणदेव कबसेन क
े नागपुर में बसने का उल्लेख पोथी में कदया हैं। इसी प्रकार पोवारों क
े अन्य क
ु लों
मालवा से आये वैनगंगा क्षेत्र में बसे पंवार/पोवार क्षत्रत्रयों का इत्रिहास
2
का मालवा राजपुिाना क
े कवकभन्न क्षेत्रों से नगरधन आकर वैनगंगा क्षेत्र की ओर कवस्तार का कववरण
हमारे भाि स्व. श्री बाबूलाल जी की पोथी में उल्लेख हैं। १८७२ की जनगणना ररपोिष क
े अनुसार
नगरधन से समय क
े साथ पंवार, वैनगंगा क
े पूवष में आम्बागि और चांदपुर की ओर कवस्ताररि हुए।
क
ु छ पोवारों ने किक पर मराठों क
े कवजय अकभयान में श्री कचमाजी भोसले का साथ कदया था। किक
अकभयान में पोवारों क
े सौयष और पराक्रम क
े कारण पुरस्कार स्वरूप उन्हें लांजी और बालाघाि कजलें
में वैनगंगा क
े पकिम में बहुि सी भूकम उन्हें प्रदान की गयी। कसवनी कजलें में पंवार सवषप्रथम सांगड़ी और
प्रिापगि में आये। इसक
े बाद उनका कवस्तार बालाघाि कजलें में किंगी की ओर हुआ। इस जनगणना
ररपोिष में उन्हें बहुि ही उद्यमीं जाकि और उन्नि क
ृ र्षक कहा गया है। इस जनगणना में भंडारा में
४५,४०४, कसवनी में ३०,३०५ और बालाघाि कजलें में १३,९०६ पोवारों की जनसूँख्या बिाई गयी है।
Imperial Gazetteer of India (1907) और Balaghat District Gazetteer (1907) में भी बालाघाि
कजले में पोवारों की जनसूँख्या और बसाहि का उल्लेख कमलिा है। किकिश भारि में क
ृ कर्ष क
े साथ गाूँवो
की शासन व्यवस्था में पोवारों की महत्वपूणष भूकमका थी। Thomson, "Report," pp. 134-34, pars.
63-68, and C. P. Gazetteer(1870), p. २३ में इस बाि का उल्लेख कमलिा है की मराठा अकधकारी
श्री लक्ष्मण नाइक ने सन १८२० में सिपुड़ा की घाकियों में सड़को का कवकास ककया और मालवा से
आये इन पोवारों को बसने में मदद की। १८६७ में बालाघाि कजले का गठन हुआ था और मराठा काल
में वैनगंगा क्षेत्र में प्रशासन, सुरक्षा और क
ृ कर्ष कायष का अच्छा अनुभव होने क
े कारण किकिश प्रशासन ने
पोवार समाज को नवकनकमषि बालाघाि कजले क
े स्थानीय प्रशासन में महत्वपूणष भूकमका प्रदान की।
Bloomfield, "Progress," p. 99, par. 56 में िकिश अकधकारी कनषल ब्लूमफील्ड ने इस बाि का
उल्लेख ककया है की पोवार सबसे कवश्वशनीय और सफल जािी है इसीकलये उन्होंने सुदू र क्षेत्रों में
बस्तस्तयों क
े कवकास क
े कलए पोवारों को प्रोत्साकहि ककया था। पोवारों को अनेक गावों की जमींदारी दी
गयी। बुलंद बख्त और मराठा काल वैनगंगा घािी क
े भंडारा कसवनी कजलों अनेक गावों की
जागीरदारी/जमींदारी पोवारों को दी गयी थी और उनक
े वंशजो को बालाघाि कजले की नवकनकमषि
बस्तस्तयों की जमींदारी दी गयी साथ ही उन बस्तस्तयों में अन्य पोवार पंवार पररवारों को बसने क
े कलए
प्रोत्साकहि ककया गया। बालाघाि कजले क
े िात्काकलक उपायुक्त कनषल ब्लूमफील्ड ने 1870 क
े
आसपास पंवार राजपूिों को बैहर क्षेत्र में बसने क
े कलए प्रेररि ककया और सवषप्रथम श्री लक्ष्मण पंवार
परसवाड़ा क्षेत्र में बसे. इसक बाद बैहर क्षेत्र में पंवारो को कई गाूँवो की पिेली/ मुक्कदमी/ जमींदारी
दी गयी जो क
ृ कर्ष प्रधान ग्राम थे। बैहर पंवारो की िीथषस्थली है और आसपास क
े बहुि से पंवारो ने बैहर
को अपना मूल कनवास बना कलया हैं। 25 जनवरी 1910 को कसहारपाठ बैहर, कजला-बालाघाि में श्री
गोपाल पिेल ने पंवार समाज की बैठक बुलाई थी जहां इस पहाड़ी पर समाज क
े द्वारा राममंकदर बनाने
मालवा से आये वैनगंगा क्षेत्र में बसे पंवार/पोवार क्षत्रत्रयों का इत्रिहास
3
का कनिय ककया गया और इस पूँवार संघ क
े नेिृत्व में 1913 में कसहारपाठ पहाड़ी, बैहर पर राममंकदर
का कनमाषण कायष पूणष हुआ।
वैनगंगा क्षेत्र में बसे पंवार(पोवार) समाज क
े क
ु ल(क
ु र) : आर वी रसेल ने अपनी ककिाब The Tribes
and Castes of the Central Provinces of India(1916) में नागपुर पंवार (वैनगंगा क्षेत्र क
े पोवार)
को पंवार राजपूि की एक शाखा माना है। उन्होंने वैनगंगा क्षेत्र में बसने वालों पंवारों क
े इकिहास,
संस्क
ृ कि, क
ु ल, भार्षा इत्याकद पर अपनी इस ककिाब में कवस्तृि कववरण कलखा है। मालवा राजपुिाना से
अठाहरवीं सदी क
े आरम्भ में आये छत्तीस क्षकत्रयों में से बालाघाि, भंडारा, कसवनी और गोंकदया कजलों में
िीस क
ु ल ही स्थायी रूप बसें और बाकी क
े छह क
ु ल संभविया युध्द क
े बाद वापस चले गए हों।
पोवारों में उनक
े क
ु लों का बहुि महत्व होिा है और इनक
े कववाह पोवारों क
े अपने क
ु लों अम्बुले, किरे,
कोल्हे, गौिम, चौहान, चौधरी, जैिवार, ठाक
ु र/ठाकरे, िेम्भरे, िुरकर/िुरुक, पिले, पररहार, पारधी,
पुण्ड/पुंडे, बघेले/बघेल, कबसेन, बोपचे, भगि, भैरम, एडे, भोयर, राणा, राहांगडाले, ररणायि, शरणागि,
सहारे, सोनवाने, हनवि/हनविे, हररनखेड़े और क्षीरसागर में ही होिे हैं।
इस ककिाब क
े पृष्ठ क्रमांक 340 पर कलखा है कक इस समय इस समाज की जनसंख्या 1,50,000/ क
े
लगभग रही होगी। पंवारों की कोई उपजाकि नही है लेककन छत्तीस अंि:कववाही क
ु ल है और ये अपने
इन क
ु लों क
े बाहर कववाह नही करिे। इसक
े अकिररक्त कई समाजजनों और संस्थाओं क
े लेख में इन
पंवारो क
े छत्तीस क
ु ल होने का उल्लेख करिे हैं। आज समाज क
े वररष्ठजनों क
े द्वारा वैनगंगा क्षेत्र क
े
पंवारों क
े छत्तीस क
ु ल होने की बाि करिे हैं। सकदयों से इनकी सभी पुरािन परंपराएं इनक
े अपने
क
ु लों पर कनभषर करिी हैं। क
ु ल को क
ु र भी कहा गया है। नागपुर पंवारों को पोवार भी कहा जािा है
और इनकी बोली को पोवारी या पंवारी कहिे है जो कसफ
ष वैनगंगा क्षेत्र क
े पोवारों की मािृभार्षा है।
पंवार(पोवार) समाज क
े ऐकिहाकसक नाम : शकदयों से हमारा समाज, पोवार और पंवार नाम से ही जाना
जािा है और इकिहास कलखने वाले भािों ने इन्हे मालवा क
े प्रमार भी कहा है। आज से १५० वर्षष पुराने
कजला गैज़ेि में इनक
े मालवा से आगमन और नगरधन - वैनगंगा क्षेत्र में बसाहि का उल्लेख है। इन्ही
गैज़ेि में और पुरािन ककिाब में इनक
े ३६ क्षकत्रय क
ु लों का संघ होना बिाया है। इन्ही ऐकिहाकसक
दस्तावेजों क
े आधार पर क
ु छ वादों में अदालिों ने हम वैनगंगा क्षेत्र क
े पोवारों क
े इकिहास का भी
उल्लेख ककया है। एक ऐसे ही वाद नाथूलाल साकलकराम वट रंगोबा नरबद में मध्यप्रदेश उच्च न्यायलय
(२६ अक्टू बर १९५१ ) ने वैनगंगा क्षेत्र क
े पंवारों क
े इिहास पर चचाष की। इसमें माननीय न्यायलय ने
इन्हे क्षकत्रय माना। बालाघाि कजले की वाराकसवनी िहसील क
े इस वाद में कोिष ने Panwar और
Powar शब्द का प्रयोग ककया। इस आदेश में शेररंग क
े ककिाब कहन्दू िराइब्स एं ड कास्टस में उल्लेस्तखि
िथ्य की पोवार, औंरगजेब क
े समय मालवा से आकर वैनगंगा कज़ले क
े किरोड़ा, कामठा, लांजी और
मालवा से आये वैनगंगा क्षेत्र में बसे पंवार/पोवार क्षत्रत्रयों का इत्रिहास
4
रामपायली परगना में बसे थे को आदेश में कलया गया। आगे कलखा है की पोंवार, राजपूि जाकि क
े हैं जो
बालाघाि, भंडारा और कसवनी में मुलि: बसे थे और और अन्य कजलों में बहुि कम। पोवार, सवषप्रथम
मालवा से रामिेक क
े पास नगरधन आये थे। वहां से आम्बागि और चांदपुर की ओर बिे थे। आदेश में
कलखा गया की की पोवार, राजपूि हैं। इस आदेश में रसेल द्वारा उल्लेस्तखि िथ्य की पंवार या परमार,
प्राचीन और प्रकसद्ध राजपूि वंश हैं, को स्वीकार ककया हैं। इस आदेश में अदालि ने माना की बालाघाि
कज़ले क
े पोवार, क्षकत्रय हैं और इसमें मालवा से आये इन परमार वंकशयो क
े कलए कलए पंवार और पोवार
शब्दों का ही प्रयोग ककया गया हैं।
पंवारों की बोली और पोवारी संस्क
ृ कि : इन छत्तीस क
ु र वाले पंवारों की बोली का नाम पोवारी है और
यह कसफ
ष इसी समाज क
े द्वारा ही बोली जािी हैं। क्षकत्रय पोवार समाज अपनी सनािनी पोवारी संस्क
ृ कि
क
े साथ सभी समाजों से एकीक
ृ ि होकर देश की एकिा और अखंडिा क
े कलए सदैव कायष कर रहा हैं
साथ में अपनी ऐकिहाकसक और मूल संस्क
ृ कि का संरक्षण कर अपनी ऐकिहाकसक और सांस्क
ृ किक
धरोहरों क
े संरक्षण हेिु भी कायष कर रहा हैं।
वैनगंगा क्षेत्र में बसने क
े बाद इन क्षकत्रयों ने क
ृ कर्ष कायष को अपना मूल व्यवसाय बना कलया और गांवों में
स्थायी रूप से बस गए। गांव में ही हमारी ऐकिहाकसक सनािनी पोवारी संस्क
ृ कि क
े दशषन होिे हैं।
पोवारी क
े छोिे-छोिे रीकि-ररवाज सभी क
े हृदय को भािे हैं और हर कोई समय कमलिे ही अपने मूल
गांव को जाना चाहिे हैं। छत्तीस क
ु ल क
े समाज में अपने क
ु रों का बड़ा महत्व होिा है। िुम्ही कोन
क
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े पररचय पूछा जािा है। हर क
ु र का अपना महत्व और इकिहास है। छकठ,
बारसा, करसा भरना, हल्दी, अहेर, दसरे में महरी बड़ी का दस्तूर, देव उिारने से लेकर हर नेंग-दस्तूर
में पोवारी क
े क
ु लों का बड़ा महत्व होिा है और यह कवरासि आने वाली पीिी िक मूल रूप में पंहुचनी
ही चाकहए। देवघर की चौरी हर पोवार की आस्था का क
ें द्र होिी है िो शस्त्र पूजा हमारे पूँवारी वैभव को
दशाषिा है। आमी छत्तीस क
ु र को पोवार आजन, असो नहानपन लका सुन रही सेजन। हमारे हर रीकि-
ररवाज का एक वैज्ञाकनक आधार है और यह पुरखों की कवरासि हजारों वर्षों की है अब जरूरि इस
कवरासि को मूल रूप में सहेजे, संजोये और भकवष्य की पीकियों को हस्तांिररि करें। पोवारी बोली और
पोवारी संस्क
ृ कि ही छत्तीस क
ु ल क
े पंवारों की अपनी पहचान हैं कजसे आगे सहेज कर रखना हर पोवार
की कजम्मेदारी हैं।
सन्दर्भ : पंवार दपभण 2022,
पंवार राम मंत्रदर ट्र स्ट, बैहर द्वारा प्रकात्रिि पत्रत्रका, "पंवार दपभण" में श्री ऋत्रि त्रबसेन, बालाघाट्
द्वारा त्रलखिि यह लेि प्रकात्रिि हुआ था।

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TUYỂN TẬP 25 ĐỀ THI HỌC SINH GIỎI MÔN TIẾNG ANH LỚP 6 NĂM 2023 CÓ ĐÁP ÁN (SƯU...
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TUYỂN TẬP 25 ĐỀ THI HỌC SINH GIỎI MÔN TIẾNG ANH LỚP 6 NĂM 2023 CÓ ĐÁP ÁN (SƯU...
 

मालवा से आये वैनगंगा क्षेत्र में बसे पंवार

  • 1. मालवा से आये वैनगंगा क्षेत्र में बसे पंवार/पोवार क्षत्रत्रयों का इत्रिहास 1 मालवा से आये वैनगंगा क्षेत्र में बसे पंवार/पोवार क्षत्रत्रयों का इत्रिहास मालवा से नगरधन होकर वैनगंगा क्षेत्र में बसे पंवारों का गौरवशाली लेककन संघर्षों से भरा इकिहास रहा है। ग्यारहवी से िेरहवीं सदी िक मध्य भारि पर मालवा क े पंवार राजाओं का शासन था लेककन मालवा पर इनकी सत्ता खोने क े बाद मध्यभारि में पंवारों का कोई और कवशेर्ष इकिहास नही कमलिा। यह समय पंवारों का संघर्षष भरा समय था और वे समय समय पर अन्य भारिीय राजाओं का सहयोग करिे रहे। मराठा काल और किकिश काल में कलखी ककिाबें, जनगणना दस्तावेज, कजला गैज़ेि और शासकीय ररपोिटषस में विषमान में वैनगंगा क्षेत्र में बसे पोवारों का व्यापक इकिहास कमलिा है और इसमें कहा गया है कक इनका आगमन स्थानीय राजाओं क े मुगलों क े कवरुद्ध संघर्षष हेिु सहयोग मांगने पर आगमन हुआ। इन शासकों ने पंवारों की वीरिा को देखिे हुए इन क्षेत्रों में स्थायी रूप से बसने क े कलए प्रेररि ककया। वैनगंगा क्षेत्र में पोवारों की बसाहि : Central Provinces' Census, १८७२, क े अनुसार वैनगंगा क्षेत्र क े पोवार(पंवार) मुलि: मालवा क े प्रमार(Pramars) है जो सवषप्रथम नगरधन, जो की कजला नागपुर क े रामिेक क े पास है, आकर बसे थे। सन १८७२ की इस ररपोिष में कहा गया है की इन क्षेत्रों में पोवारों का मालवा से आगमन इस जनगणना क े लगभग सौ वर्षष पूवष हुआ है। इसका अथष यह है की १७७० क े आसपास वैनगंगा क्षेत्र में पोवार बस चुक े थे। भािों की पोकथयों में मालवा राजपुिाना से परमार क्षकत्रयों क े नगरधन आकर, वैनगंगा क्षेत्र में कवस्ताररि होने का उल्लेख कमलिा है। नगरधन(नंकदवधषन), कवदभष का सबसे पुराना ऐकिहाकसक नगर है और ग्यारहवीं शदी क े अंि में भी इन क्षेत्रों पर मालवा क े प्रमार वंश का शासन था। ११०४ में मालवा नरेश उकदयाकदत्य क े पुत्र लक्ष्मण देव ने नगरधन आकर कवदभष का शासन संभाला था। नागपुर प्रशस्तस्त और सेंिरल प्रोकवएन्सेस गैज़ेि १८७० में इसका उल्लेख कमलिा है। १८७२ की जनगणना ररपोिष में कलखा है की पोवारों क े द्वारा नगरधन में ककले का कनमाषण ककया। चूूँकक यह पहले से ही कवदभष क े कवकभन्न राजवंशो की राजधानी रही है इसकलए उसी जगह पर पोवारों क े द्वारा नगरधन में ककले का कनमाषण ककया गया। मराठा काल में भी नगरधन, महत्वपूणष सैकनक क ें द्र था और सेना में पोवारों की भूकमका महत्वपूणष थी। नगरधन और आसपास क े क्षेत्रों में पोवारों ने अनेक बस्तस्तयां बसाई थी। भािो की पोकथयों में भी नगरधन और नागपुर में िीन चार पीकियों क े बसने की जानकारी कमलिी हैं। उज्जैन से आये श्री कदगपालकसंह कबसेन अन्य पंवार सरदारों क े साथ नगरधन आये थे। पोथी में ७१३ शब्द कलखा हैं और सम्भविया यह १७१३ होगा जब उनका पररवार नगरधन आया होगा। उनक े पुत्र श्री कसरीराज और लक्ष्मणदेव कबसेन क े नागपुर में बसने का उल्लेख पोथी में कदया हैं। इसी प्रकार पोवारों क े अन्य क ु लों
  • 2. मालवा से आये वैनगंगा क्षेत्र में बसे पंवार/पोवार क्षत्रत्रयों का इत्रिहास 2 का मालवा राजपुिाना क े कवकभन्न क्षेत्रों से नगरधन आकर वैनगंगा क्षेत्र की ओर कवस्तार का कववरण हमारे भाि स्व. श्री बाबूलाल जी की पोथी में उल्लेख हैं। १८७२ की जनगणना ररपोिष क े अनुसार नगरधन से समय क े साथ पंवार, वैनगंगा क े पूवष में आम्बागि और चांदपुर की ओर कवस्ताररि हुए। क ु छ पोवारों ने किक पर मराठों क े कवजय अकभयान में श्री कचमाजी भोसले का साथ कदया था। किक अकभयान में पोवारों क े सौयष और पराक्रम क े कारण पुरस्कार स्वरूप उन्हें लांजी और बालाघाि कजलें में वैनगंगा क े पकिम में बहुि सी भूकम उन्हें प्रदान की गयी। कसवनी कजलें में पंवार सवषप्रथम सांगड़ी और प्रिापगि में आये। इसक े बाद उनका कवस्तार बालाघाि कजलें में किंगी की ओर हुआ। इस जनगणना ररपोिष में उन्हें बहुि ही उद्यमीं जाकि और उन्नि क ृ र्षक कहा गया है। इस जनगणना में भंडारा में ४५,४०४, कसवनी में ३०,३०५ और बालाघाि कजलें में १३,९०६ पोवारों की जनसूँख्या बिाई गयी है। Imperial Gazetteer of India (1907) और Balaghat District Gazetteer (1907) में भी बालाघाि कजले में पोवारों की जनसूँख्या और बसाहि का उल्लेख कमलिा है। किकिश भारि में क ृ कर्ष क े साथ गाूँवो की शासन व्यवस्था में पोवारों की महत्वपूणष भूकमका थी। Thomson, "Report," pp. 134-34, pars. 63-68, and C. P. Gazetteer(1870), p. २३ में इस बाि का उल्लेख कमलिा है की मराठा अकधकारी श्री लक्ष्मण नाइक ने सन १८२० में सिपुड़ा की घाकियों में सड़को का कवकास ककया और मालवा से आये इन पोवारों को बसने में मदद की। १८६७ में बालाघाि कजले का गठन हुआ था और मराठा काल में वैनगंगा क्षेत्र में प्रशासन, सुरक्षा और क ृ कर्ष कायष का अच्छा अनुभव होने क े कारण किकिश प्रशासन ने पोवार समाज को नवकनकमषि बालाघाि कजले क े स्थानीय प्रशासन में महत्वपूणष भूकमका प्रदान की। Bloomfield, "Progress," p. 99, par. 56 में िकिश अकधकारी कनषल ब्लूमफील्ड ने इस बाि का उल्लेख ककया है की पोवार सबसे कवश्वशनीय और सफल जािी है इसीकलये उन्होंने सुदू र क्षेत्रों में बस्तस्तयों क े कवकास क े कलए पोवारों को प्रोत्साकहि ककया था। पोवारों को अनेक गावों की जमींदारी दी गयी। बुलंद बख्त और मराठा काल वैनगंगा घािी क े भंडारा कसवनी कजलों अनेक गावों की जागीरदारी/जमींदारी पोवारों को दी गयी थी और उनक े वंशजो को बालाघाि कजले की नवकनकमषि बस्तस्तयों की जमींदारी दी गयी साथ ही उन बस्तस्तयों में अन्य पोवार पंवार पररवारों को बसने क े कलए प्रोत्साकहि ककया गया। बालाघाि कजले क े िात्काकलक उपायुक्त कनषल ब्लूमफील्ड ने 1870 क े आसपास पंवार राजपूिों को बैहर क्षेत्र में बसने क े कलए प्रेररि ककया और सवषप्रथम श्री लक्ष्मण पंवार परसवाड़ा क्षेत्र में बसे. इसक बाद बैहर क्षेत्र में पंवारो को कई गाूँवो की पिेली/ मुक्कदमी/ जमींदारी दी गयी जो क ृ कर्ष प्रधान ग्राम थे। बैहर पंवारो की िीथषस्थली है और आसपास क े बहुि से पंवारो ने बैहर को अपना मूल कनवास बना कलया हैं। 25 जनवरी 1910 को कसहारपाठ बैहर, कजला-बालाघाि में श्री गोपाल पिेल ने पंवार समाज की बैठक बुलाई थी जहां इस पहाड़ी पर समाज क े द्वारा राममंकदर बनाने
  • 3. मालवा से आये वैनगंगा क्षेत्र में बसे पंवार/पोवार क्षत्रत्रयों का इत्रिहास 3 का कनिय ककया गया और इस पूँवार संघ क े नेिृत्व में 1913 में कसहारपाठ पहाड़ी, बैहर पर राममंकदर का कनमाषण कायष पूणष हुआ। वैनगंगा क्षेत्र में बसे पंवार(पोवार) समाज क े क ु ल(क ु र) : आर वी रसेल ने अपनी ककिाब The Tribes and Castes of the Central Provinces of India(1916) में नागपुर पंवार (वैनगंगा क्षेत्र क े पोवार) को पंवार राजपूि की एक शाखा माना है। उन्होंने वैनगंगा क्षेत्र में बसने वालों पंवारों क े इकिहास, संस्क ृ कि, क ु ल, भार्षा इत्याकद पर अपनी इस ककिाब में कवस्तृि कववरण कलखा है। मालवा राजपुिाना से अठाहरवीं सदी क े आरम्भ में आये छत्तीस क्षकत्रयों में से बालाघाि, भंडारा, कसवनी और गोंकदया कजलों में िीस क ु ल ही स्थायी रूप बसें और बाकी क े छह क ु ल संभविया युध्द क े बाद वापस चले गए हों। पोवारों में उनक े क ु लों का बहुि महत्व होिा है और इनक े कववाह पोवारों क े अपने क ु लों अम्बुले, किरे, कोल्हे, गौिम, चौहान, चौधरी, जैिवार, ठाक ु र/ठाकरे, िेम्भरे, िुरकर/िुरुक, पिले, पररहार, पारधी, पुण्ड/पुंडे, बघेले/बघेल, कबसेन, बोपचे, भगि, भैरम, एडे, भोयर, राणा, राहांगडाले, ररणायि, शरणागि, सहारे, सोनवाने, हनवि/हनविे, हररनखेड़े और क्षीरसागर में ही होिे हैं। इस ककिाब क े पृष्ठ क्रमांक 340 पर कलखा है कक इस समय इस समाज की जनसंख्या 1,50,000/ क े लगभग रही होगी। पंवारों की कोई उपजाकि नही है लेककन छत्तीस अंि:कववाही क ु ल है और ये अपने इन क ु लों क े बाहर कववाह नही करिे। इसक े अकिररक्त कई समाजजनों और संस्थाओं क े लेख में इन पंवारो क े छत्तीस क ु ल होने का उल्लेख करिे हैं। आज समाज क े वररष्ठजनों क े द्वारा वैनगंगा क्षेत्र क े पंवारों क े छत्तीस क ु ल होने की बाि करिे हैं। सकदयों से इनकी सभी पुरािन परंपराएं इनक े अपने क ु लों पर कनभषर करिी हैं। क ु ल को क ु र भी कहा गया है। नागपुर पंवारों को पोवार भी कहा जािा है और इनकी बोली को पोवारी या पंवारी कहिे है जो कसफ ष वैनगंगा क्षेत्र क े पोवारों की मािृभार्षा है। पंवार(पोवार) समाज क े ऐकिहाकसक नाम : शकदयों से हमारा समाज, पोवार और पंवार नाम से ही जाना जािा है और इकिहास कलखने वाले भािों ने इन्हे मालवा क े प्रमार भी कहा है। आज से १५० वर्षष पुराने कजला गैज़ेि में इनक े मालवा से आगमन और नगरधन - वैनगंगा क्षेत्र में बसाहि का उल्लेख है। इन्ही गैज़ेि में और पुरािन ककिाब में इनक े ३६ क्षकत्रय क ु लों का संघ होना बिाया है। इन्ही ऐकिहाकसक दस्तावेजों क े आधार पर क ु छ वादों में अदालिों ने हम वैनगंगा क्षेत्र क े पोवारों क े इकिहास का भी उल्लेख ककया है। एक ऐसे ही वाद नाथूलाल साकलकराम वट रंगोबा नरबद में मध्यप्रदेश उच्च न्यायलय (२६ अक्टू बर १९५१ ) ने वैनगंगा क्षेत्र क े पंवारों क े इिहास पर चचाष की। इसमें माननीय न्यायलय ने इन्हे क्षकत्रय माना। बालाघाि कजले की वाराकसवनी िहसील क े इस वाद में कोिष ने Panwar और Powar शब्द का प्रयोग ककया। इस आदेश में शेररंग क े ककिाब कहन्दू िराइब्स एं ड कास्टस में उल्लेस्तखि िथ्य की पोवार, औंरगजेब क े समय मालवा से आकर वैनगंगा कज़ले क े किरोड़ा, कामठा, लांजी और
  • 4. मालवा से आये वैनगंगा क्षेत्र में बसे पंवार/पोवार क्षत्रत्रयों का इत्रिहास 4 रामपायली परगना में बसे थे को आदेश में कलया गया। आगे कलखा है की पोंवार, राजपूि जाकि क े हैं जो बालाघाि, भंडारा और कसवनी में मुलि: बसे थे और और अन्य कजलों में बहुि कम। पोवार, सवषप्रथम मालवा से रामिेक क े पास नगरधन आये थे। वहां से आम्बागि और चांदपुर की ओर बिे थे। आदेश में कलखा गया की की पोवार, राजपूि हैं। इस आदेश में रसेल द्वारा उल्लेस्तखि िथ्य की पंवार या परमार, प्राचीन और प्रकसद्ध राजपूि वंश हैं, को स्वीकार ककया हैं। इस आदेश में अदालि ने माना की बालाघाि कज़ले क े पोवार, क्षकत्रय हैं और इसमें मालवा से आये इन परमार वंकशयो क े कलए कलए पंवार और पोवार शब्दों का ही प्रयोग ककया गया हैं। पंवारों की बोली और पोवारी संस्क ृ कि : इन छत्तीस क ु र वाले पंवारों की बोली का नाम पोवारी है और यह कसफ ष इसी समाज क े द्वारा ही बोली जािी हैं। क्षकत्रय पोवार समाज अपनी सनािनी पोवारी संस्क ृ कि क े साथ सभी समाजों से एकीक ृ ि होकर देश की एकिा और अखंडिा क े कलए सदैव कायष कर रहा हैं साथ में अपनी ऐकिहाकसक और मूल संस्क ृ कि का संरक्षण कर अपनी ऐकिहाकसक और सांस्क ृ किक धरोहरों क े संरक्षण हेिु भी कायष कर रहा हैं। वैनगंगा क्षेत्र में बसने क े बाद इन क्षकत्रयों ने क ृ कर्ष कायष को अपना मूल व्यवसाय बना कलया और गांवों में स्थायी रूप से बस गए। गांव में ही हमारी ऐकिहाकसक सनािनी पोवारी संस्क ृ कि क े दशषन होिे हैं। पोवारी क े छोिे-छोिे रीकि-ररवाज सभी क े हृदय को भािे हैं और हर कोई समय कमलिे ही अपने मूल गांव को जाना चाहिे हैं। छत्तीस क ु ल क े समाज में अपने क ु रों का बड़ा महत्व होिा है। िुम्ही कोन क ु रया आव रे भाऊ करक े पररचय पूछा जािा है। हर क ु र का अपना महत्व और इकिहास है। छकठ, बारसा, करसा भरना, हल्दी, अहेर, दसरे में महरी बड़ी का दस्तूर, देव उिारने से लेकर हर नेंग-दस्तूर में पोवारी क े क ु लों का बड़ा महत्व होिा है और यह कवरासि आने वाली पीिी िक मूल रूप में पंहुचनी ही चाकहए। देवघर की चौरी हर पोवार की आस्था का क ें द्र होिी है िो शस्त्र पूजा हमारे पूँवारी वैभव को दशाषिा है। आमी छत्तीस क ु र को पोवार आजन, असो नहानपन लका सुन रही सेजन। हमारे हर रीकि- ररवाज का एक वैज्ञाकनक आधार है और यह पुरखों की कवरासि हजारों वर्षों की है अब जरूरि इस कवरासि को मूल रूप में सहेजे, संजोये और भकवष्य की पीकियों को हस्तांिररि करें। पोवारी बोली और पोवारी संस्क ृ कि ही छत्तीस क ु ल क े पंवारों की अपनी पहचान हैं कजसे आगे सहेज कर रखना हर पोवार की कजम्मेदारी हैं। सन्दर्भ : पंवार दपभण 2022, पंवार राम मंत्रदर ट्र स्ट, बैहर द्वारा प्रकात्रिि पत्रत्रका, "पंवार दपभण" में श्री ऋत्रि त्रबसेन, बालाघाट् द्वारा त्रलखिि यह लेि प्रकात्रिि हुआ था।