Meaning and aim and objectives of marriage in Ancient India
1. SEMESTER - IV
AIHC & Arch-C-401: Ancient Indian Social Life and Institutions
Unit II : Marriage and Family
5. Meaning and aim and objectives of marriage
6. Types of marriages and their significance
Sachin Kr. Tiwary
3. • विद्या, विनय, शील, रूप, आयु, बल, क
ु ल, शरीरादि का पररमाण यथायोग्य हो
जिन युिक युिती का उनका आपस में सम्भाषण कर माता-वपता अनुमतत से
गृहस्थ धमम प्रिेश वििाह है। अथामत ् पूणम ब्रह्मचयमव्रत विद्या बल को प्राप्त
करक
े , सब प्रकार क
े शुभगुण-कमम-स्िभािों में तुल्य, परस्पर प्रीततयुक्त हो, विधध
अनुसार सन्तानोत्पवि और अपने िणामश्रमानुक
ू ल उिम कमम करने क
े ललए युिक
युिती का स्िचयनाधाररत पररिार से िो सम्बन्ध होता है उसे वििाह कहते ह।।
Synonyms
of
Marriage
Parinaya
Parinayam
Panigrahan
Upayam
Udwah
Antiquity
ऋग्िेि
तैविरीय
संदहता
ऐतरेय
ब्राह्मण
ताण्ड्य
ब्राह्मण
4. Purpose of
Marriage Acc. To
Manu
संतानप्राजप्त
Procreation
धममपालन
Piety
यौन तुजटि
Sexual
gratification
उिाि संस्कृ तत
का तनमामण
Creating
Sublime Culture
1. पुरुष को गृहस्थ में लाना ताकक िो धमम का पालन करे
Bringing the man into the household so that he follows the
religion (ऋग्वेद)
2. वििाह का मूल उद्िेश्य है ‘िेि-विज्ञ’ व्यजक्त ‘िेि-विि’ हो सक
े ।
िेि-विि होने का मतलब है िेि सिा क
े ललए, ज्ञान क
े ललए, लाभ क
े
ललए, चेतना क
े ललए तथा धमम-अथम-काम-मोक्ष लसद्धध क
े ललए िीिन
में उपयोग।
गृहस्थ आश्रम अतत अधम प्रिृवियों से बचाता है। दहरन िैसी चंचलता
िृवि, बैल िैसी िांत दिखाऊ िृवि, गाय िैसी चरन् प्रिृवि, क
ु िे िैसी
िुमउठाऊ प्रिृवि और विधमम अथामत् धमम क
े अपभ्रंश धमम को भी
घदिया रूप में िीने की प्रिृवि इन छै से गृहस्थाश्रम बचाता है।
5. वपंड, गोत्र और प्रिर
वपंड या सवपंड का अथम यह है कक िातक का शरीर, अथामत वपंड एक ही मूल क
े गुणसूत्रों से उत्पन्न हुआ हो।
अथामत पतत-पत्नी और उसकी संतान, नाना-नानी-नाती, भाई-बहन आदि माता क
े क
ु ल की पांचिीं पीढी तक और वपता क
े क
ु ल की
सातिीं पीढी तक िातक एक व्यजक्त क
े पररिार विशेष से सवपंड बना रहता है। इसका आशय यह है कक उपरोक्त पीदि़यां पार
कर ही संतानों में परस्पर वििाह की अनुमतत है। हालांकक भारत क
े िक्षक्षणी प्रिेशों में अनेक समुिाय इस व्यिस्था को नहीं
मानते और मामा या मामा क
े पुत्र-पुत्री से िैिादहक ररश्ता बेझििक स्िीकार करते ह।।
गोत्र क
े अनेक अथम बताए गए ह।। कहीं इसका अथम गोशाला तो कहीं लोगों का समूह बताया गया है। कौशशक सूत्र की मानें तो
गोत्र का अथम परस्पर संबंधित मानव समाज से है। मनु की व्यिस्था यह है कक िातक यदि अपने वपता क
े गोत्र की कन्या से
वििाह करता है तो उसका तनषेध ककया िाना चादहए। उल्लेखनीय है कक ििक पुत्र-पुत्री को भी अपने मूल वपता क
े गोत्र में
वििाह नहीं करना चादहए। हालांकक एक व्यिस्था यह भी है कक ििक ललया गया पुत्र-पुत्री अपने िास्तविक वपता क
े ललए वपंडिान
नहीं कर सकते। आशय यही है कक करीबी ररश्तेिारी में वििाह करने से आनुिांलशक बीमाररयां-विकृ ततयां परेशान करती ह।।
भारतीय सामाजिक व्यिस्था में सप्तवषमयों क
े नाम पर सात गोत्र बने थे। भारद्िाि, विश्िालमत्र, अत्रत्र, कश्यप, िमिजग्न, गौतम
और िलशटठ उनक
े नाम ह।। इस सूची में आठिां नाम अगस्त्य का िुड़ गया। इसक
े बाि स्थान बिला, समाि लमधश्रत हो गया तो
िाततयां, उपिाततयां अजस्तत्ि में आईं। इसी क्रम में गोत्र और उप-गोत्र भी बने। विद्िानों क
े अनुसार आिकल 90 से ज्यािा
गोत्र-उपगोत्र अजस्तत्ि में ह।।
प्रिर क
े िैसेतो अथमश्रेटठ होता है। गोत्रकारों क
े पूिमिों एिं महान ऋवषयों को प्रिर कहतेह।। िैसेभारद्िा कमो द्िारा
कोई व्यजक्त ऋवष होकर महान हो गया हैिो उसक
े नाम सेआगेिंश चलता है। यह मील क
े प क
े क
ु ल मेंतीन, पांच
या सात आदि महान ऋवष हो चलेह।। मूल ऋवष क
े गोत्र क
े बाि जिस ऋवष का नाम ह।।
7. 1.ब्रह्म वववाह : िोनों पक्ष की सहमतत से समान िगम क
े सुयोज्ञ िर से कन्या की इच्छानुसार वििाह तनजश्चत कर िेना 'ब्रह्म वििाह' कहलाता है।
इस वििाह में िैदिक रीतत और तनयम का पालन ककया िाता है। यही उिम वििाह है।
2.देव वववाह : ककसी सेिा धालममक कायम या उद्येश्य क
े हेतु या मूल्य क
े रूप में अपनी कन्या को ककसी विशेष िर को िे िेना 'िैि वििाह' कहलाता
है। लेककन इसमें कन्या की इच्छा की अनिेखी नहीं की िा सकती। यह मध्यम वििाह है।
3.आशश वववाह : कन्या-पक्ष िालों को कन्या का मूल्य िेकर (सामान्यतः गौिान करक
े ) कन्या से वििाह कर लेना 'अशम वििाह' कहलाता है। यह
मध्यम वििाह है।
4.प्रजापत्य वववाह:- कन्या की सहमतत क
े त्रबना माता-वपता द्िारा उसका वििाह अलभिात्य िगम (धनिान और प्रततजटठत) क
े िर से कर िेना
'प्रिापत्य वििाह' कहलाता है।
5.गंिवश वववाह:- इस वििाह का ितममान स्िरूप है प्रेम वििाह। पररिार िालों की सहमतत क
े त्रबना िर और कन्या का त्रबना ककसी रीतत-ररिाि क
े
आपस में वििाह कर लेना 'गंधिम वििाह' कहलाता है। ितममान में यह मात्र यौन आकषमण और धन तृजप्त हेतु ककया िाता है, लेककन इसका नाम
प्रेम वििाह िे दिया िाता है। इसका नया स्िरूप ललि इन ररलेशनलशप भी माना िाता है।
6. असुर वववाह:- कन्या को खरीि कर (आधथमक रूप से) वििाह कर लेना 'असुर वििाह' कहलाता है।
7.राक्षस वववाह:- कन्या की सहमतत क
े त्रबना उसका अपहरण करक
े िबरिस्ती वििाह कर लेना 'राक्षस वििाह' कहलाता है।
8.पैशाच वववाह:- कन्या की मिहोशी (गहन तनद्रा, मानलसक िुबमलता आदि) का लाभ उठा कर उससे शारीररक संबंध बना लेना और उससे वििाह
करना 'पैशाच वििाह' कहलाता है।
8. Proposed Age for Var and Vadhu and Rules
• 12 YEARS (Female)- Manu
• 16 Years (Female), 25 Years (Male)- Sushrut
• Gap should be 03 years in the age of Male and Female (Kamasutra)
िधू-िर क
े विचार, स्ि-भाि, लालन-पालन, क
ु ल-व्यिहार, आयु, शरीर, लक्षण, रूप, आचार, नाम, बल आदि गुणों की िैदिक
िैज्ञातनक विधध द्िारा परीक्षा करक
े वििाह करना।
माता की छै पीढी में तथा गोत्र में वििाह न करना। यह विज्ञान सम्मत तथ्य है कक माता की छै पीढी तथा वपता क
े सगोत्र
वििाह बाि सन्तान अपंग, अपादहि, कमिोर, रुग्ण, पागल आदि होने की पयामप्त सम्भािना होती है। ब्राह्म, िैि आदि
प्रािापत्य वििाह ही करना। आसुर (िहेि वििाह), गन्धिम (काम-वििाह), राक्षस (बलात्कार-वििाह), वपशाच (धोका-वििाह)
तथा ितममान क
े समल।धगक, मूततम, बच्चा-बच्ची, पोता-नाती, गाय-बैल, क
ु िा-क
ु िी, गधा-गिही आदि-आदि महामूखम वििाह
कभी न करना। 5) िर-िधू का समयुिा होना। 6) ऋग्िेि क
े 2/35/4-6, 5/36/3 तथा 5/41/7 महवषम ियानन्ि भाटय क
े
अनुरूप उद्िेश्यपूणम वििाह। 7) वििाह में िेशोन्नतत भाि भी हो। 8) वििाह िर-िधू की सहमतत तथा पररिार िनों क
े
सहयोग से ही हो। 9) वििाह विधध (अ) स्नान, (ब) मधुपक
म - आसन, िल, मधुमय िातायन-भाि, मधुपक
म प्राशन, (स) त्रत्र
आचमन- अमृत ओढना, त्रबछाना, गुणामृत िीिन भािना, (ि) अंग पवित्र भािना, (ई) िर को द्रव्य िेना (गोिान), (फ)
कन्या प्रतत ग्रहण, (य) िस्त्र प्रिान करना, (र) िर-िधू हाथ में हाथ िल = िल, स्िेच्छा अलभचरण, उच्च संकल्पादि
भािमय होना। (ल) वििाहयज्ञ- 1. प्रधान होम। 2. प्रततज्ञा विधध िर क
े हाथ पर िधू का िादहना हाथ रखकर िोनों सप्त
प्रततज्ञ हों। 3. लशलारोहण। 4. लािा होम। 5. क
े श विमोचन। 6. सप्तपिी। 7. िल मािमन। 8. सूयमिशमन। 9. हृियालम्भन।
10. सुमंगली आशंसन। 11. आशीिामि। (ि) उिर यज्ञ- 1. प्रधान होम। 2. ध्रुि िशमन। 3. अरुन्धती िशमन। 4. ध्रुिीभाि
आशंसन। 5. ओिन आहूतत। 6. ओिन प्राशन। 7. गभामधान। 8. प्रतत यात्रा (रथ यात्रा) िापसी (9) िर गृह यज्ञ। (10) िधध
प्राशन। (11) स्िजस्तिाचन- आशीिामि। (12) अभ्यागत सत्कार। (13) पाररिाररक सुपररचय।