e Magazine in Powari Langugae.
Powari language is spoken by Powar community in Vainganga Valley Central India. Powar are group of 36 clan which migrated from western India in the era of Aurngjeb and settled intially at Nagardhan near Nagpur and finally settled in Vainganga valley. Presntly these known as 36 clan Panwar or Powar community.
2. २
संपादकीय.......
झुंझुरका पोवारी माससकको डिसेंबरको अंक तुमला बाचन देताना बहुत खुशी होय रही से. पोवारी
बालसाहहत्यला तुमरंवरी पोवचावनको एव माध्यम पोवारी बाल साहहत्य, साहहत्त्यक अना बाचक इनक
ं
बबच अलग नातो बनावनोमा सफल होय रही से. सरतो साल पोवारी बालसाहहत्यसाती बहुत लाभदायी
रहेव. झुंझुरका संगमा साहहत्त्यक, बाचक जुळत गया. आवनेवालो सालमाबी साहहत्त्यक अना बाचकईनला
जोळनसाती संपादक मंिळ प्रयासरत रहे.
तुमला पोवारी बालसाहहत्य बाचनसाती घरका बुजरूक मदत करच रह्या सेती. तुमी
बालसाहहत्यको आनंद लेव. बाचनलक आपली भाषा समृद्ध होसे. नवा बबचार बाचेलक माणूस समृद्ध
होसे. पोवारी साहहत्य तुमी बाचो, आयको अना तुमरं संगी भाईनला, सखी सहेलीनला बाचस्यान देखाओ.
अना हो....... तुमी एकमेकसंगमा पोवारीमा बोलत जाव.
बोलबी पोवारी.....सलखबी पोवारी.....बाचबी पोवारी.
- गुलाब बबसेन
संपादक - झुंझुरका पोवारी बाल ई माससक
मो. नं. 9404235191
संपादक मंिल
श्री गुलाब बबसेन, संपादक
श्री रणदीप बबसने, उपसंपादक
श्री महेंद्रकु मार पटले, उपसंपादक
श्री महेंद्र रहांगिाले, उपसंपादक
श्री उमेन्द्द्र बबसेन, उपसंपादक
ननसमिती
महेंद्र रहांगिाले
3. ३
🌷पोवार को बन आरसा🌷
ववधा - सरस छंद (माबिक)
मािा भार - १४, यनत - ७,७
लगावली - गागालगा, गागालगा
श्री इंत्ज गोवधिन बबसेन “गोकु ल”
गोंहदया
पोवार की, कर बात तू
संस्कार की, कर बात तू |
देखाव जी, तू धार को
पोवार की, अवकात तू ||१||
से बात या, आकार की
पोवार को, संस्कार की |
चल ठाट लक, पोवार तू
या शान से, जी धार की ||२||
गड़कासलका, को भक्त तू
आटावजो, खुद रक्त तू |
पोवार को, उध्दारला
साहहत्य मा, बन सक्त तू ||३||
तू प्रार्िना, कर भोज की
तू याद बी, कर ओज की |
तू कल्पना, ववस्तार कर
तू बात कर, नव खोज की ||४||
रुतबालका, देखाव तू
पोवार का, बी भाव तू |
संसारमा, बुद्धीलका
पोवार ला, सीखाव तू ||५||
तू प्रार्िना, कर भोज की
तू याद बी, कर ओज की |
तू कल्पना, ववस्तार कर
तू बात कर, नव खोज की ||४||
रुतबालका, देखाव तू
पोवार का, बी भाव तू |
संसारमा, बुद्धीलका
पोवार ला, सीखाव तू ||५||
देखाव तू, तोरा असा
बाना हदसे, ववक्रम जसा |
कतिव्य को, रस्ता परा
पोवार को, बन आरसा ||६||
4. ४
चचिकर्ा
मा ५ बज्या. शाळाकी बजी. सब टुरू पोटु
धरस्यान घरक
ं रस्ताला लग्या. श्रीरंगनं आपली पानीकी
हेसळस अना बचेव पानी रस्तापर फ
े कन बसेव. वोतरोमा तुषारनं
आपली हेसळस अना बचेव पानी रस्ताक
ं बाजूला लगायेव
टाकीस. येव देख श्रीरंगनबी आपलं को बचेव पानी
झाळला टाकीस.
श्री गुलाब बबसेन
5. ५
*महती सशक्षण की*
प्राप्त करबीन उच्च सशक्षा
नही होय ओको बटवारो
सशक्षण एकमेव रव्हसें
जीवन को बढी ी़
या सहारो.
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उमेंद्र युवराज बबसेन (प्रेरीत)
रामाटोला गोंहदया (श्रीक्षेि देहू पुणे) ९६७३९६५३११
गुरूजी का भया प्राध्यापक
बात ज्ञान की आयकबीन
अभ्यासमा मनलगायक
े
कॉलेज भी पास करबीन.
सशक्षण लक होसे उद्धार
बात या मनमा धरबीन
भववष्य उज्ज्वल करनला
सशक्षण ग्रहण करबीन.
स्क
ू ल का हदन होता सुहाना
लाईफ होती मस्त वा भारी
आता आई कॉलेज की पारी
नौकरी पाहहजे सरकारी.
चल रे बंड्या चल बबलू
आता कॉलेजमा सशकबीन
भयी स्क
ू ल की पुरी पढा ी़
ई
कॉलेज की बाट धरबीन.
6. ६
*वोय बी का हदन होता*
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नवतरी मा पोहा मुराि की नवधानी,
धानक् बदला पोहा मुराि मनमानी.
नवतरी भर नव् तांदुरका पांढरा अकस्या,
सुरण की स्याग, तोरक् दानाको रस्सा.
हातपर की पीठ की मोटी गाकि रोटी,
दुय रोटीमा आदमीकी भरत होती कोठी.
पाहुणा आयात् उखळेव पीठ की रोटी,
वोक् संग पीठकीच गोि वाली लेपशी.
लसूणक् पानाका अकस्या शौकल् खानको,
वोक् पर मुख शुद्धीसाती बबिा पानको.
पांिक् त्योहारला गुंजा बनत होता जरूर,
तेलका गुंजा, लेपशीका गुंजा खानको भरपूर.
सुवारी, सुक
ु िा, आटेल को पाहुणचार,
खान वपवनको होतो पहले मजेदार.
आता सब खानको आय जासे रेिीमेि,
घर बनावन को आता जमानो भयेव िेि.
श्री- चचरंजीव बबसेन गोंहदया
7. ७
*क्षमता को अनुरूप लक्ष्य का ननधािरन ्*
हर माता-वपता आपरो बेटा-बेटी इनको सदा भला चाहोसेती अना उनको उन्द्नत भववष्य का
सपन देखसेती। अज़ को जमाना प्रनतस्पधाि को से अना येको कारन नवी पीढ़ी परा लगत दबाव आवसे
की उनला यन प्रनतस्पधाि मा च भववष्य को ननरमान करनो से। माता-वपता बी यन अंधरी दौड़ मा
जमाना को संग परावसेती की आमरो टुरू-पोटू कोनी को मंघ कसो रहेती। जसो बी होहे उनला मोठो
मानुष बनन् को से।
देखा-ससखी अना प्रनतस्पधाि दुही तत्व को समसरा होनको को बाद बेटा-बेटी अना उनको माय-
बाप परा मोठो दबाव आय जासे। अज़ की पढ़ाई भी महँगी भय गयी से अना सरकारी शाला मा पढ़ेत
त सुनहरो भववष्य कसो बने तरी दूसरो लक़ सब ऊजा मंघ रहवन को भय अलग।
माय- बाप आपरो बेटा-बेटी ला माहँगी अना साजरी पढ़ाई देनमा सप त्याग कर
देसेत्। यव बी नही देखत की आपरो बेटा बेटी की
काजक बनन् की चाह से, ओकोमो कोनसी साजरी प्रनतभा से, कोनसो क्षेि ओको क्षमता को अनुरूप
रहें, असो देख-परख को बबना माय-बाप ईख को माफफक वपससेत् अना बेटा-बेटा ला बी दबाव िाकसेत्।
यव अज़ की सच्चाई से अना कई घर की कहानी से।
सबको हदमाग़ एक जसो नहीं रहव अना प्रनतभा ला सही लक़ नहीं चचनन् को कारन कई
बेटा बेटी ला उचचत सफलता नहीं समलs जेको कारन पररवार मा तनाव होय जासे। येको समाधान से
की प्रनतभा अना क्षमता को अनुरूप लक्ष्य का ननधािरन जरुरी से। मोठा सपन देखनो त् सही से परा
यव सपन् बेटा-बेटी की क्षमता को अनुरुप रहें त् उनला लक्ष्य भेट्नमा सरल रहें। पालक इनला बी
आपरी महात्माकांक्षा ला बेटा-बेटी की क्षमता को हहसाब लक़ राख़नो चाहहसे अना दूसरों लक़ तुलना
करनो, यव सही नहीं कही जाय ससक से। नवी पीढ़ी अना जूनी पीढ़ी को बीच का सामनजस्य राख़न
मा बेटा-बेटी इनला ओनकी मंत्जल समलनमा सहयोग समलहे, या सच से।
✍️श्री ऋवष बबसेन, बालाघाट
8. ८
*हदनचयाि का चार प्रहर*
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श्री उमेंद्र युवराज बबसेन (प्रेरीत)
गोंहदया (श्रीक्षेि देहू पुणे)
सुर्य निकलता होसे
चैतन्र्मर्ी पहाट
चौतरफा पसरसे
पक्ीीं की ककलबबलाट.
आर्ेव माथा को वऱ्र्ा
सुर्य महातिी बेरा
लगेव से जीविमा
एवीं प्रहर को घेरा.
नतसरो प्रहरमा दिसे
साींजबेरा को सुर्ायस्त
पुजा पाठ साींजबात
करो घर घर रास्त.
दििचर्ाय को चवथो
प्रहर से रात काल
नतसरो प्रहरमा दिसे
साींजबेरा को सुर्ायस्त
पुजा पाठ साींजबात
करो घर घर रास्त.
दििचर्ाय को चवथो
प्रहर से रात काल
करसे कार्यमालका
मस्त ववश्ाींती बहाल.
10. १०
*टोरू
ं बी बोर*
येन् घात मां रब्बी फसल को जोर
संग मां याद आवसे टोरू
ं बी बोर !!
लाखोरी का डिरा खान की मज्या
खेतमां जो झेले वो मारे की मज्या
चगल्ली दांिू खेल मां की वु सज्या
इतवार हदवस वु खेत मां को शोर !!१!! संग मां .....
हप्ताभर नहीं रव्हं कोनला फ
ु रसत
इतवार हदवस वु खेत साटी खास
वावर राखन टुराइन को अज हदवस
सशदोरी कायकी ससरफ खानको तोर !!२!!
वावर बोर होयेपरा जंगल सफारी
बंदर भालू हरीण को दशिन बी भारी
येको खेत वोको खेत असी चलं वारी
घर आवतो घनी वोनं सशवधुरापरकी बोर!!३!!
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🖊️श्री रणदीप बबसने
11. ११
येरोनी
जसी देखेव मी येरोनी
तोंि मां सुटेव पाणी
येरोनी मां असो गुण
अलग से वा सबदून
हेंबट से हहरवी से जब्
समठी होसे कारी होयेपर
येन् घातमां खेत् रस्तापर
येरोनी को फर जोरोपर
बोर ला जो ससकसे पचाय
वुच येरोनी ला ससक
े पचाय
काटा मां छपी जरी रव्हसे
तरी सबको ध्यान वु हेरसे
असी येरोनी ओको असभमान
आमी खेतीपूि बखसेज् बखान
🖊️श्री रणदीप बबसने
12. १२
टूरा मी पोवार को
पोवार को टुरा मी
गोरो गोरो से रंग
पूविज मोरा पराक्रमी
आयककर होवो दंग
राजा भोज नाव उनको
चौसष्ट कला का ज्ञानी
भोजशाला को ननमािण
सशकावं लीलावती राणी
साम्राज्य होतो दूरदूरवरी
तलवार उनकी सदा तनी
दुस्मन कापती कपकपा
वारेव पाना को वानी
राजा असो महापराक्रमी
दानीदाता महान चक्रावती
मोला से असभमान जात को
ठेऊन भोज सररखी मती
सौ छाया सुरेंद्र पारधी
13. १३
*अलक लेखन*
*उंहदरकान*
शंकर भाऊ उंहदरकानका पाना धरक
े घर आयेव. शांता बाई न रातवा मस्त बळा
बनाईस. सब न उकतबुकत लक खाईन. वपंकी अना पप्पूला सुकु िा बिा बहुत स्वाहदष्ट
लग्या... सकारी अहदक आनो पप्पाजी पाना कवन बस्या. बायरा बदर बदर् पाणी आवत होतो.
रातवा बारा को बाद सबकी लोटा परेि नही नही कवत वरी लगी अना दुसरो हदन शंकर
भाऊको हातमा सलाईन लचग होती. अना सबका चेहरा चचम्या उंदीर कान सारखा भय गयाता.
सौ छाया सुरेंद्र पारधी
*यश प्राप्ती को मूल*
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चगरधर सामान्द्य हुशार गिी, सैन्द्य भरती को सपना मन मा ठेयकन झुझुंरका उठकन रोज
दस की.मी अंतर धावत होतो. शारीररक अना बौद्चधक चाचणी पास होयकन सैन्द्य मा भरती
भयेव. हर हदन ननरंतरता ठेयकन ओला यश प्राप्त करता आयेव.
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उमेंद्र युवराज बबसेन (प्रेरीत)
रामाटोला गोंहदया (श्रीक्षेि देहू पुणे) ९६७३९६५३११
14. १४
झुंझूरका
झुंझूरका इ माससक
मोरो मनला भावसे
नवनवीन कर्ा कववता
पोवारीमा आवसे
पोवारी बोली समठी
मोरो मनला भावसे
कववता बाचक
े देखो
मायबोली की गोिी रवसे
कहानी नाहान नाहान
पर ससख मोठी देसे
प्रश्नमंजुषा क
े तरी रोचक
ज्ञान आमरो बढावसे
पोवारी को ज्ञानसागर
मोती तुमी बेचो सबजन
पोवार आव, पोवारी को
असभमान ठेवो सबजन
सौ. छाया सुरेंद्र पारधी
ससहोरा
15. १५
🇮🇳 *मोरो भारत देश* 🇮🇳
*✍🏻श्री ऋवष बबसेन, बालाघाट*
रंग मा रंगी से मोरो प्यारो भारतदेश,
पेहरकन सब इत् सप्तरंगी गणवेश।
कई संस्कृ नत को संगमा लगसे न्द्यारो,
सबला मोरो भारत लगसे खूब प्यारो।
प्रकृ नत ना येको स्वरूपला संवारकन,
देवरूप सजाईसे येला इत् आयकन।
देवता इनकी जन्द्मभूसम से भारतवषि,
इनको आशीवािद लक़ सबमा से हषि।
भारत मा कन् कन् मा ईश्वरको वास,
धमि परासे सप भारतीय को ववश्वास।
त्याग अन् वीरता की भूसम भारतवषि,
तयार सब शीश चघावन लाई सहषि।
सत्य अन् धरम को मंघ से जीवन,
सनातन ला ननभायकन् आजीवन।
हर युग होता धरम् अन् ज्ञान मा दक्ष,
त्याग अन् वीरता की भूसम भारतवषि,
तयार सब शीश चघावन लाई सहषि।
सत्य अन् धरम को मंघ से जीवन,
सनातन ला ननभायकन् आजीवन।
हर युग होता धरम् अन् ज्ञान मा दक्ष,
भौनतकता नही इत् से मुत्क्तका लक्ष।
हर सन ला सब समलकन मनावसेजन,
बंधुत्व ससखावन वाला आम्ही आजन।
फकरपा करो प्रभु सबमा रहें इत् हषि,
हर युगमा महान रहें मोरो भारत वषि।
17. १७
समठठू
********
एक हदन वपंटु न समठ्ठु धरीस
ओला नववन वपंजरा मा ठेईस
रातहदन ओकी च कर वु सेवा
रंग रंग ओला खान ला देईस
श्री िी.पी.राहांगिाले
गोंहदया
खुल हवा मा उळनेवालो समठ्ठु
अचानक वपंजरा मा वू फसेव
नहीं लग ओला काहीच गा गोळ
मनमा पस्तावा रुसकर बसेव
समठ्ठु समठ्ठु मोटो बोलसेस गोळ
गोळ तोर बोलीको नाहाय तोळ
देना आता मनकी नाराजी सोळ
खायना खुशीलका जांबकी फोळ
भाऊ भाऊ नोको देस मोला फोळ
सोनोको वपंजरा नही लग गोळ
खुलपन की यला नहीं गा तोळ
दरवाजा खोल ना मोला तु सोळ
उळत उळत, जंगल जाऊन
रात हदन मी तोरा गुण गावुन
भाऊ भाऊ नोको देस मोला फोळ
सोनोको वपंजरा नही लग गोळ
खुलपन की यला नहीं गा तोळ
दरवाजा खोल ना मोला तु सोळ
उळत उळत, जंगल जाऊन
रात हदन मी तोरा गुण गावुन
रंग ना रंग का मी फल खाऊन
खांदी पर बसुन, झोका देवुन